Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Ruchira Chapter 5 वृक्षाः Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
वचनानुसारं रिक्तस्थानानि पूरयत -
(वचन के अनुसार रिक्तस्थान की पूर्ति कीजिए-)
प्रश्न 2.
कोष्ठकेषु प्रदत्तशब्देषु उपयुक्तविभक्तिं योजयित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
(कोष्ठकों में दिए गए शब्दों में उचित विभक्ति जोड़कर रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए-)
यथा - अहं रोटिकां खादामि। (रोटिका)
(क) त्वं ...................... पिबसि। (जल)
(ख) छात्र: ................ पश्यति। (दूरदर्शन)
(ग) वृक्षाः ............... पिबन्ति। (पवन)
(घ) ताः .................. लिखन्ति। (कथा)
(ङ) आवाम् ................. गच्छावः। (जन्तुशाला)
उत्तरम् :
(क) त्वं जलं पिबसि।
(ख) छात्रः दूरदर्शनं पश्यति।
(ग) वृक्षाः पवनं पिबन्ति।
(घ) ताः कथां लिखन्ति।
(ङ) आवां जन्तुशालां गच्छावः।
प्रश्न 3.
अधोलिखितेषु वाक्येषु कर्तृपदानि चिनुत
(अधोलिखित वाक्यों में कर्तृपदों का चयन कीजिए-)
(क) वृक्षाः नभः शिरस्सु वहन्ति।
(ख) विहगाः वृक्षेषु कूजन्ति।
(ग) पयोदर्पणे वृक्षाः स्वप्रतिबिम्बं पश्यन्ति।
(घ) कृषक: अन्नानि उत्पादयति।
(ङ) सरोवरे मत्स्याः सन्ति।
उत्तरम् :
(क) वृक्षाः।
(ख) विहगाः।
(ग) वृक्षाः।
(घ) कृषकः।
(ङ) मत्स्याः।
प्रश्न 4.
प्रश्नानामुत्तराणि एकपदेन लिखत - (प्रश्नों के उत्तर एक पद में लिखिए-)
(क) वृक्षाः कैः पातालं स्पृशन्ति?
(ख) वृक्षाः किं रचयन्ति?
(ग) विहगाः कुत्र आसीना:?
(घ) कौतुकेन वृक्षाः किं पश्यन्ति?
उत्तराणि :
(क) पादैः।
(ख) वनं।
(ग) शाखासु।
(घ) स्वप्रतिबिम्बम्।
प्रश्न 5.
समुचितैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत। (समुचित पदों के द्वारा रिक्तस्थानों की पूर्ति कीजिए।)
उत्तरम :
प्रश्न 6.
भिन्नप्रकृतिकं पदं चिनुत(भिन्न प्रकृति वाले पद को चुनिए-)
(क) गङ्गा, लता, यमुना, नर्मदा।
(ख) उद्यानम्, कुसुमम्, फलम्, चित्रम्।
(ग) लेखनी, तूलिका, चटका, पाठशाला।
(घ) आम्रम्, कदलीफलम्, मोदकम्, नारङ्गम्।
उत्तरम् :
(क) लता।
(ख) चित्रम्।
(ग) चटका।
(घ) मोदकम्।
प्रश्न 1.
निम्नलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि प्रदत्तविकल्पेभ्यः चित्वा लिखत -
(i) 'कूजन्ति' इति पदे कः लकार:?
(अ) लट्
(ब) लृट्
(स) लोट्
(द) लङ्
उत्तरम् :
(अ) लट्
(ii) 'पादै' इति पदे का विभक्तिः ?
(अ) द्वितीया
(ब) चतुर्थी
(स) तृतीया
(द) षष्ठी
उत्तरम् :
(स) तृतीया
(iii) वृक्षाः किं रचयन्ति?
(अ) पर्वतम्
(ब) वनम्
(स) भवनम्
(द) नदीम्
उत्तरम् :
(ब) वनम्
(iv) साधुजनाः इव के सन्ति?
(अ) धनिकाः
(ब) पर्वताः
(स) बालकाः
(द) वृक्षाः
उत्तरम् :
(द) वृक्षाः
(v) वृक्षाः पादैः कम् स्पृशन्ति?
(अ) पातालम्
(ब) आकाशम्
(स) पताकाम्
(द) भूलोकम्
उत्तरम् :
(अ) पातालम्
(vi) विहगाः' इति पदस्य अर्थः कः?
(अ) मृगाः
(ब) गजाः
(स) खगाः
(द) सिंहाः
उत्तरम् :
(स) खगाः
प्रश्न 2.
कोष्ठकात् समुचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तराणि :
अतिलघूत्तरात्मकप्रश्ना: -
प्रश्न :
एकपदेन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) वने वने के निवसन्ति?
(ख) वृक्षाः शिरस्सु किम् वहन्ति?
(ग) वृक्षाः स्वप्रतिबिम्बं कौतुकेन कुत्र पश्यन्ति?
(घ) साधुजनाः इव के सन्ति?
उत्तराणि :
(क) वृक्षाः
(ख) नभः
(ग) पयोदर्पणे
(घ) वृक्षाः।
लघूत्तरात्मकप्रश्ना: -
प्रश्न :
पूर्णवाक्येन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) वनं वनं के रचयन्ति?
उत्तरम् :
वनं वनं वृक्षाः रचयन्ति।
(ख) वृक्षाः कैः किमपि कृजन्ति?
उत्तरम् :
वृक्षाः विहगैः किमपि कूजन्ति।
(ग) सर्वे वृक्षाः सन्ततं किं पिबन्ति?
उत्तरम् :
सर्वे वृक्षाः सन्ततं पवनं जलं च पिबन्ति।
(घ) वृक्षाः कथं सत्कारं कुर्वन्ति?
उत्तरम् :
वृक्षाः स्वच्छायासंस्तरणं प्रसार्य, सत्कारं कुर्वन्ति।
पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ में अत्यन्त सरल श्लोकों के द्वारा वृक्षों के महत्त्व को बताया गया है। वृक्ष मनुष्यों के मित्र हैं। वे मनुष्यों के लिए कल्याणकारी तथा अत्यंत उपयोगी हैं। वृक्षों से ही वनों का निर्माण होता है। वृक्षों की शाखाओं पर बैठे हुए पक्षी मधुर कलरव करते हैं मानो वृक्ष मनुष्यों का मनोरञ्जन करने के लिए मधुर गान कर रहे हों। वृक्ष स्वयं तो केवल पानी और वायु को ही ग्रहण करते हैं, किन्तु वे मनुष्यों के लिए छाया, फल, काष्ठ (लकड़ी) आदि प्रदान करते हैं। वास्तव में वृक्ष हमारे लिए महान् उपकारी हैं।
पाठ के कठिन-शब्दार्थ :
पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ -
1. वने वने निवसन्तो ....................................रचयन्ति वृक्षाः।।
अन्वयः - वृक्षाः वने वने निवसन्तः। वृक्षाः वनं वनं रचयन्ति।
हिन्दी-भावार्थ - प्रत्येक वन में वृक्ष (पेड़) निवास करते हैं। वृक्ष प्रत्येक वन (जंगल) को बनाते हैं। अर्थात् वृक्षों से ही वनों का निर्माण होता है।
2. शाखादोलासीनाः विहगाः................................ कूजन्ति वृक्षाः॥
अन्वयः - विहगाः शाखादोलासीनाः (सन्ति)। वृक्षाः तैः किमपि कूजन्ति।
हिन्दी-भावार्थ - पक्षीगण शाखा (टहनी) रूपी झूलों पर बैठे हुए हैं। वृक्ष उनके द्वारा कुछ भी (कुछ-कुछ) कूजते हैं। अर्थात् वृक्ष मानो पक्षियों के माध्यम से कूकते हैं।
3. पिबन्ति पवनं जलं .......................................इव सर्वे वृक्षाः।।
अन्वयः - सर्वे वृक्षाः साधुजना इव पवनं जलं सन्ततं पिबन्ति।
हिन्दी-भावार्थ - सभी वृक्ष सज्जन (तपस्वी) लोगों के समान हैं। वे निरन्तर वायु और जल पीते हैं। अर्थात् वृक्ष तपस्वी लोगों के समान संसार का कल्याण करते हैं।
4. स्पृशन्ति पादैः पातालं. ............................................. वहन्ति वृक्षाः॥
अन्वयः - वृक्षाः पादैः पातालं स्पृशन्ति, शिरस्सु च नभ: वहन्ति।
हिन्दी-भावार्थ - वृक्ष जड़ रूपी पैरों से पाताल का स्पृश करते हैं और सिर पर आकाश को वहन करते (ढोते) हैं।
5. पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बम् ................................ पश्यन्ति वृक्षाः।।
अन्वयः - वृक्षाः पयोदर्पणे स्वप्रतिबिम्बं कौतुकेन पश्यन्ति।
हिन्दी भावार्थ - वृक्ष जल रूपी दर्पण (शीशे) में अपनी परछाईं को उत्सुकता (आश्चर्य) से देखते हैं।
6. प्रसार्य स्वच्छायासंस्तरणम् .........................सत्कारं वृक्षाः॥
अन्वयः - वृक्षाः स्वच्छाया संस्तरणं प्रसार्य सत्कारं कुर्वन्ति।
हिन्दी भावार्थ - वृक्ष अपनी छाया रूपी बिस्तर को फैला कर लोगों का सत्कार करते हैं। अर्थात् वृक्ष लोगों को छाया प्रदान करते हैं, अतः वे अत्यन्त उपकारी हैं।