Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 6 Sanskrit Ruchira Chapter 10 कृषिकाः कर्मवीराः Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
उच्चारणं कुरुत -
(उच्चारण कीजिए-)
उत्तरम् :
[नोट-इन पदों के अर्थ समझते हुए शुद्ध उच्चारण कीजिए।]
प्रश्न 2.
श्लोकांशान योजयत -
(श्लोकांशों का मिलान कीजिए-)
उत्तरम् :
प्रश्न 3.
उपयुक्तकथनानां समक्षम् 'आम्' अनुपयुक्तकथनानां.समक्षं 'न' इति लिखत-:
(उपयुक्त कथनों के सामने 'आम्' तथा अनुपयुक्त कथनों के सामने 'न' लिखिए-)
यथा - कृषकाः शीतकालेऽपि कर्मठाः भवन्ति। [आम्]
कृषकाः हलेन क्षेत्राणि न कर्षन्ति। [न]
(क) कृषकाः सर्वेभ्यः अन्नं यच्छन्ति। [ ]
(ख) कृषकाणां जीवनं कष्टप्रदं न भवति। [ ]
(ग) कृषकः क्षेत्राणि सस्यपूर्णानि करोति। [ ]
(घ) शीते शरीरे कम्पनं न भवति। [ ]
(ङ) श्रमेण धरित्री सरसा भवति। [ ]
उत्तराणि-
(क) आम्।
(ख) न।
(ग) आम्।
(घ) न।
(ङ) आम्।
प्रश्न 4.
मञ्जूषातः पर्यायवाचिपदानि चित्वा लिखत -
(मंजूषा से पर्यायवाची पद चुनकर लिखिए-)
[रविः वस्त्राणि जर्जरम् अधिकम् पृथ्वी पिपासा]
उत्तरम् :
प्रश्न 5.
मञ्जूषातः विलोमपदानि चित्वा लिखत -
(मंजूषा से विलोमपद चुनकर लिखिए-)
[धनिकम् नीरसा अक्षमम् दुःखम् शीते पावें]
उत्तरम् :
प्रश्न 6.
प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत(प्रश्नों के उत्तर लिखिए-)
(क) कृषकाः केन क्षेत्राणि कर्षन्ति?
उत्तरम् :
कृषकाः हलेन क्षेत्राणि कर्षन्ति।
(ख) केषां कर्मवीरत्वं न नश्यति?
उत्तरम् :
कृषिकाणां कर्मवीरत्वं न नश्यति।
(ग) श्रमेण का सरसा भवति?
उत्तरम् :
श्रमेण धरित्री सरसा भवति।
(घ) कृषकाः सर्वेभ्यः किं किं यच्छन्ति?
उत्तरम् :
कृषकाः सर्वेभ्यः शाकं अन्नं फलं दुग्धं च यच्छन्ति।
(ङ) कृषकात् दूरे किं तिष्ठति?
उत्तरम् :
कृषकात् दूरे सुखं तिष्ठति।
प्रश्न :
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि विकल्पेभ्यः चित्वा लिखत -
(i) कदा शरीरं सस्वेदं भवति?
(अ) शीते
(ब) ग्रीष्मे
(स) वसन्ते
(द) वर्षाकाले
उत्तरम् :
(ब) ग्रीष्मे
(ii) कृषिकायाः गृहं कीदृशं भवति?
(अ) रम्यम्
(ब) विशालम्
(स) भव्यम्
(द) जीर्णम्।
उत्तरम् :
(द) जीर्णम्।
(iii) कृषिकाया; कदापि किं न नश्यति?
(अ) कर्मवीरत्वम्
(ब) आलस्यं
(स) सुखम्
(द) भवनम्
उत्तरम् :
(अ) कर्मवीरत्वम्
(iv) 'सरसा' इत्यस्य विलोमशब्दः कः?
(अ) तपसा
(ब) अलसा
(स) नीरसा
(द) कर्कशा
उत्तरम् :
(स) नीरसा
(v) धरित्री' इत्यस्य पर्यायशब्दः कः?
(अ) आकाशः
(ब) पृथ्वी
(स) पाताल:
(द) गृहिणी
उत्तरम् :
(ब) पृथ्वी
अतिलघूत्तरात्मकप्रश्ना: -
प्रश्न:
एकपदेन प्रश्नान् उत्तरत
(क) कृषिका कृषिकः च शीतकालेऽपि कीदृशौ भवतः?
(ख) कृषिकायाः शरीरं ग्रीष्मे कीदृशं भवति?
(ग) कृषकस्य शरीरे कानि न भवन्ति?
(घ) विचित्रौ जन-पालको नित्यं कीदृशौ?
(ङ) श्रमेण कानि सस्यपूर्णानि सन्ति?
उत्तराणि-
(क) कर्मठौ
(ख) सस्वेदम्
(ग) वसनानि
(घ) क्षुधा-तृषाकुलौ
(ङ) क्षेत्राणि।
लघूत्तरात्मकप्रश्ना: -
प्रश्न:
पूर्णवाक्येन प्रश्नान् उत्तरत -
(क) कृषकाः नित्यं कीदृशाः भवन्ति?
उत्तरम् :
कृषकाः नित्यं कर्मठाः भवन्ति।
(ख) कृषकस्य शरीरं ग्रीष्मे शीते च कीदृशं भवति?
उत्तरम् :
कृषकस्य शरीरं ग्रीष्मे सस्वेदं शीते च कम्पमयं भवति।
(ग) कृषकाणां कदापि किम् न नश्यति?
उत्तरम् :
कृषकाणां कदापि कर्मवीरत्वं न नश्यति।
(घ) कृषकस्य जीवनं कीदृशं भवति?
उत्तरम् :
कृषकस्य जीवनं निर्धनं कष्टमयं च भवति?
(ङ) कृषकाणां श्रमेणधारित्री कीदृशी जाता?
उत्तरम् :
कृषकाणां श्रमेणधरित्री सरसा जाता।
पाठ-परिचय - प्रस्तुत पाठ में किसानों के कष्टमय एवं कर्मशील जीवन का वर्णन किया गया है। सामान्यतः किसान के रूप में पुरुषों का ही उल्लेख होता है, किन्तु कृषि-कार्य में महिलाओं का भी योगदान पुरुषों से कम नहीं है। इसलिए प्रस्तुत पाठ में लेखक ने विशेष रूप से महिला-किसानों का वर्णन किया है। वस्तुतः सच्चे कर्मशील किसान ही हैं।
वे सर्दी, गर्मी, वर्षा आदि के कष्टों को सहन करते हुए मानव-कल्याण के लिए अन्न का उत्पादन करते हैं। किसानों का जीवन अत्यन्त कष्टमय होता है। उनके पास न घर होता है, न पर्याप्त वस्व एवं भोजन होता है, फिर भी वे अपने कष्टों की परवाह न करते हुए खेतों में अथक परिश्रम करते रहते हैं।
पाठ के कठिन शब्दार्थ :
पाठ के श्लोकों का अन्वय एवं हिन्दी-भावार्थ
1. सूर्यस्तपतु मेघाः वा .......................................................... शीतकालेऽपि कर्मठौ।
अन्वयः - सूर्यः तपतु मेघाः वा विपुलं जलं वर्षन्तु। कृषिका कृषिकः (च) शीतकालेऽपि नित्यं कर्मठौ (स्तः)।
हिन्दी-भावार्थ - (चाहे) सूर्य तंपाये अथवा बादल अत्यधिक जल बरसायें, (किन्तु) किसान और उसकी पत्नी (महिला किसान) हमेशा सर्दी में भी काम में लगे रहते हैं। अर्थात् किसान पति-पत्नी भीषण गर्मी, वर्षा एवं शीत में भी कार्य करते रहते हैं।
2. ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं ............................................... क्षेत्राणि कर्षतः॥
अन्वयः - ग्रीष्मे शरीरं सस्वेदं (भवति), शीते सदा कम्पमयं (भवति)। (तथापि) तौ हलेन च कुदालेन क्षेत्राणि कर्षतः।
हिन्दी-भावार्थ - गर्मी में शरीर पसीने से युक्त (लथपथ) होता है और सर्दी में शरीर हमेशा कम्पनयुक्त होता है, फिर भी वे दोनों किसान पति-पत्नी हल के द्वारा और कुदाल से खेत को जोतते रहते हैं।
3. पादयोन पदत्राणे ................................................ सुखं दूरे हि तिष्ठति।।
अन्वयः - पादयोः न पदत्राणे, शरीरे नो वसनानि। जीवनं निर्धनं कष्टम् (अस्ति)। सुखं (तु) दूरे हि तिष्ठति।
हिन्दी-भावार्थ - उन किसानों के पैरों में जूते नहीं हैं, शरीर पर वस्त्र नहीं हैं। उनका जीवन निर्धन और कष्टमय है। सुख तो उनसे दूर ही रहता है। अर्थात् किसानों का जीवन अत्यन्त कष्टमय होता है।
4. गृहं जीर्णं न वर्षास ................................................... कृषिकाणां न नश्यति॥
अन्वयः - गृहं जीर्णम् (अस्ति)। वर्षासु वृष्टिं वारयितुं न क्षमम्। तथापि कृषिकाणां कर्मवीरत्वं न नश्यति।
हिन्दी भावार्थ - उन महिला किसानों का घर पुराना है, जो वर्षाकाल में वर्षा (बारिश) को रोकने के भी लिए समर्थ नहीं है। फिर भी (उन) महिला किसानों की कर्मठता (परिश्रम करने की भावना) नष्ट नहीं होती है।
5. तयोः श्रमेण क्षेत्राणि ................................................ शुष्का कण्टकावृता।
अन्वयः - तयोः श्रमेण क्षेत्राणि सर्वदा सस्यपूर्णानि (भवन्ति)। या शुष्का कण्टकावृता धरित्री (सा) सरसा जाता।
हिन्दी-भावार्थ - उन दोनों (किसानों) के परिश्रम के द्वारा ही खेत हमेशा फसलों (अन्न) से भरे रहते हैं। जो धरती सूखी और काँटों से ढकी हुई है, वह सरस (हरी-भरी) हो गई है।
6. शाकमन्नं फलं दुग्धं .......................................................... विचित्रौ जन-पालको॥
अन्वयः - तौ सर्वेभ्यः एव शाकम् अन्नं फलं दुग्धं दत्त्वा विचित्रौ जनपालको (तौ) नित्यं क्षुधा-तृषाकुली (स्तः)।
हिन्दी भावार्थ - वे दोनों किसान पति-पत्नी सभी प्राणियों के लिए शाक (सब्जी), अन्न, फल और दूध देकर विचित्र जनपालक (लोगों का पालन करने वाले) हमेशा (स्वयं) भूख और प्यास से व्याकुल रहते हैं। अर्थात् किसान स्वयं भूखे एवं प्यासे रहकर भी लोगों के लिए खाद्य-पदार्थों का उत्पादन करते हैं।