RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sociology in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 12. Students can also read RBSE Class 12 Sociology Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 12 Sociology Notes to understand and remember the concepts easily. The bhartiya samaj ka parichay is curated with the aim of boosting confidence among students.

RBSE Class 12 Sociology Solutions Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

RBSE Class 12 Sociology औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 75

प्रश्न 1. 
अभिसरण शोध जिसे कि आधुनिकीकरण के सिद्धान्तकारों क्लार्क ने आगे बढ़ाया, के अनुसार वीं शताब्दी का आधुनिकीकृत भारत 19वीं शताब्दी की विशेषताओं से साझा करने के बजाय उनकी अधिक विशेषताएँ 21वीं शताब्दी के चीन या संयुक्त राज्यों जैसी होंगी।
(अ) क्या आपको यह सच लगता है ?
(ब) क्या संस्कृति, भाषा एवं परम्पराएँ नयी तकनीक के कारण विलुप्त हो जाती हैं और क्या संस्कृति नए उत्पादों को अपनाने के तरीके को प्रभावित करती हैं ? इन बिन्दुओं पर अपने स्वयं के विचारों को उदाहरण देते हुए लिखिए।
उत्तर:
(अ) हाँ, यह सच है कि भारत 19वीं शताब्दी की विशेषताओं से साझा करने के बजाय उनकी अधिक विशेषताएँ 21वीं शताब्दी के चीन या संयुक्त राज्यों जैसी होंगी।

(ब) भारतीय संस्कृति, भाषा एवं परम्पराएँ, नई तकनीक के कारण पूरी तरह से विलुप्त नहीं हुई हैं। वृहद् परम्पराएँ, सांस्कृतिक मूल्य तथा साहित्यिक भाषाएँ अपना स्थान लिये हुए हैं, हाँ छोटी सांस्कृतिक परम्पराएँ विलुप्त हो रही हैं। आज बहुत से छोटे-मोटे त्योहार, जैसे-बछ बारस, शीतला अष्टमी, पीपल अष्टमी, राधा अष्टमी इत्यादि त्योहार बहुत कम लोग मनाते हैं, अधिकांश इन त्योहारों को जानते भी नहीं हैं।

कई परम्परागत पकवान जैसे खीचीए, गुड़धानी, बाजरे का खीचड़ा, राबड़ी, जैसी चीजें आजकल बहुत कम लोग जानते हैं। इनमें से कुछ चीजों का आधुनिकीकरण हो गया और वे नए नामों से बाजार में आ रही हैं; जैसेकुरकुरे, लेज इत्यादि। संस्कृति नए उत्पादों को अपनाने के तरीकों को प्रभावित करती है। उदाहरण के लिए नीली जीन्स के साथ भारतीय कुर्ता का पहनावा भारतीय संस्कृति के प्रभाव को दर्शाता है। 

पृष्ठ संख्या 82

प्रश्न 2. 
हिन्द स्वराज्य में गाँधीजी और मशीन (1924) - मैं मशीनों के प्रति पागलपन का विरोधी हैं, लेकिन मशीनों का विरोधी नहीं हूँ। मैं उस सनक का विरोधी हूँ जो मजदूरों को कम करती हैं। आदमी श्रम से बचने के लिए मजदूरों को कम करते जाएँगे जबकि हजारों मजदूरों को बिना काम के सड़कों पर भूख से मरने के लिए फेंक न दिया जाए। मैं समय और मजदूर दोनों को बचाना चाहता हूँ। मानवजाति के विखंडन के लिए नहीं बल्कि सबके लिए। मैं सम्पत्ति को कुछ हाथों में एकत्रित नहीं होने देना चाहता, बल्कि उसे सबके हाथों में देखना चाहता हूँ। (1934) - एक राष्ट्र के रूप में जब हम चर्खे को अपनाते हैं तो न केवल बेरोजगारी की समस्या का समाधान करते हैं, बल्कि यह भी घोषित करते हैं कि हमारी किसी भी राष्ट्र का शोषण करने की इच्छा नहीं है, और हम अमीरों द्वारा गरीब के शोषण को भी समाप्त करना चाहते हैं। उदाहरण द्वारा बताइए कि 
(अ) मशीनें किस तरह कामगारों के लिए समस्या पैदा करती हैं ? 
(ब) गाँधीजी के दिमाग में क्या विकल्प था। 
(स) चरखे को अपनाने से शोषण को कैसे रोका जा सकता है?
उत्तर:
(अ) प्रथमतः मशीनें उत्पादन को बढ़ाने में सहायक होती हैं, परन्तु ये मशीनें कामगारों का स्थान ले रही हैं। चूँकि मशीनों से काम तेजी से होता है, इसलिए मशीनें आते ही कामगारों का रोजगार छिन जाता है। इससे उनमें बेरोजगारी और निर्धनता की वृद्धि होती है। दूसरे, उद्योगपति मशीनों पर कामगारों से अधिक छोटे काम करवाते हैं और उसके बदले उन्हें वेतन कम देते हैं। इस प्रकार वे उनका शोषण करते हैं। तीसरे, कामगार जिन वस्तुओं का मशीनों से उत्पादन करते हैं, बाजार में वे उन वस्तुओं को अपने उपयोग के लिए खरीदने में असमर्थ होते हैं। इससे उनमें अलगाव की भावना पैदा होती है। इन्हीं कारणों से मशीनें कामगारों के लिए समस्याएँ पैदा करती हैं।

(ब) गाँधीजी के दिमाग में इसके लिए कुटीर उद्योग - धन्धे का विकल्प था।

(स) चरखे को अपनाने से शोषण को रोका जा सकता है; क्योंकि यह बहुत छोटे पैमाने पर किया जाने वाला कार्य है जिसे अधिकांश घर के सदस्य ही करते हैं। प्रत्येक परिवार अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए कपड़ा तैयार कर सकता है। चरखे का गृह उद्योग औद्योगिक रोजगार के विकेन्द्रीकरण को सहयोग देता है, साथ ही, यह उत्पादन तथा सम्पत्ति के विकेन्द्रीकरण में भी सहयोग करता है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

प्रश्न 3. 
पता लगाइए कि बीड़ी कैसे बनती है और कैसे अभिसाधित होकर बीड़ी कामगार के पास पहुँचती है?
उत्तर:
बीड़ी बनाने का अधिकांश कार्य महिलाएँ एवं बच्चे करते हैं । बीड़ी बनाने का कार्य घरों पर किया जाने वाला कार्य है। एक एजेण्ट उन्हें घर पर कच्चा माल दे जाता है। ये पहले पत्तों को गीला करके गोलाकार कर देते हैं, फिर उसे काटते हैं, फिर तंबाकू भरकर उसे बाँध देते हैं। घर पर कार्य करने वालों को चीजों के नग के हिसाब से पैसे दिये जाते हैं। ठेकेदार बीडियों को वहाँ से लेकर उसे उत्पादक को बेच देता है, जो इन्हें पकाता है या सेंकता है और अपने ब्रांड का लेबल लगा देता है। उत्पादक इन्हें बीड़ियों के वितरक को बेच देता है, जो उन्हें थोक विक्रेताओं को देता है और फिर यह दुकान पर बेच दी जाती हैं।

पृष्ठ संख्या 89 

बॉक्स 5.8 का अभ्यास 

1982 की हड़ताल के बारे में दिए गए परिच्छेद को पढ़कर अंत में दिए गए प्रश्नों के उत्तर दें

  1. 1982 की कपड़ा मिल हड़ताल के विभिन्न परिप्रेक्ष्यों का वर्णन कीजिए।
  2. कामगार हड़ताल पर क्यों गए? 
  3. दत्ता सामंत ने किस तरह हड़ताल की नेतागिरी स्वीकार की?
  4. हड़ताल तोड़ने वालों की क्या भूमिका थी? 
  5. माफिया गिरोहों ने किस तरह इन स्थानों पर अपनी जगह बनाई ? 
  6. इस हड़ताल के दौरान महिलाएँ कैसे परेशान हुईं, और उनके मुख्य सरोकार क्या थे? 
  7. हड़ताल के दौरान कामगार और उनके परिवार कैसे अपने आप को बचाए रख पाए?

उत्तर:
1. ग्रेट बॉम्बे टेक्सटाइल हड़ताल 18 जनवरी, 1982 को ट्रेड यूनियन नेता दत्ता सामंत के नेतृत्व में की गई थी। उन दिनों में कपड़ा मिल के कामगार केवल अपना वेतन और महंगाई भत्ता लेते थे इसके अलावा उन्हें कोई और भत्ता नहीं मिलता था। उन्हें केवल पाँच दिन का आकस्मिक अवकाश मिलता था। दूसरे उद्योगों के कामगारों को अन्य भत्ते जैसे-यातायात, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ इत्यादि मिलना शुरू हो चुका था और साथ ही 10-12 दिन का आकस्मिक अवकाश भी। अंततः अपने अधिकार के लिए कपड़ा मिल के कामगारों को हड़ताल करना पड़ा।

2. कपड़ा मिल कामगारों को मात्र 5 दिन के अवकाश के साथ केवल वेतन और महँगाई भत्ता मिलता था वहीं पर अन्य उद्योगों के कामगारों को 10 से 12 दिन का अवकाश और अन्य प्रकार के भत्ते जैसे - यातायात, स्वास्थ्य संबंधी सुविधाएँ इत्यादि मिलता था। इससे कपड़ा मिल के कामगार भड़क गए और उन्होंने हड़ताल का निर्णय लिया।

3.  22 अक्तूबर 1981 को स्टैंडर्ड मिल के कामगार डॉ. दत्ता सामंत के घर बाकी के कपड़ा मिल के कामगार आए और उन्होंने दत्ता सामंत से हड़ताल की अगुवाई करने का निर्णय लिया। पहले सामंत ने मना कर दिया। उन्होंने यह तर्क दिया कि कपड़ा मिलें बी.आई.आर.ए. के अंतर्गत आती हैं, जिसके बारे में उन्हें अधिक जानकारी भी नहीं है। परंतु कामगार किसी भी हालत में ना नहीं सुनना चाहते थे। वे रात भर उनके घर के बाहर चौकसी करते रहे और अंततः सामंत को मानना पड़ा।

4. हड़ताल को तोड़ने के लिए मिल चाल्स टेनैंट एसोसिएशन के अध्यक्ष ने बाबू रेशिम, रमा नायक और अरुण गावली जैसे गुंडों को जेल से बाहर कर दिया। ये गुण्डे कामगारों को जबरदस्ती काम पर जाने का दबाव बनाते। जो महिलाएँ मिल में काम कर रही थीं, उनके साथ गुण्डों द्वारा बलात्कार किया गया।

5. हड़ताल होने पर माफिया गुटों ने मिल - मालिकों से सम्पर्क किया। मिल के मालिक भी मिलों में पूँजी निवेश के खिलाफ थे। अतः वे अपनी मिलों को बेचने का प्रयास करने लगे। इसके चलते कई मिलें माफिया गुटों के अन्दर आ गई थीं।

6. मिल की महिला मजदूरों ने हड़ताल का समर्थन किया। वे हड़ताल की योजनाओं में भाग लेती थीं, मोर्चे निकालती थीं। मोर्चे बहुत बड़े हुआ करते थे। कभी - कभी उन्हें बोलने के लिए कहा जाता था। परन्तु इतने बड़े मंच पर भाषण देने से पहले उन्हें अपने बच्चों के बारे में सोचना पड़ रहा था। उन्हें डर था कि उनके बच्चे उनको गलत समझ लेंगे। कई महिलाओं को अपने घर के सदस्यों का पेट भरने के लिए दूसरे के घरों में बर्तन, साफसफाई का काम करना पड़ा। कई महिलाएँ देह-व्यापार का शिकार हुईं। हड़ताल के दौरान भी उनके साथ कई गलत घटनाएँ हुईं।

7. इस हड़ताल की अवधि काफी लम्बी रही। इससे कई घरों में भुखमरी के हालात पैदा हो गए। कामगारों को पेट भरने के लिए अपने घर के सामान बेचने पड़ गए। कई मजदूरों को अपने घरों के सारे बर्तन बेचने पड़ गए। कई बार घर का ईंधन खत्म होने पर लकड़ी के बुरादे को ईंधन की जगह जलाना पड़ा। बहुत बार मजदूरों के छोटे बच्चों को पीने के लिए दूध नहीं मिलता था। अतः वो दिन बहुत ही कठिनाइयों से व्यतीत हुए।

RBSE Class 12 Sociology औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
अपने आस-पास वाले किसी भी व्यवसाय को चुनिए, और इसका वर्णन निम्नलिखित पंक्तियों में कीजिए
(क) कार्यशक्ति का सामाजिक संघटन - जाति, लिंग, आयु क्षेत्र 
(ख) मजदूर प्रक्रिया - काम किस तरह किया जाता है; 
(ग) वेतन एवं अन्य सुविधाएँ 
(घ) कार्यावस्था सुरक्षा - आराम का समय, कार्य के घंटे इत्यादि। 
उत्तर:
मैंने अपने आस-पास में प्रकाशन व्यवसाय को चुना है। इसका वर्णन निम्नलिखित है।
(क) कार्यशक्ति का सामाजिक संगठन - जाति, लिंग, आयु, क्षेत्र-प्रकाशन व्यवसाय में सभी जातियों के लोग कार्य करते हैं । इसमें जातिगत भेदभाव प्रायः नहीं है। इस व्यवसाय में स्त्री-पुरुष साथ-साथ कार्यरत हैं । अत: कोई लैंगिक भेदभाव भी नहीं है। इस व्यवसाय में अधिकांशतः युवक कार्यरत हैं। लेकिन प्रौढ़ व वृद्ध व्यक्ति युवकों को दिशा-निर्देशित करते हैं।
इसमें प्रकाशक प्रायः एक धनी व्यक्ति होता है, जो कि प्रकाशन का मालिक होता है। शेष सभी कर्मचारी होते हैं। इसके अतिरिक्त लेखन का कार्य प्रकाशक के कर्मचारियों द्वारा नहीं किया जाता है। प्रकाशन का कार्यक्षेत्र शहरी क्षेत्र होता है।

(ख) मजदूर प्रक्रिया - काम किस तरह किया जाता है?-प्रकाशन के कार्य का प्रारम्भ पुस्तकों के लेखन से प्रारम्भ होता है। लेखक द्वारा पुस्तक लिखे जाने के बाद लेखक उसे प्रकाशन हेतु प्रकाशक मालिक या इस कार्य हेतु रखे गये प्रबंधक को सौंपता है। प्रकाशक उसे कंपोजिंग हेतु कम्प्यूटर विभाग को सौंप देता है। कम्प्यूटर से कंपोजिंग को प्रकाशक प्रफरीडिंग करवाता है। जो त्रुटियाँ सामने आती हैं उन्हें ठीक करते हुए कंपोजिंग हेतु कम्प्यूटर विभाग को सौंप दिया जाता है । कम्पोजिंग की प्रक्रिया पूरी होने के बाद इसे छपाई हेतु प्रेस को भेज दिया जाता है। छपाई के बाद छपे हुए कागज पुस्तक बाइण्डर के पास भेज दिये जाते हैं । पुस्तक के ऊपर का टाइटल का कवर पृष्ठ प्रकाशक अलग से छपवाकर तैयार रखता है जिसे वह छपे हुए कागजों के साथ बाइण्डर को भेज देता है। बाइण्डर उसे पुस्तक का रूप देकर पुनः प्रकाशक के पास भेज देता है। प्रकाशक उसे विक्रय विभाग को सौंप देता है जहाँ से वह बुक सेलर्स को भेज दी जाती है।सामान्यतः प्रकाशक का समस्त कार्य दो विभागों में विभाजित रहता है-

  1. प्रोडक्शन विभाग और 
  2. विक्रय (सेल्स) विभाग।

पुस्तक के लेखन से लेकर पुस्तक के बाइंडिंग तक का कार्य प्रोडक्शन विभाग के तहत आता है और संजीव पास बुक्स पुस्तक के बाइंडिंग के बाद से विक्रय तथा स्टोर का कार्य विक्रय विभाग के अन्तर्गत आता है। इस प्रकार प्रकाशन के समस्त कार्य का प्रबन्धन उच्च स्तर पर किया जाता है। सामान्यतः कम्पोजिंग, प्रूफरीडिंग, छपाई और बाइंडिंग का कार्य प्रकाशक अन्य एजेन्सियों से निर्धारित दरों पर कराता है।

(ग) वेतन व अन्य सुविधाएँ - इस व्यवसाय में प्रकाशक द्वारा लेखकों को या तो रॉयल्टी के आधार पर भुगतान किया जाता है या प्रत्येक पृष्ठ की दर के आधार पर भुगतान किया जाता है। भुगतान दोनों में से किस तरह से किया जाये, यह प्रकाशक और लेखक की लिखित या मौखिक संविदा पर निर्भर करता है। प्रकाशक अन्य कर्मचारियों को योग्यतानुसार पारिश्रमिक प्रदान करता है। जो कर्मचारी पब्लिसिटी क्षेत्र से जुड़े होते हैं, उनको टी.ए. तथा डी.ए. भी दिया जाता है। इसके अतिरिक्त वर्ष के अन्त में बोनस आदि भी दिया जाता है।

(घ) कार्यावस्था सुरक्षा-आराम का समय व कार्य के घंटे आदि-प्रकाशन व्यवसाय में कार्य के घंटे 8-10 तक हैं । इसमें आधे घंटे का विश्राम का समय भी सम्मिलित है। जब प्रोडक्शन तथा विक्रय का मुख्य समय होता है तब अधिक समय तक भी कार्य करना पड़ता है जिसका अतिरिक्त पारिश्रमिक के रूप में भुगतान किया जाता है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

प्रश्न 2. 
ईंट बनाने के, बीड़ी रोल करने के, साफ्टवेयर इंजीनियर या खदान के काम जो बॉक्स में वर्णित किए गए हैं, के कामगारों के सामाजिक संघटन का वर्णन कीजिए। कार्यावस्थाएँ कैसी हैं और उपलब्ध सुविधाएँ कैसी हैं ? मधु जैसी लड़कियाँ अपने काम में बारे में क्या सोचती हैं ?
उत्तर:
(अ) ईंट बनाने वालों का सामाजिक संगठन - दक्षिणी गुजरात में ईंट बनाने वालों का सामाजिक संगठन जाति एवं लिंग पर आधारित होता है। ईंट के भट्टों के मालिक ऊँची जाति के लोग जैसे पारसी या देसाई होते हैं। प्रजापति जाति के लोग इन ईंट के भट्टों पर, अपना पारम्परिक मिट्टी का कार्य करते हैं। कामगार अधिकांशतः स्थानीय या प्रवासी दलित होते हैं। उन्हें ठेकेदार के द्वारा रोजगार पर रखा जाता है। ये 9 से 11 सदस्यों की टोली में काम करते हैं । जल्दी काम करने वाला समूह 10 घंटे में और धीमे काम करने वाला समूह 14 घण्टे में अपना काम समाप्त करता है। इसमें पुरुष मिट्टी को सानते और उसे ईंट का आकार देते हैं तथा छोटे बच्चे उन्हें सुखाने के स्थान पर ले जाते हैं। महिलाएँ एवं लड़कियाँ ईंटों को भट्टी पर ले जाती हैं, जहाँ पुरुष उन्हें पकाते हैं और फिर उन्हें ट्रकों पर लाद दिया जाता है।

कार्यावस्थाएँ व वेतन सविधाएँ - ईंट के भट्टों पर कार्य करने वाली प्रत्येक टोली को 2500 से 3000 ईंटें बनानी पड़ती हैं। इसके लिए उन्हें सबेरे जल्दी उठना पड़ता है; क्योंकि उन्हें अपना कार्य 10 से 14 घंटे में पूरा करना पड़ता है। यहाँ कार्य करने वाले व्यक्तियों के लिए शुद्ध वायु, पीने का साफ पानी, दुर्घटना से बचने के प्रबन्ध मालिकों द्वारा नहीं किए जाते। इनमें से अधिकांश को प्रतिदिन के हिसाब से वेतन पर रखा जाता है, अन्य सुविधाएँ लगभग नहीं के समान दी जाती हैं।

(ब) बीड़ी बनाने वालों का सामाजिक संगठन - बीड़ी बनाने वालों का सामाजिक संगठन लिंग पर आधारित होता है । यह घर में किया जाने वाला कार्य है। यह कार्य मुख्य रूप से महिलाओं या बच्चों द्वारा किया जाता है। एक एजेंट इन्हें कच्चा माल अर्थात् तेंदू के पत्ते दे जाता है और फिर तेंदू के पत्तों को गीला करके उन्हें गोलाकार किया जाता है। फिर उन्हें काटकर उनमें तम्बाकू भरा जाता है तथा उसे धागे से बाँध दिया जाता है । इस सम्पूर्ण कार्य को एजेंट मजदूरी चुकाकर ले जाता है। कार्य अवस्थाएँ एवं वेतन (मजदूरी) - घर पर कार्य करने वालों को चीजों के नग के हिसाब से पैसे दिए जाते हैं जो इस बात पर निर्भर करता है कि उन्होंने कितने नग बनाए हैं। ठेकेदार बीड़ियों को वहाँ से लेकर उसे उत्पादक को बेच देता है जो इन्हें पकाता या सेंकता है और अपने ब्रांड का लेबल लगा देता है। उत्पादक इन्हें बीड़ियों के वितरक को बेच देता है। इस क्षेत्र में निर्माता को अपने ब्रांड की वजह से पैसा बहुत ज्यादा मिलता है; परन्तु वह कामगारों को प्रति नग के हिसाब से पैसा कम देता है।

मधु जैसी लड़कियों की अपने कार्य के बारे में सोच - आठवीं कक्षा में फेल होने के बाद 15 वर्ष की मधु ने स्कूल छोड़ दिया। पिता की मृत्यु के पश्चात् मधु और उसकी माँ बीड़ियों को रोल करती हैं। मधु को यह कार्य इसलिए पसन्द है; क्योंकि उसे माँ और अन्य औरतों के पास बैठने और उनकी बातें सुनने का मौका मिलता है। घर के कामकाज के अलावा वह दिनभर एक ही मुद्रा में बैठकर यही काम करती है। इस कारण उसकी पीठ में दर्द हो गया है। अब वह पुनः स्कूल जाने की इच्छुक है।

(स) खदान में काम करने वाले मजदूरों का सामाजिक संगठन व कार्यावस्थाएँ - खदान में हर जाति, धर्म, लिंग, आयु का व्यक्ति कार्य करता है।
कार्यावस्थाएँ - खदानों में कार्य करने वाले मजदूरों की कार्यावस्थाएँ इस प्रकार हैं-भूमिगत खानों में कार्य करने वाले कामगार बाढ़, आग, ऊपरी या सतह के हिस्से के धंसने से बहुत खतरनाक स्थितियों का सामना करते हैं। गैसों के उत्सर्जन और ऑक्सीजन के बंद होने के कारण बहुत से कामगारों को साँस से सम्बन्धित बीमारियाँ हो जाती हैं। जैसे-क्षय रोग या सिलिकोसिस। खुली खदानों में कार्य करने वालों को तेज धूप, वर्षा, खान फटने जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 5 औद्योगिक समाज में परिवर्तन और विकास

प्रश्न 3. 
उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को किस प्रकार प्रभावित किया है ? 
उत्तर:
उदारीकरण का रोजगार के प्रतिमानों पर प्रभाव उदारीकरण ने रोजगार के प्रतिमानों को निम्न प्रकार प्रभावित किया है।
(1) सुरक्षित अर्थात् सरकारी क्षेत्र में नौकरियों व रोजगार में कमी आना तथा असुरक्षित रोजगार का बढ़ना - सन् 1990 के दशक से सरकार ने उदारीकरण की नीति को अपनाया है। निजी कम्पनियाँ, विशेष रूप से विदेशी फर्मों को उन क्षेत्रों में निवेश के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है, जो पहले सरकारी क्षेत्र के लिए आरक्षित थे, जैसे - दूरसंचार, नागरिक उड्डयन एवं ऊर्जा आदि। इसका परिणाम यह हुआ है कि सरकारी क्षेत्र में सुरक्षित रोजगार व नौकरियाँ कम हो रही हैं और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों व प्राइवेट फर्मों की असुरक्षित नौकरियाँ बढ़ रही हैं।

(2) विदेशी वस्तुओं के आयात से नौकरियों व रोजगार में कमी आना-उदारीकरण के कारण विदेशी उत्पाद अब आसानी से भारतीय बाजारों व दुकानों में उपलब्ध हो रहा है, जबकि पहले इस प्रकार का माल भारतीय कारखानों में ही बन रहा था। प्रतिस्पर्धा में भारतीय कम्पनियाँ दम तोड़ रही हैं। फलतः इन क्षेत्रों में लगे लोगों को अपनी नौकरियों व रोजगार से हाथ धोना पड़ रहा है।

(3) भारतीय कम्पनियों का बहुराष्ट्रीय कम्पनियों द्वारा अधिग्रहण से रोजगार में कमी आना-उदारीकरण के परिणामस्वरूप बहुत सी भारतीय कम्पनियों को बहुउद्देशीय कम्पनियों ने खरीद लिया है। उदाहरण के लिए, कोका कोला ने आज कई परम्परागत भारतीय पेयों का स्थान ले लिया है। इससे इन परम्परागत भारतीय कम्पनियों में रोजगार कम हुआ है।

(4) स्वयं रोजगार को बढ़ावा - उदारीकरण की नीति के कारण उद्योगों को खोलने के लिए अब लाइसेंस वांछित नहीं रहा है। इस नीति ने निश्चित रूप से स्व - रोजगार के अवसरों को बढ़ावा दिया है।

(5) छोटे दुकानदारों व व्यापारियों का रोजगार समाप्त होना - विदेशी कम्पनियों तथा बड़े व्यापारिक घरानों ने खुदरा क्षेत्र में पदार्पण करते हुए बड़े - बड़े मॉल खोल दिये हैं, जिनके कारण बहुत छोटे खुदरा व्यापारी, दुकानदार, हस्तशिल्प विक्रेता तथा हॉकर्स अपने रोजगार खो रहे हैं।

(6) बाह्य स्रोतों से कार्य करवाना तथा कर्मचारियों की संख्या में कटौती - अधिकांश कर्मचारियों ने उदारीकरण के प्रभावस्वरूप, अपने स्थायी कर्मचारियों की संख्या में कटौती कर दी है, वे बाह्य स्रोतों से सस्ती दर पर कार्य करवाते हैं।उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारत में बहुत कम लोगों के पास सुरक्षित रोजगार है। यहाँ तक कि छोटी संख्या के स्थायी सुरक्षित रोजगार भी अनुबंधित कामगारों के कारण असुरक्षित होते जा रहे हैं।

Prasanna
Last Updated on June 2, 2022, 5:10 p.m.
Published June 1, 2022