Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 4 ग्रामीण समाज में विकास एवं परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
(अ) आपके क्षेत्र में मनाए जाने वाले किसी ऐसे महत्त्वपूर्ण त्योहार के बारे में सोचिए जिसका सम्बन्ध फसलों या कृषि जीवन से है। इस त्योहार में शामिल विभिन्न रीति-रिवाजों का क्या अभिप्राय है, और वे कृषि के साथ कैसे जुड़े हैं ?
(ब) भारत में बहुत से ऐसे कस्बे और शहर बढ़ रहे हैं जिनके चारों ओर गाँव हैं। क्या आप किसी ऐसे शहर या कस्बे के बारे में बता सकते हैं जो पहले गाँव था या ऐसा क्षेत्र था जो पहले कृषि भूमि था? इस स्थान के विकसित होने के बारे में आप क्या सोचते हैं। और उन लोगों का क्या हुआ जिनकी जीविका इस भूमि से चलती थी?
उत्तर:
(अ) भारतवर्ष में विभिन्न प्रकार के त्योहार मनाए जाते हैं, जिनका अपना अलग - अलग उद्देश्य होता है। परन्तु कुछ त्योहार जैसे - बसन्त पंचमी, बैसाखी, बीहू आदि त्योहार विशेष रूप से फसलों के कटने तथा नये कृषि - मौसम आने के समय मनाए जाते हैं। भारत की संस्कृति और संरचना दोनों कृषि पर आधारित हैं। अतः अधिकांश त्योहार फसलों के कटने की खुशी में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाते हैं।
बैसाखी का त्योहार - पंजाब में बैसाखी का त्योहार बैसाख मास में गेहूँ की फसल के कटने तथा नए कृषि वर्ष के आगमन की खुशी में मनाया जाता है। इस दिन सभी लोग नहा - धोकर फसल व फसल से सम्बन्धित कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं । पंजाब में विशेष रूप से बैसाखी के दिन भांगड़ा आदि सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। विभिन्न प्रकार के स्वादिष्ट पकवान, व्यंजन आदि बनाए जाते हैं।
(ब) शहरी विकास की प्रक्रिया में गाँवों का विलीनीकरण:
शहर या कस्बे के विकास की प्रक्रिया में अनेक बार आस - पास के गाँव अथवा कृषि भूमि वाले क्षेत्र भी सम्मिलित हो जाते हैं। कई बार तो ऐसे गाँव अथवा कृषि भूमि वाले क्षेत्र की भूमि सरकारी आवास, विकास परिषदें ग्रहण कर लेती हैं। वे इसका मुआवजा तो देती ही हैं, परन्तु यह इतना कम होता है कि उनका पुनर्वास ठीक प्रकार से नहीं होता। अनेक बार कृषक अपनी भूमि को निजी संस्थाओं को या सहकारी संस्थाओं को बेच देते हैं।
हाँ, हम ऐसे एक क्षेत्र को जानते हैं जो पहले कृषि भूमि था। लेकिन वहाँ अब शहर विकसित हो गया है। जयपुर के टोंक फाटक के पास का समूचा क्षेत्र पहले कृषि क्षेत्र था। जयपुर शहर के विकास की प्रक्रिया ने कृषकों से यह कृषि भूमि विभिन्न सहकारी संस्थाओं ने खरीदकर घरों के पट्टे काट दिये और उन पर बस्तियाँ बसी हुई हैं। यह स्थान अब जयपुर शहर के मध्य में आ गया है।इस भूमि से जीविका चलाने वाले लोगों की स्थिति - इस कृषि भूमि से दो प्रकार के लोगों की जीविका चल रही थी। प्रथमतः वे, जो इस भूमि के मालिक थे, लेकिन स्वयं काश्तकार नहीं थे। दूसरे वे, जो इस भूमि पर कृषि कार्य कर अपनी जीविका चलाते थे। अब वे इस रूप में अपनी जीविका चला रहे हैं ।
(1) जिनकी जीविका भूमि से चलती थी और जो भूमि के मालिक थे उन्होंने अपनी भूमि बड़े बिल्डर को मॉल, होटल या आवासीय फ्लैट बनाने वालों को बेच दी और वे स्वयं इस रुपये से शहर में मकान, कार खरीद कर ऐशो-आराम की जिन्दगी जी रहे हैं।
(2) जो इन भूमि पर कार्य करके जीविका चलाते थे, वे शहर में आकर मजदूरी या छोटा - मोटा व्यवसाय जैसे चाय, सब्जी का ठेला लगाकर जीविका चला रहे हैं।
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प्रश्न 2.
सोचिए कि आपने जाति व्यवस्था के बारे में क्या सीखा। कृषिक या ग्रामीण वर्ग संरचना और जाति के मध्य पाए जाने वाले विभिन्न सम्बन्धों को वर्गीकृत कीजिए। इसकी संसाधनों, मजदूर एवं व्यवसाय की विभिन्नता के साथ विवेचना कीजिए।
उत्तर:
जाति व्यवस्था - जाति जन्म पर आधारित व्यवस्था है। पहले जाति के अनुसार ही व्यक्ति का व्यवसाय, खान-पान, दूसरी जाति से सम्बन्ध, विवाह सम्बन्ध तय होते थे। शहरों में आधुनिकीकरण, नगरीकरण, पाश्चात्य शिक्षा कानून के कारण जाति व्यवस्था कमजोर पड़ रही है।
कृषक या ग्रामीण वर्ग संरचना और जाति के मध्य पाये जाने वाले सम्बन्ध - ग्रामीण समाज में आज भी जाति का अस्तित्व बना हुआ है। सामान्यतः प्रबल भूस्वामियों के समूहों में मध्य और ऊँची जातीय समूहों के लोग आते हैं। अधिकांश सीमान्त किसान और भूमिहीन लोग निम्न जातीय समूहों जैसे अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग के हैं, जो प्रबल जाति के भूस्वामी के लोगों के यहाँ कृषि मजदूरी करते हैं। ग्रामीण समाज में अन्य विभिन्न जातियाँ जैसे कुम्हार, खाती, जुलाहा, लुहार एवं सुनार, पुजारी, भिश्ती व तेली, धोबी भी अपनी सेवाएं देते हैं।
इस प्रकार ग्रामीण वर्ग संरचना और जाति के मध्य सामान्यतः पारस्परिकता के सम्बन्ध पाये जाते हैं। उच्च जातियों के लोग उच्च वर्ग से सम्बन्धित होते हैं जबकि निम्न जातियों के लोग निम्न वर्ग में आते है। लेकिन कहीं - कहीं भूस्वामी न होने के कारण उच्च जाति वाले ब्राह्मण ग्रामीण समाज का अंग होते हुए भी कृषिक संरचना से भी बाहर हो गये हैं।कुछ क्षेत्रों में अनेक ऐसी प्रबल जातियाँ हैं जो जातीय संरचना में मध्यम जातियाँ हैं । लेकिन कृषिक वर्ग संरचना में उनका सबसे ऊँचा स्थान है।
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प्रश्न 3.
भूदान आन्दोलन के बारे में जानें। आपरेशन बारगा के बारे में जानेंचर्चा करें।
उत्तर:
इसकी जानकारी छात्र स्वयं एकत्र करें।
प्रश्न 4.
समाचार पत्र ध्यानपूर्वक पढ़ें। दूरदर्शन अथवा रेडियो के समाचार सुनें। कब-कब ग्रामीण क्षेत्रों को सम्मिलित किया जाता है ?किस तरह के मुद्दे आमतौर पर बताए जाते हैं ?
उत्तर:
(समाचार-पत्र छात्र स्वयं पढ़ें व दूरदर्शन, रेडियो पर भी छात्र स्वयं समाचार सुनें।)
भारत में समाचार - पत्रों, दूरदर्शन अथवा रेडियो के समाचारों में ग्रामीण क्षेत्रों से अनेक मुद्दे सम्मिलित किए जाते रहे हैं। जैसे
(1) बीजों, नई तकनीकों तथा सरकारी सुविधाओं को कृषकों तक पहुँचाने तथा उन्हें उपलब्ध कराने के समाचार इन माध्यमों में सम्मिलित किये जाते रहे हैं।
(2) चौपाल, कृषि-दर्शन और खेत-खलिहान जैसे कार्यक्रमों में ग्रामीण क्षेत्रों के मुद्दे उठाये जाते रहते हैं। इनमें उन्नत बीज, सिंचाई की विधियाँ, फसलों को रोग से मुक्त रखने हेतु कीटनाशकों के छिड़काव तथा विभिन्न प्रकार की फसलों के मुद्दे दिखाये जाते हैं।
(3) समाचार-पत्रों में वर्तमान में 'नरेगा' का काफी प्रचार रहता है। सरकार विज्ञापनों के द्वारा इसे प्रचारित करती है कि नरेगा के द्वारा किस प्रकार ग्रामीण बेरोजगारी, निर्धनता को दूर किया जा रहा है और ग्रामीण विकास के कार्य कराये जा रहे हैं।
(iv) आजकल विभिन्न प्रदेशों में किसानों द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं की इन माध्यमों में चर्चा रहती है। इन आत्महत्याओं के पीछे कृषक निर्धनता के मुद्दे को उठाया जाता रहा है कि किस प्रकार उदारीकरण की नीति के चलते किसान अपना उत्पादन बढ़ाने के लिए महँगे मदों में निवेश करने के लिए ऋण लेते हैं लेकिन बाढ़, सूखे या रोग के कारण फसल नष्ट हो जाने पर वे ऋण के बोझ से दब रहे हैं और आत्महत्या को विवश हो रहे हैं।(नोट-विद्यार्थी इन माध्यमों में कृषकों या ग्रामीण संरचना से सम्बन्धित इसी प्रकार के अन्य मुद्दों पर अपना ध्यानांकित कर सकते हैं।)
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
दिए गए गद्यांश को पढ़ें तथा प्रश्नों का उत्तर दें।
अघनबीघा में मजदूरों की कठिन कार्य-दशा, मालिकों की एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के सदस्य के रूप में अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव का परिणाम थी। मालिकों की सामाजिक शक्ति का एक महत्त्वपूर्ण पक्ष, राज्य के विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता थी। इस प्रकार प्रबल तथा निम्न वर्ग के मध्य खाई को चौड़ा करने में राजनीतिक कारकों का निर्णयात्मक योगदान रहा है।
उत्तर:
(1) मालिकों को आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति की अपरिमित शक्ति के संयुक्त प्रभाव के कारण राज्य के विभिन्न अंगों का अपने हितों के पक्ष में हस्तक्षेप करवा सकने की क्षमता प्राप्त थी। इसलिए वे राज्य की शक्ति को अपने हितों के लिए प्रयोग कर सके।
(2) अघनबीघा में मजदूरों की कार्यदशा कठिन होने का मुख्य कारण मालिकों का एक वर्ग के रूप में आर्थिक शक्ति तथा प्रबल जाति के सदस्य के रूप में असीमित शक्ति-सम्पन्न होना था। जबकि मजदूरों की आर्थिक स्थिति निम्न थी। जातीय संस्तरण में भी उनका स्थान निम्न स्तर पर था। इस कारण वे अपनी कार्यदशाओं में सुधार की माँग मालिकों से नहीं कर सकते थे। यदि वे करते भी थे, तो मालिक उन्हें मजदूरी से वंचित कर देते थे। अतः उनकी यह मजबूरी थी कि वे कार्य की कठिन दशाओं के बावजूद मालिकों के हर उचित - अनुचित आदेश मानते रहे।
प्रश्न 2.
भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए आपके अनुसार सरकार ने क्या उपाय किए हैं, अथवा क्या किए जाने चाहिए?
उत्तर:
हमारे अनुसार भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाये हैं, यथा
(1) सरकार ने भूमि सुधार के सम्बन्ध में जमींदारी प्रथा को समाप्त कर दिया है, पट्टेदारी का उन्मूलन कर दिया है तथा भूमि की हदबंदी अधिनियम लागू कर भूमिहीन कृषि मजदूरों की दशा सुधारने का प्रयत्न किया है।
(2) न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 द्वारा मजदूरी एवं कार्यविधि निर्धारित की गई है।
(3) बंधुआ मजदूरी को बंधुआ मजदूरी प्रथा (उन्मूलन) अधिनियम, 1976 द्वारा समाप्त कर दिया गया है।
(4) महिला मजदूरों के हितों की सुरक्षा के लिए प्रसूति लाभ अधिनियम, 1961 तथा समान मजदूरी अधिनियम, 1976 जैसे अधिनियम पारित किए गए हैं।
(5) सरकार ने ठेका मजदूर (विनियमन और उन्मूलन) अधिनियम 1970, अन्तर्राज्यीय कर्मकार (रोजगार विनियमन और सेवा शर्त) 1979 तथा भवन और अन्य निर्माण श्रमिक अधिनियम 1996 आदि सभी भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले मजदूरों के हितों की रक्षा हेतु पारित किये गये हैं।इन अधिनियमों के बावजूद श्रमिकों का शोषण जारी है। आज भी श्रमिक अशिक्षा, आवास, कुपोषण, शोषण, यौन-शोषण तथा नशावृत्ति जैसी समस्याओं से ग्रसित हैं।
सरकार को इन मजदूरों के हितों की रक्षा करने के लिए निम्न प्रयास और करने चाहिए:
(1) भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले श्रमिकों की दशा को सुधारा जाना चाहिए। उन्हें वे सभी अधिकार दिये जाने चाहिए जो ऐसे संगठित क्षेत्रों के श्रमिकों या फैक्ट्री मजदूरों को जो नियमित रूप से कार्य करते हैं, को प्रदान किये जा रहे हैं।
(2) भूमिहीन कृषि मजदूरों तथा प्रवसन करने वाले श्रमिकों को न्यूनतम मजदूरी दी जानी चाहिए।
(3) सरकारी विकास के प्रोजेक्टों में प्रवसन करने वाले मजदूरों को काम देकर प्रवसन को हतोत्साहित करना चाहिए।(4) सभी मजदूरों को कार्य की सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। साथ ही उन्हें उचित आवास, स्कूल, अस्पताल, यातायात सुविधाएँ भी प्रदान की जानी चाहिए। उनकी रहने की तथा कार्य की दशाओं में सुधार किया जाना चाहिए।
प्रश्न 3.
वे कौन से कारक हैं जिन्होंने कुछ समूहों के नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव किया है ? क्या आप अपने राज्य में इस परिवर्तन के उदाहरण के बारे में सोच सकते हैं ?
उत्तर:
कुछ समूहों के नव धनाढ्य, उद्यमी एवं प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव बनाने के कारक-अनेक कारकों ने कुछ समूहों के नव धनाढ्य, उद्यमी तथा प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव बनाया है। यथा
(1) भूमि का स्वामित्व और हरित क्रांति: भूमि का स्वामित्व वह प्रमुख कारक है जिसने ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ समूहों के नव धनाढ्य, उद्यमी एवं प्रबल वर्ग के रूप में परिवर्तन को संभव बनाया है। मध्यम और बड़ी जमीनों के मालिक साधारणतः कृषि से पर्याप्त अर्जन ही नहीं बल्कि अच्छी आमदनी भी कर लेते हैं। अधिकांश क्षेत्रों में प्रमुख भू-स्वामी समूह शूद्र या क्षत्रिय वर्ण की जातियों के थे।
हरित क्रांति के बाद नयी तकनीक द्वारा कृषि उत्पादकता में वृद्धि हुई। हरित क्रांति का लाभ मध्यम और बड़े किसान ही उठा सके क्योंकि इसमें किया जाने वाला निवेश महँगा था। इसलिए हरित क्रांति के बाद होने वाले कृषि व्यापारीकरण का मुख्य लाभ उन किसानों को मिला जो बड़ी भूजोतों के स्वामी थे क्योंकि वे ही बाजार के लिए अतिरिक्त उत्पादन करने में सक्षम थे। इससे धनी किसान और अधिक सम्पन्न हो गए तथा भूमिहीन तथा सीमान्त भूधारकों की दशा बिगड़ गई।
(2) धनीभू: स्वामियों का अन्य प्रकार के व्यापारों में निवेश करना - 1960-70 के दशक में अनेक कृषिसम्पन्न क्षेत्रों, जैसे-तटीय आन्ध्रप्रदेश, पश्चिमी उत्तर प्रदेश तथा मध्य गुजरात में प्रबल जातियों के सम्पन्न किसानों ने कृषि में होने वाले लाभ को अन्य प्रकार के व्यापारों में निवेश करना प्रारम्भ कर दिया। इससे नये क्षेत्रीय अभिजात वर्गों का उदय हुआ जो आर्थिक और राजनैतिक रूप से प्रबल हो गये।
(3) उच्च शिक्षा का विस्तार: ग्रामीण तथा अर्द्धनगरीय क्षेत्रों में उच्च शिक्षा का विस्तार हुआ। नव ग्रामीण अभिजात वर्ग द्वारा अपने बच्चों को शिक्षित करना संभव हुआ, जिनमें से बहुतों ने व्यावसायिक अथवा श्वेत वस्त्र अपनाए अथवा व्यापार प्रारम्भ कर नव धनाढ्य वर्गों के विस्तार में योग दिया। भी महत्त्वपूर्ण हैं। प्रत्येक क्षेत्र में ये प्रबल जातियाँ आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक दृष्टि से प्रमुख शक्तिशाली समूह बने। ये प्रबल जातीय भू-स्वामी समूह हरित क्रांति से हुए अतिरिक्त उत्पादन से धनी बने तथा इन्होंने अपनी प्रबलता के आधार पर राजनीतिक शक्ति हस्तगत की तथा अन्य व्यापारों में निवेश कर यह समूह नव - धनाढ्य तथा उद्यमी वर्ग के रूप में सामने आया।
प्रश्न 4.
हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं की फिल्में अक्सर ग्रामीण परिवेश में होती हैं। ग्रामीण भारत पर आधारित किसी फिल्म के बारे में सोचिए तथा उसमें दर्शाए गए कृषक समाज और संस्कृति का वर्णन कीजिए। उसमें दिखाए गए दृश्य कितने वास्तविक हैं ? क्या आपने हाल में ग्रामीण क्षेत्र पर आधारित कोई फिल्म देखी है? यदि नहीं तो आप इसकी व्याख्या किस प्रकार करेंगे?
उत्तर:
भारत गाँवों में निवास करता है। हिन्दी तथा क्षेत्रीय भाषाओं में ग्रामीण परिवेश पर आधारित अनेक फिल्में समय - समय पर यहाँ प्रदर्शित हुई हैं। हिन्दी में ऐसी प्रमुख फिल्में हैं - मदर इंडिया, अंकुर, उपकार और लगान। यहाँ हम 'लगान' फिल्म में दर्शाए गए कृषक समाज और संस्कृति व उसमें दिखाये गये दृश्यों पर संक्षिप्त विवेचन करेंगे।
लगान फिल्म लगान फिल्म भारतीय ग्रामीण परिवेश पर आधारित थी जिसका नायक गरीब भूमिहीन किसान होता है और जमींदार के यहाँ खेती करता है और विभिन्न प्रकार से उसका शोषण किया जाता है। इस फिल्म में ग्रामीण जीवन और कृषकों की समस्याओं, जैसे - अकाल आदि को गंभीरता से दर्शाया गया है। साथ ही औपनिवेशिक काल की लगान व्यवस्था की कठोरता को भी दर्शाया गया है। इस फिल्म में लोक गीत, लोक नृत्य तथा भारतीय ग्रामीण संस्कृति को दर्शाया गया है। कृषकों को बाध्य किया जाता है कि लगान माफी के लिए या तो वे क्रिकेट में जीतकर दिखायें या दुगुना लगान भरें।
इस प्रकार अंग्रेजों और गाँववासी में क्रिकेट मैच की शर्त लग गई। एक ग्रामीण नायक जो क्रिकेट जानता भी नहीं था किस प्रकार अपने आत्मबल के सहारे उन जमींदारों और अंग्रेजों से विजय प्राप्त करता है। इसमें दिखाये गए दृश्य बेहद वास्तविक लगते हैं।
प्रश्न 5.
अपने पड़ोस में किसी निर्माण स्थल, ईंट के भट्टे या किसी अन्य स्थान पर जाएँ जहाँ आपको प्रवासी मजदूरों के मिलने की संभावना हो, पता लगाइए कि वे मजदूर कहाँ से आए हैं ? उनके गाँव से उनकी भर्ती किस प्रकार की गई, उनका मुकादम कौन है ? अगर वे ग्रामीण क्षेत्र से हैं तो गाँवों में उनके जीवन के बारे में पता लगाइए तथा उन्हें काम ढूँढ़ने के लिए प्रवासन करके बाहर क्यों जाना पड़ा?
उत्तर:
मैं जयपुर में रहता हूँ। यहाँ पर एक बड़े क्षेत्र में निर्माण कार्य चल रहा था। संभवत: कोई मॉल बन रहा था। जिसके निर्माण कार्य में निजी प्रॉपर्टी डीलर्स तथा भवन एवं इमारत निर्माण कम्पनी लगी हुई थी। इस कम्पनी के मालिक ने अनेक प्रबन्धक, इंजीनियर लगा रखे थे तथा अनेक मजदूर भर्ती किए हुए थे जो कि बिहार, झारखंड तथा पूर्वी यूपी के आप्रवासी थे। उनकी भर्ती ठेकेदारों द्वारा की गई थी।
अधिकांश मजदूर कम मजदूरी पर कार्य कर रहे थे क्योंकि उनकी बारगेनिंग शक्ति बहुत कमजोर थी। वे चालाक ठेकेदारों द्वारा शोषित किये जा रहे थे और प्रबन्धक उनके मुकादम थे, जो कि इमारत के निर्माण कार्य का नियंत्रण कर रहे थे। ये अप्रवासी मजदूर अधिकांशतः सूखाग्रस्त क्षेत्रों से या कम उत्पादक क्षेत्रों से आये थे। वे ईंट और गारे पर कार्य करते थे। वे कच्चे घरों, टैण्ट तथा झोंपड़ियों में रहते थे, जो कार्यस्थल पर ही बनाए गए थे। गाँव में बेरोजगारी की स्थिति में काम की तलाश में वे यहाँ आए थे। इनके साथ उनकी स्त्रियाँ तथा बच्चे भी आये थे, लेकिन बूढ़े माँ-बाप वहीं गाँव में रह गये थे।