Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 3 भारतीय लोकतंत्र की कहानियाँ Textbook Exercise Questions and Answers.
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पृष्ठ संख्या 53
प्रश्न 1.
एक सप्ताह के समाचार पत्र - पत्रिकाओं को देखें। उनमें ऐसे उदाहरणों को लिखें जहाँ हितों का संघर्ष हो।
(क) विवादास्पद मुद्दों का पता लगाएँ।
(ख) उन तरीकों का पता लगाइए जिनसे सम्बन्धित समूह अपने हितों का फायदा उठाते हैं।
(ग) क्या यह किसी राजनीतिक दल का औपचारिक प्रतिनिधि मंडल है जो प्रधानमंत्री या किसी अन्य अधिकारी से मिलना चाहता है।
(घ) क्या यह विरोध सड़कों पर किया जा रहा है।
(ङ) क्या यह विरोध लिखित रूप में अथवा समाचार पत्रों में सूचना के द्वारा किया जा रहा है।
(च) क्या यह सार्वजनिक बैठकों के द्वारा किया जा रहा है ? ऐसे उदाहरणों का पता लगाइए।
(छ) यह पता लगाइए कि क्या किसी राजनीतिक दल, व्यावसायिक संघ, गैर-सरकारी संगठन अथवा किसी भी अन्य निकाय ने इस मुद्दे को उठाया है ?
(ज) भारतीय लोकतंत्र की कहानी के विभिन्न पात्रों के बारे में चर्चा करें।
उत्तर:
इन प्रश्नों को विद्यार्थी स्वयं करें। नोट - इस सम्बन्ध में विद्यार्थियों की सहायता हेतु कुछ उदाहरण दिए जा रहे हैं
(1) समाचार पत्र - पत्रिकाओं में उठे कुछ प्रमुख विवादास्पद मुद्दे - समाचार पत्र-पत्रिकाओं में आए दिन ऐसे उदाहरण उठाये जाते हैं जिनमें हितों का संघर्ष स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है अथवा जो विवादास्पद मुद्दों से सम्बन्धित होते हैं। जैसे
(ii) विवादास्पद मुद्दों पर विरोध के प्रकार - विवादास्पद मुद्दों पर विरोध अनेक प्रकार से किया जाता है। यथा
(क) वह समूह जिसको किसी मुद्दे से हानि होने की आशा है, वह इसका विरोध करने के लिए आन्दोलन और सड़कों पर प्रदर्शन का सहारा लेता है। कई बार तो विवादास्पद मुद्दों पर विरोध हिंसक रूप भी धारण कर लेता है।
(ख) यदि विवादास्पद मुद्दे से किसी जाति या वर्ग विशेष को हानि हो रही है तो वह जाति या वर्ग अपने सदस्यों को संगठित करता है तथा अपनी शक्ति प्रदर्शित करने के लिए अखिल भारतीय या प्रान्तीय सम्मेलन करता है। ऐसे सम्मेलनों में उस वर्ग या जाति विशेष के मंत्री भी शामिल होते हैं तथा अपनी आवाज सरकार तक पहुँचाने का आश्वासन देते हैं। समाचार पत्रों के माध्यम से ही विभिन्न पक्ष अपने हितों के लिए जनमत तैयार करने का प्रयास करते हैं। कभी - कभी यह हिंसक रूप भी धारण कर लेता है। उदाहरण के लिए राजस्थान में उठा गुर्जर आरक्षण आन्दोलन।
(iii) राजनीतिक दल, व्यावसायिक संघ, गैर-सरकारी संगठन आदि के द्वारा किसी विवादास्पद मुद्दे संजीव पास बुक्स को उठाना - राजनीतिक दल, व्यावसायिक संघ, गैर - सरकारी संगठन अथवा कोई भी अन्य निकाय विवादास्पद मुद्दों को अनेक प्रकार से उठाते हैं, जैसे - विभिन्न राज्यों में वैट के विरोध में व्यापारियों द्वारा संगठित होकर बाजार एवं प्रतिष्ठान बंद करना, इसे लागू न करने के लिए सरकार पर दबाव बनाना । व्यावसायिक संघ व इन संघों से जुड़े हित समूह सरकार को इससे होने वाली कठिनाइयों से अवगत कराते हैं। समाचार पत्रों में भी इस प्रकार के विरोध को उजागर किया जाता है।
राजनीतिक दल विवादास्पद मुद्दों पर प्रत्येक नगर अथवा जिला मुख्यालयों पर प्रदर्शन करते हैं, सरकार को ज्ञापन देते हैं । वे लोकसभा, राज्यसभा व विधानमण्डलों में इन मुद्दों पर अपनी आवाज उठाते हैं तथा आवश्यक होने पर सदन की कार्यवाही को ठप कर देते हैं।(नोट - विद्यार्थी समाचार पत्र - पत्रिकाओं में आए मुद्दों को लेकर उन पर विभिन्न समूहों द्वारा किये गए विरोध के स्वरूप को इसी के अनुसार दर्शा सकते हैं।)
प्रश्न 1.
हित समूह प्रकार्यशील लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
हित समह लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं हित समूह लोकतंत्र के अभिन्न अंग हैं, इसे निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है
(1) हित समूह अपने हितों का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकार के समक्ष अपनी माँगें रखते हैं - हित समूह लोकतंत्र की आत्मा हैं क्योंकि विभिन्न हित समूह अपने - अपने हितों और सरोकारों का प्रतिनिधित्व करते हुए सरकार के सामने अपनी समस्याएँ व परेशानियाँ रखते हैं व सरकार का ध्यान अपनी परेशानियों की ओर आकृष्ट करते हैं।
(2) राजनीतिक दलों को प्रभावित करना - हित समूह राजनीतिक दलों को प्रभावित करने के लिए कार्य करते हैं।
(3) राजनैतिक क्षेत्र में कार्यशील - हित समूह राजनीतिक क्षेत्र में कुछ निश्चित हितों को पूरा करने का कार्य करते हैं। इसके लिए वे विधानमण्डलों में लॉबीइंग करते हैं।
(4) जनमत का निर्माण - हित समूह विभिन्न प्रश्नों के सम्बन्ध में जनता को शिक्षित करके जनमत का निर्माण करने में सहायता करते हैं।
(5) समाचार पत्रों पर नियंत्रण - हित समूह जनमत को अपने पक्ष में करने के लिए समाचार पत्रों पर नियंत्रण रखते हैं जिससे कि उनके हितों का प्रचार हो सके।
(6) चुनावों में सक्रिय योगदान - यद्यपि हित समूह राजनीति से अपने को दूर रखते हैं, लेकिन वे सभी राजनीतिक दलों से साँठ-गाँठ रखते हैं। वे सभी राजनीतिक दलों को चंदा देते हैं तथा वे राजनीतिक दलों में उसके हितों को उठाने वाले प्रतिनिधियों को दलों से टिकिट दिलवाते हैं तथा उन्हें जिताने के प्रयत्न करते हैं ताकि विधानमण्डल में वे उनके हितों की रक्षा कर सकें।
(7) मंत्रियों को प्रभावित करना - जिन देशों में संसदीय शासन प्रणाली है, वहाँ हित समूह मंत्रियों को प्रभावित करके शासकीय नीति को अपने पक्ष में करवाने का प्रयत्न करते रहते हैं कि उनके हितों के रक्षक व्यक्तियों को मंत्री बनाया जाये। हित समूह के कुछ उदाहरण हैं-फेडरेशन ऑफ इंडियन कॉमर्स एण्ड चैंबर्स, एसोसिएशन ऑफ बर्स ऑफ कॉमर्स, शेतकरी संगठन इत्यादि।
प्रश्न 2.
संविधान सभा की बहस के अंशों का अध्ययन कीजिए। हित समूहों को पहचानिए। समकालीन भारत में किस प्रकार के हित समूह हैं ? वे कैसे कार्य करते हैं?
उत्तर:
संविधान सभा की बहस के अंशों में निहित हित समूह संविधान सभा की बहस के पाठ्यपुस्तक में दिए गए अंशों का अध्ययन करने पर हमें अग्रलिखित हित समूह पहचान में आते हैं।
(1) समाजवादी हित: समूह - कुछ लोग वामपंथी विचारधारा में विश्वास रखते थे-उनका हित समाजवाद में था। वे संविधान में 'काम के अधिकार' को मूल अधिकारों में सम्मिलित कराना चाहते थे।
(2) आर्थिक और सामाजिक न्याय का पक्षधर हित समूह-संविधान सभा में एक हित समूह उन लोगों का था जो सरकार के राजनीतिक दायित्वों (नीति - निर्देशक तत्त्वों) के वर्गीकरण की अपेक्षा आर्थिक और सामाजिक न्याय को अधिक महत्त्व देना चाहता था।
(3) वयस्क मताधिकार के समर्थक हित समूह-वहाँ कुछ लोग देश के सभी वयस्कों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। उदाहरण के लिए डॉ. अम्बेडकर ने कहा कि "संविधान का जो प्रारूप बनाया गया है वह देश के शासन के लिए केवल एक प्रणाली उपलब्ध करायेगा। अगर व्यवस्था लोकतंत्र को संतुष्ट करने में खरी उतरती है, तो यह जनता द्वारा निश्चित किया जायेगा कि कौन सत्ता में होना चाहिए।
(4) जमींदारी प्रथा के उन्मूलन का पक्षधर समूह-संविधान सभा में एक दबाव समूह भारत में भूमि सुधारों की वकालत कर रहा था। यह समूह जमींदारी प्रथा का उन्मूलन चाहता था।
(5) आदिवासी लोगों के हितों से सम्बन्धित दबाव समूह-संविधान सभा में एक दबाव समूह उन लोगों का था जो देश के आदिवासी लोगों के पक्ष में अपनी आवाज उठाना चाहते थे।
(6) एक दबाव समूह या हित समूह राज्य के नीति-निर्देशक तत्त्वों के अधीन कुछ नीतियों और कार्यक्रमों को अपनाने पर जोर दे रहा था ताकि प्रत्येक सत्ताधारी दल देश के विकास के लिए नीति-निर्देशक तत्त्वों के तहत उनको लागू करे।
(7) एक दबाव समूह कारीगरों, कलाकारों तथा सामान्य पेशेवरों का था जो कुटीर उद्योगों का विकास चाहते थे। वे चाहते थे कि भारत सरकार को कुटीर उद्योग की संरक्षा और विकास के लिए लोगों को जागरूक करना चाहिए तथा वे उद्योग को-ऑपरेटिव ढंग से चलाये जाने चाहिए।
समकालीन भारत के हित समूह विभिन्न हित समूह-उद्योगपति के हित समूह फेडरेशन ऑफ इंडियन, कॉमर्स एंड चैंबर्स, एसोसिएशन ऑफ चैंबर्स ऑफ कॉमर्स, कर्मचारी के हित समूह इंडियन ट्रेड यूनियन कांग्रेस, शेतकरी संगठन कृषि मजदूरों का हित संगठन है।
समकालीन भारत के हित समूहों की कार्यप्रणाली समकालीन भारत में विद्यमान विभिन्न हित समूह निम्न प्रकार से कार्य करते हैं:
प्रश्न 3.
विद्यालय में चुनाव लड़ने के समय अपने आदेश पत्र के साथ एक फड़ बनाइये। (यह पाँच लोगों के एक छोटे समूह में भी किया जा सकता है जैसा कि पंचायत में होता है।)
अथवा
विद्यालय में चुनाव लड़ने के समय अपने आदेश पत्र के साथ एक फड़ बनाइये।
उत्तर:
विद्यालय में चुनाव लड़ने के समय एक फड़ बनाना
विद्यालय में मैं अपने समूह के 5 सदस्यों के साथ चुनाव जीतने के बाद निम्नलिखित कार्यों को पूरा करने का प्रयास करूँगा
प्रश्न 4.
क्या आपने बाल मजदूर और मजदूर किसान संगठन के बारे में सुना है? यदि नहीं तो पता कीजिए और उनके बारे में 200 शब्दों में एक लेख लिखिए।
उत्तर:
हाँ, हमने बाल मजदूर और मजदूर संगठन के बारे में सुना है।
बाल मजदूर का अर्थ - 14 साल से कम आयु के बच्चे जो ढाबे, होटलों, कारखानों में कार्य करते हैं. बाल मजदूर कहलाते हैं।
बाल मजदूर संगठन भारत में बाल मजदूरों के हितों की रक्षा हेतु अनेक संगठन कार्यरत हैं। ऐसे संगठनों का उद्देश्य इन मजदूरों को सामाजिक न्याय दिलवाना है। बाल मजदूरों से सम्बन्धित अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है - यूनिसेफ। भारतीय बाल कल्याण परिषद तथा बंधुआ मुक्ति मोर्चा जैसे अनेक सरकारी एवं गैर - सरकारी संगठन बाल मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए प्रयासरत हैं। बाल मजदूरों के सम्बन्ध में भारत में संवैधानिक व्यवस्था-संविधान द्वारा बाल मजदूरी को गैर - कानूनी घोषित किया गया है। इसके लिए कई अधिनियम बनाए गए हैं जिनके अन्तर्गत 14 वर्ष तक की आयु तक के बच्चों को किसी खतरनाक कार्य में लगाना दंडनीय अपराध है।मजदूर किसान संगठन भारत में स्वतंत्रता के बाद अखिल भारतीय स्तर पर तथा क्षेत्रीय स्तर पर अनेक किसान संगठन बने हैं । यथा
(1) अखिल भारतीय स्तर के किसान संगठन - समाजवादियों ने 'हिन्द किसान पंचायत' की स्थापना की; मार्क्सवादी, साम्यवादी दल ने 'यूनाइटेड किसान सभा का गठन किया। मार्क्सवादी भारतीय साम्यवादियों ने 1967 में क्रांतिकारी किसान सम्मेलन आयोजित किया जो आगे चलकर नक्सलवादी आंदोलन में बदल गया। 1978 में चरण सिंह और राजनारायण के प्रयासों से जनता पार्टी ने अखिल भारतीय किसान कामगार सम्मेलन की स्थापना की।
(2) क्षेत्रीय स्तर के किसान सम्मेलन-क्षेत्रीय या राज्य स्तर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भूमिहीन श्रमिकों व किसानों के हितों के लिए चौधरी महेन्द्र सिंह टिकैत के नेतृत्व में 'भारतीय किसान यूनियन नामक संस्था की स्थापना की गई तथा गुजरात में शरद जोशी के नेतृत्व में शेतकारी संगठन' की स्थापना की गई। ये संगठन कृषकों के हितों के लिए कार्यरत हैं। इनका उद्देश्य गन्ना तथा कपास की कीमतों, कृषकों को दिये गये कर्जे, बिजली की अनियमितताओं तथा किसानों की अन्य समस्याओं को सरकार तक पहुँचाना रहा है।
प्रश्न 5.
ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73वाँ संविधान-संशोधन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। चर्चा कीजिए।
उत्तर:
73वें संविधान संशोधन विधेयक के प्रमुख प्रावधान - 73वें संविधान संशोधन अधिनियम (1992) ने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक प्रस्थिति प्रदान की है। इस संविधान संशोधन अधिनियम के प्रमुख प्रावधान ये हैं
(1) स्थानीय स्वशासन के सदस्य गाँवों तथा नगरों में हर पाँच साल में चुने जाएंगे।
(2) इसने ग्रामीण क्षेत्रों के स्थायी निकायों के सभी चयनित पदों में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण दिया। इनमें से 17% सीटें अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। इस प्रकार यह महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने वाला एक बड़ा कदम है।
(3) अब स्थानीय स्वशासन के लिए त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली का प्रावधान एक समान रूप से पूरे देश में लागू है। 20 लाख से अधिक जनसंख्या वाले प्रत्येक राज्य में त्रिस्तरीय राज प्रणाली लागू कर दी गई है।
ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73वें संविधान संशोधन का महत्त्व ग्रामीणों की आवाज को सामने लाने में 73वें संविधान संशोधन का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। यथा
प्रश्न 6.
एक निबन्ध लिखकर उदाहरण देते हुए उन तरीकों को बताइये जिनसे भारतीय संविधान ने साधारण जनता के दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण समस्याओं का अनुभव किया है।
उत्तर:
संविधान ने साधारण जनता की दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण समस्याओं को छआ है-भारतीय संविधान ने अनेक तरीकों से साधारण जनता की दैनिक जीवन की महत्त्वपूर्ण बातों को छुआ है। यथा
(1) मूल अधिकार तथा असमानता को समाप्त करने के प्रयत्न: भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के वयस्क मताधिकार प्रदान किया गया है। सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के स्वतंत्रता, समानता, धार्मिक स्वतंत्रता, शिक्षा एवं संस्कृति के मूल अधिकार प्रदान किये गये हैं। जाति पर आधारित विशेषाधिकार एवं निषेध समाप्त कर दिये गये हैं।
(2) लोकतांत्रिक शासन: भारतीय संविधान ने हमें प्रतिनिधि लोकतंत्र प्रदान किया है, जिसमें सभी वयस्क नागरिकों को शासन संचालन के लिए प्रतिनिधियों के चुनाव में भाग लेने का अधिकार दिया गया है। इसके माध्यम से हम ऐसे व्यक्ति का चुनाव कर सकते हैं जो हमारी समस्याओं के समाधान में रुचि लेता हो।
(3) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान हमें अपने विचारों को शांतिपूर्ण ढंग से अभिव्यक्त करने की निर्वाचित प्रतिनिधियों के समक्ष रख सकते हैं।
(4) धर्मनिरपेक्षता-हमारे संविधान ने धर्मनिरपेक्षता को स्थापित किया है । इसके माध्यम से हम साम्प्रदायिक सौहार्द बनाये रखते हैं तथा सभी धर्मावलम्बी अपने-अपने धर्मों का पालन करते हुए परस्पर बंधुत्व की भावना के साथ रह सकते हैं।
(5) नीति - निर्देशक तत्त्व: संविधान में आर्थिक और सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के लिए नीति-निर्देशक तत्त्वों की व्यवस्था की है। सरकार को इन नीतियों के पालन करने की दिशा में बढ़ना होगा। ये नीति-निर्देशक तत्त्व हमारे दैनिक जीवन की समस्याओं से सम्बन्धित हैं।
(6) संविधान के मूल उद्देश्य: संविधान में कुछ मूल उद्देश्य सम्मिलित किये गए हैं जो भारतीय राजनीतिक संसार में सामान्यतः न्यायोचित मानकर स्वीकृत कर लिए गए हैं। ये उद्देश्य हैं-निर्धनों और हाशिये के लोगों को सक्षम बनाना, निर्धनता का उन्मूलन करना, जातिवाद को समाप्त करना तथा सभी समूहों के प्रति समानता का व्यवहार करना। ये सभी उद्देश्य आम जनता के रोजमर्रा की समस्याओं से सम्बन्धित हैं।
(7) लोगों को जीवन, स्वास्थ्य और रोजगार की सुनिश्चितता प्रदान करना-संविधान जीवन का अधिकार प्रदान करता है और जीवन के लिए अनिवार्य गुणवत्ता, जीवनयापन के साधन, स्वास्थ्य, आवास, शिक्षा और गरिमापूर्ण जीवन आवश्यक है।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि भारतीय संविधान ने विभिन्न तरीकों से साधारण जनता की दैनिक जीवन में महत्त्वपूर्ण समस्याओं को छुआ है।