RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Sociology Solutions Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

RBSE Class 12 Sociology संरचनात्मक परिवर्तन InText Questions and Answers

पृष्ठ संख्या 3:

प्रश्न 1. 
(अ) ऐसी सभी चीजों, प्रघटनाओं एवं प्रक्रियाओं की सूची तैयार करें, जिनका सम्बन्ध औपनिवेशिक युग अर्थात् "ब्रिटिश काल" से हो, आम जीवन में उपयोग की जाने वाली वस्तुएँ, जैसेफर्नीचर, खाद्य - पदार्थ, भारतीय भाषाओं में उपयोग की जाने वाली कहावतें, मुहावरे आदि।
(ब) किसी भी भारतीय भाषा के उपन्यास, लघुकथा, सिनेमा या टेलीविजन धारावाहिकों के बारे में बताएँ जो औपनिवेशिक काल की याद दिलाते हों।
(स) आपने सिनेमा या टेलीविजन धारावाहिकों में अदालती कार्यवाही का दृश्य देखा होगा। क्या आपने उस कार्यवाही पर ध्यान दिया है ? यह कार्यवाही बड़े पैमाने पर ब्रिटिश व्यवस्था का अनुकरण करती है। कुछ वर्ष पूर्व तक यह देखा जाता था कि भारतीय न्यायाधीश बनावटी बालों वाला टोप पहना करते थे। पता कीजिए कि यह कैसे प्रचलन में आया और इसकी उत्पत्ति कहाँ हुई थी?
उत्तर:
(अ) औपनिवेशिक काल में प्रचलन में आई चीजों, प्रघटनाओं तथा प्रक्रियाओं की सूची को निम्न प्रकार दर्शाया गया है।
(i) औपनिवेशिक काल में प्रचलन में आई चीजें: अनेक ऐसी चीजों की सूची बनाई जा सकती है जो औपनिवेशिक काल में भारत में प्रचलन में आईं, जैसे - नेक - टाई, बिस्कुट, चॉकलेट, कटलेट, ब्रेड-ऑमलेट, टूथपेस्ट एवं ब्रश, पैंट - शर्ट, कोट, घड़ी, रेडियो आदि। (ऐसी चीजों की सूची को छात्र और आगे बढ़ा सकते हैं।)


(ii) औपनिवेशिक कालीन प्रघटनाएँ: औपनिवेशिक कालीन प्रघटनाओं की सूची भी बनाई जा सकती है। इस काल की प्रमुख प्रघटनाएँ जो भारत में इस काल में प्रचलन में आईं हैं-बड़े पैमाने पर उत्पादन, नकदी फसलों का प्रचलन, जंगलों की कटाई कर बागानों में चाय की खेती का प्रारम्भ, बसों, रेल और समुद्री जहाजों का यातायात में प्रयोग, स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों, कचहरियों, पुलिस स्टेशनों आदि।

(iii) औपनिवेशिक कालीन प्रक्रियाएँ: औपनिवेशिक काल में अनेक संरचनात्मक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन से सम्बन्धित अनेक प्रक्रियाएँ भी सामने आईं। जैसे - औद्योगीकरण, नगरीकरण, आधुनिकीकरण, पश्चिमीकरण, सार्वभौमिकरण, पंथ - निरपेक्षीकरण आदि।

(ब) अनेक भारतीय भाषाओं के उपन्यास, लघुकथाएँ, सिनेमा या टेलीविजन धारावाहिक ऐसी कहानियों पर केन्द्रित हैं जो औपनिवेशिक काल से सम्बन्धित हैं, जैसे-1939 में सोहराब मोदी की स्वतंत्रता की माँग पर आधारित 'पुकार' फिल्म। इसमें सामान्य जनता पर पुलिस अत्याचार तथा शोषण को दिखाते हुए स्वतंत्रता की माँग की गई है। इसके अतिरिक्त विनोद चोपड़ा की '1942 A Love Story' तथा मनोज कुमार की 'क्रांति' में भी औपनिवेशिक काल को दर्शाया गया है।

(स) हाँ, सिनेमा या टेलीविजन धारावाहिकों में हमने जो अदालती कार्यवाही के दृश्य देखे हैं, वे कार्यवाहियाँ बड़े पैमाने पर ब्रिटिश व्यवस्था का अनुकरण करती हैं। उदाहरण के लिए सिनेमाओं या टेलीविजन धारावाहिकों में भारतीय न्यायाधीशों का बनावटी काला टोप पहनना, वकीलों का बार-बार सिर झुकाकर 'माई लॉर्ड' कहना, न्यायाधीशों द्वारा बार-बार मेज पर हथौड़ा मारकर 'ऑर्डर - ऑर्डर' कहना ब्रिटिश व्यवस्था पर आधारित हैं। पृष्ठ संख्या 8

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न 2. 
(अ) तीनों नगरों की शुरुआत (उद्भव और विकास ) के बारे में और जानकारी इकट्ठा करें।
(ब) इनके पुराने नामों के बारे में पता करें जिन्हें बदलकर अब बम्बई से मुम्बई, मद्रास से चेन्नई, कलकत्ता से कोलकाता, बंगलोर से बंगलूरू किया गया है।
(स) अन्य शहरी उपनिवेशी नगरों के विकास के बारे में पता लगाइए।
उत्तर:
यहाँ पर बम्बई, कोलकाता और मद्रास नगरों के सम्बन्ध में कुछ जानकारियाँ दी जा रही हैं; अन्य शहरों, अन्य उपनिवेशी नगरों के विकास के बारे में छात्र स्वयं जानकारी इकट्ठा करें। यथा
(अ) मुम्बई का उद्भव और विकास:
(i) 17वीं शताब्दी में, पुर्तगालियों के नियंत्रण में मुम्बई सात द्वीपों का एक समूह था। सन् 1661 में ब्रिटिश राजा चार्ल्स द्वितीय के साथ पुर्तगाली राजकुमारी से विवाह होने के बाद पुर्तगाली शासक ने मुम्बई के द्वीपों का नियंत्रण ब्रिटिश राजा को सौंप दिया। ब्रिटिश राजा ने इसका नियंत्रण ब्रिटिश ईस्ट इण्डिया कम्पनी को सौंप दिया। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने अपना कार्यालय सूरत से बदलकर मुम्बई के प्रमुख पश्चिमी बंदरगाह के रूप में कर दिया।

मूलतः  मुम्बई सात उपद्वीपों कोलाबा, माजगाँव, ओल्ड वूमेन्स उपद्वीप, वडाका, मुम्बई, पैरल और मतूंगासियों के मिलने से बना शहर है, इन सातों में एक प्रमुख द्वीप 'मुम्बई' था, जिसके नाम पर इन सातों द्वीपों के शहर का नाम बम्बई (Bombay) पड़ा। स्वतंत्रता के बाद बम्बई का नाम बदलकर मुम्बई कर दिया गया है।

(ii) प्रारम्भ में, मुम्बई गुजरात के सूती कपड़े का प्रमुख बाजार था। बाद में, 19वीं शताब्दी में, यह शहर एक बन्दरगाह के रूप में कार्य करने लगा जिससे रुई तथा अफीम की बड़ी मात्रा का निर्यात किया जाता था। धीरे-धीरे, यह पश्चिमी भारत में एक महत्त्वपूर्ण प्रशासनिक केन्द्र बन गया और 19वीं शताब्दी के अन्त तक यह एक प्रमुख औद्योगिक केन्द्र बन गया।

(iii) मुम्बई में भूमि रिक्लेमेशन से सम्बन्धित पहला प्रोजेक्ट 1784 में प्रारम्भ हुआ। बम्बई के गवर्नर विलियम होर्नवी ने बम्बई की नीची तटीय भूमि से बाढ़ के पानी को रोकने के लिए महान समुद्री दीवार के निर्माण की मंजूरी दी थी। इसके बाद यहाँ अनेकों रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट प्रारम्भ हो गये।।

(iv) 19वीं शताब्दी के मध्य में अतिरिक्त कॉमर्शियल स्थान की आवश्यकता की पूर्ति के लिए अनेकों योजनाएँ-सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में समुद्र से अधिक भूमि लेने के लिए बनीं।

(v) सन् 1819 में आंग्ल: मराठा युद्ध में मराठों की हार के बाद बम्बई बोम्बे प्रेसीडेंसी की राजधानी बनी। इसके बाद इस शहर का तेजी से विकास हुआ। रुई और अफीम के व्यापार में आई वृद्धि के साथ व्यापारियों, बैंकर्स, कलाकार और दुकानदारों का बड़ा समुदाय बम्बई में रहने के लिए आया। यहाँ कपड़ा मिलों की स्थापना ने बम्बई में 183 आने वालों को नई गति प्रदान की। चूँकि 19वीं शताब्दी के प्रारम्भ में बम्बई में जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हुई, इसलिए उपलब्ध जमीन के प्रत्येक टुकड़े पर निर्माण हुआ और समुद्र से नये क्षेत्र खोजे गये।

(vi) बम्बई पोर्ट ट्रस्ट द्वारा एक सफल रिक्लेमेशन प्रोजेक्ट अपने हाथ में लिया गया जिसने 1914 तथा 1918 के बीच एक ड्राई डॉक का निर्माण किया तथा उस भूमि से 22 एकड़ बैकार्ड एस्टेट का निर्माण किया। उससे बम्बई के प्रसिद्ध मेरिन ड्राइव को विकसित किया गया।

(vii) 1921 तक यहाँ 85 सूती कपड़ा की मिलें थीं जिनमें 1,46,000 मजदूर कार्यरत थे। 1881 तथा 1931 के बीच केवल एक - चौथाई निवासी बम्बई में पैदा हुए थे और शेष बाहर के क्षेत्रों, जैसे - रत्नागिरी आदि से आये थे।

 वर्तमान स्थिति: बम्बई 19वीं शताब्दी के मध्य से ही भारतीय व्यापार का केन्द्रीय शहर बना हुआ है। यह दो बड़ी रेलवे शाखाओं का जंक्शन मुख्यालय है। इसे भारत की व्यापारिक राजधानी कहा जाता है। यह एक बंदरगाह शहर है जहाँ सभी प्रकार की यातायात तथा संचार सुविधाएँ उपलब्ध हैं। इसे 'मायापुरी' (धन की नगरी) के रूप में तथा फिल्म नगरी के रूप में भी जाना जाता है।
(1) कोलकाता: इसका वर्णन पाठ्यपुस्तक के प्रश्न सं. 3 के उत्तर में किया गया है।

(2)मद्रास: बम्बई की भाँति मद्रास शहर का विकास भी बन्दरगाह होने के कारण व्यापारिक केन्द्रों के रूप में हुआ। सन् 1639 में अंग्रेजों ने मद्रास पट्टम में एक व्यापारिक चौकी बनाई। इस बस्ती को स्थानीय लोग चेन्नापट्टम कहते थे। कम्पनी ने वहाँ बसने का अधिकार स्थानीय तेलगू सामन्तों, कालाहस्ती के नायकों से खरीदा था जो अपने इलाकों में व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाना चाहते थे। फ्रेंच ईस्ट इण्डिया कम्पनी के साथ प्रतिद्वन्द्विता (1746 - 63) के कारण अंग्रेजों को मद्रास की किलेबन्दी करनी पड़ी और अपने प्रतिनिधियों को ज्यादा राजनीतिक व प्रशासकीय जिम्मेदारियाँ सौंप दीं। 1761 में फ्रांसीसियों की हार के बाद मद्रास और सुरक्षित हो गया। वह एक महत्त्वपूर्ण व्यावसायिक शहर के रूप में विकसित होने लगा।

मद्रास का विकास: मद्रास का विकास निम्न प्रकार हुआ।
(1) व्हाइट टाउन तथा ब्लैक टाउन: प्रारम्भिक काल में मद्रास दो टाउनों के रूप में विकसित हुआ।

  1. व्हाइट टाउन और 
  2. ब्लैक टाउन। यथा

(i) व्हाइट टाउन: सेंट जॉर्ज किला व्हाइट टाउन का केन्द्रक बन गया जहाँ ज्यादातर यूरोपीय रहते थे। दीवारों और बुओं ने इसे एक खास किस्म की घेरेबंदी का रूप दे दिया था। किले के भीतर रहने का फैसला रंग और धर्म के आधार पर किया जाता था। संख्या की दृष्टि से कम होते हुए भी यूरोपीय लोग शासक थे और मद्रास का विकास शहर में रहने वाले मुट्ठीभर गोरों की जरूरतों और सुविधाओं के हिसाब से किया जा रहा था।

(ii) ब्लैक टाउन: ब्लैक टाउन किले के बाहर विकसित हुआ। इस आबादी को सीधी कतारों में बसाया गया था जो औपनिवेशिक शहरों की विशिष्टता थी। किन्तु 18वीं सदी के पहले दशक में इसे ढहा दिया गया ताकि किले के चारों तरफ एक सुरक्षा क्षेत्र बनाया जा सके। इसके बाद उत्तर की दिशा में दूर जाकर एक नया ब्लैक टाउन बसाया गया। इस बस्ती में बुनकरों, कारीगरों, बिचौलियों और दुभाषियों को रखा गया था जो कम्पनी के व्यापार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। नया ब्लैक टाउन परम्परागत भारतीय शहरों जैसा था। वहाँ मंदिर और बाजार के इर्द - गिर्द रिहायशी मकान बनाए गये थे। अलग-अलग मोहल्लों में अलग - अलग जातियाँ रहती थीं।

(2) अनेक गाँवों का मिलना: मद्रास को बहुत सारे गाँवों व बस्तियों को मिलाकर विकसित किया गया, जैसे-दुबाश लोगों की बस्ती, बेल्लालार जाति, ब्राह्मण, तेलगू कोमाटी समुदाय, गुजराती बैंकर, पेरियार और बन्नियार गरीब कामगार वर्ग, आदि बस्तियों तथा ट्रिप्लीकेन, माइलापुर सान थोम आदि सभी गाँव मद्रास शहर का हिस्सा बन गये। इस प्रकार बहुत सारे गाँवों को मिला लेने से मद्रास दूर तक फैली सघन आबादी वाला शहर बन गया।

(3) गार्डन हाउसेज तथा उपशहरी क्षेत्र: जैसे - जैसे अंग्रेजों की सत्ता मजबूत होती गई, यूरोपीय निवासी किले से बाहर जाने लगे तथा गार्डन हाउसेज में रहने लगे। गार्डन हाउसेज सबसे पहले माउंट रोड और पूनामाली रोड पर बनने शुरू हुए। ये किले से छावनी तक जाने वाली सड़कें थीं। इसी दौरान सम्पन्न भारतीय भी अंग्रेज़ों की तरह रहने लगे और इससे मद्रास के इर्द - गिर्द स्थित गाँवों की जगह संजीव पास बुक्स बहुत सारे नए उपशहरी इलाकों ने ले ली। गरीब लोग अपने काम की जगह से नजदीक पड़ने वाले गाँवों में बस गये। मद्रास के बढ़ते शहरीकरण का परिणाम यह था कि इन गाँवों के बीच वाले इलाके शहर के भीतर आ गये। इस तरह मद्रास एक अर्धग्रामीण: सा शहर दिखने लगा।

(4) एक व्यापारिक केन्द्र: बन्दरगाह होने के कारण मद्रास एक व्यापारिक केन्द्र के रूप में विकसित हुआ। बाहर से आने वाले लोगों के प्रवर्जन के कारण इस नगर की जनसंख्या भी तेजी से बढ़ी। मद्रास से कहवा, नील, चीनी और कपास ब्रिटेन को निर्यात किये जाते थे। अंग्रेजी प्रशासन में ही मद्रास सत्ता का केन्द्र बना तथा वहाँ पर अनेक महाविद्यालयों, अस्पतालों आदि का निर्माण हुआ। 19वीं शताब्दी के अन्त तक मद्रास दक्षिण भारत का एक प्रमुख व्यापारिक केन्द्र बन गया। स्वतंत्रता के पश्चात् मद्रास शहर मद्रास राज्य की प्रशासनिक व वैधानिक राजधानी बन गया। सन् 1968 में मद्रास राज्य का नाम बदलकर 'तमिलनाडु' कर दिया तथा मद्रास के नाम को चेन्नापट्टम गाँव के नाम पर 'चेन्नई' कर दिया गया है। पृष्ठ संख्या 12

प्रश्न 3. 
आप सब अमूल मक्खन और अमूल के ही अन्य उत्पादों से तो परिचित ही होंगे, पता करें कि किस तरह से इस दुग्ध आधारित उद्योग का उद्भव हुआ।
उत्तर:
अमूल उद्योग का प्रारम्भ सहकारी समिति के रूप में 1946 में गुजरात के आनन्द नगर में हुआ। इसका पूरा नाम है: आनन्द मिल्क यूनियन लिमिटेड। अमूल एक सहकारी संगठन - गुजरात को-ऑपरेटिव मिल्क मार्केटिंग फैडरेशन लि. का ब्रांड नाम है तथा इसका स्वामित्व 2.6 मिलियन दुग्ध उत्पादकों के हा थ में है। यह संगठन किसानों में आई जागरूकता का परिणाम है । इसने भारत में सफेद क्रांति लाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।इसके द्वारा बनाया जाने वाला पनीर पूरे विश्व में शाकाहारी पनीर के रूप में प्रसिद्ध है। आज अमूल के नाम से दूध का पाउडर, दूध, मक्खन, घी, पनीर, दही, चॉकलेट, आइसक्रीम, क्रीम, गुलाब जामुन आदि उत्पाद उपलब्ध हैं।

पृष्ठ संख्या 12

RBSE Solutions for Class 12 Sociology Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन

प्रश्न 4. 
आजादी के बाद के सालों में भारत में अनेक औद्योगिक शहरों का उद्भव और विकास हुआ। संभवतः आपमें से कुछ ऐसे शहरों में रहते भी हों।
(अ) बोकारो, भिलाई, राउरकेला, दुर्गापुरा जैसे शहरों के बारे में जानकारी इकट्ठी करें। क्या आपके क्षेत्र में भी ऐसे शहर हैं ?
(ब) क्या आपको उर्वरक उत्पादन यंत्र और तेल के कुओं के क्षेत्र के आस-पास बसे शहरों के बारे में पता है?
(स) अगर ऐसा कोई शहर आपके क्षेत्र में नहीं है तो पता करें कि ऐसा क्यों है?
उत्तर:
(अ) स्वतंत्रता के बाद के वर्षों में भारत में अनेक औद्योगिक शहरों का उद्भव और विकास हुआ है। लेकिन मैं ऐसे किसी शहर में नहीं रहता हूँ। .

(ब) इन शहरों में बोकारो, भिलाई, राउरकेला, दुर्गापुरा जैसे प्रमुख शहर हैं। जिन स्थानों पर लोहा एवं कोयला एक ही साथ खनिज पदार्थ के रूप में मिलते हैं, वहाँ पर बड़े-बड़े उद्योगों का विकास हुआ तथा औद्योगिक प्रतिष्ठानों के स्थापित होने के बाद बाहर के लोग रोजगार एवं मजदूरी के लिए इस क्षेत्र में आए, इससे इन क्षेत्रों में नगरों का विकास हुआ। बोकारो, भिलाई, राउरकेला, दुर्गापुरा इसी तरह विकसित हुए शहर हैं। हमारे क्षेत्र में ऐसे शहर नहीं हैं क्योंकि इस क्षेत्र में लोहा एवं कोयला खनिज पदार्थ के रूप में नहीं मिलते हैं।

(स) अनेक शहरों का उद्भव एवं विकास उर्वरक उत्पादन यंत्र एवं तेल के कुओं के क्षेत्र के आस-पास हुआ है। जैसे-मुम्बई हाई का विकास पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस उपलब्ध होने के कारण हुआ है तो आन्ध्र प्रदेश में काकीनाडा नगर का विकास उर्वरक उत्पादन यंत्र के कारण हुआ है। गुजरात में कॉडला एल.पी.जी. (गैस) प्लाण्ट के कारण विकसित हुआ है।

RBSE Class 12 Sociology संरचनात्मक परिवर्तन Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
उपनिवेशवाद का हमारे जीवन पर किस प्रकार प्रभाव पड़ा है? चर्चा करें।
अथवा उपनिवेशवाद का हमारे जीवन पर किस प्रकार का प्रभाव पड़ा है? आप या तो किसी एक पक्ष जैसे संस्कृति या राजनीति को केन्द्र में रखकर, या सारे पक्षों को जोड़कर विश्लेषण कर सकते हैं।
उत्तर:
उपनिवेशवाद का अर्थ: एक स्तर पर, एक देश के द्वारा दूसरे देश पर शासन को उपनिवेशवाद माना जाता है। आधुनिक काल में भारत में पश्चिमी उपनिवेशवाद का सबसे ज्यादा प्रभाव रहा है।

उपनिवेशवाद का प्रभाव यहाँ पर उपनिवेशवाद के सारे पक्षों को जोड़कर विश्लेषण किया गया है।
(1) उपनिवेशवाद का राजनीतिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में प्रभाव: हमारे देश में स्थापित संसदीय, विधि एवं शिक्षा व्यवस्था ब्रिटिश प्रारूप व प्रतिमानों पर आधारित है। हमारा सड़कों पर बाएँ चलना; सड़क के किनारे रेहड़ी व गाड़ियों पर 'ब्रेड-ऑमलेट' और 'कटलेट' जैसी चीजों का मिलना आदि ब्रिटिश प्रतिमानों की देन हैं । अनेक स्कूलों में 'नेक - टाई' पोशाक का एक अनिवार्य हिस्सा है, जो पश्चिम की देन है। इस प्रकार हमारे दैनिक जीवन में अनेकों चीजें ऐसी उपयोग में आ रही हैं जो पश्चिमी प्रभाव को दर्शाती हैं। इस प्रकार ब्रिटिश उपनिवेशवाद अब भी हमारे राजनीतिक, सांस्कृतिक जीवन का एक जटिल हिस्सा है।

(2) उपनिवेशवाद का आर्थिक प्रभाव: ब्रितानी उपनिवेशवाद ने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व्यवसाय में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किए। इससे ब्रितानी पूँजीवाद का विस्तार हुआ और उसे मजबूती मिली। इन्होंने भूमि सम्बन्धी नियमों को बदल दिया। इसका प्रभाव निम्न पड़ा

  1. कौनसी फसल उगाई जाए, कौनसी नहीं यह व्यक्ति/जनता खुद निश्चित नहीं कर सकती थी।
  2.  जंगल को नियंत्रित एवं प्रशासित करने के लिए जो कानून बनाए गए उसके तहत ग्रामीणों, चरवाहों व गड़रियों का जंगल में आना - जाना प्रतिबंधित हो गया।
  3. इससे पशुओं के लिए चारा इकट्ठा करना दुर्लभ हो गया।
  4. बंगाल में रेलवे की शुरुआत से जंगल का एक बड़ा भाग आरक्षित कर दिया गया जिससे आदिवासी समुदाय जो सदियों से वहाँ जीवनयापन करते आए थे। वे भी प्रशासकीय नियंत्रण में आ गए।

(3) व्यक्तियों की आवागमन में वृद्धि: उपनिवेशवाद ने व्यक्तियों की आवाजाही को भी बढ़ाया। चाय बागानों में मजदूरी करने बहुत से लोग असम व देश के अन्य हिस्सों में गए। इस काम में विभिन्न पेशेवर लोग जैसे डॉक्टर, वकील एक नया वर्ग पैदा हुआ जिन्हें उपनिवेशवादी शासन ने देश के विभिन्न भागों में सेवा के लिए चुना। इन्होंने देश के विभिन्न भागों में अपनी सेवाएँ दी थीं। कुछ भारतीय मजदूरों एवं दक्ष सेवाकर्मियों को जहाजों के माध्यम से एशिया, अफ्रीका और अमेरिका में स्थित अन्य उपनिवेशों में भी भेजा गया, जिनमें कुछ वहीं बस गये। आज उन भारतीयों को 'भारतीय मूल' का माना जाता है। दुनिया के अनेक देशों में भारतीय मूल के लोग पाये जाते हैं जो वस्तुतः भारत के उपनिवेशवादी शासन के दौरान उन देशों में पहुंचे।

(4) अन्य प्रभाव: ब्रिटिश उपनिवेशवाद के भारतीय जीवन पर पड़े कुछ अन्य प्रभाव निम्नलिखित हैं।

  1. पश्चिम शिक्षा पद्धति से भारतीयों में राष्ट्रवादी चेतना एवं उपनिवेश विरोधी चेतना का उद्भव हुआ।
  2. भारत में पूँजीवाद के विकास के कारण उपनिवेशवाद प्रबल हुआ। पूँजीवाद के कारण औद्योगीकरण व नगरीकरण का उद्भव हुआ।
  3. उपनिवेशवाद के कारण भारतीय कुटीर उद्योग-धन्धे नष्ट हो गए और अधिकांश भारतीयों को ऑफिस, दुकानों और कारखानों में कार्य करना पड़ा।
  4. औपनिवेशवाद से लोगों की सोच, पोशाक में भी परिवर्तन आया।
  5. उपनिवेशवाद के प्रभावस्वरूप भारत के परम्परागत ढंग से होने वाले विभिन्न व्यवसाय उदाहरण-रेशम और कपास के उत्पादन और निर्यात में निरन्तर गिरावट आई।
  6. उपनिवेशवाद के फलस्वरूप भारत के कुछ प्राचीन व्यापारिक नगर जैसे सूरत, मसुलीपट्नम का अस्तित्व कमजोर होने लगा जबकि आधुनिक नगर जैसे बम्बई, मद्रास, कलकत्ता उपनिवेशवादी शासन में प्रचलित हुए और मजबूत होते गए।
  7. उपनिवेशवाद के फलस्वरूप कुछ राज्यों की राज्यसभाओं का विघटन हो गया, इसका परिणाम इन राजसभाओं के संरक्षण में कार्यरत कारीगर, कलाकार और कुलीन लोगों का भी पतन हुआ।
  8. उपर्युक्त बिन्दुओं से स्पष्ट होता है कि औपनिवेशवाद ने हमारे जीवन के लगभग समस्त पहलुओं को प्रभावित किया। इसके कुछ प्रभाव हमारे जीवन पर अच्छे पड़े, कुछ खराब । 

प्रश्न 2. 
औद्योगीकरण और नगरीकरण किस प्रकार संबंधित हैं ? स्पष्ट करें।
अथवा 
औद्योगीकरण और नगरीकरण का परस्पर सम्बन्ध है, विचार करें।
उत्तर:
औद्योगीकरण से आशय: औद्योगीकरण का सामान्य अर्थ होता है-उद्योगों का विकास। औद्योगीकरण का सम्बन्ध यांत्रिक उत्पादन के उदय से है जो शक्ति के गैर-मानवीय संसाधन, जैसे-वाष्प या विद्युत पर निर्भर होता है। औद्योगिक समाजों में ज्यादा से ज्यादा रोजगारवृत्ति में लगे लोग कारखानों, ऑफिसों और दुकानों में कार्य करते हैं। औद्योगिक परिवेश में कृषि सम्बन्धी व्यवसाय में लगे लोगों की संख्या कम होती जाती है।नगरीकरण से आशय-नगरीकरण का सामान्य अर्थ बढ़ते हुए भूमंडलीकरण द्वारा शहरों के अत्यधिक प्रसार से है। नगरों, कस्बों तथा महानगरों का विकास शहरीकरण को बताता है। नगरीकरण की प्रक्रिया में देश या राष्ट्र का एक बहुत बड़ा भाग ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर रुख करता है।

(अ) औद्योगीकरण और नगरीकरण साथ: साथ चलने वाली प्रक्रियाएँ हैं-औद्योगीकरण शहरीकरण के विकास का सर्वाधिक शक्तिशाली कारक है। उन देशों में जहाँ औद्योगीकरण अपना स्थान लेता है, वहाँ कुटीर उद्योगधन्धों का पतन होने लगता है। कुटीर उद्योग-धन्धों का पतन होने के पश्चात् इसमें कार्यरत व्यक्तियों को रोजगार व व्यवसाय की तलाश में कारखानों में आना पड़ता है। इस तरह धीरे-धीरे नगरीकरण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है। क्योंकि कारखानों में कार्यरत व्यक्तियों के लिए सड़कें, रोजमर्रा के सामान हेतु दुकानें, यातायात के साधन, अस्पताल, बच्चों के लिए स्कूल, कॉलेज व अन्य की सुविधा, कारखानों के मालिक व प्रशासन के द्वारा की जाती है। धीरे - धीरे इसका विकास होता जाता है, जहाँ जितने कारखाने खुलते जाते हैं, उसी के अनुसार नगरों का विस्तार भी बढ़ता जाता है। अतः औद्योगीकरण व नगरीकरण साथ चलने वाली प्रक्रियाएँ हैं।.

(ब) भारत में ब्रिटिश औद्योगीकरण ने नगरीय क्षरण को बढ़ावा दिया: भारत में उपनिवेश काल में औद्योगीकरण की प्रक्रिया साथ-साथ नहीं चली। इसमें ब्रिटिश औद्योगीकरण का उल्टा असर हुआ अर्थात् कुछ क्षेत्रों में औद्योगिक क्षरण हुआ। भारत में कुछ पुराने परम्परात्मक नगरीय केन्द्रों का भी पतन हो गया था। औद्योगीकरण के कारण भारत के कुछ प्रमुख शहर जैसे - तंजौर, ढाका तथा मुर्शिदाबाद का पतन हो गया।

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प्रश्न 3. 
किसी ऐसे शहर या नगर को चुनें जिससे आप भली - भाँति परिचित हैं। उस शहर / नगर के इतिहास, उसके उद्भव और विकास तथा समसामयिक स्थिति का विवरण दें।
उत्तर:
कलकत्ता: भारत के चार महानगरों में से एक महानगर कोलकाता है जिसका पहले नाम कलकत्ता था। यह पहला नगर था जिसका विकास औपनिवेशिक काल में हुआ था। इतिहास, उद्भव एवं विकास-सन् 1690 में एक अंग्रेजी व्यापारी, जिसका नाम जॉब चारनॉक था, ने हुगली नदी के तट से लगे तीन गाँवों - कोलीकाता, गोविन्दपुर और सुतानुती को पट्टे पर लिया था। उसका उद्देश्य उन तीनों गाँवों में व्यापार के अड्डे बनाना था। कलकत्ता को इन तीन गाँवों को मिलाकर बनाया गया। कम्पनी ने इन तीनों में सबसे दक्षिण में पड़ने वाले गोविन्दपुर गाँव की जमीन को साफ करने के लिए वहाँ के व्यापारियों और बुनकरों को हटने के आदेश जारी कर दिये और सन् 1698 में फोर्ट विलियम की स्थापना, रक्षा और सैन्य बल को गठित करने के उद्देश्य से हुई। फोर्ट और उसके आस-पास का खुला क्षेत्र अर्थात् मैदान थे जहाँ सैन्य बलों के डेरे थे।

इस तरह कलकत्ता नगर का केन्द्र बना। जब अंग्रेजों को कलकत्ता में अपनी उपस्थिति स्थायी दिखाई देने लगी तो वे फोर्ट से बाहर मैदान के किनारे पर भी आवासीय इमारतें बनाने लगे। यहाँ से नगर का आगे विकास हुआ। बड़े पैमाने पर आयात-निर्यात-समुद्रतटीय होने के कारण इन जगहों से उपभोग की आवश्यक वस्तुओं का निर्यात आसानी से किया जा सकता था। साथ ही, यहीं से उत्पादित वस्तुओं का सस्ती लागत से आयात भी किया जा सकता है। औपनिवेशिक भारत में कलकत्ता को इस प्रकार सुनियोजित ढंग से विकसित किया कि सन् 1900 तक कोलकाता से जूट (पटसन) का निर्यात होता था। कोलकाता की भौगोलिक स्थिति के कारण ही धीरे-धीरे बड़े पैमाने पर आयात - निर्यात होता रहा और विभिन्न कारखानों का निर्माण होता गया और आज एक महानगर के रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहा है।

प्रश्न 4. 
आप एक छोटे कस्बे में या बहुत बड़े शहर, या अर्धनगरीय स्थान, या एक गाँव में रहते हैं
(अ) जहाँ आप रहते हैं उस जगह का वर्णन करें।
(ब) वहाँ की विशेषताएँ क्या हैं, आपको क्यों लगता है कि वह एक कस्बा है शहर नहीं, एक गाँव है कस्बा नहीं या शहर है गाँव नहीं?
(स) जहाँ आप रहते हैं क्या वहाँ कोई कारखाना है ? 
(द) क्या लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती है ? 
(य) क्या व्यवसाय वहाँ निर्णायक रूप में प्रभावशाली है ? 
(र) क्या वहाँ इमारतें हैं ? 
(ल) क्या वहाँ शिक्षा की सुविधाएँ उपलब्ध हैं ? 
(व) लोग कैसे रहते और व्यवहार करते हैं ? 
(श) लोग किस तरह बात करते हैं और कैसे कपड़े पहनते हैं?
उत्तर:
(अ और ब): हम एक बड़े शहर जयपुर में रहते हैं। जयपुर विश्व में गुलाबी नगर के नाम से प्रसिद्ध है। इस नगर का निर्माण तत्कालीन महाराज सवाई जयसिंह ने करवाया था। यहाँ की विशेषता बड़ी-बड़ी चौड़ी सड़कें तथा चौराहे हैं। शहर की अधिकांश इमारतें तथा दर्शनीय स्थल गुलाबी रंग से रंगे गए हैं जो इस शहर की शोभा में चार चाँद लगाते हैं। यहाँ का परम्परागत भोजन दाल-बाटी-चूरमा, घेवर, फेणी, तिल के लड्डू हैं। यहाँ की स्त्रियों की मुख्य पोशाक लहँगा-ओढ़नी व पुरुषों की धोती कुर्ता व साफा है जो पर्यटकों को अनायास ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते हैं।जयपुर में वर्तमान समयानुसार काफी परिवर्तन आए हैं। शहर चारों दिशाओं में काफी बढ़ गया है।

बड़ी - बड़ी बहुमंजिला इमारतें, मल्टीप्लेक्स शॉपिंग मॉल, होटलें इत्यादि शहर को महानगर की श्रेणी में लाकर खड़ा करते हैं। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में भी वर्तमान समय में जयपुर ने अपनी अलग ही पहचान बनायी है। यहाँ विभिन्न प्रकार के इंजीनियरिंग कॉलेज, मेडिकल कॉलेज, विद्यालय, महाविद्यालय तथा अन्य उच्च शिक्षण संस्थान पिछले एक-दो दशकों में काफी बढ़े हैं। जिससे देश-विदेश के छात्र-छात्राएँ उच्च शिक्षा प्राप्ति के लिए जयपुर को उचित विकल्प के रूप में देखते हैं।

(स) यहाँ सांगानेरी प्रिंट, बगरू प्रिंट, ब्लू पॉटरी, सीमेन्ट उद्योग सहित कई अन्य कारखाने हैं। यहाँ का जवाहरात का व्यवसाय भी बहुत प्रसिद्ध है।

(द) नहीं, यहाँ के लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती नहीं है। 

(य) नहीं, यहाँ व्यवसाय मुख्य निर्णायक रूप में प्रभावशाली नहीं है। यहाँ नौकरीपेशा लोग भी काफी रहते हैं। 

(र) हाँ, यहाँ विभिन्न इमारतें भी हैं। 

(ल) हाँ, यहाँ उच्च शिक्षा की सुविधाएँ भी उपलब्ध हैं।

(व) यहाँ के लोग कुछ क्षेत्र में परम्परावादी हैं जैसे तीज-त्यौहार मनाने में व अन्य कुछ प्रथा परम्पराओं के पालन में, लेकिन अधिकांश लोगों का जीवन जीने का ढंग आधुनिक ही है।

(श) यहाँ के लोगों का व्यवहार बहुत अच्छा होता है। यहाँ के लोगों द्वारा की जाने वाली मेजबानी काफी प्रसिद्ध है। यद्यपि यहाँ की परम्परागत पोशाकें-लहँगा-ओढ़नी, धोती-कुर्ता व साफा हैं, लेकिन आज की युवा पीढ़ी आज के आधुनिक परिधान ही पहनना पसन्द कर रही है। इस प्रकार शहर के लोगों का पहनावा मिश्रित है। कुछ लोग जहाँ आधुनिक फैशन से प्रेरित पोशाकें: पेंट - शर्ट, टाई, जीन्स आदि पहनते हैं, तो कुछ लोग कुर्ता-पायजामा, कुर्ताधोती, साफा, सलवार-सूट, साड़ी, लहँगा-ओढ़नी आदि पहनते हैं।

Prasanna
Last Updated on June 14, 2022, 2:59 p.m.
Published May 31, 2022