Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 5 कांग्रेस प्रणाली: चुनौतियाँ और पुनर्स्थापना Textbook Exercise Questions and Answers.
क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
(पृष्ठ संख्या 83)
प्रश्न 1.
फ्रांस और कनाडा में ऐसी सूरत कायम हो, तो वहाँ कोई भी लोकतंत्र के असफल होने अथवा देश के टूटने की बात नहीं कहता। हम ही आखिर लगातार इतने शक में क्यों पड़े रहते हैं
उत्तर:
मई 1964.में हमारे प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु हो गई। इससे नेहरू के राजनीतिक उत्तराधिकारी को लेकर बड़े-बड़े अंदेशे लगाए गए कि नेहरू के बाद कौन ? भारत जैसे नव - स्वतंत्र देश में इस माहौल में एक और गंभीर सवाल हवा में तैर रहा था कि नेहरू के बाद आखिर इस देश में क्या होगा ? आशंका थी कि बाकी बहुत से नव - स्वतंत्र देशों की तरह भारत भी राजनीतिक उत्तराधिकार का प्रश्न लोकतांत्रिक ढंग से हल नहीं कर पाएगा।
इसके अतिरिक्त इस बात को भी लेकर . संदेह था कि देश के समक्ष अनेक प्रकार की कठिनाइयाँ खड़ी हुई हैं और नया नेतृत्व उनका समाधान खोज पाएगा या नहीं। फ्रांस और कनाडा में ऐसी सूरत कायम हो तो वहाँ कोई भी लोकतंत्र के असफल होने या देश के टूटने की बात नहीं कहता। भारत के लोग इसी आशंका से ग्रस्त रहते हैं कि कहीं लोकतंत्र असफल न हो जाये। दरअसल भारत की स्वतन्त्रता उतनी पुरानी नहीं है। भारत को लोकतंत्र की स्थापना में बहुत-सी चुनौतियों का सामना करना पड़ा था, इसलिए लोग शक में पड़े रहते हैं।
(पृष्ठ संख्या 86)
प्रश्न 2.
इंदिरा गांधी के लिए स्थितियाँ सचमुच कठिन रही होंगी- पुरुषों के दबदबे वाले क्षेत्र में आखिर वे अकेली • महिला थीं। ऊँचे पदों पर अपने देश में ज्यादा महिलाएँ क्यों नहीं हैं ?
उत्तर:
इंदिरा गांधी लंबे समय से भारतीय राजनीति में सक्रिय थीं। इंदिरा गांधी देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री बनीं। इंदिरा गांधी ने अत्यंत संघर्षपूर्ण स्थिति का सामना किया तथा पुरुषों के प्रभुत्व वाले क्षेत्र में अपना वर्चस्व जमाया। पुरुष प्रधान समाज में महिलाओं की स्थिति अत्यंत दयनीय रही है। उनकी शिक्षा की उपेक्षा की जाती रही है। लड़कों की तुलना में उनके जन्म व पालन-पोषण में नकारात्मक भेदभाव किया जाता रहा है। अतः महिलाओं को समाज में आगे बढ़ने के लिए अत्यंत संघर्षपूर्ण स्थितियों का सामना करना पड़ा है।
उन्हें सिर्फ महिला होने का नुकसान कदम: कदम पर भुगतना पड़ा है, लेकिन धीरे - धीरे महिलाओं में शिक्षा के प्रचार - प्रसार व जागृति तथा नारी सशक्तिकरण के कारण महिलाओं ने भी पुरुष प्रधान क्षेत्रों में अपना वर्चस्व कायम किया है। धीरे - धीरें महिलाएँ देश के ऊँचे पदों, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, लोकसभा अध्यक्ष, राज्यसभा उपसभापति, मुख्यमंत्री, राज्यपाल जैसे पदों पर कार्य कर रही हैं परन्तु अभी भी ऊँचे पदों पर अपने देश में अधिक महिलाएँ नहीं हैं। परन्तु वह दिन दूर नहीं जब महिलाएँ अधिकांशतः उच्च पदों पर कार्य करेंगी।
(पृष्ठ संख्या 90)
प्रश्न 3.
त्रिशंकु विधानसभा और गठबंधन सरकार की इन बातों में नया क्या है ? ऐसी बातें तो हम आए दिन सुनते रहते हैं।
उत्तर:
फरवरी 1967 में चौथे आम चुनाव हुए थे। कांग्रेस पहली बार नेहरूजी के बिना मतदाताओं का सामना कर रही थी। कांग्रेस को जैसे - तैसे लोकसभा में बहुमत तो मिल गया था, लेकिन उसको प्राप्त मतों के प्रतिशत तथा सीटों की संख्या में भारी गिरावट आई। राजनीतिक बदलाव की यह नाटकीय स्थिति राज्यों में और ज्यादा स्पष्ट नजर आई। सन् 1967 ई. के चुनावों से गठबंधन की परिघटना सामने आई। त्रिशंकु विधानसभा और गठबंधन सरकार की घटना उन दिनों नई थी, क्योंकि पहली बार किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था, अतः अनेक गैर-कांग्रेसी पार्टियों ने एकजुट होकर संयुक्त विधायक दल बनाया और गैर काँग्रेसी सरकारों को समर्थन दिया।
इसी कारण इन सरकारों में संयुक्त विधायक दल की सरकार कहा गया। वर्तमान समय में भारतीय राजनीति का परिदृश्य बदल रहा है। हमारे देश में बहुदलीय व्यवस्था का स्वरूप बदल गया है। बहुदलीय व्यवस्था के कारण कई राज्यों में कोई भी दल अपने दम पर स्पष्ट बहुमत प्राप्त नहीं कर पा रहा है। फलस्वरूप त्रिशंकु विधानसभा का निर्माण हो रहा है। इसलिए आजकल गठबंधन सरकारों की घटना आम बात हो गई है।
(पृष्ठ संख्या 92)
प्रश्न 4.
इसका मतलब यह है कि राज्य स्तर के नेता पहले के समय में भी किंगमेकर थे और इसमें कोई नयी बात नहीं हैं। मैं तो सोचती थी कि ऐसा केवल 1990 के दशक में हुआ।
उत्तर:
किंगमेकर वे ताकतवर नेता होते हैं जिनका अपनी पार्टी के संगठन पर पूर्ण नियंत्रण होता है। देश के प्रधानमंत्री, उनकी मंत्रिपरिषद अथवा राज्यों के मुख्यमंत्री चयन में अपनी निर्णायक भूमिका होती है। भारत में राज्य स्तर पर किंग मेकर्स की शुरुआत केवल सन् 1990 के दशक में ही नहीं थी बल्कि इससे पूर्व भी देश में इस प्रकार की स्थिति पायी जाती थी। सर्वप्रथम भारत में कांग्रेस में इस प्रकार की स्थिति देखने को मिली।
देश में पहले कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक रूप से सिंडिकेट के नाम से सम्बोधित किया जाता था, इस समूह में के.कामराज, एस.के.पाटिल, एस.निजलिंगप्पा, एन.संजीव रेड्डी व अतुल्य घोष आदि नेता सम्मिलित थे जिनका काँग्रेस पार्टी के संगठन पर प्रभावी नियंत्रण था। हमारे देश के द्वितीय प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री एवं इनके पश्चात् इन्दिरा गाँधी दोनों ही इसी सिंडिकेट के सहयोग से देश के प्रधानमंत्री बने।
(पृष्ठ संख्या 96)
प्रश्न 5.
'गरीबी हटाओ' का नारा तो अब से लगभग 40 साल पहले दिया गया था। क्या यह नारा महज चुवी छलावा था?
उत्तर:
इंदिरा गांधी ने देशभर में घूम: घूमकर कहा कि विपक्षी गठबंधन के पास बस एक ही कार्यक्रम है:
'इंदिरा हटाओ'। इसके विपरीत उन्होंने लोगों के सामने एक सकारात्मक कार्यक्रम रखा और इसे अपने प्रसिद्ध नारे 'गरीबी हटाओ' के माध्यम से एक स्वरूप प्रदान किया। 'गरीबी हटाओ' के नारे से इंदिरा गांधी ने वंचित वर्गों विशेषकर भूमिहीन किसान, दलित और आदिवासी, अल्पसंख्यक, महिला और बेरोजगार नौजवानों के बीच अपने समर्थन का आधार तैयार करने की कोशिश की।
'गरीबी हटाओ' का नारा और इससे जुड़ा हुआ कार्यक्रम इंदिरा गांधी की राजनीतिक रणनीति थी। इसके सहारे वे अपने लिए देशव्यापी राजनीतिक समर्थन की बुनियाद तैयार करना चाहती थीं। सन् 1971 ई० में इन्दिरा गाँधी द्वारा दिया गया यह नारा मात्र पाँच वर्षों के अन्दर ही असफल हो गया तथा सन् 1977 ई० में इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस पार्टी को पराजय का मुंह देखना पड़ा। इस प्रकार यह नारा महज एक चुनावी छलावा साबित हुआ। यह नारा आज से लगभग 50 साल पहले दिया गया था। परन्तु आज भी देश से गरीबी का उन्मूलन नहीं किया जा सका है।
(पृष्ठ संख्या 99)
प्रश्न 6.
यह तो कुछ ऐसा ही है कि कोई मकान की बुनियाद और छत बदल दे फिर भी कहे कि मकान वही है। पुरानी और नई कांग्रेस में कौन-सी चीज समान थी?
उत्तर:
सन् 1969 ई० में कांग्रेस पार्टी के विभाजन के पश्चात् कामराज योजना के तहत कांग्रेस पार्टी की पुनर्स्थापना के लिए भरपूर प्रयास किए गए। इन्दिरा गाँधी द्वारा युवा नेताओं को आगे लाया गया तथा कांग्रेस पार्टी को एक नया स्वरूप प्रदान करने का प्रयास किया गया। इस संगठनात्मक ढाँचे को भी मजबूत करने के प्रयास किए गए। इन्दिरा गाँधी ने कांग्रेस प्रणाली की प्रकृति को बदलकर उसे पुनः स्थापित करने का प्रयास किया लेकिन बुनियादी तौर पर वह कांग्रेस पार्टी की विचारधारा तथा कार्यक्रमों में विशेष परिवर्तन नहीं कर पायीं। पार्टी के सर्वोच्च नेता पर आश्रितता की नीति में कोई परिवर्तन नहीं आया। यह स्थिति आज भी काँग्रेस पार्टी में दिखाई देती है।
प्रश्न 1.
1967 के चुनावों के बारे में निम्नलिखित में कौन-कौन से बयान सही हैं?
(अ) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव में विजयी रही, लेकिन कई राज्यों में विधानसभा के चुनाव वह हार गई।
(ब) कांग्रेस लोकसभा के चुनाव भी हारी और विधानसभा के भी।
(स) कांग्रेस को लोकसभा में बहुमत नहीं मिला, लेकिन उसने दूसरी पार्टियों के समर्थन से एक गठबंधन सरकार बनाई।
(द) कांग्रेस केंद्र में सत्तासीन रही और उसका बहुमत भी बढ़ा।
उत्तर:
(अ) सही
(ब) गलत
(स) गलत
(द) गलत।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित का रोल करें।
(अ) सिंडिकेट |
(i) कोई निर्वाचित जन-प्रतिनिधि जिस पार्टी के टिकट से जीता हो, उस पार्टी को छोड़कर अगर दूसरे दल में चला जाए। |
(ब) दल-बदल |
(ii) लोगों का ध्यान आकर्षित करने वाला एक मनभावन मुहावरा। |
(स) नारा |
(iii) कांग्रेस और इसकी नीतियों के खिलाफ अलग-अलग विचारधाराओं की पार्टियों का एकजुट होना। |
(द) गैर-कांग्रेसवाद |
(iv) कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह। |
उत्तर:
(अ) – (iv), (ब) – (i), (स) - (ii), (द) - (iii).
प्रश्न 3.
निम्नलिखित नारे से किन नेताओं का सम्बन्ध है।
(अ) जय जवान, जय किसान,
(ब) इंदिरा हटाओ,
(स) गरीबी हटाओ।
उत्तर:
(अ) जय जवान, जय किसान लाल बहादुर शास्त्री
(ब) इंदिरा हटाओ विपक्षी गठबंधन
(स) गरीबी हटाओ इंदिरा गांधी।
प्रश्न 4.
1971 के 'ग्रैंड अलायंस' के बारे में कौन - सा कथन ठीक है?
(अ) इसका गठन गैर-कम्युनिस्ट और गैर - कांग्रेसी दलों ने किया था।
(ब) इसके पास एक स्पष्ट राजनीतिक तथा विचारधारात्मक कार्यक्रम था।
(स) इसका गठन सभी गैर-कांग्रेसी दलों ने एकजुट होकर किया था।
उत्तर:
(अ) इसका गठन गैर - कम्युनिस्ट और गैर - कांग्रेसी दलों ने किया था।
प्रश्न 5.
किसी राजनीतिक दल को अपने अंदरूनी मतभेदों का समाधान किस तरह करना चाहिए? यहाँ कुछ समाधान दिए गए हैं। प्रत्येक पर विचार कीजिए और उसके सामने उसके फायदों और घाटों को लिखिए।
(अ) पार्टी के अध्यक्ष द्वारा बताए गए मार्ग पर चलना।
(ब) पार्टी के भीतर बहुमत की राय पर अमल करना।
(स) हरेक मामले पर गुप्त मतदान कराना।
(द) पार्टी के वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं से सलाह करना।
उत्तर:
(अ) फायदा: पार्टी के भीतर अनुशासन बढ़ेगा। घाटा - पार्टी में अध्यक्ष अथवा बड़े स्तर के नेताओं की दादागिरी बढ़ेगी तथा दल में आंतरिक लोकतंत्र कमजोर होगा।
(ब) फायदा: पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र बढ़ेगा तथा छोटे कार्यकर्ताओं में अधिक प्रसन्नता होगी। घाटा - दल के भीतर गुटबाजी को बढ़ावा मिलेगा। प्रायः हर मामले में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक खेमा सामने आएगा।
(स) फायदा: यह पद्धति अधिक लोकतांत्रिक और निष्पक्ष है। पार्टी के मतभेदों को दूर करने के लिए गुप्त मतदान की प्रक्रिया अपनाने से प्रत्येक सदस्य अपनी बात स्वतंत्रतापूर्वक रख सकेगा। घाटा - राजनीतिक पार्टी के अध्यक्ष के व्हिप जारी करने के बावजूद आशानुरूप परिणाम कई बार नहीं मिलते। इससे क्रॉस वोटिंग का खतरा बना रहता है।
(द) फायदा: कम आयु के नेताओं को अनुभवी तथा परिपक्व लोगों का मार्गदर्शन मिलेगा। नई पीढ़ी को इसका लाभ मिलेगा। घाटा - पार्टी में केवल वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं का वर्चस्व कायम होगा तथा नायक पूजा को बढ़ावा मिलेगा।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसे / किन्हें 1967 के चुनावों में कांग्रेस की हार के कारण के रूप में स्वीकार किया जा सकता है? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
(अ) कांग्रेस पार्टी में करिश्माई नेता का अभाव।
(ब) कांग्रेस पार्टी के भीतर टूट।
(स) क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक समूहों की लामबंदी को बढ़ाना।
(द) गैर-कांग्रेसी दलों के बीच एकजुटता।
(ङ) कांग्रेस पार्टी के अन्दर मतभेद।
उत्तर:
(अ) इस कारण को कांग्रेस की हार के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता है, क्योंकि कांग्रेस में अनेक ऐसे नेता थे जो वरिष्ठ, अनुभवी और करिश्माई थे।
(ब) यह कांग्रेस की पार्टी की हार का सबसे बड़ा कारण था, क्योंकि कांग्रेस अब दो गुटों में बँटती जा रही थी। सिंडिकेट का कांग्रेस के संगठन पर अधिकार था तो इंडिकेट या इंदिरा गांधी के समर्थकों में व्यक्तिगत वफादारी और कुछ कर दिखाने की चाहत के कारण मतभेद बढ़ते जा रहे थे। एक गुट पूँजीवाद, उदारवाद, व्यक्तिवाद को अधिक चाहता था तो दूसरा गुट रूसी ढंग के समाजवाद, राष्ट्रीयकरण, देशी राजाओं की विरोधी नीतियों की आलोचना करता था।
(स) सन् 1967 में आम चुनावों में पंजाब में अकाली दल, तमिलनाडु में डी. एम. के. जैसे दलों के उदय से अनेक राज्यों में क्षेत्रीय, जातीय और सांप्रदायिक लामबंदी को प्रोत्साहन मिलने के कारण कांग्रेस को गहरा धक्का पहुँचा। वह केन्द्र में स्पष्ट बहुमत प्राप्त न कर सकी और कई राज्यों में उसे सत्ता से हाथ धोना पड़ा।
(द) गैर - कांग्रेसी दलों के बीच पूर्णरूप से एकजुटता नहीं थी लेकिन जिन-जिन प्रांतों में ऐसा हुआ वहाँ वामपंथियों अथवा गैर-कांग्रेसी दलों को लाभ प्राप्त हुआ।
(ङ) कांग्रेस के अंदर होने वाले मतभेदों के कारण बहुत जल्दी ही आंतरिक फूट कालांतर में सभी के समक्ष आ गई तथा लोग यह मानने लगे कि सन् 1967 के चुनाव में कांग्रेस की हार के कई कारणों में से यह भी एक महत्त्वपूर्ण कारण था।
प्रश्न 7.
सन् 1970 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार किन कारणों से लोकप्रिय हुई थी?
उत्तर:
सन् 1970 के दशक में इंदिरा गांधी की सरकार के लोकप्रिय होने के कारण निम्नलिखित थे।
(i) सन् 1970 के दशक में कांग्रेस को इंदिरा गांधी के रूप में एक करिश्माई नेता मिल गया। वह प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू की पुत्री थीं तथा उन्होंने स्वयं को गांधी -नेहरू परिवार का वास्तविक राजनीतिक उत्तराधिकारी बताने के साथ - साथ अधिक प्रगतिशील कार्यक्रम, जैसे-बीस सूत्री कार्यक्रम, गरीबी हटाने के लिए बैंकों के राष्ट्रीयकरण का वादा तथा कल्याणकारी सामाजिक आर्थिक कार्यक्रम की घोषणा की। वह देश की प्रथम महिला प्रधानमंत्री होने के कारण महिला मतदाताओं में अधिक लोकप्रिय हुईं।
(ii) इंदिरा गांधी द्वारा 20 सूत्री कार्यक्रम प्रस्तुत करना, बैंकों का राष्ट्रीयकरण करना, प्रिवीपर्स को समाप्त करना, श्री वी. वी. गिरि. जैसे मजदूर नेता को दल के घोषित प्रत्याशी के विरुद्ध राष्ट्रपति का चुनाव जिताकर लाना, इन सभी ने इंदिरा गांधी और उनकी सरकार को लोकप्रिय बनाया। सन् 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में इंदिरा गांधी की कूटनीति ने बांग्लादेश का निर्माण कराया और पाकिस्तान को हराया। इससे भी इंदिरा गांधी की लोकप्रियता बढ़ी।
(iii) इंदिरा गांधी ने दो चुनौतियों का सामना किया। उन्हें 'सिंडिकेट' के प्रभाव से स्वतंत्र अपना मुकाम स्थापित करने की आवश्यकता थी। कांग्रेस ने सन् 1967 के चुनाव में जो जमीन खोई थी उसे भी उन्हें हासिल करना था। इंदिरा गांधी ने बड़ी साहसिक रणनीति अपनाई। उन्होंने एक साधारण से सत्ता संघर्ष को विचारधारात्मक संघर्ष में बदल दिया। उन्होंने सरकार की नीतियों को वामपंथी रंग देने के लिए कई कदम उठाए।
(iv) इसी दौर में इंदिरा गांधी ने भूमि-सुधार के मौजूदा कानूनों के क्रियान्वयन के लिए जबरदस्त अभियान चलाया। उन्होंने भू-परिसीमन के कुछ और कानून भी बनवाए। दूसरे राजनीतिक दलों पर अपनी निर्भरता समाप्त करने, संसद में अपनी पार्टी की स्थिति मजबूत करने और अपने कार्यक्रमों के पक्ष में जनादेश हासिल करने हेतु दिसम्बर 1970 में लोकसभा भंग करने की सिफारिश की।
प्रश्न 8.
सन् 1960 के दशक की कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में 'सिंडिकेट' का क्या अर्थ है ? सिंडिकेट ने कांग्रेस पार्टी में क्या भूमिका निभाई ?
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी के संदर्भ में सिंडिकेट' का अर्थ: कांग्रेसी नेताओं के एक समूह को अनौपचारिक तौर पर 'सिंडिकेट' के नाम से पुकारा जाता था। 'सिंडिकेट' कांग्रेस के भीतर ताकतवर और प्रभावशाली नेताओं का एक समूह था। इस समूह के नेताओं का पार्टी के संगठन पर नियंत्रण था। 'सिंडिकेट' के नेतृत्वकर्ता मद्रास प्रांत के भूतपूर्व मुख्यमंत्री और कि कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष रह चुके के. कामराज थे। लाल बहादुर शास्त्री और उसके बाद इंदिरा गांधी दोनों ही सिंडिकेट की सहायता से प्रधानमंत्री के पद पर आरूढ़ हुए थे।
भूमिका - इंदिरा गांधी के पहले मंत्रिपरिषद् में सिंडिकेट की निर्णायक भूमिका रही। इसने तत्कालीन समय की नीतियों के निर्माण व क्रियान्वयन में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। कांग्रेस के विभाजित होने के पश्चात् सिंडिकेट के नेताओं और उनके प्रति निष्ठावान कांग्रेसी कांग्रेस (ओ) में ही रहे। चूँकि इन्दिरा गाँधी की कांग्रेस (आर) ही लोकप्रियता की कसौटी पर सफल रही, अतः भारतीय राजनीति के ये बड़े और ताकतवर नेता सन् 1971 के बाद प्रभावहीन हो गए। सिंडिकेट के नेताओं को उम्मीद थी कि इंदिरा गांधी उनकी सलाहों का अनुसरण करेंगी। लेकिन, इंदिरा गाँधी ने सरकार और पार्टी के भीतर स्वयं को स्थापित करना शुरू कर दिया। उन्होंने अपने सलाहकारों और विश्वस्तों के समूह में पार्टी से बाहर के लोगों को रखा। धीरे-धीरे और बड़ी सावधानी से उन्होंने सिंडिकेट को किनारे पर ला खड़ा किया।
प्रश्न 9.
कांग्रेस पार्टी किन मसलों को लेकर 1969 में टूट का शिकार हुई?
अथवा
सन् 1969 ई० में कांग्रेस पार्टी में विभाजन क्यों हुआ? कारण दीजिए।
उत्तर:
कांग्रेस पार्टी के सन् 1969 में टूट के कारण-कांग्रेस पार्टी में सन् 1969 में निम्नलिखित मसलों को लेकर टूट हुई
(i) 1969 में इंदिरा गांधी की असहमति के बावजूद सिंडिकेट ने तत्कालीन लोकसभा अध्यक्ष एन. संजीव रेड्डी को कांग्रेस पार्टी की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के रूप में खड़ा किया। ऐसे में इंदिरा गांधी ने तत्कालीन उपराष्ट्रपति वी. वी. गिरि को बढ़ावा दिया कि वे एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में राष्ट्रपति पद के लिए अपना नामांकन भरें। यह कांग्रेस पार्टी में फूट का प्रमुख कारण था।
(ii) इंदिरा गांधी ने 14 अग्रणी बैंकों का राष्ट्रीयकरण तथा भूतपूर्व राजा-महाराजाओं को प्राप्त विशेषाधिकार यानी 'प्रिवीपर्स' को समाप्त करने जैसी कुछ बड़ी और जनप्रिय नीतियों की घोषणा की। उस समय मोरारजी देसाई देश के उपप्रधानमंत्री तथा वित्तमंत्री थे। उपर्युक्त दोनों मसलों पर प्रधानमंत्री और उनके बीच गहरे मतभेद उभरे तथा इसके परिणामस्वरूप मोरारजी देसाई ने सरकार से त्यागपत्र दे दिया।
(iii) पूर्व में भी कांग्रेस के भीतर इस तरह के मतभेद उठ चुके थे, परन्तु इस बार मामला कुछ अलग ही था। दोनों गुट चाहते थे कि राष्ट्रपति के चुनाव में शक्ति को आजमा ही लिया जाए। आखिरकार राष्ट्रपति पद के चुनाव में वी.वी.गिरि ही विजयी हुए। कांग्रेस पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार की हार से पार्टी का टूटना तय हो गया। कांग्रेस अध्यक्ष ने प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी को अपनी पार्टी से निष्कासित कर दिया। इस प्रकार कांग्रेस, पुरानी कांग्रेस और नई कांग्रेस में विभाजित हो गई। इंदिरा गांधी ने पार्टी की इस टूट को विचारधाराओं की लड़ाई के रूप में पेश किया।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित अनुच्छेद को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें इंदिरा गांधी ने कांग्रेस को अत्यंत केंद्रीकृत और अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन में तब्दील कर दिया, जबकि नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस शरुआती दशकों में एक संघीय, लोकतांत्रिक और विचारधाराओं के समाहार का मंच थी। नयी और लोकलुभावन राजनीति ने राजनीतिक विचारधारा को महज चुनावी विमर्श में बदल दिया। कई नारे उछाले गए, लेकिन इसका मतलब यह नहीं था कि उसी के अनुकूल सरकार की नीतियाँ भी बनानी थीं, 1970 के दशक के शुरुआती सालों में अपनी बड़ी चुनावी जीत के जश्न के बीच कांग्रेस एक राजनीतिक संगठन के तौर पर मर गई।
(अ) लेखक के अनुसार नेहरू और इंदिरा गाँधी द्वारा अपनाई गई रणनीतियों में क्या अंतर था?
(ब) लेखक ने क्यों कहा है कि सत्तर के दशक में कांग्रेस मर गई?
(स) कांग्रेस पार्टी में आए बदलावों का असर दूसरी पार्टियों पर किस तरह पड़ा?
उत्तर:
(अ) पं. जवाहर लाल नेहरू की तुलना में उनकी पुत्री तथा तीसरी प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कांग्रेस पार्टी को बहुत अधिक केन्द्रीकृत व अलोकतांत्रिक पार्टी संगठन के रूप में बदल दिया। नेहरू के काल में यह पार्टी संघीय, लोकतांत्रिक तथा विभिन्न विचारधाराओं को मानने वाले कांग्रेसी नेताओं तथा यहाँ तक कि विरोधियों को साथ लेकर चलने वाले एक मंच के रूप में जानी जाती थी।
(ब)लेखक ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि उस समय कांग्रेस की सर्वोच्च नेता अधिनायकवादी व्यवहार कर रही थीं। उन्होंने कांग्रेस की सभी शक्तियाँ अपने या कुछ गिनती के अपने कट्टर समर्थकों तक केन्द्रीकृत की। मनमाने ढंग से मंत्रिमंडल तथा दल का गठन किया। पार्टी में विचार-विमर्श का दौर समाप्त हो गया। व्यावहारिक रूप में विरोधियों को कुचला गया। सन् 1975 ई. में आपातकाल की घोषणा की गई। जबरदस्ती नसबंदी कार्यक्रम चलाए गए। अनेक राष्ट्रीय व लोकप्रिय नेताओं को जेल में डाल दिया गया।
(स) कांग्रेस पार्टी में आए बदलाव के कारण दूसरी पार्टियों में आपस में एकता बढ़ी। उन्होंने गैर-कांग्रेसी और गैर-साम्यवादी संगठन बनाए। जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति को समर्थन दिया। जिन लोगों को जेल में डाल दिया गया था, उनके परिवारों को गुप्त सहायता दी गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की लोकप्रियता बढ़ी। कांग्रेस से अनेक सम्प्रदायों के समूह दूर होते गए तथा वे जनता पार्टी के रूप में लोगों के समक्ष आए। सन् 1977 के चुनाव में विरोधी दलों ने कांग्रेस का सफाया कर दिया।