Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Political Science Chapter 3 नियोजित विकास की राजनीति Textbook Exercise Questions and Answers.
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क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
(पृष्ठ संख्या 48)
प्रश्न 1.
क्या आप बता सकते हैं कि 1960 के दशक में कौन-से राजनीतिक दल वामपंथी और कौन-से दक्षिणपंथी थे। आप इस दौर की कांग्रेस पार्टी को किस तरफ रखेंगे ?
उत्तर:
सन् 1960 के दशक में निम्नलिखित राजनीतिक दल वामपंथी और दक्षिणपंथी थे वामपंथी राजीतिक दल-भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मॉर्क्सवादी), फॉरवर्ड ब्लॉक, प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, किसान मजदूर प्रजा पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी आदि दल सन् 1960 के दशक में वामपंथी माने जाते थे। दक्षिणपंथी राजनीतिक दल-भारतीय जनसंघ, अखिल भारतीय हिन्दू महासभा व स्वतंत्र पार्टी आदि को सन् 1960 के दशक में दक्षिणपंथी राजनीतिक दल माना जाता था। इस दौर में कांग्रेस पार्टी को मध्यमार्गी या केन्द्रीय नीतियों पर चलने वाली पार्टी माना जाता था।
(पृष्ठ संख्या 49)
प्रश्न 2.
क्या आप यह कह रहे हैं कि 'आधुनिक' बनने के लिए 'पश्चिमी' होना जरूरी नहीं है? क्या यह संभव है?
उत्तर:
आजादी के बाद 'विकास' की बात आते ही लोग 'पश्चिम' का उदाहरण देते थे कि 'विकास' का पैमाना 'पश्चिमी' देश हैं। 'विकास' का अर्थ था अधिक से अधिक आधुनिक होना तथा आधुनिक होने का अर्थ था, पश्चिमी औद्योगिक देशों के समान होना। चूँकि आजादी के पहले ब्रिटिश सरकार द्वारा देश का अत्यधिक आर्थिक शोषण हुआ था इस कारण देश में संसाधनों का पर्याप्त उपयोग नहीं हो सका था तथा औद्योगीकरण भी नहीं हो पाया था।
परन्तु 'आधुनिक' बनने के लिए 'पश्चिमी' होना जरूरी नहीं है क्योंकि पश्चिमी देशों में आधुनिकीकरण के कारण प्राचीन सामाजिक संरचना टूटी तथा पूँजीवाद व उदारवाद का उदय हुआ। भारत की दृढ़ सामाजिक संरचना तथा राष्ट्रीयता को छिन्न-भिन्न करके तथा पश्चिमी देशों का अंधानुकरण कर भारत का विकास नहीं किया जा सकता, क्योंकि भारत विश्व में अपनी 'विविधता में एकता' की संस्कृति के कारण प्रसिद्ध है। आधुनिक बनने के लिए औद्योगीकरण करके केवल तकनीकी व प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है। हमें देश के नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों को अक्षुण्ण रखना होगा तभी सच्चे अर्थों में विकास होगा।
(पृष्ठ संख्या 50)
प्रश्न 3.
क्या योजना आयोग ने इन उद्देश्यों (अपनी स्थापना के उद्देश्यों) पर अमल किया है ?
उत्तर:
योजना आयोग भारत में स्थापित अन्य आयोगों अथवा दूसरे निकायों की तरह नहीं है। योजना आयोग की स्थापना सन् 1950 में भारत सरकार ने एक सामान्य प्रस्ताव के माध्यम से की। योजना आयोग एक सलाहकार की भूमिका निभाता है तथा इसकी सिफारिशें तभी प्रभावकारी हो पाती हैं जब मंत्रिमण्डल उन्हें मंजूर करे। हमारे नीति निर्माताओं ने देश के विकास हेतु अनेक योजनाएँ बनाई हैं तथा योजना आयोग ने निम्नलिखित उद्देश्यों पर कार्य भी किया है।
(i) स्त्री और पुरुष, सभी नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधनों पर समान अधिकार हो।
(ii) समुदाय के भौतिक संसाधनों के समूह और नियंत्रण को इस तरह बाँटा जाएगा कि उससे जनसाधारण की भलाई हो।
(iii) अर्थव्यवस्था का संचालन इस तरह नहीं किया जायेगा कि धन अथवा उत्पादन के साधन एक - साथ केन्द्रित हो जाएँ तथा जन - साधारण की भलाई बाधित हो। इस प्रकार उपर्युक्त उद्देश्यों पर विचार करते हुए भारत में विभिन्न पंचवर्षीय योजनाएँ बनाई गयीं ताकि देश का सुनियोजित विकास सम्भव हो सके।
(पृष्ठ संख्या 58)
प्रश्न 4.
अरे! मैं तो भूमि सुधारों को मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने की तकनीक समझता था?
उत्तर:
भूमि सुधार से आशय मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने की तकनीक से ही नहीं है बल्कि इसके अन्तर्गत अन्य दशाओं को भी सम्मिलित किया जाता है जो निम्नलिखित हैं।
प्रश्न 5.
इसे गेहूँ क्रान्ति कहने में क्या हर्ज है? क्या हर चीज को 'क्रान्ति' कहना जरूरी है?
उत्तर:
सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक तथा बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना प्रारम्भ किया। सरकार ने इस बात की भी गारण्टी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जायेगा। इसे 'हरित नियोजित विकास की राजनीति 299) क्रान्ति' कहा जाता है। इस प्रक्रिया में धनी किसानों और बड़े भू - स्वामियों को सर्वाधिक लाभ हुआ। हरित क्रान्ति से गेहूँ की पैदावार के साथ - साथ, खेतिहर पैदावार में भी बढ़ोत्तरी हुई अर्थात् अन्य फसलों को भी इससे लाभ हुआ; इस कारण इसे 'गेहूँ क्रान्ति' की बजाय 'हरित क्रान्ति' कहना अधिक उचित है। विभिन्न क्षेत्रों में की गयी शुरुआत तथा उससे प्राप्त अनेक उपलब्धियाँ जो विकास के नवीन मार्ग खोल देती हैं, ऐसी परिघटनाओं को क्रान्ति कहना उचित होता है।
प्रश्न 1.
'बॉम्बे प्लान' के बारे में निम्नलिखित में कौन-सा बयान सही नहीं है
(अ) यह भारत के आर्थिक भविष्य का एक ब्लू-प्रिंट था।
(ब) इसमें उद्योगों के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
(स) इसकी रचना कुछ अग्रणी उद्योगपतियों ने की थी।
(द) इसमें नियोजन के विचार का पुरजोर समर्थन किया गया।
उत्तर:
(ब) इसमें उद्योग के ऊपर राज्य के स्वामित्व का समर्थन किया गया था।
प्रश्न 2.
भारत ने शुरुआती दौर में विकास की जो नीति अपनाई उसमें निम्नलिखित में से कौन-सा विचार शामिल नहीं था?
(अ) नियोजन
(ब) उदारीकरण
(स) सहकारी खेती
(द) आत्मनिर्भरता।
उत्तर:
(ब) उदारीकरण।
प्रश्न 3.
भारत में नियोजित अर्थव्यवस्था चलाने का विचार - ग्रहण किया गया था।
(अ) बॉम्बे प्लान से
(ब) सोवियत खेमे के देशों के अनुभवों से
(स) समाज के बारे में गाँधीवादी विचार से
(द) किसान संगठनों की माँगों से।
कूट:
(अ) सिर्फ ख और घ
(ब) सिर्फ क और ख
(स) सिर्फ घ और ग
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित का मेल करें।
(अ) चरण सिंह |
(i) औद्योगीकरण |
(ब) पी.सी.महालनोबिस |
(ii) जोनिंग |
(स) बिहार का अकाल |
(iii) किसान |
(द) वर्गीज कूरियन |
(iv) सहकारी डेयरी |
उत्तर:
(अ) चरण सिंह |
(iii) किसान |
(ब) पी.सी.महालनोबिस |
(i) औद्योगीकरण |
(स) बिहार का अकाल |
(ii) जोनिंग |
(द) वर्गीज कूरियन |
(iv) सहकारी डेयरी |
प्रश्न 5.
आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद क्या थे? क्या इन मतभेदों को सुलझा लिया गया?
उत्तर:
आजादी के समय विकास के सवाल पर प्रमुख मतभेद निम्नांकित थे।
इस प्रकार भारत ने साम्यवादी मॉडल व पूँजीवादी मॉडल को न अपनाकर इनमें से कुछ महत्त्वपूर्ण बातों को लेकर उन्हें मिले-जुले रूप में लागू किया। भारत ने इस समस्या का हल आपसी बातचीत एवं सहमति द्वारा बीच का रास्ता अपनाते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाकर किया। इस प्रकार भारत ने विकास से सम्बन्धित अधिकांश मतभेदों को सुलझा लिया लेकिन कुछ मतभेद आज भी प्रासंगिक हैं, जैसे- भारत जैसी अर्थव्यवस्था में कृषि और उद्योग के बीच किस क्षेत्र में ज्यादा संसाधन लगाए जाने चाहिए। इसके अतिरिक्त अर्थव्यवस्था में निजी क्षेत्र व सार्वजनिक क्षेत्र को कितनी मात्रा में हिस्सेदारी दी जाए, इस पर भी मतभेद हैं।
प्रश्न 6.
पहली पंचवर्षीय योजना का किस चीज पर सबसे ज्यादा जोर था ? दूसरी पंचवर्षीय योजना पहली से किन अर्थों में अलग थी?
अथवा
पहली व दूसरी पंचवर्षीय योजनाओं में किन क्षेत्रों पर ज्यादा जोर दिया गया? वर्णन कीजिए।
अथवा
प्रथम तथा द्वितीय पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्यों तथा उपलब्धियों की तुलना कीजिए। इस आधार पर यह निष्कर्ष निकालिए कि दोनों में से कौन-सी योजना ने भारत के विकास को एक नया आयाम दिया।
उत्तर:
सन् 1951 में पहली पंचवर्षीय योजना का प्रारूप जारी हुआ तथा इसी वर्ष नवम्बर में इस योजना का वास्तविक दस्तावेज भी जारी किया गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951 - 1956) का उद्देश्य देश को गरीबी के जाल से निकालना था तथा इस योजना में अधिक बल कृषि क्षेत्र पर दिया गया। इस योजना के अन्तर्गत बाँध तथा सिंचाई के क्षेत्र में निवेश किया गया। विभाजन के कारण कृषि क्षेत्र को गहरी चोट लगी तथा इस क्षेत्र पर तुरन्त ध्यान देना आवश्यक था। भाखड़ा - नांगल जैसी विशाल परियोजनाओं के लिए बड़ी धनराशि आवंटित की गयी। इस पंचवर्षीय योजना में माना गया था कि देश में भूमि वितरण का जो ढर्रा मौजूद है, उससे कृषि विकास को सबसे बड़ी बाधा पहुँचती है।
इस योजना में भूमि: सुधार पर जोर दिया गया तथा उसे देश के विकास की बुनियादी चीज माना गया। प्रथम पंचवर्षीय योजना एवं द्वितीय पंचवर्षीय योजना में प्रमुख अन्तर यह था कि जहाँ प्रथम पंचवर्षीय योजना में कृषि क्षेत्र पर अधिक जोर दिया गया, वहीं दूसरी योजना में भारी उद्योगों के विकास पर अधिक जोर दिया गया। इस योजना में सरकार ने देशी उद्योगों को संरक्षण देने के लिए आयात पर भारी शुल्क लगाया। इस नीति से निजी व सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों को आगे बढ़ने में मदद मिली। औद्योगीकरण पर दिए गए इस जोर ने भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास को एक नया आयाम दिया।
प्रश्न 7.
हरित क्रान्ति क्या थी ? हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक और दो नकारात्मक परिणामों का उल्लेख करें।
उत्तर:
हरित क्रान्ति का अभिप्राय: सरकार ने खाद्य सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए कृषि की एक नई रणनीति अपनाई। जो क्षेत्र तथा किसान कृषि के मामले में पिछड़े हुए थे, प्रारम्भ में सरकार ने उनको अधिक सहायता देने की नीति अपनाई थी। इस नीति को छोड़ दिया गया। सरकार ने अब उन क्षेत्रों पर अधिक संसाधन लगाने का फैसला किया जहाँ सिंचाई सुविधा विद्यमान थी और जहाँ के किसान समृद्ध थे। इस नीति के पक्ष में यह तर्क दिया गया कि जो पहले से ही सक्षम हैं वे कम समय में ही उत्पादन को तेज रफ्तार से बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं। सरकार ने उच्च गुणवत्ता के बीज, उर्वरक, कीटनाशक तथा बेहतर सिंचाई सुविधा बड़े अनुदानित मूल्य पर उपलब्ध कराना शुरू किया। सरकार ने किसानों को इस बात की भी गारण्टी दी कि उपज को एक निर्धारित मूल्य पर खरीद लिया जायेगा।
यही उस परिघटना की शुरुआत थी जिसे 'हरित क्रान्ति' कहा जाता है। इस प्रकार हरित क्रान्ति से हमारा अभिप्राय सिंचित और असिंचित कृषि-क्षेत्रों में अधिक उपज देने वाली किस्मों को आधुनिक कृषि पद्धति से उगाकर कृषि उपज में यथासंभव अधिक वृद्धि करने से है। सन् 1960 - 61 से 1968 - 69 की अवधि देश के कृषि इतिहास में अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। इस अवधि में हमने कृषि-क्षेत्र में पूर्ण विफलता तथा भविष्य की उज्ज्वल आशाओं के साथ अत्यधिक सफलता, दोनों का ही अनुभव प्राप्त किया है। भारतीय कृषक अब उत्पादन में अधिकतम वृद्धि करने हेतु एक सुनिश्चित कृषि नीति का पालन कर रहा है। देश में हरित क्रान्ति लाने
नियोजित विकास की राजनीति 301 का श्रेय देश के वैज्ञानिकों तथा कृषकों के अथक प्रयासों को है। इस दिशा में भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् और कृषि विश्वविद्यालय, लुधियाना का योगदान भी उल्लेखनीय है।
हरित क्रान्ति के दो सकारात्मक परिणाम:
हरित क्रान्ति के दो नकारात्मक परिणाम:
प्रश्न 8.
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद चला था। इस विवाद में क्या-क्या तर्क दिए गए थे ?
अथवा
"नियोजन के शुरुआती दौर में 'कृषि बनाम उद्योग' का विवाद रहा।" इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का विवाद: औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास का मुद्दा बहुत उलझा हुआ था। अनेक विचारकों का मत था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि विकास की रणनीति का अभाव था तथा इस योजना के दौरान उद्योगों पर जोर देने के कारण कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों को हानि उठानी पड़ी थी। जे.सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की थी, जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर अधिक ध्यान दिया गया था। इस प्रकार दूसरी पंचवर्षीय योजना के दौरान औद्योगिक विकास बनाम कृषि विकास के विवाद के संदर्भ में निम्नलिखित तर्क प्रस्तुत किए गए थे।
(1) स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत जैसे पिछड़ी अर्थव्यवस्था के देश में यह विवाद उत्पन्न हुआ कि उद्योग व कृषि में से किस क्षेत्र में अधिक संसाधन लगाये जायें।
(2) अनेक लोगों का मानना था कि दूसरी पंचवर्षीय योजना में कृषि के विकास की रणनीति का अभाव था तथा इस योजना के दौरान उद्योगों पर अधिक बल देने के कारण कृषि व ग्रामीण क्षेत्रों को चोट पहुंची।
(3) जे. सी. कुमारप्पा जैसे गाँधीवादी अर्थशास्त्रियों ने एक वैकल्पिक योजना की रूपरेखा प्रस्तुत की थी जिसमें ग्रामीण औद्योगीकरण पर अधिक जोर दिया गया था। चौधरी चरण सिंह ने भारतीय अर्थव्यवस्था के नियोजन में कृषि को केन्द्र में रखने की बात अत्यन्त सुविचारित तथा प्रभावशाली ढंग से उठाई थी।
(4) चौधरी चरण सिंह कांग्रेस पार्टी में थे तथा बाद में उससे अलग होकर इन्होंने लोकदल नामक पार्टी बनाई। उन्होंने कहा कि नियोजन से नगरीय व औद्योगिक वर्ग समृद्ध हो रहे हैं तथा इसकी कीमत किसानों तथा ग्रामीण जनता को चुकानी पड़ रही है।
(5) कई अन्य लोगों का विचार था कि औद्योगिक उत्पादन की वृद्धि दर को तीव्र किए बिना गरीबी से छुटकारा नहीं मिल सकता।
(6) नियोजन में सामुदायिक विकास के कार्यक्रम व सिंचाई परियोजनाओं पर भारी राशि खर्च करने की बात मानी गयी थी। नियोजन की नीतियाँ सफल नहीं हुईं, क्योंकि इनका क्रियान्वयन ठीक प्रकार से नहीं हुआ। भूमि-सम्पन्न वर्ग के पास सामाजिक तथा राजनीतिक शक्ति अधिक थी। इसके अलावा ऐसे लोगों का एक तर्क यह भी था कि यदि सरकार कृषि पर अधिक धनराशि खर्च करती तब भी ग्रामीण गरीबी की विकराल समस्या का समाधान नहीं कर पाती।
प्रश्न 9:
“अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका पर जोर देकर भारतीय नीति-निर्माताओं ने गलती की। अगर शुरुआत से ही निजी क्षेत्र को खुली छूट दी जाती तो भारत का विकास कहीं ज्यादा बेहतर तरीके से होता।" इस विचार के पक्ष या विपक्ष में अपने तर्क दीजिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के मिश्रित या मिले-जुले मॉडल की आलोचना दक्षिणपंथी तथा वामपंथी दोनों खेमों से हुई। कुछ आलोचकों का मत था कि योजनाकारों ने निजी क्षेत्र को पर्याप्त जगह नहीं दी है। विशाल सार्वजनिक क्षेत्र ने ताकतवर निजी स्वार्थों को खड़ा किया है तथा इन स्वार्थपूर्ण हितों ने निवेश के लिए लाइसेंस व परमिट की प्रणाली खड़ी करके निजी पूँजी का मार्ग अवरुद्ध किया है। निजी क्षेत्र के पक्ष में तर्क इस प्रकार हैं।
पक्ष में तर्क:
विपक्ष में तर्क:
(1) सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र की भागीदारी का समर्थन करने वाले वामपंथी विचारधारा के समर्थकों का मत है कि भारत को सुदृढ़ कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र में आधार सरकारी वर्चस्व और मिश्रित नीतियों से मिला है। यदि ऐसा नहीं होता तो भारत पिछड़ा ही रह जाता।
(2) भारत में विकसित देशों की तुलना में जनसंख्या अधिक है। यहाँ गरीबी है, बेरोजगारी है। यदि पश्चिमी देशों की होड़ में भारत में सरकारी हिस्से को अर्थव्यवस्था हेतु कम कर दिया जायेगा तो गरीबी फैलेगी तथा बेरोजगारी बढ़ेगी, धन और पूँजी कुछ ही कम्पनियों के हाथों में केन्द्रित हो जायेगी जिससे आर्थिक विषमता और अधिक बढ़ जायेगी।
(3) हम जानते हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है। वह संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों का कृषि उत्पादन में मुकाबला नहीं कर सकता। कुछ देश स्वार्थ के लिए पेटेंट प्रणाली को कृषि में लागू करना चाहते हैं तथा जो सहायता राशि भारत सरकार अपने किसानों को देती है वह उसे अपने दबाव द्वारा पूरी तरह खत्म करना चाहते हैं। जबकि भारत सरकार देश के किसानों को हर प्रकार से आर्थिक सहायता देकर अन्य विकासशील देशों को कृषि सहित अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र में मात देना चाहती है।
प्रश्न 10.
निम्नलिखित अवतरण को पढ़ें और इसके आधार पर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दें आजादी के बाद के आरंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ पनपीं। एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी कार्यकारिणी ने राज्य के स्वामित्व का समाजवादी सिद्धान्त अपनाया, उत्पादकता को बढ़ाने के साथ - साथ आर्थिक संसाधनों के संकेंद्रण को रोकने के लिए अर्थव्यवस्था के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों का नियंत्रण और नियमन किया। दूसरी तरफ कांग्रेस की राष्ट्रीय सरकार ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाईं तथा उसके बढ़ावे के लिए विशेष कदम उठाए। इसे उत्पादन में अधिकतम वृद्धि की अकेली कसौटी पर जायज़ ठहराया गया।
(अ) यहाँ लेखक किस अंतर्विरोध की चर्चा कर रहा है? ऐसे अंतर्विरोध के राजनीतिक परिणाम क्या होंगे?
(ब) अगर लेखक की बात सही है तो फिर बताएँ कि कांग्रेस इस नीति पर क्यों चल रही थी? क्या इसका सम्बन्ध विपक्षी दलों की प्रकृति से था?
(स) क्या कांग्रेस पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व और इसके प्रान्तीय नेताओं के बीच भी कोई अंतर्विरोध था?
उत्तर:
(अ) उपर्युक्त अनुच्छेद में लेखक ने बताया है कि स्वतंत्रता के पश्चात् प्रारंभिक वर्षों में कांग्रेस पार्टी के भीतर दो परस्पर विरोधी प्रवृत्तियाँ विकसित हुईं जिनमें से एक आर्थिक गतिविधियों को निजी क्षेत्र में करने की पक्षधर थी। दूसरी विचारधारा के पक्षधर वे लोग थे जो आर्थिक गतिविधियों को सार्वजनिक क्षेत्र में देकर राज्य की एक बड़ी भूमिका के पक्ष में थे। दोनों प्रकार के दबावों को देखते हुए मिश्रित अर्थव्यवस्था को अपनाया गया जिसके फलस्वरूप आर्थिक गतिविधियाँ दोनों क्षेत्रों में की गयीं।
(ब) कांग्रेस की सरकार के निर्णय ने निजी निवेश के लिए उदार आर्थिक नीतियाँ अपनाईं तथा उसे बढ़ाने के लिए विशेष कदम उठाये। सरकार ने ये कार्य बड़े-बड़े पूंजीपतियों तथा उद्योगपति समूहों के दबाव में उठाये।
(स) कांग्रेस पार्टी के केन्द्रीय नेतृत्व तथा इसके प्रान्तीय नेताओं के बीच खुलकर कोई अंतर्विरोध नहीं था परन्तु यह बात स्पष्ट है कि दबे स्वरों में अनेक प्रान्तों ने सरकारीकरण का विरोध किया। विभिन्न प्रान्तों में कांग्रेस से हटकर अनेक नेताओं ने अपने अलग - अलग राजनीतिक दल बनाये। चरण सिंह ने भारतीय क्रान्ति दल तथा कालांतर में भारतीय लोकदल बनाया। गुजरात के मोरारजी देसाई पूँजीवादी नीतियों का समर्थन करते थे। कांग्रेस के कुछ नेताओं ने समाजवादी पार्टी का गठन किया। उड़ीसा में बीजू पटनायक ने उत्कल कांग्रेस का गठन किया।