RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 12 Hindi Solutions Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

RBSE Class 12 Hindi दूसरा देवदास Textbook Questions and Answers

Surdas Ki Jhopdi Class 12 Hindi Question Answer प्रश्न 1. 
'चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता ?' इस कथन के आधार पर सूरदास की मन:स्थिति का वर्णन कीजिए। . 
उत्तर : 
रात के दो बजे थे। सूरदास की झोपड़ी में आग लगी थी। बजंरगी तथा जगधर ने सूरदास से पूछा-'आग कैसे लगी, चूल्हा ठंडा किया था या नहीं ?' इस पर नायकराम ने उत्तर दिया-चूल्हा ठंडा किया होता, तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता।' सूरदास का किसी की बातों की ओर कोई ध्यान नहीं था। उसे अपनी झोंपड़ी अथवा अपने बरतन आदि जल जाने की चिन्ता नहीं थी। उसे अपनी उस पोटली के जल जाने का दुःख था, जिसमें उसके जीवन-भर की कमाई थी। उन रुपयों से वह पितरों का पिंडदान, अपने पौत्र मिठुआ की शादी आदि अनेक योजनाएँ पूरी करना चाहता था। इस प्रकार उसकी मन:स्थिति निराशापूर्ण थी। 

Class 12 Hindi Antral Chapter 1 Question Answer प्रश्न 2. 
भैरों ने सूरदास की झोंपड़ी क्यों जलाई ? 
उत्तर : 
भैरों अच्छा आदमी नहीं था। वह अपनी पत्नी सुभागी को मारता-पीटता था। एक बार सुभागी उसकी पिटाई से बचने के लिए सूरदास की झोपड़ी में आकर छिप गई। भैरों उसे मारने के लिए सूरदास की झोपड़ी में घुस आया। परन्तु सूरदास ने उसे बचा लिया तब से वह सूरदास से द्वेष करने लगा तथा सूरदास के चरित्र पर लांछन लगाने लगा। उसकी सूरदास के प्रति ईर्ष्या इतनी बढ़ गई कि उसने सूरदास की अनुपस्थिति में उसकी झोपड़ी में घुसकर बचाकर रखे हुए उसके रुपयों की पोटली चुरा ली और उसकी झोपड़ी में आग लगा दी। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

सूरदास की झोपड़ी के प्रश्न उत्तर प्रश्न 3. 
'यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।' सन्दर्भ सहित विवेचन कीजिए।
अथवा 
'यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी।' सूरदास की क्या-क्या अभिलाषाएँ थीं और उनकी राख किसने की? 
अथवा 
यह फूस की राख न थी, उसकी अभिलाषाओं की राख थी, किसके बारे में कहा गया है? क्यों? सूरदास के सन्दर्भ में आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
सूरदास बैठा रहा। लोग चले गए थे और धीरे-धीरे झोंपड़ी की.आग ठंडी हो गई थी। तब वह उठा और अनुमान से द्वार की ओर से झोंपड़ी में घुसा। उसने उसी दिशा में राख को टटोलना शुरू किया, जहाँ छप्पर में पोटली रखी थी। निराशा, गोली नहीं मिली। उतावलेपन और अधीरता से उसने सारी राख छान डाली परन्तु पोटली नहीं मिली। उसने एक-एक कर रुपये जोड़े थे। उसने सोचा था कि उन रुपयों से वह गया जाकर अपने पितरों का पिंडदान करेगा। रोटी अपने हाथों से बनाते पूरा जीवन बीत गया। अब वह अपने पौत्र मिआ की शादी करेगा और चैन की रोटी खायेगा। झोंपड़ी जलने से उसके सारे अरमान ही जल गए थे। यह फूस की राख उसकी इन्हीं अभिलाषाओं की राख थी। 

Surdas Ki Jhopdi Question Answers प्रश्न 4. 
जगधर के मन में किस तरह का ईर्ष्या-भाव जगा और क्यों ?
उत्तर : 
सवेरा हो गया था। जगधर भैरों के पास पहुँचा। उसने चालाकी से भैरों से आग लगाने और पोटली चुराने वाली बात कबूल करवा ली। वह सोच रहा था-भैरों को एकाएक इतने रुपये मिल गए। यह अब मौज उड़ाएगा। तकदीर इस तरह खुलती है। अब भैरों दो-तीन दुकानों का ठेका और ले लेगा। वह आराम से जिन्दगी बिताएगा। उसे भी ऐसा कुछ माल हाथ लग जाता तो उसकी जिन्दगी भी सफल हो जाती। इस प्रकार अचानक भैरों के पास पाँच सौ से अधिक रुपये देखकर जगधर . के मन में उसके प्रति प्रबल ईर्ष्या का भाव जाग उठा। 

Surdas Ki Jhopadi Question Answer प्रश्न 5. 
सूरदास जगधर से अपनी आर्थिक हानि को गुप्त क्यों रखना चाहता था ? 
अथवा 
भिखारियों के लिए धन-संचय पाप-संचय से कम अपमान की बात नहीं है।" 'सूरदास की झोंपड़ी' पाठ से उद्धृत इस कथन की आधुनिक परिप्रेक्ष्य में विवेचना कीजिए। 
उत्तर : 
सूरदास अपने रुपये खोने से यद्यपि दुःखी था, उसकी समस्त आशाएँ टूट गई थीं, फिर भी वह जगधर से अपने पास रुपये होने की बात को स्वीकार करना नहीं चाहता था। सूरदास जानता था कि उसने यह धन भीख माँगकर जोड़ा था। एक अंधे भिखारी के लिए निर्धनता इतनी लज्जा की बात नहीं थी, जितना धन का संग्रह करना। रुपयों को अपना स्वीकार करने से होने वाले अपमान से बचने के लिए वह जगधर से अपनी आर्थिक हानि की बात को छिपा रहा था। वर्तमान में भी समाज की यही मान्यता है। यदि कोई भिखारी अधिक धन संचय कर ले तो उसे हेय दृष्टि से देखा जाता है।

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Class 12 Antral Chapter 1 Question Answer प्रश्न 6.
'सूरदास उठ खड़ा हुआ और विजय-गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा।' इस कथन के संदर्भ में सूरदास की मनोदशा का वर्णन कीजिए। 
उत्तर :
अपनी झोंपड़ी के जलने का इतना दुःख सूरदास को नहीं था जितना अपने संचित किए हुए रुपयों के जाने का। वह व्याकुल, उतावला, निराश और चिन्तित होकर रोने लगा था। सूरदास की इस मनोदशा में अचानक परिवर्तन हुआ। उसने सुना, कोई कह रहा था - 'तुम खेल में रोते हो!' इन शब्दों ने सूरदास की मनोदशा को बदल दिया। निराशा, ग्लानि, चिंता और क्षोभ से भरा हुआ सूरदास एकदम इनकी जकड़ से मुक्त हो गया। वह उठा और विजय गर्व की तरंग में राख के ढेर को दोनों हाथों से उड़ाने लगा। हारते-हारते सूरदास विजयी हो गया। उसके मन की निराशा मिट गई। वह आत्म-विश्वास से भर उठा। 

सूरदास की झोपड़ी कक्षा 12 प्रश्न उत्तर प्रश्न 7. 
'तो हम सौ लाख बार बनाएँगे' इस कथन के सन्दर्भ में सूरदास के चरित्र का विवेचन कीजिए। 
अथवा 
"तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे" सूरदास के इस कथन के आलोक में जीवन-मूल्य के रूप में सकारात्मक दृष्टिकोण के महत्व पर अपने विचार व्यक्त कीजिए। 
अथवा
"तो हम सौ लाख बार बनाएँगे।" इस कथन के आलोक में उन जीवन-मूल्यों का उल्लेख कीजिए जो हमें सूरदास से प्राप्त होते हैं? 
उत्तर : 
सूरदास की झोंपड़ी' का नायक एवं प्रमुख पात्र सूरदास ही है। उसकी झोंपड़ी जला दी जाती है और जीवन-भर की संचित कमाई चोरी हो जाती है। वह निराश, उदास और दुःखी है। मिठुआ के पूछने पर वह अपनी झोंपड़ी को बार-बार बनाने का निश्चय प्रकट करता है और कहता है "तो हम सौ लाख बार बनाएँगे।" इस कथन के सन्दर्भ में सूरदास के चरित्र की कुछ प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं - 
1. दृढ़-निश्चयी-सूरदास भिखारी होते हुए भी दृढ़-निश्चयी है। उसकी झोंपड़ी को द्वेषवश भैरों जला देता है और रुपये चुरा लेता है। सूरदास बहुत दुःखी है, किन्तु उसमें निश्चय की कमी नहीं है। 

2. बालोचित सरलता-सूरदास में बालोचित सरलता है। झोंपड़ी के जलने पर और रुपयों के न मिलने पर वह दुःखी होकर रोने लगता है। परन्तु घीसू को मिठुआ से यह कहते सुनकर"खेल में रोते हो" वह एकदम बदल जाता है, उसका पराजयभाव समाप्त हो जाता है। 

3. कर्मठ और उदार सूरदास कर्मठ है। वह भीख माँगता है, परन्तु अपने कामों में लगा रहता है। द्वेषवश भैरों उसकी झोंपड़ी जला देता है तथा रुपये चुरा लेता है तब भी वह उसके प्रति उदार बना रहता है। 

4.परम्परा का प्रेमी सरदास धार्मिक परम्परा को मानता है। वह अपने परखों का गया में जाकर पिंडदान कर है। दूसरों के हित में कुँआ बनवाना चाहता है। वह मिठुआ की शादी करने का अपना कर्तव्य भी निभाना चाहता है। वह भैरों की पत्नी सुभागी को पिटने से बचाता है। वह अपने रुपयों की चोरी को पूर्व जन्म के पाप का परिणाम मानता है।

5. सहनशील-सूरदास सहनशील व्यक्ति है। झोंपड़ी जलने से उसकी सभी आशाएँ और योजनाएँ जल जाती हैं, पर वह सब कुछ चुपचाप सह लेता है।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

योग्यता विस्तार -

1. इस पाठ का नाट्य रूपांतर कर उसकी प्रस्तुति कीजिए। 
2. प्रेमचंद के उपन्यास 'रंगभूमि' का संक्षिप्त संस्करण पढ़िए। 

निर्देश - छात्र स्वयं करें।

RBSE Class 12 Hindi सूरदास की झोंपड़ी Important Questions and Answers

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -

Class 12 Surdas Ki Jhopdi Question Answer प्रश्न 1. 
निद्रावस्था में भी उपचेतना जागती रहती है।' 'सूरदास की झोंपड़ी' पाठ के आधार पर इस कथन को स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
मनुष्य का चेतन मस्तिष्क तो निद्रावस्था में सो जाता है, परन्तु उसका अवचेतन मस्तिष्क नहीं सोता, वह निरन्तर क्रियाशील रहता है। कोई विपत्ति आने पर यही अवचेतन मस्तिष्क उसको जगा देता है और सावधान कर देता है। सूरदास की झोंपड़ी में आग लगी तब रात के दो बजे थे। झोंपड़ी से ज्वाला उठी तब लोग जाग गए और थोड़ी देर में ही वहाँ सैकड़ों आदमी इकट्ठे हो गए। जिस समय आदमी गहरी नींद में होता है, उस समय इतने लोगों का जागकर घटनास्थल पर पहुँचना इस मनोवैज्ञानिक सत्य को प्रमाणित करता है। 

Class 12 Hindi Surdas Ki Jhopdi Question Answer प्रश्न 2. 
सूरदास की झोपड़ी में लगी आग का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए। अधिकांश लोग उस अग्निदाह को अपने किसी मित्र की चिताग्नि की तरह क्यों देख रहे थे ? 
उत्तर : 
सूरदास की झोंपड़ी से आग की लपटें लपक-लपककर आकाश की ओर दौड़ रही थीं। कभी उनका आकार किसी मंदिर के गुम्बद के ऊपर लगे हुए स्वर्ण-कलश के समान हो जाता था तो कभी वे हवा के झोंकों के कारण इस तरह काँपने लगती थीं जिस प्रकार पानी में पड़ने वाली चन्द्रमा की परछाँई हिलती रहती है। जिस तरह ईर्ष्या कभी नहीं समाप्त होती, उसी प्रकार आग बुझाने का प्रयत्न करने पर भी वे लपटें शान्त होने का नाम नहीं ले रही थीं। वह आग अधिकांश लोगों को किसी मित्र की चिता के समान लग रही थी, क्योंकि सूरदास के सरल स्वभाव के कारण लोग उसको अपना मित्र समझते थे। 

Surdas Ki Jhopdi Ke Prashn Uttar प्रश्न 3. 
आग किसने लगाई थी ? वहाँ उपस्थित लोगों का इस विषय में क्या मत था ? 
उत्तर : 
झोंपड़ी में लगी आग के बारे में वहाँ आए लोग यह जानना चाहते थे कि आग कैसे लगी ? किसी का विचार था कि सूरदास ने चूल्हा जलता छोड़ दिया होगा। जगधर सफाई दे रहा था कि आग उसने नहीं लगाई। नायकराम का कहना था कि वह जानता है आग किसने लगाई है? उसका मानना था कि आग सूरदास से ईर्ष्या के कारण अपने मन को शान्त करने के लिए उसके किसी शत्रु ने लगाई है। जगधर, नायकराम, ठाकुरदीन सभी की शंका भैरों पर थी, क्योंकि अपनी पत्नी सुभागी के सूरदास की झोपड़ी में छिपने के कारण भैरों उससे ईर्ष्या करता था।

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Surdas Ki Jhopdi Class 12 Hindi प्रश्न 4. 
सूरदास को किस बात का दुःख था तथा क्यों ? 
उत्तर : 
सूरदास को अपनी झोंपड़ी के जलने का दु:ख नहीं था। उसको झोंपड़ी के साथ जल गए बर्तन आदि के जलने का भी दुःख नहीं था। उसको दु:ख था उस पोटली के गायब होने का, जिसमें उसकी उम्रभर की कमाई रखी थी। उस पोटली में उसके द्वारा संचित पाँच सौ से अधिक रुपये रखे थे। उसने ये रुपये बड़े कष्ट से भीख माँगकर एकत्र किए थे। रुपयों से वह अपने पतंगों को पूरा करना चाहता था। वह पोटली उसके लोक-परलोक, उसकी दीन-दुनिया का आशा-दीप थी। 

Surdas Ki Jhopdi Question Answer प्रश्न 5. 
सूरदास पोटली को खोकर किस प्रकार पछता रहा था ? 
उत्तर :
रुपयों की पोटली के जल जाने से सूरदास को बहुत दुःख हुआ। उसे खोकर वह बहुत पछता रहा था। वह सोच रहा उसे आग लगने के बारे में पता होता तो वह यहीं पर सोता। यदि किसी के द्वारा आग लगाने की आशंका उसे होती तो वह पोटली पहले से ही निकाल लेता। पाँच सौ रुपये से कछ ऊपर ही थे। न गया जाकर पितरों का पिंडदान कर सका : की शादी ही कर सका। बहू के हाथ की बनी दो रोटियाँ खाने की साध भी पूरी नहीं हुई।

प्रश्न 6. 
सूरदास के झोंपड़ी में घुसने का प्रयत्न करने पर क्या हुआ ? वह उसमें कैसे प्रवेश कर सका ? 
उत्तर :
सूरदास रुपयों की पोटली के बारे में पता करना चाहता था। वह सोच रहा था कि रुपये पिघल गए होंगे तो चाँदी तो वहाँ होगी ही। वह अटकल से द्वार की ओर से झोंपड़ी के अन्दर घुसा। एकाएक पैर भूबल में पड़ गया। उसने तुरन्त पैर पीछे हटाया। वह लकड़ी के टुकड़े से राख को उलटने-पलटने लगा। आधा घंटे में उसने पूरी राख उलट दी। वह नीचे की आग को ठंडा करना चाहता था। फिर उसने डरते-डरते पैर आगे रखा। राख गरम तो थी, मगर असह्य न थी। इस प्रकार वह झोंपड़ी के अन्दर जा पहुंचा। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

प्रश्न 7. 
जगधर ने भैरों से कैसे स्वीकार कराया कि झोंपड़ी में आग उसी ने लगाई थी ? 
अथवा 
सूरदास की झोपड़ी में आग किसने लगाई, यह जानने को जगधर बेचैन क्यों था ?
उत्तर :
जगधर को भैरों की बातों से विश्वास हो गया था कि झोपड़ी में आग उसी ने लगाई है। उसने कहा था कि वह सूरदास को रुलाएगा। जगधर को अपने विश्वास को पक्का करने के लिए प्रमाण की जरूरत थी। उसका विश्वास तभी सच्चा सिद्ध होता जब भैरों स्वयं स्वीकार करता। इसलिए उसने भैरों से कहा कि सब लोग तुम पर ही शक करते हैं। "सच कहो, आग तुम्हीं ने लगाई ?" भैरों ने जगधर की बातों में आकर स्वीकार कर लिया कि उसने ही आग लगाई थी। इस प्रकार चतुराई से जगधर ने भैरों से झोपड़ी में आग लगाने की बात स्वीकार करा ली। 

प्रश्न 8.
भैरों सूरदास से द्वेष क्यों मानता था ? इस सम्बन्ध में उसने जगधर को क्या बताया ? 
अथवा 
सूरदास की झोपड़ी में आग लगाने से भैरों के मन की कौन-सी आग ठंडी हो गई थी?
उत्तर : 
भैरों ईष्यालु और शंकालु स्वभाव का मनुष्य था। वह अपनी पत्नी को मारता-पीटता था। उसकी मार से बचने के लिए उसकी पत्नी सुभागी सूरदास की झोंपड़ी में जा छिपी थी। सूरदास ने उसे बचाया था। इस बात को लेकर भैरों सूरदास के चरित्र पर लांछन लगाता था और उससे बदला लेना चाहता था। वह उसे रोता हुआ देखना चाहता था। उसने सूरदास के रुपये चुराए और झोपड़ी में आग लगा दी। उसने जगधर से स्पष्ट कहा कुछ भी हो, दिल की आग तो ठंडी हो गई। येह सुभागी को बहका कर ले जाने का जुर्माना है। झोपड़ी में आग लगा देने से सूरदास से बदला लेने की उसकी आग ठंडी हो गई थी। 

प्रश्न 9.
जगधर ने भैरों को सूरदास का रुपया लौटा देने की सलाह किस भावना से दी थी ? 
उत्तर :
जगधर ने भैरों से कहा - मेरी सलाह है कि रुपये उसे लौटा दो ? बड़ी मसक्कत की कमाई है। हजम न होगी। जगधर मन का बुरा नहीं था। परन्तु इस समय उसने सूरदास के रुपये लौटा देने की सलाह नेकनीयती की भावना से नहीं दी थी। इस सलाह के पीछे जगधर के मन में भैरों के प्रति उत्पन्न हुई ईर्ष्या का भाव था। एकाएक पाँच सौ रुपये की बड़ी धनराशिं भैरों को मिलने से जगधर की छाती पर साँप लोट रहा था। उसने भैरों को पुलिस का डर दिखाया। उसे यह बात बेचैन कर रही थी कि भैरों को एकाएक इतने रुपये मिल गए, अब यह मौज उड़ायेगा।

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प्रश्न 10. 
सूरदास रुपयों की थैली को अपना स्वीकार करने को क्यों तैयार नहीं हुआ ? 
उत्तर : 
सूरदास झोंपड़ी में आग लगने के बाद रुपयों के लिए अत्यन्त व्याकुल था परन्तु वह यह स्वीकारने को तैयार नहीं "था कि भैरों के पास जो रुपयों की थैली है, वह उसकी झोंपड़ी से चुराई गई है। वह जानता था कि रुपयों को अपना मान लेने से उसकी बदनामी होगी। लोग सोचेंगे कि एक अन्धे भिखारी के पास पाँच सौ रुपये कहाँ से आए। अन्धे भिखारी के लिए दरिद्रता इतनी लज्जा की बात न थी, जितना धन-संचय। उसके लिए यह बात पाप करने से कम अपमानजनक नहीं थी।

प्रश्न 11. 
सुभागी कौन थी ? वह रात भर अमरूद के बाग में क्यों छिपी रही थी ? 
उत्तर : 
सुभागी भैरों की पत्नी थी। भैरों अच्छा आदमी नहीं था। वह झगड़ालू प्रवृत्ति का था। वह सुभागी के ऊपर शंका करता था। वह उसको पीटता भी था। एक बार उसकी पिटाई से बचने के लिए सुभागी सूरदास की झोपड़ी में छिप गई थी। भैरों भी वहाँ आ गया। सूरदास ने उसको पिटने से बचाया था। इससे भैरों सूरदास को दुश्मन मानता था तथा उसके और सुभागी के चाल-चलन पर लांछन लगाता था। उस रात भी जब भैरों ने सूरदास की झोंपड़ी में आग लगाई थी, सुभागी रातभर मंदिर के पिछवाड़े अमरूद के बाग में भैरों की मार से बचने के लिए छिपी रही थी।

प्रश्न 12. 
सूरदास के मन से निराशा, ग्लानि, चिंता और क्षोभ के भाव एकाएक क्यों दूर हो गए ? इन भावों का स्थान किसने लिया ? 
अथवा 
'सच्चे खिलाड़ी कभी रोते नहीं, बाजी पर बाजी हारते हैं, चोट पर चोट खाते हैं। पर मैदान में डटे रहते हैं। इस कथन के आधार पर सूरदास की मनः स्थिति में आए बदलाव को स्पष्ट कीजिए।
अथवा 
'सूरदास की झोंपड़ी' उपन्यास अंश में ईर्ष्या, चोरी, ग्लानि, बदला जैसे नकारात्मक मानवीय पहलुओं पर अकेले सूरदास का व्यक्तित्व भारी पड़ता है। जीवन मूल्यों की दृष्टि से इस कथन पर विचार कीजिए। 
उत्तर :
झोंपड़ी के जलने से सूरदास अत्यन्त दुःखी था। पूरी राख को तितर-बितर करने पर भी उसे अपने संचित रुपये अथवा उनकी पिघली हुई चाँदी नहीं मिली थी। उसकी सभी योजनाएँ इन रुपयों के माध्यम से ही पूरी होनी थीं। अब वे अधूरी ही रहने वाली थीं। दुःखी और निराश सूरदास रोने लगा था। अचानक उसके कानों में आवाज आई "तुम खेल में रोते हो।" इन शब्दों ने सूरदास की मनोदशा को एकदम बदल दिया। उसने रोना बन्द कर दिया। निराशा उसके मन से दूर हो गई। उसका स्थान विजय-गर्व ने ले लिया। उसने मान लिया कि वह खेल में रोने लगा था। यह अच्छी बात नहीं थी। वह राख को दोनों हाथों से हवा में उड़ाने लगा।

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प्रश्न 13. 
प्रेमचंद ने झोंपड़ी की आग की तुलना किससे की है तथा क्यों ? 
उत्तर :
प्रेमचंद ने झोंपड़ी की आग की तुलना ईर्ष्या की आग से की है। ईर्ष्या की आग मनुष्य के मन में निरन्तर जलती रहती है तथा उसे भी जलाती रहती है। पर निन्दा का ईंधन आग को और तेज करता है। सूरदास की झोंपड़ी की आग बहुत प्रयास करने के बाद तब बुझी जब झोपड़ी तथा उसमें रखा सामान पूरी तरह जल गया और राख के ढेर में बदल गया। ईर्ष्या की आग की प्रबलता के समाप्त ही झोंपड़ी में लगी आग भी बहुत प्रबल थी। 

प्रश्न 14. 
सूरदास को झोंपड़ी जलने का दुःख नहीं था, क्यों ? 
उत्तर :
सूरदास की झोंपड़ी जल चुकी थी और उसमें रखा सामान भी जल गया था। उसमें सूरदास के जीवनभर की संचित कमाई के पाँच सौ से अधिक रुपये एक पोटली में बँधे रखे थे। झोंपड़ी सामान सहित राख के ढेर में बदल गई थी। सूरदास उस राख में अपने रुपये की तलाश कर रहा था। उन रुपयों से वह अपनी अनेक योजनाएँ पूरी करना चाहता था। वह रुपयों के लिए चिंतित और दुःखी था। झोंपड़ी के जलने का उसे दुःख नहीं था। वह जानता था कि झोंपड़ी तो फिर दोबारा भी बन जायेगी। 

प्रश्न 15. 
'चूल्हा ठंडा किया होता तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता'-यह कथन किसका है और इसका आशय क्या है ?
उत्तर :
यह कथन नायकराम का है। सूरदास की झोंपड़ी में आग लगी थी। वहाँ लोगों की भीड़ एकत्र थी। लोग आग लगने का कारण जानना चाहते थे। भीड़ में जगधर भी था। उसने सूरदास से पूछा कि उसने चूल्हा ठंडा किया था या नहीं ? कहीं आग चूल्हा जलता रह जाने से तो नहीं लगी। जगधर के पूछने पर नायकराम ने व्यंग्यपूर्वक यह बात कही थी कि चूल्हा ठंडा किया होता तो दुश्मनों का कलेजा कैसे ठंडा होता। इस कथन का आशय यह है कि सूरदास के किसी शत्रु ने ईर्ष्या के कारण उसकी झोपड़ी जलाई है। झोंपड़ी जलाकर वह अपने मन की शत्रुता की आग को ठंडा करना चाहता था।

प्रश्न 16. 
मिटुंआ के प्रश्न "और जो कोई सौ लाख बार लगा दे" का उत्तर सूरदास ने किस प्रकार दिया? सूरदास का उत्तर किस विशेषता को दर्शाता है? 
उत्तर :
सूरदास अपनी जली हुई झोंपड़ी को बार-बार बनाने का निश्चय व्यक्त करता है। मिठुआ पूछता है- 'और का जो कोई सौ लाख बार (आग) लगा दे तो वह क्या करेगा," उत्तर में सूरदास कहता है "तो हम सौ लाख बार बनाएँगे"। सूरदास का यह उत्तर उसकी दृढ़ता को दर्शाता है। वह झोंपड़ी जलने से विचलित नहीं है, वह उसके बार-बार पुनर्निर्माण के लिए तैयार है। अपना समय किसी से बदला लेने में नष्ट करने के स्थान पर झोंपड़ी के पुनः निर्माण में उसका सदुपयोग करना चाहता है। 

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी

प्रश्न 17.
सुभागी मारपीट सहकर भी भैरों के घर में क्यों रहना चाहती थी ? 
उत्तर :
सुभागी ने भैरों का घर छोड़ दिया था। भैरों उसे मारता-पीटता था। झोंपड़ी में आग लगने के बाद वह मारपीट सहकर भी भैरों के घर में रहना चाहती थी। वहाँ रहकर वह यह पता करना चाहती थी कि क्या भैरों ने ही रुपये चुराये थे ? यदि चुरायें थे तो कहाँ छिपाकर रखे थे? वह चाहती थी कि उसे रुपये मिल जायें और वह सूरदास को उसके रुपये लौटा दे। 

प्रश्न 18. 
'सूरदास की झोंपड़ी' कहानी द्वारा लेखक ने क्या संदेश दिया है ?
उत्तर :
अपनी झोंपड़ी में आग लगने पर भी सूरदास विचलित नहीं था। मिठुआ ने पूछा-'दादा अब हम कहाँ रहेंगे ?' सूरदास ने कहा - 'हम फिर झोंपड़ी बनायेंगे।' कोई लाख बार उसे जलायेगा तो हम लाख बार बनायेंगे। इस कहानी द्वारा प्रेमचंद संदेश देना चाहते हैं कि मनुष्य को विपत्ति के समय धैर्य से काम लेना चाहिए। उसे विचलित नहीं होना चाहिए। अविचलित रहकर निरन्तर प्रयास करने से ही सफलता मिलती है। इस कहानी में दृढ़ निश्चय के साथ कार्य करने और 'संघर्षशील रहने की प्रेरणा दी गई है। 

निबन्धात्मक प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1. 
'सूरदास की झोंपड़ी' के आधार पर बताइए कि सूरदास कैसा आदमी है ? उसके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ बताइए। 
अथवा 
'सूरदास' प्रतिशोध का नहीं बल्कि पुनर्निर्माण का ही दूसरा नाम है। 'सूरदास की झोंपड़ी' पाठको दृष्टि में रखते हुए सरदास की चारित्रिक विशेषताओं को लिखिए। 
अथवा 
सूरदास के व्यक्तित्व की किन्हीं तीन विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए। 
अथबा 
सूरदास की चारित्रिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए और आपको इस पात्र से क्या प्रेरणा मिलती है? 
उत्तर :
'सूरदास की झोंपड़ी' प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास 'रंगभूमि' काः अंश है। सूरदास इसका प्रमुख पात्र तथा नायक है। सूरदास के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

1. अन्धा भिखारी - सूरदास अन्धा भिखारी है। अपनी भीख की कमाई को वह संचित करता है तथा उसे कुछ अच्छे कामों में खर्च करना चाहता है।

2. दयालु और सहानुभूतिपूर्ण-सूरदास दयालु और सीधा-सच्चा मनुष्य है। सुभागी को पिटता देख वह उससे सहानुभूति रखता है और उसे भैरों की पिटाई से बचाता है। वह गाँव के अन्य जनों की सहायता के लिए भी तत्पर रहता है।

3. संहनशील-सूरदास अत्यन्त सहनशील है। यह जानकर भी कि भैरों ने उसकी झोंपड़ी जलाई है तथा रुपये चुराये हैं, बह कुछ नहीं कहता। अपने ऊपर लगाए गए लांछन को भी वह शांत मन से सहन करता है। 

4. भाग्यवादी - सूरदास भाग्य पर विश्वास करता है। वह मानता है कि मनुष्य को पूर्व जन्म के कर्मों का परिणाम भोगना पड़ता है। रुपये चोरी हो जाने पर उसका यह सोचना उसके भाग्यवादी होने का प्रमाण है "मेरे रुपये थे ही नहीं। शायद उस जन्म में मैंने भैरों के रुपये चुराये होंगे, यह उसी का दंड मिला है।" 

5. आत्म-विश्वास - सूरदास आत्म-विश्वास की भावना से भरा हुआ है। रुपये चोरी हो जाने पर वह अपनी योजनाओं के अपूर्ण रह जाने से चिन्तित तो है, परन्तु फिर से रुपया कमाकर उन्हें पूरा करने का विश्वास भी उसको हैं। 

6.विजय - गर्व से भरपूर-झोंपड़ी जलने और चोरी हो जाने से उत्पन्न निराशा के भाव सूरदास के मन में स्थायी नहीं हैं। बच्चों के मुख से सुनकर कि खेल में रोना अच्छी बात नहीं होती, वह तत्काल इस मनोदशा से स्वयं को मुक्त कर लेता है और उसका मन इस आशा से भर उठता है कि यदि कोई उसकी झोपड़ी में सौ लाख बार भी आग लगाएगा तो वह उसे बार-बार बनाएगा।

RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 1 सूरदास की झोंपड़ी 

प्रश्न 2.
"आशा से ज्यादा दीर्घजीवी और कोई वस्तु नहीं होती।"सूरदास की मन:स्थिति के आधार पर इस कथन की विवेचना कीजिए। 
उत्तर :
सूरदास को झोंपड़ी में रखी हुई रुपयों की थैली की चिन्ता थी। वह सोच रहा था . "रुपये पिघल भी गए होंगे तो चाँदी तो वहाँ पर ही होगी।" उसने इस आशा से उसी जगह, जहाँ छप्पर में थैली रखी थी, बड़े उतावलेपन और अधीरता से राख को टटोलना शुरू किया और पूरी राख छान डाली। उसे लोटा और तवा तो मिल गए परन्तु पोटली का कोई अता-पता न चला। 

झोंपड़ी के राख हो जाने पर भी सूरदास को रुपये नहीं तो चाँदी मिलने की आशा थी। उसके मन में यह आशा बनी रही । और वह राख को बार-बार टटोलता रहा। उसके पैर आशारूपी इसी सीढ़ी पर रखे थे। पैर का सीढ़ी से फिसलना आशा की डोर का टूटना था। जब आशा पूरी तरह नष्ट हो गई तो उसका मन गहरी निराशा के गड्ढे में जा पड़ा। जब उसके मन से रुपये मिलने की आशा पूरी तरह मिट गई तो वह राख के ढेर पर बैठकर रोने लगा। आशा के दीर्घजीवी होने का अर्थ है कि आशा मनुष्य के मन में लम्बे समय तक जीवित रहती है। काफी मुश्किलें आने पर भी वह आशा को नहीं छोड़ता। सवेरा होने पर वह फिर से राख को बटोरकर एक जगह करने लगा।
 
प्रश्न 3.
भैरों को प्राप्त सूरदास के पाँच सौ रुपयों को देखकर जगधर की जो मनःस्थिति हुई, उसका वर्णन कीजिए। 
उत्तर :
भैरों ने जगधर के सामने सूरदास की झोपड़ी में आग लगाना तथा उसके रुपये चुराना स्वीकार किया। उसने जगधर को बताया कि थैली में पाँच सौ से कुछ ऊपर ही रुपये थे। इससे जगधर भैरों के प्रति ईर्ष्यालु हो उठा। भैरों को इतने सारे रुपये मिल जाएँ और वह मौज मस्ती करे यह बात जगधर को स्वीकार नहीं थी। रुपये चाहे चोरी के ही हों पर जगधर को इससे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था। वह व्याकुलता के साथ सोच रहा था-तकदीर इस तरह खुलती है। यहाँ कभी पड़ा हुआ पैसा भी नहीं मिला। 

पाप-पुण्य की बात भी नहीं है। वह दिन भर फेरी लगाकर कौन-सा पुण्य करता है ? दमड़ी-कौड़ियों के लिए डंडी मारता है, कम तौलता है, तेल की मिठाई को घी की बताकर बेचता है। इस तरह ईमान गँवाने पर भी कुछ नहीं मिला। भैरों ने गुनाह किया तो उसे कुछ मिला तो है। यदि ऐसा ही कोई माल उसके हाथ लग जाता तो उसका भी जीवन सफल हो जाता। इस प्रकार उसका मन भैरों के प्रति ईर्ष्या से भर उठा। ईर्ष्या की इसी मनोदशा में जगधर ने भैरों को रुपये वापस करने की सलाह दी। उसने भैरों को पुलिस का डर दिखाया। ईर्ष्या के साथ ही जगधर का मन अत्यन्त व्याकुल हो उठा। वह अपने भाग्य को कोसने लगा। 

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प्रश्न 4.
सूरदास अपनी रुपयों की थैली के लिए व्याकुल था परन्तु वह थैली भैरों के पास है, यह बात पता चलने पर उसकी क्या प्रतिक्रिया थी? 
उत्तर : 
सूरदास अपने संचित रुपयों को झोंपड़ी की राख में तलाश करते-करते राख से पूरी तरह सन गया था। वह राख को बटोरकर आटे की तरह गूंथ रहा था। उसका पसीना बह रहा था और पूरे शरीर पर राख लिपटी थी। तभी जगंधर ने आकर उससे पूछा "सूरे, क्या ढूँढते हो?" सूरदास ने कहा "यही लोटा-तवा देख रहा था।" जगधर ने फिर पूछा."और वह थैली किसकी है, जो भैरों के पास है ?" सूरदास समझ गया कि झोपड़ी में आग लगाने से पहले रुपये भैरों ने चुरा लिए होंगे। 

परन्तु उसने जगधर के सामने यह बात स्वीकार नहीं की। उसने उत्तर दिया-"मेरे पास थैली-वैली कहाँ ? होगी किसी की। थैली होती, तो भीख माँगता ?" जगधर ने उसे टोका-"मुझसे उड़ते हो ? भैरों मुझसे स्वयं कह रहा था कि झोंपड़ी में धरन के ऊपर यह थैली मिली। पाँच सौ रुपये से कुछ ऊपर हैं।" सूरदास ने स्पष्ट इनकार करते हुए कहा "वह तुमसे हँसी करता होगा। साढ़े पाँच रुपये तो कभी जुड़े ही नहीं, साढ़े पाँच सौ कहाँ से आते ?" तभी सुभागी वहाँ आ पहुँची। उसे भी जगधर के कथन पर विश्वास था परन्तु सूरदास उस थैली को अपनी स्वीकार करने को तैयार नहीं हुआ। 

प्रश्न 5. 
'सूरदास की झोंपड़ी'-पाठ में सूरदास के माध्यम से प्रेमचंद ने क्या संदेश दिया है ? 
अथवा 
'सूरदास की झोंपड़ी' कहानी से उभरने वाले जीवन-मूल्यों का उल्लेख करते हुए आज के संदर्भ में उनकी उपयोगिता पर लगभग 150 शब्दों में प्रकाश डालिए। 
अथवा 
'सूरदास की झोंपड़ी' पाठ की वर्तमान समय में प्रासंगिकता क्या है? अपने विचार लिखिए। 
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ 'सूरदास की झोंपड़ी' प्रेमचंद के प्रसिद्ध उपन्यास 'रंगभूमि' का एक अंश है। सूरदास इसका मुख्य पात्र तथा नायक है। उपन्यासकार ने उसके चरित्र के माध्यम से अपने पाठकों को जीवन का सर्वोत्तम संदेश देने का प्रयास किया है।

मानव जीवन संघर्षपूर्ण होता है। मनुष्य के सामने अनेक समस्याएँ आती-जाती हैं। उसे अनेक विघ्न-बाधाओं से होकर जीवन की नौका खेनी होती है। समाज के अनेक लोगों की अकारण ईर्ष्या-द्वेष और दुश्मनी सहनी होती है। सूरदास अन्धा है, भिखारी है। वह अपना गुजारा भीख माँगकर करता है। 

वह फूस की झोपड़ी में शांति से रहता है। वह किसी को सताता नहीं। अपने दयालु स्वभाव के कारण वह भैरों की पत्नी सुभागी को उसके पति की पिटाई से बचाता है। इस कारण उसको भैरों की दुश्मनी का शिकार बनना पड़ता है। भैरों उसकी झोंपड़ी जला देता है और रुपये चुरा लेता है। वह उसे रोता हुआ . देखना चाहता है। फिर भी, सूरदास उसके प्रति दुर्भावना नहीं रखता। 

सूरदास के माध्यम से प्रेमचंद संदेश देना चाहते हैं कि मनुष्य को निसशा, अवसाद और ग्लानि से बचना चाहिए। उसे दूसरों पर दोषारोपण न करके स्वयं अपनी शक्ति और सामर्थ्य पर भरोसा रखना चाहिए। मनुष्य को आशा की भावना नहीं त्यागनी चाहिए। उसे आत्म-विश्वास की भावना के साथ कठोर श्रम करके अपने जीवन को सफल बनाना चाहिए। 

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प्रश्न 6. 
भैरों, जगधर तथा सूरदास के बारे में सुभागी क्या सोचती थी? 
उत्तर :
सुभागी भैरों की पत्नी थी। प्रस्तुत कहानी के पात्र भैरों, जगधर तथा सूरदास के बारे में सुभागी की सोच निम्नवत - 
भैरों - सुभागी की दृष्टि में भैरों अच्छा आदमी नहीं था। वह उसकी परवाह नहीं करता था। उसने कभी अपने मन से सुभागी को धेले का सिंदूर भी नहीं दिया था। भैरों सदैव उसके चरित्र पर शंका करता था। इसलिए वह उसके साथ रहना नहीं चाहती थी। 

जगधर - सुभागी जगधर को भी भैरों से कम नहीं समझती थी। वह उसे भैरों का अवतार मानती थी। उसका विचार था कि सूरदास की झोपड़ी में आग लगाने तथा उसके रुपये चुराने की शिक्षा भैरों को जगधर ने ही दी होगी। जगधर के ईर्ष्या-भाव से वह अपरिचित न थी। 

सूरदास - सुभागी की दृष्टि में सूरदास एक अच्छा आदमी था। वह किसी को सताता नहीं था, न धोखा देता था। . उसने भैरों की मार से उसे बचाया था। वह भैरों के घर से सूरदास के रुपये खोजकर उसे लौटाना चाहती थी। इस कारण मारपीट सहन करके भी वह भैरों के घर में रहना चाहती थी।

सूरदास की झोंपड़ी Summary in Hindi

लेखक परिचय :

प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिले के लमही ग्राम में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय था। प्रेमचंद की प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में हुई। मैट्रिक के बाद वे अध्यापन करने लगे। स्वाध्याय के रूप में ही उन्होंने बी.ए. तक शिक्षा ग्रहण की। असहयोग आंदोलन के दौरान उन्होंने सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया अं । तरह लेखन-कार्य के प्रति समर्पित हो गए। 

प्रेमचंद ने अपने लेखन की शुरुआत पहले उर्दू में नवाबराय के नाम से की, बाद में हिंदी में लिखने लगे। उन्होंने अपने साहित्य में किसानों, दलितों, नारियों की वेदना और वर्ण-व्यवस्था की करीतियों का मार्मिक चित्रण किया है। वे साहित्य को स्वांतःसुखाय न मानकर सामाजिक परिवर्तन का एक सशक्त माध्यम मानते थे। वे. एक ऐसे साहित्यकार थे, जो समाज की वास्तविक स्थिति को पैनी दृष्टि से देखने की शक्ति रखते थे। उन्होंने समाज-सुधार और राष्ट्रीय-भावना से ओतप्रोत अनेक उपन्यासों एवं कहानियों की रचना की। कथा-संगठन, चरित्र-चित्रण, कथोपकथन आदि की दृष्टि से उनकी रचनाएँ बेजोड़ हैं। उनकी भाषा सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल के निकट है। हिंदी भाषा को लोकप्रिय बनाने में उनका विशेष योगदान है। 

संस्कृत के प्रचलित शब्दों के साथ-साथ उर्दू की रवानी इसकी विशेषता है, जिसने हिंदी कथा-भाषा को नया आयाम दिया। . उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं-मानसरोवर (आठ भाग), गुप्तधन (दो भाग) (कहानी संग्रह); निर्मला, सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान (उपन्यास); कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी (नाटक); विविध प्रसंग (तीन खंडों में, साहित्यिक और राजनीतिक निबंधों का संग्रह); कुछ विचार (साहित्यिक निबंध)। उन्होंने माधुरी, हंस, मर्यादा, जागरण आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया। 

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पाठ-सार :

परिचय - 'सूरदास की झोंपड़ी' प्रेमचंद के उपन्यास रंगभूमि का एक अंश है। इसका पात्र सूरदास झोंपड़ी जला दिए जाने के बावजूद भी प्रतिशोध लेने में विश्वास नहीं करता। झोंपड़ी में आग रात में लोग सो रहे थे। दो बजे होंगे कि अचानक सूरदास की झोपड़ी में ज्वाला धधक उठी। आग की लपटें ऊँची उठ रही थीं। सैकड़ों आदमी वहाँ जमा हो गए थे। आग बुझाने के प्रयास हो रहे थे। अधिकांश लोग चुपचाप निराशापूर्ण दृष्टि से जलती हुयी झोंपड़ी देख रहे थे।

सूरदास का आना-अचानक सूरदास दौड़ता हुआ आया और चुपचाप वहाँ खड़ा हो गया। बजरंगी ने पूछा-'आग कैसे लगी सूरदास, चूल्हे में तो आग नहीं छोड़ दी थी ?' लपटें शान्त होते-होते पूरी आग बुझ गई। सब लोग चले गये। सन्नाटा छा गया। सूरदास वहाँ बैठा रहा। झोंपड़ी के जलने का उसे इतना दुःख न था, जितना उस छोटी-सी पोटली के जलने का था, जिसमें उसकी जिन्दगी-भर की कमाई थी। उस पोटली में पाँच-सौ रुपये से कुछ ज्यादा ही थे।

झोंपड़ी में प्रवेश - अब राख ठंडी हो चुकी थी। सूरदास अन्दाज से द्वार की ओर से झोंपड़ी में घुसा। दो कदम चलने पर पैर भूबल में पड़ गया। राख के नीचे आग थी। जल्दी से पैर पीछे हटाया और राख को लकड़ी से उलट-पलट दिया। अब राख इतनी गरम नहीं थी। जहाँ छप्पर में पोटली रखी थी, उसी जगह की सीध में वह राख को टटोलने लगा। तड़का हो गया। सूरदास राखं को इस आशा से बटोरकर एक जगह कर रहा था कि शायद पोटली मिल जाय।

जगधर का आना - जगधर ने आकर पूछा कि कहीं उस पर तो उसका शक नहीं है? सूरदास ने इनकार किया। भैरों ने जगधर से कहा था कि वह सूरदास.को रुला देगा। उसे विश्वास हो गया कि यह भैरों की ही शरारत है। वह सीधा उसके पास पहुँचा और उसको विश्वास में लेकर पूछा तो उसने आग लगाना और चोरी करना स्वीकार कर लिया।

जगधर की सलाह - जगधर दिल का बुरा नहीं था परन्तु उसे यह सहन नहीं था कि भैरों यकायक इतने रुपयों का स्वामी बन जाय। उसने भैरों को रुपये लौटा देने की सलाह दी, पुलिस का भय दिखाया परन्तु भैरों रुपये लौटाने को तैयार नहीं हुआ भैरों का प्रतिशोध-भैरों ने कहा - यह सुभागी को बहका ले जाने का जुर्माना है। जब तक सूरदास को रोते नहीं देख लूँ, मेरे मन का काँटा नहीं निकलेगा। उसने सुभागी पर डोरे डाले हैं। मेरी आबरू बिगाड़ी है। इन रुपयों को लेकर मुझे पाप नहीं लग सकता।

सूरदास से बातचीत - जगधर सूरदास के पास आया तो वह राख बटोरकर उसे आटे की तरह गूंथ रहा था। जगधर ने पूछ - 'क्या ढूँढ़ रहे हो ?' सूरदास के द्वारा बात छिपाने पर उसने बताया कि उसके रुपयों की थैली तो भैरों के पास है। थैली में पाँच सौ से कुछ ज्यादा रुपये थे, मगर सूरदास ने थैली को अपना होना स्वीकार ही नहीं किया।

सुभागी का आना - इतने में सुभागी वहाँ आ पहुँची। रात-भर वह मंदिर के पीछे अमरूद के बाग में छिपी थी। वह जानती थी कि आग भैरों ने लगाई है। भैरों द्वारा अपने ऊपर लगाए गए कलंक की चिन्ता उसे नहीं थी। लेकिन सूरदास पर झूठे आरोप से वह दु:खी थी। भैरों के व्यवहार के कारण उसने उसके पास न लौटने का निश्चय कर लिया था। . सुभागी और जगधर का आग्रह-सुभागी और जगधर के बार-बार पूछने पर भी सूरदास ने थैली अपनी होने की बात नहीं मानी। सूरदास का चेहरा देखकर सुभागी को विश्वास हो गया कि सूरदास झूठ बोल रहा है।

उसने कहा-'चाहे भैरों उसे टे परन्तु वह उसके घर में ही रहेगी। कभी तो रुपये उसके हाथ लगेगे। उसी के कारण सूरदास उजड़ा है, वही उसे सोच रहा था कि रुपये वह फिर से कमायेगा और जो काम वह करना चाहता था, उसे भविष्य में अवश्य पूरा करेगा। वह अधीर हो उठा, सोचने लगा - सुभागी का क्या होगा ? कहाँ जाएगी बेचारी। यह कलंक मेरे सिर पर ही लगना था। धन गया, आबरू गई, घर गया। सूरदास अकेला बैठा था। उसकी आँखों से आँसू बह रहे थे। 

निराशा और वेदना से मुक्ति - अचानक सूरदास ने सुना - 'तुम खेल में रोते हो।' यह शब्द सुनते ही सूरदास की निराशा, ग्लानि, चिन्ता और क्षोभ दूर हो गए। वह उठकर खड़ा हो गया और दोनों हाथों में राख भरकर हवा में उड़ाने लगा। मिठुआ, घीसू और मोहल्ले के लड़के भी इस खेल में शामिल हो गए और राख को हवा में फेंकने लगे। थोड़ी देर में वहाँ जमीन पर केवल काला निशान बाकी रह गया। मिठुआ ने पूछा-"दादा, अब हम कहाँ रहेंगे ?" उसने उत्तर दिया-"दूसरा घर बनाएँगे।" "और फिर कोई आग लगा दे तो ?" उत्तर मिला-"तो फिर बनाएँगे।" मिठुआ ने बच्चों की रुचि के अनुसार पूछा-"और जो कोई सौ लाख बार (आग) लगा दे ?" सूरदास ने भी बच्चों जैसी सरलता से उत्तर दिया- "तो हम भी सौ लाख बार बनाएँगे।" 

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कठिन शब्दार्थ :

  • अकस्मात् = अचानक। 
  • निद्रावस्था = नींद की स्थिति। 
  • उपचेतना = नींद में जागते रहने का अहसास। 
  • दम-के-दम = थोड़ी देर। 
  • स्वर्ण-कलश = सोने से बना चमकीला कलसा। 
  • कंपित होना = काँपना। 
  • प्रतिबिंब = परछाँई। 
  • ईर्ष्या = द्वेष, जलन। 
  • नैराश्य = निराशा। 
  • अग्निदाह = आग जलना। 
  • चिताग्नि = चिता की आग। 
  • कलेजा ठंडा होना = शान्ति मिलना। 
  • नाहक = बेमतलब, अकारण। 
  • सुभा = शक, संदेह। 
  • स्वाहा = नष्ट, जलना। 
  • ई = खोटापन, दुष्टता। 
  • सत्यानाश = सर्वनाश।
  • धरनं = वह ढाँचा जिस पर फूस का छप्पर होता है। 
  • रही-सही = शेष बची। 
  • आलोचना = निंदा, बुराई।
  • सन्नाटा = पूर्ण शांति। 
  • पोटली = गट्ठर, गठरी। 
  • यातना = कष्ट। 
  • निष्कर्ष = परिणाम। 
  • पितर = पूर्वज। 
  • नामलेवा = संतान। 
  • उद्धार = संसार से मुक्ति। 
  • संचित = इकट्ठा। 
  • लोक = यह संसार। 
  • परलोक = मृत्यु के 
  • दुनिया = सांसारिक कर्तव्य। 
  • आशा-दीपक = आशा की किरण, आशा का दीपक (तत्पुरुष समास)।
  • पिघलना = गलना। 
  • बटोर = इकट्ठा, एकत्र। 
  • तस्कीन = तसल्ली, दिलासा। 
  • पिंडा = जौ के आटे का एक प्रकार का लड्डू जो पूर्वजों को अर्पित किया जाता है। 
  • गला छूटना = मुक्ति मिलना। 
  • सगाई = शादी से पहले की एक रस्म। 
  • ठोंक-ठोंककर खाना = स्वयं रोटी बनाना और खाना। 
  • जुग = युग, लम्बा समय। 
  • पाँव फैलाना = बहुत बड़ी अव्यावहारिक योजना बनाना। 
  • अटकल = अनुमान। 
  • भूबल = गरम राख। 
  • असह्य = सहन न करने योग्य। 
  • सीध = दिशा। 
  • टटोलना = उंगलियों से तलाश करना। 
  • छप्पर = फूस की छान। 
  • दिल धड़कना = आशंका होना, डरना। 
  • उतावली = व्याकुलता, व्यग्रता। 
  • अधीरता = धैर्य या धीरज न होने की अवस्था। 
  • अथाह = बहुत गहरा। 
  • अभिलाषा = इच्छा। 
  • तड़का = सवेरा। 
  • दीर्घजीवी = बहुत समय तक नष्ट न होने या रहने वाली। 
  • अदावत = दुश्मनी, शत्रुता। 
  • चिलम = तम्बाकू और आगरखने का एक पात्र। 
  • चूल्हा = खाना पकाने के लिए आग जलाने का एक स्थान। 
  • दिल साफ होना = संदेह न होना। 
  • शरारत = शैतानी।
  • झलकना = प्रकट होना। 
  • परवा = चिन्ता। 
  • सबूत = प्रमाण। 
  • दियासलाई = माचिस। 
  • दिल की आग ठंडी होना = मन शान्त होना। 
  • उत्सुक = जानने की इच्छा वाला, जिज्ञासु। 
  • जरीबाना = जुर्माना। 
  • जतन = यत्न, कोशिश। 
  • आड़ = पीछे, छिपाकर
  • पाजी = धूत। 
  • राहगार = पथिक, मुसाफिर। 
  • गरमी = घमड, अकड़। 
  • भोज-भात = दावत। 
  • बखत = समय। 
  • बल्लमटेर = लुटेरे, गुंडे। 
  • बिकरी = बिक्री। 
  • मसक्कत = परिश्रम, मेहनत । 
  • हजम होना = पचना। 
  • खोटा = बुरा। 
  • नेकनीयती = अच्छी भावना। 
  • हसद = ईर्ष्या, डाह। 
  • गेहूँ तौलना = व्यापार। 
  • जानलेवा = मारने वाली। 
  • डोरे डालना = वश में करना। 
  • दिल का काँटा निकलना = मन का कष्ट दूर होना। 
  • आबरू बिगाड़ना = इज्जत खराब करना। 
  • खोंचा = खोमचा, फेरी लगाकर बिक्री करने का सामान। 
  • छाती पर साँप लोटना = ईर्ष्या होना। 
  • पुन्न = पुण्य। 
  • दमड़ी-छदाम कौड़ी = प्राचीन समय में सिक्कों के रूप में प्रयुक्त वस्तुएँ। 
  • टेनी मारना = डंडी मारना, कम तौलना। 
  • खोटे = कम तौल के, दोषपूर्ण। 
  • ईमान = धर्म। 
  • गुनाह = अपराध। 
  • बेलज्जत = निरर्थक। 
  • जिंदगानी = जीवन। 
  • सुफल = सफल। 
  • अंकुर जमा = उत्पन्न हुई। 
  • दरिद्रता = गरीबी। 
  • पिंडदान = मृत व्यक्ति को आटे के बने गोले अर्पित करना। 
  • दीन = गरीब। 
  • सचय = सग्रह, इकट्ठा करना। 
  • उड़ते हो = छुपाते हो। 
  • बेसी = ज्यादा, अधिक। 
  • कलंक = धब्बा, दोष। 
  • सर्वनाश = सब कुछ नष्ट होना। 
  • झिझकी = संकोच हुआ। 
  • अवतार = स्वरूप। 
  • ठोंके = खाना बनाए। 
  • चरण-धोकर पीना = खुशामद करना। 
  • धेला = आधा पैसा। 
  • सेंदूर = सिंदूर। 
  • खसम = पति, स्वामी। करतूत = अनैतिक कार्य। 
  • कहीं का न रखना = बेइज्जती होना। 
  • झांसा देना = धोखा देना। 
  • पेट की थाह लेना = मन की गुप्त बात जानना। 
  • जाल फेंकना = योजना बनाना।
  • मंत्र देना = शिक्षा देना। 
  • रोटियाँ चलना = गुजारा होना। 
  • कान पकड़ना = दण्ड देना। 
  • बटोरना = इकट्ठा करना। 
  • रट लगाना = एक ही बात दोहराना। 
  • मार लाना = हड़पना।
  • चैन की बंसी बजाना = आरामपूर्वक जीवन बिताना। 
  • दूसरों के सामने हाथ पसारना = आर्थिक सहायता माँगना। 
  • भरी गंगा में = गंगा के पानी में खड़े होकर। 
  • बातों में आना = बहक जाना। घड़ी = समय। 
  • अन्वेषण = खोज। 
  • असह्य वेदना = असहनीय पीड़ा। 
  • चेहरा कह देता है = चेहरे को देखने से साफ पता चलता है। 
  • बिपत = विपत्ति, कष्ट। 
  • चैन = आराम। 
  • मारी-मारी फिरना = भटकना। 
  • चपत पड़ना = आर्थिक हानि। 
  • जी में आना = इच्छा होना। 
  • खरी-खोटी सुनाना = निन्दा-अपमान करना। 
  • मर्माहत = अत्यन्त दुःखी। 
  • ग्लानि = स्वयं से घृणा। 
  • क्षोभ = दुःख। 
  • गोते खाना = डूबना। 
  • बाजी हारना = खेल में हार होना। 
  • मैदान में डटे रहना = विरोधी का सामना करना, पीछे न हटना। 
  • त्योरियों पर बल पड़ना = चिन्तित होना। 
  • मालिन्य = मलिनता, गंदापन। 
  • तरंग = लहर। 
  • उद्दिष्ठ = निर्धारित, निश्चित। 
  • संयम = धैर्य। 
  • स्तूप = स्मृति-स्तम्भ। 
  • मारे प्रश्नों के = बार-बार प्रश्न पूछकर। 
  • संख्या = गिनती। 
  • रुचि = पसंद। 
  • बालोचित = बालकों जैसी। 
  • सरलता = सीधापन।
Prasanna
Last Updated on Nov. 23, 2023, 3:34 p.m.
Published Nov. 22, 2023