Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Hindi Antra Poem 10 रामचंद्रचंद्रिका Textbook Exercise Questions and Answers.
The questions presented in the RBSE Solutions for Class 12 Hindi are solved in a detailed manner. Get the accurate RBSE Solutions for Class 12 all subjects will help students to have a deeper understanding of the concepts. Students can access the class 12 hindi chapter 4 question answer and deep explanations provided by our experts.
प्रश्न 1.
देवी सरस्वती की उदारता का गुणगान क्यों नहीं किया जा सकता?
अथवा
केशवदास ने 'बानी जगरानी' की प्रशंसा में जो उद्गार व्यक्त किए हैं, उनका भाव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
वाग्देवी सरस्वती की महिमा और उदारता का गुणगान करना इसलिए असंभव है क्योंकि वह अपरम्पार है। बड़े-बड़े देवता, ऋषि और तपस्वी ही नहीं अपितु चतुर्मुख ब्रह्मा जी, पंचमुख महादेव जी और षड्मुख कुमार कार्तिकेय भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर सके तो भला एक मुख वाला मनुष्य उनकी अपार महिमा का वर्णन कैसे कर सकता है।
प्रश्न 2.
चारमुख, पाँचमुख और षटमुख किन्हें कहा गया है और उनका देवी सरस्वती से क्या सम्बन्ध है?
उत्तर :
चारमुख वाले हैं ब्रह्मा जी, जिन्हें सरस्वती का पति कहा गया है। पाँचमुख वाले हैं-शिवजी, जिन्हें सरस्वती का पुत्र कहा गया है और षटमुख वाले हैं - कुमार कार्तिकेय (स्कंद, शिवजी के पुत्र) जिन्हें सरस्वती का नाती (पौत्र) कहा गया है।
प्रश्न 3.
कविता में पंचवटी के किन गुणों का उल्लेख किया गया है? '
अथवा
'पंचवटी वर्णन' में कवि ने पंचवटी की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
उत्तर :
पंचवटी गुणों में धूर्जटी (अर्थात् भगवान शिव) के समान है। यहाँ रहने वाले लोगों के दुःख नष्ट हो जाते हैं और छल-प्रपंच भी नष्ट हो जाते हैं। यहाँ जो व्यक्ति निवास करते हैं वे मृत्यु की इच्छा नहीं करते क्योंकि यहाँ सब प्रकार के सुख ही सुख हैं। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य विलक्षण है जिसका अवलोकन करने हेतु बड़े-बड़े ऋषि-मुनि भी आते हैं और उनकी समाधि भंग हो जाती है। यहाँ रहने वाले व्यक्ति को अनायास ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है क्योंकि उसे तपस्वियों, साधुओं का सत्संग प्राप्त होता है। यही नहीं यहाँ उसे मुक्ति भी अनायास ही मिल जाती है।
प्रश्न 4.
तीसरे छन्द में संकेतित कथाएँ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
(i) सिंधु तरयो उनको बनरा'-हनुमान के द्वारा समुद्र लांघना - सीता की खोज के लिए सभी वानर समुद्र किनारे एकत्र थे। उन्हें संपाती नामक गिद्ध ने बता दिया था कि सीता लंका में अशोक वाटिका में हैं। अब वहाँ जाकर सीता को देखना था. पर बीच में इतना बड़ा सागर था। जामवंत ने हनुमान को प्रेरित किया और हनुमान समुद्र को लांघकर लंका आ गए। अंगद ने इसी ओर संकेत करते हुए कहा कि राम का एक छोटा-सा वानर (हनुमान) अनुलंध्य समुद्र को लांघकर तेरी लंका में आ गया और तू राम के प्रताप को नहीं जान पाया। यह राम का ही प्रताप था कि उनका एक वानर समुद्र को लांघ सका।
(ii) 'तुम पै धनुरेख गई न तरी'-रावण ने पंचवटी में पहुँचकर सीता हरण की योजना बनाई, मारीच ने स्वर्णमृग बनकर राम को घने जंगल में भटकने हेतु बाध्य कर दिया। जब राम ने उसे बाण मारा तो गिरते समय उसने 'हा लक्ष्मण' कहकर पुकार लगाई जिससे यह भ्रम हो जाए कि राम के प्राण संकट में हैं। सीता ने उस केरुण पुकार को सुनकर कुटी की रक्षा करते लक्ष्मण को राम की सहायता हेतु जाने के लिए विवश किया। उस समय लक्ष्मण ने उस कुटिया के चारों ओर अपने धनुष से एक रेखा खींच दी और सीता जी से कहा कि आप इस रेखा से बाहर मत आना, यह आपकी रक्षा करेगी। यह कहकर लक्ष्मण जी चले गए।
कुंटिया में सीता को अकेला पाकर रावण एक साधु का वेश बनाकर वहाँ आया और 'भिक्षां देहि' की पुकार लगाई। जब सीता जी उसे भिक्षा देने आईं तो उसने उस रेखा से बाहर आने को कहा। रावण उस रेखा को पार नहीं कर सका, क्योंकि जैसे ही वह रेखा के भीतर पैर रखता वहाँ आग जलने लगती। वह समझ गया कि यह अभिमंत्रित रेखा है और अगर मैंने इसे पार किया तो जलकर भस्म हो जाऊँगा। इसलिए उसने सीता से कहा कि आप इस रेखा से बाहर आकर भिक्षा दें, मैं बँधी हुई भिक्षा (रेखा के भीतर से दी गई भिक्षा) ग्रहण नहीं कर सकता। उसकी बात मानकर जब सीता जी रेखा से बाहर आईं तोण कर लिया। इसी घटना की ओर यहाँ अगद सकेत कर रहा है और रावण को बता रहा है कि तुम इतने कायर हो कि तुमसे धनुष की वह रेखा तक पार नहीं की जा सकी।
(iii) लंका दहन की घटना.(लंक जराइ जरी) - अशोक वाटिका में पहुँचकर हनुमान ने सीता के दर्शन किए, फल खाए और फिर वाटिका को उजाड़ने लगे। वहाँ के रक्षकों ने जब प्रतिरोध किया तो उन्हें मार भगाया। अक्षयकुमार को भेजा गया पर हनुमान ने उसे भी मार डाला। तब प्रबल प्रतापी मेघनाद आया और ब्रह्मास्त्र का प्रयोग करके उसने हनुमान को नागपाश में बाँध लिया। बँधे हनुमान को ले जाकर रावण के दरबार में पेश किया गया। उन्हें दण्ड देने के लिए तेल भीगी रुई उनकी पूँछ पर लपेट दी गई और उसमें आग लगा दी। हनुमान ने उछल-कूद करके बंधन तोड़ दिए और जलती पूँछ लेकर लंका के भवनों में उछल-कूद करते हुए आग लगा दी। सारी लंका जलकर राख हो गई फिर समुद्र में कूदकर हनुमान ने पूँछ में लगी आग बुझा दी। अंगद ने यही घटना कहकर रावण को हतोत्साहित किया कि तुमसे एक वानर को तो बाँधा नहीं गया और वह तुम्हारी लंका जलाकर सकुशल चला गया।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए.
(क) पति बनें चारमुख पूत बनै पंचमुख नाती बनै षटमुख तदपि नई-नई।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष)-सरस्वती की महिमा और उदारता अपरम्पार है। साधारण व्यक्ति तो उनकी महिमा का वर्णन कर ही नहीं सकता क्योंकि जो उनके निकट सम्बन्धी हैं - पति, पुत्र और पौत्र, वे भी उनकी महिमा का वर्णन नहीं कर पाते, जबकि वे परम समर्थ हैं। ब्रह्मा जी के चारमुख हैं, शंकर जी के पाँचमुख और षडानन के छ: मुख हैं। इतनी सामर्थ्य होते हुए भी वे वाग्देवी सरस्वती की महिमा और उदारता का बखान नहीं कर पाते। तीन पीढ़ी पूरा जोर लगाकर भी जब उनकी (सरस्वती) महिमा का बखान नहीं कर सकी तो भला मैं तुच्छ बुद्धि का मनुष्य एक मुख से उनकी महिमा का वर्णन कैसे कर सकूँगा। यही बताना कवि का लक्ष्य है।
कला-पक्ष यहाँ योग्य को अयोग्य ठहराकर अतिशयोक्ति (सम्बन्धातिशयोक्ति) अलंकार का विधान किया गया है तथा व्यंजना सौन्दर्य है। दंडक छन्द का प्रयोग किया गया है। कवि ने ब्रजभाषा में अपनी रचना प्रस्तुत की है। भाषा में संस्कृतनिष्ठता है।
(ख) चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचवटी।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष) - यह पंचवटी गुणों में भगवान शंकर के समान है। जिस प्रकार शंकर जी अपने सम्पर्क (शरण) में आए व्यक्ति को मुक्ति प्रदान करते हैं उसी प्रकार जो व्यक्ति भी इस पंचवटी के सम्पर्क में आता है अर्थात् यहाँ निवास करता है उसे अनायास ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है। पंचवटी में सर्वत्र मुक्तिरूपी नर्तकी का नृत्य चलता रहता है। यहाँ रहने वाले प्राणियों को बिना प्रयास के ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। पंचवटी के सौन्दर्य तथा श्रेष्ठता का चित्रण हुआ है।
कला-पक्ष मक्तिनटी में रूपक अलंकार है। पंचवटी को शंकर के समान बताया है अतः उपमा अलंकार है। सवैया छन्द में रचना प्रस्तुत की गई है। कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है जो संस्कृतनिष्ठ है। शब्द चमत्कार पर बल दिया गया है।
(ग) सिंधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष) - अंगद रावण से कहने लगा कि तू मुझसे राम के प्रताप के बारे में पूछता है। सच तो यह है कि तू राम की बराबरी में कहीं खड़ा नहीं हो सकता। कहाँ राम और कहाँ तू ? उनके एक छोटे से वानर ने अनुलंध्य समुद्र को लांघकर अभूतपूर्व कार्य किया और तुम उस रेखा को भी नहीं लांघ सके जो पंचवटी में सीता की कुटिया के चारों ओर लक्ष्मण ने अपने धनुष की नोक से खींच दी थी। यहाँ राम की महत्ता प्रकट की गई है।
कला-पक्ष - रावण को उसकी तुच्छता का बोध व्यंजना के माध्यम से कराया गया है। वनरा का तात्पर्य है छोटा-सा वानर अर्थात् हनुमान तो हमारे छोटे से वानर हैं। वानर सेना में उनसे भी धुरंधर बड़े-बड़े वानर हैं। ऐसा कहकर अंगद रावण को भयभीत करने का प्रयास कर रहा है। यहाँ सवैया छन्द है। कवि ने ब्रजभाषा का प्रयोग किया है। ब्रजभाषा संस्कृतनिष्ठ है। शब्दों का चमत्कार देखने योग्य है।
(घ) तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष)-हनुमान को मेघनाद बाँधकर रावण की सभा में ले आया। उन्हें दण्ड देने हेतु पूँछ पर तेल, रुई लगाकर आग लगा दी गई और हनुमान उछलते-कूदते लंका के भवनों पर चढ़ गए। चारों ओर उन्होंने आग लगा दी। सारी लंका जल गई। अंगद इसी घटना का स्मरण दिला रहा है। तुम उस वानर (हनुमान) को बाँधकर नहीं रख पाए और उसने तुम्हारी सोने-चाँदी से जड़ी लंका को जलाकर राख कर दिया। यह राम का प्रताप नहीं तो और क्या है ? लंका दहन की अन्तर्कथा द्वारा राम के पराक्रम का वर्णन हुआ है।
कला-पक्ष - प्रस्तुत पंक्ति की रचना ब्रजभाषा में हुई है, जो संस्कृतनिष्ठ है। इसमें व्यंजना का सौन्दर्य दर्शनीय है। कवि ने सवैया छन्द का प्रयोग किया है। 'तेलनि तूलनि', 'जराइ जरी' में छेकानुप्रास है। 'जरी-जरी' में यमक अलंकार है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित का आशय स्पष्ट कीजिए
(क) भावी भूत वर्तमान जगत बखानत है केसोदास, क्यों हू ना बखानी काहू पै गई।
(ख) अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान गटी।
उत्तर :
(क) माता सरस्वती की महिमा और उदारता का वर्णन कर पाना संभव नहीं है। भूतकाल के लोगों ने इसका वर्णन किया पर कर नहीं पाए। वर्तमान काल के लोग उनकी महिमा का वर्णन कर रहे हैं, पर कर नहीं पा रहे। इसी प्रकार भविष्य काल के लोग उनकी महिमा और उदारता का वर्णन करेंगे पर. कर नहीं पाएँगे क्योंकि वह अपरम्पार है और नित नवीन है।
(ख) पंचवटी के माहात्म्य का वर्णन करता हुआ कवि कहता है कि यहाँ के निवासियों के पाप-समूह की बेड़ियाँ कद जाती हैं और गंभीर ज्ञान की गठरी स्वतः प्रकट हो जाती है अर्थात् पंचवटी में निवास करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति को ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
योग्यता विस्तार -
प्रश्न 1.
केशवदास की 'रामचन्द्र चन्द्रिका' से यमक अलंकार के कुछ अन्य उदाहरणों का संकलन कीजिए।
उत्तर :
केशवदास की 'रामचन्द्र चन्द्रिका' में यमक अलंकार का प्रयोग बहुत अधिक हुआ हैं। कुछ उदाहरण प्रस्तुत -
प्रश्न 2.
पाठ में आए छन्दों का गायन कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
छात्र कक्षा में इन छन्दों का सस्वर गायन करें। प्रश्न 3. केशवदास 'कठिन काव्य के प्रेत हैं' इस विषय पर वाद-विवाद कीजिए।
उत्तर :
पक्ष में केशवदास अलंकारवादी कवि थे। वे काव्य में अलंकारों का सामान्य प्रयोग करते थे। शब्द चमत्कार पर भी उनका ध्यान केन्द्रित रहता था। इसीलिए उनके काव्य में यमक, श्लेष, अनुप्रास आदि अलंकारों का चमत्कारपूर्ण प्रयोग किया गया है। केशव ने कहीं-कहीं अप्रचलित शब्दों का प्रयोग भी किया है जिससे काव्य में क्लिष्टता आ गई है जैसे—विषमय यह गोदावरी अमृतन को फल देत। यहाँ विष का प्रयोग जल के अर्थ में किया गया है जो सामान्यतः लोगों को पता नहीं। इन्हीं सब कारणों से हम कह सकते हैं कि केशव कठिन काव्य के प्रेत हैं।
विपक्ष में केशवदास की कविता में क्लिष्टता है ऐसा अभी मेरे विपक्षी बन्धुओं ने प्रतिपादित किया किन्तु मैं उनके तर्कों से सहमत नहीं। कवि को अपनी इच्छानुसार अलंकारों, शब्दों का प्रयोग करने की स्वतंत्रता होती है। अब यदि पाठक को इनकी जानकारी नहीं है तो उसके लिए कवि को दोष देना ठीक नहीं है। रीतिकाल का काव्य चमत्कार प्रधान है। ध्यान . रहे कि केशव दास दरबार (Court) के कवि थे, जनता के कवि नहीं। दरबारी काव्य में चमत्कार प्रदर्शन स्वाभाविक प्रवृत्ति है। इसलिए केशव दास को कठिन काव्य का प्रेतं कहना उनके प्रति अन्याय है। मैं उन्हें सहृदय कवि मानता हूँ। संस्कृत में निष्णात होने के कारण कहीं-कहीं उनके काव्य में थोड़ी बहुत क्लिष्टता आ गई है जो स्वाभाविक है।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
कवि केशवदास ने माता सरस्वती के गुणों को कैसा बताया है?
उत्तर :
कवि केशवदास ने माता सरस्वती के गुणों को अवर्णनीय बताया है।
प्रश्न 2.
कवि केशव के अनुसार भगवान शिव की तरह मुक्ति कौन देती है?
उत्तर :
कवि केशव के अनुसार भगवान शिव की तरह मुक्ति पंचवटी देती है।
प्रश्न 3.
'धनुरेख गई न तरी।' पंक्ति में धनुरेख से क्या आशय है?
उत्तर :
'धनुरेख गई न तरी।' पंक्ति में धनुरेख से आशय लक्ष्मण द्वारा धनुष से खींची गई रेखा से है।
प्रश्न 4.
पंचवटी का वर्णन कवि ने किस छंद में किया है?
उत्तर :
पंचवटी का वर्णन कवि ने दूसरे छंद में किया है।
प्रश्न 5.
'उनको बनरा' में 'बनरा' शब्द से क्या आशय है?
उत्तर :
'उनको बनरा' में 'बनरा' शब्द से आशय हनुमान से है।
प्रश्न 6.
पंचवटी की तुलना किससे की गई है?
उत्तर :
दूसरे छंद में पंचवर्टी की तुलना शिव जी की जटाओं से की गई है।
प्रश्न 7.
कवि के अनुसार पंचवटी इतनी पवित्र क्यों है?
उत्तर :
कवि कहते हैं कि पंचवटी में बड़े-बड़े ऋषि-मुनि रहते हैं जिसके ज्ञान से लोगों की आत्मा शुद्ध हो जाती है।
प्रश्न 8.
अंगद रावण को क्या आभास कराने की कोशिश कर रहा है?
उत्तर :
अंगद रावण को श्रीराम की शक्ति का आभास कराने की कोशिश कर रहा है।
प्रश्न 9.
कवि प्रथम छंद के माध्यम से क्या व्यक्त करना चाहते हैं?
उत्तर :
प्रथम छंद में कवि ने सरस्वती की आराधना करते हुए उन्हें बहुत ही उदार बताया है। कवि कहते हैं कि उनकी उदारता का वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 10.
कवि दूसरे छंद के माध्यम से क्या व्यक्त करना चाहते हैं?
उत्तर :
इस छंद में कवि लक्ष्मण और उर्मिला के बारे में बता रहे हैं। लक्ष्मण, उर्मिला को पंचवटी का महत्व समझा रहे हैं।
प्रश्न 11.
कवि तीसरे छंद के माध्यम से क्या व्यक्त करना चाहते हैं?
उत्तर :
इस छंद में अंगद, रावण को राम की महिमा के बारे में बता रहे हैं।
'प्रश्न 12.
प्रथम छंद का विशेष लिखिए।
उत्तर :
यह छंद ब्रजभाषा में लिखा गया है। शांत रस है। अनुप्रास एवं अतिशयोक्ति अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
प्रश्न 13.
तीसरे छन्द में विशेष क्या है?
उत्तर :
इस छंद में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। वीर रस है। अनुप्रास एवं यमक अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।
प्रश्न 14.
चारमुख, पंचमुख और शतमुख किसे कहा जाता है और उनका देवी सरस्वती से क्या संबंध है?
उत्तर :
ब्रह्मा को, 'चारमुख', शिव को पंचमुख' और कार्तिकेय को 'शतमुख' कहा है। ब्रह्मा को सरस्वती का स्वामी कहा जाता है। शिव को उनका पुत्र और शिव के पुत्र कार्तिकेय को उनका पौत्र कहा जाता है।
प्रश्न 15.
पति बनें चारमुख पूत बनें पंचमुख नाती ब षटमुख तदपि नई-नई।
पंक्ति का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस पंक्ति में ब्रजभाषा का प्रयोग किया गया है। पुनरुक्ति तथा अतिशयोक्ति अलंकार हैं। षटमुख तत्सम जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
रामचन्द्र चन्द्रिका' में केशव को सर्वाधिक सफलता किसमें मिली है और क्यों?
उत्तर :
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का मत है कि 'रामचन्द्र चन्द्रिका' में केशव को सर्वाधिक सफलता मिली है -संघा. योजना में। उनके संवाद पात्रानुकूल, सजीव और प्रवाहपूर्ण हैं। उनमें व्यंजना सौन्दर्य है तथा वे पात्रों के चरित्र पर भी प्रकाश डालते हैं। प्रश्नोत्तर शैली में होने के कारण उनमें नाटकीयता का भी समावेश हो गया है। उनके संवाद पाठकों को प्रभावित करने वाले हैं।
प्रश्न 2.
केशव को 'कठिन काव्य का प्रेत' क्यों कहा जाता है?
उत्तर :
केशव की कविता आम आदमी (सामान्य पाठक) की समझ में नहीं आती। कवि ने अलंकारों के चमत्कारपूर्ण प्रयोग पर विशेष बल दिया है। उन्होंने अप्रचलित शब्दों का प्रयोग भी अपनी कविता में किया है। इससे वह क्लिष्ट हो गई है। इस क्लिष्टता के कारण ही उन्हें 'कठिन काव्य का प्रेत' कहा जाता है।
प्रश्न 3.
पंचवटी की महिमा का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर :
पंचवटी प्राकृतिक रूप से सुन्दर स्थान है जहाँ ऋषि-मुनि, तपस्वी, साधु-संत रहते हैं। जो भी यहाँ निवास करता है वह इन साधु-सन्तों का सत्संग करके जीवन्मुक्त हो जाता है। यहाँ की प्राकृतिक सुषमा अपूर्व है। यह गुणों में भगवान शंकर के समान है। जो भी यहाँ रहता है उसके दुख अनायास मिट जाते हैं। यहाँ रहने वाले को अनायास ही ज्ञान प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न 4.
माता सरस्वती की किन विशेषताओं का उल्लेख 'सरस्वती वन्दना' वाले छन्द में कवि ने किया है ?
उत्तर :
माता सरस्वती संसार की अधिष्ठात्री देवी हैं। उनकी उदारता और महिमा अपरम्पार है जिसका वर्णन कर पाना किसी के लिए संभव नहीं है। ब्रह्मा. जी अपने चारमुखों से, शंकर जी पाँचमुखों से और षडानन छ: मुखों से उनकी महिमा का . वर्णन करते हैं पर उनका पूरा वर्णन कर पाना उनके लिए भी संभव नहीं है।
प्रश्न 5.
"सिंधु तर्यो उनको वनरा' में 'बनरा' शब्द के ध्वनि-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
अथवा
"सिंधु तर्यो उनको बनरा'................पद्यांश में अंगद द्वारा राम के प्रताप का वर्णन किया गया है, इसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
अंगद रावण को भयभीत करने के लिए कहता है कि जिस हनुमान ने यहाँ आकर इतना उत्पात मचाया और तुम्हारी लंका जला दी वह तो राम की वानर सेना का एक छोटा-सा वानर (वनरां) है जो दौड़-भाग करने में बहुत कुशल है। इससे यह ध्वनि निकलती है कि हमारी वानर सेना में एक से बढ़कर एक वीर हैं। अतः राम से युद्ध करने से पहले त सं राम के आगे तू (रावण) टिक नहीं पाएगा। अंगद ने दौत्यकर्म का निर्वाह भलीभाँति किया। जो अपेक्षाएँ उससे थीं, अपने वाक्चातुर्य से उसने उन्हीं को पूरा किया।
प्रश्न 6.
सिंधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में अंगद रावण से कहते हैं कि श्रीराम के दूत हनुमान समुद्र को पार करके लंका तक पहुँच गए . हैं। अंगद रावण को श्रीराम की शक्ति का आभास कराना चाहते हैं और कहते हैं कि तुम लक्ष्मण के द्वारा खींची गई लक्ष्मण रेखा को भी पार नहीं कर पाए थे।
प्रश्न 7.
देवी सरस्वती की उदारता की प्रशंसा क्यों नहीं की जा सकती?
उत्तर :
ज्ञान, स्वर और कला की देवी सरस्वती' को माना जाता है। यह हर एक मनुष्य के कंठ में विराजमान होती है। ऐसा माना जाता है कि इस संसार को ज्ञान का भंडार देवी सरस्वती के कारण ही उपलब्ध हुआ है। उनकी महानता को शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है। सदियों से कई विद्वान सरस्वती की महिमा को व्यक्त करना चाहते हैं लेकिन वे इसमें पूरी तरह से सफल नहीं हुए हैं। इसलिए उनकी उदारता का वर्णन नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न 8.
पंचवटी की किन विशेषताओं का उल्लेख कविता में है?
उत्तर :
पंचवटी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया गया है-
(क) पंचवटी पवित्र स्थानों में से एक है। यहाँ आने पर लोगों के द्वारा किए गये पाप भी मिट जाते हैं।
(ख) लोगों के अंदर के दुष्ट और शैतान एक क्षण के लिए भी यहाँ नहीं रुक पाते हैं।
(ग) पंचवटी में सभी कष्टों का निवारण होता है और लोगों को सुख की अनुभूति होती है।
प्रश्न 9.
सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी। .
इस पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में लक्ष्मण जी पंचवटी के वातावरण की प्रशंसा करते हुए उर्मिला से कहते हैं कि वहाँ का वातावरण इतना सुंदर है कि वहाँ पहुँचते ही लोगों का दुःख दूर हो जाता है। अगर किसी व्यक्ति के मन में कोई बुरी भावना और छल-कपट हो भी तो वह खत्म हो जाता है।
प्रश्न 10.
तेलन तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराई जरी। पंक्ति का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पंक्ति में मंदोदरी ने हनुमान की शक्ति का वर्णन किया है। इस पंक्ति की भाषा ब्रजभाषा है और गीतात्मक गुण मौजूद है। 'ता' और 'ह' जैसे शब्दों का सुंदर उपयोग अनुप्रास अलंकार को दर्शाता है। 'जरी' शब्द का प्रयोग दो बार हुआ है। इसके दोनों बार अलग-अलग अर्थ हैं। इसलिए यह यमक अलंकार को दर्शाता है।
निबन्धात्मक प्रश्न -
प्रश्न 1.
'रामचन्द्र चन्द्रिका' कविता का सारांश लिखिए।
उत्तर :
रामचन्द्र चन्द्रिका-'रामचन्द्र चन्द्रिका' केशवदास के द्वारा रामकथा पर रचित महाकाव्य है जिसके तीन छन्द यहाँ संकलित हैं। पहला छन्द 'दंडक' छन्द है जिसमें कवि ने मंगलाचरण के रूप में माता सरस्वती की वन्दना की है। माता सरस्वती की उदारता और महिमा का वर्णन ऋषि, मुनि, देवता भी नहीं कर पाते क्योंकि उनमें इतनी अधिक विशेषताएँ हैं कि कोई उसका पूरा वर्णन कर ही नहीं सकता।
दूसरे छन्द में पंचवटी की महिमा का वर्णन किया गया है। राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ यहीं 'पंचवटी में' वनवास का अधिकांश.समय व्यतीत किया था। पंचवटी को गुणों में धूर्जटी (अर्थात् शिव) के समान बताया गया है। यहाँ रहने वाले व्यक्ति को अनायास ही मुक्ति (मोक्ष) प्राप्त हो जाती है। यह सवैया छन्द है।
तीसरे छन्द में कवि ने अंगद के द्वारा राम और रावण की तुलना करते हुए यह बताया है कि राम के आगे रावण अत्यन्त तुच्छ है। रावण की सभा में पहुँचकर अंगद ने रावण से कहा कि तुम मुझसे राम के बारे में पूछ रहे हो और कहते हो कि उनका क्या प्रताप है। उनके छोटे से वानर हनुमान ने समुद्र पार कर लिया और तुम लक्ष्मण के द्वारा खींची गई 'धनुरेखा' (धनुष के द्वारा खींची गई रेखा) तक पार न कर सके। तुमने हनुमान की पूँछ जलाने का प्रयास किया पर तुम्झरी रुई और तेल तो जल गया, पूँछ न जली, हाँ तुम्हारी लंका अवश्य भस्म हो गई। यह भी सवैया छन्द है। तीसरा सवैया अंगद-रावण संवाद से लिया गया है।
प्रश्न 2.
'श्रीरघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हें दसकंठ न जानि परी' के काव्य-सौन्दर्य को उद्घाटित कीजिए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष)-राम का प्रताप तथा रावण की मूर्खता का चित्रण हआ है। अगंद रावण की बुद्धि पर तरस खाता हुआ कहता है कि इतना सब कुछ हो गया और तुम्हें राम के प्रताप का बोध नहीं हुआ? समुद्र पर पुल बंध गया, तुम हनुमान को बांधकर रख नहीं पाए, तुम्हारी सोने की लंका जल गई ये सब राम के प्रताप से ही तो संभव हो पाया है, पर तुम्हारी बुद्धि में यह बात नहीं आई।
तुम तो दसकंठ हो अर्थात् तुम्हारे दस सिर हैं तो बुद्धि भी दस गुनी होनी चाहिए पर तुमने यह पूछकर कि राम का क्या प्रताप है, अपनी बुद्धिहीनता का ही परिचय दिया है। कला-पक्ष–कवि ने ब्रजभाषा में रचना की है। संस्कृत की तत्सम शब्दावली युक्त भावानुकूल भाषा है। इसमें सवैया नामक छन्द है। दसकठ मे व्यजना का सौन्दये है। इसका व्यग्यार्थ है रावण अत्यन्त मूर्ख है।
प्रश्न 3.
'अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी' इस पंक्ति के काव्य सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष)-पंचवटी की महिमा का वर्णन करते हुए लक्ष्मण जी कहते हैं कि जो इस पंचवटी में निवास करता है उसके पाप समूह की बेड़ियाँ कट जाती हैं और गम्भीर ज्ञान उसे अनायास ही प्राप्त हो जाता है।
यहाँ पंचवटी के प्राकृतिक सौन्दर्य की प्रशंसा तो है ही साथ ही यह भी व्यंजित है कि यहाँ ऋषि-मुनि, साधु-संन्यासी निवास करते हैं अत: पंचवटी में जो भी रहता है उसे इन सबका सत्संग सुलभ होता है। इनके द्वारा जो ज्ञान चर्चा यहाँ होती है उसका लाभ अनायास सबको मिलता है इसलिए पाप नष्ट हो जाते हैं और हृदय में ज्ञान प्रकट हो जाता है।
कला-पक्ष कवि ने यहाँ शिल्प चमत्कार दिखाया है। अघओघ की बेरी में रूपक, कटी बिकटी में सभंगपद यमक. बिकटी निकटी प्रकटी में पदमैत्री, ज्ञान गटी में रूपक अलंकार का सौन्दर्य है। केशवदास की भाषा ब्रजभाषा है तथा यहाँ सवैया छन्द का प्रयोग किया गया है। कवि ने शब्द चमत्कार दिखाने का प्रयास इस पंक्ति में किया है। 'टी' के प्रयोग से.. ध्वन्यात्मक सौन्दर्य प्रकट किया गया है।
प्रश्न 4.
'निघटी रुचि मीचु घटी हूँ घटी के काव्य सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष)-पंचवटी की महिमा पर प्रकाश डालते हुए कवि कहता है कि पंचवटी पनी है। जो भी व्यक्ति यहाँ निवास करता है उसे अनायास ही मुक्ति प्राप्त हो जाती है तथा यहाँ के निवासियों की मृत्यु के प्रति रुचि घट जाती है। पंचवटी का प्राकृतिक सौन्दर्य इतना आकर्षक एवं स्वास्थ्यप्रद है कि यहाँ रहने वाले व्यक्ति की मृत्यु के प्रति रुचि (मृत्यु के बाद मोक्ष पाने की इच्छा) भी घट जाती है।
कला-पक्ष - पंचवटी की प्राकृतिक सुषमा की व्यंजना है। साथ ही 'निघटी-घटी' में सभंगपद यमक अलंकार है। केशव ने ब्रजभाषा में काव्य रचना की है तथा यह पंक्ति सवैया छन्द की है। 'घटी' का प्रयोग इस पंक्ति में अनेक बार होने से अनुप्रासिकता भी आ गई है।
प्रश्न 5.
'बाँधोई बाँधत सो न बन्यो उन बारिधि बाँधिकै बाट करी' का काव्य सौन्दर्य उदघाटित कीजिए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष)-अंगद ने रावण की सभा में पहुँचकर रावण को हतोत्साहित करते हुए कहा किी बात पूछ रहा है। राम का एक छोटा-सा वानर हनुमान आकर लंका में जो इतना उत्पात मचा गया वह राम का ही तो प्रताप था। तुम्हारी पूरी सेना भी उसे बाँधने का प्रयास करके भी बाँध नहीं पाई और राम ने उस समुद्र पर पुल बाँध दिया जो अनुलंघ्य माना जाता था।
अब तू ही देख कि कहाँ राम और कहाँ तू? अर्थात्. राम के समक्ष तू (रावण) कुछ भी नहीं है। कला-पक्ष-'यहाँ बाँधोई बाँधत सो न बन्यो' में विशेषोक्ति और अनुप्रास अलंकार है। बारिधि बाँधिकै बाट करी में भी अनुप्रास अलंकार है। केशव की संवाद योजना दर्शनीय है। साहित्यिक, संस्कृत तत्सम शब्दों से युक्त भाषा का प्रयोग हुआ है।
प्रश्न 6.
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध कहि-कहि हारे सब कहिन काहू लई' पंक्ति के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
काव्य-सौन्दर्य (भाव-पक्ष)....माता सरस्वती की महिमा और उदारता अपरम्पार है। बड़े-बड़े देवता, सिद्ध पुरुष, ऋषिराज, तपस्वीगण इनकी महिमा और उदारता का वर्णन करते-करते थक गए पर कोई भी व्यक्ति उनकी महिमा का पूर्णरूपेण वर्णन नहीं कर पाया।
कला-पक्ष - जहाँ योग्य को भी अयोग्य ठहरा दिया जाए वहाँ सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार होता है। यहाँ बड़े-बड़े ऋषियों, तपस्वियों को माता सरस्वती की महिमा का वर्णन करने में अयोग्य ठहरा दिया गया अतः सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार हैं। प्रसिद्ध सिद्ध में सभंगपद यमक अलंकार है, कहि कहि में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। ब्रजभाषा का प्रयोग है तथा दण्डक छन्द है।
साहित्यिक परिचय का प्रश्न -
प्रश्न :
केशवदास का साहित्यिक परिचय लिखिए।
उत्तर :
साहित्यिक परिचय-भाव-पक्ष-केशवदास की रचनाओं में उनके तीन रूप मिलते हैं - आचार्य, महाकवि और इतिहासकार। आचार्य होने के कारण वह संस्कृत की शास्त्रीय पद्धति को हिन्दी में लाने के लिए प्रयासरत थे। उन्होंने रीति ग्रन्थों की रचना की। केशव ने रामकथा को लेकर काव्य रचना की है। केशव के काव्य में नाटकीयता है तथा उनकी संवाद-योजना अत्यन्त सशक्त और प्रभावशाली है।
कला-पक्ष - केशव ने ब्रजभाषा में रचनाएँ की हैं। उनकी भाषा में कोमलता और स्थान पर क्लिष्टता पाई जाती है। उनको रीतिकाल का प्रवर्तक माना जाता है। उनके काव्य में शब्दों के चमत्कार पर अधिक बल दिया गया है अतः उनके काव्य में सहृदयता तथा मधुरता का अभाव है। काव्य में क्लिष्टता के कारण उनको कठिन काव्य का प्रेत' कहा जाता है। केशव के काव्य में संवाद-योजना अत्यन्त प्रभावशाली है। केशव ने अपने काव्य में विविध छन्दों का प्रयोग किया है।
कृतियाँ - 1. रामचन्द्र चन्द्रिका. (रामकथा पर आधारित महाकाव्य), रसिक प्रिया, कवि प्रिया, छन्दमाला, विज्ञान गीता, वीरसिंह देव चरित, जहाँगा जसचन्द्रिका, रतनबावनी।
जन्म - 1555 ई.। स्थान - ओड़छा नगर (बेतवा नदी के तट पर स्थित)। आश्रयदाता ओड़छा नरेश महाराज इन्द्रजीत सिंह तथा वीरसिंह देव। ओड़छा नरेश से 21 गाँव भेंट में प्राप्त। साहित्य, संगीत, धर्मशास्त्र, राजनीति, ज्योतिष और वैद्यक विषयों के विद्वान्। निधन - सन् 1617 ई. में।
साहित्यिक परिचय - भाव-पक्ष - केशवदास की रचनाओं में उनके तीन रूप मिलते हैं आचार्य, महाकवि और इतिहासकार। आचार्य होने के कारण वह संस्कृत की शास्त्रीय पद्धति को हिन्दी में लाने के लिए प्रयासरत थे। उन्होंने रीति . ग्रन्थों की रचना की। केशव ने रामकथा को लेकर काव्य रचना की है। केशव के काव्य में नाटकीयता है तथा उनकी संवाद-योजना अत्यन्त सशक्त और प्रभावशाली है। उनके काव्य में सरसता और भावुकता न होकर क्लिष्टता है।
कला-पक्ष - केशव ने ब्रजभाषा में रचनाएँ की हैं। बुन्देलखण्ड के निवासी होने के कारण उनकी भाषा में बुन्देली के शब्दों का खूब प्रयोग हुआ है। संस्कृत के शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। उनकी भाषा में कोमलता और माधुर्य के स्थान पर क्लिष्टता पाई जाती है। उनको रीतिकाल का प्रवर्तक माना जाता है किन्तु आचार्य रामचन्द्र शुक्ल चिन्तामणि को रीतिकाल का प्रवर्तक मानते हैं।
उनके काव्य में शब्दों के चमत्कार पर अधिक बल दिया गया है अतः उनले काव्य में सहृदयता तथा मधुरता का अभाव है। काव्य में क्लिष्टता के कारण उनको 'कठिन काव्य का प्रेत' कहा जाता है। केशव के काव्य में संवाद-योजना अत्यन्त प्रभावशाली है। केशव ने अपने काव्य में विविध छन्दों का प्रयोग किया है।
कृतियाँ - 1. रामचन्द्र चन्द्रिका (रामकथा पर आधारित महाकाव्य), रसिक प्रिया, कवि प्रिया, छन्दमाला, विज्ञान गीता, वीरसिंह देव चरित, जहाँगीर जसचन्द्रिका, रतनबावनी।
सप्रसग व्याख्याएँ
सरस्वती वंदना
1. बानी जगरानी की उदारता बखानी जाइ ऐसी मति उदित उदार कौन की भई।
देवता प्रसिद्ध सिद्ध रिषिराज तपबृद्ध कहि कहि हारे सब कहि न काहू लई।
भावी भूत बर्तमान जगत बखानत है 'केसोदास' क्यों हून बखानी काहू पै गई।
पति बनें चारमुख, पूत बनैं पाँचमुख, नाती बनें षटमुख, तदपि नई नई।।
शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत पंक्तियाँ आचार्य कवि केशवदास द्वारा रचित महाकाव्य 'रामचन्द्र चन्द्रिका' से ली गई हैं। इस छन्द को हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में 'रामचन्द्र चन्द्रिका' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित किया गया है।
प्रसंग : 'रामचन्द्र चन्द्रिका' का प्रारम्भ करते समय कवि ने मंगलाचरण के रूप में माता सरस्वती की महिमा और उदारता का बखान किया है। कवि का मानना है कि माँ सरस्वती की महिमा और उदारता का वर्णन ऋषि, मुनि देवता तक नहीं कर सके तो भला मैं कैसे उस उदारता का पूर्ण बखान कर पाऊँगा।
व्याख्या : कवि केशवदास सरस्वती की वन्दना करते हुए कहते हैं कि संसार में इतनी प्रखर बुद्धि भला किसकी है जो जगत की पूज्य वाग्देवी सरस्वती की उदारता का वर्णन कर सके। सभी बड़े-बड़े देवता तथा तपोवृद्ध ऋषि भी उनके गुणों की प्रशंसा करते-करते थक गये, पर कोई भी उनके गुणों का पूर्णतः वर्णन न कर सका। यद्यपि उनकी महिमा का वर्णन भूतकाल के लोगों ने अपनी सामर्थ्य भर किया है, वर्तमान के लोग अपनी पूर्ण बुद्धि से कर रहे हैं और भविष्य काल के मनुष्य भी उनकी प्रशंसा करते रहेंगे, परन्तु फिर भी उनके गुणों का पूर्णतः वर्णन न हो सकेगा।
केशवदास जी कहते हैं कि संसार के कवियों की तो सामर्थ्य ही क्या है जो उनकी प्रशंसा कर सकें, उनके गुणों के पूर्ण जानकार उनके निकट सम्बन्धी भी उनकी प्रशंसा करने में असमर्थ रहे हैं। उनके पति ब्रह्मा अपने चारमुखों से, पुत्र महादेव जी अपने पाँचमुखों से तथा पौत्र (शिव के पुत्र) षडानन अपने षंट मुखों से उनके गुणों की प्रशंसा करते रहे हैं, फिर भी कुछ न कुछ नई विशेषता उनसे कहने को छूट ही गयी है।
विशेष :
1. योग्य को भी जहाँ अयोग्य ठहरा दिया जाय वहाँ सम्बन्धातिशयोक्ति अलंकार होता है। ब्रह्मा, शिव, कार्तिकेय भी वाग्देवी सरस्वती की महिमा और उदारता का बखान नहीं कर पाते फिर भला मैं कैसे कर सकता हूँ यही कवि कहना चाहता है। 'नई-नई' में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
2. कवित्त छन्द का प्रयोग है। इसे केशव ने 'दंडक' छन्द कहा है।
3. ब्रजभाषा का प्रयोग है।
4. एक पौराणिक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी को सरस्वती का पति, शिवजी को पुत्र और शिव पुत्र कुमार कार्तिकेय को उनका नाती कहा गया है।
5. ब्रह्मा जी ने चारमुखों से, शंकर ने पाँचमुखों से तथा षडानन (कुमार कार्तिकेय या स्कन्द) ने षट. मुखों से उनकी महिमा और उदारता का वर्णन किया पर कोई भी पूरी तरह नहीं कर सका। कवि यह कहना चाहता है कि माता सरस्वती की महिमा और उदारता अपरम्पार है जिसका वर्णन कर पाना संभव नहीं है।
पंचवटी वन वर्णन
2. सब जाति फटी दुख की दुपटी कपटी न रहै जहँ एक घटी।
निघटी रुचि मीचु घटी हूँ घटी जगजीव जतीन की छूटी तटी।
अघओघ की बेरी कटी बिकटी निकटी प्रकटी गुरुज्ञान-गटी।
चहुँ ओरनि नाचति मुक्तिनटी गुन धूरजटी वन पंचबटी।।
शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत छन्द केशवदास द्वारा रचित 'रामचन्द्र चन्द्रिका' से लिया गया है जिसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में संकलित किया गया है
प्रसंग : इस छन्द में कवि ने पंचवटी की महिमा का वर्णन चमत्कारपूर्ण ढंग से किया है। लक्ष्मण जी पंच पूर्ण ढंग से किया है। लक्ष्मण जी पंचवटी की शोभा का वर्णन करते हुए उसे गुणों में भगवान शंकर ने समान मुक्तिदायिनी बता रहे हैं। यहाँ मुक्तिरूपी नर्तकी सर्वत्र नृत्य करती दिखाई देती है
व्याख्या : लक्ष्मण जी कहने लगे कि यह पंचवटी नाम का वन शिवजी के समान गुणों वाला है। जिस प्रकार शिवजी के दर्शनों से दुःख समाप्त हो जाता है, उसी प्रकार इस पंचवटी वन में आकर दुःखरूपी चादर पूर्णरूप से फटी जा रही है। तात्पर्य यह है कि सभी दुःख नष्ट हुए जा रहे हैं। कपटी लोग यहाँ एक घड़ी भी नहीं रह सकते। यहाँ आकर लोगों की इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं तथा मृत्यु की घड़ी समाप्त हो जाती है अर्थात् मुक्ति मिल जाती है।
यहाँ आकर संसार के जीवों और योगियों की समाधि छूट जाती है। यहाँ का प्राकृतिक सौन्दर्य इतना मनमोहक है कि सभी लोग यहाँ आकर पंचवटी की शोभा देखने लगते हैं। यहाँ आकर पापों के समूह की विकट बेड़ी कट जाती है तथा श्रेष्ठ ज्ञानरूपी गठरी समीप ही प्रकट हो जाती है। भाव यह है कि पंचवटी में रहने वाले ऋषि-मुनियों की संगति से, उनके प्रवचनों को सुनकर पाप समूह नष्ट हो जाता है और व्यक्ति को सहज में ही ज्ञान उपलब्ध हो जाता है। इसके चारों ओर मुक्तिरूपी नर्तकी नाचती है। शिवजी के चारों ओर भी मुक्ति नाचती रहती है।
विशेष :
3. सिंधु तर्यो उनको बनरा तुम पै धनुरेख गई न तरी।
बाँधोई बाँधत सो न बन्यो उन बारिधि बाँधिकै बाट करी।
श्रीरघुनाथ-प्रताप की बात तुम्हें दसकंठ न जानि परी।
तेलनि तूलनि पूँछि जरी न जरी, जरी लंक जराइ-जरी।।
शब्दार्थ :
सन्दर्भ : प्रस्तुत छन्द केशवदास द्वारा रचित 'रामचन्द्र चन्द्रिका' के 'अंगद-रावण संवाद' से लिया गया है। इसे हमारी पाठ्य-पुस्तक 'अन्तरा भाग-2' में 'रामचंद्रचंद्रिका' शीर्षक से संकलित किया गया है।
प्रसंग : अंगद जब रावण की सभा में पहुँचा तो रावण ने उससे पूछा कि तू कौन है? अंगद ने अपना परिचय राम के दूत के रूप में दिया तब रावण कहने लगा कि ये राम कौन हैं ? उनका प्रताप क्या है? रावण के ऐसा कहने पर अंगद समझ गया कि यह राम को नीचा दिखाने के लिए ऐसा कह रहा है अतः उसी की भाषा में उत्तर देते हुए अंगद ने जो कहा, उसका वर्णन इस छन्द में कवि ने किया है।
व्याख्या - अंगद रावण से कहने लंगा। तू राम के आगे कहीं नहीं ठहरता। कहाँ राम और कहाँ तू? देख, उनका तो छोटा-सा वानर (हनुमान) इतने बड़े समुद्र को लांघकर लंका में आ धमका और तुम धनुष की उस रेखा को भी नहीं लांघ पाए जो लक्ष्मण जी ने सीता की कुटी के चारों ओर खींच दी थी। अब तू ही बता तेरी और उनकी क्या बराबरी? तुम लोगों ने अपनी पूरी शक्ति लगाकर उनके वानर हनुमान को बाँधने का प्रयास किया, पर उसे बाँध नहीं पाए और धकर अपनी सेना के लिए रास्ता बना दिया।
अब भी तुम्हें श्री राम के प्रताप का बोध नहीं हुआ ? अरे रावण तुम तो दसकंठ कहे जाते हो, तुम्हारे अन्दर तो ज्यादा बुद्धि होनी चाहिए थीं पर तुम दस सिरों वाले होकर भी मूर्ख रहे जो मुझसे श्री राम के प्रताप के बारे में पूछ रहे हो। हनुमान की पूँछ को तेल और रुई लगाकर तुम लोगों ने जलाने का पूरा प्रयास किया पर उसे नहीं जला पाए। हाँ, इस प्रयास में तुम्हारी हीरे-मोती से जड़ी सोने की लंका अवश्य जल गई। हे रावण! यह राम का ही तो प्रताप है और तुम मुझसे पूछ रहे हो कि राम का प्रताप क्या है, क्या अब भी तुम्हें राम का प्रताप समझ में नहीं आया।
विशेष :