Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Geography Chapter 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन Textbook Exercise Questions and Answers.
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क्रियाकलाप सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर:
(पृष्ठ सं. 73)
प्रश्न 1.
उन विशिष्ट प्रदेशों का पता करें जहाँ इन (लौह अयस्क, कोयला, मैंगनीज, बॉक्साइट व अभ्रक नामक) खनिजों का दोहन हो रहा है।
उत्तर:
लौह अयस्क के उत्पादक क्षेत्र: उड़ीसा राज्य के मयूरभंज जिले में गुरुमहिसानी, सुलाएपत तथा बादामपहाड़, केन्दुझर जिले में किरुबुरू तथा सुन्दरगढ़ जिले में बोनाई खदानें।
प्रश्न 2.
महात्मा गांधी द्वारा कब और क्यों दांडी मार्च आयोजित किया गया था?
उत्तर:
महात्मा गाँधी ने 12 मार्च 1930 को दांडी मार्च का आयोजन किया। गाँधीजी मानते थे कि नमक भोजन का एक अभिन्न अंग है जिसका प्रयोग अमीर व गरीब दोनों समान रूप से करते हैं। भारत में ब्रिटिश सरकार द्वारा नमक पर कर तथा उसके उत्पादन पर सरकारी एकाधिकार स्थापित कर रखा था जो कि ब्रिटिश सरकार का एक दमनकारी पहलू था। अतः गाँधीजी ने नमक कानून को तोड़ने के लिए अपने 78 अनुयायियों के साथ नमक यात्रा 12 मार्च 1930 को साबरमती से प्रारम्भ कर 6 अप्रैल, 1930 को दांडी पहुँचकर समाप्त की। गाँधीजी ने समुद्र के पानी को उबालकर नमक बनाकर इस कानून को तोड़ा। दांडी यात्रा से स्वतंत्रता आन्दोलन को एक व्यापक आधार प्राप्त हो गया।
(पृष्ठ सं. 82)
प्रश्न 3.
विश्व के विकसित देश गैर - परम्परागत ऊर्जा संसाधनों का उपयोग कैसे करते हैं? परिचर्चा कीजिए।
उत्तर:
विश्व के अधिकांश विकसित देशों की अर्थव्यवस्था औद्योगिक विकास व व्यावसायिक गहन कृषि पर आधारित है जिसके सुचारु संचालन के लिए पर्याप्त मात्रा में परम्परागत ऊर्जा स्रोतों जैसे - कोयला, पेट्रोलियम, जल - विद्युत तथा प्राकृतिक गैस की सतत् रूप से आवश्यकता होती है। जल - विद्युत के विकास की सीमित सम्भावनाएँ होती हैं जबकि कोयला, पेट्रोलियम तथा प्राकृतिक गैस जैसे ऊर्जा संसाधन सीमित होने के साथ - साथ समाप्त होने वाले हैं। अतः विश्व के सभी विकसित राष्ट्र अपने यहाँ की अर्थव्यवस्था की रफ्तार को कायम रखने के लिए नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय व तरंग ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा तथा जैव ऊर्जा के विकास व उपयोग पर अधिकाधिक बल प्रदान कर रहे हैं।
प्रश्न 1.
नीचे दिये चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए
(i) निम्नलिखित में से किस राज्य में प्रमुख तेल क्षेत्र स्थित हैं?
(क) असम
(ख) बिहार
(ग) राजस्थान
(घ) तमिलनाडु।
उत्तर:
(क) असम
(ii) निम्नलिखित में से किस स्थान पर पहला परमाणु ऊर्जा स्टेशन स्थापित किया गया था?
(क) कलपक्कम
(ख) नरोरा
(ग) राणाप्रताप सागर
(घ) तारापुर।
उत्तर:
(ख) नरोरा
(iii) निम्नलिखित में से कौन-सा खनिज 'भूरा कोयला' के नाम से जाना जाता है?
(क) लौह
(ख) लिगनाइट
(ग) मैंगनीज
(घ) अभ्रक।
उत्तर:
(ग) मैंगनीज
(iv) निम्नलिखित में से कौन-सा ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत है?
(क) जल
(ख) सौर
(ग) ताप
(घ) पवन।
उत्तर:
(घ) पवन।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें।
(i) भारत में अभ्रक के वितरण का विवरण दें।
उत्तर:
भारत में अभ्रक के जमाव प्रमुख रूप से झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेश तथा राजस्थान राज्यों में मिलते हैं। झारखण्ड राज्य में उच्च गुणवत्ता वाला अभ्रक निचले हजारीबाग पठार की 150 किमी. लम्बी व 22 किमी. चौड़ी पट्टी में पाया जाता है। आन्ध्र प्रदेश में नेल्लोर तथा राजस्थान में जयपुर-भीलवाड़ा पेटी व उदयपुर क्षेत्र में भी अभ्रक मिलता है।
(ii) नाभिकीय ऊर्जा क्या है? भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केन्द्रों के नाम लिखें।
उत्तर:
यूरेनियम तथा थोरियम आदि परमाणु खनिजों के अणुओं के नियन्त्रित दशाओं में विखण्डन से प्राप्त ऊर्जा को नाभिकीय ऊर्जा कहा जाता है। तारापुर (महाराष्ट्र), रावतभाटा (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरोरा (उत्तर प्रदेश), कैगा (कर्नाटक) तथा काकरापाड़ा (गुजरात) भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केन्द्र हैं।
(iii) अलौह धातुओं के नाम बताएँ। इनके स्थानिक वितरण की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
लौह धातु रहित धातु खनिजों को अलौह खनिज कहा जाता है। बॉक्साइट तथा ताँबा प्रमुख अलौह धातु हैं। बॉक्साइट का उत्पादन प्रमुख रूप से उड़ीसा, झारखण्ड, गुजरात, छत्तीसगढ़ तथा मध्य प्रदेश राज्यों से प्राप्त होता है, जबकि ताँबा खनिज के निक्षेप मुख्यतया झारखण्ड, मध्य प्रदेश तथा राजस्थान राज्यों में मिलते हैं।
(iv) ऊर्जा के अपारम्परिक स्रोत कौन से हैं?
उत्तर:
नाभिकीय ऊर्जा, सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा तथा जैव ऊर्जा भारत में ऊर्जा के प्रमुख अपारम्परिक स्रोत हैं। ये सभी ऊर्जा स्रोत नवीनीकरण के योग्य होने के साथ-साथ पर्यावरण अनुकूल भी हैं।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दें।
(i) भारत के पेट्रोलियम संसाधनों पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारत में व्यवस्थित ढंग से पेट्रोलियम की खोज तथा उत्पादन का कार्य सन् 1956 से देश में 'तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग' (ONGC) की स्थापना के बाद प्रारम्भ हुआ।
भारत में पेट्रोलियम उत्पादन के प्रमुख क्षेत्र वर्तमान में भारत में पेट्रोलियम उत्पादन के निम्नलिखित तीन क्षेत्र हैं।
(1) अरब सागर अपतटीय तेल क्षेत्र: भारत के पेट्रोलियम मानचित्र पर अरब सागर के तेल क्षेत्रों का प्रवेश सन् 1975 में उस समय हुआ जब मुम्बई नगर से लगभग 160 किमी पश्चिम में अरब सागर के गर्भ में भारी मात्रा में उत्तम किस्म के खनिज तेल के भंडार पाये गये। खनिज तथा ऊर्जा संसाधन 389 मुम्बई नगर से 160 किमी. उत्तर-पश्चिम में स्थित समुद्री क्षेत्र को मुम्बई हाई तेल क्षेत्र का नाम दिया गया है। यह तेल क्षेत्र समुद्र में 2,500 वर्ग किमी. क्षेत्र में विस्तृत है।
यहीं सर्वप्रथम तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग द्वारा ‘सागर सम्राट' नामक भारत का प्रथम गतिमान अपतट-भेदन चबूतरा (प्लेटफॉर्म) निर्मित किया गया था। इसी चबूतरे से समुद्र की पेंदी के नीचे छिपे तेल भण्डारों को भेदन द्वारा ऊपर निकाला गया है, वर्तमान में यह तेल क्षेत्र भारत का सर्वाधिक महत्व का है। मुम्बई हाई के अतिरिक्त अलियाबेट तेल क्षेत्र (भावनगर से 45 किमी. पश्चिम में स्थित खम्भात की खाड़ी में अलियाबेट द्वीप) तथा बसीन तेल क्षेत्र (मुम्बई हाई से 150 किमी. उत्तर-पूर्व में) अरब सागर के अन्य महत्वपूर्ण तेल क्षेत्र।
(2) गुजरात तेल क्षेत्र: यह देश का दूसरा महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र है जिससे देश का लगभग 18 प्रतिशत पेट्रोलियम प्राप्त होता है। यहाँ पेट्रोलियम उत्पादन के निम्नलिखित तीन क्षेत्र महत्वपूर्ण हैं
(3) असम तेल क्षेत्र वर्तमान में यह देश का तीसरा महत्त्वपूर्ण तेल उत्पादक क्षेत्र है। डिगबोई, नहारकटिया तथा मोरान असम राज्य की ब्रह्मपुत्र घाटी में अवस्थित महत्त्वपूर्ण तेल क्षेत्र हैं। तेल व प्राकृतिक गैस आयोग ने पूर्वी तट पर कृष्णा-गोदावरी बेसिन तथा कावेरी बेसिन में खोदे गए कुओं में तेल व प्राकृतिक गैस की मौजूदगी को प्रमाणित किया है।
प्रश्न 4.
भारत में जल विद्युत पर एक निबन्ध लिखें।
उत्तर:
शक्ति संसाधनों में जल: विद्युत का महत्व अन्य संसाधनों की अपेक्षा सर्वाधिक है। इसका सबसे प्रमुख कारण यह है कि जल-विद्युत शक्ति का स्थाई तथा कभी समाप्त न होने वाला स्रोत है। जल-विद्युत के उत्पादन में अन्य शक्ति संसाधनों की अपेक्षा सबसे कम खर्च करना पड़ता है, साथ ही इसको सुदूर स्थानों तक ले जाने में विशेष परिश्रम तथा व्यय की आवश्यकता नहीं पड़ती है। जल-विद्युत को श्वेत कोयला (White Coal) भी कहा जाता है, क्योंकि बहता हुआ जल श्वेत दिखाई पड़ता है और इससे कोयले की तरह शक्ति उत्पादित की जाती है।
भारत की समस्त नदी घाटियों में जल: विद्युत उत्पादन की सम्भाव्य क्षमता का केवल 10 प्रतिशत उत्पादन क्षमता को )ही विकसित किया जा सका है। भारत की लगभग 60 प्रतिशत सम्भावित जल शक्ति के स्रोत हिमालय पर्वत से उद्गमित होने वाली नदियों में हैं। इन प्रमुख नदियों में ब्रह्मपुत्र, गंगा, सिन्ध तथा इनकी सहायक नदियाँ हैं। दक्षिण भारत में उत्तर-पश्चिम व पश्चिम से दक्षिण-पूर्व व पूर्व की ओर बहने वाली नदियों में भारत की सम्भावित जल शक्ति का 20 प्रतिशत भाग निहित है तथा शेष 20 प्रतिशत सम्भावित जल शक्ति पश्चिमी घाट तथा मध्य भारत से उद्गमित होकर पूर्व से पश्चिम की ओर प्रवाहित नदियों में निहित है।
भारत में जल विद्युत उत्पादन के लिए अनुकूल दशाएँ:
(1) अनुकूल जल प्रवाह - जल: विद्युत के विकास के लिए नदियों में सतत् जल प्रवाह, जल प्रवाह में वेग तथा पर्याप्त जल का होना आवश्यक है। हिमालय से निकलने वाली सिन्धु, गंगा, यमुना, ब्रह्मपुत्र तथा इनकी सहायक नदियों में वर्ष के अधिकांश समय में ये तीनों विशेषताएँ रहती हैं, केवल ग्रीष्म काल के 2-3 महीने की शुष्क अवधि में जल की उपलब्धता में कमी हो जाती है। इस कमी को नदियों पर बाँध बनाकर पूरा किया जाता है।
(2) धरातल: जिन भागों में प्राकृतिक जल प्रपात होते हैं वहाँ जल-विद्युत उत्पादन आसानी से हो जाता है। जिन क्षेत्रों में प्राकृतिक जल प्रपात नहीं होते वहाँ कृत्रिम जल प्रपात बनाने में काफी व्यय करना पड़ता है। पर्वतीय तथा अधिक ढाल वाले धरातल प्राकृतिक जल प्रपातों के लिए अनुकूल होते हैं। पर्वतीय तथा अधिक ढलवा क्षेत्रों में कृत्रिम जल प्रपात भी आसानी के साथ बनाये जा सकते हैं। हिमालय पर्वत के सहारे-सहारे पश्चिमी कश्मीर से लेकर पूर्व में असम के पर्वतीय क्षेत्रों तक का भाग जल-विद्युत उत्पादन के लिए अनुकूल है। इसी प्रकार दक्षिणी भारत में पश्चिमी घाट के पर्वतीय भागों के सहारे-सहारे तथा सतपुड़ा, विंध्याचल, महादेव और मैकाल की पहाड़ियों के सहारे-सहारे भी जल-विद्युत उत्पादन के लिए अनुकूल दशाएँ हैं।
(3) शक्ति के अन्य साधनों का अभाव: भारत में कोयला, पेट्रोलियम तथा परमाणु संसाधनों की कमी है। दूसरे राष्ट्रों से इन्हें आयात करना काफी व्ययसाध्य होता है। देश की आर्थिक व्यवस्था पर इनके आयात से प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। अतः भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में जल-विद्युत उत्पादन बहुत ही आवश्यक है।
(4) अधिक पूँजी की आवश्यकता - जल: विद्युत शक्ति-गृहों के निर्माण एवं विकास में भारी पूँजी की आवश्यकता पड़ती है। एक बार जल-विद्युत शक्तिगृहों के निर्माण के बाद एक लम्बे समय तक बिना किसी अतिरिक्त व्यय के विद्युत प्राप्त की जा सकती है। भारत जैसे विकासशील राष्ट्र के पास पूँजी की कमी होने के कारण यहाँ पर्याप्त जल-विद्युत का विकास नहीं हो पाया है। देश की लगभग 75 प्रतिशत जल-विद्युत उत्पादन क्षमता का उपयोग अभी तक नहीं हो पाया है।
देश में जैसे - जैसे पर्याप्त पूँजी की सुविधा होती जायेगी, भारत अपनी अप्रयुक्त जल - विद्युत उत्पादन क्षमता का विकास करता जायेगा। वर्षा की मौसमी प्रवृत्ति तथा हिम-जल के न मिलने के परिणामस्वरूप प्रायद्वीपीय भारत की नदियों से सम्भावित जल-शक्ति का उपयोग बहुत ही कम हो पाया है। दूसरी ओर भारत मुख्यतः अपनी मानसूनी वर्षा के कारण भी जल - शक्ति पर पूर्णतया निर्भर नहीं रह सकता, इसलिए भारत को विद्युत के विकास के लिए जल-विद्युत तथा ताप विद्युत दोनों की ही मिली-जुली विद्युत की राष्ट्रीय ग्रिड (National Grid) पर निर्भर रहना पड़ता है।