Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Economics Chapter 5 सरकारी बजट एवं अर्थव्यवस्था Textbook Exercise Questions and Answers.
प्रश्न 1.
सार्वजनिक वस्तु सरकार के द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए, क्यों? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक वस्तुएँ वे वस्तुएँ हैं जिनका लाभ प्रायः सभी लोगों को मिलता है। सार्वजनिक वस्तुएँ लोगों को प्रायः नि:शुल्क अथवा बहुत कम कीमत पर उपलब्ध करवाई जाती हैं । सार्वजनिक वस्तुएँ सरकार द्वारा ही प्रदान की जानी चाहिए क्योंकि सरकार ही इन वस्तुओं की लागत को वहन कर सकती है क्योंकि सरकार का उद्देश्य लाभ कमाना न होकर समाज कल्याण करना होता है।
प्रश्न 2.
राजस्व व्यय और पूँजीगत व्यय में भेद कीजिए।
उत्तर:
राजस्व व्यय: ये वे व्यय हैं जिनसे किसी भी प्रकार की भौतिक या वित्तीय परिसम्पत्तियों का सृजन नहीं होता है। जैसे सरकार के सामान्य व्यय, सरकार द्वारा ऋण, व्याज अदायगी, अनुदान आदि।
पूँजीगत व्यय: पूँजीगत व्यय के अन्तर्गत भूमि अधिग्रहण, भवन निर्माण, मशीनरी, उपकरण, शेयरों में निवेश और केन्द्र सरकार के द्वारा अन्य राज्य सरकारों एवं संघ शासित प्रदेशों, सार्वजनिक उपक्रमों तथा अन्य पक्षों को प्रदान किये गए ऋण और अग्रिम संबंधी व्ययों को शामिल किया जाता है।
प्रश्न 3.
राजकोषीय घाटा से सरकार को ऋण ग्रहण की आवश्यकता होती है, समझाइए।
उत्तर:
राजकोषीय घाटा सरकार के कुल व्यय और ऋण ग्रहण को छोड़कर कुल प्राप्तियों का अन्तर है अर्थात् दूसरे शब्दों में राजकोषीय घाटा सरकार की उधार सम्बन्धी आवश्यकताओं को प्रकट करता है, अत: राजकोषीय घाटा बजट व्यय को पूरा करने के लिए सरकार की उधार पर निर्भरता की मात्रा को दर्शाता है।
प्रश्न 4.
राजस्व घाटा और राजकोषीय घाटा में संबंध बताइए।
उत्तर:
राजस्व घाटा सरकार के राजस्व व्यय की राजस्व प्राप्तियों पर अधिकता को दर्शाता है जबकि राजकोषीय घाटा कुल व्यय जिसमें उधार को शामिल न किया जाए, की कुल प्राप्तियों पर अधिकता को दर्शाता है।
प्रश्न 5.
मान लीजिए कि एक विशेष अर्थव्यवस्था में निवेश 200 के बराबर है, सरकार के क्रय की मात्रा 150 रु. है, निवल कर (अर्थात् एकमुश्त कर से अन्तरण को घटाने पर) 100 है और उपभोग C = 100 + 0.75Y दिया हुआ है तो
(a) सन्तुलन आय का स्तर क्या है?
(b) सरकारी व्यय गुणक और कर गुणक के मानों की गणना करें।
(c) यदि सरकार के व्यय में 200 की बढ़ोतरी होती है, तो सन्तुलन आय में क्या परिवर्तन होगा?
उत्तर:
(a) सन्तुलन आय के स्तर की गणना
निवेश = 200 सरकार द्वारा क्रय की गई मात्रा (G) = 150
एकमुश्त कर (T) = 100
उपभोग (C) = 100+ 75Y
सन्तुलन आय को निम्न सूत्र द्वारा निकाला जा सकता
\(Y=\frac{1}{1-C}\left(\bar{C}-c T+C \bar{T} R^{c}+I+G\right)\)
\(=\frac{1}{1-0.75}\) (100 -0.75 x 100 + 200 + 150)
= \(\frac{1}{0.25}\) (100 - 75 + 200 + 150)
= 4 (450 - 75)
= 4 x 375
= 1500
(b) सरकारी व्यय गुणक एवं कर गुणक की गणना सरकारी व्यय गुणक-इसे निम्न सूत्र से निकाला जा सकता है।
\(\frac{\Delta Y}{\Delta G}=\frac{1}{1-C}\)
\(=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=4\)
इससे आय में परिवर्तन निम्न प्रकार होगा।
\(\Delta Y=\frac{1}{1-C} \cdot \Delta G\)
\(\begin{aligned} &=\frac{1}{1-0.75} \times 150 \\ &=\frac{1}{0.25} \times 150 \end{aligned}\)
∆Y = 4 x 150
∆Y = 600
कर गुणक: इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है।
\(\frac{\Delta Y}{\Delta T}=\frac{-C}{1-C}\)
\(=\frac{-0.75}{1-0.75}=\frac{-0.75}{0.25}=-3\)
इससे आय में परिवर्तन निम्न प्रकार होगा
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(-\mathrm{C}) \cdot \Delta \mathrm{T}\)
\(=\frac{1}{1-0.75}(-0.75) \times 100\)
\(=\frac{-0.75}{0.25} \times 100\)
= -3 x 100
= -300
(c) सरकारी व्यय में 200 की बढ़ोतरी होने पर सन्तुलित आय में परिवर्तन की गणनापूर्व में सरकारी व्यय अथवा क्रय = 150 (G) 200 की बढ़ोतरी के पश्चात् व्यय
= 200 + 150 = 350
निवेश (I) = 200
एकमुश्त कर (T) = 100
उपभोग (C) = 100+ 0.75Y
सन्तुलित आय
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G)\)
\(=\frac{1}{1-0.75}\)(100 - 0.75 x 100 + 200 + 350)
\(=\frac{1}{0.25}\)(100 -75 + 200 + 350)
=4 (575)
Y = 2300
अतः सरकारी व्यय में 200 की वृद्धि होने पर सन्तुलित आय 1500 से बढ़कर 2300 हो जाएगी।
प्रश्न 6.
एक ऐसी अर्थव्यवस्था पर विचार कीजिए, जिसमें निम्नलिखित फलन है।
C= 20 + 0.80Y, I = 30,G=50, TR = 100
(a) आय का सन्तुलन स्तर और मॉडल में स्वायत्त व्यय गुणक ज्ञात कीजिए।
(b) यदि सरकार के व्यय में 30 की वृद्धि होती है, तो सन्तुलन आय पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(c) यदि एकमुश्त कर 30 जोड़ दिया जाए, जिससे सरकार के क्रय में बढ़ोतरी का भुगतान किया जा सके तो सन्तुलन आय में किस प्रकार का परिवर्तन होगा?
उत्तर:
(a) आय का सन्तुलन स्तर:
निवेश (1) = 30
सरकारी व्यय (G) = 50
अन्तरण (TR) = 100
उपभोग फलन = 20 + 0.8 Y
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(=\frac{1}{1-0.8}\)(20 + 0.8 x 100 + 30 + 50)
\(=\frac{1}{0.2}\)(20 + 80 + 30 + 50)
=5 (180)
= 900
स्वायत्त व्यय गुणक की गणना:
\(\frac{\Delta Y}{\Delta G}=\frac{1}{1-C}\)
\(=\frac{1}{1-0.8}=\frac{1}{0.2}=5\)
इससे आय में परिवर्तन निम्न प्रकार होगा
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}} \cdot \Delta \mathrm{G}\)
\(=\frac{1}{1-0.8} \times 50\)
\(=\frac{1}{0.2} \times 50\)
= 5 x 50
= 250
(b) यदि सरकारी व्यय में 30 की वृद्धि हो तो सन्तुलन आय पर प्रभाव
I = 30
G= 50 + 30 = 80
TR = 100
C= 20 + 0.8Y
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(=\frac{1}{1-0.8}(20+0.8 \times 100+30+80)\)
\(=\frac{1}{0.2}\)(20 + 80 + 30+ 80)
= 5(210) = 1050
अतः यदि सरकारी व्यय में 30 की वृद्धि की जाए तो सन्तुलन आय 900 से बढ़कर 1050 हो जाएगी।
(c) एकमुश्त कर 30 जोड़ने तथा इसके बराबर सरकारी क्रय में बढ़ोत्तरी होने पर सन्तुलन आय पर प्रभाव
I= 30
G= 50 + 30 = 80
T= 30
TR = 100
C = 20+ 0.8Y
\(Y=\frac{1}{1-C}(\bar{C}-c T+C \overline{T R}+I+G)\)
\(=\frac{1}{1-0.8}\)(20 - 0.8 x 30+ 0.8 x 100 + 30 + 80)
\(=\frac{1}{0.2}\)(20 - 24 + 80 + 30 + 80)
= 5 (186)
= 930
अतः यदि कर में 30 जोड़ने तथा इतनी ही वृद्धि सरकारी क्रय में होने पर सन्तुलन आय 900 से बढ़कर 930 होगी।
प्रश्न 7.
उपर्युक्त प्रश्न में अन्तरण में 10 की वृद्धि और एकमुश्त करों में 10 की वृद्धि का निर्गत पर पड़ने वाले प्रभाव की गणना करें। दोनों प्रभावों की तुलना करें।
उत्तर:
अन्तरण में 10 की वृद्धि होने पर:
I= 30
G= 50
TR = 100 + 10 = 110
C= 20 + 0.80Y
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(=\frac{1}{1-0.8}\)(20 + 0.8 x 110 + 30+ 50)
\(=\frac{1}{0.2}\)(20 + 88 + 30 + 50)
= 5 (188)
= 940
करों में 10 की वृद्धि होने पर:
I = 30
G = 50
T = 30 + 10 = 40
TR = 100
C= 20 + 0.80Y
\(\mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}(\overline{\mathrm{C}}-\mathrm{cT}+\mathrm{CTR}+\mathrm{I}+\mathrm{G})\)
\(=\frac{1}{1-0.8}\)(20 -0.80 x 40 + 0.80 x 100 + 30 + 50)
\(=\frac{1}{0.2}\) (20 - 32 + 80 + 30+ 50)
= 5(148)
= 740
अतः अन्तर में 10 की वृद्धि करने पर सन्तुलन आय का स्तर 940 होगा तथा करों में 10 की वृद्धि करने पर सन्तुलन आय का स्तर 740 होगा।
प्रश्न 8.
हम मान लेते हैं कि C= 70 + 0.70 YD, I = 90,G = 100, T = 0.10Y (a) सन्तुलन आय ज्ञात कीजिए। (b) सन्तुलन आय पर कर राजस्व क्या है? क्या सरकार का बजट सन्तुलित बजट है?
उत्तर:
(a) सन्तुलन आय की गणना
C= 70 + 0.70 YD
I = 90
G = 100
T = 0.10Y
\(Y=\bar{C}+C(Y-T+\bar{T} R)+I+G\)
= 70 + 0.7(Y - 0.10Y) + 90+ 100
= 70 + 0.7Y - 0.07Y + 90 + 100
Y = 0.63Y + 260Y - 0.63Y
= 260 0.37Y
= 260
Y= 200 = 703
(b) सन्तुलित आय पर कर राजस्व
T= 0.10Y
= 0.10 x 703
= 70.3
यहाँ सरकार का बजट सन्तुलित बजट नहीं है क्योंकि कर राजस्व 70.3 तथा G = 100 है क्योंकि सरकार के व्यय तथा कर राजस्व में अन्तर है अत: बजट सन्तुलित नहीं है।
प्रश्न 9.
मान लीजिए कि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है और आनुपातिक आय कर 20 प्रतिशत है। सन्तुलन आय में निम्नलिखित परिवर्तनों को ज्ञात करें। (a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि (b) अन्तरण में 20 की कमी।
उत्तर:
(a) सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि होने पर सन्तुलन आय में परिवर्तन को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात करेंगे
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{1}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{G}\)
अथवा
\(\frac{1}{1-\mathrm{MPC}} \times \Delta \mathrm{G}\)
\(=\frac{1}{1-0.75} \times 20\)
\(=\frac{1}{0.25} \times 20\)
= 4 x 20
= 80 अतः सरकार के क्रय में 20 की वृद्धि होने पर सन्तुलित आय में 80 की वृद्धि होगी।
(b) अन्तरण में 20 की कमी होने पर अन्तरण में 20 की कमी होने पर सन्तुलन आय में भी कमी होगी, इसे निम्न सूत्र द्वारा मापा जा सकता है।
\(\Delta \mathbf{Y}=\frac{\mathrm{C}}{1-\mathrm{MPC}} \times \overline{\mathrm{TR}}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{0.75}{1-0.75} \times(-20) \\ &=\frac{0.75}{0.25} \times(-20) \end{aligned}\)
= 3 x - 20
= - 60 अतः अन्तरण में 20 की कमी होने पर सन्तुलन आय में 60 की कमी होगी।
प्रश्न 10.
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक सरकारी व्यय गुणक से छोटा क्यों होता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
निरपेक्ष मूल्य में कर गुणक, सरकारी व्यय गुणक से छोटा होता है क्योंकि सरकारी व्यय में वृद्धि कुल
व्यय को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है जबकि करों में वृद्धि केवल गृहस्थ उपभोग को प्रभावित करती है जो कि कुल व्यय का एक भाग है।
इसे हम एक उदाहरण की सहायता से स्पष्ट कर सकते हैं यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 है तथा सरकारी व्यय में 10 के बराबर वृद्धि की जाए तो सरकारी व्यय गुणक निम्न प्रकार होगा।
\(\frac{\Delta \mathbf{Y}}{\Delta \mathrm{G}}=\frac{1}{1-\mathrm{C}}\)
\(=\frac{1}{1-0.75}=\frac{1}{0.25}=4\)
तथा आय में परिवर्तन निम्न प्रकार होगा।
\(\begin{aligned} \Delta \mathrm{Y} &=\frac{1}{1-\mathrm{C}} \Delta \mathrm{G} \\ &=\frac{1}{1-0.75} \times 10 \\ &=\frac{1}{0.25} \times 10 \end{aligned}\)
= 4 x 10
= 40 इसके विपरीत यदि सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति 0.75 हो तथा करों में 10 के बराबर वृद्धि की जाए तो कर गुणक निम्न प्रकार होगा:
\(\frac{\Delta \mathrm{Y}}{\Delta \mathrm{T}}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}}\)
\(=\frac{-0.75}{1-0.75}=\frac{-0.75}{0.25}=-3\)
तथा आय में परिवर्तन निम्न प्रकार होगा।
\(\Delta \mathrm{Y}=\frac{-\mathrm{C}}{1-\mathrm{C}} \times \Delta \mathrm{T}\)
\(\begin{aligned} &=\frac{-0.75}{1-0.75} \times 10 \\ &=\frac{-0.75}{0.25} \times 10 \end{aligned}\)
= - 3 x 10
= - 30 अत: कर गुणक, सरकारी व्यय गुणक से छोटा होगा।
प्रश्न 11.
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण ग्रहण में क्या संबंध है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सरकारी घाटे और सरकारी ऋण ग्रहण में धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है। यदि सरकारी घाटे में वृद्धि होती जाती है तो सरकार द्वारा इसके घाटे की पूर्ति के लिए अधिक ऋण लेना पड़ेगा। इसके विपरीत यदि सरकारी घाटे में कमी होती है तो सरकारी ऋण ग्रहण में कमी आएगी।
प्रश्न 12.
क्या सार्वजनिक ऋण बोझ बनता है? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सार्वजनिक ऋण के सम्बन्ध में दो महत्त्वपूर्ण पहलू हैं: प्रथम, क्या सरकारी ऋण पर एक बोझ होता है और द्वितीय, ऋण के लिए वित्तीयन संबंधी विचार। ऋण - ग्रहण कर सरकार उपभोग का बोझ कम करने के लिए अगली पीढ़ी को हस्तांतरित कर देती है, क्योंकि सरकार आज बंधपत्र जारी कर जनता से जो ऋण - ग्रहण करती है और उसका भुगतान लगभग 20 वर्ष बाद कर में वृद्धि करके कर सकती है। ये कर उस युवा आबादी पर लगाए जा सकते हैं, जिसने अभी काम करना आरम्भ ही किया है। उनकी प्रयोज्य आय में ह्रास होगा और इस प्रकार उपभोग में भी कमी आयेगी।
अत: ऐसा तर्क दिया जाता है कि राष्ट्रीय बचत में गिरावट आयेगी। इसके अतिरिक्त, जनता से सरकार द्वारा ऋण - ग्रहण करने से निजी क्षेत्र के लिए उपलब्ध बचत में भी कमी आयेगी। इससे कुछ हद तक पूंजी निर्माण और वृद्धि में भी कमी आयेगी, क्योंकि ऋण को अगली पीढ़ी पर 'बोझ' के रूप में देखा जाता है। परंपरागत तौर पर यह तर्क दिया जाता है कि जब सरकार कर में कटौती करती है और घाटे का बजट बनाती है, तो उपभोक्ता अधिक व्यय करके कर से बचने वाली आय का इस्तेमाल करता है। संभव है कि लोग अल्पद्रष्टा हों और बजटीय घाटे के निहितार्थ को नहीं समझते हों।
वे नहीं समझ सकते हैं कि भविष्य में किसी समय सरकार को ऋण और संचित ब्याज का भुगतान करने के लिए करों में वृद्धि करनी पडेगी। इस बात की समझ होने के बाद भी वे भविष्य में करों का बोझ अपने ऊपर पड़ने की आशा नहीं करते बल्कि उम्मीद करते हैं कि यह अगली पीढ़ियों पर पड़ेगा। इसके विरुद्ध तर्क यह है कि उपभोक्ता दूरदर्शी होते हैं और उनका व्यय न केवल वर्तमान आय पर निर्भर करता है बल्कि वे भविष्य में होने वाली आय की आशा से भी व्यय करते हैं। वे समझेंगे कि आज ऋण लेने से भविष्य में कर उच्च होगा।
पुनः उपभोक्ता आने वाली पीढ़ी के बारे में भी चिंतित रहते हैं, क्योंकि आने वाली पीढ़ियाँ वर्तमान पीढ़ी के ही बच्चे या नाती-पोते होते हैं और परिवार जो इस संबंध में निर्णय लेने वाली एक इकाई है, हमेशा विद्यमान रहता है। वे अब अपनी बचत में वृद्धि करेंगे, जिससे सरकार की निर्बचत में वृद्धि पूर्ण रूप से प्रति संतुलित हो जाएगी और इससे राष्ट्रीय बचत में कोई परिवर्तन नहीं होगा। इस मत को रिकार्डो समतुल्यता कहते हैं। डेविड रिकार्डो 19वीं शताब्दी के महान अर्थशास्त्रियों में से एक थे, जिन्होंने सबसे पहले कहा था कि उच्च घाटे की स्थिति में लोग अधिक बचत करते हैं।
इसे 'समतुल्यता' कहते हैं, क्योंकि यह कहा जाता है कि करारोपण और ऋण-ग्रहण व्यय के लिए समतुल्य वित्त साधन हैं। आज जब सरकार ऋण लेकर व्यय में वृद्धि करती है जिस ऋण का भुगतान भविष्य में करों के द्वारा किया जाएगा, तो अर्थव्यवस्था पर इसका वैसा ही प्रभाव पड़ेगा जैसा कि आज कर में वृद्धि के द्वारा वित्त की व्यवस्था करके सरकारी व्यय में वृद्धि करने से पड़ता है। प्रायः यह तर्क दिया जाता है कि "ऋण से कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि हम अपने लिए ऋण-ग्रहण करते हैं।" यही कारण है कि यद्यपि दो पीढ़ियों के बीच संसाधनों का हस्तांतरण होता है, फिर भी क्रय - शक्ति राष्ट्र के अधीन ही रहती है। किन्तु विदेशियों से लिया गया कोई भी ऋण एक बोझ होता है, क्योंकि हमें ब्याज अदायगी के अनुरूप वस्तुएँ विदेश भेजनी पड़ती हैं।
प्रश्न 13.
क्या राजकोषीय घाटा आवश्यक रूप से स्फीतिकारी है?
उत्तर:
उच्च राजकोषीय घाटे के साथ माँग ऊँची और निर्गत अत्यधिक होते हैं अतः इसके स्फीतिकारी होने की आवश्यकता नहीं होती है।
प्रश्न 14.
घाटे में कटौती के विषय पर विमर्श कीजिए।
उत्तर:
घाटे में कटौती: करों में वृद्धि अथवा व्यय में कटौती से सरकारी घाटे में कमी की जा सकती है। भारत में सरकार कर राजस्व में वृद्धि करने के लिए प्रत्यक्ष करों पर ज्यादा भरोसा करती है (अप्रत्यक्ष कर अपनी प्रकृति में प्रतिगामी होता है और इनका प्रभाव सभी आय समूह के लोगों पर समान रूप से पड़ता है)। सार्वजनिक उपक्रमों के शेयरों की बिक्री के माध्यम से प्राप्तियों में बढ़ोतरी करने का भी एक प्रयास किया गया है। किन्तु सरकारी व्यय में कटौती पर विशेष बल दिया गया है। सरकार के कार्यकलापों को सुनियोजित कार्यक्रमों और सुशासनों के माध्यम से संचालित करने से ही सरकारी व्यय में कटौती की जा सकती है।
योजना आयोग के द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन में यह आकलन किया गया है कि गरीबों तक 1 रु. का लाभ पहुंचाने के लिए सरकार खाद्य उपदान के रूप में 3.65 रु. व्यय करती है। यह व्यय सरकार इस उद्देश्य से करती है कि नकद राशि के अंतरण से लोगों के कल्याण में वृद्धि होगी। सरकार के कार्यक्षेत्र को बदलने का दूसरा तरीका यह है कि सरकार जिन क्षेत्रोंमें कार्य करती रही है, उनमें से कुछ क्षेत्र निकाल दिए जाएँ। कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य, निर्धनता निवारण जैसे महत्त्वपर्ण क्षेत्रों में सरकार के कार्यक्रमों को रोकने से अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल असर पड़ेगा। अनेक देशों में सरकार अत्यधिक घाटे का वहन करती है।
पूर्व निर्धारित स्तरों पर व्यय में वृद्धि नहीं करने के लिए सरकार स्वयं पर प्रतिबंधों का आरोपण करती है। उपर्युक्त कारकों को ध्यान में रखते हुए इनका परीक्षण करना होगा। हमें यह ध्यान रखना होगा कि वृहत्तर घाटा हमेशा अधिक विस्तारित राजकोषीय नीति का परिणाम नहीं होता है। समान राजकोषीय नीतियाँ बड़े अथवा छोटे दोनों ही प्रकार के' घाटों को जन्म दे सकती हैं, जो अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ, यदि किसी अर्थव्यवस्था में अमंदी और सकल घरेलू उत्पाद में गिरावट देखने को मिलती है, तो इसका कारण है कि फर्म और परिवार की जब आय कम होती है, तो वे कम कर अदा करते हैं। तात्पर्य यह है कि अमंदी की स्थिति में घाटे में बढ़ोतरी होती है तथा तेजी की स्थिति में कमी, जबकि राजकोषीय नीति में कोई परिवर्तन नहीं होता है।
प्रश्न 15.
वस्तु एवं सेवाकर (GST) से आप क्या समझते हैं? पुरानी कर व्यवस्था के मुकाबले GST व्यवस्था कितनी श्रेष्ठ है? इसकी श्रेणियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वस्तु एवं सेवा कर (GST): भारत में वस्तु एवं सेवाकर (GST) 1 जुलाई, 2017 को लागू किया गया। वस्तु एवं सेवा कर, उत्पाद को सेवा प्रदायकों से सीधे ही वस्तु एवं सेवाओं की पूर्ति पर लगाया गया एकल व्यापक अप्रत्यक्ष कर है। यह गंतव्य आधारित उपभोग कर है जिस पर पूर्ति श्रृंखला में आगत जमा की सुविधा प्राप्त है। वस्तु एवं सेवाकर में पूरे देश में एक प्रकार की वस्तुओं एवं सेवाओं पर एक समान दर से कर लगाया जाता है। इस कर में बड़ी संख्या में केन्द्रीय एवं राज्यकीय करों एवं उपकरों को मिला दिया गया है।
इसने वस्तुओं एवं सेवाओं पर करों को जो वस्तुओं के उत्पादन। बिक्री अथवा सेवाओं के प्रदान करने पर लगाए जाते थे, प्रतिस्थापित कर दिया है। स्वतंत्रता के पश्चात्, वस्तु एवं सेवाकर, देश में सबसे बड़ा कर सुधार है जो 30 जून/1 जुलाई 2017 की अर्धरात्रि को संसद के द्वारा देश में लागू किया गया। ग्यारहवें संविधान संशोधन अधिनियम को 8 सितम्बर 2016 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली। इस संशोधन से संविधान में धारा 246A शामिल हुआ जिसने संसद तथा राज्यों की विधानसभाओं का वस्तुओं एवं सेवाकर संबंधी कानून बनाने का अधिकार प्रदान किया। इसके पश्चात् वस्तुओं सेवाकर के लिए GST Act, UTGST Act और SGST Acts पारित किये गये। अधिनियम, प्रक्रियाएँ और पूरे भारत में करों की दरों का मानकीकरण हो गया है। इसने वस्तुओं और सेवाओं के आवागमन की स्वतंत्रता को सुविधाजनक बना दिया है और पूरे भारत में एक 'कॉमन बाजार' का सृजन कर दिया है।
इसका उद्देश्य व्यवसायिक लागत और उपभोक्ताओं पर विभिन्न करों के सोपानन प्रभाव को कम करना है। इसके उत्पादन की कुल लागत को कम कर दिया है जो घरेल तथा अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में भारतीय वस्तुओं एवं सेवाओं और अधिक प्रतियोगी बनायेगी। इससे आर्थिक विकास बढ़ेगा क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में कोई 2 प्रतिशत की वृद्धि होगी। कर अनुपालन भी अधिक होगा क्योंकि कर अदायगी संबंधी सेवाएँ जैसे पंजीकरण, रिटर्न भरना, कर अदायगी, सभी एक सामान्य पोर्टल www.gst.gov.in पर ऑन-लाइन उपलब्ध हैं। इसने कर आधार को विस्तृत कर दिया है, कर व्यवस्था में अधिक पारदर्शिता ला दी है, सरकार और करदाताओं के बीच मानव अंर्तप्रदेश को कम कर दिया है और व्यवसाय करने की सुविधा को बढ़ावा दे रही है।
पुरानी कर व्यवस्था की तुलना में GST की श्रेष्ठता: वस्तु एवं सेवा कर लगने से पूर्व की अवधि में, अनेकों मध्यवर्ती वस्तुएँ सेवाएँ जो अर्थव्यवस्था में उत्पादन कर रही थीं, पर प्रत्येक स्तर पर वर्धित मूल्य पर एवं वस्तु / सेवा के कुल मूल्य पर बिना किसी आगत कर जमा (ITC) के कर लगाये जाते थे। कुल मूल्य में मध्यवर्ती वस्तुओं / सेवाओं पर दिया गया कर सम्मिलित था। इससे करों का सोपानन हो जाता था। वस्तु और सेवा पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर लिया जाता है और पूर्व के स्तर पर दिये गये, कर का क्रेडिट अगली स्टेज पर वस्तु सेवा की पूर्ति के स्तर पर मुजरा दिया जाता है। इस प्रकार यह प्रभावी रूप से पूर्ति के प्रत्येक स्तर पर एक मूल्य वर्जित कर है।
हमारी विशाल एवं तेजी से विकसित हो रही अर्थव्यवस्था को ध्यान में रखते हुए, यह पूरे देश में कराधार में समता और मूल्य संवर्धित कर के सिद्धांतों को सभी वस्तुओं और सेवाओं पर स्थापित करता है। इसने केन्द्र/ राज्य/ केन्द्रशासित प्रदेशों के द्वारा लगाये गये विभिन्न प्रकार के करों/उपकरों को प्रतिस्थापित कर दिया है। केन्द्र द्वारा लगाये गये कुछ कर केन्द्रीय उत्पादन कर, सेवाकर, केन्द्रीय बिक्री कर और कृषि कल्याण कर, स्वच्छ भारत कर उपकर थे। राज्य के प्रमुखकर, वाट/सेल्सटैक्स, प्रवेशकर, विलासिता कर, चुंगी, मनोरंजन कर विज्ञापनों पर कर, लौटरी/बैंटिंग/जुआ कर, वस्तुओं पर राज्यीय कर आदि थे।
ये सब वस्तु एवं सेवा में सम्मिलित हो गये हैं। वस्तु एवं सेवाकर की श्रेणियाँ: वर्तमान में पेट्रोलियम पदार्थों को वस्तु एवं सेवा कर से बाहर रखा गया है, लेकिन समय बीतने के साथ इन्हें भी वस्तु एवं सेवाकर में समाहित कर दिया जायेगा। मानव उपयोग के लिये मादक पेयों पर राज्य सरकारें वस्तु और सेवाकर लगाती रहेंगी। तम्बाकू तथा तम्बाकू पदार्थों पर वस्तु एवं सेवा कर तथा केन्द्रीय उत्पादन कर दोनों लगेंगे। वस्तु एवं सेवाकर के अन्तर्गत पूरे देश में वस्तुओं और अथवा वस्तुओं पर 6 मानक दरें जैसे, 0%, 3%, 5%, 12%, 18% तथा 28% लागू होगी।