Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 12 Biology Chapter 2 पुष्पी पादपों में लैंगिक प्रजनन Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताएं जहाँ नर एवं मादा युग्मकोभिद का विकास होता है।
उत्तर:
नर युग्मकोभिद् अर्थात परागकण का विकास पुंकेसर के पराग कोष में तथा मादा युग्मकाद्भिद् अर्थात भ्रूणकोष का विकास बीजाण्ड (जो कि अण्डाशय में स्थित होता है) में होता है।
प्रश्न 2.
लघुबीजाणुधानी तथा गुरुबीजाणुधानी के बीच अन्तर स्पष्ट करें। इन घटनाओं के दौरान किस प्रकार का कोशिका विभाजन सम्पन्न होता है? इन दोनों घटनाओं के अन्त में बनने वाली संरचनाओं के नाम बताएं।
उत्तर:
लघुबीजाणुधानी व गुरुबीजाणुधानी में अन्तर
लघुबीजाणुधानी (Microsporangium) |
गुरुबीजाणुधानी (Megasporangium) |
1. संरचना: एक चतुष्कोणीय परागकोष में चारों कोनों पर चार लघुबीजाणुधानियाँ स्थित होती है। परिपक्व लाघुबीजाणुधानी पराग थैली (pollen sac) कहलाती है |
अण्डाशय में स्थित बीजाण्ड को गुरुबीजाणुधानी कहा जाता है। यह बीजाण्डवृत्त की मद्द से अण्डाशय के बीजाण्डासन भाग से जुड़ी रहती है। |
2. लघुबीजाणुधानी को भित्ति चार स्तरों की बनी होती है - एपीडर्मिस, एण्डोथीसियम, |
गुरुबीजाणुधानी के प्राय: दो सुरक्षात्मक आवरण (अध्यावरण) होते हैं। |
3. मध्य परत व टेपीटम |
गुरुबीजाणुधानी में बीजाण्डद्वार भी पाया जाता है। बीच का भाग बीजाण्डकाय लघुवीजाणुधानी में अनेक लघुबीजाणु कहलाता है। |
4. लघुबीजाणुधानी में अनेक लघुबीजाणु मातृ कोशिकाएँ बनती हैं |
एक गुरुवीजाणुधानी में प्रायः एक ही गुरुबीजाणु मातृ कोशिका विकसित होती है। |
5. विभाजन: लघुबीजाणु मातृ कोशिका में अर्धसूत्री विभाजन होता है जो लघुबीजाणुजनन कहलाता है |
गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में भी अर्धसूत्री विभाजन ही होता है, जो गुरुबीजाणुजनन कहलाता है। |
6. अन्त में बनने वाली रचनाएँ: लघुबीजाणुजनन से चार अगुणित लघुबीजाणु बनते हैं जो चतुष्क रूप में व्यवस्थित रहते हैं। चारों बाद में परागकण (नर युग्मकोमिद्) में परिवर्तित हो जाते हैं। |
गुरुबीजाणु जनन से बने चार अगुणित गुरुबीजाणुओं में तीन प्राय: नष्ट हो जाते हैं। शेष बचा गुरुबीजाणु भ्रूणकोष (मादा युग्मकोद्भिद्) का निर्माण करता है। |
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दावली को सही विकासीय क्रम में व्यवस्थित करें। परागकण, बीजाणुजन ऊतक, लघुबीजाणुचतुष्क, परागमातृ कोशिका, नर युग्मक
उत्तर:
उपयुक्त शब्दों का सही विकासीय क्रम होगा-
प्रश्न 4.
एक प्रारूपी आवृतबीजी बीजाण्ड के भागों का विवरण दिखाते हए एक स्पष्ट एवम् साफ सुथरा नामांकित चित्र बनाएँ।
उत्तर:
प्रारूपिक बीजाण्ड (एनादापस बीजाण्ड): पुष्पीय पौधों में बीजाण्ड या गुरुबीजाणुधानी अण्डाशय के बीजाण्डासन पर स्थित होता है। एक अण्डाशय में एक या अनेक बीजाण्ड हो सकते हैं।
इसके विभिन्न भाग निम्नलिखित है:
प्रश्न 5.
आप मादा युग्मकोभिद के एक बीजाणुक विकास से क्या समझते हैं?
उत्तर:
गुरुबीजाणु मात कोशिका के अर्धसूत्री विभाजन से बने गुरुबीजाणुओं में से केवल एक क्रियाशील रहता है व बाकी तीन नष्ट हो जाते हैं। यही क्रियाशील गुरुबीजाणु तीन बार समसूत्री रूप से विभाजित होकर आठ केन्द्रकीय भ्रूणकोष बना देता है। अर्थात जब भ्रूणकोष के विकास में केवल एक ही गुरुबीजाणु भाग लेता है तब इसे एकबीजाणुक (Monosporic) विकास कहते हैं। इस प्रकार का भ्रूणकोष अधिकांश आवृतबीजी पौधों में पाया जाता है। अत: सामान्य प्रकार का कहा जाता है। इसे सर्वप्रथम पोलीगोनम डाइबेरिकेटम (Polygonum divaricatum) पौधे में देखा गया था। अत: यह पोलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष विकास कहलाता है। इसमें बीजाण्ड द्वार की ओर एक अण्ड कोशिका व दो सहायक कोशिकाओं से बना एक अण्ड उपकरण, विपरीत सिरे की ओर तीन प्रतिमुखी कोशिकाएँ तथा बौच की एक केन्द्रीय कोशिका में 2 ध्रुवीय केन्द्रक होते है। अर्थात् यह 7 कोशिकीय व 8 केन्द्रकीय होता है।
प्रश्न 6.
एक स्पष्ट एवं साफ सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोद्भिद् के 7 कोशिकीय व 8 केन्द्रकीय (nucleate) प्रकृति की व्याख्या करें।
उत्तर:
गुरुबीजाणु मात कोशिका के अर्धसूत्री विभाजन से बने गुरुबीजाणुओं में से केवल एक क्रियाशील रहता है व बाकी तीन नष्ट हो जाते हैं। यही क्रियाशील गुरुबीजाणु तीन बार समसूत्री रूप से विभाजित होकर आठ केन्द्रकीय भ्रूणकोष बना देता है। अर्थात जब भ्रूणकोष के विकास में केवल एक ही गुरुबीजाणु भाग लेता है तब इसे एकबीजाणुक (Monosporic) विकास कहते हैं। इस प्रकार का भ्रूणकोष अधिकांश आवृतबीजी पौधों में पाया जाता है। अत: सामान्य प्रकार का कहा जाता है। इसे सर्वप्रथम पोलीगोनम डाइबेरिकेटम (Polygonum divaricatum) पौधे में देखा गया था। अत: यह पोलीगोनम प्रकार का भ्रूणकोष विकास कहलाता है। इसमें बीजाण्ड द्वार की ओर एक अण्ड कोशिका व दो सहायक कोशिकाओं से बना एक अण्ड उपकरण, विपरीत सिरे की ओर तीन प्रतिमुखी कोशिकाएँ तथा बौच की एक केन्द्रीय कोशिका में 2 ध्रुवीय केन्द्रक होते है। अर्थात् यह 7 कोशिकीय व 8 केन्द्रकीय होता है।
प्रश्न 7.
उन्मील परागणी पुष्पों से क्या तात्पर्य है? क्या अनुन्मील्य परागणी पुष्पों में परपरागण सम्पन्न होता है? अपने उत्तर की तर्क सहित व्याख्या करें।
उत्तर:
उन्मील परागणी पुष्प (Chasmogamous flower) सामान्य पुष्पों की तरह हैं जिनमें परागकोष व वर्तिकाय अनावृत अर्थात खुले हुए होते है। यह साधारण खिलने वाले पुष्प है। अनुन्मील्य परागणी पुष्प (Cleistogamous flower), कभी न खुलने (खिलने) वाले पुष्प हैं। चूँकि ये पुष्प हमेशा ही बन्द रहते हैं। अत: परागकोष व वर्तिकाय अनावृत नहीं हो पाते। इसका अर्थ यह है कि न तो इनके परागकोषों से परागकण किसी दूसरे पुष्प तक जा सकते हैं और न ही इनका वर्तिकान दूसरे पुष्प के परागकण ग्रहण कर सकता है। स्पष्ट है, इनमें पर परागण सम्पन्न नहीं हो सकता, क्योंकि पर परागण में किसी एक पुष्प के परागकोषों से निकले परागकणों का उसी प्रजाति के किसी दूसरे पौधे पर स्थित पुष्य के वर्तिकान पर स्थानान्तरण आवश्यक होता है। वास्तव में अनुन्मील्यता (Cleistogamy) स्व परागण सुनिश्चित करने की एक युक्ति है।
प्रश्न 8.
पुष्पों द्वारा स्व परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्य नीतियों का विवरण दें।
उत्तर:
पुष्पों द्वारा स्व परागण रोकने के लिए विकसित की गई दो कार्य नीतियाँ हैं-
1. भिन्न कालपक्वता (Dichogamy) भिन्न कालपक्वता स्वपरागण रोकने अर्थात बहि: प्रजनन को बढ़ावा देने वाली प्रमुख युक्ति है। इस विधि में परागकोषों से परागकणों की मुक्ति के समय व वर्तिकान की ग्राह्यता (receptivity) के समय में सामन्जस्य नहीं होता। इसका अर्थ है कि परागकोष व वर्तिकाग्र अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं, अत: स्व परागण नहीं हो पाता। यह दो प्रकार की होती है
2. एकलिंगता (Unisexuality) पपीता, खजूर आदि में नर व मादा पुष्प अलग-अलग पौधों पर स्थित होते है। अर्थात यह एकलिंगाश्रयी (Dioecious) होते हैं। इन पौधों में स्वपरागण की सम्भावना पूर्णतः समाप्त हो जाती है।
प्रश्न 9.
स्व अयोग्यता क्या है? स्व अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व परागण प्रक्रिया बीज निर्माण तक क्यों नहीं पहुंच पाती है?
उत्तर:
स्व असंगतता अथवा स्व अनिषेच्यता (स्व - अयोग्यता) (Self incompatibility): स्व असंगतता, स्य अनिषेच्यता (स्व बन्ध्यता) एक प्रकार की आनुवांशिक प्रक्रिया है जो अन्त: प्रजनन (inbreeding) को रोकने का कार्य करती है। इस प्रक्रिया में किसी पुष्प के वर्तिकान पर उसी पुष्प के परागकण अथवा उसी पौधे पर स्थित किसी अन्य पुष्प के परागकण का या तो अंकुरण ही रुक जाता है अथवा पराग नलिका की वृद्धि बाधित हो जाती है। सीधे शब्दों में यह स्वपरागण को सफल न होने देने की प्रक्रिया है। बीज बनने के लिए निषेचन एक अनिवार्यता है। पुष्पीय पौधों में परागण के बाद नर युग्मक को मादा युग्मक के पास तक लाने का कार्य पराग नलिका करती है। पराग नलिका द्वारा नर बुग्मक का मादा युग्मक के पास तक पहुँचना साइफोनोगैमी (siphonogamy) कहलाता है। चूंकि स्व असंगतता प्रदर्शित करने वाले पौधों में स्व परागण के बाद या तो परागकण का अंकुरण ही रोक दिया जाता है, अथवा वर्तिका में ही पराग नलिका की वृद्धि बाधित कर दी जाती है। अत: नर युग्मक मादा युग्मक तक नहीं पहुँच पाता। दूसरे शब्दों में निषेचन के लिए अनिवार्य साइफोनोगैमी पर रोक लगने के कारण बीज निर्माण सम्भव नहीं हो पाता।
प्रश्न 10.
बैंगिंग (बोरावस्त्रावरण) या थैली लगाना तकनीक क्या है? पादप जनन कार्यक्रम में वह कैसे उपयोगी है?
उत्तर:
पादप प्रजनन कार्यक्रम की एक प्रमुख विधि है कृत्रिम संकरण (artificial hybridization) जिसके दो पद हैं विपुंसन (emasculation) व बैगिंग (bagging) बैगिंग की प्रक्रिया में मादा जनक के रूप में लिए गये पुष्प को विपुंसन के बाद बटर पेपर (butter paper) से बनी एक थैली द्वारा बाँध दिया जाता है। एक लिंगी मादा जनक पौधे के पुष्प को भी थैली द्वारा बाँध दिया जाता है। यह थैली ग्राह्य वर्तिकान को किसी अवांछित (Undesirable) परागकण से परागित नहीं होने देती। वर्तिकान को वांछित परागकण से परागित करने के बाद थैली पुन: बाँध दी जाती है ताकि अन्य कोई परागकण यहाँ न पहुंच सके। बैगिंग चयनित पादप प्रजनन कार्यक्रम की सफलता हेतु आवश्यक है ताकि केवल वांछित संकरण उत्पाद प्राप्त हो सकें।
प्रश्न 11.
त्रिसंलयन क्या है? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है? त्रिसंलयन में सम्मिलित केन्द्रकों का नाम बताएँ।
उत्तर:
त्रि - संलयन (Triple fusion) पुष्पीय पौधों में होने वाले द्विनिषेचन (double fertilization) का एक पद है। चूंकि इनमें तीन केन्द्रकों का संलयन होता है अतः यह त्रि - संलयन कहलाता है। त्रि - संलयन भ्रूणकोष (embryo sac) में सम्पन्न होता है। परागनलिका द्वारा भ्रूणकोष में मुक्त किये गये दो नर युग्मकों में से एक भ्रूणकोष की केन्द्रीय कोशिका में स्थित दो ध्रुवीय केन्द्रकों (polar nuclei) से संलयित हो जाता है। इन तीन केन्द्रकों के संलयन से त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक का निर्माण होता है। अत: इसमें सम्मिलित केन्द्रक हैं-
1 नर युग्मक + 2 ध्रुवीय केन्द्रक = त्रिगुणित प्राथमिक भ्रूणपोष केन्द्रक
प्रश्न 12.
एक निषेचित बीजाण्ड में कुछ समय की युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं?
उत्तर:
एक निषेचित बीजाण्ड में कुछ समय के लिए युग्मनज (zygote) का प्रसुप्ति अवस्था में रहना पुष्पीय पौधों का एक विशिष्ट अनुकूलन है। प्रसुप्ति के इस समय में युग्मनज भ्रूणकोष को विकास का समय प्रदान करता है। अधिकांश पुष्पीय पौधों में युग्मनज में विभाजन तब तक प्रारम्भ नहीं होता जब तक कि भ्रूणपोष का कुछ न कुछ विकास नहीं हो पाता। भ्रूणपोष एक पोषक ऊतक है जो विकासशील भ्रूण को पोषण उपलब्ध कराता है। अत: धूणपोष का भ्रूण से पहले बनना आवश्यक है। युग्मनज की प्रसुप्ति भ्रूणपोष को विकास की पर्याप्त अवधि व अवसर प्रदान करती है।
प्रश्न 13.
इनमें विमेद करें-
(क) बीज पत्राधार और बीजपत्रोपरिक
(ख) प्रांकुर चोल तथा मूलांकुर चोल
(ग) अध्यावरण व बीज चोल
(घ) परिभ्रूण पोष एवं फलभित्ति
उत्तर:
(क) बीज पत्राधार व बीज पत्रोपरिक (Hypocotyl and Epicotyl)
बीज पत्राधार (hypocotyl) व बीजपत्रोपरिक (epicotyl) भ्रूणीय अक्ष के भाग है। भ्रूणीय अक्ष का बीज पत्र से जुड़ाव से नीचे का भाग बीजपत्राधार कहलाता है व इसके नीचे मूलांकुर स्थित होता है। दूसरी ओर भ्रूणीय अक्ष का बीज पत्र से जुड़ाव से ऊपर का हिस्सा बीजपत्रोपरिक कहलाता है जिसके ऊपर प्रांकुर (plumule) स्थित होता है। बीजपत्राधार व बीजपत्रोपरिक की वृद्धि क्रमश: मूलांकुर व प्रांकुर को बीज अंकुरण के समय भूमि से बाहर लाती है।
(ख) प्रांकुर चोल व मूलांकुर चोल (Coleoptile and Coleorrhiza): एकबीजपत्री पौधों के बीजों में प्रांकुर व मूलांकुर सुरक्षात्मक आच्छद (Protective sheath) से ढके रहते हैं। जैसा कि नाम से स्पष्ट है प्रांकुर का यह आच्छद प्रांकुर चोल (coleoptile) तथा मूलांकुर का आच्छद मूलांकुर चोल (coleorrhiza) कहलाता है। प्रांकुर चोल घास के नवांकुरों (seedlings) में प्रथम पत्ती की तरह निकलता है। भूमि से ऊपर यह एक प्रांकुर के ऊपर एक सुरक्षात्मक आवरण बनाता है।
(ग) अध्यावरण व बीज चोल (Integument and Testa): बीजाण्ड के चारों ओर पाये जाने वाले एक या दो स्तरीय सुरक्षात्मक आवरण अध्यावरण कहलाते हैं। निषेचन के बाद जब बीजाण्ड परिपक्व होकर बीज के रूप में परिवर्तित हो जाता है तब यह अध्यावरण बीज चोल (testa) कहलाता है। अगर बीजाण्ड में एक ही अध्यावरण है तो इससे केवल बीज चोल (testa) का निर्माण होता है। अध्यावरण के द्विस्तरीय होने पर बीज में भी बीज कवच के दो स्तर होते हैं बाह्य टेस्टा व आन्तरिक टेगमेन।
(घ) परिभ्रूणपोष व फलभित्ति (Perisperm and Pericarp): बीजाण्डकाय (Nucellus) का वह भाग जो बीज बनने के बाद भी भ्रूणपोष के चारों ओर एक पतली परत के रूप में बचा रहता है परिपूणपोष (Perisperm) कहलाता है। स्पष्ट है यह कुछ बीजो में ही पाया जाने वाला भाग है। दूसरी ओर निषेचन के बाद अण्डाशय त्रिस्तरीय फल भित्ति (pericarp) में बदल जाता है। अत: पेरोकार्प फल से सम्बन्धित है जबकि परिभ्रूणपोष बीज से। परिभ्रूणपोष एक स्तरीय तथा फलभित्ति प्रायः त्रिस्तरीय होती है।
प्रश्न 14.
एक सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन - सा भाग फल की रचना करता है?
उत्तर:
निषेचन के बाद पुष्प का अण्डाशय फल के रूप में विकसित हो जाता है, अर्थात परिपक्व अण्डाशय (ripened ovary) ही फल है। सेब में अण्डाशय के अतिरिक्त पुष्पासन (thalamus) भी फल के निर्माण में भाग लेता है। वास्तव में सेब व नाशपती जैसे फलों में पुष्पासन गूदेदार (fleshy) होकर फल का मुख्य खाद्य भाग बनाता है जबकि बीज धारण करने वाले कड़ी परत वाले अण्डाशय को खाने में प्रयोग नहीं किया जाता। ऐसे फल जिनमें अण्डाशय के अतिरिक्त अन्य भाग जैसे पुष्पासन, पुष्पक्रम (inflorescence) फल निर्माण में भाग लेते हैं कूट या आभासी फल (false fruit or pseudocarp) कहलाते हैं।
प्रश्न 15.
विपुंसन से क्या तात्पर्य है? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है?
उत्तर:
पादप प्रजनन (plant breeding) की एक प्रमुख विधि है कृत्रिम संकरण (artificial hybridization)। कृत्रिम संकरण में वांछित गुणों वाले किन्ही दो पादपों में संकरण कराया जाता है। इस संकरण में अगर मादा जनक के रूप में लिया जाने वाला पौधा द्विलिंगी पुष्प धारण करता है तब उसकी कली अवस्था में परागकोषों के स्फुटन से पहले ही परागकोषों को हटाना आवश्यक हो जाता है ताकि यह ग्राहा वर्तिकान को परागित न कर दें। मादा जनक के द्विलिंगी पुष्प से कलिका अवस्था में चिमटी द्वारा परागकोषों को काटकर हटा देना विपुंसन कहलाता है। इस तकनीक का प्रयोग कृत्रिम संकरण में किया जाता है ताकि द्विलिंगी पुष्प के परागकोष से निकले परागकण, मादा जनक के रूप में प्रयोग किये जा रहे पुष्प के वर्तिकान को परागित न कर दें। कृत्रिम परागण की सफलता हेतु यह एक अत्यावश्यक प्रक्रिया है।
प्रश्न 16.
यदि कोई व्यक्ति वृद्धि कारकों का प्रयोग करते हुए अनिवेक जनन को प्रेरित करता है तब आप प्रेरित अनिषेकजनन के लिए कौन से फल चुनते हैं और क्यों?
उत्तर:
अनिषेकजनन द्वारा उत्पन्न फल चूंकि बिना निषेचन के ही बनते हैं अत: यह बीज रहित होते हैं। वृद्धि हामोन्स के प्रयोग द्वारा अनिषेकफलन को प्रेरित किया जा सकता है। ऐसे फल जिनके बीज अधिक आर्थिक महत्व के नहीं होते व फलों को खाते समय बाधा बन जाते है उनमें अनिषेकफलन उपयोगी रहता है। तरबूज (watermelon), संतरा आदि के बीज उनके खाने का मजा कम कर देते है। अत: इनके अनिषेकफल (parthenocarpic) फल बीज रहित होंगे व फल ही गुणवत्ता बढ़ा देंगे।
प्रश्न 17.
परागकण भित्ति की रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या करें।
उत्तर:
टेपोटम परागकोष्ठ (pollen sac) की 4 स्तरीय भित्ति का सबसे भीतरी स्तर बनाता है। टेपीटम लघुबीजाणुओं की बाह्म भित्ति (exine) बनाने में मदद करता है। टेपीटम एक तेलयुक्त पदार्थ परिपक्व परागकण की बाड़ा भित्ति पर लगाता है जिसमें लिपिड्स व कैरोटिनाइड्स होते हैं। कीट परागित पुष्यों के परागकण की पोलेन किट (pollen kit) का निर्माण टेपीटम द्वारा ही होता है। एक्जाइन के प्रतिरोधी पदार्थ स्पोरोपोलेनिन का निर्माण भी टेपीटम की मदद से होता हैं।
प्रश्न 18.
असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्त्व है?
उत्तर:
असंगजनन एक प्रकार का अलैंगिक जनन है जो लैंगिक जनन की नकल करता है। यह लैंगिक जनन के प्रतिस्थापन की ऐसी अलैंगिक विधि है जिसमें बिना युग्मक संलयन के भ्रूण का निर्माण हो जाता है। सरल शब्दों में बिना निषेचन के बीज बनने की क्रिया असंगजनन (apomixis) कहलाती है। कुछ घासे व एस्टीरेसी कुल के कुछ सदस्य असंगजनन प्रदर्शित करते हैं। असंगजनन से बने भ्रूण कभी द्विगुणित कोशिका से विकसित होते हैं व कभी अगुणित कोशिका से। अपस्थानिक भ्रूणता, अर्थात बीजाण्डकाय की किसी कोशिका का भ्रूण में परिवर्तित हो जाना भी असंगजनन का प्रकार है, जैसे सिट्रस में। असंगजनन के कारण एक बीज में एक से अधिक भ्रूण स्थित हो सकते हैं, यह अवस्था बहुभ्रूणता कहलाती है। असंगजनन का महत्व संकर बीज उद्योग में असंगजनन का विशेष महत्व है व विश्व की अनेक प्रयोगशालाओं में इस पर कार्य चल रहा है। ऐसी संकर फसल बनाने का प्रयास किया जा रहा है जो असंगजननिक (apomict) हों। इनको उगाने से ऐसे संकर प्राप्त होंगे जिनके बीजों को साल दर साल उगाया जा सकेगा और उनमें लक्षणों का पृथक्करण नहीं होगा। अत: किसान को हर वर्ष महंगे नये संकर बीज खरीदने की आवश्यकता नहीं होगी।