RBSE Solutions for Class 11 Psychology Chapter 4 मानव विकास

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Psychology Chapter 4 मानव विकास Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Psychology Solutions Chapter 4 मानव विकास

RBSE Class 11 Psychology मानव विकास Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1. 
विकास किसे कहते हैं ? यह संवृद्धि तथा परिपक्वता से किस प्रकार भिन्न है ?
उत्तर : 
विकास का अर्थ : जब हम विकास के बारे में विचार करते हैं तो निरपवाद रूप से हम दैहिक परिवर्तनों के बारे में सोचते हैं, क्योंकि घर में भाई-बहनों में, विद्यालय में मित्रों-सहयोगियों में अथवा घर में माता-पिता एवं दादा-दादी या अपने निकट के अन्य लोगों में ये परिवर्तन सामान्य रूप में देखे जाते हैं। गर्भाधान से लेकर मृत्यु के क्षणों तक हम मात्र दैहिक रूप से ही नहीं परिवर्तित होते हैं बल्कि हम सोचने, भाषा के उपयोग तथा सामाजिक संबंधों को विकसित करने के तरीकों के आधार पर भी परिवर्तित होते रहते हैं।

याद रखें कि परिवर्तन एक व्यक्ति के जीवन के किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं रहते हैं। ये व्यक्ति में एकीकृत रूप से या एक साथ उत्पन्न होते हैं। विकास गतिशील, क्रमबद्ध तथा पूर्वकथनीय परिवर्तनों का प्रारूप हैं जो गर्भाधान से प्रारंभ होता है तथा जीवनपर्यंत चलता रहता है। विकास में मुख्यतया संवृद्धि एवं हास, जो वृद्धावस्था में देखा जाता है, दोनों ही तरह के परिवर्तन निहित होते हैं।

विकास जैविक, संज्ञानात्मक तथा समाज सांवेगिक प्रक्रियाओं की परस्पर क्रिया से प्रभावित होता है। माता-पिता से वंशानुगत रूप से प्राप्त जीन के कारण होने वाले विकास जैसे - लंबाई एवं वजन, मस्तिष्क, हृदय एवं फेफड़े का विकास इत्यादि, ये सभी जैविक प्रक्रियाओं (Biological Processes) की भूमिका को इंगित करते हैं।

संवृद्धि (Growth) : शारीरिक अंगों अथवा संपूर्ण जीव की बढ़ोत्तरी को ही संवृद्धि कहते हैं। इसका मापन अथवा मात्राकरण किया जा सकता है, उदाहरण के लिए ऊँचाई, वजन आदि में

विकास (Development) : यह एक प्रक्रिया है जिसके माध्यम से व्यक्ति अपने संपूर्ण जीवन-चक्र में बढ़ता रहता है एवं परिवर्तित होता रहता है। विकास शब्द उन परिवर्तनों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिनके होने की एक दिशा होती है तथा जिनका इनके पूर्ववर्ती कारकों से एक निश्चित संबंध होता है जो बाद में यह निर्धारित करेंगे कि इसके बाद (इन परिवर्तनों के बाद) क्या आएगा या क्या घटित होगा (किस तरह के परिवर्तन होंगे)। अल्पकालिक बीमारी के कारण होने वाले अस्थायी परिवर्तन, उदाहरणार्थ, विकास के अंतर्गत नहीं आते हैं।

विकास के फलस्वरूप होने वाले सभी परिवर्तन एक जैसे नहीं होते। अतः आकार में परिवर्तन (शारीरिक संवृद्धि), अनुपात में परिवर्तन (बच्चे से प्रौढ़), अभिलक्षणों अथवा आकृति में परिवर्तन (दूध के दाँतों का निकल जाना) तथा नयी आकृतियों या अभिलक्षणों को पाना, ये सभी परिवर्तन अपनी गति तथा व्यापकता के स्तर में भिन्न होते हैं। संवृद्धि, विकास का एक पक्ष है। परिपक्वता (Maturation) उन परिवर्तनों को इंगित करता है जो एक निर्धारित क्रम का अनुसरण करते हैं।

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प्रश्न 2. 
विकास के जीवनपर्यंत परिप्रेक्ष्य की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर : 
जीवनपर्यंत परिप्रेक्ष्य के अनुसार विकास के अध्ययन में निम्नलिखित मान्यताएँ या पूर्वधारणाएँ निहित हैं :

(i) विकास जीवन भर चलने वाली प्रक्रिया है, अर्थात् विकास गर्भाधान से प्रारंभ होकर वृद्धावस्था तक सभी आयु समूहों में होता है। इसमें प्राप्तियाँ तथा हानियाँ दोनों ही सम्मिलित हैं, जो संपूर्ण जीवन-विस्तार में गतिशील तरीके से (एक पक्ष में परिवर्तन के साथ दूसरे पक्ष में भी परिवर्तन का होना) अंतःक्रिया करती हैं।

(ii) जन्म से मृत्यु तक की संपूर्ण अवधि में मानव विकास की विभिन्न प्रक्रियाएँ, अर्थात् जैविक, संज्ञानात्मक तथा समाजसंवेगात्मक, एक व्यक्ति के विकास में एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से संबंधित रहते हैं।

(iii) विकास बहु-दिश है। विकास के एक दिए हुए आयाम के कुछ आयामों या घटकों में वृद्धि हो सकती है, जबकि दूसरे हास का प्रदर्शन कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, प्रौढ़ों के अनुभव उन्हें अधिक बुद्धिमान बना सकते हैं तथा उनके निर्णयों को दिशा प्रदान कर सकते हैं। जबकि उम्र बढ़ने के साथ, गति की माँग करने वाले कार्यों जैसे दौड़ना, पर एक व्यक्ति का निष्पादन कम हो सकता है।

(iv) विकास अत्यधिक लचीला या संशोधन योग्य होता है, अर्थात् व्यक्ति के अंतर्गत होने वाले मानसिक विकास में परिमार्जनशीलता पाई जाती है, यद्यपि इस लचीलेपन में एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में भिन्नता पाई जाती है। इसका अर्थ यह है कि संपूर्ण जीवन-क्रम में कौशलों तथा योग्यताओं में सुधार या विकास किया जा सकता है।

(v) विकास ऐतिहासिक दशाओं से प्रभावित होता है। उदाहरणार्थ, भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रहे 20 वर्षीय व्यक्ति का अनुभव आज के 20 वर्षीय व्यक्ति से बहुत भिन्न होगा। आज के विद्यालय स्तर के विद्यार्थियों का कैरियर या जीविका के प्रति रुझान उन विद्यार्थियों से बहुत भिन्न है जो आज से 50 वर्ष पहले विद्यालय स्तर के थे।

(vi) विकास अनेक शैक्षणिक विद्याओं के लिए एक महत्त्वपूर्ण सरोकार है। विभिन्न विषयों; जैसे- मनोविज्ञान, मानवशास्त्र, समाजशास्त्र तथा तंत्रिका विज्ञान में मानव विकास का अध्ययन किया जाता है, प्रत्येक विषय संपूर्ण जीवन क्रम में होने वाले विकास को समझने का प्रयास करता है।

(vii) एक व्यक्ति परिस्थिति अथवा संदर्भ के आधार पर अनुक्रिया करता है। इस संदर्भ के अंतर्गत वंशानुगत रूप से प्राप्त विशेषताएँ, भौतिक पर्यावरण, सामाजिक, ऐतिहासिक तथा सांस्कृतिक संदर्भ आदि सम्मिलित हैं। उदाहरण के लिए, प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में घटित घटनाएँ एक जैसी नहीं होती हैं; जैसे- माता-पिता की मृत्यु, दुर्घटना, भूकंप आदि एक व्यक्ति के जीवन क्रम को जिस प्रकार प्रभावित करती हैं वैसे ही पुरस्कार जीतना, या एक अच्छी नौकरी पा लेना जैसी सकारात्मक घटनाएँ भी विकास को प्रभावित करती हैं। संदर्भो के बदलने के साथ-साथ लोग भी बदलते रहते हैं।

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प्रश्न 3. 
विकासात्मक कार्य क्या है ? उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर : 
विकासात्मक कार्य : विकास की एक अवस्था से दूसरी अवस्था के मध्य विकास के समय तथा दर के सापेक्ष व्यक्ति निश्चित रूप से भिन्न होते हैं। यह देखा जा सकता है कि कुछ व्यवहार प्रारूप तथा कुछ कौशल एक विशिष्ट अवस्था में अधिक आसानी से एवं सफलतापूर्वक सीखे जाते हैं। व्यक्ति की ये उपलब्धियाँ विकास की उस अवस्था के लिए एक सामाजिक अपेक्षा बन जाती हैं। इन्हें विकासात्मक कार्य (Developmental tasks) कहते हैं।

विकास का वर्णन सामान्यतया अवधि या अवस्थाओं के रूप में किया जाता है। आपने यह देखा होगा कि आपके छोटे भाई-बहन, माता-पिता और स्वयं आप भी अलग-अलग तरह से व्यवहार करते हैं। यदि आप अपने पास-पड़ोस में रहने वाले लोगों को देखें तो पाएँगे कि वे भी एक समान व्यवहार नहीं करते हैं। यह अंतर आंशिक रूप से इस कारण है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति जीवन की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में होता है। मानव जीवन विभिन्न अवस्थाओं (Stages) से होते हुए आगे बढ़ता है। उदाहरण के लिए, आप वर्तमान में किशोरावस्था में हैं एवं कुछ वर्ष पश्चात् आप प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करेंगे।

विकासात्मक अवस्थाएँ अस्थायी मानी जाती हैं एवं प्राय: एक प्रभावी लक्षण या प्रमुख विशेषता के द्वारा पहचानी जाती हैं, जो प्रत्येक अवधि को उसकी अद्वितीय विशिष्टता प्रदान करती हैं। एक विशिष्ट अवस्था में व्यक्ति एक निर्धारित लक्ष्य की ओर अग्रसर होता है - एक स्थिति या योग्यता जिसे विकास के अनुक्रम में अगली अवस्था तक बढ़ने से पहले ठीक उसी क्रम में प्राप्त कर लेना चाहिए जिस प्रकार से अन्य व्यक्तियों ने प्राप्त किया है। 

जब मस्तिष्क विकसित होता है, शारीरिक विकास भी अग्रसर होता है। जैसे-जैसे शिशु बढ़ता है, मांसपेशियाँ एवं तंत्रिका तंत्र परिपक्व होते हैं जो सूक्ष्म कौशलों का विकास करते हैं। आधारभूत शारीरिक (पेशीय) कौशलों के अंतर्गत वस्तुओं को पकड़ना एवं उनके पास पहुँचना, बैठना, घुटनों के बल चलना, खड़े होकर चलना और दौड़ना आते हैं। कुछ अपवादों को छोड़कर शारीरिक (पेशीय) विकास का अनुक्रम सार्वभौमिक होता है।

नवजात शिशुओं में श्रवण का स्वरूप कैसा होता है ? नवजात शिशु जन्म के ठीक बाद सुन सकते हैं। नवजात शिशु जैसे-जैसे विकसित होते हैं उनकी ध्वनि की दिशा निर्धारण की दक्षता में सुधार होता है। नवजात शिशु स्पर्श के प्रति अनुक्रिया करते हैं एवं वे पीड़ा की अनुभूति भी कर सकते हैं। घ्राण एवं स्वाद की दोनों क्षमताएँ भी नवजात शिशुओं में होती हैं।

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प्रश्न 4. 
बच्चे के विकास में बच्चे के परिवेश की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उदाहरण की सहायता से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर : 
परिवेशीय प्रभाव क्या है ? परिवेश विकास को किस प्रकार से प्रभावित करता है ? एक अंतर्मुखता की ओर प्रवृत्त करने वाले जीनप्ररूप से युक्त बच्चे की कल्पना कीजिए जो ऐसे परिवेश में है जो सामाजिक अंतःक्रिया तथा बर्हिमुखता को बढ़ावा देता है। ऐसे परिवेश का प्रभाव बच्चे को कुछ बर्हिमुखी बना सकता है। एक उदाहरण देखिए। एक 'छोटे' कद के जीन से युक्त व्यक्ति, यदि वह अच्छे पोषण वाले परिवेश में है तब भी सामान्य से अधिक लंबा होने में कभी भी सक्षम नहीं होगा। इससे यह प्रदर्शित होता है कि जीन सीमाओं को निर्धारित कर देते हैं और इस सीमा के अंतर्गत परिवेश विकास को प्रभावित करता है।

उल्लेखनीय है कि बच्चे के विकास के लिए माता-पिता जीन प्रदान करते हैं। क्या आप जानते हैं कि यह निर्धारित करने में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है कि उनके बच्चे किस तरह के परिवेश को पाएँगे ? सैन्ड्रा स्कार (Sandra Scarr, 1992) का मानना है कि अपने बच्चे को माता-पिता जो परिवेश प्रदान करते हैं वह कुछ सीमा तक उनकी स्वयं की आनुवंशिक पूर्व-प्रवृत्ति पर निर्भर करता है। उदाहरण के लिए, यदि माता-पिता बुद्धिमान हैं तथा अच्छे पाठक हैं तो वे अपने बच्चों को पढ़ने के लिए पुस्तकें देंगे जिसका संभावित परिणाम यह होगा कि उनके बच्चे अच्छे पाठक बन जाएँगे और वे पढ़ने में आनंद का अनुभव करेंगे।

सहयोगी एवं ध्यान देने की प्रवृत्ति जैसे अपने जीन प्रारूप (जो उसे वंशागत रूप से प्राप्त है) के परिणामस्वरूप एक बच्चा, उन बच्चों की तुलना में जो सहयोगी एवं ध्यान देने वाले नहीं हैं, अध्यापकों तथा माता-पिता से अधिक सुखद अनुक्रियाएँ प्राप्त करेगा। इसके अतिरिक्त बच्चे अपने जीन प्ररूप के आधार पर स्वयं कुछ परिवेश का चयन करते हैं। 

उदाहरण के लिए अपने जीन प्रारूप के कारण वे संगीत या खेल-कद में अच्छा निष्पादन कर सकते हैं और वे वैसे परिवेश को खोजेंगे तथा उसमें अधिक समय व्यतीत करेंगे जो उन्हें संगीतपरक कौशलों के निष्पादन या अभ्यास का अवसर प्रदान करेगा; इसी प्रकार एक खिलाड़ी खेल-कूद से संबंधित परिवेश की खोज करेगा। परिवेश से ऐसी अंतःक्रियाएँ शैशवावस्था से लेकर किशोरावस्था तक परिवर्तित होती रहती हैं। परिवेशीय प्रभाव भी उतने ही जटिल हैं जितने कि वंशपरंपरा से प्राप्त जीन।

यदि आपकी कक्षा का मॉनीटर पढ़ने-लिखने में तेज होने तथा लोकप्रिय विद्यार्थी होने के आधार पर चुना जाता है तो क्या आप यह मानते हैं कि यह उसके जीन अथवा परिवेश के प्रभाव के कारण है ? एक ग्रामीण क्षेत्र का बच्चा जो अत्यधिक बुद्धिमान है, यदि अपने को ठीक तरह से अभिव्यक्त न कर पाने अथवा कंप्यूटर उपयोग की जानकारी न होने के कारण एक नौकरी पाने में सक्षम नहीं हो पाता है, तो क्या आप मानते हैं कि यह जीन अथवा परिवेश के कारण है ?

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प्रश्न 5. 
विकास को सामाजिक-सांस्कृतिक कारक किस प्रकार प्रभावित करते हैं ?
उत्तर : 
सामाजिक-सांवेगिक विकास : स्व (Self), लिंग (Gender) तथा नैतिक (Moral) विकास बच्चों के सामाजिकसांवेगिक विकास के महत्त्वपूर्ण आयाम हैं। बाल्यावस्था के प्रारंभिक वर्षों में 'स्व' में कुछ महत्त्वपूर्ण विकास होते हैं। समाजीकरण के कारण बच्चा यह बोध विकसित कर लेता है कि वह कौन है और वह अपनी पहचान किसकी तरह बनाना चाहता है। विकसित हो रहे स्वतंत्रता के बोध के कारण बच्चे कार्यों को अपने तरीके से करने लगते हैं। एरिक्सन के अनुसार, उनकी (बच्चों) स्वप्रेरित क्रियाओं के प्रति माता-पिता जिस प्रकार से प्रतिक्रिया करते हैं वह पहलशक्ति बोध या अपराध बोध को विकसित करता है। 

उदाहरण के लिए, साइकिल चलाना, दौड़ना, स्केटिंग जैसे खेलों के लिए स्वतंत्रता एवं अवसर प्रदान करना तथा बच्चों के प्रश्नों का उत्तर देना, उनके द्वारा की गई पहल के लिए आलंबन की अनुभूति उत्पन्न करेगा। इसके विपरीत, यदि उन्हें यह अनुभव कराया जाता है कि उनके प्रश्न अनुपयोगी हैं, तथा उनके द्वारा खेले गए खेल मूर्खतापूर्ण हैं तो संभव है कि बच्चों में स्वयं के द्वारा प्रारंभ की गई क्रियाओं के प्रति दोष-भावना विकसित होगी, जो बच्चों के बाद के जीवन में भी बनी रह सकती है। 

पूर्व-बाल्यावस्था में आत्मबोध स्वयं को शारीरिक विशेषताओं के आधार पर परिभाषित करने तक सीमित रहता है- मैं लंबा हूँ, उसके बाल काले हैं, मैं एक लड़की हूँ इत्यादि। मध्य एवं विलंबित बाल्यावस्था में बच्चे में संभवतः स्वयं को अपनी आंतरिक विशेषताओं के आधार पर परिभाषित करने की संभावना बढ़ जाती है; जैसे- "मैं फुर्तीला हूँ एवं मैं लोकप्रिय हूँ" अथवा "जब विद्यालय में टीचर मुझे कोई दायित्व सौंपते हैं तो मैं गर्व का अनुभव करता हूँ।" स्वयं को मानसिक विशेषताओं के आधार पर परिभाषित करने के अतिरिक्त बच्चों के आत्म-विवरण के अंतर्गत स्व का सामाजिक पक्ष भी आता है, जैसे स्वयं को सामाजिक समूहों के संदर्भ में देखना; जैसे- विद्यालय के संगीत क्लब, पर्यावरण क्लब अथवा किसी धार्मिक समूह का सदस्य होना। 

बच्चों के आत्मबोध के अंतर्गत सामाजिक तुलना का पक्ष भी आता है। बच्चे संभवतः इसके बारे में भी सोच सकते हैं कि वे दूसरों की तुलना में क्या कर सकते हैं अथवा क्या नहीं कर सकते हैं। उदाहरणार्थ 'मैंने नीरज की तुलना में अधिक अंक प्राप्त किए' अथवा 'मैं कक्षा में दूसरे बच्चों की तुलना में तेज दौड़ सकता हूँ'। यह विकासात्मक परिवर्तन एक व्यक्ति के रूप में दूसरों से स्वयं की भिन्नता स्थापित करने में सहायक होता है।

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प्रश्न 6. 
विकसित हो रहे बच्चे में होने वाले संज्ञानात्मक परिवर्तनों की विवेचना कीजिए।
उत्तर : 
संज्ञानात्मक विकास : जीन पियाजे (Jean Piaget) ने इस बात पर बल दिया है कि बच्चे संसार के बारे में अपनी समझ की रचना सक्रिय रूप से करते हैं। परिवेश से सूचनाएँ उनके मन में मात्र प्रवेश ही नहीं करती हैं बल्कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते हैं अतिरिक्त सूचनाएँ अर्जित की जाती हैं और नए विचारों को अंतनिर्हित करने के लिए वे अपने चिंतन का अनुकूलन करते हैं, क्योंकि इससे संसार के बारे में उनकी समझ में सुधार होता है। पियाजे का मानना था कि शैशवावस्था से लेकर किशोरावस्था तक बच्चों का मन, विचारों की अवस्थाओं की एक श्रृंखला से गुजरता है।

प्रत्येक स्थिति चिंतन के एक विशेष तरीके से परिभाषित होती है एवं आयु से संबद्ध रहती है। यह स्मरण रखना महत्त्वपूर्ण है कि यह सोचने का अलग तरीका है न कि सूचना की मात्रा, जो एक अवस्था को दूसरी अवस्था से अधिक उच्च बनाती है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि आप अपनी उम्र में एक आठ वर्ष के बच्चे की तुलना में क्यों भिन्न प्रकार से सोचते हैं। शैशवावस्था अर्थात् जीवन के प्रथम दो वर्ष के दौरान बच्चा ज्ञानेन्द्रियों एवं वस्तुओं के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से देखने, सुनने, स्पर्श करने, उन्हें (वस्तुओं को) मुँह में डालने एवं पकड़ने के द्वारा इस संसार का अनुभव करता है। 

नवजात शिशु वर्तमान में रहता है जो उसकी दृष्टि के क्षेत्र से बाहर होता है, वह उसके मन से भी बाहर होता है। उदाहरण के लिए, यदि आप बच्चे के सामने उस खिलौने को छिपा देते हैं जिससे वह खेल रहा था, तो छोटा शिशु इस प्रकार से प्रतिक्रिया करेगा जैसे कि कुछ हुआ ही न हो अर्थात् वह खिलौने को नहीं ढूँढेगा। बच्चा मान लेता है कि खिलौना नहीं है।

पियाजे के अनुसार, इस अवस्था में बच्चे तात्कालिक संवेदी अनुभवों के परे नहीं जाते हैं, अर्थात् उनमें वस्तु स्थायित्व (Object permanence) का अभाव होता है। आठ माह की आयु तक धीरे-धीरे बच्चा अपनी उपस्थिति में आंशिक रूप से छिपाई गई वस्तुओं का पीछा करना प्रारंभ कर देता है। शिशुओं में वाचिक संप्रेषण का आधार उपस्थित रहता है। शिशुओं में 3 से 6 माह की आयु के बीच बबलाने से स्वरीकरण का प्रारंभ होता है।

प्रश्न 7. 
बचपन में विकसित हुए आसक्तिपूर्ण बंधनों का दूरगामी प्रभाव होता है। दिन-प्रतिदिन के जीवन के उदाहरणों से इसकी व्याख्या कीजिए।
उत्तर : 
सामाजिक-संवेगात्मक विकास : मानव जन्म से ही सामाजिक प्राणी होता है। एक शिशु परिचित चेहरों को वरीयता देना प्रारंभ कर देता है और कूकने एवं किलकारी भरने की प्रक्रिया द्वारा माता-पिता की उपस्थिति के प्रति अनुक्रिया करता है। छ: से आठ माह की आयु तक वे अधिक गतिशील हो जाते हैं एवं अपनी माता के साथ रहना पसंद करने लगते हैं। जब वे नए चेहरे को देखकर डर जाते हैं या अपनी माँ से अलग कर दिए जाते हैं तो वे रोते हैं और पीड़ा की अभिव्यक्ति करते हैं। माता-पिता या देख-रेख करने वालों से पुनः मिलने पर वे मुस्कुराहट या आलिंगन से अपने मनोभाव का प्रदर्शन करते हैं। शिशु एवं उनके माता-पिता (पालनकर्ता) के बीच स्नेह का जो सांवेगिक बंधन विकसित होता है उसे आसक्ति (Attachment) कहते हैं।

हार्लो एवं हालों (Harlow and Harlon, 1962) ने एक प्राचीन अध्ययन में बंदरों के बच्चों को जन्म के आठ घंटे बाद ही उनकी माँ से अलग कर दिया गया। शिशु बंदरों को प्रायोगिक कक्ष में रखा गया एवं उनका पालन-पोषण 6 माह तक कृत्रिम (स्थानापन्न) "माताओं" एक तार से बनी हुई तथा दूसरी कपड़े से, के द्वारा किया गया। आधे शिशु बंदरों को तार से बनी माता ने आहार प्रदान किया एवं आधे को कपड़े से बनी माँ ने।

बिना इस बात पर ध्यान दिए कि बंदर शिशुओं को तार की बनी माँ ने आहार प्रदान किया अथवा कपड़े की बनी माँ ने, उन्होंने कपड़े की माँ को वरीयता दी और उसके साथ अधिक समय व्यतीत किया। यह अध्ययन स्पष्ट रूप से प्रदर्शित करता है कि पौष्टिकता अथवा आहार प्रदान करना आसक्ति या लगाव के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं था बल्कि संपर्क-सुख महत्त्वपूर्ण होता है। 

मानव शिशु अपने माता-पिता अथवा देख-रेख करने वाले के प्रति भी आसक्ति विकसित करते हैं जो निरन्तर और उपयुक्त ढंग से उनके प्यार और दुलार के संकेतों का उपयुक्त प्रत्युत्तर देते हैं। एरिक एरिक्सन (Erik Erikson) (1968) के अनुसार जीवन का प्रथम वर्ष आसक्ति के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण समय होता है। यह विश्वास अथवा अविश्वास के विकास की अवस्था को निरूपित करता है। विश्वास का बोध भौतिक सुख की अनुभूति पर निर्मित होता है जो संसार के प्रति एक प्रत्याशा विकसित करता है कि यह सुरक्षित और अच्छा स्थान है। 

बच्चों में विश्वास का बोध सहानुभूतिपूर्ण एवं संवेदनशील पैतृक प्रभाव द्वारा विकसित होता है। यदि माता-पिता संवेदनशील हैं, स्नेहिल एवं उनमें स्वीकृति प्रदान करने वाले हैं तो यह बच्चे में परिवेश को जानने का मजबूत आधार प्रदान करता है। ऐसे बच्चों में सुरक्षित लगाव के विकास की संभावना बढ़ जाती है। दूसरी तरफ, यदि माता-पिता असंवेदनशील हैं एवं असंतोष प्रदर्शित करते हैं तथा बच्चों में दोष देखते हैं तो इससे बच्चों में आत्म-संदेह की भावना विकसित हो सकती है। सुरक्षित लगाव वाले बच्चे गोद में लेने पर सकारात्मक व्यवहार करते हैं, स्वतंत्रतापूर्वक घूमते हैं एवं खेलते हैं जबकि असुरक्षित लगाव वाले बच्चे अलग होने पर दुश्चिंता की अनुभूति करते हैं तथा रोते-चिल्लाते हैं क्योंकि उनमें भय पाया जाता है और वे विचलित हो जाते हैं। बच्चे के स्वस्थ विकास के लिए संवेदनशील एवं स्नेहिल प्रौढ़ों के साथ घनिष्ठ अंतःक्रियात्मक संबंध प्रथम चरण होता है।

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प्रश्न 8. 
किशोरावस्था क्या है ? अहंकेंद्रवाद के संप्रत्यय की व्याख्या कीजिए।
उत्तर : 
अंग्रेजी का शब्द 'एडोलसेंस' (Adolescence) लैटिन भाषा के शब्द एडोलसियर (Adolescere) से व्युत्पन्न है जिसका अर्थ है "परिपक्व रूप में विकसित होना"। यह व्यक्ति के जीवन में बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य का संक्रमण काल है। किशोरावस्था को सामान्यतया जीवन की उस अवस्था के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका प्रारंभ यौवनारंभ से होता है, जब यौन परिपक्वता या प्रजनन करने की योग्यता प्राप्त कर ली जाती है। इसे जैविक तथा मानसिक दोनों ही रूप से तीव्र परिवर्तन की अवधि माना गया है। 

यद्यपि इस अवस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन सार्वभौमिक हैं, किशोरों के अनुभव के सामाजिक तथा मानसिक आयाम सांस्कृतिक संदर्भ पर निर्भर करते हैं। उदाहरण के लिए, वह संस्कृति जहाँ किशोरावस्था को समस्यापरक अथवा संदेह उत्पन्न करने वाली अवधि के रूप में देखा जाता है, उसमें एक किशोर का अनुभव उस किशोर से भिन्न होगा जो एक | ऐसी संस्कृति में है जहाँ किशोरावस्था को प्रौढ़ व्यवहार और | इसलिए दायित्वपूर्ण कार्यों को संपादित करने का प्रारंभ माना जाता है। यद्यपि अधिकांश समाज में किशोरावस्था के लिए कम से कम एक संक्षिप्त अवधि होती है, यह सभी संस्कृतियों के सापेक्ष सार्वभौमिक नहीं है।

किशोर भी एक विशिष्ट प्रकार के अहंकेंद्रवाद विकसित करते हैं। डेविड एलकाईंड (David Elkind) के अनुसार, काल्पनिक श्रोता (Imaginary audience) एवं व्यक्तिगत दंतकथा (Personal fable) किशोरों के अहंकेंद्रवाद के दो घटक हैं। काल्पनिक श्रोता किशोरों का एक विश्वास है कि दूसरे लोग भी उनके प्रति उतने ही ध्यानाकर्षित हैं जितने कि वे स्वयं। वे कल्पना करते हैं कि लोग हमेशा उन्हीं पर ध्यान दे रहे हैं एवं उनके प्रत्येक व्यवहार का प्रेक्षण कर रहे हैं। एक लड़के की कल्पना कीजिए | जो सोचता है कि उसकी शर्ट पर लगे स्याही के धब्बे पर लोग ध्यान देंगे, अथवा एक लड़की जिसके गालों पर फुसियाँ हैं, | सोचती है कि लोग सोचेंगे कि उसकी त्वचा कितनी खराब है। यह वही काल्पनिक श्रोता है जो उसे अत्यधिक आत्म-सचेत बना देता है। व्यक्तिगत दंतकथा किशोरों के अहंकेंद्रवाद का एक भाग है

जिसमें स्वयं के अद्वितीय होने (अपने तरह का अकेला व्यक्ति होने) का भाव निहित है। किशोरों में अद्वितीयता का बोध उन्हें यह सोचने के लिए प्रेरित करता है कि कोई भी व्यक्ति उसको या उसकी अनुभूतियों को नहीं समझता है। उदाहरण के लिए, एक किशोरी सोचती है कि एक मित्र के द्वारा विश्वासघात किए जाने के कारण जिस पीड़ा का अनुभव वह कर रही है उसे कोई भी महसूस नहीं कर सकता है। किशोरों को माता-पिता से यह कहते सुनना बहुत ही आम बात है कि “आप मुझे समझ नहीं पाते हैं।" अपनी व्यक्तिगत विशिष्टता या अद्वितीयता के बोध को बनाए रखने के लिए वे वास्तविकता से दूर की एक दुनिया बनाने के लिए, स्वयं से संबद्ध कल्पनाओं से भरी कहानियों को गढ़ सकते हैं। व्यक्तिगत दंतकथाएँ प्रायः किशोरों की डायरी का भाग होती

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प्रश्न 9. 
किशोरावस्था में पहचान निर्माण को प्रभावित करने वाले कौन-से कारक हैं ? उदहारण की सहायता से अपने उत्तर की पुष्टि कीजिए।
उत्तर :
किशोरावस्था में पहचान का निर्माण अनेक कारकों द्वारा प्रभावित होता है। सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, पारिवारिक तथा सामाजिक मूल्य, संजातीय पृष्ठभूमि तथा सामाजिक-आर्थिक स्तर, ये सभी समाज में एक स्थान प्राप्त करने के लिए किशोरों द्वारा किए गए प्रयास पर प्रभाव डालते हैं। जब किशोर घर से बाहर अधिक समय व्यतीत करने लगता है तो पारिवारिक संबंध कम महत्वपूर्ण हो जाते हैं और वे समकक्षियों के सहयोग एवं स्वीकृति की प्रबल आवश्यकता विकसित कर लेते हैं। समकक्षियों के साथ अधिक अंत:क्रिया उन्हें अपने सामाजिक कौशलों को सुधारने तथा विभिन्न प्रकार के सामाजिक व्यवहारों को परखने का अवसर प्रदान करती है। समकक्षी तथा माता-पिता ये दो शक्तियाँ हैं जिनका किशोरों पर विशेष प्रभाव पड़ता है। 

समय-समय पर माता-पिता के साथ संघर्षपूर्ण परिस्थितियाँ समकक्षियों के साथ तादात्म्य स्थापित करने की प्रवृत्ति को भी बढ़ाती हैं। परंतु सामान्यतया समकक्षी एवं माता-पिता अनुपूरक का कार्य करते हैं और किशोरों की विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। व्यावसायिक प्रतिबद्धता किशोरों की पहचान निर्माण को प्रभावित करने वाला एक दूसरा कारक है। 'बड़े होकर आप क्या बनेंगे?' इस प्रश्न के लिए भविष्य के संबंध में सोचने की योग्यता एवं वास्तविक तथा प्राप्य लक्ष्यों को निर्धारित करने की आवश्यकता होती है।

कुछ संस्कृतियों में युवाओं को व्यवसाय चयन की स्वतंत्रता प्रदान की जाती है जबकि कुछ दूसरी संस्कृतियों में इस चुनाव के लिए बच्चों को विकल्प नहीं दिए जाते हैं। माता-पिता के द्वारा लिए गए निर्णय को ही बच्चों द्वारा स्वीकार किए जाने की संभावना रहती है। विषयों के चयन के संबंध में जब आप निर्णय कर रहे थे उस समय का आपका अनुभव क्या है ? विद्यालयों में व्यावसायिक परामर्श विद्यार्थियों को विभिन्न पाठ्यक्रमों एवं नौकरियों के मूल्यांकन करने के लिए सूचनाएँ प्रदान करता है और व्यवसाय चयन के संबंध में निर्णय लेने के लिए निर्देशन प्रदान करता है।

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प्रश्न 10. 
प्रौढ़ावस्था में प्रवेश करने पर व्यक्तियों को कौन-कौन सी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर : 
एक प्रौढ़ सामान्यतया एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाता है जो दायित्वों का निर्वहन करता है, परिपक्व व स्वावलंबी है तथा समाज से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। इन गुणों के विकास में भिन्नता पाई जाती है, जो यह प्रदर्शित करता है कि व्यक्ति के वयस्क बनने अथवा वयस्कों की भूमिकाओं को ग्रहण करने के समय में अंतर होता है। कुछ लोग अपने कॉलेज अध्ययन के साथ नौकरी भी करते हैं अथवा वे शादी कर सकते हैं तथा पढ़ाई छोड़ देते हैं। कुछ लोग आर्थिक रूप से स्वतंत्र होते हुए और विवाह के बाद भी अपने माता-पिता के साथ ही रहते हैं। प्रौढ़ों की भूमिकाओं को ग्रहण करना व्यक्ति की सामाजिक परिस्थिति से निर्देशित होता है।

अधेड़ावस्था में होने वाले शारीरिक परिवर्तन शरीर में परिपक्वता से संबंधित परिवर्तनों के कारण से होते हैं। यद्यपि इन परिवर्तनों के उत्पन्न होने की गति में व्यक्तियों में भिन्नता होती है, लगभग सभी मध्य आयु के लोग अपनी शारीरिक क्रिया के कुछ पक्षों में धीरे-धीरे होने वाले हास का अनुभव करते हैं; जैसे दृष्टि एवं चमक के प्रति संवेदनशीलता में ह्रास, कम सुनाई देना तथा शारीरिक रंग-रूप में परिवर्तन (जैसे- झुर्रियाँ, बालों का सफेद अथवा पतला होना, वजन में वृद्धि होना)। क्या प्रौढ़ावस्था में संज्ञानात्मक योग्यताओं में परिवर्तन होता है ? 

यह माना जाता है कि कुछ संज्ञानात्मक योग्यताओं में उम्र के साथ हास होता है जबकि कुछ में नहीं। अल्पकालिक स्मृति की तुलना में दीर्घकालिक स्मृति के संकृत्यों में स्मृति का ह्रास अधिक होता है। उदाहरण के लिए, एक मध्य आयु का व्यक्ति एक टेलीफोन नंबर सुनने के तुरंत बाद उसे याद रखता है, परंतु कुछ दिनों के बाद वह उसका स्मरण उतनी अच्छी तरह से नहीं कर पाता है। स्मृति में अधिक हास देखा जाता है जबकि उम्र के साथ प्रज्ञान बढ़ सकता है। यह स्मरण रहे कि प्रत्येक आयु में बुद्धि में वैयक्तिक भिन्नता पाई जाती है और जैसे सभी बच्चे विशिष्ट नहीं होते हैं वैसे ही सभी प्रौढ़ भी प्रज्ञान नहीं होते हैं।

Bhagya
Last Updated on Sept. 23, 2022, 4:21 p.m.
Published Sept. 23, 2022