Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 8 धर्मनिरपेक्षता Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
कुछ ऐसे तरीकों की सूची बनाओ जिनके माध्यम से साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा दिया जा सकता है।
उत्तर:
साम्प्रदायिक सद्भाव का मतलब होता है विभिन्न धर्मों को मानने वाले लोगों के बीच भाईचारा व सहयोग की भावना। अतः साम्प्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए निम्नलिखित सूचीबद्ध तरीकों को अपनाया जा सकता है
तरीका |
प्रभाव |
1. धर्म को उदार बनाया जाए। |
जब सभी धर्म उदार होंगे तो स्वाभाविक तौर पर अन्य धर्मों के लोग सहनशील होंगे। |
2. धार्मिक कट्टरता को समाप्त किया जाए। |
साम्प्रदायिक सद्भाव को बिगाड़ने में धार्मिक कट्टरता का बड़ा योगदान होता है। इसके समाप्त होने से लोगों में अन्य धर्मों के प्रति भी आदर उत्पन्न होगा। |
3. शिक्षा का प्रचार-प्रसार |
शिक्षा रूढ़वादिता व अन्धविश्वासों को समाप्त करती है। अतः शिक्षा के प्रचार-प्रसार से निश्चित तौर पर साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ेगा। |
4. राज्य द्वारा धार्मिक आधार पर कोई भेदभाव न किया जाए। |
इससे राज्य में सभी धर्मों को समान स्वतन्त्रता प्राप्त होगी और साम्प्रदायिक सद्भाव बढ़ेगा। |
प्रश्न 2.
वाद-विवाद-संवाद अन्य धर्मों के बारे में अधिक जानना, बाकी लोगों और उनकी आस्थाओं का सम्मान करना उन्हें स्वीकार करने की ओर पहला कदम है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि हम उन मूल्यों के लिए खड़े नहीं हो सकते जिन्हें हम आधारभूत मानवीय मूल्य मानते हैं।
उत्तर:
अन्य धर्मों के प्रति आदर व्यक्त करते समय हमें इस प्रश्न का सामना करना पड़ता है कि यदि धर्म में कुछ ऐसा है जो अमानवीय है तो क्या हम चुप रहें या मानवीय मूल्यों की रक्षा के लिए आवाज उठाएँ। इस बात के पक्ष व विपक्ष में तर्कों को जानने के बाद ही हम निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं।
पक्ष में तर्क (वाद)-
विपक्ष में तर्क (विवाद)-
(i) यदि हम दूसरे धर्मों का आदर करते हैं तो हमारा फर्ज बनता है कि उसके निजी मामलों में हम हस्तक्षेप न करें।
(ii) हमारा हस्तक्षेप दूसरे धर्म के लोगों की भावनाओं को आहत कर सकता है। इससे समाज में धार्मिक तनाव फैल सकता
निष्कर्ष (संवाद)-उपर्युक्त दोनों पक्षों के विश्लेषण के आधार पर यह कहा जा सकता है कि धर्म मानव के विकास व उत्थान के लिए होता है। यदि धर्म ही मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करने लगे तो हमें आवश्यक रूप से उसे ऐसा करने से रोकना चाहिए। परन्तु हमारा हस्तक्षेप बहुत संयमित व वैधानिक होना चाहिए तथा ऐसा करते समय हमारे पास पर्याप्त मात्रा में मानवता की रक्षा से जुड़े तर्क व आधार होने चाहिए।
प्रश्न 3.
कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता
उत्तर:
1. नहीं, ऐसी धर्मनिरपेक्षता की कल्पना करना ही व्यर्थ है जो हमारी पहचान से जुड़ा नाम रखने, अपनी पसन्द के कपड़े पहनने से हमें वंचित कर दे। मानव होने के नाते हमारा यह मानवीय अधिकार है कि हम समाज में अपनी पहचान से सम्बन्धित नाम रखें और अपनी पसन्द के कपड़े पहनें। इसी प्रकार हमारी बोलचाल की भाषा भी हमारे जीवन से जुड़ी अनिवार्य विशेषता है। इसे हम बचपन से ही सीखते हैं। धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी बोलचाल की भाषा को एकदम से बदल दिया जाए तो यह हमारी अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर गहरी चोट होगी। अतः हम उपर्युक्त में से किसी भी स्थिति में धर्मनिरपेक्षता की कल्पना नहीं कर सकते।
2. हमारे विचार में कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता और भारतीय धर्मनिरपेक्षता में निम्नलिखित भिन्नताएँ दिखाई पड़ती हैं
कमाल अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता |
भारतीय धर्मनिरपेक्षता |
1. अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता मानवीय मूल्यों की उपेक्षा करती है। |
भारतीय धर्मनिरपेक्षता मानवीय मूल्यों को सम्मान प्रदान करती है। |
2. अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर लोगों की अपनी पहचान, भाषा, बोली इत्यादि को प्रतिबंधित कर दिया गया था। |
भारतीय धर्मनिरपेक्षता में सभी धर्मों के लोगों को अपनी पहचान, रीति-रिवाज इत्यादि अपनाने का पूरा हक दिया गया है। जैसे सिक्खों का पगड़ी बांधना, मुस्लिमों का बहुविवाह करना, दाढ़ी रखना इत्यादि। |
3. अतातुर्क की धर्मनिरपेक्षता को जबरदस्ती थोपे गये आधुनिकीकरण द्वारा लाने का प्रयास किया गया। जैसेस्त्री-पुरुषों को पश्चिमी परिधान पहनने के लिए बाध्य करना। |
भारतीय धर्मनिरपेक्षता लोगों की निजी जिन्दगी में कोई दखल नहीं देती। भारत में सभी धर्मों के लोगों को मनचाहे परिधान पहनने की आजादी है। |
4. अतातुर्क ने धर्मनिरपेक्षता की स्थापना के लिए धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों, पहचानों के दमन का प्रयास किया। |
भारत में सभी धर्मों को अपने रीति-रिवाजों, मान्यताओं, पहचानों के बनाए रखने की आजादी दी गई है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता दमन की बजाय सुधार में विश्वास करती है। |
प्रश्न 4.
वाद-विवाद-संवाद धार्मिक पहचान और अन्तर का बच्चों के लिए कोई मतलब नहीं है।
उत्तर:
यह वाद-विवाद का बड़ा रोचक मुद्दा है कि धार्मिक पहचान और अन्तर का बच्चों के लिए कोई मतलब है या नहीं। इस सम्बन्ध में अन्तिम निष्कर्ष इस बात के पक्ष व विपक्ष के तर्कों को जानने के बाद ही निकाला जा सकता है।
पक्ष में तर्क (वाद)-
विपक्ष में तर्क (विवाद)-
निष्कर्ष (संवाद)-उपर्युक्त दोनों पक्षों के विश्लेषण के बाद हम यह कह सकते हैं कि सामान्यतया बच्चों के लिए धार्मिक पहचान और अन्तर का कोई मतलब होता नहीं है परन्तु माता-पिता व अपने आस-पास के परिवेश से शीघ्र ही वे इससे भली-भाँति परिचित हो जाते हैं। अत: माता-पिता का दायित्व बनता है कि वे बच्चों को धर्म के प्रति ऐसे संस्कार दें जिनसे उनमें धार्मिक सौहार्द की भावनाओं का विकास हो।
प्रश्न 5.
क्या धर्मनिरपेक्षता नीचे लिखी बातों के संगत है
उत्तर:
1. 'अल्पसंख्यक समुदाय की तीर्थ यात्रा को आर्थिक अनुदान देना' धर्मनिरपेक्षता से जुड़ा विवादास्पद मसला है। एक तरफ यह कार्य धर्मनिरपेक्षता से असंगत प्रतीत होता है क्योंकि राज्य को धार्मिक आधार पर आर्थिक सहायता नहीं देनी चाहिए। दूसरी तरफ अल्पसंख्यकों को देश में विश्वास बनाये रखने के लिए इस तरह की सहायता सकारात्मक पहलु के रूप में धर्मनिरपेक्षता से जुड़ी हुई है।
2. सरकारी कार्यालयों में धार्मिक अनुष्ठान का आयोजन धर्मनिरपेक्षता के संगत प्रतीत नहीं होता। इस कार्य से सरकारी काम-काज में धर्म का दखल होगा जो धर्मनिरपेक्षता की धारणा के विपरीत है।
प्रश्न 6.
राज्य धर्मों के साथ एक समान बरताव किस तरह कर सकता है ?
उत्तर:
1. राज्य यदि सभी धर्मों के साथ समान व्यवहार करना चाहता है तो उसके लिए हर धर्म के लिए बराबर संख्या में छुट्टी करना पर्याप्त और तार्किक नहीं है। इसके स्थान पर हर धर्म के त्यौहारों का समान रूप से आदर किया जाना चाहिए। राज्य को सभी धर्मों के अनुयायियों को अपने धार्मिक प्रतीक के रूप में प्रचलित त्यौहारों पर ही अवकाश करना चाहिए। जैसे दिवाली, बैसाखी, ईद, क्रिसमस आदि।
2. सार्वजनिक अवसरों पर किसी भी प्रकार के धार्मिक समारोह पर रोक लगाना लोगों को उनके धार्मिक मतों के प्रचार-प्रसार से रोकना होगा। अत: यह कदम भी राज्य के सभी धर्मों के साथ समान बरताव के लिए उपयोगी प्रतीत नहीं होता।
प्रश्न 7.
भारत में राजपत्रित अवकाशों की सूची को ध्यान से पढ़ें। क्या यह भारत में धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण प्रस्तुत करती है ? तर्क प्रस्तुत करें।
राजपत्रित अवकाशों की सूची
अवकाश का नाम |
दिनांक (2019 ई.) |
गणतंत्र दिवस |
26 जनवरी |
महाशिवरात्रि |
4 मार्च |
होली |
21 मार्च |
महावीर जयन्ती |
17 अप्रैल |
गुड फ्राइडे |
19 अप्रैल |
बुद्ध पूर्णिमा |
18 मई |
ईद-उल-फितर |
5 जून |
ईद-उल-अजहा (बकरीद) |
12 अगस्त |
स्वतंत्रता दिवस |
15 अगस्त |
जन्माष्टमी |
24 अगस्त |
मुहरईम |
10 सितम्बर |
महात्मा गाँधी जयन्ती |
2 अक्तूबर |
दशहरा (विजय दशमी) |
8 अक्तूबर |
दीपावली |
27 अक्तूबर |
ईद-ए-मिलादुन-नबी (पैगम्बर मुहम्मद साहब का जन्मदिन) |
10 नवम्बर |
गुरुनानक जयन्ती |
12 नवम्बर |
क्रिसमस-डे |
25 दिसम्बर |
उत्तर:
हाँ, यह सूची भारत में धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण प्रस्तुत करती है, इसके पक्ष में निम्न तर्क दिये जा सकते हैं
(i) धर्मनिरपेक्षता में सभी धर्मों के समान आदर की बात निहित है। सभी धर्मों के त्यौहार उनकी पहचान, गरिमा व विश्वासों का प्रतीक हैं। अतः सभी नागरिकों को समान रूप से अपने धार्मिक त्यौहारों को हर्षोल्लास के साथ मनाने का अवसर दिया जाना न्यायसंगत है। यह सूची इसी अवसर को दर्शाती है।
(ii) सूची से स्पष्ट है कि इसमें सभी भारतीय धर्मों व उनके सम्प्रदायों से जुड़े पर्यों का ध्यान रखा गया। यह सूची भारत में सभी धर्मों के कर्मचारियों को दिए जाने वाले समान अवकाश को दर्शाती है। अर्थात् दिवाली की छुट्टी पर हिंदूधर्म के कर्मचारियों के साथ-साथ अन्य धर्मों के कर्मचारियों को भी छुट्टी मिलती है। इसी प्रकार ईद की छुट्टी पर मुस्लिम धर्म के कर्मचारियों के साथ-साथ अन्य धर्मों के कर्मचारियों को भी काम पर नहीं जाना पड़ता। इस प्रकार नागरिकों को सभी त्यौहार एक साथ मिलकर मनाने का मौका दिया गया है। अतः यह निश्चित रूप से धर्मनिरपेक्षता का उदाहरण प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 1.
निम्न में से कौन-सी बातें धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत हैं ? कारण सहित बताइए।
(क) किसी धार्मिक समूह पर दूसरे धार्मिक समूह का वर्चस्व न होना।
(ख) किसी धर्म को राज्य के धर्म के रूप में मान्यता देना।
(ग) सभी धर्मों को राज्य का समान आश्रय देना।
(घ) विद्यालयों में अनिवार्य प्रार्थना होना।
(ङ) किसी अल्पसंख्यक समुदाय को अपने पृथक शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति होना।
(च) सरकार द्वारा धार्मिक संस्थाओं की प्रबन्धन समितियों की नियुक्ति करना।
(छ) किसी मन्दिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोकने के लिए सरकार का हस्तक्षेप।
उत्तर:
(क) यह बात धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत है। इसका कारण यह है कि जब एक धार्मिक समुदाय दूसरे धार्मिक समुदाय पर वर्चस्व स्थापित करने की बजाय सम्मान का नजरिया अपनायेगा तो इससे धार्मिक सहिष्णुता बढ़ेगी। यही धर्मनिरपेक्षता का उद्देश्य होता है।
(ग) यह बात धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत है, क्योंकि धर्मनिरपेक्ष राज्य का दायित्व होता है कि वह सभी धर्मों की गरिमा व प्रभुता को बनाए रखे। राज्य सभी धर्मों को समान आश्रय देकर इसी उद्देश्य की पूर्ति करता है।
(ङ) यह बात धर्मनिरपेक्षता से संगत है। क्योंकि अल्पसंख्यकों को राज्य पृथक शैक्षिक संस्थान बनाने की अनुमति देकर धार्मिक अल्पसंख्यकों को अपने धर्म व मूल्यों के प्रचार-प्रसार का अवसर प्रदान करता है।
(छ) यह बात धर्मनिरपेक्षता के विचार से संगत है। क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का यह मतलब नहीं होता है कि राज्य धर्म की अमानवीय व गलत बातों से मुँह फेर ले। धर्मनिरपेक्ष राज्य की यह जिम्मेदारी होती है कि वह धर्म में व्याप्त गलत प्रथाओं, अमानवीय रीतियों के सुधार के प्रयास करे। मन्दिर में दलितों के प्रवेश के निषेध को रोककर सरकार अपने इसी दायित्व की पूर्ति करती है।
प्रश्न 2.
धर्मनिरपेक्षता के पश्चिमी और भारतीय मॉडल की कुछ विशेषताओं का आपस में घालमेल हो गया है। उन्हें अलग करें और एक नई सूची बनाएँ।
पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता |
भारतीय धर्मनिरपेक्षता |
धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति। |
राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति। |
विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना। |
एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना। |
अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना। |
समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना। |
व्यक्ति और उसके अधिकारों को केन्द्रीय महत्व दिया जाना। |
व्यक्ति और धार्मिक समुदायों दोनों के अधिकारों का संरक्षण। |
उत्तर:
पश्चिमी और भारतीय धर्मनिरपेक्षताओं को अलग-अलग करके सही क्रम से लगाने पर नई सूची निम्न प्रकार है।
पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता |
भारतीय धर्मनिरपेक्षता |
1. धर्म और राज्य का एक-दूसरे के मामले में हस्तक्षेप न करने की अटल नीति। |
1. विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच समानता एक मुख्य सरोकार होना। |
2. व्यक्ति और उसके अधिकारों को केन्द्रीय महत्व दिया जाना। |
2. अल्पसंख्यक अधिकारों पर ध्यान देना। |
3. समुदाय आधारित अधिकारों पर कम ध्यान देना। |
3. राज्य द्वारा समर्थित धार्मिक सुधारों की अनुमति। एक धर्म के भिन्न पंथों के बीच समानता पर जोर देना। व्यक्ति और धार्मिक समुदाय दोनों के अधिकारों का संरक्षण। |
प्रश्न 3.
धर्मनिरपेक्षता से आप क्या समझते हैं ? क्या इसकी बराबरी धार्मिक सहनशीलता से की जा सकती है ?
उत्तर:
धर्मनिरपेक्षता-धर्मनिरपेक्षता की आम धारणा के अनुसार धर्मनिरपेक्षता ऐसा नियामक सिद्धान्त है जो विविध धर्मों के बीच और विभिन्न धर्मों के भीतर उठने वाली वर्चस्व की होड़ से रहित समाज का निर्माण करना चाहता है। अपने सकारात्मक रूप में धर्मनिरपेक्षता वह धारणा है जो धर्मों के अन्दर आजादी तथा विभिन्न धर्मों के बीच और उनके अन्दर समानता को बढ़ावा देता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों का समान आदर और उनके बीच व भीतर सभी लोगों में समानता को बढ़ावा देने वाली एक प्रमुख तथा महत्वपूर्ण धारणा या स्थिति है।
धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सहनशीलता में बराबरी–धर्मनिरपेक्षता और धार्मिक सहनशीलता में बराबरी की जा सकती है या नहीं, यह बात इनके मॉडल पर निर्भर करती है। धार्मिक सहनशीलता का मतलब यह है कि सभी धर्मों के रीति-रिवाजों, मान्यताओं को आदर देते हुए उनसे तटस्थ बने रहना। इस प्रकार देखा जाए तो र्मनिरपेक्षता के विभिन्न प्रतिमानों में इसकी स्थिति अलग-अलग है। इस सन्दर्भ में हम इसके पश्चिमी और भारतीय प्रतिमानों को देख सकते हैं धर्मनिरपेक्षता का पश्चिमी प्रतिमान और धार्मिक सहनशीलता-धर्मनिरपेक्षता का जो पश्चिमी प्रतिमान है वह काफी हद तक धार्मिक सहनशीलता के बराबर है। इसमें यह माना जाता है कि धर्मनिरपेक्ष राज्य को सभी धर्मों का समान आदर करना चाहिए।
राज्य को धार्मिक मामलों से स्वयं को पूरी तरह अलग रखना चाहिए। धर्मनिरपेक्षता का भारतीय प्रतिमान और धार्मिक सहनशीलता—भारतीय धर्मनिरपेक्षता धार्मिक सहनशीलता से कुछ अधिक है। इसमें राज्य को सभी धर्मों के समान आदर के साथ-साथ धार्मिक सुधारों के लिए धर्म में हस्तक्षेप की अनुमति प्राप्त है। धार्मिक अल्पसंख्यकों के लिए भी राज्य विशेष प्रावधान कर सकता है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अपने व्यापक अर्थों में धर्मनिरपेक्षता की बराबरी धार्मिक सहनशीलता से नहीं की जा सकती। यह इससे बढ़कर है।
प्रश्न 4.
क्या आप नीचे दिए गए कथनों से सहमत हैं ? उनके समर्थन या विरोध के कारण भी दीजिए।
(क) धर्मनिरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती है।
(ख) धर्मनिरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अन्दर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है।
(ग) धर्मनिरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है।
उत्तर:
(क) हम इस कथन से सहमत नहीं हैं कि धर्मनिरपेक्षता हमें धार्मिक पहचान बनाए रखने की अनुमति नहीं देती। हमारे विरोध के निम्नलिखित कारण हैं
(ख) हाँ, हम इस कथन से सहमत हैं कि धर्मनिरपेक्षता किसी धार्मिक समुदाय के अन्दर या विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच असमानता के खिलाफ है। इसके समर्थन के निम्नलिखित कारण हैं
(ग) धर्मनिरपेक्षता के विचार का जन्म पश्चिमी और ईसाई समाज में हुआ है। यह भारत के लिए उपयुक्त नहीं है। नहीं, हम इस कथन से सहमत नहीं हैं। इसके विरोध में हमारे निम्नलिखित विचार हैं
प्रश्न 5.
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के अलगाव पर नहीं वरन् उससे अधिक किन्हीं बातों पर है। इस कथन को समझाइए।
उत्तर:
भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य के बीच दूरी बनाये रखने पर नहीं है। भारत में धर्मनिरपेक्षता का सर्वाधिक जोर सभी धर्मों के बीच और उनके विभिन्न सम्प्रदायों के बीच समानता की स्थापना पर है। भारत में सदियों से धार्मिक विविधता विद्यमान है। इस विविधता ने भारत में धार्मिक सहिष्णुता अर्थात् विभिन्न धर्मों के प्रति सहनशीलता का विकास किया। बाद में पश्चिमी आधुनिकता के आगमन से भारतीय धर्मनिरपेक्षता में समानता को भी प्रमुख तत्व बना दिया। इस प्रकार भारतीय धर्मनिरपेक्षता अपने आप में विशिष्ट बन गयी। यह धर्म और राज्य के अलगाव की अपेक्षा धर्म और राज्य के सकारात्मक सम्बन्धों पर बल देती है। भारतीय धर्मनिरपेक्षता के अन्तर्गत धार्मिक स्वतन्त्रता और धर्म के आधार पर समानता पर बल दिया जाता है। भारत में राज्य समाज-सुधार की दृष्टि से धार्मिक मामलों पर भी कानून बना सकता है। उदाहरण के लिए, भारतीय संविधान द्वारा छुआछूत को प्रतिबन्धित किया गया। इससे अब हिन्दू मन्दिरों में दलितों को भी प्रवेश करने का पूरा अधिकार प्राप्त है।
इसी प्रकार भारतीय राज्य ने बाल-विवाह के उन्मूलन और अलग जातियों में विवाह पर हिन्दू धर्म में निषेध को समाप्त करने धर्मनिरपेक्षता 353 के लिए कई कानून बनाये हैं। भारतीय धर्मनिरपेक्षता हिन्दुओं के अन्दर दलितों और महिलाओं के उत्पीड़न और भारतीय मुसलमानों अथवा ईसाइयों के अन्दर महिलाओं के प्रति भेदभाव तथा बहुसंख्यक समुदाय द्वारा अल्पसंख्यक धार्मिक समुदायों के अधिकारों पर उत्पन्न किये जाने वाले खतरों का समान रूप से विरोध करती है। अतः हम स्पष्ट रूप से कह सकते हैं कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का जोर धर्म और राज्य को अलग रखने तक सीमित नहीं है। यह उससे आगे बढ़कर धार्मिक व सामाजिक सुधारों के लिए तथा सभी लोगों व धर्मों को समानता की प्राप्ति कराने के लिए राज्य के सकारात्मक हस्तक्षेप को भी मान्यता देती है तथा इसे आवश्यक मानती है।
प्रश्न 6.
'सैद्धान्तिक दूरी' क्या है ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तरसैद्धान्तिक दूरी-धर्मनिरपेक्षता के सम्बन्ध में सैद्धान्तिक दूरी का मतलब है कि राज्य धार्मिक मामलों से औपचारिक रूप में दूरी बनाए रखे। इसके अन्तर्गत यह माना जाता है कि राज्य न तो पुरोहितों के द्वारा संचालित (धर्मतांत्रिक) होगा और न ही किसी विशेष धर्म की स्थापना ही करेगा। इस प्रकार किन्हीं दो क्षेत्रों में परस्पर दूरी रखने की धारणा ही 'सैद्धान्तिक दूरी' कहलाती है। सैद्धान्तिक दूरी की धारणा के तहत धर्म और राज्यसत्ता के बीच किसी भी प्रकार के सम्बन्धों को प्रतिबन्धित माना जाता है। 'राज्यसत्ता' धर्म के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करेगी और इसी प्रकार 'धर्म' राज्यसत्ता के मामलों में दखल नहीं देगा। दोनों के अपने-अपने क्षेत्र हैं और अलग-अलग सीमाएँ हैं। राज्यसत्ता की कोई नीति पूरी तरह धार्मिक तर्क के आधार पर निर्मित नहीं की जा सकती है। इस प्रकार धर्म और राज्यसत्ता के बीच क्षेत्र तथा सीमाओं का विभाजन ही 'सैद्धान्तिक दूरी' है।
सैद्धान्तिक दूरी के अन्तर्गत राज्य किसी धार्मिक संस्था को किसी भी प्रकार की कोई सहायता प्रदान नहीं करता है। वह धार्मिक समुदायों द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं को वित्तीय सहयोग नहीं दे सकता। जब तक धार्मिक समुदायों की गतिविधियाँ देश के कानून द्वारा निर्मित व्यापक सीमा के अन्दर होती हैं, तब तक राज्य इन गतिविधियों में कोई व्यवधान पैदा नहीं कर सकता। उदाहरण के लिए अगर कोई धार्मिक संस्था औरतों के पुरोहित होने को वर्जित करती है, तो सैद्धान्तिक दूरी के अन्तर्गत राज्य इस मामले में कुछ नहीं कर सकता। इसी प्रकार यदि कोई धार्मिक समुदाय अपने भिन्न मतावलम्बियों का बहिष्कार करता है तो राज्य के सैद्धान्तिक दूरी के अन्तर्गत इस मामले में कुछ करने का अधिकार नहीं है।