Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 6 नागरिकता Textbook Exercise Questions and Answers.
Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science in Hindi Medium & English Medium are part of RBSE Solutions for Class 11. Students can also read RBSE Class 11 Political Science Important Questions for exam preparation. Students can also go through RBSE Class 11 Political Science Notes to understand and remember the concepts easily.
प्रश्न 1.
चिन्तन-मंथन सत्रहवीं से बीसवीं सदी के बीच यूरोप के गोरे लोगों ने दक्षिण अफ्रीका के लोगों पर अपना शासन कायम रखा। सन् 1994 तक दक्षिण अफ्रीका में अपनाई गई नीतियों के बारे में नीचे दिए गए ब्यौरे को पढ़िए। श्वेत लोगों को मत देने, चुनाव लड़ने और सरकार को चुनने का अधिकार था। वे सम्पत्ति खरीदने और देश में कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतन्त्र थे। काले लोगों को ऐसे अधिकार नहीं थे। काले और गोरे लोगों के लिए पृथक मोहल्ले और कालोनियाँ बसाई गई थीं। काले लोगों को अपने पड़ोस की गोरे लोगों की बस्ती में काम करने के लिए 'पास' लेने पड़ते थे। उन्हें गोरों के इलाके में अपने परिवार रखने की अनुमति नहीं थी। अलग-अलग रंग के लोगों के लिए विद्यालय भी अलग-अलग थे।
उत्तर:
1. दिये गये ब्यौरे के अनुसार स्पष्ट है कि अश्वेत अर्थात् काले लोगों को दक्षिण अफ्रीका में पूर्ण और समान सदस्यता प्राप्त नहीं थी। इसके निम्नलिखित कारण थे
(क) गोरे (श्वेत) लोगों का दक्षिण अफ्रीका में राज-सत्ता पर कब्जा था। ये लोग अश्वेत (काले) लोगों को अपने से छोटा और घृणित मानते थे।
(ख) श्वेत लोग, अश्वेतों को गुलाम बनाकर रखना चाहते थे। इस कारण उन्हें वे अपने समान अधिकार देना उचित नहीं मानते थे।
(ग) दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद की नीति अपनी गहरी पैठ बना चुकी थी। गोरे लोगों की सरकार भी इस नीति को गलत नहीं मानती थी।
2. दिया गया ब्यौरा हमें दक्षिण अफ्रीका में भिन्न समूहों के आपसी सम्बन्धों के बारे में यह बताता है कि वहाँ समूह रंग के आधार पर विभक्त थे। एक तरफ अश्वेत लोगों के समूह थे तो दूसरी ओर श्वेत (गोरे) लोगों के समूह थे। वहाँ पर इन समूहों के बीच स्पष्ट विभाजन था। अश्वेत और श्वेत दोनों के अलग विद्यालय थे। दोनों की बस्तियाँ भी अलग-अलग थीं। गोरों के इलाके में कालों को आने-जाने की मनाही थी। इस प्रकार इन समूहों के बीच आपस में कटुतापूर्ण एवं असमानता पर आधारित सम्बन्ध थे।
प्रश्न 2.
आओ कुछ करके सीखें अपने क्षेत्र के नागरिकों की गतिविधियों के कुछ वैसे उदाहरणों के विषय में सोचें जो दूसरे की मदद करने अथवा क्षेत्र की उन्नति या फिर पर्यावरण की रक्षा से सम्बन्धित हों। ऐसी कुछ गतिविधियों की एक सूची बनाएँ जो आपके हम उम्र युवाओं द्वारा अपनाई जा सकती हैं।
उत्तर:
ऐसी गतिविधियाँ, जो दूसरों की मदद करने, क्षेत्र की उन्नति या फिर पर्यावरण की रक्षा से सम्बन्धित हों और हमारे हम उम्र युवा अपना सकते हैं, की सूची अग्र प्रकार है
गतिविधि |
उदेश्य |
1. वृक्ष लगाना। |
पर्यावरण को हरा-भरा बनाना तथा प्रदूषण को कम करना। |
2. बीड़ी, सिगरेट, पान-मसाला आदि के बुरे प्रभावों का प्रचार करना। |
आम जनता स्वास्थ्य के लिए हानिकारक पदार्थों के सेवन से बचाना। |
3. अपने से छोटे निर्धन बच्चों को निःशुल्क पढ़ाना। |
शिक्षा का प्रचार करते हुए अपने ज्ञान में वृद्धि करना तथा निर्धनों को भी साक्षर बनाना। |
4. यातायात के नियमों को जानकर इसका पालन करना। |
सड़क पर चलते समय अपने साथ-साथ दूसरे लोगों की रक्षा करना। |
इसी प्रकार की कई अन्य गतिविधियों की आप स्वयं भी सूची बना सकते हैं।
प्रश्न 3.
चिंतन-मंथन
(क) नागरिकों के लिए देश भर में गमनागमन (आना, जाना व बसना) और रोजगार की स्वतन्त्रता के पक्ष और विपक्ष में तर्कों की जाँच पड़ताल करें।
(ख) क्या किसी क्षेत्र में लम्बे समय से रहने वाले निवासियों को रोजगार और सुविधाओं में प्राथमिकता मिलनी चाहिए ?
(ग) क्या राज्यों को व्यावसायिक कॉलेजों में बाहरी छात्रों के प्रवेश के लिए कोटा निर्धारित करने की अनुमति दी जानी चाहिए ?
उत्तर:
(क) नागरिकों के लिए देश भर में गमनागमन (आना, जाना व बसना) और रोजगार की स्वतन्त्रता के पक्ष और विपक्ष में तर्क पक्ष में तर्क
विपक्ष में तर्क-
(ख) एक लोकतांत्रिक देश में प्रत्येक नागरिक का देश के किसी भी हिस्से में रोजगार या सुविधा प्राप्त करने का हक होता है। अतः किसी क्षेत्र विशेष में लम्बे समय से रहने वाले लोगों को रोजगार और सुविधाओं में प्राथमिकता दिया जाना उचित प्रतीत नहीं होता। हौं, विशेष परिस्थितियों में ऐसा अवश्य किया जा सकता है, जब उचित औचित्यपूर्ण कारण उपलब्ध हों।
(ग) यह एक बड़ा ही जटिल प्रश्न है, जिस पर आज भी सरकारें असमंजस में हैं। फिर भी इस सम्बन्ध में यह कहा जा सकता है कि व्यावसायिक कॉलेजों में बाहरी छात्रों को प्रवेश के लिए कोटा निर्धारण करने की अनुमति दिया जाना गलत नहीं बशर्ते ऐसा करते समय स्थानीय छात्रों की उपलब्धता, शिक्षा की गुणवत्ता इत्यादि बातों को भी ध्यान में रखा जाए।
प्रश्न 4.
आओ कुछ करके सीखें अपने घर, विद्यालय या आसपास कार्यरत तीन कामगार परिवारों का सर्वेक्षण करें। वे कहाँ रहते हैं? आवास में कितने लोग रहते हैं ? उन्हें किस तरह की सुविधाएं उपलब्ध हैं ? क्या उनके बच्चे विद्यालय जाते हैं ?
उत्तर:
हमने अपने घर के पास कार्यरत रघु और अनूप के परिवार देखे। विद्यालय के आसपास मेवालाल का परिवार रहता है। हमने इनका सर्वेक्षण करके दिये गये प्रश्नों के उत्तर खोजने की कोशिश की। हमें जो सूचनाएँ प्राप्त हुईं उनका विवरण निम्नलिखित
(i) रघु के परिवार से प्राप्त सूचनाएँ (रघु एक राजमिस्त्री है, मकान बनाने का काम करता है।)
प्रश्न (अ)
वह कहाँ रहता है ?
उत्तर:
वह हमारे गाँव के एक कच्चे मकान में रहता है।
प्रश्न (ब) आवास में कितने लोग रहते हैं ?
उत्तर:
उसका घर दो कमरे का है। उसमें उसकी बूढ़ी माँ, पत्नी और दो बच्चे रहते हैं। इस प्रकार उसे मिलकर दो कमरे के घर में कुल 5 लोग रहते हैं।
प्रश्न (स)
उन्हें किस तरह की सुविधाएँ प्राप्त हैं ?
उत्तर:
हमने देखा कि उसके घर में बिजली का कनेक्शन तो है लेकिन पानी बाहर के कुएँ से लाना पड़ता है। घर में शौचालय भी नहीं है। घर के लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है। उसकी बूढ़ी माँ बीमार रहती हैं परन्तु उन्हें सही इलाज भी नहीं मिल पा रहा है।
प्रश्न (द)
क्या उसके बच्चे विद्यालय जाते हैं ?
उत्तर:
हाँ, उसके बच्चे गाँव के सरकारी प्राथमिक विद्यालय में पढ़ने जाने लगे हैं क्योंकि अब विद्यालय से पुस्तकें एवं विद्यालय पोशाक निःशुल्क मिल जाती है। .
(ii) अनूप के परिवार से प्राप्त सूचनाएँ (अनूप एक दैनिक मजदूर है जो गाँव के खेतों में दिहाड़ी पर काम करता है।)
प्रश्न (अ)
वह कहाँ रहता है ?
उत्तर:
अनूप का परिवार गाँव के बाहरी इलाके में झोंपड़ीनुमा घर में रहता है। उसकी झोंपड़ी लकड़ी और घास-फूस से बनी
प्रश्न (ब)
आवास में कितने लोग रहते हैं ?
उत्तर:
उसकी एक झोंपड़ी में पति-पत्नी और तीन बच्चे रहते हैं। इस प्रकार उसे मिलाकर कुल 5 लोग एक ही झोंपड़ी में किसी तरह गुजारा कर रहे हैं।
प्रश्न (स)
उन्हें किस तरह की सुविधाएँ प्राप्त हैं ? उत्तर-अनूप के घर में बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है।
प्रश्न (द)
क्या उसके बच्चे विद्यालय जाते हैं ?
उत्तर:
नहीं, उसके तीनों बच्चे विद्यालय जाने की बजाय खेतों से अनाज बीनकर तथा दूसरों की भैंसे चराकर घर के लिए अन्न की व्यवस्था में उसका हाथ बंटाते हैं।
(iii) मेवालाल के परिवार से प्राप्त सूचनाएँ (मेवालाल सिलाई का काम करता है।)
प्रश्न (अ)
वह कहाँ रहता है ?
उत्तर:
मेवालाल का हमारे विद्यालय के पास स्वयं का छोटा पक्का मकान है। वह और उसका परिवार वहीं रहता है।
प्रश्न (ब)
आवास में कितने लोग रहते हैं ?
उत्तर:
मेवालाल के मकान में चार कमरे हैं। इसमें उसकी माँ, पिता, पत्नी तथा दो बच्चे मिलाकर कुल 6 लोग रहते हैं।
प्रश्न (स)
उन्हें किस तरह की सुविधाएँ प्राप्त हैं ?
उत्तर:
मेवालाल के परिवार को बिजली, पानी जैसी बुनियादी सुविधाएँ प्राप्त हैं। उसके घर में टी. वी. और फ्रिज भी है। शौचालय भी उसके घर में ही बना है।
प्रश्न (द)
क्या उसके बच्चे विद्यालय जाते हैं ?
उत्तर:
हाँ, उसके बच्चे हमारे विद्यालय में हमारे साथ ही पढ़ते हैं।
प्रश्न 5.
चिन्तन-मंथन
जिवाब्वे में भूमि वितरण के बारे में प्रकाशित सरकारी आंकड़ों के अनुसार वहाँ लगभग 4400 गोरे परिवारों के पास लगभग एक करोड़ हेक्टेयर भूमि है। यह देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 32 प्रतिशत हिस्सा है। लगभग दस लाख काले किसानों के पास केवल 1.6 करोड़ हेक्टेयर भूमि है जो कुल का 38 प्रतिशत भाग है। गोरे लोगों के पास जो जमीन है वह सिंचित और उपजाऊ है, जबकि काले लोगों के पास कम उपजाऊ और असिंचित जमीन है। भू-स्वामियों के इतिहास को खोजने से साफ पता चलता है कि लगभग सौ वर्ष पूर्व गोरे लोगों ने उपजाऊ जमीन स्थानीय निवासियों से अपने कब्जे में ले ली। गोरे लोग जिंवाब्वे में पीढ़ियों से रह रहे हैं और अब स्वयं को जिंवाब्वेवासी समझते हैं। जिंवाब्वे में गोरों की आबादी कुल जनसंख्या की केवल 0.06 प्रतिशत है। सन् 1997 में जिंवाब्वे के राष्ट्रपति राबर्ट मुगाबे ने 1500 बड़े फार्मों पर कब्जा करने की योजना की घोषणा की। जिंवाब्वे के काले और गोरे नागरिकों के अपने-अपने दावों का समर्थन या विरोध करने के लिए आप नागरिकता के कौन-कौन से विचारों का उपयोग करेंगे ?
उत्तर:
हम जिवाब्वे के काले नागरिकों के दावों का समर्थन करेंगे तथा गोरे नागरिकों के दावों का विरोध करेंगे। इसके लिए हम मॉर्टिन लूथर किंग जूनियर के नागरिकता सम्बन्धी विचारों का उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने यह बताया है कि आत्म-गौरव और आत्म-सम्मान के मामले में विश्व की हर जाति या वर्ग का मनुष्य बराबर है। जब सारे मनुष्य बराबर हैं तो उनका भूमि पर भी समान अधिकार होना चाहिए। परन्तु जैसा कि दिए गए ब्यौरे से पता चलता है कि जिंवाब्वे में कुछ मुट्ठी भर लोगों ने बहुसंख्यक काले लोगों के समान नागरिकता के अधिकारों पर कब्जा कर रखा है।
काले लोगों को भी गोरों के समान ही उपजाऊ भूमि मिलनी चाहिए। इसी प्रकार काले नागरिकों के पक्ष में हम ब्रिटिश समाजशास्त्री टी. एच. मार्शल के भी विचारों का अनुसरण कर सकते हैं। मार्शल का मानना है कि एक बेहतर और समानतापूर्ण समाज के निर्माण के लिए यह आवश्यक है कि नागरिकों को समान रूप से जीवन, आजादी और भूमि के अधिकार दिये जाएँ। अत: मार्शल के विचारों का उपयोग करते हुए हम काले नागरिकों के पक्ष में यह कह सकते हैं कि वह जिंवाब्वे के मूल निवासी हैं इस नाते उन्हें भी उपजाऊ भूमि का उचित हिस्सा मिलना ही चाहिए।
प्रश्न 6.
आओ कुछ करके सीखें
भारत में अभी रह रहे कुछ राज्यहीन लोगों की सूची बनाओ। उनमें से किसी पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखो।
उत्तर:
भारत में अभी रह रहे कुछ राज्यहीन लोगों की सूची
क्र. संख्या |
राज्यहीन लोग |
1. |
बांग्लादेशी शरणार्थी |
2. |
तिब्बती शरणार्थी |
3. |
समय-समय पर भारत आने वाले अवैध अप्रव्नासी |
टिप्पणी-
(i) बांग्लादेशी शरणार्थी-1970-71 ई. में पूर्वी बंगाल, जोकि पाकिस्तान का हिस्सा था, में वहां की सरकार व सेना द्वारा जनता पर अत्यधिक अत्याचार किये जा रहे थे। ऐसे में ये लोग बड़ी संख्या में भारत में आकर बसने लगे। मजबूरन भारत को 1971 ई. में हस्तक्षेप करना पड़ा और बांग्लादेश के नाम से पूर्वी बंगाल एक अलग राष्ट्र बन गया। तब से ये लोग बांग्लादेशी शरणार्थी कहलाने लगे।
प्रश्न 1.
राजनीतिक समुदाय की पूर्ण और समान सदस्यता के रूप में नागरिकता में अधिकार और दायित्व दोनों शामिल हैं। समकालीन लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक किन अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं ? नागरिकों के राज्य और अन्य नागरिकों के प्रति क्या दायित्व हैं ?
उत्तर:
समकालीन लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक निम्नलिखित अधिकारों के उपभोग की अपेक्षा कर सकते हैं
(i) मतदान का अधिकार-लोकतांत्रिक राज्यों में जनता के द्वारा चुने गये प्रतिनिधियों द्वारा ही शासन चलाया जाता है। ऐसे में प्रत्येक लोकतांत्रिक राज्य में नागरिकों की यह अनिवार्य अपेक्षा रहती है कि उन्हें बिना किसी भेदभाव के समान रूप से वोट डालने का अधिकार प्राप्त हो। वोट डालने के अधिकार के प्रयोग द्वारा ही जनता लोकतांत्रिक राज्यों में अपनी सरकार का चुनाव करती है।
(ii) चुनाव लड़ने का अधिकार-लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक नागरिक को यह अपेक्षा होती है कि उसे लोकतांत्रिक संस्थाओं के चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त हो। चुनाव जीतने के पश्चात् वह आम जनता के प्रतिनिधि के रूप में सरकार का निर्मा कर सके। लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक नागरिक को चुनाव लड़ने का अधिकार प्राप्त होता है।
(iii) आजीविका कमाने का अधिकार-लोकतांत्रिक राज्यों में सभी नागरिकों की यह अपेक्षा भी होती है कि उन्हें अपना जीवन-यापन करने एवं आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए उचित आजीविका कमाने का अधिकार प्राप्त हो। लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक रोजगार के लिए स्वतन्त्र होते हैं। नागरिकों को अपनी योग्यता व क्षमता के अनुसार राज्य के किसी भी हिस्से में रोजगार करने और इस उद्देश्य से निवास करने की आजादी होती है।
(iv) सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थाओं में समान अवसर-लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक यह भी अपेक्षा कर सकते हैं कि उन्हें सरकारी नौकरियों में अपनी योग्यता प्रदर्शित करने का पूरा व समान अवसर मिले। इसी प्रकार शिक्षण संस्थाओं में भी समुचित शिक्षा प्राप्त करने के लिए उचित अधिकार प्राप्त हों। इन अधिकारों को काफी हद तक सभी लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को प्रदान करने का प्रयास भी किया जा रहा है।
(v) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार-लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक नागरिक को यह अपेक्षा रहती है कि उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान किया जाए ताकि वह अपनी बात निडरता के साथ कह सके। लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक सरकार अपने नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करती है।
(vi) आस्था की स्वतंत्रता का अधिकार-लोकतांत्रिक राज्यों में प्रत्येक नागरिक को यह अपेक्षा रहती है कि उसे अपने धर्म के प्रति आस्था की स्वतंत्रता प्रदान की जावे। अधिकांश लोकतांत्रिक राज्यों में धर्म निरपेक्ष स्वरूप को 3 गते हुए नागरिकों को धर्म के प्रति आस्था की स्वतंत्रता प्रदान की है अर्थात् नागरिक किसी भी धर्म को अपना सकता है। राज्य नागरिक की आस्था के विषय में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा।
नागरिकों के राज्य के प्रति दायित्व-एक लोकतांत्रिक राज्य में नागरिकों के राज्य के प्रति निम्नलिखित दायित्व हैं
अत: नागरिकों का राज्य के प्रति यह कर्त्तव्य बनता है कि वे सरकार को ईमानदारी से कर चुकाएँ। करों की चोरी न करें।
नागरिकों के अन्य नागरिकों के प्रति दायित्व-एक लोकतांत्रिक राज्य में नागरिकों के अन्य नागरिकों के प्रति निम्नलिखित दायित्व हैं
प्रश्न 2.
सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए तो जा सकते हैं लेकिन हो सकता है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें। इस कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक समाज में सभी मनुष्य समान नहीं होते। कुछ लोग जन्म से अमीर, ताकतवर व उच्च होते हैं तो कुछ जन्म से ही निर्धन, दुर्बल एवं निम्न हो सकते हैं। ऐसे में समाज में सभी व्यक्तियों की योग्यताओं और क्षमताओं में भी अन्तर होता है। इस प्रकार यदि समाज में सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए भी जाएँ तो इस बात की सम्भावना ज्यादा रहती है कि वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से न कर सकें। उदाहरण के लिए हमारे देश में सभी वयस्क नागरिकों को मत देने का समान अधिकार दिया गया है लेकिन मत देने के लिए मतदाता सूची में नाम दर्ज होना आवश्यक है और मतदाता सूची में नाम दर्ज करने के लिए स्थायी पते की जरूरत होती है। शहरों में झुग्गी-झोपड़ियों, अनाधिकृत बस्तियों अथवा पटरियों पर रहने वाले लोगों के लिए ऐसा स्थाई पता प्रस्तुत करना कठिन होता है।
फलस्वरूप वे लोग मत देने के अधिकार का प्रयोग समानता के साथ नहीं कर पाते है। इसी प्रकार मानव की शारीरिक-मानसिक भिन्नता भी सभी नागरिकों को समान रूप से अधिकारों के प्रयोग से वंचित करती है। उदाहरण के लिए यदि एक रेस का आयोजन किया जाए और इसमें सामान्य लोगों के साथ ही शारीरिक दृष्टि से विकलांगों को भी दौड़ाया जाए तो स्पष्ट है कि वे पिछड़ जाएंगे। इस बात से स्पष्ट है कि समाज में सभी नागरिकों का शारीरिक-मानसिक स्तर समान नहीं होता। अतः सभी नागरिकों को समान अधिकार दिए तो जा सकते हैं, परन्तु वे इन अधिकारों का प्रयोग समानता से कर पाएँ, यह जरूरी नहीं है।
प्रश्न 3.
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए किन्हीं दो संघर्षों पर टिप्पणी लिखिए। इन संघर्षों में किन अधिकारों की मांग की गई थी ?
उत्तर:
भारत में नागरिक अधिकारों के लिए हाल के वर्षों में किए गए दो प्रमुख संघर्ष निम्नलिखित हैं
(i) जनलोकपाल के लिए संघर्ष... भारत में अगस्त, 2011 ई. से नागरिक अधिकारों के रूप में 'जनलोकपाल' बनवाने के लिए व्यापक संघर्ष छेड़ा गया है। इस संघर्ष का नेतृत्व अन्ना हजारे नामक प्रसिद्ध समाजसेवी ने किया। इस संघर्ष में यह माँग की जा रही थी कि जनता को भ्रष्टाचार से मुक्त शासन और प्रशासन मिलना चाहिए। इसके लिए 'जनलोकपाल' नामक संस्था का तुरन्त गठन किया जाए जोकि चपरासी से लेकर प्रधानमंत्री तक के भ्रष्टाचार की निगरानी करे। . इस संघर्ष द्वारा लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को जो वास्तविक शक्ति मिलनी चाहिए, उसी की माँग की गई। लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिक का यह अधिकार बनता है कि उसकी समस्याओं, कार्यों इत्यादि के निदान में यदि सरकारी भ्रष्टाचार बाधा बने तो जनता उसके समाप्त होने के लिए स्वयं निगरानी कर सकती - तथा ऐसी किसी संस्था की माँग कर सकती है जोकि भ्रष्टाचार को समाप्त करे।
(ii) काले धन की वापसी पर बाबा रामदेव का आन्दोलन-भारत में हाल ही में (वर्ष 2011-12 में) योग गुरु बाबा रामदेव द्वारा विदेशों में जमा भारतीयों के काले धन (गुप्त रूप से छुपा अवैध धन) को भारत वापस लाने के लिए व्यापक संघर्ष छेड़ा गया। एक लोकतांत्रिक राज्य में प्रत्येक नागरिक को अपने देश के धन पर समान अधिकार प्राप्त है। समस्त सरकारी धन पर जनता का हक होता है, उसे जनता के हित के कार्यों में खर्च होना चाहिए। परन्तु अत्यधिक भ्रष्टाचार के कारण भारत का काफी धन गुप्त रूप से विदेशी बैंकों में जमा किया गया है। इस धन में नेता, मंत्री, अधिकारी, उद्योगपति सभी शामिल हैं। ऐसे में यह एक लोकतांत्रिक देश की जनता के साथ धोखा ही कहा जाएगा। जहाँ आज भी समाज का एक वर्ग भूख से मर रहा है वहीं विदेशों में हजारों करोड़ रुपये बिना किसी प्रयोजन के पड़े हैं। अतः काले-धन की भारत में वापसी की माँग और संघर्ष भी नागरिकों के अधिकारों का एक हाल ही में चलाया गया संघर्ष है। यदि यह सफल हो जाए तो हमारे देश में नागरिकों की गरीबी दूर हो सकती है।
प्रश्न 4.
शरणार्थियों की समस्याएँ क्या हैं ? वैश्विक नागरिकता की अवधारणा किस प्रकार उनकी सहायता कर सकती है ?
उत्तर:
शरणार्थी से आशय-वे लोग जो किसी प्राकृतिक आपदा, युद्ध या संघर्ष की स्थिति में अथवा आजीविका की तलाश में एक देश की राजनीतिक सीमा से दूसरे देश की राजनीतिक सीमा में आकर शरण लेते हैं, उन्हें शरणार्थी कहा जाता है। शरणार्थियों की समस्याएँ-शरणार्थियों की कई प्रकार की समस्याएँ होती हैं, इनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं
(i) राजनीतिक पहचान का अभाव शरणार्थियों के सामने पहली समस्या उनकी राजनीतिक पहचान की होती है। उन्हें कोई भी देश अपना नागरिक मानने को तैयार नहीं होता। ऐसे में शरणार्थी लोगों को राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक उपेक्षा का शिकार होना पड़ता है।
(ii) नागरिक अधिकारों की समस्या शरणार्थियों को किसी भी देश के नागरिक का दर्जा प्राप्त न होने के कारण एक नागरिक के नाते किसी भी व्यक्ति को मिलने वाले विभिन्न अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है। उदाहरण के तौर पर शरणार्थियों को वोट देने, राजनीतिक दल बनाने, स्वतन्त्र भ्रमण करने इत्यादि जैसे बुनियादी अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। इन्हें अपने अधिकारों को पाने के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ता है। आज भी विश्व में बहुत से क्षेत्रों में शरणार्थियों को अधिकारविहीन जीवन जीना पड़ रहा
(iii) बुनियादी सुविधाओं का अभाव-शरणार्थियों को बुनियादी सुविधाओं जैसे-स्वच्छ पेयजल, आवास, स्वास्थ्य आदि के अभाव की समस्या का भी सामना करना पड़ता है। चूँकि कोई देश इन्हें नागरिक नहीं मानता, इसलिए इनकी बस्तियों की ओर ध्यान भी नहीं दिया जाता। ये गन्दी बस्तियों में कामचलाऊ घरों में पशुओं के समान रहने को मजबूर होते हैं। मानव होने के नाते शिक्षा, आवास, स्वास्थ्य, रोजगार जैसे बुनियादी अधिकारों के लिए भी इनको संघर्ष करना पड़ता है। वैश्विक नागरिकता की अवधारणा द्वारा शरणार्थियों को सहायता-शरणार्थियों का प्रश्न आज विश्व के लिए एक गम्भीर समस्या बन गया है। राष्ट्रीय नागरिकता ऐसे लोगों की आवश्यकताओं का समाधान नहीं कर पा रही है। वैश्विक नागरिकता की अवधारणा ही इस समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकती हैं। विश्व नागरिकता से राष्ट्रीय सीमाओं के दोनों ओर की उन समस्याओं का मुकाबला करना आसान हो सकता है जिसमें कई देशों की सरकारों और लोगों की संयुक्त कार्यवाही ही आवश्यक होती है।
प्रश्न 5.
देश के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के आप्रवासन का आमतौर पर स्थानीय लोग विरोध करते हैं। प्रवासी लोग स्थानीय अर्थव्यवस्था में क्या योगदान दे सकते हैं ?
उत्तर:
देश के अन्दर एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में लोगों के एक स्थान से आकर दूसरे स्थान पर रोजगार करने और बसने (आप्रवासन) का आमतौर पर उस दूसरे स्थान पर पहले से रह रहे स्थानीय लोग विरोध करते हैं। परन्तु यदि व्यापक दृष्टिकोण से देखा जाए तो बाहर से आने वाले लोग (प्रवासी लोग) स्थानीय अर्थव्यवस्था में कई प्रकार से योगदान देते हैं। सामान्यतया प्रवासी लोगों में फेरी लगाने वाले, घरों में साफ-सफाई करने वाले, मिस्त्री का काम करने वाले, इमारतों के निर्माण में मजदूरी करने वाले आदि लोगों की संख्या अधिक होती है। इनके आने से स्थानीय लोगों को कई प्रकार की सुविधाएँ मिल जाती हैं।
उन्हें बुनियादी परियोजनाओं के लिए सस्ते व समुचित मात्रा में कुशल और अकुशल श्रमिक मिल जाते हैं। दैनिक कार्यों में भी सहायता मिल जाती है। इसी प्रकार प्रवासी लोग कोई बड़ा कारखाना अथवा छोटे-छोटे कुटीर उद्योग जैसे-कपड़ों पर रंग करना, जूते, पर्स इत्यादि का निर्माण करना, सिलाई-कढ़ाई करना इत्यादि भी चलाते हैं। इससे उस स्थान पर लोगों को रोजगार के साथ-साथ सस्ते दामों पर कई वस्तुओं व सेवाओं का लाभ प्राप्त हो जाता है। इस प्रकार प्रवासी लोग कई रूपों में कई तरीकों से स्थानीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। -
प्रश्न 6.
भारत जैसे समान नागरिकता देने वाले देशों में भी लोकतांत्रिक नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं वरन् एक परियोजना है। नागरिकता से जुड़े उन मुद्दों की चर्चा कीजिए जो आजकल भारत में उठाए जा रहे हैं ?
उत्तर:
भारत में आजादी के बाद अपना संविधान लागू किया गया। इस संविधान द्वारा सभी नागरिकों को समान नागरिकता प्रदान की गई है। परन्तु विचारकों का यह मानना है कि भारत में भी नागरिकता एक पूर्ण स्थापित तथ्य नहीं बल्कि एक परियोजना है। इसका मतलब यह निकलता है कि भारत में आज भी नागरिकता का कोई स्थायी रूप नहीं है। इसमें परिवर्तन और सुधार की माँगें होती रहती हैं। चूँकि नागरिकता में निरन्तर परिवर्तन व सुधार होता रहता है, इसीलिए इसे परियोजना माना जाता है। इस सन्दर्भ में भारत में नागरिकता से जुड़े कुछ निम्नलिखित मुद्दों की चर्चा की जा सकती है, जो आजकल भारत में उठाए जा रहे हैं
(i) महिलाओं के राजनीतिक अधिकारों में वृद्धि की जाए-भारत में आजकल महिलाओं को राजनीतिक क्षेत्र में ज्यादा अधिकार दिये जाने की माँग जोरों पर है। वैसे भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के तहत महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हैं, फिर भी राजनीतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी आज भी कम है। इसी को देखते हुए महिलाओं को भी देश का नागरिक होने के नाते उनकी राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने की माँग की जा रही है। इस सम्बन्ध में भारत में स्थानीय स्वशासन में महिलाओं को एक तिहाई आरक्षण दिया गया है। इसी प्रकार संसद में भी 33% सीटें महिलाओं को दिये जाने की माँग की जा रही है।
(ii) बांग्लादेशी शरणार्थियों की नागरिकता का मुद्दा-भारत में बांग्लादेश से निरन्तर आ रहे शरणार्थियों को नागरिकता दी जाए याल दी जाए, यह मुद्दा भी जोरों पर है। सरकारों ने कई बार इन्हें समान नागरिकता देने की कोशिश की, लेकिन इसका स्थानीय मूल नागरिकों द्वारा विरोध किया जाता रहा है। फिलहाल इस मुद्दे पर कोई अन्तिम निर्णय नहीं किया जा सका है। यद्यपि सरकार वैश्विक नागरिकता की धारणा के तहत इन्हें भोजन, आवास, चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध कराने का प्रयास कर रही है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भारत जैसे समान नागरिकता देने वाले देशों में भी लोकतांत्रिक नागरिकता एक पूरी तरह स्थापित तथ्य नहीं बल्कि एक परिवर्तनशील धारणा (परियोजना) है।