Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 6 न्यायपालिका Textbook Exercise Questions and Answers.
प्रश्न 1.
मेरा तो सिर चकरा रहा है और कुछ समझ में नहीं आ रहा। लोकतंत्र में आप प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक की आलोचना कर सकते हैं, न्यायाधीशों की क्यों नहीं? और फिर, यह अदालत की अवमानना क्या बला है? क्या मैं ये सवाल करूँ तो मुझे 'अवमानना' का दोषी माना जाएगा।
उत्तर:
लोकतंत्र में आप प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति तक की आलोचना कर सकते हैं, परन्तु न्यायाधीशों की आलोचना नहीं करते हैं, क्योंकि संविधान में न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सर्वोच्चता को सर्वोपरि माना गया है। अगर न्यायपालिका की भी आलोचना होने लगी तो न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सर्वोच्चता का कोई मतलब नहीं रह जायेगा। न्यायाधीशों के कार्यों और निर्णयों की व्यक्तिगत आलोचना ही न्यायालय की अवमानना है। अगर कोई न्यायालय की अवमानना का दोषी पाया जाता है तो न्यायपालिका उसे दंडित करने का अधिकार रखती है। सवाल करने पर न्यायालय की अवमानना का दोषी माना जाएगा।
प्रश्न 2.
आपकी राय में निम्नलिखित में से कौन-कौन न्यायाधीशों के निर्णय को प्रभावित करते हैं ? क्या आप इन्हें ठीक मानते हैं ?
उत्तर:
मेरी राय में उपर्युक्त में से निम्नलिखित न्यायाधीशों के निर्णयों को प्रभावित करते हैं और मैं इन्हें ठीक मानता हूँ() संविधान
प्रश्न 3.
मेरा ख्याल है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति में मंत्रिपरिषद की बात को ज्यादा तरजीह दी जानी चाहिए या फिर यह मान लें कि न्यायपालिका अपनी नियुक्ति आप ही करने वाला निकाय है।
उत्तर:
मैं उपर्युक्त विचारों से असहमत हूँ क्योंकि यदि न्यायाधीशों की नियुक्ति में मंत्रिपरिषद् की बात को ज्यादा तरजीह दी जाएगी तो न्यायपालिका के कार्यों में कार्यपालिका का हस्तक्षेप बढ़ जाएगा और कार्यपालिका न्यायपालिका की तटस्थता अथवा निष्पक्षता को खत्म कर प्रतिबद्ध न्यायपालिका की तरफ बढ़ाएगी। - सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है। इसमें प्राय: वरिष्ठता की परम्परा का पालन किया जाता है, जिसका आधार अनुभव और योग्यता है। यह मानना भी त्रुटिपूर्ण है कि न्यायपालिका अपनी नियुक्ति आप ही करने वाला निकाय है।
मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ चार न्यायाधीशों के परामर्श से मुख्य न्यायाधीश कुछ न्यायाधीशों का एक पैनल राष्ट्रपति को भेज देता है। राष्ट्रपति इनमें से किसी को भी नियुक्त कर सकता है। अन्तिम निर्णय मंत्रिपरिषद् द्वारा ही लिया जाता है। मंत्रिपरिषद् के निर्णय में न्यायाधीशों की नियुक्ति के समय राजनीतिक निष्ठाओं के प्रभाव में योग्यता को नजर-अंदाज न किया जा सके, इसलिए मंत्रिपरिषद् के निर्णय तथा न्यायाधीशों के परामर्श पर कुछ सीमाएँ भी लगाई गयी हैं।
प्रश्न 4.
न्यायपालिका की स्वतंत्रता क्यों महत्वपूर्ण है ?
उत्तर:
न्यायपालिका अपने विधिक कार्यों को तभी कुशलतापूर्वक सम्पन्न कर सकती है, जब वह स्वतंत्र रूप से कार्य करे। न्यायपालिका देश के संविधान, लोकतांत्रिक परंपरा और जनता के प्रति जवाबदेह है एवं न्यायपालिका ही कानून की सर्वोच्चता बरकरार रख सकती है। इसलिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता काफी महत्वपूर्ण हो जाती है। इसके अतिरिक्त न्यायपालिका की स्वतंत्रता इसलिए भी महत्वपूर्ण है ताकि सरकार के अन्य दोनों अंग विधायिका और कार्यपालिका, न्यायपालिका के निर्णयों में हस्तक्षेप न करें एवं न्यायाधीश बिना भय या भेदभाव के अपना कार्य सम्पन्न कर सकें।
प्रश्न 5.
क्या आपकी राय में कार्यपालिका के पास न्यायाधीशों को नियुक्त करने की शक्ति होनी चाहिए ?
उत्तर:
हमारी राय में कार्यपालिका के पास न्यायाधीशों की नियुक्ति करने की शक्ति नहीं होनी चाहिए, यदि ऐसा होता है तो फिर न्यायपालिका की स्वतंत्रता का कोई अर्थ ही नहीं रह जायेगा, क्योंकि ऐसा हुआ तो कार्यपालिका अपने पसन्द के व्यक्तियों की न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति करेगी और न्यायपालिका भी राजनैतिक दबाव से मुक्त नहीं हो पायेगी।
प्रश्न 6.
यदि आपसे न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करने का सुझाव देने को कहा जाय तो आप क्या
उत्तर:
हम नियुक्ति की प्रक्रिया में बदलाव करने सम्बन्धी निम्नलिखित सुझाव देना चाहेंगे
(क) सरकार को चाहिए कि न्यायाधीशों की नियुक्ति करते वक्त राजनैतिक लाभ को दरकिनार कर दे।
(ख) एक नियुक्ति मण्डल का गठन कर देना चाहिए जिसमें मंत्रिपरिषद के सदस्यों के अतिरिक्त विपक्ष के नेता, मुख्य न्यायाधीश एवं कुछ अन्य न्यायाधीश शामिल हों, जोकि कुछ न्यायाधीशों को प्रस्तावित करके भेजें।
(ग) विख्यात कानूनवेत्ताओं एवं अनुभवी अधिवक्ताओं को ही न्यायाधीश के पद पर नियुक्त किया जाना चाहिए।
प्रश्न 7.
सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही फैसले को बदलने की इजाजत क्यों दी गई है ? क्या ऐसा यह मानकर किया गया है कि अदालत से भी चूक हो सकती है ? क्या यह संभव है कि फैसले पर पुनर्विचार करने के लिए जो खंडपीठ बैठी है उसमें वह न्यायाधीश भी शामिल हो, जो फैसला सुनाने वाली खंडपीठ में था ?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय को अपने ही फैसले को बदलने की इजाजत इसलिए दी गई, ताकि वह अपने फैसले की समीक्षा कर सके, जो तथ्य उनके सामने आने से रह गये थे उनको शामिल कर सके और अगर कोई चूक भी हो गई है तो उसकी भरपाई कर सके। पुनर्विचार याचिका हमेशा उसी खंडपीठ के यहाँ लगाई जाती है जिसने फैसला सुनाया हो।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित दो सूचियों को सुमेलित करें।
(क) बिहार और भारत सरकार के मध्य विवाद की सुनवाई कौन करेगा ? |
(1) उच्च न्यायालय |
(ख) हरियाणा के जिला न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील कहाँ की जायेगी ? |
(2) परामर्श संबंधी क्षेत्राधिकार |
(ग) एकीकृत न्यायपालिका |
(3) न्यायिक पुनर्निरीक्षण |
(घ) किसी कानून को असंवैधानिक घोषित करना। |
(4) मौलिक क्षेत्राधिकार |
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(5) सर्वोच्च न्यायालय |
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(6) एकल संविधान |
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(1) उच्च न्यायालय |
उत्तर:
(क) बिहार और भारत सरकार के मध्य विवाद की सुनवाई कौन करेगा ? |
(5) सर्वोच्च न्यायालय |
(ख) हरियाणा के जिला न्यायालय के निर्णय के विरुद्ध अपील कहाँ की जायेगी ? |
(1) उच्च न्यायालय |
(ग) एकीकृत न्यायपालिका |
(6) एकल संविधान |
(घ) किसी कानून को असंवैधानिक घोषित करना। |
(3) न्यायिक पुनर्निरीक्षण |
प्रश्न 9.
मैंने कुछ लोगों को कहते सुना है कि जनहित याचिका का असली मतलब होता है 'निजी हित की याचिका'। ऐसा क्यों भला?
उत्तर:
जनहित याचिका का तात्पर्य यह है कि लोकहित के किसी भी मामले में कोई भी व्यक्ति या समूह जिसने व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से सरकार के हाथों किसी भी प्रकार से हानि उठाई हो, अनुच्छेद 21 तथा 32 के अन्तर्गत उच्चतम न्यायालय तथा अनुच्छेद 226 के अनुसार उच्च न्यायालय की शरण ले सकता है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि अगर किसी चीज की उपयोगिता होती है तो उसका दुरुपयोग भी होता है, कुछ स्वार्थी लोगों द्वारा इसे 'निजी हित' की याचिका बना दिया गया है। वे अपने 'निजी हित' को साधने के लिए एक समूह का सहारा लेते हैं, पर इससे उनका निजी हित तो सध ही जाता है और उनके साथ समूह का भी भला हो जाता है। .
प्रश्न 10.
मेरा ख्याल है कि न्यायिक सक्रियता का रिश्ता कार्यपालिका और विधायिका को यह बताने से है कि उन्हें क्या करना चाहिए ? यदि विधायिका और कार्यपालिका ने भी फैसला सुनाना शुरू कर दिया तो फिर क्या होगा?
उत्तर:
न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका ने यह बताने का प्रयास किया है कि विधायिका ने कानून बनाकर जो उसे जिम्मेदारी सौंपी है उसे कार्यपालिका द्वारा लागू होना चाहिए। न्यायिक सक्रियता से न्याय व्यवस्था लोकतांत्रिक हुई है एवं विधायिका और कार्यपालिका जनता के प्रति और भी उत्तरदायी हुईं है। यदि विधायिका और कार्यपालिका ने भी अपना फैसला सुनाना शुरू कर दिया तो फिर न्यायिक अव्यवस्था फैल जायेगी क्योंकि फिर वे दोनों अपनी सुविधानुसार फैसला सुनायेंगी। अतः न्यायपालिका की निष्पक्ष सक्रियता अति आवश्यक है।
प्रश्न 11.
आप एक न्यायाधीश हैं। नागरिकों का एक समूह जनहित याचिका के माध्यम से न्यायालय जाकर प्रार्थना करता है कि वह शहर की नगरपालिका के अधिकारियों को झुग्गी-झोपड़ियाँ हटाने और शहर को सुन्दर बनाने का काम करने के आदेश दे, ताकि शहर में पूँजी निवेश करने वालों को आकर्षित किया जा सके। उनका तर्क है कि ऐसा करना जनहित में है। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वालों का पक्ष है कि ऐसा करने पर उनके जीवन के अधिकार' का हनन होगा। उनका तर्क है कि जनहित के लिए साफ-सुथरे शहर के अधिकार से ज्यादा जीवन का अधिकार महत्वपूर्ण है। कल्पना करें कि आप एक न्यायाधीश हैं। आप एक निर्णय लिखें और तय करें कि इस 'जनहित याचिका' में जनहित का मुद्दा है या नहीं ?
उत्तर:
इस 'जनहित याचिका' में जनहित का मुद्दा नहीं है क्योंकि नागरिकों के समूह ने शहर को सुन्दर बनाने के लिए शहर में पूँजी निवेश करने वालों को आकर्षित करने के लिए न्यायपालिका को जो जनहित याचिका दी है, उनमें झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के हितों को नजर-अंदाज किया है। झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले लोगों का यह पक्ष सही है कि इससे उनके जीवन के अधिकार' का हनन होगा, जो कि साफ-सुथरे शहर के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है।
प्रश्न 12.
न्यायालय न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग कब करता है ?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय किसी भी कानून की संवैधानिकता जाँचने के लिए न्यायिक पुनरावलोकन की शक्ति का प्रयोग करता है और यदि उसे लगता है कि वह कानून संविधान के प्रावधानों के विपरीत है तो उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है।
प्रश्न 13.
न्यायिक पुनरावलोकन और रिट में क्या फर्क है ?
उत्तर:
न्यायिक पुनरावलोकन के द्वारा न्यायालय किसी भी कानून की संवैधानिकता जाँच सकता है और यदि उसे लगता है कि यह संवैधानिक प्रावधानों के अथवा मूल अधिकारों के विपरीत है तो उस कानून को गैर-संवैधानिक घोषित कर सकता है। जब किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो व्यक्ति न्याय पाने के लिए सीधे सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय जा सकता है। न्यायालय रिटों के माध्यम से कार्यपालिका को व्यक्ति के हितों के रक्षार्थ आदेशित करता है। रिट पाँच तरह की होती है-
प्रश्न 14.
अदालत हमें एक बात साफ-साफ क्यों नहीं बता देती है कि आखिर संविधान के वे पहलू क्या हैं, जिन्हें मूल ढाँचा' कहा जाता है।
उत्तर:
जैसा कि हम सभी जानते हैं कि किसी भी चीज को बनाने से पहले उसकी एक रूपरेखा अथवा ढाँचा बनाना पड़ता है। इसी तरह हमारे संविधान निर्माताओं द्वारा हमारे संविधान का एक मूल ढाँचा तैयार किया, जैसे कि इसमें कौन-कौन से प्रावधान शामिल किये जायेंगे और कौन-से नहीं, विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के कार्य क्या होंगे, आदि। ये समस्त प्रावधान मिलकर संविधान का एक 'मूल ढाँचा' बनाते हैं। प्रश्न 15. सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को नियन्त्रित करने में न्यायपालिका किस तरह सक्रिय रहती है ?
उत्तर:
अपने पद और स्थिति से अपेक्षित दायित्वों का ईमानदारी से पालन करने की बजाय व्यक्तिगत हित अथवा लाभ प्राप्त करने के लिए अधिकारों और स्थिति का दुरुपयोग करना भ्रष्टाचार की श्रेणी में आता है। न्यायपालिका सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार चिन्हित करने में पूर्णतः सक्रिय रहती है। वह भारतीय संविधान के अन्तर्गत भ्रष्टाचार में लिप्त व्यक्ति को कठोर दण्ड देती है। उसे पद से हटाने व उसकी सम्पत्ति को जब्त कराने का सरकार को निर्देश देती है। वह कानून और व्यवस्था को बनाये रखने का सरकार को निर्देश देती है। वह न्यायिक सक्रियता के अन्तर्गत कार्यपालिका को भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों के विरुद्ध जाँच के निर्देश प्रदान करती है। इस प्रकार सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार को नियंत्रित करने में न्यायपालिका सक्रिय रहती है।
प्रश्न 1.
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को सुनिश्चित करने के विभिन्न तरीके कौन-कौन से हैं ? निम्नलिखित में जो बेमेल हों उसे छाँटें।
(क) सर्वोच्च न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से सलाह ली जाती है।
(ख) न्यायाधीशों को अमूमन अवकाश प्राप्त करने की आयु से पहले नहीं हटाया जाता।
(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।
(घ) न्यायाधीशों की नियुक्ति में संसद का दखल नहीं है।
उत्तर:
(ग) उच्च न्यायालय के न्यायाधीश का तबादला दूसरे उच्च न्यायालय में नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 2.
क्या न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का अर्थ यह है कि न्यायपालिका किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है ? अपना उत्तर अधिकतम 100 शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता का यह अर्थ कदापि नहीं है कि न्यायपालिका किसी के प्रति भी जवाबदेह नहीं है। न्यायपालिका भी संवैधानिक व्यवस्था का ही एक भाग है, वह संविधान के ऊपर नहीं है। देश की लोकतांत्रिक राजनीतिक संरचना का न्यायपालिका एक अति महत्वपूर्ण हिस्सा है। यह देश के संविधान, लोकतांत्रिक परम्परा तथा जनसाधारण के प्रति उत्तरदायी है। सरकार के महत्वपूर्ण अंग न्यायपालिका ने समय-समय पर संविधान की व्याख्या एवं सुरक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन किया है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों की सुरक्षा का दायित्व न्यायपालिका का ही है। 'कानून के शासन की रक्षा तथा कानून की सर्वोच्चता को सुनिश्चित करना न्यायपालिका का ही कार्यक्षेत्र है। हालाँकि न्यायपालिका किसी भी तरह के राजनीतिक दबावों से मुक्त अवश्य है। इसका यह आशय नहीं है कि वह किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। वास्तव में न्यायपालिका जहाँ देश की लोकतान्त्रिक परम्परा के प्रति जवाबदेह है, वहीं संविधान एवं जनसाधारण के प्रति भी उसका उत्तरदायित्व है।
प्रश्न 3.
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए संविधान के विभिन्न प्रावधान कौन-कौन से हैं ?
उत्तर:
न्यायपालिका की स्वतन्त्रता को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित संवैधानिक प्रावधान किए गए हैं
प्रश्न 4.
नीचे दी गई समाचार रिपोर्ट पढ़ें और उसमें निम्नलिखित पहलुओं की पहचान करें :
(क) मामला किस बारे में है ?
(ख) इस मामले में लाभार्थी कौन है ?
(ग) इस मामले में फरियादी कौन है ?
(घ) सोचकर बताएँ कि कम्पनी की तरफ से कौन-कौन से तर्क दिए जाएंगे ?
(ङ) किसानों की तरफ से कौन से तर्क दिए जाएँगे ?
सर्वोच्च न्यायालय ने रिलांयस से दहानु के किसानों को 300 करोड़ रुपए देने को कहा-निजी कारपोरेट ब्यूरो, 24 मार्च, 2005।
मुम्बई-
सर्वोच्च न्यायालय ने रिलायंस एनर्जी से मुंबई के बाहरी इलाके दहानु में चीकू फल उगाने वाले किसानों को 300 करोड़ रुपए देने के लिए कहा है। चीकू उत्पादक किसानों ने अदालत में रिलायंस के ताप ऊर्जा संयंत्र से होने वाले प्रदूषण के खिलाफ अर्जी दी थी। अदालत ने इसी मामले में अपना फैसला सुनाया है। दहानु मुंबई से 150 किमी. दूर है। एक दशक पहले तक इस इलाके की अर्थव्यवस्था खेती और बागवानी के बूते आत्मनिर्भर थी और दहानु की प्रसिद्धि यहाँ के मछली-पालन तथा जंगलों के कारण थी। सन् 1989 में इस इलाके में ताप ऊर्जा संयंत्र चालू हुआ और इसी के साथ शुरू हुई इस इलाके की बर्बादी। अगले साल इस उपजाऊ क्षेत्र की फसल पहली दफा मारी गई।
कभी महाराष्ट्र के लिए फलों का टोकरा रहे दाहनु की 70 प्रतिशत फसल समाप्त हो चुकी है। मछली-पालन बंद हो गया और जंगल विरल होने लगे हैं। किसानों और पर्यावरणविदों का कहना है कि ऊर्जा संयंत्र से निकलने वाली राख भूमिगत जल में प्रवेश कर जाती है और परा पारिस्थितिकी तंत्र प्रदूषित हो जाता है। दहानु तालुका पर्यावरण सुरक्षा प्राधिकरण ने ताप ऊर्जा संयंत्र को प्रदूषण नियंत्रण की इकाई स्थापित करने का आदेश दिया था ताकि सल्फर का उत्सर्जन कम हो सके। सर्वोच्च न्यायालय ने भी प्राधिकरण के आदेश के पक्ष में अपना फैसला सुनाया था। इसके बावजूद सन् 2002 तक प्रदूषण नियन्त्रण का संयंत्र स्थापित नहीं हुआ। सन् 2003 में रिलायंस ने ताप ऊर्जा संयंत्र को हासिल किया और सन् 2004 में उसने प्रदूषण नियन्त्रण संयंत्र लगाने की योजना के बारे में इसका खाका प्रस्तुत किया। प्रदूषण नियन्त्रण संयंत्र चूँकि अब भी स्थापित नहीं हुआ था इसलिए दहानु तालुका पर्यावरण सुरक्षा प्राधिकरण ने रिलायंस से 300 करोड़ रुपए की बैंक गारंटी देने को कहा।
उत्तर:
(क) यह मामला सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिलायंस एनर्जी से मुंबई के बाहरी इलाके दहानु में ताप ऊर्जा संयंत्र से होने वाले प्रदूषण से प्रभावित चीकू फल उत्पादक किसानों को 300 करोड़ रुपये मुआवजा देने के आदेश से सम्बन्धित है।
(ख) इस मामले में किसान लाभार्थी हैं।
(ग) इस मामले में दहानु क्षेत्र के चीकू उत्पादक किसान फरियादी हैं।
(घ) रिलायंस कम्पनी द्वारा उस क्षेत्र के लोगों के लिए ताप ऊर्जा संयंत्र से होने वाले लाभों यथा रोजगार में वृद्धि का तर्क दिया जायेगा। क्षेत्र में ऊर्जा की कमी नहीं रहेगी तथा प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र की भी स्थापना की जायेगी।
(ङ) किसानों की तरफ से यह तर्क दिया जाएगा कि रिलायंस कम्पनी द्वारा स्थापित ताप उर्जा संयंत्र के कारण उनकी चीकू की फसल बर्बाद हुई है। मछली पालन का व्यवसाय बंद हो गया है, जंगल नष्ट हो गए हैं, भूमि बंजर हो गयी, पारिस्थितिक तंत्र भी प्रदूषित हुआ है, तथा भूमिगत जल भी प्रदूषित हुआ है। क्षेत्र के लोग बेरोजगार हो गए हैं।
प्रश्न 5.
नीचे की समाचार-रिपोर्ट पढ़ें और चिह्नित करें कि रिपोर्ट में किस-किस स्तर की सरकार सक्रिय दिखाई देती है:
(क) सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका की निशानदेही करें।
(ख) कार्यपालिका और न्यायपालिका के कामकाज की कौन-सी बातें आप इसमें पहचान सकते हैं ?
(ग) इस प्रकरण से सम्बद्ध नीतिगत मुद्दे, कानून बनाने से सम्बन्धित बातें, क्रियान्वयन तथा कानून की व्याख्या से जुड़ी बातों की पहचान करें।
सी. एन. जी.- मुद्दे पर केन्द्र और दिल्ली सरकार एक साथ स्टाफ रिपोर्टर, द हिन्दू, सितम्बर, 23, 2001 राजधानी के सभी गैर-सी.एन.जी. व्यावसायिक वाहनों को यातायात से बाहर करने के लिए केन्द्र और दिल्ली सरकार संयुक्त रूप से सर्वोच्च न्यायालय का सहारा लेंगी। दोनों सरकारों में इस बात की सहमति हुई है। दिल्ली और केन्द्र की सरकार ने पूरी परिवहन व्यवस्था को एकल ईंधन प्रणाली से चलाने के बजाय दोहरी ईंधन प्रणाली से चलाने के बारे में नीति बनाने का फैसला किया है क्योंकि एकल ईंधन प्रणाली खतरों से भरी है और इसके परिणामस्वरूप विनाश हो सकता है।
राजधानी के निजी वाहन धारकों ने सी.एन.जी. के इस्तेमाल को हतोत्साहित करने का भी फैसला किया है। दोनों सरकारें राजधानी में 0.05 प्रतिशत निम्न सल्फर डीजल से बसों को चलाने की अनुमति देने के बारे में दबाव डालें। इसके अतिरिक्त अदालत से कहा जाएगा कि जो व्यावसायिक वाहन यूरो-दो मानक को पूरा करते हैं उन्हें महानगर में चलने की अनुमति दी जाए। हालांकि केन्द्र और दिल्ली सरकार अलग-अलग हलफनामा दायर करेंगे लेकिन इनमें समान बिन्दुओं को उठाया जाएगा। केन्द्र सरकार सी.एन.जी. के मसले पर दिल्ली सरकार के पक्ष को अपना समर्थन देगी।
दिल्ली की मुख्यमन्त्री शीला दीक्षित और केन्द्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मन्त्री श्री राम नाईक के बीच हुई बैठक में ये फैसले लिए गए। श्रीमती शीला दीक्षित ने कहा कि केन्द्र सरकार अदालत से विनती करेगी कि डॉ. आर. ए. मशेलकर की अगुआई में गठित उच्चस्तरीय समिति को ध्यान में रखते हुए अदालत बसों को सी.एन.जी. में बदलने की आखिरी तारीख आगे बढ़ा दे क्योंकि 10,000 बसों को निर्धारित समय में सी. एन. जी. में बदल पाना असम्भव है। हाँ मशेलकर की अध्यक्षता में गठित समिति पूरे देश के ऑटो ईंधन नीति का सुझाव देगी।
उम्मीद है कि यह समिति छ: माह में अपनी रिपोर्ट पेश करेगी। मुख्यमन्त्री ने कहा कि अदालत के निर्देशों पर अमल करने के लिए समय की जरूरत है। इस मसले पर समग्र दृष्टि अपनाने की बात करते हुए श्रीमती दीक्षित ने बताया-"सी. एन. जी. से चलने वाले वाहनों की संख्या, सी.एन.जी. की आपूर्ति करने वाले स्टेशनों पर लगी लम्बी कतार की समाप्ति, दिल्ली के लिए पर्याप्त मात्रा में सी.एन.जी. ईंधन जुटाने तथा अदालत के निर्देशों को अमल में लाने के तरीके और साधनों पर एक साथ ध्यान दिया जाएगा।" सर्वोच्च न्यायालय ने सी.एन.जी. के अतिरिक्त किसी अन्य ईंधन से महानगर में बसों को चलाने की अपनी मनाही में छूट देने से इन्कार कर दिया था, लेकिन अदालत का कहना था कि टैक्सी और ऑटो रिक्शा के लिए भी सिर्फ सी.एन.जी. इस्तेमाल किया जाए, इस बात पर उसने कभी जोर नहीं डाला।
श्री राम नाईक का कहना था कि केन्द्र सरकार सल्फर की कम मात्रा वाले डीजल से बसों को चलाने की अनुमति देने के बारे में अदालत से कहेगी, क्योंकि पूरी यातायात व्यवस्था को सी.एन.जी. पर निर्भर करना खतरनाक हो सकता है। राजधानी में सी.एन.जी. की आपूर्ति पाइपलाइन के जरिए होती है। इसमें किसी किस्म की बाधा आने पर पूरी सार्वजनिक यातायात प्रणाली अस्त-व्यस्त हो जाएगी।
उत्तर:
23 सितम्बर, 2001 के 'द हिन्दू' समाचार पत्र में दी गई रिपोर्ट में दो स्तर की सरकारें यथा केन्द्र सरकार एवं दिल्ली सरकार संयुक्त रूप से एक समस्या को सुलझाने के लिए सक्रिय दिखाई देती हैं।
(क) दिल्ली जैसे बड़े शहर में बढ़ते प्रदूषण से बचाव हेतु सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि राजधानी में संचालित होने वाली राजकीय एवं निजी बसों में सी. एन. जी. का प्रयोग एक निश्चित तिथि तक होने लगे।
(ख) इस रिपोर्ट में कार्यपालिका एवं न्यायपालिका दोनों ही दिल्ली शहर में बढ़ते हुए प्रदूषण को रोकने में प्रयासरत हैं। कार्यपालिका ने इस सन्दर्भ में दिल्ली में सम्पूर्ण परिवहन व्यवस्था को एकल ईंधन प्रणाली से चलाने की अपेक्षा दोहरे ईंधन प्रणाली से चलाने के बारे में नीति बनाने का फैसला किया है क्योंकि एकल ईंधन प्रणाली खतरों से भरपूर होने के कारण विनाश कर सकती है
न्यायपालिका ने इस सम्बन्ध में निर्णय दिया है कि सी. एन. जी. के अतिरिक्त किसी अन्य ईंधन से दिल्ली में बसों को संचालित नहीं किया जाएगा लेकिन टैक्सी व ऑटो रिक्शा के लिए सी. एन. जी. या डीजल किसी का भी उपयोग किया जा सकता है।
(ग) इस प्रकरण में नीतिगत मुद्दा दिल्ली में प्रदूषण को रोकना है। केन्द्र व दिल्ली सरकार चाहती है कि समस्त व्यावसायिक वाहन जो यूरो-दो मानक को पूरा करते हैं उन्हें शहर में चलाने की अनुमति दी जाये। इसके अतिरिक्त सरकार यह भी चाहती है कि अदालत बसों को सी. एन. जी. में बदलने की अंतिम तिथि को आगे बढ़ा दे क्योंकि 10,000 बसों को निर्धारित समय सीमा में सी. एन. जी. में परिवर्तित करना सम्भव नहीं है। यह कानून बनाने एवं उसमें क्रियान्वयन से जुड़ा प्रश्न है। न्यायालय का यह कहना है कि टैक्सी और ऑटो रिक्शा के लिए केवल सी. एन. जी. का प्रयोग किया जाये। इस बात पर उसने कभी जोर नहीं डाला, यह कथन कानून की व्याख्या से सम्बन्धित है।
प्रश्न 6.
निम्नलिखित कथन इक्वाडोर के बारे में है। इस उदाहरण और भारत की न्यायपालिका के बीच आप क्या समानता अथवा असमानता पाते हैं ?
सामान्य कानूनों की कोई संहिता अथवा पहले सुनाया गया कोई न्यायिक फैसला मौजूद होता तो पत्रकार के अधिकारों को स्पष्ट करने में मदद मिलती। दुर्भाग्य से इक्वाडोर की अदालत इस रीति से काम नहीं करती। पिछले मामलों में उच्चतर अदालत के न्यायाधीशों ने जो फैसले दिए हैं उन्हें कोई न्यायाधीश उदाहरण के रूप में मानने के लिए बाध्य नहीं है। संयुक्त राज्य अमेरिका के विपरीत इक्वाडोर (अथवा दक्षिण अमेरिका में किसी और देश) में जिस न्यायाधीश के सामने अपील की गई है उसे अपना फैसला और उसका कानूनी आधार लिखित रूप में नहीं देना होता। कोई न्यायाधीश आज एक मामले में कोई फैसला सुनाकर कल उसी मामले में दूसरा फैसला दे सकता है और इसमें उसे यह बताने की जरूरत नहीं है कि वह ऐसा क्यों कर रहा है।
उत्तर:
उपरोक्त उदाहरण में भारत एवं इक्वाडोर की न्याय प्रणाली में निम्नलिखित असमानताएँ हैं
प्रश्न 7.
निम्नलिखित कथनों को पढ़िए और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अमल में लाए जाने वाले विभिन्न क्षेत्राधिकार मसलन, मूल, अपीली और परामर्शकारी से इनका मिलान कीजिए।
(क) सरकार जानना चाहती थी कि क्या वह पाकिस्तान अधिग्रहीत जम्मू-कश्मीर के निवासियों की नागरिकता के सम्बन्ध में कानून पारित कर सकती है।
(ख) कावेरी नदी के जल विवाद के समाधान के लिए तमिलनाडु सरकार अदालत की शरण लेना चाहती है।
(ग) बाँध स्थल से हटाए जाने के विरुद्ध लोगों द्वारा की गई अपील को अदालत ने ठुकरा दिया।
उत्तर:
(क) परामर्शकारी क्षेत्राधिकार
(ख) मौलिक (मूल) क्षेत्राधिकार
(ग) अपीलीय क्षेत्राधिकार।
प्रश्न 8.
जनहित याचिका किस तरह गरीबों की मदद कर सकती है ?
उत्तर:
भारतीय संविधान देश के नागरिकों को यह अधिकार प्रदत्त करता है कि यदि उन्हें राज्य के कानूनों द्वारा कोई क्षति (हानि) पहुँचती है तो वे सर्वोच्च न्यायालय अथवा राज्यों के उच्च न्यायालयों में विभिन्न प्रकार की याचिकाएं दायर कर सकते हैं। गरीब, अपंग अथवा सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के मामले में जनसाधारण में से कोई भी व्यक्ति न्यायालय के समक्ष वाद दायर कर सकता है। इस तरह की जनहित याचिका में न्यायपालिका अपने समस्त तकनीकी तथा कार्यवाही सम्बन्धी नियमों की अनदेखी करते हुए एक सामान्य पत्र के आधार पर भी कार्यवाही कर सकता है। जनहित याचिकाओं पर तुरंत कार्यवाही की वजह से बहुत जल्दी फैसला लिया जाता है, जिससे पीड़ित पक्ष को शीघ्र राहत मिलती है। चूँकि जनहित याचिकाओं में याचिका प्रस्तुत करने वाले का खर्चा काफी कम होता है। अतः यह गरीबों की मददगार सिद्ध होती है।
प्रश्न 9.
क्या आप मानते हैं कि न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है? क्यों ?
उत्तर:
हाँ, मैं यह मानता हूँ कि न्यायिक सक्रियता से न्यायपालिका और कार्यपालिका में विरोध पनप सकता है। न्यायिक सक्रियता का हमारी राजनीतिक व्यवस्था पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा। इसमें न केवल व्यक्तियों बल्कि विभिन्न समूहों को भी अदालत में जाने का अवसर मिला है। इसने न्यायपालिका को लोकतांत्रिक बनाया और कार्यपालिका उत्तरदायी बनने को बाध्य हुई। चुनाव प्रणाली को भी इसने ज्यादा मुक्त और निष्पक्ष बनाने का प्रयास किया। न्यायालय ने चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशियों को अपनी सम्पत्ति, आय और शैक्षणिक योग्यताओं के सम्बन्ध में शपथ-पत्र लेने का निर्देश दिया जिससे लोग सही जानकारी के आधार पर अपने प्रतिनिधियों का चुनाव कर सकें।
न्यायिक सक्रियता से विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका के कार्यों के बीच अन्तर धुंधला हो गया है। न्यायालय उन समस्याओं में उलझ गया है जिसे कार्यपालिका को हल करने चाहिए। उदाहरण के लिए वायु और ध्वनि प्रदूषण दूर करना, भ्रष्टाचार के मामलों की जाँच करना तथा चुनाव सुधार करना, वास्तव में ये न्यायपालिका के काम नहीं हैं। ये सभी कार्य विधायिका की देख-रेख में प्रशासन को करने चाहिए। इसलिए कुछ लोगों का मानना है कि न्यायिक सक्रियता से सरकार के तीनों अंगों के बीच पारस्परिक संतुलन रखना बड़ा मुश्किल हो गया है। अत: न्यायपालिका अपने मुख्य कार्य न्याय व्यवस्था तक ही सीमित रहे। कार्यपालिका को अपने अधीन कर उन पर निर्णय देना न्यायपालिका की सीमा से बाहर होने चाहिए अन्यथा कार्यपालिका और न्यायपालिका में विरोध पनपना स्वाभाविक है।
प्रश्न 10.
न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा से किस रूप में जुड़ी है ? क्या इससे मौलिक अधिकारों के विषय-क्षेत्र को बढ़ाने में मदद मिली है ?
उत्तर:
न्यायिक सक्रियता मौलिक अधिकारों की सुरक्षा से पूर्ण रूप से सम्बद्ध है। इसने मौलिक अधिकारों के विषय-क्षेत्र को भी अत्यधिक विस्तृत कर दिया है। न्यायपालिका ने जीने के अधिकार का अर्थ सम्मानपूर्ण जीवन, शुद्ध वायु, शुद्ध पानी तथा शुद्ध वातावरण में जीने का अधिकार है। इसलिए न्यायपालिका में पर्यावरण को साफ-सुथरा रखने, प्रदूषण को रोकने, नदियों को साफ-सुथरा रखे जाने, उद्योगों का आवासीय क्षेत्र से बाहर निकाले जाने, आवासीय क्षेत्रों से दुकानों को हटाए जाने इत्यादि के कितने ही आदेश दिए हैं। इस प्रकार न्यायपालिका ने न्यायिक सक्रियता द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों के क्षेत्र को अत्यधिक व्यापक बनाया है।