Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 5 अधिकार Textbook Exercise Questions and Answers.
प्रश्न 1.
चिन्तन-मंथनसमूह या समुदाय विशेष को दिए गए निम्न अधिकारों में से कौन से न्यायोचित हैं ? चर्चा कीजिए
उत्तर:
समूह या समुदाय विशेष को दिए गए उपर्युक्त अधिकारों में से न्यायोचित है।
प्रश्न 1.
अधिकार क्या हैं और वे महत्वपूर्ण क्यों हैं ? अधिकारों का दावा करने के लिए उपयुक्त आधार क्या हो सकते हैं ?
उत्तर:
अधिकार-अधिकार से आशय उन सुविधाओं और अवसरों से है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं और उन्हें समाज के द्वारा मान्यता प्राप्त है। वे अधिकार इसलिए महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में सहायक हैं। अधिकार सुदृढ़ और कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक होते हैं। अधिकारों का दावा करने के उपयुक्त आधार-अधिकारों का दावा करने के उपयुक्त आधार निम्नलिखित हैं
प्रश्न 2.
किन आधारों पर यह अधिकार अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाते हैं ?
उत्तर:
अधिकारों को अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाने के आधार-अधिकार को अपनी प्रकृति में सार्वभौमिक माने जाने के निम्नलिखित आधार हैं
(i) अधिकार सभी लोगों की अनिवार्य आवश्यकता हैं अधिकारों को सार्वभौमिक माने जाने का पहला एवं प्रमुख आधार यह है कि समाज में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के लिए अधिकार आवश्यक होते हैं। अधिकारों के अभाव में कोई भी व्यक्ति भली प्रकार से जीवनयापन नहीं कर सकता।
(ii) अधिकारों की माँग प्रत्येक व्यवस्था में है-अधिकारों के सार्वभौमिक होने का दूसरा आधार यह है कि दुनिया में प्रत्येक स्थान पर प्रत्येक व्यवस्था में जहाँ भी मानव है वहाँ अधिकारों की माँग अनिवार्य रूप से होती रहती है। प्रत्येक व्यवस्था में अधिकार अनिवार्य रूप से उपस्थित होते हैं। इनकी मात्रा कम-ज्यादा हो सकती है परन्तु ऐसी कोई व्यवस्था टिक नहीं सकती जिसमें लोगों के अधिकारों का पूरी तरह अभाव हो।
(iii) राज्य व सरकारों के होने का औचित्य अधिकारों की रक्षा ही है-यह भी अधिकारों की सार्वभौमिकता का प्रबल आधार है कि राज्य व सरकारों का विकास अधिकारों की रक्षा के लिए ही हुआ है। राज्य व सरकार तभी तक बने रह सकते हैं जब तक वे सही ढंग से अधिकारों का वितरण करें और इनकी रक्षा करें। उदाहरण के लिए-यदि कोई भी व्यक्ति जब चाहे किसी भी व्यक्ति का जीवन समाप्त कर दे, सम्पत्ति छीन ले और व्यक्ति के इस व्यवहार पर कोई नियन्त्रण ही न हो तो राज्य व सरकार का औचित्य ही समाप्त हो जाएगा।
(iv) अधिकार ही व्यक्ति को जिम्मेदार बनाते हैं अधिकारों की प्रकृति के सार्वभौमिक होने का एक आधार यह भी है कि ये व्यक्तियों को जिम्मेदार बनाते हैं। जब व्यक्ति को कुछ करने का अधिकार होता है तभी उसे उस कार्य के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। यदि व्यक्तियों के अधिकार ही न हों तो उनकी जिम्मेदारी का भी औचित्य समाप्त हो जाता है।
प्रश्न 3.
संक्षेप में उन नए अधिकारों की चर्चा कीजिए, जो हमारे देश में सामने रखे जा रहे हैं। उदाहरण के लिए आदिवासियों के अपने रहवास और जीने के तरीके को संरक्षित रखने तथा बच्चों के बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार जैसे नए अधिकारों को लिया जा सकता है।
उत्तर:
हमारे देश में सामने रखे जा रहे नए अधिकार हमारे देश में निरन्तर नए-नए अधिकार सामने आते जा रहे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख अधिकार निम्नलिखित हैं.
(i) आदिवासियों के अपने रहवास और जीने के तरीके को संरक्षित रखने का अधिकार—भारत में आदिवासियों को वन क्षेत्रों में रहकर और उन्हें अपने ढंग से जीने के तरीकों को संरक्षित रखने के लिए अनेक राजनीतिक दलों, गैर सरकारी संगठनों एवं अनेक आदिवासी नेताओं के द्वारा आवाज उठायी जा रही है।
(ii) बच्चों में बंधुआ मजदूरी के खिलाफ अधिकार-शोषण के विरूद्ध अधिकार के अन्तर्गत बंधुआ मजदूरी का निषेध किया गया है। भारत में बाल मजदूरों को बाल शोषण एवं बालश्रम से छुड़ाया जा रहा है। बच्चों को काम में लगाने के लिए अभिभावकों को भी जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
(iii) अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का अधिकार-भारत में हाल के वर्षों में 14 वर्ष से कम आयु के सभी बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा के अधिकार का प्रावधान किया गया है। अब भारत में प्रत्येक 14 वर्ष से कम आयु का बच्चा प्राथमिक शिक्षा की प्राप्ति के लिए अपना दावा कानूनी तौर पर भी पेश कर सकता है।
(iv) लड़कियों को पिता की सम्पत्ति में अधिकार-भारत में महिला अधिकारों के अन्तर्गत लम्बे समय से लड़कियों को भी लड़कों के समान पिता की सम्पत्ति में बराबर हिस्सा दिए जाने की माँग की जा रही थी। हाल ही में सरकार ने इस अधिकार को कानूनी स्वीकृति प्रदान की है। अब भारत में लड़कियों को भी लड़कों के समान पिता की सम्पत्ति में समान अधिकार प्राप्त है।
(v) जमीन के उचित मुआवजे का अधिकार-भारत में वर्तमान में जमीन के उचित मुआवजे की माँग भी जोर पकड़े हुए है। किसानों की ओर से लगातार यह माँग उठाई जा रही है कि विभिन्न विकास कार्यों और योजनाओं के तहत ली जाने वाली उनकी जमीनों के बदले उचित मुआवजा प्राप्त करने का उन्हें पूरा अधिकार है। किसानों द्वारा इस अधिकार की माँग एक व्यापक आन्दोलन का रूप धारण कर चुकी है। न्यायालय ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया है।
(vi) महिलाओं की सुरक्षा सम्बन्धी अधिकार-भारत में वर्तमान में महिलाओं को घरेलू मारपीट और बाहरी छेड़खानी, अपहरण इत्यादि से सुरक्षा दिये जाने की भी माँग जोरों पर है। सरकार ने भी इस ओर ध्यान दिया है। फलस्वरूप घरेलू हिंसा के खिलाफ कानून बनाकर महिलाओं को यह अधिकार दिया गया है कि वे अपने साथ होने वाले गलत शारीरिक-मानसिक बरताव के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज करा सकती हैं।
प्रश्न 4.
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अन्तर बताइए। हर प्रकार के अधिकार के उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक अधिकारों में अन्तर तथा उनके उदाहरण-राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तीनों ही अधिकार व्यक्ति के जीवन के अनिवार्य अंग हैं। इनमें निम्नलिखित अन्तरों का उल्लेख किया जा सकता है
राजनीतिक अधिकार |
आर्थिक अधिकार |
सांस्कृतिक अधिकार |
1. राजनीतिक अधिकार लोगों के राजनीतिक व्यवस्था में सहभागिता से सम्बन्धित हैं। |
आर्थिक अधिकार लोगों के आर्थिक जीवन से सम्बन्धित होते हैं। |
सांस्कृतिक अधिकार लोगों को अपनी भाषा, धर्म आदि के प्रचार से सम्बन्धित हैं। |
2. राजनीतिक अधिकार के द्वारा लोगों को देश की राजनीतिक व्यवस्था में सबभागिता के समान अवसर दिए जाते है। |
आर्थिक अधिकार लोगों को देश की अर्थव्यवस्था में भागीदार बनाते हैं। |
सांस्कृतिक अधिकार लोगों को देश की प्राचीन सभ्यता व संस्कृति की भिन्नता का हिस्सा बनाए रखते है। |
3. राजनीतिक अधिकार वे दावे होते हैं जिनके आधार पर व्यक्ति अपनी सरकार का चयन करते हैं तथा खुद भी उसमें सहभागी बन सकते हैं। |
आर्थिक अधिकार ऐसे दावे होते हैं जो व्यक्ति को अपनी इच्चानुसार अपनी आजीविका कमाने तथा उचित पारिश्रमिक वसूलने का अवसर प्रदान करते हैं। |
सांस्कृतिक अधिकार व्यक्ति की अपनी धार्मिक मान्यताओं, रीति-रिवाजों, परम्पराओं इल्यादि की रक्षा से सम्बन्धित होते हैं। ये व्यक्ति को अपनी संस्कृति के प्रचार-प्रसार का अवसर प्रदान करते हैं। |
उदाहरण- वोट देने का अधिकार, राजनीतिक दल बनाने का अधिकार इत्यादि। |
न्यूनतम मजदूरी, समान कार्य एवं समान वेतन इत्यादि। |
शिक्षण संस्थाएँ खोलने का अधिकार, अपनी इच्छानुसार धर्म का पालन इत्यादि। |
प्रश्न 5.
अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ लगाते हैं। उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अधिकारों द्वारा राज्य की सत्ता पर लगाई जाने वाली सीमाएँ-राज्य अधिकारों को मान्यता प्रदान करता है। राज्य की सत्ता सबसे ऊँची होती है। परन्तु फिर भी राज्य की सत्ता पर अधिकारों द्वारा कुछ सीमाएँ भी लगाई जाती हैं। अधिकार राज्य को कुछ खास तरीकों से कार्य करने के लिए वैधानिक जिम्मेदारी सौंपते हैं। उदाहरण के लिए यदि राज्य को किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करना है तो उसके पर्याप्त कारण सिद्ध करने पड़ेंगे और कानूनों के अनुसार ही काम करना पड़ेगा। राज्य जब चाहे जिसे चाहे बिना कानूनी कारण प्रमाणित किए गिरफ्तार नहीं कर सकता। इसी प्रकार अधिकार राज्य को यह भी निर्देश देते हैं कि उसे क्या करना चाहिए और क्या नहीं । उदाहरण के लिए व्यक्ति का जीवन जीने का अधिकार राज्य को ऐसे कानून बनाने के लिए बाध्य करता है, जिससे वह व्यक्ति को दूसरों के द्वारा नुकसान पहुँचाने से बचा सके।
यह अधिकार राज्य से माँग करता है कि वह किसी व्यक्ति को चोट या नुकसान पहुंचाने वालों को दंडित करे। अधिकार यह भी सुनिश्चित करते हैं कि राज्य की सत्ता हमारे व्यक्तिगत जीवन और स्वतंत्रता की मर्यादा का उल्लंघन किये बिना कार्य करे। राज्य सर्वोच्च शक्तिशाली और सर्वोच्च सत्ता का स्वामी है परन्तु उसकी इस सत्ता का औचित्य व्यक्ति के हितों की रक्षा के लिए होता है। अत: राज्य व्यक्ति के अधिकारों का सम्मान करने के लिए बाध्य है। व्यक्तियों के अधिकार राज्य की सत्ता पर उपर्युक्त सन्दर्भो में कई सीमाएँ लगाते हैं। अधिकार राज्य को स्वेच्छाचारी होने से रोकते हैं। अधिकार राज्य को अपनी सत्ता के सही तरीके से प्रयोग को भी अनिवार्य बनाते हैं। यदि राज्य अधिकारों की अनदेखी करता है तो जनता में बगावत की भावनाएँ पैदा हो सकती हैं और राज्य का विघटन हो सकता है। अतः निश्चित रूप से अधिकार राज्य की सत्ता पर कुछ सीमाएँ लगाते हैं।