Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Political Science Chapter 2 स्वतंत्रता Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
क्या केवल महान स्त्रियाँ और पुरुष ही स्वतन्त्रता जैसे ऊँचे आदर्शों के लिए लड़ते हैं ? इस सिद्धान्त का मेरे लिए क्या मतलब है ?
उत्तर:
नहीं, यह कथन पूर्णतया गलत है कि केवल महान स्त्रियाँ और पुरुष ही स्वतन्त्रता जैसे ऊँचे आदर्शों के लिए लड़ते इस सिद्धान्त का हमारे लिए भी उतना ही महत्व है, जितना उनके लिए होता है। 'स्वतन्त्रता' हमारे व्यक्तित्व के सर्वांगीण विकास एवं सुखी जीवन-यापन की एक अनिवार्य शर्त है। अतः 'स्वतन्त्रता' के लिए संघर्ष करना प्रत्येक व्यक्ति के लिए उतना ही अत्यधिक महत्वपूर्ण है जितना महान लोगों के लिए। यह प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व बनता है कि वह स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष करे।
प्रश्न 2.
क्या आप अपने गाँव, शहर या जनपद में ऐसे किसी व्यक्ति के बारे में याद कर सकते हैं, जिसने अपनी या औरों की स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष किया हो ? उस व्यक्ति के बारे में एक छोटा-सा लेख लिखिए। इस लेख में यह भी लिखिए कि उस व्यक्ति ने स्वतन्त्रता के किस खास पहलू की रक्षा के लिए संघर्ष किया ?
उत्तर:
विद्यार्थी निम्नलिखित उदाहरण के आधार पर स्वयं अपने क्षेत्र के स्वतन्त्रता हेतु संघर्ष करने वाले व्यक्ति पर लेख लिखें उदाहरण-अर्जुन लाल सेठी-सन् 1880 को जयपुर में जौहरीलाल सेठी के घर जन्मे श्री अर्जुन लाल सेठी राजस्थान के प्रथम क्रान्तिकारी थे। इन्होंने क्रांति व आजादी का पाठ पढ़ाने के लिए सन् 1907 में जयपुर में भारत की प्रथम राष्ट्रीय विद्यापीठ जैन वर्धमान विद्यालय की स्थापना की। इस संस्था के छात्रों में देशभक्ति एवं बलिदान की भावना जागृत की जाती थी। इनके प्रयासों से राजस्थान में क्रांतिकारियों का एक संगठित दल स्थापित हुआ।
क्रांतिकारी रासबिहारी बोस ने राजस्थान में सशस्त्र क्रांति का भार सेठी जी पर डाला था। इन्होंने अंग्रेजों द्वारा दिया गया जिलाधीश का पद भी अस्वीकार कर दिया। 23 दिसम्बर 1912 को दिल्ली में लार्ड हार्डिंग पर बम फेंकने की घटना में सेठी जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। इन्होंने सदैव स्वतंत्रता की प्राप्ति हेतु क्रांति का मार्ग अपनाया और नवयुवकों में क्रांति का संचार किया। ये राष्ट्रवादी नेता होने के साथ-साथ साहित्यकार भी थे। 'पार्श्वयज्ञ', 'मदन पराजय', 'महेन्द्रकुमार' आदि इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं। इन्होंने अंग्रेजों के हिन्दू व मुस्लिम समुदाय के लोगों को आपस में लड़ाने के प्रयासों को विफल कर हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए खूब प्रयास किए। इनका अंतिम समय एक मस्जिद में गुजरा। मृत्यु से पूर्व इन्होंने अपने को जलाने के स्थान पर कब्र में दफनाने की इच्छा व्यक्त की थी। इन्होंने मुख्य रूप से स्वतंत्रता के सर्वमान्य राजनीतिक एवं सामाजिक पहलू हेतु आजीवन संघर्ष किया।
प्रश्न 3.
लड़के-लड़कियों को यह तय करने की आजादी होनी चाहिए कि वे किससे शादी करें। इस मामले में अभिभावकों को कुछ नहीं कहना चाहिए।
उत्तर;
पक्ष में तर्क (वाद)
(i) लड़के-लड़कियों को अपनी जिन्दगी के फैसले करने का एक मानव होने के नाते पूरा हक है। अतः लड़के-लड़कियों को अपने जीवनसाथी को चुनने की आजादी होनी चाहिए।
(ii) एक-दूसरे के साथ पूरा जीवन लड़के-लड़कियों को ही काटना होता है। अतः शादी किससे करनी है यह तय करना उनका हक बनता है। अतः अभिभावकों को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
(iii) बच्चों के समय की सोच अभिभावकों के समय की सोच से अलग होती है। अतः अभिभावकों को अपनी पुरानी सोच उन पर थोपना बच्चों की सम्पूर्ण जिन्दगी के लिए कष्टकारी हो सकता है।
विपक्ष में तर्क (विवाद)
(i) लड़के-लड़कियाँ युवा जोश में जीवन की वास्तविक सच्चाइयों को ढंग से नहीं समझ पाते। अतः शादी में अभिभावकों का हस्तक्षेप और भूमिका अति आवश्यक है।
(ii) माता-पिता के पास समाज व जीवन का अनुभव बच्चों से अधिक होता है। अतः वे बच्चों की शादी का फैसला ज्यादा अच्छे ढंग से कर सकते हैं।
(iii) कोई भी अभिभावक अपने बच्चों का बुरा नहीं चाहते। अत: लड़के लड़कियों की शादी का फैसला उनकी सहमति से होता है तो इसमें बच्चों की आजादी का कोई हनन नहीं है। निष्कर्ष-दोनों पक्षों को जानने के बाद हम यह कह सकते हैं कि शादी जैसे महत्वपूर्ण फैसले में अभिभावकों का मार्गदर्शन व सहयोग आवश्यक है। इसके साथ-साथ अभिभावकों को रूढ़िवादिता व पूर्वाग्रहों से परे रहते हुए बच्चों की भावनाओं को भी पूरा सम्मान देना चाहिए। ऐसी स्थिति में बच्चों की स्वतन्त्रता भी बनी रहेगी और अभिभावकों का मार्गदर्शन भी उन्हें प्राप्त हो जाएगा।
प्रश्न 4.
सभ्य समाज से उनका क्या मतलब है ? जिस समाज में कानून का राज नहीं होता वहाँ स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप किस प्रकार होता है ?
उत्तर:
सभ्य समाज से मतलब उस समाज से होता है जिसका गठन व संरचना लोकतांत्रिक ढंग से हुई हो। ऐसे समाज में प्रत्येक व्यक्ति की गरिमा व विचारों का सम्मान किया जाता है। जिस समाज में कानून का राज नहीं होता वहाँ प्रत्येक स्तर पर अनेक रूपों से स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप होता है। 'सरकार' स्वेच्छाचारी हो जाती है। शासक जनता के हितों व अधिकारों का अतिक्रमण कर लेते हैं। समाज के सम्पन्न व शक्तिशाली वर्गों एवं व्यक्तियों द्वारा कमजोर वर्ग के लोगों का शोषण किया जाने लगता है। 'कानून व व्यवस्था' की स्थिति दयनीय हो जाती है।
प्रश्न 5.
परिधानों पर प्रतिबंध का मुद्दा–यदि अपने परिधान का चयन अपनी स्वतन्त्रता की अभिव्यक्ति है तो नीचे दी गई उन स्थितियों को किस तरह देखेंगे जिनमें खास तरह के परिधान पर प्रतिबन्ध लगाया गया है ?
उत्तर:
1. यह स्थिति परिधानों के चयन की नागरिकों की स्वतन्त्रता को छीनने वाली है। देश में सभी नागरिकों को एक ही प्रकार के वस्त्र पहनने को विवश करना अनुचित प्रतीत होता है। इसके लिए 'समानता की अभिव्यक्ति' का तर्क देना भी हास्यास्पद है। केवल एक जैसे कपड़े पहन लेने से समानता नहीं आ जाती। इसके लिए नागरिकों का जीवन स्तर, आय, सामाजिक प्रतिष्ठा इत्यादि का भी समान होना जरूरी है।
2. यह स्थिति सरासर अनुचित और अन्यायपूर्ण है। धार्मिक संस्थाओं को व्यक्ति के निजी मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। 'सानिया मिर्जा' क्या पहनें या न पहनें यह उनकी
स्वतन्त्रता है। इसमें धर्म-गुरुओं को चिन्तित नहीं होना चाहिए। उनकी पहली चिन्ता अपने धर्म में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए होनी चाहिए।
3. टेस्ट क्रिकेट में सभी खिलाड़ी सफेद कपड़े पहनें, यह एक परम्परा है जो शुरुआत से चली आ रही है। चूँकि सभी खिलाड़ी इसे स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं तो यह स्वतन्त्रता का हनन नहीं माना जा सकता है।
4. विद्यालय में सभी छात्र-छात्राओं का एक निर्धारित वेशभूषा में रहना भी स्वतन्त्रता का हनन नहीं है। यह विद्यार्थियों में समानता व अनुशासन की भावना पैदा करने के लिए स्वतन्त्रता पर एक सकारात्मक प्रतिबन्ध है। :
प्रश्न 6.
वाद-विवाद
उत्तर:
1. मनचाहे परिधानों पर प्रतिबंध सभी मामलों में न्यायोचित नहीं है क्योंकि इससे लोगों की स्वतन्त्रता का हनन होगा। जब व्यक्ति की निजी जिन्दगी में परिधानों पर प्रतिबन्ध लगाया जाता है तो यह सम्बन्धित व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्ध का मामला बन जाता है। परिधानों पर प्रतिबन्ध केवल उस स्थिति में ही लगाये जाने चाहिए जबकि मामला समानता, अनुशासन या विशिष्ट पहचान से जुड़ा हो, जैसे सेना, पुलिस इत्यादि के जवान परिधानों की स्वतन्त्रता का दावा नहीं कर सकते।
2. पहनावे पर प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार सार्वजनिक क्षेत्रों में कुछ सीमा तक राज्य को है। कई बार समाज भी आपसी सहमति से परिधानों पर कुछ प्रतिबन्ध लगाता है। धार्मिक नेताओं को परिधानों के मामले में निर्णय देने का अधिकार नहीं होना चाहिए क्योंकि यह व्यक्ति की व्यक्तिगत जिन्दगी का एक सामाजिक विषय है। इसका 'धर्म' से कोई लेना-देना नहीं है। हाँ, क्रिकेट खिलाड़ियों के क्रिकेट खेलते समय के परिधानों के नियम तय करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (ICC) उपयुक्त संस्था है क्योंकि इसमें खिलाड़ियों का पक्ष रखने के लिए उनके कुछ प्रतिनिधि भी होते हैं।
3. नहीं, प्रत्येक स्थिति में प्रतिबंध आरोपित करना अन्यायपूर्ण नहीं कहा जा सकता। स्वतन्त्रता की उपयोगिता बनाए रखने के लिए इस पर सामाजिक हित में प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं। लेकिन प्रतिबन्धों को अधिक रूप से और अनुचित तरीके से लगाया जाने लगे तो ये निःसन्देह अन्यायपूर्ण हैं। हाँ प्रतिबन्ध कई तरीकों से व्यक्तियों की अभिव्यक्ति को कम करते हैं। उदाहरण के लिये आप पैन्ट-शर्ट में अधिक सहज महसूस करते हैं। आपको धोती-कुर्ता पहनने के लिए बाध्य किया जाए तो आप असहज महसूस करेंगे और स्वयं को अच्छी तरह अभिव्यक्त नहीं कर पाएँगे।
4. नहीं, एक जैसे कपड़े पहनने से गरीबी का कम हो जाना असम्भव है। माओकालीन चीन में भी एक जैसे कपड़ों के नियम से गरीबी कम होने का प्रश्न ही नहीं उठता।
5. हाँ, अगर महिलाओं को खेल के अनुकूल कपड़े पहनने से रोका जाता है तो यह उनकी खेलों में सहभागिता को रोकने का ही कदम माना जाएगा। महिलाओं को भी पुरुषों के समान खेलों में सहभागिता दिखाने की पूरी स्वतन्त्रता है तो ऐसे में उन्हें भी सहज व खेल में अच्छा प्रदर्शन व संघर्ष करने योग्य कपड़े पहनने की आजादी होनी चाहिए। अगर सभी क्रिकेट खिलाड़ी एक जैसे रंगीन कपड़े पहनें तो खेल पर कोई दुष्प्रभाव नहीं पड़ेगा, परन्तु यदि एक ही टीम के खिलाड़ी रंग-बिरंगे अलग-अलग कपड़े पहनकर खेलेंगे तो उनमें टीम भावना, त्याग व निष्ठा की कमी पैदा हो सकती है जोकि खेल को प्रभावित भी करेगी।
प्रश्न 7.
क्या हमें अपने पर्यावरण को नष्ट करने की आजादी है ?
उत्तर:
नहीं, हमें अपने पर्यावरण को नष्ट करने की बिल्कुल आजादी नहीं है क्योंकि पर्यावरण हमारी अमूल्य धरोहर है। यह केवल हमारे लिए ही नहीं अपितु सम्पूर्ण समाज व समस्त नागरिकों हेतु समान रूप से उपयोगी है। अत: यदि हम पर्यावरण को नष्ट करते हैं तो यह अन्य नागरिकों के अधिकारों का हनन है और साथ ही साथ स्वतन्त्रता का भी दुरुपयोग है।
प्रश्न 1.
स्वतन्त्रता से क्या आशय है ? क्या व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता और राष्ट्र के लिए स्वतन्त्रता में कोई सम्बन्ध
उत्तर:
स्वतन्त्रता-स्वतन्त्रता का सीधा और सरल अर्थ यह है कि व्यक्ति पर बाहरी प्रतिबन्धों का अभाव। परन्तु स्वतन्त्रता का केवल इतना ही आशय नहीं होता। यह स्वतंत्रता का केवल एक पक्ष है। स्वतन्त्रता का अर्थ व्यक्ति की स्वयं को व्यक्त करने की योग्यता का विस्तार करना और उसके अन्दर की क्षमताओं को विकसित करना भी है। इस अर्थ में स्वतन्त्रता वह स्थिति है, जिसमें लोग अपनी रचनात्मकता और क्षमताओं का विकास कर सकें। इस प्रकार स्वतन्त्रता का आशय बताते हुए हम कह सकते हैं कि स्वतन्त्रता वह स्थिति है जिसमें अनावश्यक बाहरी प्रतिबन्ध न हों और व्यक्ति को अपने अन्दर की क्षमताओं का विस्तार करने का पूरा मौका प्राप्त हो। व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता और राष्ट्र के लिए स्वतन्त्रता में सम्बन्ध–व्यक्ति के लिए स्वतन्त्रता और राष्ट्र के लिए स्वतन्त्रता में गहरा सम्बन्ध है। दोनों परस्पर पूरक हैं। राष्ट्र की स्वतंत्रता में ही व्यक्ति की स्वतंत्रता संभव है।
प्रश्न 2.
स्वतन्त्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में क्या अन्तर है ?
उत्तर:
स्वतन्त्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणा में अन्तर–स्वतन्त्रता की नकारात्मक और सकारात्मक अवधारणाओं में कई महत्वपूर्ण अन्तर हैं, इनमें से कुछ प्रमुख अन्तर निम्नलिखित हैं
प्रश्न 3.
सामाजिक प्रतिबन्धों से क्या आशय है ? क्या किसी भी प्रकार के प्रतिबन्ध स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक
उत्तर:
सामाजिक प्रतिबन्ध से आशय-सामाजिक प्रतिबन्धों से आशय सामाजिक बंधन और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर सकारात्मक नियंत्रण से है। ये नियंत्रण कानून, रीति रिवाज, धर्म और न्यायिक निर्णयों के आधार पर लागू किए जाते हैं ताकि समाज में शांति एवं सौहार्द बना रह सके। स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों की आवश्यकता-जहाँ तक स्वतन्त्रता पर किसी भी प्रकार के प्रतिबन्धों की आवश्यकता की बात है तो हम कह सकते हैं कि हाँ कुछ स्थितियों में न्यायपूर्ण व उचित प्रतिबन्ध स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक हैं। इन प्रतिबन्धों के अभाव में स्वतन्त्रता राष्ट्र व समाज के लिए खतरा बन जाएगी। उदाहरणस्वरूप सैन्य क्षेत्रों में आम नागरिकों का जाना प्रतिबन्धित होता है।
ऐसे में यदि आम नागरिक स्वतन्त्रता की दुहाई दें और इन पर से यह प्रतिबन्ध हटा लिया जाए तो सेना की गोपनीयता के लिए खतरा पैदा हो जाएगा। दुश्मन देश हमारे ऊपर हमला भी कर सकता है। अतः राष्ट्र और समाज के हित में यह प्रतिबन्ध आवश्यक प्रतीत होता है। इसी प्रकार सार्वजनिक स्थानों पर बीड़ी, सिगरेट इत्यादि पीने की स्वतन्त्रता पर भी प्रतिबन्ध समाजहित में लगाया गया आवश्यक प्रतिबन्ध ही है। अतः हम कह सकते हैं कि वे प्रतिबन्ध जो राष्ट्र और समाज के हित में हों तथा जिनसे व्यक्ति को कोई हानि न हो, स्वतन्त्रता के लिए आवश्यक हैं।
प्रश्न 4.
नागरिकों की स्वतन्त्रता को बनाए रखने में राज्य की क्या भूमिका है ?
उत्तर:
नागरिकों की स्वतंत्रता बनाए रखने में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। राज्य प्रजातंत्र की स्थापना करके, मौलिक अधिकारों की घोषणा करके, शक्तियों का पृथक्करण करके, स्वतंत्र न्यायपालिका की स्थापना करके, कानून और व्यवस्था की स्थापना करके, नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करके और लोक कल्याणकारी कार्यों द्वारा नागरिकों की स्वतंत्रता को बनाए रख सकता है।
प्रश्न 5.
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है ? आपकी राय में इस स्वतन्त्रता पर समुचित प्रतिबन्ध क्या होंगे ? उदाहरण सहित बताइए।
उत्तर:
अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अर्थ है-प्रत्येक व्यक्ति को समाज में अपने विचार, भावनाएँ एवं चिन्तन को प्रकट करने, प्रसारित करने एवं प्रदर्शित करने की स्वतन्त्रता प्रदान करने वाली स्थिति।
हमारी राय में इस स्वतन्त्रता पर समुचित प्रतिबन्ध निम्नलिखित होंगे
उदाहरण-अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर प्रतिबन्धों के सन्दर्भ में भारत में 'दीपा मेहता' द्वारा बनाई जाने वाली फिल्म का उदाहरण दिया जा सकता है। यह फिल्म काशी में विधवाओं की व्यथा को उजागर करना चाहती थी। इसे विभिन्न राजनेताओं, धर्माधिकारियों, रूढ़िवादी लोगों के दबाव में आकर सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दिया गया।
इसी प्रकार ओब्रे मेनन की 'रामायण रिटोल्ड' सलमान रुश्दी की 'द सेटेनिक वर्सेस' पुस्तक भी समाज के कुछ वर्गों के विरोध के कारण सरकार द्वारा प्रतिबन्धित कर दी गई।