RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 5 कपड़े - हमारे आस-पास

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Home Science Chapter 5 कपड़े - हमारे आस-पास Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 Home Science Solutions Chapter 5 कपड़े - हमारे आस-पास

RBSE Class 11 Home Science कपड़े - हमारे आस-पास Textbook Questions and Answers

समीक्षात्मक प्रश्न

Class 11 Home Science Chapter 5 Question Answer In Hindi प्रश्न 1. 
विभिन्न प्रकार के कपड़ों से बनी दैनिक उपयोग की पाँच वस्तुओं के नाम बताएँ। 
उत्तर:
विभिन्न प्रकार के कपड़ों से बनी दैनिक उपयोग की पाँच वस्तुओं के नाम निम्न हैं

  1. कपास-सर्जिकल कॉटन व तकियों एवं रजाइयों की भरावन। 
  2. लिनेन-परदे, तकियों के कवर व चादरें।
  3. ऊन-स्वेटर, कार्डिगन व शॉल। 
  4. रेशम-दुपट्टा, रूमाल व साड़ी। 
  5. नायलॉन-जुराब, तैराकी सूट व दस्ताने। 

Class 11 Home Science Chapter 5 Question Answer प्रश्न 2. 
वस्त्र रेशों को कैसे वर्गीकृत किया जाता है? संक्षेप में उनकी विशेषताएँ बताएँ।
उत्तर:
वस्व रेशों का वर्गीकरण: वस्व रेशों का वर्गीकरण उनके उद्भव के आधार पर (जैसे-प्राकृतिक अथवा मानव निर्मित एवं विनिर्मित), सामान्य रसायन प्रकार के आधार पर (जैसे-सेलुलोसिक, प्रोटीन अथवा सिंथेटिक), जातिगत प्रकार के आधार पर (जैसे-जंतु के रोम अथवा जंतु स्राव) और सामान्य ट्रेड नाम के आधार पर (जैसेपोलीएस्टर, टेरीन या डेकरान) किया जा सकता है। इसके साथ ही वस्व रेशों को कम लंबाई वाला (जैसे-कपास या तंतु), अधिक लंबाई वाला (जैसे-रेशम, पोलीएस्टर आदि) की कोटि में बाँटा जा सकता है।

रेशों के उद्भव के आधार पर रेशों के वर्गीकरण को निम्न प्रकार स्पष्ट किया गया है

उद्भव के आधार पर रेशों को दो प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है-(1) प्राकृतिक रेशे और (ब) विनिर्मित रेशे। यथा

(अ) प्राकृतिक रेशे: प्राकृतिक रेशे वे होते हैं जो रेशों के रूप में प्रकृति में पाए जाते हैं। 

प्राकृतिक रेशे चार प्रकार के होते हैं

(क) सेलुलोसिक रेशे

  1. सीड हेयर्स-कॉटन, कापोक 
  2. बास्ट रेशा–लिनेन, हेम्प, जूट 
  3. लीफ रेशा-अनानास, सीसल 
  4. नट हस्क रेशा-नारियल 

(ख) प्रोटीन रेशे

  1. जंतु रोम-ऊन, विशिष्ट बाल (बकरी, ऊँट), फर रेशा 
  2. जंतु स्राव रेशम 

(ग) खनिज रेशे-एस्बेस्टस 
(घ) प्राकृतिक रबड़

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(ब) विनिर्मित रेशे:
इन्हें मानव निर्मित रेशा भी कहा जाता है। सबसे पहला विनिर्मित रेशा-रेयान, वाणिज्यिक रूप से सन् 1895 में निर्मित किया गया जबकि अन्य अधिकांश रेशे 20वीं सदी के उत्पाद हैं।

गैर-तंतुमय सामग्री को तंतुमय प्रकार में बदलकर सबसे पहले विनिर्मित होने वाले रेशों को बनाया गया। ये मुख्यतः सेलुलोसिक पदार्थ, जैसे-कपास अपशिष्ट अथवा लकड़ी की लुग्दी से बनाए गए। दूसरी प्रकार का रेशा पूरी तरह रसायनों के उपयोग से संश्लेषित किया गया था।

विनिर्मित रेशों के प्रकार 

(क) पुनयोजित सेलुलोसिक रेशा-रेयान, विस्कोस, अति-आई-माड्ल्यूल्स 
(ख) आशोधित सेलुलोसिक एसीटेट-सेकेंडरी एसीटेट, ट्राईएसीटेट 
(ग) प्रोटीन रेशे-अजलॉन।
(घ) गैर-सेलुलोसिक रेशे-

  1. नायलॉन, 
  2. पोलीएस्टर-टेरीलीन, टेरीन 
  3. एक्रीलिक-ऑर्लान, कैशमीलॉन 
  4. मोडेक्रीलिक 
  5. स्पैंडेक्स 
  6. रबड़।

(ङ) खनिज रेशे

  1. ग्लास-फाइबर ग्लास 
  2. मैटेलिक ल्यूरेक्स रेशों की विशेषताएँ-विभिन्न वस्त्र रेशों की विशेषताएँ अनलिखित हैं

कपास: कपास में नमी सोखने की क्षमता अधिक होती है और यह सरलता से सूख भी जाता है, इसलिए गर्मियों में इसका उपयोग आरामदायक होता है।

लिनेन: इससे बना सूत मजबूत और चमकीला होता है। यह कपास की तरह नमी को तत्काल सोख लेता है, इसलिए आरामदायक होता है। ऊन-इसमें लचीलापन और सुनम्यता होती है। ऊन में सतही-शल्क होते हैं, जो जल विकर्षक होते हैं। इसलिए यह आई और ठंडे पर्यावरण में आरामदायक होती है।

रेशम: रेशम के तंतु बहुत सूक्ष्म, लंबे, और चिकने होते हैं। इसमें मजबूती, सुनम्यता अच्छी और सामान्य दीर्घता होती है।

रेयान: यह एक विनिर्मित रेशा है, इसलिए इसके आकार एवं आकृति को नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही इसकी अपशिष्ट सामग्री को पुनः संसाधित किया जा सकता है। 

नायलॉन: नायलॉन काफी मजबूत और अपघर्षण रोधी होता है। इसलिए इसका उपयोग ब्रश व स्टाकिंग्स निर्माण में किया जाता है।

पोलीएस्टर: इसमें सलवटें नहीं पड़ती हैं, यह पारदर्शी एवं चमकीला होता है। 

एनीलिक: इसके रेशों में उच्च दीर्घरूपता और बेहतर सुनम्यता होती है। 

इलैस्टोमरी: रेशे ये मुख्यतः कम सुनम्यता वाले किसी भी रेशे के साथ मिक्स किए जा सकते हैं। 

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प्रश्न 3. 
सूत क्या होता है? सूत को संसाधित करने की विभिन्न विधियाँ बताएँ।
उत्तर:
सूत: सूत को वस्त्र रेशे फिलामेंट अथवा ऐसी सामग्री की लंबी-लंबी बटों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कपड़ा तैयार करने के लिए हर प्रकार के धागों की बुनाई के लिए उपयुक्त है।
सूत संसाधित करने की विधियाँ: सूत संसाधित करने अर्थात् रेशे को सूत में परिवर्तित करने के कई चरण हैं, जो कि निम्नलिखित हैं

1. सफाई:
प्राकृतिक रेशों में सामान्यतया उनके स्रोत के आधार पर, कपास में बीज अथवा पत्तियाँ, ऊन में टहनियाँ और कर्णस्वेद जैसी बाह्य अशुद्धियाँ होती हैं। इन्हें हटाया जाता है, रेशों को अलग किया जाता है और लैप्स (ढीले रेशों की वेल्लित शीट) में परिवर्तित किया जाता है।

2. पूनी बनाना:
लैप्स को खोला जाता है और उन्हें सीधा किया जाता है, इस प्रक्रिया को कार्डिंग (धुनना) और कॉम्बिंग (झाड़न) कहा जाता है। कार्डिंग में रेशों को अलग-अलग किया जाता है और उन्हें सीधा एक-दूसरे के समानांतर रखा जाता है। तत्पश्चात् इसकी कॉम्बिंग की जाती है। इसके बाद लैप को कीप के आकार के यंत्र से निकाला जाता है जिससे इसकी पूनी बनाने में सहायता मिलती है। पूनी खुले रेशों की रस्सी जैसा ढेर होता है जिसका व्यास 24 सेंटीमीटर होता है।

3. तनुकरण, तानना और बटना:
रेशों को लंबे तंतुओं में परिवर्तित कर देने के पश्चात् इन्हें अपेक्षित आकार में बदलने की आवश्यकता होती है। इसे तनुकरण कहा जाता है। समरूपता हेतु कई पूनियों को जोड़ा जाता है और फिर उन्हें धीरे-धीरे ताना जाता है ताकि वे लंबी और बेहतर हो जाएँ। तानने के पश्चात् पूनी को रोविंग मशीन (पूनी बनाने की मशीन) में डाला जाता है, जहाँ इसे तब तक तनु किया जाता है, जब तक कि यह अपने मूल व्यास :- के माप की नहीं हो जाती। अब इसे बटा जाता है ताकि इसके रेशे जुड़े रहें।

4. कताई:
कताई सूत संसाधित करने की अंतिम विधि है। प्राकृतिक स्टेपल रेशे से सूत को संसाधित करने को कताई कहते हैं। इस चरण में तंतु को सूत के रूप में अंतिम आकार दिया जाता है। इसे अपेक्षित शुद्धता के लिए और फैलाया जाता है और वांछित मात्रा में गूंथा जाता है तथा शंक (कोन) पर लपेट दिया जाता है।

Home Science Class 11 Chapter 5 Notes In Hindi प्रश्न 4. 
कपड़ा उत्पादन की प्रक्रिया बताएँ।
उत्तर:
अधिकांश कपड़े जो आप देखते हैं, सूत से बने होते हैं। फिर भी कुछ कपड़े सीधे रेशों से ही बनाए जा सकते हैं। कपड़ा बनाने की मुख्य विधियाँ बुनाई तथा कुछ हद तक गुँथाई (बेडिंग) और गाँठ लगाना (नॉटिंग)

कपड़ा उत्पादन की प्रक्रिया का विवरण निम्न प्रकार से है

1. बुनाई:
यह वस्त्र कला का सबसे पुराना रूप है। बुनाई हेतु सूत के दो सेटों का उपयोग किया जाता है जिन्हें समकोण पर परस्पर अन्तर्ग्रथित किया जाता है। बुनाई हेतु सूत के एक सेट को करघे पर लगाया जाता है जो बुने जाने वाले कपड़े की लंबाई और चौड़ाई निर्धारित करता है। इन्हें ताना सूत कहा जाता है। करघे की सहायता से इन सूतों को एक निर्धारित प्रतिबल और समान दूरी पर रखा जाता है। तत्पश्चात् दूसरे सूत को जो पूरक (फिलिंग) सूत है, कपड़ा बनाने के लिए अंतर्ग्रथित किया जाता है। सबसे साधारण अंतर्ग्रथन वह है जब पूरक सूत एकांतर रूप में एक पंक्ति में ताना सूत के ऊपर और नीचे से निकाला जाता है और दूसरी पंक्ति में यह प्रक्रिया उलट हो जाती है। पूरक सूत को ताना सूत की भिन्न संख्या के ऊपर और नीचे एक विनिर्दिष्ट क्रम में निकालकर विभिन्न डिजाइन बनाए जा सकते हैं। करघे से जुड़े डोबी और जैक्वार्ड जैसे अटेचमेंट्स से प्रतीकात्मक डिजाइन बनाने में भी सहायता मिल सकती है।

ताना और पूरक सूत के लिए अलग-अलग रंगों के सूत का उपयोग करने से ये डिजाइन और स्पष्ट हो जाते हैं। बुने हुए कपड़े में सूत की दिशा को ग्रेन कहा जाता है। ताना सूत लंबाई के ग्रेन की ओर अथवा किनारे की ओर जाता है। पूरक सूत चौड़ाई के ग्रेन अथवा वेट (बाना) की ओर जाता है। अतः बुने हुए कपड़े में लंबाई और चौड़ाई को किनारा (सेलवेज) और बाना (वेट) कहा जाता है

2. ऊन की बुनाई (निटिंग):
सूत के कम-से-कम एक सेट की इंटरलपिंग को निटिंग (ऊन की बनाई) कहते हैं। यह सपाट कपड़े के लिए दो सलाइयों और गोलाकार कपड़े के लिए चार सलाइयों के उपयोग से हाथ द्वारा की जा सकती है। मशीन पर भी निटिंग की जा सकती है। इस प्रक्रिया में निटिंग वाली सलाई अथवा मशीन बेड के साथ-साथ फंदे डाले जाते हैं। प्रत्येक अगली पंक्ति पिछली पंक्ति के फंदों के साथ इंटरलूपिंग से बनाई जाती है। सामग्री की चौड़ाई के साथ-साथ सूत आगे बढ़ता है, इसलिए इसे पूरक अथवा वेष्ट निटिंग कहा जाता है। निटिंग की इस विधि का प्रयोग उन वस्तुओं को बनाने के लिए किया जाता है जिन्हें बनाते हुए आकार दिया जा सकता है। 

औद्योगिक स्तर पर प्रयुक्त होने वाली निटिंग मशीनें बुनाई वाले करघा मशीनों की तरह होती हैं। उनमें सूत का सेट मशीन पर फिट किया जाता है (तान सूत की तरह)। संगत सूत के साथ इंटरलूपिंग की जाती है। इसे ताना निटिंग कहा जाता है। इससे सतत् लंबाई वाली सामग्री बनाई जा सकती है, जिसे काट कर सिला जा सकता

3. ब्रेडिंग (गूंथना):
गूंथे गए कपड़ों की सतह विकर्ण रूप में होती है। उन्हें तीन या अधिक सूत को गूंथकर बनाया जाता है, जो एक स्थान से आरंभ होती है और अंतर्ग्रथित होने से पूर्व समांतर होती है। जूतों के फीतों, रस्सियों और झालर जैसी वस्तुओं में ब्रेडिंग दिखाई देती है।

4. नेट्स (जाल):
ये खुले जालीदार कपड़े होते हैं, जिनमें सूतों के बीच में बड़े ज्यामितीय अंतराल होते हैं। इन्हें हाथ अथवा मशीन से सूत में आपस में गाँठ बाँधकर (इंटरनॉटिंग) करके बनाया जाता है।

5. लेसें:
यह विवृत कार्य वाला कपड़ा है जिसमें सूत के जाल से बनाए गए सूक्ष्म डिजाइन होते हैं। यह सूत बटने, अंतरवयन (आर-पार बुनाई) और गाँठ बाँधने (नॉटिंग) की प्रक्रियाओं के सम्मिश्रण का उत्पाद है।

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Chapter 5 Home Science Class 11 In Hindi प्रश्न 5. 
निम्नलिखित रेशों में से प्रत्येक के कोई तीन गुण धर्म बताएँ

  • कपास
  • लिनेन 
  • ऊन
  • रेयान
  • रेशम
  • नायलॉन 
  • एक्रिलिक।

उत्तर:
विभिन्न रेशों के गुणधर्म निम्नलिखित हैं- 

कपास के गुणधर्म

  1. कपास एक प्राकृतिक सेलुलोसिक स्टेपल रेशा है। यह सबसे छोटा रेशा है इसलिए सूत अथवा बनाया हुआ कपड़ा देखने में चमकहीन होता है और छूने में थोड़ा खुरदरा। यह अन्य रेशों की तुलना में भारी भी होता है।
  2. कपास में नमी सोखने की अच्छी क्षमता होती है और यह सरलता से सूख भी जाता है। इसलिए गर्मियों में इसका उपयोग आरामदायक होता है।
  3. भिन्न-भिन्न भार, सूक्ष्मता, बनावट तथा परिष्करण वाले सभी वस्त्र कपास के सूत से बनते हैं। जैसे—मसलिन, कैम्बिक, पॉपलीन, लट्ठा, डेनिम आदि।

लिनेन के गुणधर्म

  1. यह भी एक सेलुलोसिक रेशा है, इसलिए इसके कई गुणधर्म कपास जैसे होते हैं।
  2. इसका रेशा कपास से लंबा और सूक्ष्म होता है, इसलिए इससे बना सूत मजबूत और अधिक चमकीला होता है।
  3. यह भी कपास की तरह नमी को तत्काल सोख लेता है, इसलिए आरामदायक होता है। 

ऊन के गुणधर्म

  1.  ऊन एक प्राकृतिक प्रोटीन रेशा है और वह भेड़ की प्रजाति एवं पशु के शरीर के अंग के अनुसार खुरदरा या नरम होता है। इसमें प्राकृतिक सिकुड़न होती है जिसके कारण इसमें लोच और लंबाई जैसे गुणधर्म होते हैं।
  2. अन्य रेशों की तुलना में ऊन में कम मजबूती होती है, लेकिन इसमें लचीलापन और सुनम्यता होती है।
  3. कन में सतही-शल्क होते हैं जो जल विकर्षक होते हैं। इस क्षमता के कारण यह आई और ठंडे पर्यावरण में आरामदायक होती है। 

रेशम के गुणधर्म

  1. रेशम भी एक प्राकृतिक प्रोटीन रेशा है। इसका स्वाभाविक रंग श्वेताभ से लेकर क्रीम तक होता है। जबकि जंगली रेशम भूरे रंग का होता है।
  2. रेशम के तंतु बहुत लंबे, सूक्ष्म और चिकने होते हैं। इनकी घुति अथवा चमक अपेक्षाकृत अधिक होती
  3. रेशम में प्राकृतिक गोंद होता है, जो कि इसे विशद बनावट प्रदान करता है। 

रेयान के गुणधर्म

  1. चूँकि रेयान एक विनिर्मित रेशा है, इसलिए इसके आकार एवं आकृति को नियंत्रित किया जा सकता है। 
  2. रेयान रेशे का व्यास समान होता है और यह स्वच्छ तथा चमकीला होता है।
  3. सेलुलोसिक रेशा होने के कारण इसके अधिकांश गुणधर्म कपास जैसे होते हैं। लेकिन यह कम मजबूत और कम टिकाऊ होता है।

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नायलॉन के गुणधर्म

  1. नायलॉन तंतु सामान्यतः नरम, चमकीले और समान व्यास के होते हैं।
  2. नायलॉन काफी मजबूत और अपघर्षण रोधी होता है। अपर्धषण रोधी होने के कारण इसका उपयोग ब्रश, कार्पेट इत्यादि में उपयुक्त रहता है।
  3. नायलॉन अधिक लचीला रेशा है। स्टाकिंग्स जैसे 'एक आकार' के वस्त्र हेतु बहुत महीन और पारदर्शी रेशों का उपयोग किया जाता है।

एक्रीलिक के गुणधर्म

  1. अन्य विनिर्मित रेशों की तरह इस रेशे की लंबाई, व्यास और महीनता निर्माता द्वारा नियंत्रित की जाती है।
  2. एक्रीलिक का रेशा अलग-अलग प्रकार से लहरदार और चमकीला बनाया जा सकता है। 
  3. एक्रीलिक के रेशों में उच्च दीर्घरूपता और बेहतर सुनम्यता होती है।
Raju
Last Updated on Nov. 6, 2023, 10:13 a.m.
Published Nov. 5, 2023