Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 3 तीन महाद्वीपों में फैला हुआ साम्राज्य Textbook Exercise Questions and Answers.
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प्रश्न 1.
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास में कौन तीन मुख्य 'खिलाड़ी' थे? प्रत्येक के बारे में एक-दो पंक्तियाँ लिखिए। रोमन सम्राट अपने इतने बड़े साम्राज्य पर शासन कैसे कर लेता था? इसके लिए किसका सहयोग महत्वपूर्ण था?
उत्तर:
रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास में तीन मुख्य खिलाड़ी-रोमन साम्राज्य के राजनीतिक इतिहास में निम्नलिखित तीन मुख्य खिलाड़ी थे
(i) सम्राट:
रोमन साम्राज्य में सम्राट शासन का वास्तविक स्रोत था। वह एक प्रमुख नागरिक कहलाता था। वह निरंकुश शासक नहीं था।
(ii) अभिजात वर्ग:
रोम के धनी परिवारों को अभिजात वर्ग या कुलीन वर्ग कहा जाता था। ये धनी परिवारों के लोग रोमन शासन सत्ता की प्रमुख इकाई 'सैनेट' के सदस्य होते थे। सैनेट वह निकाय था जिसमें उन दिनों जब रोम एक गणतन्त्र था, सत्ता पर अपना नियंत्रण बना रखा था। रोम में सैनेट की सदस्यता जीवनपर्यन्त चलती थी और उसके लिए जन्म की अपेक्षा धन और पद-प्रतिष्ठा को अधिक महत्व दिया जाता था। रोम में सैनेट नामक संस्था का अस्तित्व कई शताब्दियों तक रहा। बाद में इतालवी मूल के जमींदारों को भी इसमें सम्मिलित कर लिया गया।
(iii) सेना:
सम्राट और सैनेट के बाद साम्राज्यिक शासन की एक अन्य प्रमुख संस्था सेना भी थी। रोम की सेना एक व्यावसायिक संस्था थी जिसमें प्रत्येक सैनिक को वेतन प्रदान किया जाता था। सेना में न्यूनतम 25 वर्ष तक सेवा करनी पड़ती थी। प्रत्येक सम्राट की सफलता सेना पर निर्भर करती थी। रोमन सम्राट का अपने साम्राज्य पर नियन्त्रण-रोमन सम्राट को अपने विशाल साम्राज्य पर कुशलतापूर्वक शासन करने के लिए उसे कई संस्थाओं का सहयोग प्राप्त होता था। सम्पूर्ण रोमन साम्राज्य में अनेक नगर स्थापित किये गये। इन शहरों के माध्यम से ही सम्पूर्ण रोमन साम्राज्य पर नियन्त्रण रखा जाता था। भूमध्य सागर के तटों पर स्थापित बड़े शहरी केन्द्र साम्राज्यिक प्रणाली के मूल आधार थे। इन्हीं शहरों के माध्यम से 'सरकार' प्रांतीय ग्रामीण क्षेत्रों पर 'कर' लगाने में सफल हो पाती थी। अर्थात् स्थानीय उच्च वर्ग रोमन साम्राज्य को कर वसली और अपने क्षेत्रों के प्रशासन के कार्य में सक्रिय सहायता देते थे। रोमन सम्राट को उसके शासन कार्यों में सहयोग सेना, जनता और अभिजात वर्ग आदि से मिलता था।
प्रश्न 2.
रोमन साम्राज्य में स्त्रियाँ कहाँ तक आत्मनिर्भर थीं? रोमन-परिवार की स्थिति की तुलना आज के भारतीय-परिवार की स्थिति से करो।
उत्तर:
रोमन साम्राज्य में स्त्रियाँ काफी हद तक आत्मनिर्भर थीं। पत्नी अपने पति को अपनी सम्पत्ति हस्तान्तरित नहीं करती थीं। वह अपने पैतृक परिवार में अपना पूर्ण अधिकार बनाए रखती थीं। महिला को मिलने वाला दहेज वैवाहिक अवधि के दौरान उसके पति के पास चला जाता था। महिला अपने पिता की मुख्य उत्तराधिकारी बनी रहती थी तथा अपने पिता की मृत्यु के उपरांत उसकी संपत्ति की स्वतंत्र स्वामी बन जाती थी। इस प्रकार रोम की स्त्रियों को संपत्ति के स्वामित्व व संचालन में व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त थे। रोमन-परिवार की स्थिति एवं आज के भारतीय-परिवार की स्थिति का तुलनात्मक अध्ययन-रोमन समाज में एकल परिवार का व्यापक रूप से चलन था। परिवारों में स्त्रियों की स्थिति लगभग सन्तोषजनक थी। स्त्री को विधिक स्वतन्त्रता प्राप्त थी। स्त्री अपने पिता की मुख्य उत्तराधिकारी थी। जहाँ तक तलाक का प्रश्न है, इसकी प्रक्रिया सरल थी।
पुरुष 28 से 32 व लड़कियाँ 16 से 23 वर्ष तक की आयु में विवाह करते थे। लेकिन महिलाओं पर पुरुषों का नियंत्रण स्थापित रहता था। यदि हम रोमन परिवारों की स्थिति के सन्दर्भ में भारतीय परिवारों की स्थिति का अध्ययन करें तो हम ये पाते हैं कि भारत में भी एकल परिवार तीव्र गति से बढ़ रहे हैं। परिवार में स्त्रियों की स्थिति में शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी परिवर्तन आ रहा है। उनकी स्थिति में सुधार आ रहा है। लेकिन अभी भी स्त्रियों को पुरुषों के नियन्त्रण में रहना पड़ता है। तलाक का विकल्प भी भारतीय परिवारों में उपलब्ध है। विवाह की आयु पुरुषों के लिए 21 वर्ष एवं लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित है। स्त्री को अपने पिता की सम्पत्ति में से हिस्सेदारी का कानूनी अधिकार प्राप्त है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रोमन परिवारों एवं भारतीय परिवारों में कई समानताएँ एवं असमानताएँ देखने को मिलती हैं।
प्रश्न 3.
मिट्टी के बर्तनों के अवशेषों पर काम करने वाले पुरातत्वविद बहुत-कुछ जासूसों की तरह होते हैं क्यों? स्पष्ट करो। एम्फोरा हमें रोम काल के भूमध्यसागरीय क्षेत्र के आर्थिक जनजीवन के बारे में क्या बताते हैं।
उत्तर:
मिट्टी के बर्तनों के अवशेषों पर काम करने वाले पुरातत्वविद जासूसों की तरह होते हैं। इसको निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है रोमन साम्राज्य में शराब, जैतून के तेल एवं अन्य तरल पदार्थों का आयात-निर्यात एक प्रकार के मटकों या कंटेनरों में होता था जिन्हें 'एम्फोरा' कहते थे। इन मटकों के टूटे हुए टुकड़े बहुत बड़ी संख्या में प्राप्त हुए हैं। ‘मोंटी टेस्टैकियो' स्थल पर इस प्रकार के 5 करोड़ से भी अधिक मटकों के अवशेष पाये गये हैं। पुरातत्वविदों ने इन टुकड़ों को ठीक से जोड़कर इन कंटेनरों को फिर से सही रूप दिया तथा यह पता लगाने में सफल हुए कि उनमें क्या-क्या ले जाया जाता था। जिस तरह एक जासूस छोटे-छोटे साक्ष्यों को इकट्ठा करके एक निष्कर्ष पर पहुँचता है तथा रहस्य से पर्दा उठाता है, उसी तरह पुरातत्वविदों ने भी इन टुकड़ों के तथा मिट्टी के बर्तनों की प्राचीन बातों से पर्दा उठाया है।
इसके अतिरिक्त पुरातत्वविदों ने मिट्टी के बर्तनों से प्राप्त मिट्टी का भूमध्यसागरीय क्षेत्रों में उपलब्ध चिकनी मिट्टी के नमूनों के साथ मेल करके उनके निर्माण स्थल के बारे में हमें जानकारी प्रदान की है। इसके आधार पर अब हम विश्वास के साथ कह सकते हैं कि स्पेन में जैतून का तेल निकालने का उद्यम 140-160 ई. में अपने चरमोत्कर्ष पर था। अतः यह स्पष्ट होता है कि किसी कहानी या षड्यंत्र का पता लगाने का कार्य जब एक जासूस शुरू करता है तो निष्कर्ष निकाल ही लेता है, इसी तरह पुरातत्वविद भी प्राचीन घटनाओं, मिट्टी के बर्तनों तथा भवनों के अवशेषों के आधार पर निष्कर्ष निकाल ही लेते हैं। एम्फोरा हमें रोम काल के भूमध्य सागरीय क्षेत्र के आर्थिक जनजीवन के बारे में पर्याप्त जानकारी देते हैं। ये एम्फोरा हमें बताते हैं कि स्पेन के जैतून के तेल उत्पादक अपने इतालवी प्रतिद्वन्द्वियों से तेल का बाजार छीनने में सफल रहे थे।
प्रश्न 4.
इस अध्याय में तीन ऐसे लेखकों का उल्लेख किया गया है जिनकी रचनाओं का प्रयोग यह बताने के लिए किया गया है कि रोम के लोग अपने कामगारों के साथ कैसा बर्ताव करते थे। क्या आप उनके नाम बता सकते हैं? उस अनुभाग को स्वयं फिर से पढ़िए और उन दो तरीकों का वर्णन कीजिए जिनकी सहायता से रोम के लोग अपने श्रमिकों पर नियंत्रण रखते थे।
उत्तर:
इस अध्याय में अपनी रचनाओं में रोम के लोगों द्वारा अपने कामगारों के साथ किये जाने वाले व्यवहार की चर्चा करने वाले तीन लेखक हैं
इन लेखकों की रचनाओं के अध्ययन से ज्ञात होता है कि एक ओर उच्च वर्ग के लोग दासों के प्रति प्रायः क्रूरतापूर्वक व्यवहार करते थे जबकि दूसरी ओर साधारण लोग उनके प्रति कहीं अधिक सहानुभूति रखते थे। रोम के लोगों द्वारा अपने कामगारों (श्रमिकों) पर नियन्त्रण करने के तरीके रोम के लोग कई तरीकों से अपने कामगारों (श्रमिकों) पर नियन्त्रण रखते थे। जिनमें से दो प्रमुख निम्नलिखित हैं
(i) निरीक्षण द्वारा:
रोमन मालिकों का मानना था कि निरीक्षण या पर्यवेक्षण के बिना कोई भी कार्य कभी भी उचित ढंग से नहीं कराया जा सकता है। अतः मुक्त श्रमिकों तथा दास श्रमिकों दोनों के लिए निरीक्षण एक प्रमुख कार्य था। निरीक्षण को आसान बनाने के लिए मजदूरों को छोटे-छोटे दलों में बाँट दिया जाता था। कोलूमेल्ला ने दस-दस श्रमिकों के समूह बनाने का सुझाव दिया था। उसने दावा भी किया था कि "इन छोटे समूहों में यह बताना तुलनात्मक रूप से आसान होता है कि उनमें से कौन कार्य कर रहा है और कौन काम नहीं कर रहा है।" वहीं वरिष्ठ प्लिनी नामक लेखक ने इस प्रकार के निरीक्षण की आलोचना की। उन्होंने कहा कि यह उत्पादन प्राप्त करने का सबसे गन्दा तरीका है।
(ii) श्रमिकों को दाग कर:
रोमन साम्राज्य में श्रमिकों को दागने की प्रथा थी। ऐसा इसलिए किया जाता था ताकि कामगारों के काम छोड़कर भाग जाने की स्थिति में उन्हें पहचाना जा सके। इस प्रकार रोमन साम्राज्य में बँधुआ मजदूरी प्रचलित थी जिसकी जानकारी हमें ऑगस्टीन के कुछ पत्रों से प्राप्त होती है। उन्होंने लिखा है कि कभी-कभी माता-पिता अपने बच्चों को 25 वर्ष के लिए बेचकर बंधुआ मजदूर बना देते थे। उनके मालिक इन बच्चों को दाग देते थे ताकि वे बँधुआ मजदूर ही बने रहें।
संक्षेप में उत्तर दीजिए
प्रश्न 1.
यदि आप रोम साम्राज्य में रहे होते तो कहाँ रहना पसन्द करते-नगरों में या ग्रामीण क्षेत्र में ? कारण बताइए।
उत्तर:
यदि हम रोम साम्राज्य में रहे होते तो हम ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा नगरों में रहना अधिक पसन्द करते, इसके निम्नलिखित कारण थे
प्रश्न 2.
इस अध्याय में उल्लिखित कुछ छोटे शहरों, बड़े नगरों, समुद्रों और प्रान्तों की सूची बनाइए और उन्हें नक्शों पर खोजने की कोशिश कीजिए। क्या आप अपने द्वारा बनाई गई सूची में संकलित किन्हीं तीन विषयों के बारे में कुछ कह सकते हैं ?
उत्तर:
यदि सम्राट त्राजान भारत पर विजय प्राप्त करने में वास्तव में सफल रहा होता और रोमवासियों का इस देश पर अनेक सदियों तक कब्जा रहा होता तो भारत वर्तमान समय के देश से कुछ निम्न अर्थों में भिन्न होता
(1) प्रशासन-भारतीय प्रशासन पर रोमन साम्राज्य का प्रभाव पड़ता। भारत में लोकतंत्र के स्थान पर राजतंत्र स्थापित होता। रोमन साम्राज्य की भाँति भारतीय प्रशासन में सम्राट, सैनेट एवं सेना का प्रमुख स्थान होता। अनेक रोमन प्रांतों की भाँति यहाँ भी छोटे-छोटे राज्य स्थापित होते।
(2) शहरों का महत्वपूर्ण स्थान-रोमन साम्राज्य में शहर साम्राज्यिक प्रणाली के मूल आधार थे। इन्हीं शहरों के माध्यम से सरकार प्रांतीय ग्रामीण क्षेत्रों पर कर लगाने में सफल हो पाती थी। रोम के संदर्भ में नगर एक ऐसा शहरी केन्द्र था, जिसके अपने दंडनायक, नगर परिषद् और अपना एक सुनिश्चित राज्य क्षेत्र था जिसमें अनेक ग्राम सम्मिलित थे। इसी प्रकार भारत में शहरों का महत्वपूर्ण स्थान होता। उनके राजनीतिक, आर्थिक एवं सामाजिक महत्व में वृद्धि होती।
(3) परिवार-रोम में एकल परिवार का व्यापक रूप से प्रचलन था। अत: भारत में संयक्त परिवार प्रथा के स्थान
पर एकल परिवार प्रथा का प्रचलन होता। रोम में परिवार में पिता का पत्नी व बच्चों पर अत्यधिक नियंत्रण होता था। भारतीय परिवारों पर भी इसका प्रभाव पड़ता।
(4) महिलाओं की स्थिति व बाल-विवाह का प्रचलन-रोम में महिलाओं को सम्पत्ति के स्वामित्व और संचालन में व्यापक कानूनी अधिकार प्राप्त थे। तलाक लेना अपेक्षाकृत आसान था और इसके लिए पति अथवा पत्नी द्वारा केवल विवाह भंग करने के निश्चय की सूचना देना ही पर्याप्त था। इस प्रकार भारत में तलाक देना और सरल हो जाता। रोम में बाल विवाह का प्रचलन नहीं था। अतः भारत में भी बाल विवाह का प्रचलन नहीं होता।
(5) ईसाई धर्म का प्रचार-रोमन साम्राज्य में ईसाई धर्म को राजधर्म घोषित कर दिया था। इसका भारत पर भी प्रभाव पड़ता और सम्भवतः यहाँ भी ईसाई धर्म को राजधर्म बना दिया जाता।
(6) दास प्रथा-रोमन साम्राज्य में दास-प्रथा का प्रचलन था। दासों के साथ क्रूरतापूर्ण व्यवहार किया जाता था। यही स्थिति भारत में भी होती। यहाँ भी दास-प्रथा का प्रचलन होता।
(7) आर्थिक क्षेत्र में उन्नति-रोमन साम्राज्य आर्थिक दृष्टि से उन्नत था। यहाँ कृषि में उत्पादकता का स्तर काफी उच्च था, वहीं व्यापार भी काफी उन्नत था। वहाँ चाँदी के सिक्कों के स्थान पर सोने के सिक्कों का प्रचलन था। अतः भारत भी आर्थिक क्षेत्र में अत्यन्त समृद्ध होता और यहाँ भी सोने के सिक्कों का प्रचलन होता।
(8) भारतीय संस्कृति पर प्रभाव-जब रोमन व भारतीय संस्कृतियाँ परस्पर मिलती तो उससे एक नवीन मिली-जुली संस्कृति का निर्माण होता। इससे भारत में पश्चिमीकरण की प्रक्रिया बहुत पहले ही प्रारम्भ हो जाती और भारतीय समाज एवं संस्कृति के विचारों, आदर्शों, नैतिक मूल्यों, साहित्य और कला, वास्तुकला एवं संगीत, रहन-सहन एवं वेशभूषा में आमूल-चूल परिवर्तन हो गया होता। सांस्कृतिक क्षेत्र में कला, भवन निर्माण कला, मूर्तिकला व स्थापत्य कला का नमूना रोमन कला के आधार पर होता। देश में नई भाषा और लिपि का भी विकास हो गया होता।
प्रश्न 6.
अध्याय को ध्यानपूर्वक पढ़कर उसमें से रोमन समाज और अर्थव्यवस्था को आपकी दृष्टि में आधुनिक दर्शाने वाले आधारभूत अभिलक्षण चुनिए।
उत्तर:
रोमन समाज को आधुनिक दर्शाने वाले आधारभूत अभिलक्षण-रोमन समाज को आधुनिक दर्शाने वाले आधारभूत अभिलक्षण निम्नलिखित थे
(1) एकल परिवार प्रथा-यह रोमन समाज की महत्वपूर्ण विशेषता थी। यह प्रथा आज आधुनिक समाजों में पाई जाती है। रोम में तत्कालीन समय में एकल परिवार का व्यापक रूप से चलन था। वयस्क पुत्र अपने पिता के परिवार के साथ नहीं रहते थे। इसके अलावा वयस्क भाई भी बहुत कम साझे परिवार में सम्मिलित रहते थे। दूसरी ओर दासों को परिवार में सम्मिलित किया जाता था।
(2) महिलाओं की स्थिति-रोमन समाज में प्रथम शताब्दी ईसा पूर्व तक महिलाओं को सम्पत्ति सम्बन्धी अनेक अधिकार प्राप्त थे। पत्नी अपने पति को अपनी सम्पत्ति हस्तान्तरित नहीं करती थी। लेकिन अपने पैतक परिवार की सम्पत्ति में अपना पूर्ण अधिकार बनाए रखती थी, जबकि महिला का दहेज उसके पति के पास चला जाता था। विवाह के पश्चात् भी महिला अपने पिता की मृत्यु के पश्चात् उसकी सम्पत्ति की स्वतन्त्र स्वामिनी बन जाती थी। रोम में तलाक देना आसान था।
(3) विवाह की आयु-रोमन समाज में विवाह हेतु लड़के व लड़कियों के वयस्क होने का इन्तजार किया जाता था। लड़कों का विवाह 28 से 32 वर्ष की उम्र के मध्य किया जाता था जबकि लड़कियों का विवाह 16-23 वर्ष की आयु के मध्य किया जाता था।
(4) साक्षरता की स्थिति-रोमन समाज में साक्षरता को महत्व प्रदान किया जाता था। लेकिन साम्राज्य के विभिन्न भागों में साक्षरता की दर भिन्न-भिन्न थी।
रोमन अर्थव्यवस्था को आधुनिक दर्शाने वाले आधारभूत अभिलक्षण-रोमन अर्थव्यवस्था को दर्शाने वाले आधुनिक अभिलक्षण निम्नलिखित थे
(1) सुदृढ़ आर्थिक आधारभूत ढाँचा-रोम की अर्थव्यवस्था का आर्थिक आधारभूत ढाँचा बहुत मजबूत था। इस साम्राज्य में बन्दरगाहों, खानों, खदानों, ईंट-भट्टों, जैतून के तेल के कारखानों की संख्या बहुत अधिक थी।
इस साम्राज्य की प्रमुख व्यापारिक वस्तुएँ गेहूँ, शराब व जैतून का तेल आदि थीं।
(2) विभिन्न वस्तुओं का आयात-निर्यात-इस साम्राज्य में विभिन्न वस्तुओं का आयात-निर्यात किया जाता था। शराब, जैतून का तेल तथा अन्य तरल पदार्थ की ढुलाई मटकों या कन्टेनरों द्वारा की जाती थी जिन्हें एम्फोरा कहा जाता था। भिन्न-भिन्न प्रदेशों के जमींदार एवं उत्पादक विभिन्न वस्तुओं के बाजार पर अधिकार करने के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा करते रहते थे। सिसिली व बाइजैकियम रोम को भारी मात्रा में गेहूँ का निर्यात करते थे।
(3) उच्च उत्पादकता स्तर-तत्कालीन रोमन साम्राज्य में उत्पादकता का स्तर बहुत उच्च था। यह उत्पादकता स्तर इतना ऊँचा था कि उन्नीसवी शताब्दी तक अर्थात् लगभग 1700 वर्ष पश्चात् भी ऐसे उत्पादन का स्तर देखने को नहीं मिलता।
(4) सुगठित वाणिज्यिक एवं बैंकिंग व्यवस्था-रोमन साम्राज्य में सुगठित वाणिज्यिक एवं बैंकिंग व्यवस्था का प्रचलन देखने को मिलता है।
(5) धन का व्यापक रूप से प्रयोग-तत्कालीन रोमन साम्राज्य में धन का व्यापक रूप से प्रयोग होता था। परवर्ती काल में रोमन साम्राज्य में सोने के सिक्के प्रचलित थे।
(6) असाधारण उर्वर क्षेत्र-रोमन साम्राज्य के कई क्षेत्र अत्यधिक उपजाऊ थे। इन क्षेत्रों में कैम्पैनिया व सिसिली (इटली), फैय्यूम (मिस्र), गैलिली व बाइजैकियम (ट्यूनीशिया), दक्षिणी गॉल व बेटिका (दक्षिणी स्पेन) आदि प्रमुख थे।
(7) जल शक्ति-भूमध्य सागरीय क्षेत्र में जल शक्ति का अनेक प्रकार से प्रयोग होता था। इस काल में जल शक्ति से कई कल-कारखाने चलाये जाते थे। स्पेन स्थित सोने व चाँदी की खानों में जल शक्ति से खुदाई की जाती थी।