RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 History Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते Textbook Exercise Questions and Answers.

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RBSE Class 11 History Solutions Chapter 11 आधुनिकीकरण के रास्ते

RBSE Class 11 History आधुनिकीकरण के रास्ते InText Questions and Answers

प्रश्न 1. 
जापानियों और एज़टेकों का यूरोपीय लोगों से जो सम्पर्क/टकराव हुआ, उसके अंतरों की पहचान करिए।
उत्तर:
जापानियों का यूरोपीय लोगों से सम्पर्क एवं टकराव-जापानियों का यूरोपीय लोगों से व्यापारिक सम्बन्ध रहा था। 1630 ई. तक जापानियों का डचों के साथ व्यापार होता था। जापान का 1854 ई. में यूरोपीय मूल के अमरीकी लोगों से अमरीका के साथ, राजनयिक व व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित करने का समझौता अमरीकी कॉमोडोर मैथ्यू पेरी के नेतृत्व में हुआ। जापान में मेज़ी पुनर्स्थापना के पश्चात् अनेक जापानी विद्वान व नेता यूरोप के नए विचारों से कुछ सीखना चाहते थे। कुछ अन्य जापानी विद्वान यूरोपीय लोगों के महत्व को नकारते हुए उनसे नयी तकनीकें तो सीखना चाहते थे लेकिन उन्हें अपने से दूर रखना चाहते थे।

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मेज़ी शासनकाल में राजतांत्रिक व्यवस्था का बारीकी से अध्ययन करने के लिए जापान ने अपने कुछ अधिकारियों को यूरोप भेजा। सम्राट को पश्चिमीकरण का नेता बनाकर उसे पश्चिमी ढंग के वस्त्र पहनाए गए। जापान की शुरुआती शिक्षा पश्चिमी पाठ्यक्रमों पर आधारित थी। जापान में श्रमिकों के प्रशिक्षण हेतु यूरोपीय प्रशिक्षकों को बुलाया गया। जापानी विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए यूरोप भेजा गया। जापानियों ने अपनी संसद के नाम के लिए जर्मन शब्द 'डायट' का उपयोग किया। कुछ जापानी विद्वानों ने मत दिया कि जापान को एशिया के लक्षणों को छोड़कर यूरोपीय लक्षणों को अपनाना चाहिए। कई जापानी विद्वान फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित थे, लेकिन जापान ने यूरोप से दूरी भी बनाये रखने की कोशिश की। 

1630 ई. में डचों को छोड़कर शेष यूरोपीय देशों के लिए जापान ने अपने व्यापारिक दरवाजे बंद कर लिए थे। जापान ने 1904-05 ई. में रूस के साथ युद्ध लड़ा। जापान को द्वितीय विश्वयुद्ध में अमरीका सहित कई यूरोपीय देशों की सेनाओं से हारना पड़ा। उसके हिरोशिमा व नागासाकी नगरों पर अणुबम गिराए गए। इस प्रकार प्रारम्भ में जापान के यूरोपीय देशों के साथ मधुर सम्बन्ध रहे लेकिन धीरे-धीरे इन सम्बन्धों में कड़वाहट पैदा हो गई। एज़टेकों का यूरोपीय लोगों से सम्पर्क एवं टकराव-एज़टेक समुदाय मैक्सिको एवं मध्य अमरीका में निवास करता था। उन्होंने अनेक जनजातियों को पराजित कर अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया था। स्पेनवासियों के अमरीका पहुँचने पर उन्होंने ट्लैक्सकलानों पर भी हमला बोल दिया।

एज़टेक लोगों ने इनको भरपूर सम्मान दिया लेकिन इन्होंने एज़टेक शासक मोंटेजुमा को नजरबंद कर स्वयं उसके नाम पर शासन करने लगे। एज़टेकों के मंदिरों में ईसाई मूर्तियाँ रखवा दी गईं। एज़टेकों द्वारा विद्रोह करने पर उनका दमन कर दिया। अनेक एज़टेक लोग यूरोपीय लोगों के साथ आई चेचक नामक महामारी से मर गए। कोर्टेस ने मैक्सिको से एज़टेकों का सफाया कर वहाँ न्यू स्पेन बना दिया और स्वयं उसका कैप्टेन जनरल बन गया। इस प्रकार एज़टेकों को यूरोपीय सम्पर्क का लाभ प्राप्त न होकर हानि उठानी पड़ी तथा उनकी सभ्यता का ही अंत हो गया। अंतर-यूरोपीय लोगों से सम्पर्क एवं टकराव के बावजूद आज जापान एक उन्नत औद्योगिक राष्ट्र बन गया है, जबकि यूरोपीय लोगों से सम्पर्क व टकराव के पश्चात मैक्सिको में एज़टेक लोगों का अन्त हो गया और उनकी सभ्यता भी नष्ट हो गयी। 

प्रश्न 2. 
निशितानी ने 'आधुनिक' को जिस तरह परिभाषित किया, क्या आप उससे सहमत हैं ?
उत्तर:
निशितानी जो जापान के एक प्रमुख दर्शनशास्त्री थे। सत्ता केन्द्रित राष्ट्रवाद के दौर में 1943 ई. में जापान में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया जिसका विषय था-'आधुनिकता पर विजय।' इस संगोष्ठी में जापान के आधुनिक रहते हुए पश्चिम पर विजय प्राप्त करने के लिए तरीकों पर विस्तार से चर्चा की गयी। इस संगोष्ठी में जापान के दर्शनशास्त्री निशितानी केजी ने भी भाग लिया। इसमें उन्होंने आधुनिक को जिस तरह से परिभाषित किया उससे हम पूर्णतः सहमत हैं। उन्होंने आधुनिक को तीन पश्चिमी धाराओं के मिलन और एकमत से परिभाषित किया-

  1. पुनर्जागरण, 
  2. प्रोटेस्टेंट सुधार और 
  3. प्राकृतिक विज्ञानों का विकास।

इस संगोष्ठी में उन्होंने अपना मत प्रकट करते हुए कहा कि जापान की नैतिक ऊर्जा ने उसे एक उपनिवेश बनने से बचा लिया। जापान का यह कर्त्तव्य बनता है कि एक नवीन विश्व पद्धति, एक विशाल पूर्वी एशिया का निर्माण किया जाये। इसके लिए एक नवीन सोच की आवश्यकता है, जो विज्ञान और धर्म को जोड़ सके।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि निशितानी केजी द्वारा दी गई आधुनिक परिभाषा से हम पूर्णतः सहमत हैं। 

प्रश्न 3. 
क्या यह पेंटिंग अफ़ीम युद्ध की अहमियत का स्पष्ट बोध करा पाती है ?
उत्तर:
ब्रिटेन ने अफ़ीम के लाभकारी व्यापार को बढ़ाने के लिए सैन्य बलों का उपयोग किया, जो कालान्तर में प्रथम अफ़ीम युद्ध के रूप में सामने आया। यह 1839 ई. से 1842 तक हुआ। इस अफ़ीम युद्ध ने जापान के सत्ताधारी क्विंग राजवंश को कमजोर किया और सुधार तथा बदलाव की माँग को मजबूती दी। यह पेंटिंग ईस्ट इण्डिया कम्पनी के द्वारा अफ़ीम के बढ़ते हुए व्यापार को दर्शाती है। वास्तव में चीनी उत्पादों जैसे चाय, रेशम और चीनी मिट्टी के बर्तनों की माँग ने व्यापार में असन्तुलन की बहुत अधिक समस्या उत्पन्न कर दी थी। यूरोपीय उत्पादों को चीन में बाजार नहीं मिला जिस कारण उसे भुगतान चाँदी में करना पड़ता था। ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने चीन के साथ अपने व्यापरिक असन्तुलन को समाप्त करने के लिए अफ़ीम का विकल्प ढूँढ़ लिया। ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में अफ़ीम की खेती करवाती थी तथा उसे चीन में बेच देती थी। चीनी सम्राट ने अफ़ीम के व्यापार पर प्रतिबन्ध लगा दिया जो आगे चलकर प्रथम अफ़ीम युद्ध में बदल गया। इस युद्ध में ब्रिटेन जीत गया। उपर्युक्त पेंटिंग उसी अफ़ीम युद्ध के समय के व्यापार को दर्शाती है।

प्रश्न 4. 
भेदभाव का अहसास लोगों को कैसे एकताबद्ध करता है? 
उत्तर:
भेदभाव के अहसास से लोग कैसे एकताबद्ध होते हैं, उसको हम 1935 ई. के शंघाई (चीन) की एक घटना से स्पष्ट रूप से समझ सकते हैं 1935 ई. में शंघाई में एक काला अमरीकन तुरेहीवादक, बक क्लेटन अपने जैज़ और कैस्ट्रा के साथ विशेषाधिकार प्राप्त प्रवासी की जिंदगी जी रहे थे। लेकिन वह काला था और एक बार कुछ गोरे अमरीकनों ने उसे तथा उसके वाद्य मंडली के सदस्यों के साथ मारपीट करके उन्हें उनके गायन-वादन वाले होटल से बाहर निकाल दिया। वह अमरीकी होने के बावजूद स्वयं नस्ली भेदभाव का शिकार होने के कारण चीनियों के दुख-दर्द के साथ उसकी बहुत सहानुभूति थी। चीनी लोगों ने इस अमरीकी व्यक्ति के साथ मित्रतापूर्ण व्यवहार किया था। यद्यपि चीनी लोग स्वयं गरीब थे, उन्हें अपने जीवन-यापन के लिए बहुत अधिक मेहनत करनी पड़ती थी। अमरीकी काले लोग एवं चीनी लोग अपने प्रति गोरे लोगों द्वारा किए जाने वाले भेदभाव के शिकार थे। इसी भावना ने उन्हें आपस में एकताबद्ध कर दिया था। इससे सिद्ध होता है कि भेदभाव का एहसास लोगों को एकताबद्ध करता है।

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RBSE Class 11 History आधुनिकीकरण के रास्ते Textbook Questions and Answers 

संक्षेप में उत्तर दीजिए

प्रश्न 1. 
मेज़ी पुनर्स्थापना से पहले की वे अहम् घटनाएँ क्या थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को संभव किया?
उत्तर:
मेज़ी पुनर्स्थापना से पहले की निम्नलिखित घटनाएँ थीं, जिन्होंने जापान के तीव्र आधुनिकीकरण को सम्भव किया

  1. किसानों से शस्त्र ले लिए गए। अब केवल सामुराई ही तलवार रख सकते थे। इससे शांति और व्यवस्था बनी रही।
  2.  दैम्यो को अपने क्षेत्रों की राजधानियों में रहने के आदेश दिए गए। उन्हें बहुत अधिक स्वायत्तता भी प्रदान की गई।
  3. राजस्व के लिए स्थायी आधार बनाने हेतु भूमि का वर्गीकरण उत्पादकता के आधार पर किया गया। 
  4. मालिकों और करदाताओं का निर्धारण करने के लिए भूमि का सर्वेक्षण किया गया।
  5. दैम्यों की राजधानियों का आकार लगातार बढ़ने लगा। अतः 17वीं शताब्दी के मध्य तक जापान में एदो (आधुनिक तोक्यो) संसार का सबसे अधिक जनसंख्या वाला नगर बन गया। इसके अतिरिक्त ओसाका और क्योतो भी बड़े नगरों के रूप में उभरे। दुर्गों वाले 6 नगरों का विकास हुआ जिनकी जनसंख्या 50 हजार से अधिक थी।
  6. बड़े शहरों के विकास के परिणामस्वरूप जापान में वाणिज्यिक अर्थव्यवस्था का विकास हुआ एवं वित्त व ऋण प्रणालियाँ स्थापित हुईं।
  7. नगरों में जीवंत संस्कृति का प्रसार होने लगा। बढ़ते हुए व्यापारी वर्ग ने नाटकों एवं कलाओं को संरक्षण प्रदान
  8. किया।
  9. व्यक्ति के गुण उसके पद से अधिक मूल्यवान समझे जाने लगे।
  10. मुद्रा के बढ़ते हुए प्रयोग एवं चावल के शेयर बाजार के निर्माण से भी जापानी अर्थतंत्र का विकास नयी दिशाओं में हुआ।
  11. रेशम के आयात पर रोक लगाने के लिए क्योतो के निशिजिन में रेशम उद्योग के विकास के लिए कदम उठाये गये। कुछ ही वर्षों में निशिजिन का रेशम विश्वभर में सबसे अच्छा रेशम माना जाने लगा।
  12. मूल्यवान धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी गई।

प्रश्न 2. 
जापान के विकास के साथ-साथ वहाँ की रोज़मर्रा की जिंदगी में किस तरह बदलाव आए? चर्चा कीजिए।
उत्तर:
जापान के विकास के साथ-साथ जापानियों की रोज़मर्रा की जिंदगी में अनेक परिवर्तन आए। आधुनिकीकरण से पहले जापान में पैतृक परिवार व्यवस्था प्रचलित थी। इसमें कई पीढ़ियाँ परिवार के मुखिया के नियन्त्रण में रहती थीं। परन्तु जैसे-जैसे जापानी लोग धनवान होते गये उनके परिवार के बारे में नए विचार फैलने लगे। जापान में इकाई या एकल परिवार की अवधारणा का विकास हुआ, जिसमें पति-पत्नी और बच्चे होते थे। जहाँ पति-पत्नी एक साथ रहकर कमाते और घर बसाते थे। आधुनिक कारखानों में 50 प्रतिशत महिलाएँ कार्यरत थीं। पारिवारिक जीवन की नयी समझ ने तरह-तरह के घरेलू उत्पादों, नए किस्म के पारिवारिक मनोरंजनों और नए प्रकार के घर की माँग उत्पन्न कर दी। जिसमें समस्त प्रकार की सुख-सुविधाएँ हों। 1870 के दशक में नवीन विद्यालयी व्यवस्था का निर्माण हुआ। जिसमें लड़के-लड़कियों के लिए विद्यालय जाना अनिवार्य कर दिया गया। पाठ्यपुस्तकों में माता-पिता का सम्मान करने, राष्ट्र के प्रति निष्ठा और नागरिक बनने की प्रेरणा दी गयी।

प्रश्न 3. 
पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना छींग राजवंश ने कैसे किया ?
उत्तर:
चीन पर छींग राजवंश का शासन 1644 ई. से 1911 ई. के मध्य रहा। यह राजवंश पश्चिमी शक्तियों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना करने में असफल रहा। 1839-42 ई. के मध्य ब्रिटेन के साथ चीन के हुए पहले अफ़ीम युद्ध ने इसे कमजोर बना दिया। देश में सुधारों एवं परिवर्तन की माँग उठने लगी। कांग यूवेई तथा लियांग किचाऊ जैसे क्विंग सुधारकों ने चीन की व्यवस्था को सुदृढ़ बनाने पर बल दिया। उन्होंने एक आधुनिक प्रशासकीय व्यवस्था, नवीन सेना व शिक्षा व्यवस्था के निर्माण के लिए नीतियाँ बनाईं। इसके अतिरिक्त संवैधानिक सरकार की स्थापना के लिए स्थानीय विधायिकाओं का भी गठन किया गया। छींग राजवंश ने कन्फयूशियसवाद को प्रोत्साहन दिया तथा चीनी विद्यार्थियों को नये विषयों में प्रशिक्षित करने के लिए जापान, ब्रिटेन एवं फ्रांस में पढ़ने भेजा गया। उन्होंने चीन को उपनिवेशीकरण से बचाने का भरपूर प्रयास किया। इस प्रकार छींग राजवंश पश्चिमी ताकतों द्वारा पेश की गई चुनौतियों का सामना करने में असफल रहा फलस्वरूप देश गृहयुद्ध की चपेट में आ गया।

प्रश्न 4. 
सन यात-सेन के तीन सिद्धान्त क्या थे ?
उत्तर:
सन यात-सेन को आधुनिक चीन का संस्थापक माना जाता है। इसके नेतृत्व में 1911 ई. में मांचू साम्राज्य को समाप्त कर गणतंत्र की स्थापना की गई। इन्होंने चीन के विकास हेतु तीन सिद्धान्त दिए जिन्हें सन, मिन, चुई कहा जाता है। ये सिद्धान्त निम्नलिखित हैं

  1. राष्ट्रवाद-इसका अर्थ था मांचू वंश को सत्ता से हटाना, क्योंकि मांचू वंश विदेशी राजवंश के रूप में देखा जाता था। इसके अतिरिक्त अन्य साम्राज्यवादी शक्तियों को चीन से हटाना भी राष्ट्रवाद का उद्देश्य था। सन यात-सेन ने चीनियों को विदेशी साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष करने के लिए प्रेरित किया।
  2. गणतन्त्रवाद-सन यात-सेन जनता को सर्वोपरि स्थान देते थे। वे चाहते थे कि जनता शासन के कार्यों में अधिक भाग ले। इसलिए वे चीन में गणतांत्रिक सरकार की स्थापना करना चाहते थे।
  3. समाजवाद-समाजवाद का उद्देश्य पूँजी का नियमन करना एवं भू-स्वामित्व में समानता लाना था। सन यात सेन चीन में समाजवाद की स्थापना पर बल देते थे। वे राजकीय समाजवाद के पक्षधर थे।

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प्रश्न 5. 
कोरिया ने 1997 में विदेशी मुद्रा संकट का सामना किस प्रकार किया?
उत्तर:
कोरिया के बाजार को अन्य देशों के लिए खोलने के लिए नव-उदारवादी दबाव में किम यंग-सेम प्रशासन ने 1996 ई. में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन में सम्मिलित होने का निर्णय लिया तथा कोरिया की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को मजबूत करने के प्रयास शुरू किए लेकिन व्यापार घाटे में वृद्धि, वित्तीय संस्थानों द्वारा खराब प्रबंधन, संगठनों द्वारा बेईमान व्यापारिक संचालन के कारण कोरिया को 1997 में विदेशी मुद्रा संकट का सामना करना पड़ा। इस संकट को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आई.एम.एफ) द्वारा आपात वित्तीय सहायता के माध्यम से संभालने की कोशिश की गई। इस संकट से निपटने के लिए सम्पूर्ण देश एकजुट हो गया। कोरियाई नागरिकों ने गोल्ड कलैक्शन आन्दोलन के माध्यम से विदेशी ऋण भुगतान के लिए सक्रिय रूप से योगदान दिया। 

संक्षेप में निबन्ध लिखिए

प्रश्न 6. 
क्या पड़ोसियों के साथ जापान के युद्ध और उसके पर्यावरण का विनाश तीव्र औद्योगीकरण की जापानी नीति के चलते हुआ ?
उत्तर:
इसमें कोई शक नहीं कि पड़ोसियों के साथ जापान के युद्ध तीव्र गति से औद्योगीकरण की जापानी नीति के परिणाम थे। तीव्र औद्योगीकरण के लिए एक तो जापान का घरेलू बाजार छोटा था और दूसरे जापान में कच्चे माल का बहुत अभाव था। इसलिए कच्चे माल को कम दामों में प्राप्त करने और तैयार माल को उच्च दर पर बेचने के लिए जापान ने साम्राज्यवादी नीति का अनुसरण किया और इसके लिए उसे अपने उपनिवेशों या बस्तियों को बसाना जरूरी हो गया। चीन, जापान के बहुत निकट था और एक विस्तृत जनसंख्या वाला देश था परन्तु सैनिक दृष्टि से चीन एक बहुत कमजोर देश था।

अतः जापानी साम्राज्य का वह आसानी से शिकार बन गया। शीघ्र ही जापान ने कोरिया पर भी कब्जा कर लिया। चीन के विरोध के चलते 1894 ई. में जापान और चीन का युद्ध हुआ, जिसमें जापान की विजय हुई और उसने ताईवान (फारमूसा) पर अधिकार कर लिया। 1902 ई. में जापान की अंग्रेजों के साथ एक सन्धि हुई, जिससे विश्व में उसका आदर बहुत बढ़ गया। जापान ने इससे प्रोत्साहित होकर 1904-05 ई. में रूस पर आक्रमण करके उसके दक्षिणी सखालीन और त्योंग तुंग द्वीप के दक्षिणी भागों को अपने कब्जे में ले लिया। 

1910 ई. में जापान ने कोरिया पर अधिकार कर लिया। प्रथम विश्व युद्ध के समय जापान एक साम्राज्यवादी शक्ति बन चुका था। जापान की औपनिवेशक साम्राज्य के विस्तार की कोशिशें द्वितीय विश्वयुद्ध में संयुक्त बलों के हाथों समाप्त हो गई। अपनी भयंकर हार के बावजूद जापानी अर्थव्यवस्था का जिस तेजी से पुनर्निर्माण हुआ। उसे एक युद्धोत्तर 'चमत्कार' कहा गया है लेकिन यह चमत्कार से कहीं अधिक था और इसकी जड़ें जापान के लम्बे इतिहास में निहित थीं; वास्तव में जिन कारणों से पश्चिमी देशों में साम्राज्यवाद का प्रारम्भ हुआ, वे समीकरण जापान में भी विद्यमान थे।

अतः जापान की साम्राज्यवादी नीति का प्रमुख कारण औद्योगीकरण था। औद्योगीकरण का जापान पर पड़ने वाला प्रभाव वहाँ के पर्यावरण का विनाश था। उद्योगों के तीव्र अनियंत्रित विकास और लकड़ी जैसे प्राकृतिक संसाधनों की अत्यधिक माँग से पर्यावरण का विनाश हुआ। संसद के सदस्य तनाको शोजो ने 1897 ई. में औद्योगिक प्रदूषण के खिलाफ पहला जन आन्दोलन छेड़ा था। 

तनाको शोजो का मानना था कि औद्योगिक प्रगति के लिए आम लोगों की बलि नहीं दी जानी चाहिए। आशियो खान से 'वातारासे' नदी प्रदूषित हो रही थी जिसके कारण 100 वर्ग मील की कृषि भूमि नष्ट हो रही थी और हजारों परिवार प्रभावित हो रहे थे। ठीक इसी प्रकार 1960 के दशक में नागरिक समाज आन्दोलन का विकास हुआ। बढ़ते औद्योगीकरण की वजह से स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर पड़ रहे प्रभावों को पूरी तरह नजरअन्दाज करने का विरोध किया। अरगजी (केडेमियम) का ज़हर जिसके चलते बड़ी ही कष्टमय बीमारी होती थी, एक आरम्भिक सूचक था। इसके बाद 1960 ई. के दशक में मिनामाता में पारे का ज़हर फैलने और 1970 ई. के दशक में हवा में प्रदूषण से भी समस्याएँ उत्पन्न हुईं।

1980 ई. के दशक के मध्य से पर्यावरण सम्बन्धी विषयों में लोगों की दिलचस्पी घटी है, क्योंकि 1990 ई. में आते-आते जापान में विश्व के कुछ कठोरतम पर्यावरण नियंत्रण उपाय अपनाये गए। आज एक विकसित देश के रूप में यह अग्रगामी विश्व शक्ति की अपनी हैसियत को बनाए रखने के लिए अपनी राजनीतिक और प्रौद्योगिकीय क्षमताओं का इस्तेमाल करने की चुनौतियों का सामना कर रहा है। अतः उपरोक्त कथन सही है कि पड़ोसियों के साथ जापान के युद्ध और उसके पर्यावरण का विनाश तीव्र औद्योगीकरण की जापानी नीति का परिणाम था।

प्रश्न 7. 
क्या आप मानते हैं कि माओ त्सेतुंग और चीन के साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफलता प्राप्त की ?
उत्तर:
यह सच है कि माओ त्सेतुंग और उसके साम्यवादी दल ने चीन को मुक्ति दिलाने और इसकी मौजूदा कामयाबी की बुनियाद डालने में सफलता प्राप्त की। यह बात निम्न घटनाक्रम से स्पष्ट की जा सकती है
(1) चीनी साम्यवादी दल का उदय एवं माओ त्सेतुंग का कुशल नेतृत्व-1921 ई. में चीन में साम्यवादी दल का गठन किया गया। इनके नेतृत्व में चीन की साम्यवादी पार्टी एक शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति बनी जिसने कुओमिनतांग पर विजय प्राप्त की। माओत्से तुंग ने चीनी क्रांति के कार्यक्रम को कृषकों पर आधारित करते हुए एक अलग रास्ते का चुनाव
किया।

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(2) माओ त्सेतुंग के सुधारात्मक कार्य-1928 से 1934 ई. के मध्य माओ त्सेतुंग ने जियांग्सी के पहाड़ों में कुओमिनतांग के हमलों से बचने हेतु सुरक्षित शिविर लगाए। उसने एक शक्तिशाली किसान परिषद का गठन किया। उसने भूमि सम्बन्धी सुधार किए तथा जमींदारों की भूमि पर अधिकार करके उनकी भूमि को कृषकों में बाँट दिया। उसने स्वतंत्र सरकार एवं सेना के गठन पर बल दिया। उसने ग्रामीण महिला संघ के गठन को प्रोत्साहन दिया तथा महिलाओं की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया। इसके अतिरिक्त माओ त्सेतुंग ने विवाह के नए कानून बनवाए और तलाक की प्रक्रिया को सरल बनाया।

(3) येनान में साम्यवादियों द्वारा नया अड्डा स्थापित करना-च्यांग काईशेक की सेना से परेशान होकर साम्यवादियों ने येनान को अपना नया अड्डा बनाया। यहाँ उन्होंने सामन्तवाद को समाप्त करने, भूमि सुधार लागू करने एवं विदेशी साम्राज्य से लड़ने के कार्यक्रम को आगे बढ़ाया। इससे उन्हें एक मजबूत सामाजिक आधार प्राप्त हुआ।

(4) संयुक्त रूप से जापानी आक्रमण का मुकाबला करने का समझौता-1931 ई. में जापान द्वारा चीन पर हमला करने के पश्चात् धीरे-धीरे जापान की चीन में आक्रामक गतिविधियाँ बढ़ती जा रही थीं। इनसे निपटने के लिए चीन में चिंतन होने लगा। सभी ने एक साथ मिलकर जापानी गतिविधियों का मुकाबला करने का निश्चय किया। इस हेतु साम्यवादियों एवं च्यांग काइशेक के मध्य समझौता हुआ, जिसके अनुसार दोनों ने संयुक्त रूप से जापानी आक्रमण का मुकाबला करने का निश्चय किया। अन्तत: चीन ने जापान से वीरतापूर्वक मुकाबला किया परन्तु उसे पराजय का मुँह देखना पड़ा।

(5) चीन में गृहयुद्ध एवं साम्यवादी दल की सफलता-चीन में 1926 ई. से 1949 ई. के मध्य गृहयुद्ध चला। यह गृहयुद्ध साम्यवादियों एवं च्यांग काईशेक के सैनिकों के मध्य हुआ। इस गृहयुद्ध में च्यांग काईशेक को कुओमीनतांग के हाथों पराजय झेलनी पड़ी। पराजित हुए च्यांग काईशेक को 1949 ई. में ताइवान भागना पड़ा। फलस्वरूप 1949 ई. में साम्यवादी दल के समक्ष माओ त्सेतुंग के नेतृत्व में चीन में चीनी जनवादी गणतंत्र की स्थापना हुई।

प्रश्न 8. 
क्या साउथ कोरिया की आर्थिक वृद्धि ने इसके लोकतंत्रीकरण में योगदान दिया?
उत्तर:
हाँ, साउथ (दक्षिण) कोरिया की आर्थिक वृद्धि ने इसने लोकतंत्रीकरण में योगदान दिया। आज दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था क्रयशक्ति के आधार पर विश्व की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। पिछले साठ वर्षों के दौरान दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था में प्रमुख क्षेत्रों में चमत्कारी परिवर्तन आया है। 1940 के दशक के दौरान देश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि आधारित एवं कुछ हल्के उद्योगों पर आधारित थी। 1970 से 1980 के दशक के दौरान भारी उद्योगों पर बल दिया गया। प्रथम 30 वर्ष के दौरान राष्ट्रपति पार्क चुंग-ही ने 1962 से पंचवर्षीय योजनाएँ आरम्भ की, जिसके परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था बहुत तेजी से आगे बढ़ी और इसका स्वरूप भी बदला 1960 से 1990 के मध्य दक्षिण कोरिया की अर्थव्यवस्था में अभूतपूर्व उन्नति हुई।

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दक्षिण कोरिया की इस आर्थिक वृद्धि ने दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र की माँग को मजबूती प्रदान की। राष्ट्रपति पार्क चुंग-ही की मृत्यु के पश्चात दक्षिण कोरिया में लोकतंत्रीकारण की माँग बढ़ी लेकिन चुन प्रशासन ने इस माँग को दबा दिया। उसने अपनी सरकार को स्थिर बनाने के लिए लोकतांत्रिक प्रभाव का मजबूती से दमन किया। यद्यपि चुन प्रशासन ने दक्षिण कोरिया के आर्थिक विकास को बढ़ावा दिया। निरन्तर बढ़ते लोकतंत्रीय आन्दोलनों ने चुन प्रशासन को संविधान में संशोधन करने के लिए बाध्य होना पड़ा और नागरिकों को सीधे चुनाव का अधिकार मिला। दक्षिण कोरिया में वास्तविक लोकतंत्र की शुरुआत 1992 में किम यंग-सेम के राष्ट्रपति बनने के बाद हुई।

नए प्रशासन की निर्यात नीति के तहत यहाँ की सेमसंग, हुंडई और एल जी जैसे कई कम्पनियाँ वैश्विक प्रमुखता के स्तर पर पहुँच गयीं। सरकारी समर्थन के साथ कोरियाई कम्पनियों ने पूँजी प्रधान व्यवसाय और रासायनिक उद्योगों के साथ-साथ इलेक्ट्रोनिक उद्योगों में भी निवेश करना शुरू कर दिया। दूसरी ओर सरकार ने औद्योगिक और सामाजिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण पर ध्यान देना जारी रखा। 1996 में कोरिया के बाजार को अन्य देशों के लिए भी खोल दिया गया। दक्षिण कोरिया की तीव्र आर्थिक वृद्धि ने देश में लोकतंत्रीकरण को मजबूती प्रदान की।

2016 में कोरियाई नागरिकों के नेतृत्व में हुए कैंडल लाइट विरोध में देश के लोकतांत्रिक कानून और प्रणालियों की सीमाओं के भीतर राष्ट्रपति के त्यागपत्र की माँग कर रहे नागरिकों का शांतिपूर्ण प्रदान, कोरियाई लोकतंत्र की परिपक्वता को दर्शाता है। वास्तविक रूप से कहा जाए तो दक्षिण कोरिया में लोकतंत्र, आर्थिक विकास का ऋणी है। इसके साथ-साथ ही देश में लोकतंत्र को प्रोत्साहित करने में कोरियाई नागरिकों की राजनीतिक जागरूकता भी महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जिसने आज इस देश को आगे बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभायी है। इस प्रकार कहा जाता है कि दक्षिण कोरिया की आर्थिक वृद्धि ने इसके लोकतंत्रीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

Prasanna
Last Updated on July 30, 2022, 2:58 p.m.
Published July 27, 2022