Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Drawing Chapter 1 प्रागैतिहासिक शैल-चित्र Textbook Exercise Questions and Answers.
प्रागैतिहासिक शैल चित्र पाठ के प्रश्न उत्तर प्रश्न 1.
आपके विचार से प्रागैतिहासिक काल के लोग चित्रों के विषयों का चयन/चुनाव किस प्रकार करते थे?
उत्तर:
हमारे विचार से प्रागैतिहासिक काल के लोग चित्रों के विषयों का चुनाव अपने रोजमर्रा के जीवन की घटनाओं, रोजमर्रा की गतिविधियों से संबंधित जानवरों, वनस्पतियों व औजारों के आधार पर करते थे।
Class 11 Drawing Chapter 1 Question Answer प्रश्न 2.
गुफा चित्रों में मानव आकृतियों की अपेक्षा जानवरों की आकृतियाँ अधिक होने के क्या कारण रहे होंगे?
उत्तर:
गुफा चित्रों में मानव आकृतियों की अपेक्षा जानवरों की आकृतियाँ अधिक होने का कारण जानवरों के शिकार का आनंद, शिकार हेतु की जाने वाली नाटकीयता और शिकार हेतु किया जाने वाला संघर्ष उस काल का एक मुख्य दैनिक क्रियाकलाप था। दूसरे, इस काल के मनुष्यों में जानवरों पर अधिकार रखने का भाव पैदा हो गया था। इसलिए बहुत से चित्रों में जानवरों के प्रति प्यार और सौहार्द भाव प्रकट करते हुए चित्रित किया गया है। कुछ चित्रों में प्रमुख रूप से जानवर ही उकेरे गए हैं।
चित्रकला कक्षा 11 प्रश्न उत्तर प्रश्न 3.
इस अध्याय में प्रागैतिहासिक काल के अनेक गुफा चित्र दिए गए हैं। इनमें से कौनसा चित्र आपको सबसे अधिक पसंद है और क्यों? उस चित्र का समालोचनात्मक विवेचन कीजिए।
उत्तर:
इस अध्याय में दिए गए चित्रों में से मुझे पाठ्य पुस्तक के पृष्ठ 6 पर दिया गया 'शिकार का दृश्य' नामक चित्र सबसे अधिक पसंद है।
इस चित्र में लोगों का एक समूह भैंसे को मारते हुए दिखाया गया है। कुछ घायल व्यक्तियों को इधर उधर पड़ा दर्शाया गया है। शिकारी लोगों के हाथों में काँटेदार भाले तथा नोकदार डंडे हैं, जिनको लेकर वे भैंसे का शिकार कर रहे हैं।
यह चित्र अंकन की कला में श्रेष्ठता का प्रदर्शन करता है तथा तत्कालीन मानव की शिकार की गतिविधि की स्वाभाविकता को दर्शाता है।
चित्रकला के प्रश्न उत्तर Class 11 प्रश्न 4.
भीमबेटका के अलावा और कौन से प्रमुख स्थल हैं जहाँ से प्रागैतिहासिक चित्र पाए गए हैं? इन चित्रों के भिन्न-भिन्न पहलुओं पर इनकी तस्वीरों तथा रेखाचित्रों के साथ एक रिपोर्ट तैयार करें।
उत्तर:
भीमबेटका के अलावा प्रागैतिहासिककालीन चित्रों के स्थल-भीमबेटका के अलावा प्रागैतिहासिक काल के पाए गए प्रमुख चित्र स्थल निम्नलिखित हैं-
(1) लखुडियार-अल्मोड़ा बारेछिना मार्ग पर अल्मोड़ा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर सुयाल नदी के किनारे स्थित लखुडियार में पाए गए शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक काल के अनेक चित्र मिले हैं।
यहाँ पाए जाने वाले चित्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है-(i) मानव चित्र (ii) ज्यामितीय . आकृतियाँ और (iii) पशु चित्र। ये चित्र सफेद, काले और लाल रंगों के हैं।
(i) मानव चित्र-इन चित्रों में मनुष्यों को छड़ी के रूप में दिखाया गया है। इन चित्रों में दर्शाए गए दृश्यों में एक में मानव आकृतियों को हाथ पकड़कर नाचते हुए दिखाया गया है।
चित्र : हाथों में हाथ डाले नृत्य करते हुए लोग
(ii) ज्यामितीय आकृतियाँ-लहरदार रेखाएँ, आयताकार ज्यामितीय डिजायनों और अनेक बिन्दुओं के समूह इन चित्रों में देखे जा सकते हैं।
चित्र : लहरदार लकीरें, लखुडियार
(iii) पशु चित्र-पशु चित्रों में, एक लम्बे थूथन वाला जानवर, एक लोमड़ी और कई रंगों वाली छिपकली चित्रकारी के मुख्य विषय हैं।
(2) कुपगल्लू, पिकलिहाल और टेक्कलकोटा-आंध्र प्रदेश और कर्नाटक स्थित तीन स्थानों कुपगल्लू, पिकलिहाल और टेक्कलकोटा में तीन तरह के चित्र पाए जाते हैं। कुछ चित्र सफेद रंग के हैं, कुछ लाल रंग के और कुछ सफेद पृष्ठभूमि पर लाल रंग के हैं।
ये चित्र परवर्ती ऐतिहासिक काल, आरंभिक ऐतिहासिक काल और नवपाषाण काल के हैं। इन चित्रों के विषय हैं-साँड, हाथी, सांभर, चिंकारा, भेड़, बकरी, घोड़ा, शैलकृत मानव, त्रिशूल आदि। कुपगल्लू के एक चित्र में एक अत्यन्त विचित्र दृश्य प्रस्तुत किया गया है जिसमें बड़े-बड़े अंगों वाले कामोद्वीप्त पुरुषों को स्त्रियों को भगाकर ले जाते हुए दिखाया गया है।
प्रागैतिहासिक शैल चित्र प्रश्न 5.
आज के समय में चित्र, ग्राफिक आदि बनाने के लिए दीवारों की सतह के रूप में किस प्रकार उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
आज के समय में चित्र, ग्राफिक आदि बनाने के लिए दीवारों की सतह के रूप में दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं-
(1) आलागीला पद्धति-ताजा प्लास्तर की हुई भित्ति पर चित्रण कार्य आलागीला पद्धति है। इस पद्धति में दीवार बनाते समय ही चूने-बालू या संगमरमर के चूर्ण का मोटा लेप लगा दिया जाता है। लेप के जम जाने व सूखने से पूर्व ही नम प्लास्तर पर खनिज रंगों को इस प्रकार लगाया जाता है कि रंग और धरातल एक हो जाते हैं। आलागीला पद्धति की भी दो पद्धतियाँ प्रचलित हैं-(i) इतालवी पद्धति, (ii) जयपुरी पद्धति। यथा-
(i) इतालवी पद्धति-इतालवी पद्धति में गीले चूने में दो भाग बालू मिलाकर दीवार पर प्लास्तर चढ़ाते हैं। गीली सतह पर ही नुकीली लकड़ी या धातु से रेखांकन कर लेते हैं। खाका को दीवार पर रखकर गेरू पाउडर को मलमल के कपड़े में डालकर उसे दबाकर रेखांकन बना लेते हैं। ग्रिड की सहायता से मुक्त हस्त से रेखांकन कर सकते हैं। इसके पश्चात् केवल खनिज रंगों का ही चित्रण में प्रयोग किया जाता है। गीले प्लास्तर में लगाए जाने के कारण रंग प्लास्तर द्वारा शोषित होकर गहरे पैठ जाते हैं और प्लास्तर का एक अविभाज्य अंग बन जाते हैं।
(ii) जयपुर की दीवार चित्रण पद्धति-जयपुर की दीवार चित्रण पद्धति भी इसी प्रकार की है। इसमें गीली सतह पर रंग लगाने के बाद उस पर अकीक पत्थर या ओपनी से धरातल की घिसाई कर उसमें चमक लाई जाती है।
(2) सूखी पद्धति-सूखी पद्धति में दीवार को उपरोक्त विधि से ही तैयार करके उसके पूर्ण रूप से सूखने के बाद चित्रण किया हुआ कार्य सूखी पद्धति कहलाती है। इसमें रंगों के माध्यम के बाद गोंद, सरेस व अंडे की जर्दी का प्रयोग किया जाता है।