These comprehensive RBSE Class 9 Social Science Notes Civics Chapter 5 लोकतांत्रिक अधिकार will give a brief overview of all the concepts.
→ अधिकार क्या है?-अधिकार लोगों के तार्किक दावे हैं, इन्हें समाज से स्वीकृति और अदालतों द्वारा मान्यता मिली होती है। लोकतंत्र में अधिकारों की आवश्यकता
लोकतंत्र में अधिकारों की अत्यधिक आवश्यकता होती है। यथा
→ भारतीय संविधान में अधिकार भारत का संविधान नागरिकों को निम्नलिखित छ: मौलिक अधिकार प्रदान करता है
(1) समानता का अधिकार-संविधान के अनुसार सरकार भारत में किसी व्यक्ति को कानून के सामने समानता या कानून से संरक्षण के मामले में समानता के अधिकार से वंचित नहीं कर सकती।
(2) स्वतंत्रता का अधिकार-भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को निम्नलिखित छः स्वतंत्रताएं प्रदान की गई हैं
जीवन का अधिकार तथा निजी स्वतंत्रता का अधिकार-किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन के अधिकार और निजी स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता-कानून द्वारा स्थापित व्यवस्थाओं को छोड़कर। इसका अभिप्राय यह है कि कानूनी आधार होने पर ही सरकार या पुलिस अधिकारी किसी नागरिक को गिरफ्तार कर सकता है। यदि वे ऐसा करते हैं तो उन्हें निम्न नियमों का पालन करना होता है
(क) किसी व्यक्ति को बिना कारण बताये गिरफ्तार नहीं किया जा सकता।
(ख) गिरफ्तार किये गये व्यक्ति को 24 घंटों के अन्दर न्यायपालिका के समक्ष प्रस्तुत करना होता है।
(ग) ऐसे व्यक्ति को वकील से विचार-विमर्श करने और अपने बचाव के लिए वकील रखने का अधिकार होता है।
(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार-संविधान ने कमजोर वर्ग के शोषण को समाप्त करने के लिए शोषण के विरुद्ध अधिकार प्रदान किया है।
(4) धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार-भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म मानने, उस पर आचरण करने और शांतिपूर्वक उसका प्रचार करने का अधिकार है।
(5) सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार-संविधान में स्पष्ट कहा गया है कि
(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार-संवैधानिक उपचारों के अधिकार के तहत नागरिकों को उपर्युक्त अधिकारों को लागू कराने की माँग करने का अधिकार है। यह भी एक मौलिक अधिकार है। यह अधिकार अन्य अधिकारों को प्रभावी बनाता है।
सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालयों को मौलिक अधिकार लागू कराने के मामले में निर्देश देने, आदेश या रिट जारी करने का अधिकार है। मौलिक अधिकारों के हनन के मामले में कोई भी पीड़ित व्यक्ति न्याय पाने के लिए तुरन्त अदालत में जा सकता है। पर अगर मामला सामाजिक या सार्वजनिक हित का हो तो ऐसे मामलों में मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर कोई भी व्यक्ति अदालत में जा सकता है। ऐसे मामलों को 'जनहित याचिका' के माध्यम से उठाया जा सकता है।
→ अधिकारों का बढ़ता दायरा - समय-समय पर न्यायालयों ने ऐसे फैसले दिए हैं जिनसे अधिकारों का दायरा बढ़ा है। यथा