RBSE Class 9 Science Important Questions Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

Rajasthan Board RBSE Class 9 Science Important Questions Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार  Important Questions and Answers.

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RBSE Class 9 Science Chapter 15 Important Questions खाद्य संसाधनों में सुधार

बहुचयनात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
कार्बोहाइड्रेट का मुख्य स्रोत है।
(अ) मूंग
(ब) मटर
(स) चावल
(द) चना
उत्तर:
(स) चावल

प्रश्न 2.
खरीफ की फसल है।
(अ) सोयाबीन
(ब) अरहर
(स) मक्का
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
 (द) उपर्युक्त सभी

RBSE Class 9 Science Important Questions Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार  

प्रश्न 3.
आनुवंशिकीय रूपान्तरित फसल प्राप्त होगी।
(अ) संकरण से
(ब) जीन परिवर्तन से
(स) अन्तरा फसल से
(द) मिश्रित फसल से
उत्तर:
(ब) जीन परिवर्तन से

प्रश्न 4.
अच्छी गुणवत्ता वाले बीज प्रयोग करने का उद्देश्य है।
(अ) अधिक उपज
(ब) अनुकूलन
(स) संवेदनशीलता कम करना
(द) कीट प्रतिरोधकता
उत्तर:
(अ) अधिक उपज

प्रश्न 5.
पौधों को हाइड्रोजन की प्राप्ति होती है।
(अ) वायु से
(ब) जल से
(स) मृदा से
(द) सूर्य से
उत्तर:
(ब) जल से 

प्रश्न 6.
निम्न में से कौनसा तत्व पौधों का सूक्ष्म पोषक है।
(अ) नाइट्रोजन
(ब) बोरॉन
(स) फॉस्फोरस
(दु) पोटैशियम
उत्तर:
(ब) बोरॉन 

प्रश्न 7.
वर्मी कम्पोस्ट बनाने वाला जीव है।
(अ) केंचुआ
(ब) तिलचट्टा
(स) टिड्डी
(द) जीवाणु
उत्तर:
(अ) केंचुआ 

प्रश्न 8.
जिस खेती में रासायनिक उर्वरक, पीड़कनाशी, शाकनाशी आदि का उपयोग नहीं होता है, वह है।
(अ) कार्बनिक खेती
(ब) अकार्बनिक खेती
(स) मिश्रित खेती
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(अ) कार्बनिक खेती

प्रश्न 9.
मिश्रित फसल के लिए उपयुक्त फसल समूह है।
(अ) गेहूँ + चना
(ब) गेहूँ + सरसों
(स) मूँगफली + सूर्यमुखी
(द) उपर्युक्त सभी समूह
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी समूह 

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प्रश्न 10.
खरपतवार हटाने की सर्वाधिक प्रचलित विधि है।
(अ) यांत्रिक विधि
(ब) निरोधक विधि
(स) पीड़कनाशी रसायनों का उपयोग
(द) आग लगाकर जलाना
उत्तर:
(स) पीड़कनाशी रसायनों का उपयोग

प्रश्न 11.
मधुमक्खी पालन एक अच्छा कृषि उद्यम है क्योंकि।
(अ) इसमें पूँजी निवेश कम है।
(ब) शहद का उपयोग सर्वत्र होता है।
(स) किसी विशिष्ट स्थान की आवश्यकता नहीं है।
(द) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी।

प्रश्न 12.
लवणीय जल की मछली है।
(अ) टुना
(ब) कटला
(स) रोहू
(द) मृगल
उत्तर:
(अ) टुना 

प्रश्न 13.
कवचीय मछली है।
(अ) ऑएस्टर
(ब) मुलेट
(स) भेटकी
(द) पर्ल स्पॉट
उत्तर:
(अ) ऑएस्टर 

प्रश्न 14.
खरपतवार को अपना भोजन बनाने वाली मछली है।
(अ) कटल
(ब) रोहू
(स) कॉमन कार्प
(द) ग्रास कार्प
उत्तर:
(द)  ग्रास कार्प

प्रश्न 15.
ब्रौलर के आहार की विशेषता है, इनके आहार में।
(अ) विटामिन Aकी मात्रा अधिक होती है।
(ब) विटामिन K की मात्रा अधिक होती है।
(स) प्रोटीन तथा वसा की प्रचुर मात्रा होती है।
(द) विटामिन A तथा K की मात्रा अधिक होती है।
उत्तर:
(स) प्रोटीन तथा वसा की प्रचुर मात्रा होती है।

प्रश्न 16.
श्वेत क्रान्ति का सम्बन्ध है।
(अ) दूध
(ब) अनाज
(स) मांस
(द) मछली
उत्तर:
(अ) दूध 

प्रश्न 17.
तेल वाले बीजों से मुख्यतः प्राप्त होता है।
(अ) प्रोटीन
(ब) कार्बोहाइड्रेट
(स) वसा
(द) कोई नहीं
उत्तर:
(स) वसा

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प्रश्न 18.
निम्न में से चारा फसल नहीं है।
(अ) सूरजमुखी
(ब) वर्सीम
(स) जई
(द) सूडान घास
उत्तर:
(अ) सूरजमुखी 

प्रश्न 19.
निम्न में से वृहत पोषक तत्त्व नहीं है।
(अ) पोटैशियम
(ब) सल्फर
(स) मैग्नीशियम
(द) आयरन
उत्तर:
 (द) आयरन 

प्रश्न 20.
रासायनिक उर्वरकों में मुख्यतः शामिल तत्व है।
(अ) नाइट्रोजन
(ब) फॉस्फोरस
(स) पोटेशियम
(द) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(द) उपर्युक्त सभी

प्रश्न 21.
अंतरा फसलीकरण के लिए उपयुक्त फसल युग्म है-
(अ) गेहूँ + चना
(ब) गेहूँ - सरसों
(स) बाजरा - लोबिया
(द) मूँगफली - सूर्यमुखी
उत्तर:
 (स) बाजरा - लोबिया 

प्रश्न 22.
खरपतवार का उदाहरण नहीं है।
(अ) लोबिया
(ब) मोथा
(स) गोखरू
(द) गाजर घास
उत्तर:
 (अ) लोबिया

प्रश्न 23.
पर्ण कृमि किस अंग को प्रभावित करता है।
(अ) आमाशय
(ब) यकृत
(स) आँत
(द) त्वचा
उत्तर:
 (ब) यकृत

प्रश्न 24.
किस मधुमक्खी का उपयोग मधु उत्पादन को बढ़ाने के लिए किया जाता है।
(अ) भारतीय मक्खी
(ब) शैल मक्खी
(स) लिटिल मक्खी
(द) इटली मक्खी
उत्तर:
(द) इटली मक्खी

रिक्त स्थान वाले प्रश्न:

निम्नलिखित प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

प्रश्न 1. 
..................व्यावसायिक रूप में तैयार पादप पोषक है।

उत्तर:
उर्वरक

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प्रश्न 2. 
खाद में......................पदार्थों की मात्रा अधिक होती है।
उत्तर:

प्रश्न 3. 
........................कृषि योग्य भूमि में अनावश्यक पौधे होते हैं।
उत्तर:

प्रश्न 4. 
बाह्य परजीवी...................पर रहते हैं जिनसे पशु को त्वचा रोग हो सकतें।
उत्तर:

प्रश्न 5. 
हमारे भोजन में मछली.....................का एक समृद्ध स्रोत है।
उत्तर:


सत्य / असत्य कथन वाले प्रश्न:

निम्नलिखित कथनों में सत्य तथा असत्य कथन छाँटिए:

प्रश्न 1. 
इटली मक्खी में मधु एकत्र करने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
उत्तर:
सत्य

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प्रश्न 2. 
गेहूँ चना, मटर, सरसों खरीफ फसलें हैं।
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 3. 
उर्वरक को जन्तुओं के अपशिष्ट तथा पौधों के कचरे के अपघटन से तैयार किया जाता है। 
उत्तर:
असत्य

प्रश्न 4. 
निरोधक तथा नियंत्रण विधियों का उपयोग भण्डारण करने से पहले किया जाता है।
उत्तर:
सत्य

प्रश्न 5. 
कुक्कुट आहार में विटामिन A तथा C की मात्रा अधिक रखी जाती है।
उत्तर:
असत्य

मिलान वाले प्रश्न:

निम्नलिखित प्रश्नों का मिलान कीजिए:

प्रश्न 1. 

सामान्य नाम

वैज्ञानिक नाम

(a) भारतीय मक्खी

(i) ऐपिस मेलीफेरा

(b) शैल मक्खी

(ii) ऐपिस डोरसेटा

(c) लिटिल मक्खी

(iii) ऐपिस फ्लोरी

(d) इटली मक्खी

(iv) ऐलिस सेरन

उत्तर:

सामान्य नाम

वैज्ञानिक नाम

(a) भारतीय मक्खी

(iv) ऐलिस सेरन

(b) शैल मक्खी

(ii) ऐपिस डोरसेटा

(c) लिटिल मक्खी

(iii) ऐपिस फ्लोरी

(d) इटली मक्खी


(i) ऐपिस मेलीफेरा


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प्रश्न 2

तालाब में खाद्य क्षेत्र

मछली

(a) जल सतह

(i) कटला

(b) मध्य क्षेत्र

(ii) मृगल

(c) खरपतवार

(iii) ग्रास कार्प

(d) तल

(iv) रोडू

उत्तर:

तालाब में खाद्य क्षेत्र

मछली

(a) जल सतह

(i) कटला

(b) मध्य क्षेत्र

(iv) रोडू

(c) खरपतवार

(iii) ग्रास कार्प

(d) तल

(ii) मृगल


अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
श्वेत क्रान्ति का क्या उद्देश्य था?
उत्तर:
दूध उत्पादन में वृद्धि।

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प्रश्न 2.
चारा देने वाली फसलों के नाम लिखिए।
उत्तर:
वर्सीम, जई, सूडान आदि चारा देने वाली फसलें हैं।

प्रश्न 3.
खरीफ की फसल का समय कब होता है ?
उत्तर:
जून से आरम्भ होकर अक्टूबर मास तक।

प्रश्न 4.
रबी की फसल कब उगाई जाती है ?
उत्तर:
रबी की फसल नवम्बर से अप्रैल मास तक होती है।

प्रश्न 5.
रबी की फसलें कौन-कौन सी हैं ?
उत्तर:
गेहूँ, चना, मटर, सरसों तथा अलसी आदि रबी की फसलें हैं।

प्रश्न 6.
खरीफ की फसलें कौन - कौन सी हैं?
उत्तर:
धान, सोयाबीन, अरहर, मक्का, मूँग तथा उड़द आदि खरीफ की फसलें हैं।

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प्रश्न 7.
अधिक रोग प्रतिरोधकता वाली गाय की दो देशी किस्मों के नाम बताओ।
उत्तर:
रेडसिंधी और साहीवाल।

प्रंश्न 8.
फसल की किस्मों में ऐच्छिक गुण किस विधि द्वारा डाले जाते हैं ?
उत्तर:
संकरण विधि द्वारा।

प्रश्न 9.
उच्च उत्पादन का निर्धारण क्या है ?
उत्तर:
प्रति एकड़ फसल की उत्पादकता को बढ़ाना उच्च उत्पादन है।

प्रश्न 10.
अजैविक प्रतिरोधकता से क्या आशय है ?
उत्तर:
सूखा, क्षारता, जलाक्रान्ति, गरमी, ठण्ड तथा पाला के प्रति प्रतिरोधकता अजैविक प्रतिरोधकता है।

प्रश्न 11.
सस्य विज्ञान वाली किस्में किसमें सहायक हैं?
उत्तर:
अधिक उत्पादंन में।

प्रश्न 12.
उत्पादन प्रणालियाँ किन तीन प्रकारों की होती हैं ?
उत्तर:

  1. खर्च रहित उत्पादन प्रणाली
  2. कम खर्च उत्पादन प्रणाली
  3. अधिक खर्च उत्पादन प्रणाली।

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प्रश्न 13.
पौधे अपने पोषण के लिए पोषक तत्व कहाँ से प्राप्त करते हैं ?
उत्तर:
पौधे हवा से ऑक्सीजन, कार्बन, पानी से हाइड्रोजन व ऑक्सीजन तथा मिट्टी से 13 पोषक तत्व प्राप्त करते हैं।

प्रश्न 14.
वृहत् पोषक किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पौधों को पोषकों के लिए जो पोषक अधिक मात्रा में चाहिए, उन्हें वृहत् पोषक कहते हैं।

प्रश्न 15.
सूक्ष्म पोषक किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पौधों को पोषण के लिए जो पोषक कम मात्रा में चाहिए, उन्हें सूक्ष्म पोषक कहते हैं।

प्रश्न 16.
वृहत् पोषक कौन-कौन से हैं ? नाम लिखिए।
उत्तर:
नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, मैग्नीशियम एवं सल्फर।

प्रश्न 17.
सूक्ष्म पोषक कौन-कौन से हैं ? नाम लिखिए।
उत्तर:
आयरन, मैंग्नीज, बोरॉन, जिंक, कॉपर, मॉलिब्डेनम एवं क्लोरीन।

प्रश्न 18.
खाद कैसे तैयार की जाती है ?
उत्तर:
खाद जन्तुओं के अपशिष्ट तथा पौधे के कचरे के अपघटन से तैयार की जाती है।

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प्रश्न 19.
वर्मी कम्पोस्ट क्या है ?
उत्तर:
केंचुए के उपयोग से तैयार कम्पोस्ट (खाद) को वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।

प्रश्न 20.
हरी खाद क्या है ?
उत्तर:
फसल उगाने से पहले, पटसन, मूँग, ज्वार आदि को उगाकर उन्हें हल की सहायता से खेत की मिट्टी में मिला देते हैं, यही हरी खाद है।

प्रश्न 21.
अंतराफसलीकरण में उपयोगी दो फसल समूह के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1.  सोयाबीन + मक्का
  2. बाजरा + लोबिया।


प्रश्न 22.
खरपतवार के तीन पादपों के नाम लिखिए।
उत्तर:

  1. गोखरू (जैंथियम)
  2. गाजर घास (पारथेनियम)
  3. मोथा (साइरेनस रोटेंडस)।


प्रश्न 23.
भण्डारण से पूर्व उत्पादन को किस प्रकार उपचारित करना चाहिए ?
उत्तर:
भण्डारण से पूर्व उत्पाद की सफाई करके उसे धूप व छाया में सुखाना चाहिए तथा धूमक का उपयोग करना चाहिए।

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प्रश्न 24.
पशुपालन किसे कहते हैं ?
उत्तर:
पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते हैं।

प्रश्न 25.
पशुपालन में क्या आवश्यक कार्य करने होते हैं ?
उत्तर:
इसके अन्तर्गत भोजन देना, प्रजनन तथा रोगों पर नियंत्रण करना आदि कार्य सम्पन्न करने पड़ते हैं।

प्रश्न 26.
पशु कृषि में पशुपालन के दो उद्देश्य क्या हैं ?
उत्तर:

  1. दूध देने वाले पशु पालना
  2.  कृषि कार्य के लिए पशुपालन।


प्रश्न 27.
लम्बे समय तक दूध स्रवण काल के लिए विदेशी नस्लें कौन-कौन सी हैं ? किन्हीं दो के नाम लिखिए।
उत्तर:
जर्सी एवं ब्राउन स्विस।

प्रश्न 28.
पशुओं के यकृत में कौनसा परजीवी पाया जाता है ?
उत्तर:
पर्णकृमि (फ्लूक)।

प्रश्न 29.
समुद्री जल में संवर्धित मछलियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मुलेट, भेटकी, पर्लस्पॉट (पंखयुक्त मछलियाँ)।

प्रश्न 30.
भोजन से हमें क्या प्राप्त होता है ?
उत्तर:
भोजन से हमें प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन एवं खनिज लवण प्राप्त होते हैं।

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प्रश्न 31.
'मेरीकल्चर' किसे कहते हैं ?
उत्तर:
आर्थिक महत्त्व की समुद्री मछलियों का समुद्री जल में संवर्धन मेरीकल्चर कहलाता है।

प्रश्न 32.
छत्ते से प्राप्त 'मोम' की क्या उपयोगिता है ?
उत्तर:
छत्ते से प्राप्त मोम का उपयोग औषधि तैयार करने में किया जाता है।

प्रश्न 33.
'मोती  प्राप्त करने के लिए किसका संवर्धन किया जाता है ?
उत्तर:
ऑएस्टर का संवर्धन मोतियों को प्राप्त करने के लिए किया जाता है।

लघूत्तरात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
फसलें और पशुधन के उत्पादन की क्षमता बढ़ाना क्यों आवश्यक हो गया है?
उत्तर:
भारत एक बड़ी जनसंख्या वाला देश है और जनसंख्या सौ करोड़ से भी अधिक हो गई है। इस जनसंख्या को खाद्यान्न आपूर्ति करने में प्रतिवर्ष पच्चीस करोड़ टन से भी अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता होती है। यह तभी सम्भव है जब अधिक भूमि पर खेती की जाए। लेकिन हमारे देश में जितनी भूमि पर कृषि हो रही है, उसको और अधिक बढ़ाना सम्भव नहीं है। अत: यह आवश्यक हो गया है कि फसलें और पशुधन दोनों के उत्पादन की क्षमता बढ़ाई जाए।

प्रश्न 2.
दीप्तिकाल क्या है? इस आधार पर वर्ष में फसलों का निर्धारण कैसे किया गया है?
उत्तर:
दीप्तिकाल:
दीप्तिकाल सूर्य प्रकाश के काल से सम्बन्धित होता है। वर्षभर में मौसम परिवर्तन सूर्य के प्रकाश के तापक्रम से होता है। इसी आधार पर पौधों में पुष्पन तथा वृद्धि होती है। कुछ पादपों को पुष्पन में कम तापक्रम आवश्यक है, तो कुछ को अधिक, इसी आधार पर वर्ष में दो फसलों का निर्धारण किया गया है

(i) खरीफ की फसल: यह वर्षा ऋतु की फसल है, जो जून से प्रारम्भ होकर अक्टूबर तक होती है। इसमें धान, सोयांबीन, अरहर, मक्का, मूँग तथा उड़द आदि की खेती की जाती है।

(ii) रबी की फसल: यह शीत ऋतु की फसल है। यह नवम्बर से अप्रैल मास तक होती है। इसमें गेहूँ, चना, मटर, सरसों तथा अलसी आदि की खेती की जाती है।

प्रश्न 3.
संकरण क्या है? यह कितने प्रकार का होता है?
उत्तर:
संकरण: विभिन्न आनुवंशिक गुणों के पौधों में क्रॉसिंग की क्रिया को संकरण कहते हैं। इस विधि द्वारा किसी फसल के लिए उच्च उपज वाली किस्म उत्पन्न करने के लिए फसल की दो ऐसी किस्मों का चयन करते हैं, जिनमें प्रत्येक में कम से कम एक वांछित गुण अवश्य हो, जैसे एक किस्म उच्च उपज देने वाली है और दूसरी रोगों के लिए प्रतिरोधक।
संकरण तीन प्रकार का होता है।

  1. अंतराकिस्मीय (विभिन्न किस्मों में)
  2. अंतरावंशीय (विभिन्न जेनरा में)
  3. अंतरास्पीशीज (एक ही जीनस की दो भिन्न स्पीशीजों में)।

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प्रश्न 4.
अच्छे उत्पादन हेतु हमें किस प्रकार के बीज का उपयोग करना चाहिए?
उत्तर:
अच्छे उत्पादन के लिए कृषक को बीज में निम्न गुण देखने चाहिए।

  1. किसानों को अच्छी गुणवत्ता वाले विशेष बीज का उपयोग करना चाहिए, जो उस क्षेत्र विशेष में अनुकूल परिस्थितियों में अंकुरित हो सके।
  2.  फसल उत्पादन मौसम व मिट्टी की गुणवत्ता तथा पानी की उपलब्धता पर निर्भर है अतः बीज की ऐसी किस्म हो, जो विविध जलवायु परिस्थिति में भी उग सके।
  3. बीज में ऐसी विशेषता होनी चाहिए जो उच्च लवणीय मिट्टी में भी अंकुरित हो सके।


प्रश्न 5.
फसल सुधार के लिए उन्नत किसमें कैसी होनी चाहिए?
उत्तर:
फसल सुधार के लिए उन्नत किस्मों के लिए फसल उत्पाद की गुणवत्ता प्रत्येक फसल में अलग - अलग होती है। जैसे - दालों के उत्पादन में देखा जाए उनमें प्रोटीन की गुणवत्ता उच्च होनी चाहिए। यदि तिलहन है, तो तेल की गुणवत्ता देखते हैं तथा फल व सब्जियों में विटामिन व खनिज लवण की उपस्थिति के साथ उसमें संरक्षण की भी विशेषता होनी चाहिए।

प्रश्न 6.
फसल सुधार की प्रक्रिया में 'परिपक्वन काल में परिवर्तन' की क्या आवश्यकता है?
उत्तर:
परिपक्वन काल में परिवर्तन:
फसल को उगाने से लेकर कटाई तक कम से कम समय लगना आर्थिक दृष्टि से अच्छा होता है। इससे किसान खेतों में प्रतिवर्ष कई फसल उगा सकता है। यदि फसल का परिपक्वन काल कम है, तो आर्थिक दृष्टि से भी यह लाभदायक होगी। फसल समान रूप में परिपक्व होने पर कटाई के दौरान होने वाली हानि से बचा जा सकता है। अतः परिपक्वन काल परिवर्तन के लिए किस्मों में सुधार होना चाहिए। यह पूरी तरह लाभदायक है।

प्रश्न 7.
फसल उत्पादन प्रबंधन से क्या आशय है? इसके मुख्य बिन्दुओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
फसल उत्पादन प्रबंधन:
भारतीय कृषकों के पास छोटे - छोटे खेतों से लेकर बड़े - बड़े फार्म उपलब्ध हैं। अत: विभिन्न किसानों के पास भूमि धन, सूचना तथा तकनीकी उपलब्धता इसी अनुरूप होती है। किसान अपने खेत में विभिन्न कृषि प्रणालियाँ तथा कृषि तकनीकों को अपनाता है। अतः उच्च निवेश तथा फसल उत्पादन में सहसम्बन्ध है। इस प्रकार किसान की लागत क्षमता फसल तंत्र तथा उत्पादन प्रणालियों का निर्धारण करती है। इस प्रकार उत्पादन प्रणालियाँ भी विभिन्न स्तर, जैसे - 'बिना लागत उत्पादन', 'अल्प लागत उत्पादन' तथा 'अधिक लागत उत्पादन' प्रणाली हो सकती हैं। फसल उत्पादन प्रबंधन में पोषक प्रबंधन, सिंचाई एवं फसल पैटर्न सम्मिलित हैं।

प्रश्न 8.
खाद क्या है? यह किस प्रकार उपयोगी है?
उत्तर:
खाद: यह पौधों के विभिन्न भागों, जीवांश तथा जैविक कचरे से तैयार की जाती है। खाद में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है तथा यह मिट्टी को अल्प मात्रा में पोषण प्रदान करती है। खाद मिट्टी की उर्वरकता को बढ़ाती है, साथ ही खाद में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ मिट्टी की संरचना में सुधार करते हैं। इससे रेतीली मिट्टी में पानी को रखने की क्षमता बढ़ जाती है तथा चिकनी मिट्टी में से अधिक मात्रा में एकत्रित पानी को बाहर निकालने की प्रवृत्ति बढ़ जाती है। इसको बनाने में हम जैविक कचरे का उपयोग करते हैं, जिस कारण पर्यावरण संरक्षण में सहयोग मिलता है।

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प्रश्न 9.
कम्पोस्ट तथा वर्मी कम्पोस्ट के विषय में लिखिए।
उत्तर:
कम्पोस्ट तथा वर्मी कम्पोस्ट:
कम्पोस्टीकरण प्रक्रिया में कृषि अपशिष्ट पदार्थ, जैसे - पशुधन का मलमूत्र (गोबर आदि), सब्जी के छिलके एवं कचरा, जानवरों द्वारा परित्यक्त चारे, घरेलू कचर, सीवेज कचरे, फेंके हुए खरपतवार आदि को गड्ढों में विगलित करते हैं। कम्पोस्ट में कार्बनिक पदार्थ तथा पोषक बहुत अधिक मात्रा में होते हैं कम्पोस्ट को केंचुओं द्वारा पौधों तथा जानवरों के अपशिष्ट पदार्थों के शीघ्र निरस्तीकरंरण की प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है। इसे वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।

प्रश्न 10.
हरी खाद् क्या है? यह कैसे तैयार की जाती है?
उत्तर:
हरी खाद: यह हरे पौधों को खेत में दबाकर बनाई जाती है। फसल उगाने से पहले खेतों में कुछ पौधे, जैसे - पटसन, मूँग, ग्वार, ढेंचा आदि की फसल को हल चलाकर मिट्टी में दबा देते हैं। कुछ समय पश्चात् यह खाद में बदल जाती है, जिसे हरी खाद कहते हैं। यह मृदा में नाइट्रोजन एवं फॉस्फोरस की भरपूर आपूर्ति करती है।

प्रश्न 11.
उर्वरक के विषय में लिखिए।
उत्तर:
उर्वरक व्यावसायिक रूप से तैयार पादप पोषक है। यह नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम प्रदान करते हैं। इनके उपयोग से अच्छी कायिक वृद्धि (पत्तियाँ, शाखाएँ व फूल) होती है और स्वस्थ पौधों की प्राप्ति होती है। अधिक उत्पादन के लिए इनका उपयोग होता है, परन्तु इनका सतत प्रयोग मिट्टी की उर्वरता को घटाता है क्योंकि कार्बनिक पदार्थ की पुन: पूर्ति नहीं हो पाती तथा इससे सूक्ष्मजीवों व भूमिगत जीवों का जीवन चक्र अवरुद्ध होता है। इनकी अधिक मात्रा जल प्रदूषण को भी बढ़ाती है।

प्रश्न 12.
कार्बनिक खेती क्या है? समझाइए।
उत्तर:
कार्बनिक खेती: यह खेती करने की वह पद्धति है, जिसमें रासायनिक उर्वरक पीड़कनाशी, शाकनाशी आदि का उप्योग बहुत कम या बिल्कुल नहीं होता। इस पद्धति में अधिकाधिक कार्बनिक खाद, कृषि अपशिष्ट (पुआल तथा पशुधन) का पुनर्चक्रण, जैविक कारक जैसे कि नील हरित शैवाल का संवर्धन, जैविक उर्वरक बनाने में उपयोग किया जाता है। नीम की पत्तियों तथा हल्दी का विशेष रूप से जैव कीटनाशकों के रूप में खाद्य संग्रहण में प्रयोग किया जाता है। अतः कार्बनिक खेती सबसे सुरक्षित एवं अधिक उत्पादन देने वाली खेती है।

प्रश्न 13. खेतों में सिंचाई क्यों आवश्यक है ? हमारे यहाँ सिंचाई के क्या-क्या साधन हैं ?
उत्तर:
सिंचाई: हम जानते हैं कि अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए समय - समय पर खेत में जल संचित करना आवश्यक है, इसी क्रिया को सिंचाई कहते हैं। हमारे यहाँ अधिकांश खेती वर्षा पर आधारित है अतः फसल की उपज समय पर मानसून आने तथा वृद्धिकाल में उचित वर्षा होने पर निर्भर करती है। कम वर्षा होने पर फसल उत्पादन कम हो जाता है, वृद्धि काल में सिंचाई नहीं होने पर भी उत्पादन प्रभावित होता है। इसलिए अधिकाधिक कृषि भूमि को सिंचित करने के लिए बहुत से उपाय किए जाते हैं। भारत में सिंचाई के लिए कुएं, नहरें, तालाब एवं नदी जल उठाव प्रणाली काम में लेते हैं।

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प्रश्न 14.
सूखे से क्या आशय है? इसका क्या निवारण है?
उत्तर:
फसल में पानी की कमी अथवा वर्षा की अनियमितता के कारण सूखा होता है। इससे फसल को बहुत हानि होती है। उन किसानों को अधिक नुकसान होता है जो वर्षा पर निर्भर रहते हैं तथा सिंचाई का उपयोग नहीं करते हैं। जिन क्षेत्रों में हल्की मृदा होती है, वहाँ सूखे की संभावना अधिक है क्योंक यह मृदा पानी को संचित रखने की क्षमता कम रखती है। अत: इन क्षेत्रों में अधिक हानि होती है। सूखे से निपटने के लिए वैज्ञानिकों ने कुछ फसलों की ऐसी किस्में तैयार कर ली हैं, जो सूखे की स्थिति को सहन कर सकती हैं।

प्रश्न 15.
मिश्रित फसल से क्या आशय है? समझाइए। 
उत्तर:
मिश्रित फसल:
यह अधिक लाभ प्राप्त करने के लिए फसल उगाने की एक विधि है। इसमें दो या दो से अधिक फसलों को एक साथ एक ही खेत में उगाते हैं, जैसे कि गेहूँ + चना अथवा गेहूँ + सरसों अथवा मूँगफली + सूर्यमुखी। इससे हानि होने की सम्भावना कम हो जाती है क्योंकि फसल के नष्ट हो जाने पर भी फसल उत्पादन की आशा बनी रहती है।

प्रश्न 16.
फसल चक्र क्या है? इसके निर्धारण में किन - किन बातों का ध्यान रखना चाहिए?
उत्तर:
फसल चक्र:
किसी खेत में क्रमवार पूर्व नियोजित कार्यक्रम के अनुसार विभिन्न फसलों के उगाने को फसल चक्र कहते हैं। फसल के चुनाव में इस बात को महत्त्व दिया जाता है कि चक्रण से भूमि की उर्वरता बनी रहे। परिपक्वन काल के आधार पर विभिन्न फसल सम्मिश्रण के लिए फसल चक्र अपनाया जाता है। एक कटाई के बाद कौन सी फसल उगानी चाहिए, यह नमी तथा सिंचाई की उपलब्धता पर निर्भर करता है। यदि फसल चक्र उचित ढंग से अपनाया जाए तो एक वर्ष में दो या तीन फसलों से अच्छा उत्पादन किया जा सकता है।

प्रश्न 17.
खरपतवार क्या है ? ये पौधों को कैसे हानि पहुँचाते हैं ?
उत्तर:
खरपतवार:
कृषि योग्य भूमि में कृषि के साथ अनावश्यक पौधे पैदा हो जाते हैं, जैसे - गोखरू, गाजर घास आदि। इन्हें खरपतवार कहते हैं।
खरपतवार मुख्य फसली पादपों के साथ भोजन, स्थान तथा प्रकाश के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं। इसका आशय है ये मुख्य पादपों का भोजन, स्थान, प्रकाश आदि का उपयोग स्वयं कर लेते हैं। ये वृद्धिकारक पोषकों का भी उपयोग कर लेते हैं, जिससे मुख्य फसल इससे प्रभावित होती है तथा उत्पादन कम हो जाता है।

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प्रश्न 18.
कीट - पीड़क फसल को कैसे नुकसान पहूँचाते हैं? पादप रोग के कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
कीट: पीड़क फसल के पौधों को तीन प्रकार से नुकसान पहुँचाते हैं।

  1. ये मूल, तने तथा पत्तियों को काट देते हैं।
  2. ये यौधों के विभिन्न भागों से कोशिकीय रस चूस लेते हैं।
  3. ये तने तथा फलों में छिद्र कर देते हैं।

इस प्रकार ये फसल को नष्ट कर देते हैं। इससे उत्पादन कम हो जाता है। पौधों में रोग - बैक्टीरिया, कवक तथा वायरस जैसे रोगकारकों द्वारा होता है। ये मिट्टी, पानी तथा वायु में उपस्थित रहते हैं।

प्रश्न 19.
खरपतवार नियंत्रण के उपाय लिखिए।
उत्तर:
खरपतवार नियंत्रण के लिए निम्न चार विधियाँ अपनाई जाती हैं।

  1. यांत्रिक नियंत्रण: काटकर हटाना, गाड़ देना, सुखी देना, रेचन कर समाप्त करना, अत्यधिक भृद्धि देकर समाप्त करना।
  2. जैविक नियंध्रण: खरपत्तवार को नुकसान पहुँचाने वाले जीबों का परिवर्धम करमा।
  3.  रासायनिक नियंत्रण: स्पर्श द्वारा (चयनित व अचयनित), वृद्धि नियत्रको द्वारा, मृदा का जावराहत करक।
  4. संवर्ध नियंत्रण: फसल प्रतिस्पर्धा, फसल चक्र अपनाना, आग द्वारा जलाना।

प्रश्न 20. 
कीट तथा रोग नियंत्रण कैसे करते हैं? इसमें क्या कठिनाई सामने आती है?
उत्तर:
कीट तथा रोग नियंत्रण के लिए सामान्यतया पीड़कनाशी रसायनों का उपयोग किया जाता है। इसमें शाकनाशी, कीटनाशी तथा कवकनाशी आते हैं। इन रसायनों को फसल के पौधों पर छिड़कते हैं अथवा बीज और मिट्टी के उपचार के लिए उपयोग करते हैं। लेकिन इनके अधिकाधिक उपयोग से बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जैसे कि ये कई पौधों व जानवरों के लिए विषैले हो सकते हैं और पर्यावरण प्रदूषण का कारण बन जाते हैं।

प्रश्न 21. 
अच्छे पशुपालक द्वारा पशुओं के स्वास्थ्य तथा उनके आवास की देखरेख में क्या - क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए?
उत्तर:
पशुओं के स्वास्थ्य तथा उनके आवास की देखरेख के लिए निम्न सावधानियाँ रखनी चाहिए।

  1. इसके शरीर की उचित सफाई आवश्यक है। शरीर पर झड़े हुए बाल तथा धूल को हटाने के लिए नियमित रूप से पशु की सफाई करनी चाहिए।
  2. पशुओं का आवास छतदार एवं रोशनदान युक्त होना चाहिए। ऐसा आवास उन्हें वर्षा, गर्मी तथा सर्दी से बचाता है।
  3. आवास का फर्श ढलवां होना चाहिए, जिससे वह साफ व सूखा रहे।

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प्रश्न 22. 
दुधारू पशुओं के आहार के बार मे आप क्या जानत ही?
उत्तर:
दूध देने वाले पशु की आहार की आवश्यकता दो प्रकार की होती है

  1. वह आहार, जो उसके स्वास्थ्य को अच्छा बनाए रखने में सहयोग दे।
  2. वह आहार, जो दूध उत्पादन को बढ़ाये।

पशु आहार के अन्तर्गत दो तरह के आहार सामान्यतः आते हैं।
(a) मोटा चारा (रुक्षांश) जो प्राय: रेशे होते हैं।
(b) सांद्र जिसमें प्रोटीन तथा अन्य पोषक तत्व होते हैं। पशु को एक संतुलित आहार की आवश्यकता होती है, जसमें उचित मात्रा में सभी पोषक तत्व हों। ऐसे पोषक तत्वों के अतिरिक्त कुछ सूक्ष्म पोषक तत्व भी मिलाए जाते हैं तो दुधारू पशुओं को स्वस्थ रखते हैं तथा दुग्ध उत्पादन को बढ़ाते हैं।

प्रश्न 23. 
दूध देने वाले पशुओं में किन रोगों के होने की सम्भावना रहती है?
उत्तर:
पशु अनेक रोगों से ग्रसित हो सकते हैं। दूध देने वाले पशु की आहार लेने की क्षमता तथा दिनचर्या ननियमित हो जाने पर समझना चाहिए कि वह अस्वस्थ है। पशुओं में दो प्रकार के परजीवी पाये जाते हैं (i) बाह्य रजीवी (ii) अन्त:परजीवी। बाह्य परजीवी त्वचा पर रहते हैं, जिससे त्वचा रोग हो सकता है। अन्तःपरजीवी जैसे कीड़े, भामाशय तथा आंत को तथा पर्णकृमि (फ्लूक) यकृत को प्रभावित करते हैं। इनमें संक्रामक रोग बैक्टीरिया तथा तारायस द्वारा होते हैं। अनेक विषाणु तथा जीवाणु जनित रोगों से पशुओं को बचाने के लिए टीके लगवाने चाहिए।

प्रश्न 24. 
मुर्गी की अच्छी नस्ल कैसे तैयार करत ह? इसम क्या गुण आप चाही है। 
उत्तर:
मुर्गी की नई किस्म बनाने के लिए देसी मुर्गी जैसे एसिल तथा विदेशी जाता है। निम्नलिखित गुणों के लिए नई - नई किस्में विकसित की जाती हैं।

  1. हैजों की संख्या अधिक हो तथा उनकी गुणवत्ता अच्छी हो।
  2. छोटे कद के ब्रौलर माता - पिता द्वारा चूजों के व्यावसायिक उत्पादन हेतु।
  3. इनमें गर्मी अनुकूलन क्षमता / उच्च तापमान को सहने की क्षमता हो।
  4. इनकी देखभाल कम खर्च में की जा सकती हो।
  5. अण्डे देने वाले तथा ऐसी क्षमता वाले पक्षी जो कृषि के उपोत्पाद से प्राप्त सस्ते रेशेदार आहार का उपभोग सकें।

प्रश्न 25. 
मुर्गियों को रोगों से कैसे बचाया जा सकता है?
उत्तर:
मुर्गियों में कई रोग जीवाणु, विषाणु, कवक, परजीवी तथा पोषणहीनता के कारण हो सकते हैं। इनसे बचाने के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिएं।

  1. मुर्गियों की सफाई तथा स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना आवश्यक है।
  2. नियमित रूप से रोगाणुनाशी पदार्थों का छिड़काव करते रहना चाहिए।
  3. मुर्गियों को संक्रामक रोगों से बचाने के लिए नियमित टीके लगवाने चाहिए।

इस प्रकार हम इन सावधानियों के आधार पर इन्हें महामारी आदि से बचा सकते हैं।

प्रश्न 26.
मछली उत्पादन के क्या स्रोत हैं? समझाइए। 
उत्तर:
मछली उत्पादन के स्रोत दो प्रकार के हैं। 
(1) लवणीय या खारे जल के स्रोत: समुद्र मछली उत्पादन के लवणीय जल स्रोत हैं। लवणीय जल में मछलियों की कुछ विशेष प्रजातियाँ मिलती हैं। जैसे - पॉमफ्रेट, टुना, मैकर्ल, सारडाइन और बॉम्बे डक। भारत का समुद्री मछली संसाधन क्षेत्र 7500 किलोमीटर समुद्री तट तथा इसके अतिरिक्त समुद्र की गहराई तक है। ये मछली उत्पादन के प्राकृतिक स्रोत हैं।

( 2 ) अलवणीय या ताजे जल के स्रोत: नदियाँ, नाले, तालाब और पोखर मछली उत्पादन के अलवणीय या ताजे जल के स्रोत हैं। ताजे जल की कुछ प्रमुख प्रजातियाँ हैं-कटला, मृगल, रोहू, सिल्वर कार्प, ग्रास कार्प एवं कॉमन कार्प।

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प्रश्न 27.
मिश्रित मछली संवर्धन से क्या आशय है?
उत्तर:
जब 5 अथवा 6 प्रजातियों की मछलियों का संवर्धन एक ही जलक्षेत्र में किया जाता है, तब इसे मिश्रित संवर्धन कहते हैं। इस प्रक्रम में मछलियों की ऐसी प्रजातियों को चुना जाता है जो भिन्न-भिन्न प्रकार के आहार लेती हों। जैसे कटला अपना भोजन जल की सतह से, रोहु जल के मध्य भाग से व मृगल तथा कॉमन कार्प जल की तली से भोजन लेती हैं। इस प्रकार आहार के लिए उनमें कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती।

प्रश्न 28.
मिश्रित मछली संवर्धन में किस कठिनाई का सामना करना पड़ता है ?
उत्तर:
मिश्रित मछली संवर्धन में सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि इनमें से कई मछलियाँ केवल वर्षा ऋतु में ही जनन करती हैं। यहाँ तक कि यदि मत्स्य डिम्भ देशी नस्ल से मिल जाएँ तो अन्य स्पीशीज के डिम्भों के साथ मिल सकते हैं। अत: मछली संवर्धन के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले डिम्भों का उपलब्ध न होना एक गम्भीर समस्या है। इसके समाधान के लिए ऐसी विधियाँ खोजी जा रही हैं कि तालाब में इन मछलियों का संवर्धन हार्मोन के उपयोग द्वारा किया जा सके। डससे हमारी आवश्यकतानसार शद्ध मछली के डिम्भ प्राप्त होते रहेंगे।

प्रश्न 29.
मधुमक्खी का पालन एक अच्छा उद्यम माना जाता है, क्यों ?
उत्तर:
मधुमक्खी पालन निम्न कारणों से एक अच्छा उद्यम माना जाता है।

  1.  शहद का उपयोग सर्वत्र होता है।
  2. मधुमक्खी पालन में पूँजी निवेश कम होता है और यह किसानों को धनार्जन का एक अतिरिक्त साधन उपलब्ध कराता है।
  3. शहद के अलावा इससे मोम का भी उत्पादन होता है जो कई औषधियों के बनाने में उपयोगी है।
  4. यह कृषि - क्षेत्रों पर ही चलाया जा सकता है। इसके लिए किसी स्थान विशिष्ट की आवश्यकता नहीं होती।


प्रश्न 30.
व्यावसायिक स्तर पर पाली जाने वाली मधुमक्खी की चार प्रजातियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
व्यावसायिक स्तर पर सामान्यतया निम्न मधुमक्खियों को पाला जाता है।

  1.  ऐपिस सेरना इंडिका (सामान्य भारतीय मधुमक्खी)
  2. ऐपिस डोरसेटा (एक शैल मधुमक्खी।
  3. ऐपिस फ्लोरी (लिटिल मधुमक्खी)
  4. ऐपिस मेलीफेरा (इटली की मधुमक्खी)।


प्रश्न 31.
व्यावसायिक मधु उत्पादन के लिए पाली जाने वाली ऐपिस मेलीफेरा मधुमक्खी की क्या विशेषता है?
उत्तर:
ऐपिस मेलीफेरा इटली की एक मधुमक्खी है। इसमें निम्न विशेषताएँ पाई जाती हैं।

  1. इस मधुमक्खी में मधु एकत्र करने की क्षमता बहुत अधिक होती है।
  2. ये डंक भी कम मारती हैं।
  3. ये निर्धारित छत्ते में काफी समय तक रहती हैं।
  4. प्रजनन तीव्रता से करती हैं।


प्रश्न 32.
कृषि प्रणालियों को कितने चरणों में बाँटा जा सकता है ?
उत्तर:
कृषि प्रणालियों को निम्नलिखित तीन चरणों में बाँटा जा सकता है।

  1. बीज का चुनना।
  2. फसल की उचित देखभाल।
  3. खेतों में उगी फसल की सुरक्षा तथा कटी हुई फसल को हानि से बचाना।


प्रश्न 33.
फसल उत्पादन में सुधार की प्रक्रिया में प्रयुक्त गतिविधियों को कितने वर्गों में बाँटा गया है ?
उत्तर:
फसल उत्पादन में सुधार की प्रक्रिया में प्रयुक्त गतिविधियों को निम्न तीन वर्गों में बाँटा गया है।

  1. फसल की किस्मों में सुधार।
  2. फसल उत्पादन प्रबंधन।
  3. फसल सुरक्षा प्रबंधन।

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प्रश्न 34.
मधु की कीमत अथवा गुणवत्ता किस पर निर्भर करती है?
उत्तर:
मधु की कीमत अथवा गुणवत्ता मधुमक्खियों के चरागाह अर्थात् उनको मधु एकत्र करने के लिए उपलब्ध फूलों पर निर्भर करती है। चरागाह की पर्याप्त उपलब्धता के अतिरिक्त फूलों की किस्में मधु के स्वाद को निर्धारित करती हैं।

प्रश्न 35.
'मिश्रित फसल' एवं 'अंतराफसलीकरण' में अन्तर कीजिए।
उत्तर:

मिश्रित फसल

अंतराफसलीकरण

1. दो या अधिक फसलों को बिना किसी पैटर्न के एक साथ उगाते हैं।

1. दो या अधिक फसलों को एक साथ एक निर्दिष्ट पैटर्न पर उगाते हैं।

2. इससे फसल नष्ट होने पर भी फसल उत्पादन की आशा रहती है।

2. इसके द्वारा पीड़क व रोगों को एक प्रकार की फसल के सभी पौधों में फैलने से रोका जा सकता है।

3. उदाहरण: गेहूँ - चना, मूँगफली - सूर्यमुखी।

3. उदाहरण: सोयाबीन - मक्का, बाजरा - लोबिया।


निबन्धात्मक प्रश्न:

प्रश्न 1.
पौधों की वृद्धि के लिए किन पोषक तत्वों की आवश्यकता है? ये पौधे कैसे प्राप्त करते हैं?
उत्तर:
पौधों को वृद्धि के लिए पोषक पदार्थों की आवश्यकता होती है, जिन्हें ये पौधे हवा, जल तथा मृदा से प्राप्त करते हैं। पौधों को 16 पोषक पदार्थ आवश्यक होते हैं। हवा से पादपों को कार्बन तथा ऑक्सीजन मिलती है; पानी से हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन मिलती है; शेष 13 तत्व पौधे मृदा से अवशोषित करते हैं। इन 13 में से 6 जिनकी पादपों को अधिक मात्रा चाहिए, वृहत् पोषक कहलाते हैं। शेष 7 पोषकों की आवश्यकता कम होती है, इसलिए ये सूक्ष्म पोषक तत्व कहलाते हैं। नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटैशियम, कैल्सियम, सल्फर एवं मैग्नीशियम वृहत् पोषक तत्व हैं; जबकि आयरन, मैंगनीज, बोरॉन, जिंक, कॉपर, क्लोरीन और मॉलिब्डेनम सूक्ष्म पोषक तत्व हैं।

इन पोषकों की कमी के कारण पौधों की शारीरिक प्रक्रियाओं सहित जनन, वृद्धि तथा रोगों के प्रति प्रवृत्ति पर प्रभाव पड़ता है। अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए मिट्टी में खाद तथा उर्वरक के रूप में इन पोषकों को मिलाना आवश्यक है।

प्रश्न 2.
पौधों से हमें क्या - क्या भोज्य पदार्थ मिलते हैं? एक वर्ष में हम कितनी फसलें ले सकते हैं? डसका आधार क्या रहता है?
उत्तर:
पौधों से प्राप्त होने वाले भोज्य पदार्थ निम्न हैं
(1) अनाज: पौधों से हमें गेहूं, चावल, ज्वार, बाजरा, मक्का आदि अनाज के रूप में प्राप्त होते हैं। ये कार्बोहाइड्रेट के भण्डार कहे जाते हैं, जिनसे हमें ऊर्जा प्राप्त होती है।

( 2) बालें: मटर, चना, उड़द, मूँग, अरहर, मसूर का ठपयोग दालों के रूप में करते हैं। इनमें प्रोटीन की प्रचुर मात्रा होती है, जो शरीर संरचना के लिए आवश्यक है।

(3) तिलहन: सोयाबीन, मूँगफली, तिल, अरण्ड, सरसों, अलसी तथा सूरजमुखी के बीजों से तेल निकाला जाता है। यह हमें बसा देता हैं जो ऊर्जा का क्षोत हैं।

(4) फल तथा सब्जियाँ:
केला, नींबू, संतरा, आलू, प्याज, बैंगन, टमाटर, बंद गोभी, फूल गोभी, गाजर, पालक, आम, सेब आदि से हमें खानज लवण व विटामिन प्राप्त होते हैं, जो शरीर प्रतिरोधकता बढ़ाने में सहयोग करते हैं। एक वर्ष में सामान्यतया दो फसलें हम भूमि से प्राप्त करते हैं। फसलों के लिए विभिन्न जलवायु, तापमान तथा दीप्तिकाल की आवश्यकता होती है, जिससे उनकी समुचित वृद्धि हो सके और अपना जीवन चक्र पूरा कर सकें। दीप्तिकाल सूर्य के प्रकाश से संबंधित है। हम जानते हैं कि सूर्य का प्रकाश वर्षभर में विभिन्न समय में विभिन्न ताप देता है जो पौधों में पुष्पन तथा वृद्धि के लिए उपयुक्त रहता है। इसी आधार पर दो प्रकार की फसलें हम एक वर्ष में प्राप्त करते हैं, जो निम्न प्रकार हैं।

प्रश्न 3.
फसल सुधारने के क्या उद्देश्य हैं? पैदावार बढ़ाने के लिए क्या कार्य किए गए?
उत्तर:
अधिक पैदावार प्राप्त करने के फसल के बीजों तथा अन्य में सुधार के निम्न उद्देश्य हैं।

  1. अधिक उपज प्राप्त करना।
  2. उपज में अधिक प्रोटीन, तेल या गन्ध होना।
  3.  कीट, बीमारियों, सूखे, ठण्ड, भूमि की लवणता जैसी विपरीत परिस्थितियों के प्रति प्रतिरोधकता उत्पन्न
  4. करना, जिससे विपरीत स्थितियों में भी उचित उपज प्राप्त हो सके।
  5.  कम समय में एकरूपता से परिपक्व होने वाली किस्म प्राप्त करना।
  6. पादप के लम्बा, बौना, शाखित या अन्य वांछित प्रकार का होना।
  7.  पादप की प्रकाश व तापक्रम के प्रति संवेदनशीलता कम करना ताकि किसी फसल को वर्तमान सीमाओं के बाहर भी उगाया जा सके।
  8. अनुकूलनता बढ़ाना ताकि कोई भी फसल विभिन्न पर्यावरणीय स्थितियों में उत्पन्न की जा सके।


पैदावार में उन्नति के लिए वैज्ञानिक पद्धतियों के आधार पर विभिन्न कृषि प्रणालियाँ अपनाई गईं। पैदावार की उन्नति निम्न तीन बिन्दुओं को आधार मानकर बढ़ाई गई।

  1. फसल की किस्मों में सुधार
  2. फसल - उत्पादन प्रबन्धन
  3. फसल सुरक्षा प्रबन्धन।

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प्रश्न 4.
किस्मों में सुधार के विभिन्न कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
किस्मों में सुधार के प्रमुख कारक निम्न हैं।
(i) उच्च तापमान: इसमें प्रति एकड़ फसल की उत्पादन क्षमता में वृद्धि की गई। इसके लिए अच्छे किस्म के बीज का उपयोग किया गया।

(ii) उन्नत किस्में: फसल उत्पाद की गुणवत्ता, प्रत्येक फसल में भिन्न होती है। जैसे-दालें प्रोटीनयुक्त हों,

(iii) जैविक तथा अजैविक प्रतिरोधकता: जैविक (रोग, कीट तथा निमेटोड) तथा अजैविक (सूखा, क्षारता, जलाक्रान्ति, गरमी, ठण्ड तथा पाला) परिस्थितियों के कारण फसल उत्पादन कम हो सकता है। इन परिस्थितियों को सहन करने वाली किस्में फसल उत्पादन में सुधार ला सकती हैं।

(iv) परिपक्वन काल में परिवर्तन: फसल को बोने से लेकर कटाई तक कम से कम सुमय लगना आर्थिक दृष्टि से अच्छा रहता है। इससे एक वर्ष में कई फसलें लेकर किसान की आर्थिक स्थिति सुधर सकती है। समान परिपक्वन से कटाई आसानी से हो जाती है और कटाई के दौरान होने वाली फसल की हानि कम हो जाती है।

(v) व्यापक अनुकूलता: व्यापक अनुकूलता वाली किस्मों का विकास करना विभिन्न. पर्यावरणीय परिस्थितियों में फसल उत्पादन को स्थायी करने में सहायक होगा। एक ही किस्म को विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न जलवायु में उगाया जा सकता है।

(vi) ऐच्छिक सस्य विज्ञान गुण: चारे वाली फसलों के लिए लम्बी तथा सघन शाखाएँ ऐच्छिक गुण हैं। अनाज के लिए बौने पौधे उपयुक्त हैं, जिससे पोषक कम खर्च हो। इस प्रकार सस्य विज्ञान वाली किस्में अधिक उत्पादन प्राप्त करने में सहायक होती हैं।

प्रश्न 5.
खाद क्या है? यह कितने प्रकार की होती है? समझाइए।
उत्तर:
खाद: खाद में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा अधिक होती है तथा यह मिट्टी को अल्प मात्रा में पोषक प्रदान करते हैं। खाद को जन्तुओं के अपशिष्ट तथा पौधों के कचरे के अपघटन से तैयार किया जाता है। यह मिट्टी को पोषकों एवं कार्बनिक पदार्थों से परिपूर्ण करती है और मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती है।

खाद बनाने की प्रक्रिया में विभिन्न जैव पदार्थ के उपयोगों के आधार पर खाद को निम्न वर्गों में विभाजित किया जाता है।
(i) कम्पोस्ट तथा वर्मी कम्पोस्ट: कम्पोस्टीकरण प्रक्रिया में कृषि अपशिष्ट पदार्थ, जैसे-पशुधन का मलमूत्र (गोबर आदि), सब्जी के छिलके एवं कचरा, जानवरों द्वारा परित्यक्त चारे, घरेलू कचरे, सीवेज कचरे, फेंके हुए खरपतवार आदि को गड्ढों में विगलित करते हैं। कम्पोस्ट में कार्बनिक पदार्थ तथा पोषक बहुत अधिक मात्रा में होते हैं। कम्पोस्ट को केंचुओं द्वारा पौधों तथा जानवरों के अपशिष्ट पदार्थों के शीघ्र निरस्तीकरण की प्रक्रिया द्वारा बनाया जाता है, जिसे वर्मी कम्पोस्ट कहते हैं।

(ii) हरी खाद: फसल उगाने से पहले खेतों में कुछ पौधे, जैसे - पटसन, मूँग अथवा ग्वार आदि उगा देते हैं और तत्पश्चात् उन पर हल चलाकर खेत की मिट्टी में मिला दिया जाता है। ये पौधे हरी खाद में परिवर्तित हो जाते हैं, जो मिट्टी को नाइट्रोजन तथा फॉस्फोरस से परिपूर्ण करने में सहायक होते हैं।

प्रश्न 6.
सिंचाई से क्या आशय है? सिंचाई के मुख्य स्रोत क्या हैं? समझाइए।
उत्तर:
भारत में सिंचाई: फसलों को कृत्रिम रूप से पानी देने की क्रिया को सिंचाई करना कहते हैं। भारत में अधिकांश खेती वर्षा पर आधारित है अर्थात् अधिकांश क्षेत्रों में फसल की उपज, समय पर मानसून आने तथा वृद्धिकाल में उचित वर्षा होने पर निर्भर करती है। अतः कम वर्षा होने पर फसल उत्पादन कम हो जाता है। इसलिए अधिकाधिक कृषि भूमि को सिंचित करने के लिए बहुत से उपाय किए जाते हैं।

भारत में पानी के अनेक स्रोत हैं और विभिन्न प्रकार की जलवायु। इन परिस्थितियों में, विभिन्न प्रकार की सिंचाई की विधियाँ पानी के स्रोत की उपलब्धता के आधार पर अपनाई जाती हैं। ये स्रोत.मुख्यत: निम्न हैं।
(i) कुएं: यह दो प्रकार के होते हैं - खुदे हुए कुएं और नलकूप। खुदे हुए कुएं द्वारा भूमिगत जल स्तरों में स्थित पानी को एकत्रित किया जाता है। नलकूप में पानी गहरे जल स्तरों से निकाला जाता है। इन कुओं से सिंचाई के लिए पानी को पंप द्वारा निकाला जाता है।

(ii) नहरें: यह सिंचाई का एक बहुत विस्तृत तथा व्यापक तंत्र है। इनमें पानी एक या अधिक जलाशयों अथवा नदियों से आता है। मुख्य नहर से शाखाएँ निकलती हैं, जो विभाजित होकर खेतों में सिंचाई करती हैं।

(iii) नदी जल उठाव प्रणाली: जिन क्षेत्रों में जलाशयों से कम पानी मिलने के कारण नहरों का बहाव अनियमित अथवा अपर्याप्त होता है, वहाँ जल उठाव प्रणाली अधिक उपयोगी रहती है। नदियों के किनारे स्थित खेतों में सिंचाई करने के लिए नदियों से सीधे ही पानी निकाला जाता है।

(iv) तालाब: छोटे जलाशय, जो छोटे क्षेत्रों में बहे हुए पानी का संग्रह करते हैं, तालाब का रूप ले लेते हैं।

प्रश्न 7.
एक किसान ने अपने खेत में निरन्तर चार वर्षों तक एक ही किस्म की फसल बोई, जिससे उसके उत्पादन में निरन्तर कमी व रोगजनकों का प्रभाव बढ़ता रहा। इसका कारण एवं उपचार बताइए।
उत्तर:
किसान द्वारा निरन्तर चार वर्षों तक एक ही किस्म की फसल बोने से भूमि में विशेष प्रकार के पोषक तत्वों की कमी हो जाती है, साथ ही फसल में लगने वाले रोगों की वृद्धि भी हो जाती है। यही कारण है कि उसके फसल उत्पादन में निरन्तर कमी आती गई। इस समस्या का निवारण करने के लिए फसल चक्र अपनाना चाहिए। एक फसल को काटने के पश्चात् दूसरी उपयुक्त फसल बोना तथा पुन: पहली फसल के स्थान पर दूसरी उपयुक्त फसल बोने को फसल चक्र कहते हैं।
फसल चक्र का महत्त्व्:
(i) कई प्रकार के विषैले पदार्थ व जैविक अम्ल जो फसल द्वारा उत्सर्जित किये जाते हैं, भूमि में एकत्रित हो जाते हैं।

(ii) एक ही फसल बार - बार उगाने से विशिष्ट पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। इनकी फसल चक्र अपनाकर पूर्ति की जा सकती है।

(iii) विशेष प्रकार का विशिष्ट रोगजनक जीव अपनी निरन्तरता बनाये रखता है जो कि हानिकारक है। अत: फसल चक्र फसल प्रबन्धन में एक आवश्यक तत्व है जिससे कि रोगजनक की समाप्ति हो जाती है व विभिन्न फसलों से मृदा वातावरण पर लाभप्रद भौतिक, रासायनिक व जैविक प्रभाव पड़ता है, जिससे कि विरोधी जीवाणुओं की वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए अरहर, कपास, मटर, चना व अलसी का मुरझाने वाला रोग, बाजरे का कंड और गेहूँ व बाजरे का मोलिया रोग।

(iv) सभी फसलों के लिए नाइट्रोजन एक प्रमुख उर्वरक है व फसल अर्थव्यवस्था इसी पर आधारित है, परन्तु दलहनी फसलें खाद्यान्न फसलों के एकान्तर में उगाई जाती हैं। इसका कारण यह है कि इनकी जड़ों की गाँठों के अन्दर पाए जाने वाली जीवाणु - राइजोबियम एवं अन्य मृदा जीवाणु जैसे नीलहरित जीवाणु, एजोटोबैक्टर आदि, भूमि उर्वरता को बढ़ाने व संधारण करने में बहुत उपयोगी हैं।

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प्रश्न 8.
फसल सुरक्षा प्रबंधन से क्या आशय है? यह कार्य कैसे किया जाता है?
उत्तर:
फसल सुरक्षा प्रबंधन-खेतों में फसल को हानि पहुँचाने वाले दो कारक हैं:

  1. खरपतवार
  2. कीट तथा पीड़क। इन्हें रोकने के लिए किए गए उपाय सुरक्षा प्रबंधन हैं। इसके लिए निम्न उपाय किये जा सकते हैं।


(1) खंरपतवार:
अनचाहे अथवा अनावश्यक पादप जो फसलों के साथ उग जाते हैं, उन्हें खरपतवार कहते हैं। खरपतवार पोषण, जल एवं प्रकाश की प्राप्ति के लिए फसल से प्रतिस्पर्धा करती है तथा फसल उत्पादन कम हो जाता है। गेहूँ एवं चावल के खेतों में उगने वाली खरपतवार में बथुआ, चौलाई, जवी एवं घास आदि हैं।

(2) कीट तथा पीड़क-प्राय: कीट-पीड़क तीन प्रकार से पौधों पर आक्रमण करते हैं।

  1. ये मूल तने तथा पत्तियों को काट देते हैं।
  2. ये पौधों के विभिन्न भागों से कोशिकीय रस चूस लेते हैं।
  3. ये तने तथा फलों में छिद्र कर देते हैं।


इस प्रकार ये फसल को खराब कर देते हैं और फसल उत्पादन कम हो जाता है।
नियंत्रण के उपाय:
पौधों में रोग बैक्टीरिया, कवक तथा वायरस जैसे रोग कारकों द्वारा होता है। ये मिट्टी, पानी तथा हवा में उपस्थित रहते हैं और इन माध्यमों द्वारा ही पौधों में फैलते हैं।

अत: खरपतवार, कीट तथा रोगों पर नियंत्रण कई विधियों द्वारा किया जा सकता है।इनमें से सर्वाधिक प्रचलित
विधि पीड़कनाशी रसायन का उपयोग है। इसके अन्तर्गत शाकनाशी, कीटनाशी तथा कवकनाशी आते हैं। इन रसायनों को फसल के पौधों पर छिड़कते हैं अथवा बीज और मिट्टी के उपचार के लिए उपयोग करते हैं। लेकिन इनके अधिकाधिक उपयोग से बहुत सी समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं, जैसे कि ये कई पौधों तथा जानवरों के लिए विषैले हो सकते हैं और पर्यावरण प्रदूषण के कारण बन जाते हैं।

यांत्रिक विधि द्वारा भी खरपतवार हटाये जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त निरोधक विधियाँ, जैसे - समय पर फसल उगाना, उचित क्यारियाँ तैयार करना, अंतरा-फसलीकरण तथा फसल चक्र खरपतवार को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं।
पीड़कों पर नियंत्रण पाने के लिए प्रतिरोध क्षमता वाली किस्मों का उपयोग तथा ग्रीष्म काल में हल से जुताई कुछ निरोधक विधियाँ हैं। इस विधि में खरपतवार तथा पीड़कों को नष्ट करने के लिए गर्मी के मौसम में गहराई तक हल चलाया जाता है।

प्रश्न 9.
पशुपालन क्या है? इसके क्या उद्देश्य हैं? नस्ल सुधार के लिए हम किस विधि का उपयोग करते हैं?
उत्तर:
पशुपालन:
पशुधन के प्रबंधन को पशुपालन कहते हैं। इसके अन्तर्गत बहुत से कार्य, जैसे-भोजन देना, प्रजनन तथा रोगों पर नियंत्रण करना आता है। पशुधन के लिए मानवीय व्यवहार के प्रति जागरूकता होने के कारण पशुधन खेती में कुछ परेशानियाँ भी आ गई हैं। अतः उत्पादन बढ़ाने के लिए उसमें सुधार की आवश्यकता है।
पशुपालन के दो उद्देश्य हैं:

  1. दूध के लिए
  2. कृषि कार्य के लिए।


नस्ल सुधार:
दूध देने वाली मादाओं को दुधारू पशु कहते हैं। दूध उत्पादन पशु के दुग्ध स्रवण के काल पर कुछ सीमा तक निर्भर करता है। दूध के स्रवण काल के लिए विदेशी नस्लों जैसे जर्सी, ब्राउन स्विस का चुनाव करते हैं। अच्छी नस्ल के पशु के लिए संकरण विधि का उपयोग करते हैं। इसमें एक ही पशु में ऐच्छिक गुण लाने का प्रयास किया जाता है। उदाहरण के लिए यदि विदेशी नस्ल जर्सी जिसका दुग्ध स्रवण काल अधिक है, का संकरण देशी नस्ल के रेडसिंधी से कराया जाये, जिसमें प्रतिरोधक क्षमता अधिक है तो प्राप्त पशु में दोनों ऐच्छिक गुण (रोग - प्रतिरोधकता व लंबा दुग्ध स्रवण काल) होंगे।

RBSE Class 9 Science Important Questions Chapter 15 खाद्य संसाधनों में सुधार

प्रश्न 10.
मुर्गीपालन की प्रक्रिया को निम्न चरणों के आधार पर समझाइए।
(i) आवास
(ii) रोगों से सुरक्षा।
उत्तर:
(i) मुर्गीपालन के लिए आवास:
मुर्गियों को स्वस्थ रखने के लिए सुरक्षित एवं आरामदायक आवास की आवश्यकता है। यह आवास ढलान वाला होना चाहिए, जिससे पानी का ठहराव नहीं हो। समुचित प्रकाश व हवा भी आवास में रहना आवश्यक है। ब्रौलर (मांस के लिए पाली जाने वाली मुर्गी) की आवास, पोषण तथा पर्यावरण आवश्यकताएँ अण्डे देने वाले कुक्कुटों से अलग हैं। ब्रौलर के भोजन में प्रोटीन व वसा की मात्रा अधिक होती है तो कुक्कुट के आहार में विटामिन Aतथा K की मात्रा अधिक होती है।

(ii) रोगों से सुरक्षा:
जीवाणु, विषाणु, कवक, परजीवी तथा पोषणहीनता के कारण मुर्गियों में कई प्रकार के रोग हो सकते हैं। अतः सफाई तथा स्वच्छता का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसके लिए नियमित रूप से रोगाणुनाशी पदार्थों का छिड़काव आवश्यक है। मुर्गियों को संक्रमण से बचाने के लिए टीका लगवाना चाहिए, जिससे महामारी से ये ग्रसित न हों। इन सावधानियों के बरतने से, रोगों के फैलने की दशा में, कुक्कुट को न्यूनतम हानि होती है।

प्रश्न 11.
मत्स्यकी से क्या आशय है? यह कितने प्रकार की होती है? समझाइए।
उत्तर:
मत्यकी:
इसके अन्तर्गत मछलीपालन आता है। हमारे भोजन में मछली प्रोटीन का एक समृद्ध स्रोत है। इसमें प्रोटीन के अतिरिक्त बहुत से स्वास्थ्यवर्धक खनिज भी मिलते हैं। मछली प्राप्त करने की दो विधियाँ हैं-एक प्राकृतिक स्रोत (जिसे मछली पकड़ना कहते हैं) तथा दूसरा मछलीपालन या मछली संवर्धन है। आवास के आधार पर इन्हें दो भागों में बाँटा गया है।

  1.  समद्री मत्स्यकी
  2. अंत:स्थली मत्स्यकी।


(i) समुद्री मत्यकी:
इसके अन्तर्गत समुद्र अथवा खारे पानी में पाये जाने वाली मछलियाँ आती हैं। भारत का समुद्री मछली संसाधन क्षेत्र 7500 किमी. समुद्री तट तथा इसके अतिरिक्त समुद्र की गहराई तक है। सर्वाधिक प्रचलित समुद्री मछलियाँ पामफ्रेट, मैकर्ल, टुना, सारडाइन तथा बॉम्बेडक हैं। समुद्री मछली पकड़ने के लिए विभिन्न प्रकार के जालों का प्रयोग किया जाता है। सैटेलाइट तथा प्रतिध्वनि ध्वनित्र से खुले समुद्र में मछलियों के बड़े समूह का पता लगाया जा सकता है तथा इससे मछली उत्पादन बढ़ा सकते हैं।

कुछ आर्थिक महत्त्व वाली समुद्री मछलियों का समुद्री जल में संवर्धन भी किया जाता है। इनमें प्रमुख हैंमुलेट, भेटकी तथा पर्ल स्पॉट (पंखयुक्त मछलियाँ), कवचीय मछलियाँ जैसे झींगा, मस्सल तथा ऑएस्टर आदि। भविष्य में समुद्री मछलियों का भण्डार कम होने की अवस्था में इन मछलियों की पूर्ति संवर्धन के द्वारा हो सकती है। इसे समुद्री संवर्धन (मेरीकल्चर) कहते हैं।

(ii) अंतःस्थली मत्स्यकी:
ताजा जल के स्रोत में पाले जाने वाली मछलियाँ इसके अन्तर्गत आती हैं। मछली का संवर्धन हम नाले, तालाब, पोखर में तो करते ही हैं, साथ ही नदीमुख (एस्चुरी) तथा लैगून भी महत्त्वपूर्ण मत्स्य भण्डारण हैं। जब मछलियों का प्रग्रहण अंत:स्थली वाले स्रोतों पर किया जाता है तो उत्पादन अधिक नहीं होता। इन स्रोतों से अधिकांश मछली उत्पादन जल संवर्धन द्वारा ही होता है।
मछली संवर्धन कभी - कभी धान की फसल के साथ भी किया जाता है। अधिक मछली संवर्धन मिश्रित मछली संवर्धन तंत्र से किया जाता है।

इस प्रक्रिया में देशी तथा आयातित प्रकार की मछलियों का प्रयोग किया जाता है। मिश्रित मछली संवर्धन तंत्रों में एक अकेले तालाब में 5 अथवा 6 मछली की स्पीशीज का उपयोग किया जाता है। इनमें ऐसी मछालयों का चयन किया जाता है, जिसमें आहार के लिए प्रतिस्पर्धा न हो तथा उनके आहार की आदत अलग - अलग हो। इससे तालाब के हर भाग में उपलब्ध आहार का उपयोग हो जाता है। जैसे कटला मछली पानी की सतह से अपना भोजन लेती हैं। रोहु मछली तालाब के मध्य क्षेत्र से अपना भोजन लेती है। मृगल तथा कॉमम कार्प तालाब की तली से भोजन लेती हैं। ग्रास कार्प खरपतषार खाती है । इस प्रकार ये सभी मछलियाँ साथ - साध रहते हुए भी बिना स्पर्धा के अपना - अपना आहार लेती हैं। इससे तालाब से मछली के उत्पादन में वृद्धि होती है।

Prasanna
Last Updated on May 12, 2022, 5:19 p.m.
Published May 11, 2022