Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit व्याकरणम् प्रत्ययज्ञानम् Questions and Answers, Notes Pdf.
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हिन्दी भाषा में जो ‘क्रिया' शब्द से कही जाती है, अंग्रेजी भाषा में जो 'वर्ब' शब्द से कही जाती है, वह क्रिया संस्कृत भाषा में 'धातु' नाम से कही जाती है। धातु से पूर्व जिसका प्रयोग होता है, वह 'उपसर्ग' होता है। उपसर्ग के प्रयोग से उस धातु के अर्थ में आंशिक परिवर्तन होता है। धातु के अन्त में जिसका प्रयोग किया जाता है, वह 'प्रत्यय' होता है। प्रत्यय के संयोग से धातु का एक निश्चित अर्थ युक्त भाव प्रकट होता है। संस्कृत-व्याकरण में अनेक प्रत्यय हैं।
प्रत्ययों के भेद-प्रत्ययों के मुख्यतः तीन भेद होते हैं। वे क्रमशः इस प्रकार हैं -
1. कृत्-प्रत्ययाः - जिन प्रत्ययों का प्रयोग धातु (क्रिया) के बाद किया जाता है, वे कृत् प्रत्यय कहलाते हैं। यथा -
‘कृ + तव्यत् = कर्त्तव्यम्
पठ् + अनीयर् = पठनीयम्
2. तद्धितप्रत्ययाः - जिन प्रत्ययों का प्रयोग संज्ञा, सर्वनाम आदि शब्दों के बाद किया जाता है, वे तद्धित प्रत्यय कहलाते हैं।
उपगु + अण् = औपगवः
दशरथ + इञ् = दाशरथिः
धन + मतुप् = धनवान्
3. स्त्रीप्रत्ययाः - जिन प्रत्ययों का प्रयोग पुल्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग में परिवर्तित करने के लिए किया जाता है, वे स्त्री प्रत्यय कहलाते हैं।
यथा -
कुमार + ङीप् = कुमारी
अज + टाप् = अजा
कुछ प्रमुख प्रत्यय निम्नलिखित हैं -
क्त्वा' प्रत्यय - एक क्रिया जहाँ पूर्ण हो जाती है। उसके बाद दूसरी क्रिया प्रारम्भ नहीं होती है। इस स्थिति में प्रथम सम्पन्न क्रिया 'पूर्वकालिकी' कही जाती है। जो प्रारम्भ नहीं हुई है वह क्रिया 'उत्तरकालिकी' होती है। दोनों क्रियाओं का कर्ता एक ही होता है। यहाँ 'पूर्वकालिकी' क्रिया के ज्ञान के लिए 'क्त्वा' प्रत्यय का प्रयोग होता है। क्त्वा' प्रत्यय 'कृत्वा' (कर या कर के या करने के बाद) इस अर्थ में होता है। क्त्वा' प्रत्यय में से प्रथम वर्ण 'क' वर्ण के इत्संज्ञा करने से लोप हो जाता है। केवल 'त्वा' शेष रहता है। धातु से पहले उपसर्ग नहीं होता है। 'त्वा' प्रत्यय युक्त शब्द 'अव्यय' शब्द होते हैं अर्थात् इनके रूप नहीं चलते हैं। उदाहरण के लिए -
रमेशः पठित्वा ग्रामं गच्छति।
मोहनः कथां कथयित्वा हसति।
सुरेशः आपणं गत्वा वस्तूनि क्रीणाति।
महेशः चिन्तयित्वा एव वदति।
ल्यप् प्रत्यय - 'ल्यप् प्रत्यय 'क्त्वा' प्रत्यय के समान ही अर्थवाला होता है। जहाँ धातु से पहले उपसर्ग होता है, वहाँ धातु के बाद कृत्वा' (करके) इस अर्थ में 'ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग होता है। 'ल्यप् प्रत्यय में से प्रथम वर्ण 'ल' का तथा अन्तिम वर्ण 'प्' का लोप हो जाता है। केवल 'य' शेष रहता है। ल्यप् प्रत्यययुक्त शब्द अव्यय होते हैं अर्थात् इनके भी रूप नहीं चलते हैं। संक्षेप में हम यह जान सकते हैं कि उपसर्ग रहित धातु के बाद क्त्वा' एवं उपसर्गयुक्त धातु के बाद 'ल्यप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है।
'तुमन' प्रत्यय - 'तुमुन्' प्रत्यय का प्रयोग हिन्दी भाषा के 'को' अथवा 'के लिए' इस अर्थ में होता है। 'तुमुन्' प्रत्यय से 'मु' के 'उ' वर्ण की और 'न्' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'तुम्' शेष रहता है। 'तुमुन्' प्रत्ययान्त शब्द अव्यय शब्द होते हैं। अर्थात् इन शब्दों के रूप नहीं चलते हैं। उदाहरण के लिए -
रामः संस्कृतं पठितुं गच्छति।
सीता भ्रमितुम् उद्यानं याति।
मोहनः कथा श्रोतुं तीव्र धावति।
गणेशः भोजनं खादितुं भोजनालयं पश्यति।
अब 'तुमुन्' प्रत्यय युक्त शब्दों की एक तालिका अभ्यास हेतु दी जा रही है। -
'तरप्' प्रत्यय - जहाँ दो की तुलना में एक की विशिष्टता अथवा अधिकता प्रकट होती है, वहाँ 'तरप्' प्रत्यय का · प्रयोग किया जाता है। इस प्रत्यय का प्रयोग प्रायः विशेषण शब्दों के समान होता है। 'तरप्' प्रत्यय के अन्तिम वर्ण 'प्' की इत्संज्ञा और लोप हो जाता है। केवल 'तर' शेष रहता है। 'तरप्' प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिंग में 'राम' के समान, स्त्रीलिंग में 'रमा' के समान तथा नपुंसकलिंग में 'फल' के समान चलते हैं।
'तरप्' प्रत्ययान्ताः शब्दाः
'तमप्' प्रत्यय - जहाँ बहुतों (अनेक वस्तुओं) की तुलना में एक की विशेषता अथवा अधिकता दिखलाई जाती है, वहाँ 'तमप्' प्रत्यय का प्रयोग होता है। 'तमप्' प्रत्यय का प्रयोग प्रायः विशेषण शब्दों के समान होता है। - 'तमप्' प्रत्यय के अन्तिम वर्ण 'प्' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'तम् शेष रहता है। 'तमप्' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में 'राम' के समान, स्त्रीलिंग में 'रमा' के समान तथा नपुंसकलिंग में 'ज्ञान' के समान चलते हैं।
'तमप' प्रत्ययान्तशब्दाः
'क्त' और 'क्तवतु' प्रत्यय - जब किसी भी कार्य की समाप्ति होती है तब उसकी समाप्ति का बोध कराने के लिए धातु से क्त और क्तवतु प्रत्यय होते हैं। अर्थात् इन दोनों प्रत्ययों का प्रयोग भूतकाल अर्थ में होता है। ये दोनों प्रत्यय व्याकरणशास्त्र में 'निष्ठा' संज्ञा शब्द से कहे जाते हैं। 'क्त' प्रत्यय के प्रथम वर्ण की अर्थात् 'क्' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'त' शेष रहता है। यह 'क्त' प्रत्यय धातु से भाववाच्य अथवा कर्मवाच्य में प्रयुक्त होता है। 'क्त' प्रत्ययान्त शब्दों के रूप पुल्लिंग में 'राम' के समान, स्त्रीलिंग में 'रमा' के समान और नपुंसकलिंग में 'फल' के समान चलते हैं। क्तवतु' प्रत्यय का प्रयोग कर्तृवाच्य में होता है। इस प्रत्यय के प्रथम वर्ण अर्थात् ककार 'क्' और अन्तिम वर्ण के 'उ' की इत्संज्ञा और लोप होता है। केवल 'तवत्' शेष रहता है। क्तवतु' प्रत्ययान्त शब्द पुल्लिंग में 'भगवत्' के समान, स्त्रीलिंग में 'नदी' के समान और नपुंसकलिंग में 'जगत्' के समान चलते हैं।
'क्त' प्रत्ययान्ताः शब्दाः
'क्तवतु' प्रत्ययान्ताः शब्दाः
शतृ एवं शानच् प्रत्ययः - लटः शतृशानचावप्रथमासमानाधिकरणे अप्रथमान्त के साथ समानाधिकरण होने पर वर्तमान काल में (लट् लकार के स्थान पर) धातु से शत और शानच् प्रत्यय होता है।
शत् प्रत्यय परस्मैपदी धातुओं में लगता है, इसका 'अत्' शेष रहता है तथा यह शत-प्रत्ययान्त शब्द विशेषण होता है। इसके रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यथा -
शानच् प्रत्यय आत्मनेपदी धातुओं में लगता है, इसका 'आन' शेष रहता है तथा यह भी विशेषण जैसा होता है। इसके रूप तीनों लिंगों में चलते हैं। यथा -
शत-प्रत्ययान्त कतिपय पुल्लिङ्ग रूप इस प्रकार हैं -
शानच-प्रत्यान्त कतिपय पुल्लिंग रूप इस प्रकार -
विशेष - कुछ धातुओं में भविष्यत्काल के स्थान पर भी विकल्प से शतृ और शानच् प्रत्यय होता है। इसमें 'स्य'। का आगम लृट् लकार की तरह ही होता है और शब्द-तीनों लिङ्गों में चलते हैं। यथा -
इनि (णिनि) प्रत्ययः - अकारान्त शब्दों 'वाला' या 'युक्त' अर्थ में 'इनि' प्रत्यय होता है। इनि का 'इन्' शेष रहता है।
1. इनि प्रत्यय अकारान्त के अतिरिक्त आकारान्त शब्दों में भी लग सकता है, यथा - माया + इनि = मायिन्, शिखा + इनि = शिखिन्, वीणा + इनि = वीणिन् इत्यादि।
2. इनि प्रत्ययान्त शब्द के रूप पुल्लिङ्ग में 'करिन्' के समान, स्त्रीलिंग में 'ई' लगाकर 'नदी' के समान और नपुंसकलिंग में 'मनोहारिन्' शब्द के समान चलते हैं।
कतिपय इनि प्रत्ययान्त रूप इस प्रकार हैं -
टाप प्रत्ययः - अजाद्यतष्टाप-अजादिगण में आये अज आदि शब्दों से तथा अकारान्त शब्दों से स्त्रीप्रत्यय 'टाप' होता है। 'टाप' का 'आ' शेष रहता है।
अजादिगण में अज, अश्व, एडक, चटक, मूषक, बाल, वत्स, पाक, वैश्य, ज्येष्ठ, कनिष्ठ, मध्यम, सरल, कृपण आदि शब्द गिने जाते हैं। यथा -
(क) यदि प्रत्यय से पूर्व प्रातिपादिक 'क' से युक्त, हो तो 'टाप्' प्रत्यय करने पर पूर्ववर्ती अ का इ हो जाता है। यथा -
सर्विका, कारिका, मामिका।
(ख) कुछ शब्दों में 'अ' का 'इ' विकल्प से होता है। यथा - आर्यक + टाप् आर्यका, आर्यिका। सूतक से सूतका, सूतिका। पुत्रक से पुत्रका, पुत्रिका। वर्ण से वर्णका, वर्णिका इत्यादि।
डीप् प्रत्यय -
ऋन्नेभ्यो डीप् - ऋकारान्त और नकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् प्रत्यय होता है। इसका 'ई' शेष रहता है, कर्तडीप = की, धात-धात्री, कामिन-कामिनी, दण्डिन-दण्डिनी, शनी. राज्ञी आदि।
उगितश्च-जहाँ पर उ, ऋ, लु का लोप हुआ हो, उन प्रत्ययों से बने हुए शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। यथा
भवत् + ई = भवती, श्रीमती, बुद्धिमती आदि।।
विशेष - किन्तु भ्वादि, दिवादि, तुदादि और चुरादिगण की धातुओं से तथा णिच् प्रत्ययान्त शब्दों से ङीप् करने पर 'त' से पूर्व 'न' हो जाता है। जैसे -
भवन्ती, पचन्ती, दीव्यन्ती, नृत्यन्ती, गच्छन्ती आदि।
टिड्ढाणद्वयसज्-टित् शब्दों से तथा ढ, अण् आदि प्रत्ययों से निष्पन्न शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् (ई) प्रत्यय होता है। यथा
कुरुचरी, नदी, देवी, पार्वती, कुम्भकारी, औत्सी, भागिनेयी, लावणिकी, यादृशी, इत्वरी आदि।
वयसि प्रथमे (पा.सू.) - प्रथम वय (उम्र) वाचक अकारान्त शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीप् होता है। जैसेकुमारी, किशोरी, वधूटी, चिरण्टी आदि।
षिद्गौरादिभ्यश्च (पा.सू.) - जहाँ 'ष' का लोप हुआ हो (षित्) तथा गौर, नर्तक, नट, द्रोण, पुष्कर आदि गौरादिगण में पठित शब्दों से स्त्रीलिंग में ङीष् (ई) प्रत्यय होता है। यथा -
गौरी, नर्तकी, नटी, द्रोणी, पुष्करी, हरिणी, सुन्दरी, मातामही, पितामही, रजकी, महती आदि।
द्विगो:-द्विगुसमास में अकारान्त शब्द से ङीप् (ई) होता है। जैसे - पंचमूली, त्रिलोकी।
अभ्यासार्थ प्रश्न :
प्रश्न 1.
अधोलिखितवाक्यानां रिक्त-स्थानपूर्तिः कोष्ठकेषु प्रदत्तप्रकृति-प्रत्ययानुसारं कुरुत -
उत्तराणि :
प्रश्न 2.
निम्नलिखितधातुभिः सह क्त्वा' प्रत्ययं योजयित्वा क्रियापदं रचयत
(निम्नलिखित धातुओं के साथ ‘क्त्वा' प्रत्यय लगाकर क्रियापद बनाइए-)
गम्, हस्, वद्, पठ्, लिख्, धाव्, क्रीड्, प्रच्छ्, चल्, दृश्, स्था, भक्ष्, दा, जि, चुर्, गण, कृ, भू, नी, पा, भाष्, श्रु, अर्च्, इष्, ताड्, कथ्, पच्।
उत्तर :
प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रकृति-प्रत्ययं योजयित्वा पदनिर्माणं कुरुत
(अधोलिखित प्रकृति-प्रत्यय को जोड़कर पद-निर्माण कीजिए-)
उत्तर :
प्रश्न 4.
निम्नलिखितधातुभिः सह 'तुमुन्' प्रत्ययं योजयित्वा पद-निर्माणं कुरुत -
(निम्नलिखित धातुओं के साथ 'तुमुन्' प्रत्यय लगाकर क्रियापद बनाइए)
उत्तर :
प्रश्न 5.
निम्नलिखितैः शब्दैः सह 'तरप्' प्रत्ययस्य प्रयोगं कृत्वा त्रिषु लिङ्गेषु रूपं लिखत(निम्नलिखित शब्दों के साथ 'तरप्' प्रत्यय का प्रयोग करके तीनों लिंगों में बनने वाले रूप लिखो-)
चतुर, कुशल, गुरु, उच्च, निम्न, मृदु, प्रिय, दृढ, वृद्ध, पटु, ज्येष्ठ, मधुर, महत्, पवित्र।
उत्तर :
प्रश्न 6.
निम्नलिखितैः शब्दैः सह 'तमप्' प्रत्ययं योजयित्वा त्रिषु लिङ्गेषु रूपाणि लिखत -
(निम्नलिखित शब्दों के साथ 'तमप्' प्रत्यय जोड़कर तीनों लिंगों में रूप बनाइए-)
चतुर, कुशल, गुरु, उच्च, निम्न, मृदु, प्रिय, मधुर, रमणीय, ज्येष्ठ, महत्, पवित्र।
उत्तर :
प्रश्न 7.
निम्नलिखितधातुभिः सह क्तवतु' प्रत्ययं योजयित्वा त्रिषु लिङ्गेषु रूपाणि लिखत -
(निम्नलिखित धातुओं में 'क्तवतु' प्रत्यय का प्रयोग करके तीनों लिंगों में बनने वाले रूप लिखिए)
उत्तर :
प्रश्न 8.
निम्नलिखितधातुभिः सह 'क्त' 'क्तवतु' च प्रत्ययं योजयित्वां पदनिर्माणं कुरुत-
(निम्नलिखित धातुओं में 'क्त' तथा 'क्तवतु' प्रत्यय लगाकर पद बनाइए-)
सम् + जन्, गम्, प्र + विश्, सुप्, उप + अ, आ + वे, दृश्, नि + पत्, नी, बन्ध्, हन्, परि + ज्ञा, श्रु, परि + ईक्ष, दा, वच, चिन्त, नि + विद्।
उत्तर :
प्रश्न 9.
अधोलिखितपदानां प्रकृति-प्रत्ययं लिखत
उत्तर :
प्रश्न 10.
प्रत्यय संयुज्य वियुज्य वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 11.
अधोलिखितवाक्येषु कोष्ठके प्रदत्तधातुषु क्त्वा/ल्यप्/तुमुन्प्रत्ययप्रयोगेण निष्पन्नपदैः रिक्तस्थानानि पूरयत -
यथा - सः पुस्तकम् आदाय (आ + दा + ल्यप्) गच्छति।
सः पुस्तकं दत्त्वा (दा + क्त्वा) क्रीडति।
उत्तरम् :
प्रश्न 12.
उदाहरणमनुसृत्य स्थूलपदेषु थातून् प्रत्ययान् च वियुज्य लिखत -
यथा - बालकः गुरुं नत्वा गच्छति। नम् + क्त्वा।
उत्तरम् :
प्रश्न 13.
क्त्वा प्रत्ययस्य प्रयोगेण वाक्यानि संयोजयतयथा- बालिका उद्यानं गच्छति। बालिका क्रीडिष्यति।
बालिका उद्यानं गत्वा क्रीडिष्यति।
उत्तरम् :
प्रश्न 14.
तुमुन्प्रत्ययस्य योगेन वाक्यानि संयोजयत -
यथा - बालिका क्रीडिष्यति। सा उद्यानं गच्छति।
बालिका क्रीडितुम् उद्यानं गच्छति।
उत्तरम् :
प्रश्न 15.
प्रत्ययान् संयुज्य यथानिर्दिष्टं लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 16.
यथानिर्दिष्टं परिवर्तनं कृत्वा वाक्याग्रे पुनः लिखत
यथा - लिखन् बालकः पठति (स्त्रीलिङ्ग)
लिखन्ती बालिका पठति।
उत्तरम् :
प्रश्न 17.
कोष्ठके प्रदत्तशब्दानाम् उचितप्रयोगेण रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 18.
उदाहरणमनुसृत्य शतृशानच्प्रत्ययौ प्रयुज्य वाक्यानि संयोजयत -
यथा - बालिका गच्छति/सा क्रीडति।
गच्छन्ती बालिका क्रीडति
उत्तरम् :
प्रश्न 19.
क्तक्तवतुप्रत्ययसंयोजनेन पदानि रचयित्वा वाक्यपूर्तिं कुरुत -
उत्तरम् :
प्रश्न 20.
स्तम्भयोः यथोचितं योजयत
उत्तरम् :
अहम् जलम् पीतवान् / पीतवती।
सा पुस्तकं पठितवती।
त्वम् पाठं लिखितवान्।
मया पुस्तकानि पठितानि।
यूयम् भोजनं पचितवन्तः।
प्रश्न 21.
उदाहरणमनुसृत्य भूतकालिकक्रियाणां स्थाने क्तवतुप्रत्ययप्रयोगेण वाक्यपरिवर्तनं कुरुत -
यथा - अध्यापकः उद्दण्डं छात्रम् अदण्डयत्।
अध्यापकः उद्दण्डं छात्रं दण्डितवान्।
उत्तरम् :
प्रश्न 22.
उदाहरणमनुसृत्य भूतकालिकक्रियाणां स्थाने वाक्यपरिवर्तनं कुरुतयथा- अध्यापकः छात्रम् पठनाय अकथयत्।
अध्यापकेन छात्रः पठनाय कथितः।
उत्तरम् :
प्रश्न 23.
उदाहरणमनुसृत्य अशुद्धवाक्यानि शुद्धीकृत्य लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 24.
कोष्ठके प्रदत्तधातुषु क्त्वाप्रत्ययप्रयोगेण रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम् :
प्रश्न 25.
समुचितप्रत्यय-प्रयोगेण वाक्यानि पूरयत -
छात्रः कक्षायाम् ............... (उत्थाय/उत्थात्वा) प्रश्नं पृच्छति। शिक्षकः उत्तरम् .................. (प्रदात्वा/ प्रदाय) तं सन्तोषयति। छात्रः उत्तरं ............. (ज्ञात्वा/ज्ञाय) प्रसन्नः भवति। सन्तुष्टः ................ (भूत्वा/ भवित्वा) पाठम् च सम्यक् ............. (अवगत्वा/अवगत्य) गृहं गच्छति।
उत्तरम् :
छात्रः कक्षायाम् उत्थाय प्रश्नं पृच्छति। शिक्षकः उत्तरम् प्रदाय तं सन्तोषयति। छात्रः उत्तरं ज्ञात्वा प्रसन्नः भवति। सन्तुष्टः भूत्वा पाठम् च सम्यक् अवगत्य गृहं गच्छति।
प्रश्न 26.
अधोलिखितानां तुमुन्-प्रत्ययान्तपदानां प्रकृति-प्रत्यय-विभागं कृत्वा लिखत।
उत्तरम् :
प्रश्न 27.
अधुना कोष्ठके प्रदत्तधातुषु तुमुन् प्रत्ययस्य योगेन रिक्तस्थानानि पूरयत।
उत्तरम् :
एकः चौरः एकस्मिन् गृहे चौर्यं कृत्वा धावितुम् (धाव्) इच्छति। गृहस्वामी तं दृष्ट्वा तं गृहितुम् (गृह) धावति। मार्गे एकः वत्सः धेनोः क्षीरं पातुम् (पा) तिष्ठति। छात्राः अपि पठितुं (प) विद्यालयं गच्छन्ति स्म। अतः जनसम्म धेनुना आहतः चौरः आत्मानं रक्षितुं (रक्ष्) असमर्थः अभवत्। अतः गृहस्वामी जनैः सह चौरं बधुम् (बध्) समर्थः अभवत्।
प्रश्न 28.
अधोलिखितानि वाक्यानि पठित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
यथा - (गम् + शतृ) गन्छन्त्या बालिकया फलं खाद्यते।
[हसन्तम्, पृच्छद्भिः, गन्छन्त्या, पश्यन्तः, यच्छते।]
उत्तरम् :
प्रश्न 29.
समुचितपदप्रयोगेण रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तरम् :
प्रश्न 30.
समुचितपदप्रयोगेण रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 31.
उदाहरणानुसारं पूर्वक्रियायां शतृ/शानच् प्रत्यय-प्रयोगेण वाक्यानि पुनः लिखतयथा- शिशुः चलति, सः रोदिति-चलन् शिशुः रोदिति।
याचकः याचते। सः एकं गृहं गच्छति। यथा- याचमानः याचकः एकं गृहं गच्छति।
उत्तरम् :