Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 9 Sanskrit व्याकरणम् कारकम् Questions and Answers, Notes Pdf.
कारक की परिभाषा - क्रिया को जो करता है अथवा क्रिया के साथ जिसका सीधा अथवा परम्परा से सम्बन्ध होता है, वह 'कारक' कहा जाता है। क्रिया के साथ कारकों का साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध किस प्रकार होता है, यह समझाने के लिए यहाँ एक वाक्य प्रस्तुत किया जा रहा है। जैसे -
"हे मनुष्याः! नरदेवस्य पुत्रः जयदेवः स्वहस्तेन कोषात् निर्धनेभ्यः ग्रामे धनं ददाति।" (हे मनुष्यो! नरदेव का पुत्र जयदेव अपने हाथ से खजाने से निर्धनों को गाँव में धन देता है।) यहाँ क्रिया के साथ कारकों का सम्बन्ध इस प्रकार प्रश्नोत्तर से जानना चाहिए -
इस प्रकार यहाँ 'जयदेव' इस कर्ता कारक का तो क्रिया से साक्षात् सम्बन्ध है और अन्य कारकों का परम्परा से सम्बन्ध है। इसलिए ये सभी कारक कहे जाते हैं। किन्तु इसी वाक्य के "हे मनुष्याः " और "नरदेवस्य" इन दो पदों का 'ददाति' क्रिया के साथ साक्षात् अथवा परम्परा से सम्बन्ध नहीं है। इसलिए ये दो पद कारक नहीं हैं। सम्बन्ध कारक तो नहीं है परन्तु उसमें षष्ठी विभक्ति होती है।
कारकाणां संख्या -
इस प्रकार कारकों की संख्या छः होती है; जैसे -
कर्ता कर्म च करणं सम्प्रदानं तथैव च।
अपादानाधिकरणमित्याहुः कारकाणि षट्॥
(कर्ता, कर्म, करण, सम्प्रदान, अपादान और अधिकरण-ये छः कारक कहे गये हैं।)
यहाँ कारकों और विभक्तियों का सामान्य-परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है -
प्रथमा विभक्तिः
यः क्रियायाः करणे स्वतन्त्रः भवति सः कर्ता इति कथ्यते। (स्वतन्त्रः कर्ता) उक्तकर्तरि च प्रथमा विभक्तिः भवति। यथा - (जो क्रिया के कस्ने में स्वतन्त्र होता है, वह कर्ता कहा जाता है। उक्त कर्त्ता में प्रथमा विभक्ति आती है। जैसे-) रामः पठति।
अत्र पठनक्रियायाः स्वतन्त्ररूपेण सम्पादकः रामः अस्ति। अतः अयम् एव कर्ता अस्ति। कर्तरि च प्रथमा विभक्तिः भवति।
कर्मवाच्यस्य कर्मणि प्रथमा विभक्तिः भवति; यथा(कर्मवाच्य के कर्म में प्रथमा विभक्ति होती है; जैसे..) त्वया ग्रन्थः पठ्यते।
सम्बोधने प्रथमा विभक्तिः भवति (सम्बोधने च)। यथा (सम्बोधन में प्रथमा विभक्ति होती है; जैसे-) हे बालकाः! यूयं कुत्र गच्छथ?
कस्यचित् संज्ञादिशब्दस्य (प्रातिपदिकस्य) अर्थं, लिङ्गं, परिमाणं वचनं च प्रकटीकर्तुं प्रथमायाः विभक्तेः प्रयोगः क्रियते। यतोहि विभक्तेः प्रयोगं विना कोऽपि शब्दः स्वकीयमर्थं दातुं समर्थो नास्ति अत एव अस्मिन् विषये प्रसिद्धं कथनमस्ति - अपदं न प्रयुञ्जीत।
(किसी संज्ञा आदि शब्द का अर्थ, लिंग, परिमाण और वचन प्रकट करने के लिए प्रथमा विभक्ति का प्रयोग किया जाता है। क्योंकि विभक्ति के प्रयोग बिना कोई भी शब्द अपना अर्थ देने में समर्थ नहीं है। इसलिए इस विषय में प्रसिद्ध कथन है - अपद (बिना विभक्ति के शब्द) का प्रयोग नहीं करना चाहिए।)
उदाहरणार्थ - म्बलदेवः, पुरुषः, लघुः, लता।
'इति' शब्दस्य योगे प्रथमा विभक्तिः भवति। ('इति' शब्द के योग में प्रथमा विभक्ति होती है।) यथावयम् इमं यशवन्तः इति नाम्ना जानीमः।
द्वितीया विभक्तिः
कर्ता क्रियया यं सर्वाधिकम् इच्छति तस्य कर्मसंज्ञा भवति। (कर्तुरीप्सिततमं कर्म।) कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति। (कर्मणि द्वितीया) यथा
(कर्ता क्रिया के द्वारा जिसको सबसे अधिक चाहता है, उसकी कर्म संज्ञा होती है तथा कर्म में द्वितीया विभक्ति आती है; जैसे-)
अधोलिखितशब्दानां योगे द्वितीयाविभक्तिः भवति। यथा -
(निम्नलिखित शब्दों के योग में द्वितीया विभक्ति होती है; जैसे - )
अधि-उपसर्गपूर्वक-शीङ्-स्था-आस्-धातूनां प्रयोगे एषाम् आधारस्य कर्मसंज्ञा भवति कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति। (अधिशीस्थासां कर्म)
(अधि उपसर्गपूर्वक शीङ्, स्था तथा आस् धातुओं के योग में इनके आधार की कर्मसंज्ञा होती है तथा कर्म में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।)
उदाहरणार्थम् -
उप-अनु-अधि-आङ् (आ) - उपसर्गपूर्वक-वस् धातोः प्रयोगे अस्य आधारस्य कर्मसंज्ञा भवति कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति। (उपान्वध्याडवसः)
(उप, अनु, अधि, आ उपसर्गपूर्वक वस् धातु के योग में इनके आधार की कर्म संज्ञा होती है एवं कर्म में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।)
"अभिनि" उपसर्गद्वयपूर्वक-विश्-धातोः प्रयोगे सति अस्य आधारस्य कर्म-संज्ञा भवति कर्मणि च द्वितीया विभक्तिः भवति। (अभिनिविशश्च)
('अभि नि' इन दो उपसर्गों के साथ विश् धातु का प्रयोग होने पर इसके आधार की कर्म संज्ञा होती है एवं कर्म में द्वितीया विभक्ति आती है।) यथा-अभिनिविशते (प्रवेश करता है)
- दिनेशः ग्रामम् अभिनिविशते।
(दिनेश गाँव में प्रवेश करता है।)
- छात्रः विद्यालयम् अभिनिविशते।
(छात्र विद्यालय में प्रवेश करता है।)
अपादानादिकारकाणां यत्र अविवक्षा अस्ति तस्य कर्मसंज्ञा भवति कर्मणि च द्वितीयाविभक्तिः भवति। (अकथितं च)। संस्कृतभाषायां एतादृशाः षोड्शधातवः सन्ति येषां प्रयोगे एकं तु मुख्यं कर्म भवति अपरञ्च अपादानादिकारकैः अविवक्षितं गौणं कर्म भवति। अस्मिन् गौणे कर्मणि एव अत्र द्वितीया विभक्तिः भवति। इमे धातवः एव द्विकर्मकधातवः कथ्यन्ते।
एतेषां प्रयोगः अत्र क्रियते (अपादान आदि कारकों की जहाँ विवक्षा नहीं होती है, वहाँ उसकी कर्मसंज्ञा होती है और कर्म में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। संस्कृत भाषा में इस प्रकार की 16 धातुएँ हैं, जिनके प्रयोग में एक तो मुख्य कर्म होता है और दूसरा अपादानादि कारकों से अविवक्षित गौण कर्म होता है। इस गौण कर्म में ही द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है। ये धातुएँ ही द्विकर्मक धातुएँ कही जाती हैं। इनका प्रयोग यहाँ किया जा रहा है) -
कालवाचिनि शब्दे. मार्गवाचिनि शब्दे च अत्यन्तसंयोगे गम्यमाने द्वितीया विभक्तिः भवति। (कालाध्वनोरत्यन्तसंयोगे।)
(कालवाचक और मार्गवाचक शब्द में अत्यन्त संयोग होने पर गम्यमान में द्वितीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।) (1) सुरेशः अत्र पञ्चदिनानि पठति। .
(सुरेश यहाँ लगातार पाँच दिन से पढ़ रहा है।)
मोहनः मासम् अधीते।
(मोहन लगातार महीने भर से पढ़ता है।) नदी क्रोशं कुटिला अस्ति। (नदी कोस भर तक लगातार टेढ़ी है।) प्रदीप: योजनं पठति। (प्रदीप लगातार एक योजन तक पढ़ता है।)
तृतीया विभक्तिः
(क) क्रियायाः सिद्धौ यत् सर्वाधिकं सहायकं भवति तस्य कारकस्य करणसंज्ञा भवति। (साधकतम करणम्) कर्तरि करणे च (कर्तृकरणयोस्तृतीया) तृतीया विभक्तिः भवति।
(क्रिया की सिद्धि में जो सर्वाधिक सहायक होता है, उस कारक की करण संज्ञा होती है और उसमें तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा-
(ख) कर्मवाच्यस्य भाववाच्यस्य वा अनुक्तकर्तरि अपि तृतीया विभक्तिः भवति। (कर्मवाच्य अथवा भाववाच्य के अनुक्तकर्ता में भी तृतीया विभक्ति होती है) यथा -
सह-साकम्-समम्-सार्धम्-शब्दानां योगे तृतीया विभक्तिः भवति। (सहयुक्तेऽप्रधाने) [सह, साकम्, समम्, सार्धम् (साथ) शब्दों के योग में तृतीया विभक्ति होती है। यथा -
येन विकृत-अङ्गेन अङ्गिनः विकारो लक्ष्यते तस्मिन् विकृताङ्गे तृतीया विभक्तिः भवति। (येनाविकारः।) (जिस विकारयुक्त अंग से शरीर में विकार दिखलाई देता है, उस विकृत अंगवाचक शब्द में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।)
यथा -
येन चिह्नन कस्यचिद् अभिज्ञानं भवति तस्मिन् चिह्नवाचिनि शब्दे तृतीया विभक्तिः भवति। (इत्थंभूतलक्षणे।) (जिस चिह्न से किसी की पहचान होती है, उस चिह्न वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
सः जटाभिः तापसः प्रतीयते। (वह जटाओं से तपस्वी लगता है।) सः बालकः पुस्तकैः छात्रः प्रतीयते। (वह बालक पुस्तकों से छात्र लगता है।)
हेतुवाचिशब्दे तृतीया विभक्तिः भवति। (हेती) ('हेतु' वाचक शब्द में तृतीया विभक्ति होती है।) यथापुण्येन हरिः दृष्टः। सः अध्ययनेन वसति। विद्यया यशः वर्धते। विद्या विनयेन शोभते।
प्रकृति - आदिक्रियाविशेषणशब्देषु तृतीया विभक्तिः भवति (प्रकृत्यादिभ्यः उपसंख्यानम्)। [प्रकृति (स्वभाव) आदि क्रिया विशेषण शब्दों में तृतीया विभक्ति होती है।] यथा -
निषेधार्थकस्य अलम् इति शब्दस्य योगे तृतीया विभक्तिः भवति। (निषेधार्थक 'अलम्' शब्द के योग में तृतीया विभक्ति होती है।) यथा- . अलं हसिंतेन। अलं विवादेन।
चतुर्थी विभक्तिः
दानस्य कर्मणा कर्ता यं सन्तुष्टं कर्तुम् इच्छति सः सम्प्रदानम् इति कथ्यते (कर्मणा यमभिप्रेति स सम्प्रदानम्।) सम्प्रदाने च ('चतुर्थी सम्प्रदाने') चतुर्थी विभक्तिः भवति। (दान कर्म के द्वारा कर्ता जिसको सन्तुष्ट करना चाहता है वह सम्प्रदान कहा जाता है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।)
यथानृपः निर्धनाय धनं यच्छति।
बालकः स्वमित्राय पुस्तकं ददाति। सः याचकेभ्यः वस्त्राणि यच्छति।
रुच्यर्थानां धातूनां प्रयोगे यः प्रीयमाणः भवति तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति। (रुच्यर्थानां प्रीयमाणः) (रुचि अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जो प्रसन्न होने वाला होता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।)
यथाभक्ताय रामायणं रोचते। (भक्त को रामायण अच्छी लगती है।) बालकाय मोदकाः रोचन्ते। (बालक को लड्डू अच्छे लगते हैं।) गणेशाय दुग्धं स्वदते। (गणेश को दूध पसन्द है।)
क्रुधादि - अर्थानां धातूनां प्रयोगे यं प्रति कोपः क्रियते तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति। (क्रुधदुहेासूयार्थानां यं प्रति कोपः।) (क्रुद्ध आदि अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जिसके ऊपर क्रोध किया जाता है उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति आती है।) यथा -
स्पृह (ईप्सायां) धातोः प्रयोगे यः ईप्सितः भवति तस्य सम्प्रदानसंज्ञा भवति, सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति। (स्पृहेरीप्सितः।) ('स्पृह' धातु के प्रयोग में जो इच्छित हो उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।)
यथा -
(i) स्पृह् (इच्छा करना) - बालकः पुष्पाय स्पृहयति।
(बालक पुष्प की इच्छा करता है।)
नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम्, वषट् इति शब्दानां योगे चतुर्थी विभक्तिः भवति। (नमः स्वस्तिस्वाहास्वधालंवषड्योगाच्च।) (नमः, स्वस्ति, स्वाहा, स्वधा, अलम् और वषट् शब्दों के योग में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
धृञ् (धारणे) धातोः प्रयोगे यः उत्तमर्णः (ऋणदाता) भवति तस्य सम्प्रदानसंज्ञा स्यात् सम्प्रदाने च चतुर्थी विभक्तिः भवति। (धारेरुत्तमर्णः।) [धृञ् (धारण करना) धातु के प्रयोग में जो कर्ज देने वाला होता है, उसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है और सम्प्रदान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।] यथा -
देवदत्तः यज्ञदत्ताय शतं धारयति।
यस्मै प्रयोजनाय या क्रिया क्रियते तस्मिन् प्रयोजनवाचिनि शब्दे चतुर्थी विभक्तिः भवति (तादर्थ्य चतुर्थी वाच्या)। (जिस प्रयोजन के लिए जो क्रिया की जाती है उस प्रयोजन वाचक शब्द में चतुर्थी विभक्ति होती है।) यथा -
सः मोक्षाय हरिं भजति। बालकः दुग्धाय क्रन्दति।
निम्नलिखित धातूनां योगे प्रायः चतुर्थी विभक्तिः भवति।
(निम्नलिखित धातुओं के योग में प्रायः चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
पंचमी विभक्तिः
अपाये सति यद् ध्रुवं तस्य अपादान संज्ञा भवति (ध्रुवमपायेऽपादानम्) अपादाने च (अपादाने पञ्चमी) पंचमी विभक्तिः भवति। (पृथक् होने पर जो स्थिर है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
वृक्षात् पत्रं पतति। (वृक्ष से पत्ता गिरता है।)
नृपः ग्रामात् आगच्छति। (राजा गाँव से आता है।)
भयार्थानां रक्षार्थानां च धातूनां प्रयोगे भयस्य यद् हेतुः अस्ति तस्य अपादान संज्ञा भवति अपादाने च पंचमी विभक्तिः भवति। (भीत्रार्थानां भयहेतुः।) (भय और रक्षा अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में भय का जो कारण है उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
बालकः सिंहात् विभेति। (बालक सिंह से डरता है।)
नृपः दुष्टात् रक्षति/त्रायते। (राजा दुष्ट से रक्षा करता है।)
यस्मात् नियमपूर्वकं विद्या गृह्यते तस्य शिक्षकादिजनस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पंचमी विभक्तिः भवति। (आख्यातोपयोगे।) (जिससे नियमपूर्वक विद्या ग्रहण की जाती है उस शिक्षक आदि मनुष्य की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
शिष्यः उपाध्यायात् अधीते।
छात्रः शिक्षकात् पठति।
जुगुप्सा-विराम - प्रमादार्थकधातूनां प्रयोगे यस्मात् घृणादि क्रियते तस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पञ्चमी विभक्तिः भवति (जुगुप्साविरामप्रमादा-र्थानामुपसंख्यानम्)। (जुगुप्सा, विराम, प्रमाद अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग में जिससे घृणा आदि की जाती है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में चतुर्थी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
महेशः पापात् जुगुप्सते।
कुलदीपः अधर्मात् विरमति।
मोहनः अध्ययनात् प्रमाद्यति।
भूधातोः यः कर्ता, तस्य यद् उत्पत्तिस्थानम्, तस्य अपादान संज्ञा भवति अपादाने च पंचमी विभक्तिः भवति। (भुवः प्रभवः।) (भू धातु के कर्ता का जो उत्पत्ति स्थान है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।) यथा -
गंगा हिमालयात् प्रभवति।
काश्मीरेभ्यः वितस्तानदी प्रभवति।
जन् धातोः यः कर्ता, तस्य या प्रकृतिः (कारणम् = हेतुः) तस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पंचमी विभक्तिः भवति। (जनिकर्तः प्रकृतिः।) ('जन्' धातु का जो कर्ता है, उसका जो कारण है, उसकी अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
गोमयात् वृश्चिकः जायते।
कामात् क्रोधः जायते।
यदा कर्ता, यस्मात् अदर्शनम् इच्छति।
तदा तस्य कारकस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पंचमी विभक्तिः भवति (अन्तधौं येनादर्शनमिच्छति)। [जब कर्ता जिससे अदर्शन (छिपना) चाहता है तब उस कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।]
बालकः मातुः निलीयते। (बालक माता से छिपता है।) महेशः जनकात् निलीयते। (महेश पिता से छिपता है।)
वारणार्थानां धातूनां प्रयोगे यः ईप्सितः अर्थः भवति तस्य कारकस्य अपादानसंज्ञा भवति अपादाने च पंचमी विभक्तिः भवति। (वारणार्थानामीप्सितः)। [वारणार्थक (दूर करना) धातुओं के प्रयोग में जो इच्छित अर्थ होता है, उस कारक की अपादान संज्ञा होती है और अपादान में पंचमी विभक्ति होती है।] यथा -
कृषक: यवेभ्यः गां वारयति। [किसान यवों (जौ) से गाय को हटाता है।]
यदा द्वयोः पदार्थयोः कस्यचित् एकस्य पदार्थस्य विशेषता प्रदर्श्यते तदा विशेषण शब्दैः सह ईयसुन् अथवा तरप् प्रत्ययस्य योगः क्रियते यस्मात् च विशेषता प्रदर्श्यते तस्मिन् पंचमी विभक्तेः प्रयोगः भवति (पञ्चमी विभक्तेः।)
(जब दो पदार्थों में से किसी एक पदार्थ की विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ ईयसुन् अथवा तरप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है उसमें पंचमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) यथा -
रामः श्यामात् पटुतरः अस्ति। माता भूमेः गुरुतरा अस्ति। जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गात् अपि गरीयसी।
अधोलिखितशब्दानां योगे पंचमी विभक्तिः भवति।
(निम्नलिखित शब्दों के योग में पंचमी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथा -
षष्ठी विभक्तिः
सम्बन्धे षष्ठी विभक्तिः भवति। (षष्ठी शेषे) (सम्बन्ध में षष्ठी विभक्ति प्रयुक्त होती है।) यथारमेशः संस्कृतस्य पुस्तकं पठति। (रमेश संस्कृत की पुस्तक पढ़ता है।)
यदा बहुषु कस्यचित् एकस्य जातिगुणक्रियाभिः विशेषता प्रदर्श्यते तदा विशेषणशब्दैः सह इष्ठन् अथवा तमप् प्रत्ययस्य योगः क्रियते यस्मात् च विशेषता प्रदर्श्यते तस्मिन् षष्ठी विभक्तेः अथवा सप्तमीविभक्तेः प्रयोगः भवति। (यतश्च निर्धारणम्।) (जब बहुत में से किसी एक की जाति, गुण, क्रिया के द्वारा विशेषता प्रकट की जाती है, तब विशेषण शब्दों के साथ इष्ठन् अथवा तमप् प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है और जिससे विशेषता प्रकट की जाती है, उसमें षष्ठी विभक्ति अथवा सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) यथा -
कवीनां (कविषु वा) - कालिदासः श्रेष्ठः अस्ति।
छात्राणां (छात्रेषु वा) - सुरेशः पटुतमः अस्ति।
नदीनां/नदीषु गङ्गा पवित्रतमा अस्ति।
अधोलिखितशब्दानां योगे षष्ठीविभक्तिः भवति।
(निम्नलिखित शब्दों के योग में षष्ठी विभक्ति होती है।) यथा -
तुल्यवाचिशब्दानां योगे षष्ठी अथवा तृतीया विभक्तिः भवति। (तुल्यार्थैर-तुलोपमाभ्यां तृतीयान्यतरस्याम्।) (तुल्यवाची शब्दों के योग में षष्ठी अथवा तृतीया विभक्ति होती है।) यथा -
सुरेशः महेशस्य (महेशेन वा) तुल्यः अस्ति।
सीता गीतायाः (गीतया वा) तुल्या विद्यते।
सप्तमी विभक्तिः
क्रियायाः सिद्धौ यः आधारः भवति तस्य अधिकरणसंज्ञा भवति (आधारोऽधिकरणम्।) अधिकरणे च (सप्तम्यधिकरणे च) सप्तमी विभक्तिः भवति। (क्रिया की सिद्धि में जो आधार होता है, उसकी अधिकरण संज्ञा होती है और अधिकरण में सप्तमी विभक्ति होती है।) यथा -
नृपः सिंहासने तिष्ठति।
वयं ग्रामे निवसामः।
तिलेषु तैलं विद्यते।
यस्मिन् स्नेहः क्रियते तस्मिन् सप्तमी विभक्तिः भवति। (जिसमें स्नेह किया जाता है उसमें सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) यथा
पिता पुत्रे स्निह्यति।
संलग्नार्थकशब्दानां चतुरार्थकशब्दानां च योगे सप्तमी विभक्तिः भवति। (संलग्नार्थक और चतुरार्थक शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति का प्रयोग होता है।) यथा -
बलदेवः स्वकार्ये संलग्नः अस्ति।
जयदेवः संस्कृते चतुरः अस्ति।
अधोलिखितशब्दानां योगे सप्तमी विभक्तिः भवति। (निम्नलिखित शब्दों के योग में सप्तमी विभक्ति होती है) यथा
(i) श्रद्धा - बालकस्य पितरि श्रद्धा अस्ति।
(ii) विश्वासः - महेशस्य स्वमित्रे विश्वासः अस्ति।
(iii) यदा एकक्रियायाः अनन्तरं अपरा क्रिया भवति तदा पूर्वक्रियायां तस्याश्च कर्तरि सप्तमी विभक्तिः भवति। (यस्य च भावेन भावलक्षणम्।) (जब एक क्रिया के बाद दूसरी क्रिया होती है तब पूर्व क्रिया में और उसके कर्ता में सप्तमी विभक्ति होती है।) यथा -
रामे वनं गते दशरथः प्राणान् अत्यजत्। (राम के वन जाने पर दशरथ ने प्राणों को त्याग दिया।) सूर्ये अस्तं गते सर्वे बालकाः गृहम् अगच्छन्। (सूर्य के अस्त होने पर सभी बालक घर चले गए।)
अभ्यासार्थ प्रश्न :
प्रश्न 1.
अधोलिखितेषु वाक्येषु कालांकितपदेषु प्रयुक्तविभक्तिः तस्याः कारणं च लिखत
(i) पुत्रः पितरं धनं याचते।
(ii) नृपः चौरं शतं दण्डयति।
(ii) छात्रः अध्यापकं प्रश्नं पृच्छति।
(iv) बालिकाः पुष्पाणि चिनोति।
(v) नृपः सिंहासनम् अधितिष्ठति।
(vi) तपस्वी वनम् उपवसति।
(vii) गृहं परितः वृक्षाः सन्ति।
(viii) छात्राः विद्यालयं प्रति गच्छन्ति।
(ix) रामः कलमेन पत्रं लिखति।
(x) गोपालः प्रकृत्या दयालुः अस्ति।
(xi) महेशः सुखेन जीवति।
(xii) अयं जटाभिः तपस्वी ज्ञायते।
(xiii) सः वृद्धः कर्णाभ्यां बधिरः वर्तते।
(xiv) सः मासेन शास्त्रम् अधीतवान्।
(xv) अलम् अतिविवादेन।
उत्तर :
प्रश्न 2.
अधस्तनेषु रेखाङ्कितशब्देषु प्रयुक्तविभक्तिः तस्याः च कारणं लिखत। (निम्नलिखित वाक्यों के रेखांकित शब्दों में प्रयुक्त विभक्ति और उसका कारण लिखिए-)
उत्तर :
प्रश्न 3.
कोष्ठकगतशब्देषु उचितविभक्तेः प्रयोगं कृत्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तर :
प्रश्न 4.
कोष्ठकेभ्यः शद्धम् उत्तरं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत
उत्तर :
प्रश्न 5.
कोष्ठकात् कारकनियमानुसारम् उचितपदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तराणि :
प्रश्न 6.
निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए -
(निम्नलिखितेषुवाक्येषु केषाञ्चिद् पञ्चवाक्यानामशुद्धिसंशोधनं करोतु-)।
(क) नृपः आसने अधितिष्ठति।
(ख) बालकः पितुः सह गृहं गच्छति।
(ग) भवतां मोदकं रोचते।
(घ) कृष्णाम् इति वसुदेवपुत्रः।
(ङ) गोः पयः दोग्धि।
(च) नृपात् धनं याचते।
(छ) मम अभितः बालकाः सन्ति।
(ज) वृद्धः कर्णात् बधिरः।
(झ) विवादात् अलम्।
(ब) धनस्य विना जीवनं व्यर्थम्।
उत्तर :
शुद्ध वाक्य
(क) नृपः आसनम् अधितिष्ठति। .
(ख) बालकः पिता सह गृहं गच्छति।
(ग) भवते मोदकं रोचते।
(घ) कृष्णाः इति वसुदेवपुत्रः।
(ङ) गां पयः दोग्धि।
(च) नृपं धनं याचते।
(छ) माम् अभितः बालकाः सन्ति।
(ज) वृद्धः कर्णेन बधिरः।
(झ) विवादेन अलम्।
(ब) धनं विना जीवनं व्यर्थम्।
प्रश्न 7.
अग्रलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को शुद्ध कीजिए
(निम्नलिखितेषुवाक्येषु केषाञ्चिद् पञ्चवाक्यानामशुद्धिसंशोधनं करोतु-)
(क) बालकः अध्यापकात् प्रश्नं पृच्छति।
(ख) रमेशः प्रकृत्याः साधुः।
(ग) मां पुस्तकं पठ्यते।
(घ) धनिकः भिक्षुकं वस्त्राणि यच्छति।
(ङ) दुर्जनः सज्जने असूयति।
(च) जनः सिंहेन बिभेति।
(छ) माता गुरुतरा भूमिः।
(ज) इदं फलं बालकं कृते वर्तते।
(झ) दुर्जनाय असाधु व्यवहरति।
(ब) स रामस्य विश्वसिति।
उत्तर :
शुद्ध वाक्य -
(क) बालकः अध्यापकं प्रश्नं पृच्छति।
(ख) रमेशः प्रकृत्या साधुः।
(ग) मया पुस्तकं पठ्यते।
(घ) धनिकः भिक्षुकाय वस्त्राणि यच्छति।
(ङ) दुर्जनः सज्जनाय असूयति।
(च) जनः सिंहात् बिभेति।
(छ) माता गुरुतरा भूमेः।
(ज) इदं फलं बालकस्य कृते वर्तते।
(झ) दुर्जने असाधु व्यवहरति।
(ब) सः रामे विश्वसिति।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित वाक्यों में से किन्हीं पाँच वाक्यों को शुद्ध कीजिए
(निम्नलिखितेषुवाक्येषु केषाञ्चिद् पञ्चवाक्यानामशुद्धिसंशोधनं करोतु-)
(क) भिक्षुकः धनिकात् धनं याचते।
(ख) ग्रामस्य निकषा उपवनमस्ति।
(ग) सज्जनः सुखात् जीवति।
(घ) सः जटाभ्यः तापसः प्रतीयते।
(ङ) मां रुप्यकाणि देहि।
(च) दैत्येषु हरिः अलम्।
(छ) बालकः शिक्षकं निवेदयति।
(ज) नृपः चौराय त्रायते।
(झ) नदी पर्वतं प्रभवति।
(ब) गंगा नदीभ्यः पवित्रतमा।
उत्तर :
शुद्ध वाक्य
(क) भिक्षुकः धनिकं धनं याचते।
(ख) ग्रामं निकषा उपवनमस्ति।
(ग) सज्जनः सुखेन जीवति।
(घ) सः जटाभिः तापसः प्रतीयते।
(ङ) मह्यं रुप्यकाणि देहि।
(च) दैत्येभ्यः हरिः अलम्।
(छ) बालकः शिक्षकाय निवेदयति।
(ज) नृपः चौरात् त्रायते।
(झ) नदी पर्वतात् प्रभवति।
(ञ) गंगा नदीषु पवित्रतमा।
प्रश्न 9.
अधोलिखितमनुच्छेदः कोष्ठकप्रदत्तशब्देषु समुचितविभक्ति-युक्तपदैः पूरयत -
राज्ञा दशरथेन (i) ........ (राम) चतुर्दशानां वर्षाणां वनवासः प्रदत्तः। श्रीरामः (ii) ....... (सीता) (iii) ...... (लक्ष्मण) च सह वनं प्रति अगच्छत्। यदा रामः ताभ्यां सह (iv) ...... (अयोध्या) प्रत्यागच्छत् तदा तान् स्वागतं कर्तुं जनाः नगरे सर्वत्र दीपान् प्रज्वालितवन्तः। (v) ........ (सर्व) जनाः आनन्दमग्नाः अभवन्। तदा आरभ्य .. अद्यावधिः प्रतिवर्ष भारते अस्यां (vi) ........ (तिथि) दीपावली-महोत्सवः आयोजितः भवति।
उत्तरम् :
(i) रामाय
(ii) सीतया
(iii) लक्ष्मणेन
(iv) अयोध्यां
(v) सर्वे
(vi) तीथौ।
[नोट-परीक्षा में अनुच्छेद में क्रमानुसार दिये गये उत्तरों को भरकर सम्पूर्ण अनुच्छेद ही पुनः उत्तरपुस्तिका में लिखना चाहिए।]
प्रश्न 10.
अधोलिखितं वार्तालापं कोष्ठकप्रदत्तशब्देषु समुचितविभक्ति-युक्तपदैः पूरयत -
राकेशः - भो सुरेश! त्वम् कुत्र गच्छसि?
सुरेशः - अहं (i) ........ (विद्यालय) प्रति गच्छामि।
राकेशः - किम् अद्य (ii) ......... (युष्मद्) सह महेन्द्रः नागच्छत्?
सुरेशः - नहि। सः तु (iii) ........... (भ्रमण) उद्यानं गतवान्।
राकेशः - सायंकाले (iv) ......... (गृह) आगत्य अहमपि तत्र गमिष्यामि। सु
रेशः - भवान् (v) .......... (किम्) कक्षायां पठति?
राकेशः - अहं नवम्यां (vi) ......... (कक्षा) पठामि।
सुरेशः - अस्तु। नमः (vii) ......... (युष्मद्)। आवां चलावः।
उत्तरम् :
(i) विद्यालयं
(ii) त्वया
(iii) भ्रमणाय
(iv) गृहात्
(v) कस्यां
(vi) कक्षायां
(vii) तुभ्यम्।
प्रश्न 11.
समुचितविभक्तियुक्तपदैः निम्नलिखितलघुकथां पूरयत -
(i) ........ (एक) नदीतटे जम्बूवृक्षे एकः वानरः प्रतिवसति स्म। कश्चित् मकरः तस्यां (ii) ......... (नदी) अवसत्। वानरः प्रतिदिनं (ii) ....... (तद्) जम्बूफला-न्ययच्छत्। एवं मकरः (iv) ......... (वानर) मित्रमभवत्। एकदा तानि (v) ....... (फल) खादित्वा मकरस्य जाया अचिन्तयत्-"अहो! यः प्रतिदिनम् ईदृशानि (vi) .......... (मधुर) फलानि खादति नूनं तस्य हृदयमपि अतिमधुरं भविष्यति।
उत्तरम् :
(i) एकस्मिन्
(ii) नद्याम्
(iii) तानि
(iv) वानरस्य
(v) फलानि
(vi) मधुराणि।
प्रश्न 12.
कोष्ठकेषु मूलशब्दाः प्रवृत्ता। तेषु उचितविभक्तीः योजयित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 13.
कोष्ठकेभ्यः शुद्धम् उत्तरं चित्वा रिक्तस्थानपूर्तिं कुरुत -
उत्तरम् :
प्रश्न 14.
उचितविभक्तिप्रयोगं कृत्वा अधोलिखितपदानां सहायतया वाक्यरचनां कुरुत -
उत्तरम् :
प्रश्न 15.
'क' स्तम्भे शब्दाः दत्ताः सन्ति, 'ख' स्तम्भे च विभक्तयः। कस्य योगे का विभक्तिः प्रयुज्यते इति। योजयित्वा लिखत
'क' |
'ख' |
i. 'रुच्' धातु योगे |
(क) तृतीया |
ii. 'सह' शब्द योगे |
(ख) चतुर्थी |
iii. 'नमः' शब्द योगे |
(ग) पञ्चमी |
iv. 'भी' 'त्रा' धातु योगे |
(घ) चतुर्थी |
v. 'दा' धातु योगे |
(ङ) प्रथमा |
vi. कर्तृवाच्यस्य कर्तरि |
(च) तृतीया |
vii. कर्मवाच्यस्य कर्तरि |
(छ) चतुर्थी |
viii. 'विना' योगे |
(ज) तृतीया |
ix. यस्मिन् अङ्गे विकारः भवति तस्मिन् |
(झ) द्वितीया, तृतीया, पञ्चमी |
x. कर्मवाच्यस्य कर्मणि |
(ञ) प्रथमा |
उत्तरम् :
'क' |
'ख' |
i. 'रुच्' धातु योगे |
(क) चतुर्थी |
ii. 'सह' शब्द योगे |
(ख) तृतीया |
iii. 'नमः' शब्द योगे |
(ग) चतुर्थी |
iv. 'भी' 'त्रा' धातु योगे |
(घ) पञ्चमी |
v. 'दा' धातु योगे |
(ङ) चतुर्थी |
vi. कर्तृवाच्यस्य कर्तरि |
(च) प्रथमा |
vii. कर्मवाच्यस्य कर्तरि |
(छ) तृतीया |
viii. 'विना' योगे |
(जद्वितीया, तृतीया, पञ्चमी |
ix. यस्मिन् अङ्गे विकारः भवति तस्मिन् |
(झ) तृतीया |
x. कर्मवाच्यस्य कर्मणि |
(ञ) प्रथमा |
प्रश्न 16.
स्थूलपदानां स्थाने शुद्धपदं लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 17.
उचितविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानिपूरयत।
उत्तरम् :
प्रश्न 18.
उचितविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत।
उत्तरम् :
प्रश्न 19.
उचितपदेन रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 20.
कोष्ठकात् उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 21.
कोष्ठकप्रदत्तपदैः सह उचितविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 22.
चतुर्थी-विभक्तियुक्तपदानि स्थूलरेखया चिह्नितानि कुरुत पृथक्तया लिखत च
उत्तरम् :
प्रश्न 23.
कोष्ठकात् उचितं पदं चित्वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 24.
कोष्ठके प्रदत्तशब्दैः सह उचितविभक्तिं प्रयुज्य रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 25.
कोष्ठकात् उचितं पदं चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत -
उत्तरम् :
प्रश्न 26.
कोष्ठकात् उचितं पदं चित्वा लिखत -
उत्तरम् :
प्रश्न 27.
कोष्ठकेभ्यः उचितानि पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत -
उत्तराणि :
2.
उत्तराणि :
प्रश्न 28.
मञ्जूषातः उचितानि पदानि चित्वा वाक्यानि पूरयत -
मञ्जूषा : दुष्टम्, सागरम्, कवीनाम्, रामस्य, पुत्रे, बालकाय
उत्तराणि :
2.
मञ्जूषा: ज्ञानम्, ग्रामस्य, उपवनम्, वनम्, रमेशात्, दीपेन
उत्तराणि :
प्रश्न 29.
मञ्जूषातः उचितं पदं चित्वा निम्नलिखितं सम्वादं पूरयत -
मञ्जूषा : मार्गम्, त्वया, गृहस्य, श्रीगणेशाय, बसयानात्
उत्तराणि :
2.
माता - पुत्रि! (i) ............... उभयतः सुन्दराः वृक्षाः शोभन्ते।
पुत्री - मातः! मम (ii)............... बहिः अपि अनेके वृक्षाः सन्ति।
माता - अद्यत्वे वसन्तस्य शोभा सर्वत्र दर्शनीया।
पुत्री - मातः! (iii) ................. विना वसन्तस्य शोभा कुतः?
माता - पुत्रि! यदा पिकः मधुर स्वरेण गायति। तदा सर्वे प्रसन्नाः भवन्ति।
पुत्री - अस्माकं (iv) ............... पुरतः एकम् उद्यानम् अस्ति।
तत्र - वृक्षेषु अनेके खगाः कूजन्ति। माता खगाः (v) .......... कुशलाः भवन्ति।
मञ्जूषा : विद्यालयात्, गृहस्य, सरणिम्, कूजने, पिकम्
उत्तराणि :
(i) सरणिम्
(ii) विद्यालयात्
(iii) पिकम्
(iv) गृहस्य
(v) कूजने।