Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 8 Hindi Rachana कहानी-लेखन Questions and Answers, Notes Pdf.
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कहानी सुनना तथा सुनाना सभी को अच्छा लगता है। आपने भी बचपन में अपने दादा-दादी, माता-पिता से अनेक कहानियाँ सुनी होंगी। कहानी में अनेक पात्र होते हैं। इन्हीं पात्रों के आधार पर कहानी चलती है, जो कथावस्तु कहलाती है। पात्रों द्वारा आपस में जो बातचीत होती है, जिन्हें संवाद या कथोपकथन कहते हैं। इस प्रकार कहानी का कोई न कोई प्रयोजन होता है। इसी प्रयोजन को कहानी का उद्देश्य कहते हैं। कहानियों से हमें अनेक शिक्षाएँ मिलती हैं।
कहानी लिखने हेतु आवश्यक बातें - कहानी लिखते समय निम्नलिखित बातें ध्यान में रखनी चाहिए -
यहाँ कुछ कहानियाँ दी जा रही हैं। इनको पढ़कर कहानी लेखन का अभ्यास करें -
1. मधुमक्खी और चिड़िया
एक समय की बात है कि एक चिड़िया एक पेड़ की डाल पर बैठी थी। उसी समय एक मधुमक्खी पानी में गिर गयी। चिड़िया ने उसे डूबते देखकर एक पत्ता तोड़कर पानी में डाल दिया। डूबती हुई मधुमक्खी पत्ते पर बैठ गई। जब उसके पंख सूख गये तब वह उड़ गई। एक दिन जंगल में एक शिकारी आया। उसने चिड़िया का शिकार करने के लिए निशाना साधने लगा। चिड़िया को शिकारी का पता नहीं था। मधुमक्खी ने खतरे को समझ लिया, उसने तुरन्त ही शिकारी के डंक मार दिया, जिससे शिकारी का निशाना चूक गया और चिड़िया की जान बच गई।
शिक्षा - भलाई का फल भला ही मिलता है।
2. रीछ और शिकारी
एक बार एक शिकारी शिकार के लिए जंगल की ओर गया। उसके हाथ में एक लम्बी मार की बढ़िया बन्दूक थी। सामने ऊँचे पर्वत से लगी एक पतली-सी पगडंडी खड्ढे के पास जा रही थी। उस पार जंगली बेरी थी। रीछ वहाँ पके हुए बेर खाने जाते थे। तभी शिकारी ने देखा कि एक छोटा रीछ इस पार से पगडंडी पर होकर उस पार जा रहा है। उस पार से उसी पगडंडी पर दूसरा बड़ा रीछ इस पार आ रहा है।
वह पगडंडी इतनी पतली थी कि दो रीछ एक साथ नहीं निकल सकते थे। कुछ ही देर में दोनों रीछ आमने-सामने आए। शिकारी ने देखा कि बड़ा रीछ चुपचाप बैठ गया और छोटा रीछ उसके ऊपर चढ़कर आगे निकल गया। "ओह! पशु इतना समझदार होता है और मूर्ख व्यक्ति आपस में लड़ते हैं।" शिकारी बिना शिकार किए ही लौट आया। भविष्य में उसने शिकार न करने का प्रण ले लिया। शिक्षा-मूर्ख सत्संगति से ही सुधर सकते हैं।
3. रंगा सियार
किसी जंगल में एक सियार रहता था। एक रात खाने की तलाश में घूमता-घूमता जंगल से बाहर निकल गया। रात के उजाले में उसे नील से भरी एक बड़ी टंकी दिखाई दी। उसने सोचा कि उसमें जरूर खाने की कोई चीज होगी। वह टंकी पर उछलकर चढ़ गया। उसने जैसे ही मुँह नीचे बढ़ाने की कोशिश की वैसे ही वह टंकी में गिर पड़ा। वह किसी प्रकार बाहर निकला। वह पूरा नीला हो चुका था।
जंगल में उसने अन्य सियारों से कहा कि उसे कल रात वनदेवी मिली थी। उन्होंने मुझे यह रूप दिया और जंगल का राजा बना दिया। सियार जंगल का राजा बन गया। एक बूढ़े सियार को उसकी बातों पर शक हुआ। उसने कुछ सियारों के कान में कहा और उन सभी ने मिलकर 'हुआहुआ' करना शुरू कर दिया। रंगे सियार से भी नहीं रहा गया। वह भी 'हुआ-हुआ' करने लगा। इस प्रकार उसका भेद खुल गया। शिक्षा-न कभी असलियत को छुपाना चाहिए न छल करना चाहिए।
4. लोमड़ी और अंगूर
एक जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी। दो दिन से उसे खाने के लिए कुछ नहीं मिला था। वह खाने की खोज में निकली, परन्तु उसे खाने के लिए कुछ नहीं मिला। वह मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभु! मेरी रक्षा कर। कुछ दूरी पर उसे एक बाग दिखाई दिया। वहाँ पर काले अंगूरों के बड़े-बड़े गुच्छे लटक रहे थे।
उन्हें देखकर लोमड़ी के मुँह में पानी भर आया। वह गुच्छों तक पहुँचने के लिए उछल-कूद करती रही। किन्तु उसके मुँह में अंगूरों का एक भी गुच्छा न आया। जब वह उछल-कूद करके बहुत थक गई, तो उसने अंगूरों को पाने का विचार छोड़ दिया। उसने जाते-जाते अंगूरों की ओर देखा, बोली कि मैं इन खट्टे अंगूरों का क्या करूँगी? इनके खाने से तो मेरा गला खराब हो जायेगा। शिक्षा-प्रत्येक असफल व्यक्ति चीज में दोष दूँढता है।
5. जैसे को तैसा।
किसी जंगल में सारस और गीदड़ रहते थे। स्वभाव भिन्न होते हुए भी वे दोनों गहरे दोस्त थे। एक दिन गीदड़ ने सारस को खाने की दावत पर बुलाया। सारस के आने पर गीदड़ ने बड़ी-सी थाली में खीर परोसकर उसके सामने रख दी। सारस ने थाली में से खीर खाने की कोशिश की। मगर चोंच के न डूबने से वह खीर का एक-एक चावल उठाकर खाने लग गया।
इस बीच गीदड़ सारी खीर चट कर गया। बेचारा सारस भूखा लौटा। उसने चलते-चलते अगले दिन गीदड़ को खाने का न्यौता दिया। दूसरे दिन गीदड़ ठीक समय पर सारस के यहाँ पहुँच गया। सारस ने लम्बी सुराही में खीर परोस रखी थी, सारस मजे से सारी खीर खा गया। गीदड़ का मुँह सुराही में घुस नहीं सकता था। उसे सुराही के बाहर लगे खीर के चावलों से ही संतोष करना पड़ा। गीदड़ खिसियाकर लौट गया। शिक्षा-किसी से बुरा व्यवहार न करो।
6. लोभ का फल
किसी नगर में कौड़ीमल नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह बहुत कंजूस था। वह पैसे के लिए बुरे से बुरे काम करने के लिए तैयार हो जाता था। संयोगवश उसे एक ऐसी मुर्गी मिल गई जो रोजाना एक सोने का अण्डा देती थी। कौड़ीमल सोने के अण्डे को बेचकर पैसा इकट्ठा करने लग गया। फिर भी उसका लोभ कम नहीं हुआ। एक दिन उसने सोचा कि इस मुर्गी के पेट में बहुत सारे अण्डे भरे हुए हैं।
आजकल सोने का भाव अच्छा चल रहा - है, क्यों न इसका पेट चीरकर सारे अण्डे निकाल लिए जाएँ। वह यह भी न जान सका कि मुर्गी के पेट में चीरने से वह मर जायेगी। अगले दिन सवेरे उठते ही कौड़ीमल ने मुर्गी का पेट चीर डाला। इसके पेट में सोने के अण्डे तो नहीं मिले पर मुर्गी अवश्य मर गई। कौड़ीमल हाथ मलकर पछताता रह गया। शिक्षा-लोभ का फल बुरा होता है।
7. खरगोश और कछुआ
किसी जंगल में तालाब के किनारे एक खरगोश और एक कछुआ रहते थे। दोनों में अच्छी मित्रता थी। खरगोश को अपनी तेज चाल का घमण्ड था, इसलिए वह कछुआ की धीमी चाल का मजाक उड़ाता था। एक दिन कछुए ने खरगोश से कहा कि तुम मेरा मजाक उड़ाते हो, क्यों न हम दोनों में दौड़ हो जाए? खरगोश दौड़ने के लिए राजी हो गया। दौड़ प्रारम्भ हुई तो खरगोश दौड़कर बहुत आगे निकल गया। उसने देखा कि कछुआ अभी बहुत पीछे रह गया है, तो क्यों 'न विश्राम कर लिया जाए।
तब वह एक पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा और सो गया। कछुआ अपनी धीमी चाल से चलता हुआ खरगोश से आगे पहुँच गया। जब खरगोश सोकर उठा तो तेजी से दौड़ा उसने देखा कि कछुआ तय स्थान पर पहले ही पहुंच गया था। इससे खरगोश ने अपनी हार मान ली। शिक्षा-घमण्ड नहीं करना चाहिए, किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए।
8. चतुर खरगोश और शेर
एक जंगल में शेर रहता था। वह एक दिन में कई जानवरों को मारकर खा जाता था। जानवर इस बात से चिन्तित थे वे शेर के पास गये और कहा कि हम आपके पास रोजाना एक जानवर खाने के लिए भेज देंगे। यह तय होने पर रोजाना एक जानवर शेर के पास जाने लगा। एक दिन खरगोश की बारी आयी। वह काफी देर से शेर के पास गया। उसने बताया कि रास्ते में एक दूसरा शेर मिल गया था।
उसने कहा कि मैं ही इस जंगल का राजा हूँ, तुम किस राजा के पास जा रहे हो? यह सुनकर शेर क्रोधित हुआ, तो खरगोश उसे एक कुएँ के पास ले जाकर बोला कि वह दुष्ट शेर इसी में रहता है। तब शेर ने झाँककर कुएँ में देखा, तो स्वयं की परछाई दिखी। मूर्ख शेर से उसे दूसरा शेर समझकर झपट्टा मारने के लिए कुएँ में छलाँग लगायी और गहरे कुएँ में डूबकर मर गया। तब सब जानवरों ने खरगोश की प्रशंसा की। शिक्षा-चतुराई एवं बुद्धि से बड़ा-से-बड़ा शत्रु जीता जा सकता है।
9. लालच बुरी बला
एक दिन एक व्याध वन में मृग को मारकर ले जा रहा था तभी उसके सामने एक भयंकर सूअर आ गया। व्याध ने उस पर पैना बाण छोड़ा, बाण लगते ही सूअर ने भी शीघ्रता से व्याध की नाभि पर जोरदार प्रहार किया। इस तरह सूअर के साथ वह व्याध भी मारा गया। उसी समय उनके पैरों के नीचे कुचलकर एक सर्प भी मर गया। इसके बाद एक सियार वहाँ पर आया और इसने शवों को देखकर सोचने लगा कि आज भाग्य से मुझे काफी भोज्य-सामग्री मिल गई है।
आज मैं सबसे पहले व्याध के धनुष पर लगी हुई ताँत की डोरी को खाकर अपनी भूख मिटाता हूँ। तब सियार धनुष की ताँत से बनी डोरी काटने लगा, परन्तु ज्योंही उसने वह ताँत काटी, त्योंही धनुष का एक सिरा सियार की छाती में घुस गया। सियार का हृदय फट गया और वह भी मर गया। इस तरह अति लालच से सियार का प्राणान्त हुआ। शिक्षा-अति लालच या अति-संचय नहीं करना चाहिए।
10. सच्ची मित्रता
एक वन में किसी बहेलिये ने एक स्थान पर अपना जाल फैलाया और उस पर चावलों के कण बिखेरकर स्वयं छिपकर बैठ गया। तब कबूतरों के राजा चित्रग्रीव के द्वारा मना करने पर भी सारे कबूतर चावल खाने के लिए उतर पड़े और बैठते ही जाल में फँस गये। तब चित्रग्रीव के |कहने पर वे सब कबूतर जाल को लेकर एकसाथ उड़ गये, बहेलिया कुछ दूर तक उनके पीछे दौड़ता रहा, परन्तु अन्त में निराश होकर लौट गया। वे सभी कबूतर गण्डकी नदी के तट पर रहने वाले हिरण्यक नामक मूषक के पास जाकर उतरे।
हिरण्यक चित्रग्रीव का परम मित्र था। उसने कबूतरों को उतरते देखता, तो अपने बिल से बाहर आया। उसने सभी कबूतरों के बन्धन एक-एक करके काट डाले और उनके प्राणों की रक्षा की। तत्पश्चात् उनका अतिथि सत्कार कर उन्हें विदा किया। इस प्रकार हिरण्यक मूषक ने सच्ची मित्रता का निर्वाह किया।
शिक्षा - सच्ची मित्रता का सम्मान करना चाहिए।