These comprehensive RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 8 ईश्वर से अनुराग will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 7 Social Science Notes History Chapter 8 ईश्वर से अनुराग
→ परमेश्वर का विचार
- बड़े-बड़े राज्यों के उदय होने से पहले, भिन्न-भिन्न समूहों के लोग अपने-अपने देवी-देवताओं की पूजा किया करते थे। लोग कर्म और पुनर्जन्म के जीवन चक्र को मानते थे।
- यह विचार भी पनपा कि सभी व्यक्ति जन्म के समय एक बराबर नहीं होते हैं तथा सामाजिक विशेषाधिकार किसी उच्च परिवार या जाति में पैदा होने के कारण मिलते हैं।
- अनेक लोग असमानता व सामाजिक विशेषाधिकारों के कारण बुद्ध व जैनों के उपदेशों की ओर उन्मुख हुए।
- कुछ लोग इस विचार से आकर्षित हुए कि यदि मनुष्य भक्तिभाव से परमेश्वर की शरण में जाए, तो परमेश्वर, व्यक्ति को इस बंधन से मुक्त कर सकता है। फलतः धार्मिक अनुष्ठानों व शिव, विष्णु तथा दुर्गा की पूजा होने लगी। भक्त की यह विचारधारा इतनी लोकप्रिय हुई कि बौद्धों और जैन मतावलम्बियों ने भी इन विश्वासों को अपना लिया।
→ दक्षिण भारत में भक्ति का एक नया प्रकार-नयनार और अलवार
- 7वीं से नौवीं शताब्दियों के मध्य दक्षिण में घुमक्कड़ नयनारों (शैव संतों) और अलवारों (वैष्णव संतों) ने नए धार्मिक आंदोलनों का नेतृत्व किया।
- 10वीं से 12वीं सदियों के बीच चोल और पांड्यन राजाओं ने उन धार्मिक स्थलों पर विशाल मंदिर बनवा दिए, जहाँ सन्त कवियों ने यात्रा की थी। इस प्रकार भक्ति परम्परा और मंदिर पूजा के बीच गहरे सम्बन्ध स्थापित हो गए।
→ दर्शन और भक्ति
- अद्वैतवाद के समर्थक दार्शनिक शंकर का जन्म आठवीं सदी में केरल प्रदेश में हुआ। उन्होंने निर्गुण और निराकार ब्रह्म की शिक्षा दी और संन्यास लेने तथा ज्ञान मार्ग को अपनाने का उपदेश दिया।
- 11वीं सदी में तमिलनाडु में रामानुज ने विशिष्टाद्वैत के सिद्धान्त का प्रतिपादन किया। इस सिद्धान्त ने भक्ति की नयी धारा को प्रेरित किया जो उत्तरी भारत में विकसित हुई।

→ बसवन्ना का वीरशैववाद
- भक्ति आंदोलन की प्रतिक्रिया में बसवन्ना, अल्लमा प्रभु और अक्कमहादेवी ने 12वीं सदी में कर्नाटक में वीरशैव आंदोलन प्रारंभ किया।
- इन्होंने ब्राह्मणवादी विचारधारा, कर्मकांडों और मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए सभी व्यक्तियों की समानता के पक्ष में प्रबल तर्क दिए।
→ महाराष्ट्र के सन्त
- 13वीं से 17वीं शताब्दी तक महाराष्ट्र में ज्ञानेश्वर, नामदेव, एकनाथ, तुकाराम तथा सखूबाई तथा चोखामेला परिवार वैष्णव संत कवि भगवान विट्ठल (विष्णु) के उपासक थे।
- इन संत कवियों ने कर्मकांडों, पवित्रता के ढोंगों और जन्म आधारित सामाजिक अन्तरों का विरोध किया। इन्होंने असली भक्ति गृहस्थ जीवन और दूसरों के दुःखों को बाँट लेना बताया। इससे एक नये मानवतावादी विचार का उदय हुआ।
→ नाथपंथी,सिद्ध और योगी
- इस काल में नाथपंथी, सिद्धाचार तथा योगीजन जैसे धार्मिक समूह उभरे।
- इन्होंने संसार का परित्याग कर मोक्ष प्राप्त करने पर बल दिया।
- इन्होंने योगासन, प्राणायाम और चिंतन-मनन क्रियाओं पर बल दिया।
→ इस्लाम और सूफी मत
- इस्लाम ने एकेश्वरवाद का दृढ़ता से प्रचार किया तथा 8वीं और नवीं शताब्दी में इसके धार्मिक विद्वानों ने शरिया और इस्लामिक धर्मशास्त्र के विभिन्न पहलुओं को विकसित किया।
- सूफियों ने ईश्वर के प्रति व्यक्तिगत समर्पण पर बल दिया।
- मध्य एशिया के महान सूफी सन्तों में गज्जाली, रूमी और सादी प्रमुख हैं। भारतीय उपमहाद्वीप में सूफी केन्द्र चिश्ती सिलसिला अधिक प्रभावशाली था। इसमें औलियाओं की एक लम्बी परम्परा थी।
- सूफी सन्तों की दरगाह एक तीर्थस्थल बन जाता था, जहाँ सभी ईमान-धर्म के लोग हजारों की संख्या में इकट्ठे होते थे।
→ उत्तर-भारत में धार्मिक बदलाव
- 13वीं सदी के बाद उत्तरी भारत में भक्ति आंदोलन की एक नयी लहर आई। इनमें कबीर, गुरुनानक, तुलसीदास, सूरदास, दादूदयाल, रविदास, मीराबाई प्रमुख हैं।
- इन सन्तों ने क्षेत्रीय भाषाओं में साहित्यिक कृतियों की रचना की। ये बेहद लोकप्रिय हुईं।
→ कबीर-नजदीक से एक नजर
- कबीर संभवतः 15वीं-16वीं सदी में हुए थे। उनका पालन-पोषण बनारस में या उसके आस पास के एक मुसलमान जुलाहा (बुनकर) परिवार में हुआ।
- कबीर निराकार परमेश्वर में विश्वास रखते थे और भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष की प्राप्ति पर बल देते थे।
- उन्होंने यह उपदेश दिया कि भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष यानी मुक्ति प्राप्त हो सकती है।
- हिन्दू तथा मुसलमान दोनों लोग उनके अनुयायी हो गए।

→ बाबा गुरु नानक-नजदीक से.एक नजर
- बाबा गुरुनानक ने तलवंडी (पाकिस्तान में ननकाना साहब) में 1469 ई. में जन्म लिया। उन्होंने करतारपुरा (रावी नदी के तट पर डेरा बाबा नानक) में एक केन्द्र स्थापित किया जहाँ एक नियमित उपासना पद्धति अपनायी जिसमें शबदों (भजनों) को गाया जाता था। इसके अनुयायी एक सांझी रसोई-लंगर-में इकट्ठे खाते-पीते थे। गुरु नानक ने उपासना और धार्मिक कार्यों के लिए जो जगह नियुक्त की थी, उसे धर्मसाल कहा गया। आज इसे गुरुद्वारा कहते हैं।
- गुरु नानक के बाद के गुरुओं ने गुरुमुखी लिपि में 'गुरुग्रंथ साहब' ग्रंथ को तैयार कराया एवं गुरु गोविंद सिंह ने उसे प्रमाणित किया।
- 17वीं सदी में गुरुद्वारा हरमंदर साहब (स्वर्ण मंदिर) के आस-पास अमृतसर शहर विकसित हुआ। 1699 ई. में गुरु गोविन्द सिंह ने 'खालसा पंथ' की स्थापना की।
- उन्होंने अपने उपदेश के सार को तीन शब्दों में व्यक्त किया
- (i) नाम,
- (ii) दान और
- (iii) इस्नान