These comprehensive RBSE Class 7 Social Science Notes Civics Chapter 4 लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 7 Social Science Notes Civics Chapter 4 लड़के और लड़कियों के रूप में बड़ा होना
→ लिंग-बोध (जेंडर)-लिंग बोध से हमारा आशय उन अनेक सामाजिक मूल्यों और रूढ़िवादी धारणाओं से है जिसे हमारी संस्कृति ने हमारे स्त्रीलिंग और पुल्लिंग होने के जैविक अन्तर के साथ जोड़ दिया है।।
यह शब्द हमें बहुत सी असमानताओं और स्त्री-पुरुष के बीच के शक्ति सम्बन्धों को भी समझने में सहायता करता है।
- लड़का या लड़की होना किसी की भी एक महत्त्वपूर्ण पहचान है, उसकी अस्मिता है।
- समाज पुरुष एवं स्त्रियों को अलग-अलग प्रकार से महत्त्व देता है। इस आधार पर उनके कार्य-व्यवहारों में | अन्तर किया जाता है तथा स्त्रियों की भूमिकाओं को पुरुषों की तुलना में कम महत्त्व दिया जाता है।
- पुरुषों और स्त्रियों के द्वारा किये जाने वाले कामों में यह असमानता निम्न कारणों से है
- घरेलू कामों को महत्त्वपूर्ण नहीं समझना
- घरेलू कार्यों की कम मजदूरी देना
- इन कार्यों में अधिक समय लगना।

→ महिलाओं का काम और समानता
- महिलाओं के घरेलू और देखभाल के कामों को कम महत्त्व देना एक व्यक्ति या परिवार का मामला नहीं है। यह स्त्रियों और पुरुषों के बीच असमानता की एक बड़ी सामाजिक व्यवस्था का ही भाग है। इसलिए इसके समाधान हेतु कार्य पारिवारिक स्तर के साथ-साथ शासकीय स्तर पर भी होने चाहिए।
- संविधान कहता है कि स्त्री तथा पुरुष होने के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता। परन्तु वास्तविकता में लिंगभेद होता है।
- बच्चों की देखभाल और घर के कामकाज का बोझं महिलाओं और लड़कियों पर पड़ता है। इसलिए सरकार ने आंगनवाड़ियों और बालवाड़ियाँ खोली हैं।
- सरकार ने अनिवार्य बालवाड़ी (क्रेश) सुविधा देने का कानून बनाकर महिलाओं तथा स्कूल जाने वाली लड़कियों को सुविधा प्रदान की है।