These comprehensive RBSE Class 6 Maths Notes Chapter 2 पूर्ण संख्याएँ will give a brief overview of all the concepts.
→ गिनती गिनने में काम आने वाली संख्याएँ 1, 2, 3, 4, .... प्राकृत संख्याएँ कहलाती हैं।
→ किसी प्राकृत संख्या में 1 जोड़ने पर उसकी परवर्ती अर्थात् अगली प्राकृत संख्या प्राप्त होती है।
→ किसी प्राकृत संख्या में से 1 घटाने पर उसकी पूर्ववर्ती प्राकृत संख्या प्राप्त होती है।
→ सबसे छोटी प्राकृत संख्या 1 है।
→ प्राकृत संख्याओं के संग्रह में संख्या 0 जोड़ने पर हमें पूर्ण संख्याओं का संग्रह (0, 1, 2, 3, 4, ...) प्राप्त होता है।।
→ प्रत्येक पूर्ण संख्या का एक परवर्ती होता है। 0 को छोड़कर प्रत्येक पूर्ण संख्या का एक पूर्ववर्ती होता है।
→ सभी प्राकृत संख्याएँ, पूर्ण संख्याएँ भी हैं। लेकिन 0 को छोड़कर सभी पूर्ण संख्याएँ प्राकृत संख्याएँ हैं |
→ संख्या रेखा पर आसानी से संख्याओं का जोड़, व्यवकलन, गुणा और भाग जैसी संक्रियाएँ की जा सकती हैं।
→ संख्या रेखा पर दाईं ओर चलने पर संगत योग प्राप्त होता है जबकि बाईं ओर चलने पर संगत व्यवकलन प्राप्त होता है। शून्य (0) से प्रारंभ करके समान दूरी के कदम से गुणा प्राप्त होता है।
→ पूर्ण संख्याएँ योग और गुणनफल के अंतर्गत संवृत (Closed) हैं अर्थात् दो पूर्ण संख्याओं का योग हमेशा एक पूर्ण संख्या तथा दो पूर्ण संख्याओं का गुणनफल हमेशा एक पूर्ण संख्या ही होता है। पूर्ण संख्याएँ व्यवकलन (घटाना) और भाग (विभाजन) के अंतर्गत संवृत नहीं हैं।
→ पूर्ण संख्याओं का शून्य से भाग (विभाजन) परिभाषित नहीं है।
→ पूर्ण संख्याओं के लिए योग और गुणन क्रमविनिमेय (commutative) हैं अर्थात् पूर्ण संख्याओं को किसी भी क्रम में जोड़ा तथा गुणा किया जा सकता है।
→ पूर्ण संख्याओं के लिए योग और गुणन साहचर्य (Associative) हैं ।
→ पूर्ण संख्याओं के क्रमविनिमेय, साहचर्य और वितरण गुण गणना को आसान बनाते हैं।
→ पूर्ण संख्याओं के लिए, 1 गुणनात्मक तत्समक है।