These comprehensive RBSE Class 12 Sociology Notes Chapter 1 संरचनात्मक परिवर्तन will give a brief overview of all the concepts.
→ भारत में उपनिवेशवाद के कारण आए संरचनात्मक परिवर्तन-आधुनिक भारत को समझने के लिए भारत के औपनिवेशिक अनुभव को जानना जरूरी है। भारत में आधुनिक विचार एवं संस्थाओं की शुरुआत औपनिवेशिकता की देन है। औपनिवेशवाद के प्रभाव के कारण भारत में आधुनिक विचारों की नींव पड़ी। यह एक विरोधाभासी स्थिति भी थी क्योंकि इस दौर में भारत ने पाश्चात्य उदारवाद एवं स्वतंत्रता को आधुनिकता के रूप में जाना, वहीं दूसरी ओर ब्रितानी उपनिवेशवादी शासन के अन्तर्गत भारत में स्वतंत्रता एवं उदारता का अभाव था। इस तरह के अंतःविरोधी तथ्यों ने भारतीय सामाजिक संरचना एवं संस्कृति में परिवर्तनों को दिशा दी एवं उन पर प्रभाव डाला।
→ भारत में सामाजिक सुधार और राष्ट्रीय आन्दोलन, हमारी विधि व्यवस्था, हमारा राजनीतिक जीवन और संविधान, हमारे उद्योग एवं कृषि, हमारे नगर और हमारे गाँव इन सब पर उपनिवेशवाद के विरोधाभासी अनुभवों का गहरा प्रभाव पड़ा। इसके कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं
→ उपनिवेशवाद एक संरचना एवं व्यवस्था के रूप में
(i) उपनिवेशवाद का अर्थ-एक देश द्वारा दूसरे देश पर शासन करना उपनिवेशवाद कहलाता है। भारत में काल और स्थान के अनुसार विभिन्न प्रकार के समूहों का उन विभिन्न क्षेत्रों पर शासन रहा है जो आज के आधुनिक भारत का निर्माण करते हैं। लेकिन औपनिवेशिक शासन किसी अन्य शासन से अलग और अधिक प्रभावशाली रहा। इसके कारण आए परिवर्तन अधिक गहरे तथा प्रभावी रहे हैं।
(ii) पूँजीवाद से पूर्व के साम्राज्य-पूँजीवादी शासक के आने से पहले के साम्राज्य और पूँजीवादी दौर के शासन में गुणात्मक अंतर है। पूर्व पूँजीवाद शासक समाज के आर्थिक आधार पर हस्तक्षेप नहीं कर सकता था। उन्होंने परम्परागत आर्थिक व्यवस्थाओं पर कब्जा करके अपनी सत्ता को बनाए रखा।
(iii) पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित साम्राज्य-ब्रितानी उपनिवेशवाद पूँजीवादी व्यवस्था पर आधारित था। इसकी प्रमुख विशेषताएँ ये थीं
(अ) ब्रितानी उपनिवेशवाद ने प्रत्यक्ष रूप से आर्थिक व्यवसाय में बड़े पैमाने पर हस्तक्षेप किया। जिससे ब्रितानी पूँजीवाद का विस्तार हुआ और उसे मजबूती मिली।
(ब) उपनिवेशवाद ने व्यक्तियों की आवाजाही को बढ़ाया।
(स) इसी समय एक नए मध्यम वर्ग का उद्भव हुआ।
(द) विभिन्न पेशेवर लोग जैसे-डॉक्टर, वकील इत्यादि का उद्भव हुआ, जिन्हें देश की सेवा के लिए चुना गया। यह आवाजाही केवल भारत तक सीमित नहीं थी वरन् अन्य देशों में भी थी। इसी कारण आज विभिन्न देशों में भारतीय मूल के लोग पाये जाते हैं।
(य) व्यवस्थित शासन के लिए उपनिवेशवाद ने विभिन्न क्षेत्रों जैसे वैधानिक, सांस्कृतिक अथवा वास्तुकला आदि में भारी परिवर्तन की शुरुआत की। इनमें से कुछ परिवर्तन तो अप्रकट थे और कुछ सुनियोजित तरीकों से लाए गए थे।
(iv) पूँजीवाद का अर्थ-पूँजीवाद ऐसी आर्थिक व्यवस्था है जिसमें उत्पादन के साधन का स्वामित्व कुछ विशेष लोगों के हाथों में होता है और इसमें ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमाने पर जोर दिया जाता है।
पूँजीवाद को प्रारम्भ से ही इसकी गतिशीलता वृद्धि की संभावनाएँ, प्रसार, नवीनीकरण, तकनीक और श्रम के बेहतर उपयोग के लिए जाना जाता है। इन्हीं गुणों के कारण इसमें लाभ ज्यादा होता है। भारत में भी पूँजीवाद के विकास के कारण उपनिवेशवाद प्रबल हुआ और इस प्रक्रिया के दूरगामी प्रभाव भारत की सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक संरचना पर पड़े।
→ नगरीकरण और औद्योगीकरण: भारत में ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कारण आए दो प्रमुख संरचनात्मक परिवर्तन हैं-नगरीकरण और औद्योगीकरण। औद्योगीकरण और नगरीकरण सम्बन्धी औपनिवेशिक अनुभव इस प्रकार रहे
(1) औद्योगीकरण का सम्बन्ध यांत्रिक उत्पादन के उदय से है जो शक्ति के गैर मानवीय संसाधन जैसे वाष्प या विद्युत पर निर्भर होता है।
(2) औद्योगिक समाजों में ज्यादा से ज्यादा रोजगारवृत्ति में लगे लोग कारखानों, ऑफिसों और दुकानों में कार्य करते हैं तथा कृषि सम्बन्धी व्यवसायों में लोगों की संख्या कम होती जाती है।
(3) औद्योगीकरण व नगरीकरण प्रायः एक साथ होने वाली प्रक्रियाएँ हैं। लेकिन हमेशा ऐसा नहीं होता। जैसे
(4) औद्योगीकरण का मतलब केवल मशीनों पर आधारित उत्पाद ही नहीं बल्कि यह नए सामाजिक समूहों और नए सामाजिक सम्बन्धों के उद्भव और विकास अर्थात् भारतीय सामाजिक संरचना में हुए परिवर्तनों की कहानी है।
(5) ब्रिटिश साम्राज्य की अर्थव्यवस्था में नगरों की भूमिका महत्त्वपूर्ण थी। समुद्रतटीय नगर, जैसे-बम्बई, कलकत्ता और मद्रास उपयुक्त माने गये थे। ये नगर भूमंडलीय पूँजीवाद के ठोस उदाहरण थे। औपनिवेशिक काल के नगरीकरण में पुराने शहरों का अस्तित्व कमजोर होता गया और नये औपनिवेशिक शहरों का उद्भव तथा विकास हुआ।
इससे स्पष्ट होता है कि भारत में औद्योगीकरण और नगरीकरण उस प्रकार नहीं हुआ जैसा ब्रिटेन में हुआ। इसका कारण था-यहाँ के प्रारम्भिक औद्योगीकरण और नगरीकरण पर औपनिवेशिक शासन का होना।
→ चाय की बागवानी: सन् 1851 में चाय उद्योगों की भारत में शुरुआत हुई। ज्यादातर चाय के बागान असम में थे। चूँकि चाय के बागान निर्जन पहाड़ी क्षेत्रों में स्थित थे इसलिए बड़ी संख्या में श्रमिकों को दूसरे प्रान्तों से लाया जाता था। औपनिवेशिक सरकार गलत तरीकों से मजदूरों की भर्ती करती थी और उनसे बलपूर्वक कार्य लिया जाता था। ब्रिटिश सरकार के कानून का मुख्य उद्देश्य बागान वालों को फायदा पहुंचाना होता था न कि मजदूरों के हितों का ध्यान रखना। यह जरूरी नहीं था कि ब्रिटिश उन प्रजातांत्रिक नियमों का निर्वाह औपनिवेशिक देश में भी करे जो ब्रिटेन में लागू होते थे।
→ स्वतंत्र भारत में औद्योगीकरण: भारत के औद्योगीकरण में औपनिवेशिक शासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। स्वाधीन भारत के शासक उपनिवेशवाद के द्वारा प्रभावित हुए विकास को संजोए रखना चाहते थे। भारतीय राष्ट्रवादियों ने माना कि तीव्र और वृहद् औद्योगीकरण के ही द्वारा आर्थिक स्थिति में सुधार सम्भव है, जिनसे विकास और सामाजिक न्याय हो पाएगा। भारी मशीनीकृत उद्योगों का विकास हुआ। इन्हें बनाने वाले उद्योग, पब्लिक सेक्टर का विस्तार और बड़े को-ऑपरेटिव सेक्टर को महत्त्वपूर्ण माना गया।
→ स्वतंत्र भारत में नगरीकरण: भारत में नगरीकरण में औपनिवेशिक शासन की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। आजादी के बाद दो दशकों में भारत में नगरीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव स्पष्ट होने लगा था। भारत में नगरीकरण अनेक प्रकारों से हो रहा था-भारत के कई गाँव भी तेजी से बढ़ रहे नगरीय प्रभाव में आ रहे थे। नगरीय प्रकृति का प्रभाव गाँवों का शहर या नगर से कैसा सम्बन्ध है, यह कई बातों पर निर्भर करता है। एम. एस. ए. राव ने तीन निम्न प्रकार के शहरी प्रभावों की स्थिति की व्याख्या की है