These comprehensive RBSE Class 12 Psychology Notes Chapter 3 जीवन की चुनौतियों का सामना will give a brief overview of all the concepts.
→ जीवन की सभी चुनौतियाँ, समस्याएँ तथा कठिन परिस्थितियाँ हमें दबाव में डालती हैं।
→ यदि दवाव का ठीक से प्रबंधन किया जाए तो वे व्यक्ति की अतिजीविता की संभावना में वृद्धि करते हैं, ऊर्जा प्रदान करते हैं, मानव भाव-प्रबोधन में वृद्धि करते हैं तथा निष्पादन को प्रभावित करते हैं।
→ उच्च दबाव अप्रीतिकर प्रभाव उत्पन्न कर सकता है तथा हमारे खराब निष्पादन का कारण बन जाता है।
→ कम दबाव के कारण व्यक्ति उदासीन तथा निम्न प्रकार की अभिप्रेरणा का अनुभव कर सकता है, जिसके कारण वह कम दक्षतापूर्वक तथा धीमी गति से कार्य निष्पादन कर पाता है।
→ दबाव किसी जीव द्वारा उद्दीपक घटना के प्रति की जाने वाली अनुक्रियाओं का प्रतिरूप होता है जो उसकी साम्यावस्था में व्यवधान उत्पन्न करता है तथा उसके सामना करने की क्षमता से कहीं अधिक होता है।
→ दबाव की व्युत्पत्ति लैटिन 'स्ट्रिक्टस' जिसका अर्थ है तंग या संकीर्ण तथा 'स्ट्रिन्गर' जो क्रियापद है जिसका अर्थ है कसना, सं हुई है।
→ आधुनिक दवाव शोध के जनक ‘हैंस सेल्ये' हैं जिनके अनुसार दबाव किसी माँग के प्रति शरीर की अविशिष्ट अनुक्रिया है।
→ दबाव एक सतत चलने वाली प्रक्रिया में सन्निहित है जिसके अंतर्गत व्यक्ति अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक पर्यावरणों में कार्य-संपादन करता है, संघर्षों का मूल्यांकन करता है तथा उनसे उत्पन्न होने वाली समस्याओं का सामना करने का प्रयास करता है।
→ दबाव जीवन का एक अंग है। दबाव न तो एक उद्दीपक है और न ही एक अनुक्रिया बल्कि व्यक्ति तथा पर्यावरण के मध्य - एक सतत संव्यवहार प्रक्रिया है।
→ दबाव का प्रत्यक्षण व्यक्ति द्वारा घटनाओं के संज्ञानात्मक मूल्यांकन तथा उनसे निपटने के लिए उपलब्ध संसाधनों पर निर्भर करता है।
→ दबाव के संज्ञानात्मक सिद्धांत का प्रतिपादन लेजारस एवं उनके सहयोगियों द्वारा किया गया है जिस पर दबाव प्रक्रिया आधारित
→ प्राथमिक मूल्यांकन का संबंध एक नए या चुनौतीपूर्ण पर्यावरण का उसके सकारात्मक, तटस्थ अथवा नकारात्मक परिणामों के रूप में प्रत्यक्षण से है।
→ द्वितीयक मूल्यांकन किसी घटना का प्रत्यक्षण दबावपूर्ण घटना के रूप में करते हैं, जो व्यक्ति की अपनी सामना करने की योग्यता तथा संसाधनों का मूल्यांकन होता है कि वे उस घटना द्वारा उत्पन्न नुकसान या चुनौती से निपटने के लिए पर्याप्त
→ प्राथमिक या द्वितीयक मूल्यांकन न केवल हमारी संज्ञानात्मक तथा व्यवहारात्मक अनुक्रियाएँ निर्धारित करता है बल्कि बाह्य घटनाओं के प्रति हमारी सांवेगिक एवं शरीर क्रियात्मक अनुक्रियाओं को भी निर्धारित करता है।
→ प्राथमिक एवं द्वितीयक मूल्यांकन को अनेक कारक प्रभावित करते हैं; जैसे-पूर्व अनुभव, नियंत्रणीय परिस्थिति, पर्यावरणीय; जैसे-शोर, वायु प्रदूषण; सामाजिक जैसे-किसी मित्र से संबंध टूट जाना या अकेलापन और मनोवैज्ञानिक कारक जैसे-द्वंद्व और कुंठा।
→ शरीर क्रियात्मक स्तर पर दबाव संबंधी व्यवहारों में भाव-प्रबोधन एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
→ हाइपोथैलेमस दो पंथों के माध्यम से क्रिया करता है। प्रथम पथ के अंतर्गत स्वायत्त तंत्रिका तंत्र तथा द्वितीय पथ के अंतर्गत पीयूष या पिट्युइटरी ग्रंथि सम्मिलित है।
→ दबाव के प्रति जो संवेगात्मक प्रतिक्रियाएँ होती हैं, उनमें नकारात्मक संवेग जैसे-भय, दुश्चिंता, उलझन, क्रोध, अवसाद या यहाँ तक कि नकार सम्मिलित हैं।
→ व्यवहारात्मक अनुक्रियाओं की दो सामान्य श्रेणियाँ हैं-दबावकारक का मुकाबला या खतरनाक घटना से पीछे हट जाना यानि संघर्ष करना और पलायन करना।
→ संज्ञानात्मक अनुक्रियाओं के अंतर्गत, कोई घटना कितना नुकसान पहुँचा सकती है या कितनी खतरनाक है तथा उसे कैसे नियंत्रित किया जा सकता है इससे संबंधित विश्वास आते हैं। इसके अंतर्गत अनुक्रियाएँ, जैसे-ध्यान केंद्रित न कर पाना तथा अंतर्वेधी, पुनरावर्ती या दूषित विचार आते हैं।
→ बाह्य प्रतिबलक के प्रति प्रतिक्रिया को तनाव कहते हैं।
→ व्यक्ति जिन दबावों का अध्ययन करते हैं, वे तीव्रता, अवधि, जटिलता तथा भविष्यकथनीयता में भी भिन्न हो सकते हैं।
→ वे दबाव जो अधिक तीव्र, दीर्घकालिक या पुराने, जटिल तथा अप्रत्याशित होते हैं, वे अधिक नकारात्मक परिणाम उत्पन्न करते हैं।
→ किसी व्यक्ति द्वारा दबाव का अनुभव करना उसके शरीर क्रियात्मक बल पर निर्भर करता है अर्थात् खराब शारीरिक स्वास्थ्य और दुर्बल शारीरिक गठन वाले व्यक्ति अच्छे स्वास्थ्य एवं बलिष्ठ शारीरिक गठन वाले व्यक्ति की अपेक्षा दबाव के समक्ष अधिक असुरक्षित होंगे।
→ दबाव प्रमुखतया तीन प्रकार के होते हैं
→ भौतिक दबाव-वे माँगें हैं जिसके कारण हमारी शारीरिक दशा में परिवर्तन उत्पन्न हो जाता है।
→ पर्यावरणी दबाव-हमारे परिवेश की वैसी दशाएँ होती हैं जो प्रायः अपरिहार्य होती हैं। जैसे-वायु-प्रदूषण, भीड़, शोर आदि।
→ मनोवैज्ञानिक दबाव-वे दबाव हैं जिन्हें हम अपने मन में उत्पन्न करते हैं। मनोवैज्ञानिक दबाव, दबाव के आंतरिक स्रोत होते हैं।
→ मनोवैज्ञानिक दबाव के कुछ प्रमुख स्रोत-कुंठा, द्वंद्व, आंतरिक एवं सामाजिक दबाव इत्यादि हैं।
→ कुंठा उत्पन्न होने के कारण-जब कोई व्यक्ति या परिस्थिति हमारी आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों को अवरुद्ध करती है, जो हमारी इष्ट लक्ष्य की प्राप्ति में बाधा डालती है तो कुंठा उत्पन्न होती है।
→ कुंठा के कारण-सामाजिक भेदभाव, अंतर्वैयक्तिक क्षति, स्कूल में कम अंक प्राप्त करना इत्यादि कुंठा के कारण हैं।
→ द्वंद्व-दो या दो से अधिक असंगत आवश्यकताओं तथा अभिप्रेरकों में द्वंद्व हो सकता है।
→ आंतरिक दबाव-आंतरिक दबाव हमारे उन विश्वासों के कारण उत्पन्न होता है जो हमारी ही कुछ प्रत्याशाओं पर आधारित होते हैं तथा जो हम अपने लक्ष्य तथा अवास्तविक अत्यन्त उच्च स्तर को प्राप्त करने के लिए निर्दयता से स्वयं को प्रेरित करते रहते हैं।
→ सामाजिक दबाव-उन व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न किये जाते हैं जो हमारे ऊपर अत्यधिक माँगें थोप देते हैं।
→ सामाजिक दबाव बाह्य जनित होते हैं तथा दूसरे लोगों के साथ हमारी अंतःक्रियाओं के कारण उत्पन्न होते हैं।
→ दबाव के स्रोत-दबाव के स्रोत हैं-जीवन घटनाएँ, प्रतिदिन की उलझनें तथा अभिघातज घटनाएँ।
→ दबाव के प्रति संवेगात्मक, शरीरक्रियात्मक, संज्ञानात्मक तथा व्यवहारात्मक अनुक्रियाएँ होती हैं।
→ संवेगात्मक प्रभाव-दबावग्रस्त व्यक्ति प्रायः आकस्मिक मन:स्थिति परिवर्तन का अनुभव करते हैं तथा सनकी की तरह व्यवहार करते हैं और परिवार तथा मित्रों से विमुख हो जाते हैं।
→ शरीर क्रियात्मक प्रभाव-जब शारीरिक या मनोवैज्ञानिक दबाव मनुष्य के शरीर पर क्रियाशील होते हैं तो शरीर में कुछ हार्मोन का स्राव बढ़ जाता है तथा ये हृदयगति, रक्तचाप स्तर, चयापचय तथा शारीरिक क्रिया में विशिष्ट परिवर्तन कर देते हैं।
→ संज्ञानात्मक प्रभाव-दबाव के कारण दाब निरन्तर रूप से बना रहे तो व्यक्ति मानसिक अतिभार से ग्रस्त हो जाता है। परिणामस्वरूप ठोस निर्णय लेने की क्षमता में तेजी से कमी, एकाग्रता में कमी तथा न्यूनीकृत अल्पकालिक स्मृति क्षमता आदि प्रभाव हो सकते हैं।
→ बर्नआउट-शारीरिक, संवेगात्मक तथा मनोवैज्ञानिक परिश्रांति की अवस्था को बर्नआउट कहते हैं।
→ सेल्ये के अनुसार सामान्य अनुकूलन संलक्षण या जी. ए. एस. के अंतर्गत तीन चरण होते हैं
→ जब दबाव दीर्घकालिक होता है तो वह व्यक्ति के शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है तथा मनोवैज्ञानिक प्रकार्यों को भीदुर्बल करता है। मनस्तंत्रिक प्रतिरक्षा विज्ञान-यह मन, मस्तिष्क और प्रतिरक्षक तंत्र के बीच संबंधों पर ध्यान केंद्रित करता है तथा प्रतिरक्षक तंत्र पर दबाव के प्रभाव का अध्ययन करता है।
→ सामना करना-दबाव के प्रति एक गत्यात्मक स्थिति-विशिष्ट प्रतिक्रिया है। यह दबावपूर्ण स्थितियों के प्रति कुछ निश्चित मूर्त अनुक्रियाओं का समुच्चय होता है जिनका उद्देश्य दबाव को कम करना होता है।
→ दबाव का सामना करने के तीन प्रमुख प्रकार-कृत्य-अभिविन्यस्त, संवेग-अभिविन्यस्त तथा परिहार-अभिविन्यस्त दबाव का सामना करने की तीन प्रमुख युक्तियाँ या कौशल हैं।
→ कृत्य-अभिवियस्त युक्ति-दबावपूर्ण स्थिति के संबंध में सूचनाएं एकत्रित करना, उनके प्रति क्या-क्या वैकल्पिक क्रियाएँ हो सकती हैं तथा उनके संभावित परिणाम क्या हो सकते हैं, सभी इनके अंतर्गत आते हैं।
→ संवेग-अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत मन में आशा बनाए रखने के प्रयास अपने संवेगों पर नियंत्रण, कुंठा तथा क्रोध की भावनाओं को अभिव्यक्त करना आदि आते हैं।
→ परिहार-अभिविन्यस्त युक्ति-इसके अंतर्गत स्थिति की गंभीरता को नकारना या कम समझना तथा दबावपूर्ण विचारों का सचेतन दमन और उसके स्थान पर आत्मरक्षित विचारों का प्रतिस्थापन सम्मिलित होते हैं।
→ दबाव का सामना करने की अनुक्रिया समस्या- यह केंद्रित अथवा संवेग-केंद्रित हो सकती है।
→ समस्या-केंद्रित अनुक्रिया पर्यावरण को परिवर्तित करने पर केंद्रित होती है तथा घटना के संकट मूल्य को कम करने का कार्य करती है।
→ संवेग-केंद्रित अनुक्रियाएँ संवेगों को परिवर्तित करने की युक्तियाँ हैं तथा उनका उद्देश्य घटना के कारण उत्पन्न सांवेगिक विघटन की मात्रा को सीमित करना होता है।
→ विश्रांति की तकनीकें-ये वे सक्रिय कौशल हैं जिनके द्वारा दबाव के लक्षणों तथा बीमारियों; जैसे-उच्च रक्तचाप एवं हृदय रोग के प्रभावों में कमी की जा सकती है।
→ ध्यान प्रक्रियाएँ-ध्यान लगाने की प्रक्रिया में कुछ अधिगत प्रविधियाँ एक निश्चित अनुक्रम में उपयोग में लाई जाती हैं जिसमें - ध्यान को पुनः केंद्रित कर चेतना की परिवर्तित स्थिति उत्पन्न कर दबाव का प्रबंधन किया जाता है।
→ जैव प्राप्ति या बायोफीडबैक-वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा दबाव के शरीर क्रियात्मक पक्षों का परिवीक्षण कर उन्हें कम करने के लिए फीडबैक दिया जाता है कि व्यक्ति में वर्तमानकालिक शरीर क्रियाएँ क्या हो रही हैं।
→ सर्जनात्मक मानस-प्रत्यक्षीकरण एक आत्मनिष्ठ अनुभव है जिसमें प्रतिमा तथा कल्पना का उपयोग किया जाता है।
→ संज्ञानात्मक व्यवहारात्मक तकनीकें-इन तकनीकों का उद्देश्य व्यक्ति को दबाव के विरुद्ध संचारित करना होता है।
→ आग्रहिता, समय प्रबंधन, सविवेक, चिंतन, संबंधों को सुधारना, स्वयं की देखभाल तथा असहायक आदतों पर विजयी होना वे जीवन कौशल हैं जो हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में सहायता करते हैं।
→ सकारात्मक स्वास्थ्य तथा कुशल क्षेम को सुकर बनाने वाले तथा दबाव के प्रतिरोधक का कार्य करने वाले कारक हैं-संतुलित आहार, व्यायाम, सकारात्मक, अभिवृत्ति, सकारात्मक, आशावादी चिंतन तथा सामाजिक अवलंब।
→ लेजारस तथा फोकमैन ने दबाव का सामना करने का संकल्पना-निर्धारण एक गत्यात्मकता प्रक्रिया के रूप में किया है न कि किसी व्यक्तिगत विशेषक के रूप में।