Rajasthan Board RBSE Class 12 Physics Important Questions Chapter 14 अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिकी-पदार्थ, युक्तियाँ तथा सरल परिपथ Important Questions and Answers.
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अति लघुत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रकाश उत्सर्जक डायोड (LED) बनाने के लिए उपयोग में लिये जाने वाले किसी एक अपमिश्रित अर्द्धचालक का नाम लिखिए।
उत्तर:
गैलियम आर्सेनिक फॉस्फाइड (GaAsP)
प्रश्न 2.
जेनर डायोड का एक मुख्य उपयोग लिखिए।
उत्तर:
वोल्टता नियमन में
प्रश्न 3.
ग्राही अशुद्ध का उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
बोरॉन (त्रिसंबोजी अशुद्धि)
प्रश्न 4.
AND गेट का तर्क प्रतीक बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 5.
दिया गया आरेख किसी अर्द्धचालक के लिए विद्युत धारा तथा वोल्टता के बीच ग्राफ को दर्शाता है। उस क्षेत्र की पहचान कीजिए जिसमें इस अर्द्धचालक का प्रतिरोध ऋणात्मक है।
उत्तर:
वक्र में बिन्दु B से C तक डाल ऋणात्मक है। अत: B से C के बीच अर्द्धचालक का प्रतिरोध ऋणात्मक है।
प्रश्न 6.
दो सार्वत्रिक तार्किक द्वारों के नाम लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
किन्हीं दो यौगिक(कार्बनिक) अर्द्धचालकों के नाम लिखो।
उत्तर:
प्रश्न 8.
नैज अर्द्धचालक की क्रिस्टलीय संरचना कैसी होती है?
उत्तर:
समचतुष्फलकीय
प्रश्न 9.
p - n संधि डायोड की अवक्षय परत पर क्या प्रभाव पड़ता है? जब डायोड-
(i) अग्रबायस में हो
(ii) पश्च बायस में हो।
उत्तर:
(i) अग्रवायस में अवक्षय परत की चौड़ाई कम हो जाती है।
(ii) पश्चबायस में अवक्षय परत और अधिक चौड़ी हो जाती है।
प्रश्न 10.
फोटो डायोड का मुख्य उपयोग क्या है?
उत्तर:
फोटो डायोड का उपयोग प्रकाश संसूचक (Photo Deteetor) की तरह होता है।
प्रश्न 11.
उस संधि डायोड का नाम लिखिए जिसका I - V अभिलक्षणिक नीचे अनुसार खींचा गया है:
उत्तर:
प्रश्न 12.
जब किसी p - n संधि डायोड के सिरों पर आरेख में दर्शाए अनुसार 10 V का वर्ग निवेशी सिग्नल लगाया गया है, तो निर्गत सिग्नल का आरेख खींचिए।
प्रश्न 13.
मादन सन्द्रिता में वृद्धि किसी p - n संधि डायोड के हासी स्तर की चौड़ाई को प्रभावित करती है।
उत्तर:
हासी स्तर की चौड़ाई घट जाती है।
प्रश्न 14.
संधि डायोड में विसरण धारा की दिशा क्या होती है?
उत्तर:
संधि - डायोड में विसरण धारा की दिशा p क्षेत्र से N क्षेत्र की ओर होती है।
प्रश्न 15.
वर्जित ऊजाँ अन्तराल (Forbidden energy gap) की परिभाषा दीजिए।
उत्तर:
संयोजकता बैण्ड को चालन बैण्ड से अलग करने वाले अन्तराल को ही बर्जित ऊर्जा अन्तराल कहते है।
प्रश्न 16.
निम्नलिखित आरेख में, क्या संधि डायोड अग्रदिशिक बायसित है अथवा पश्चदिशित बायसित?
उत्तर:
पश्चदिशिक बायसित।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
आरेख में दर्शाए गए गेटों के संयोजन के परिपथ के तुल्य गेट को पहचानिए और इसका प्रतीक लिखिए।
उत्तर:
OR gate
प्रश्न 2.
जेनर डायोड में भंजन बोल्टता समझाइए।
उत्तर:
p - n संधि डायोड को उचित रूप से डोपिंग करके ऐसा डायोड निर्मित किया जाता है जो भंजन वोल्टता क्षेत्र में ही कार्य कर सके। ऐसे डायोड को भंजक डायोड या जेनर डायोड कहते हैं। एक p - n संधि डायोड जब उत्क्रम अभिनत अवस्था में हो तो निश्चित मान की वोल्टता पर धारा के मान में एक उच्च मान तक अचानक वृद्धि दर्शायी जाती है, इस विभव को मंजक वोल्टता अथवा जेनर वोल्टता (Zener Voltage) कहते हैं। यह उच्च मान धारा साधारण p - n संधि को नष्ट कर सकती है। इस डायोड का नाम वैज्ञानिक के सम्मान में उसी के नाम पर 'जेनर डायोड (Zener Diode) रखा गया।
प्रश्न 3.
एकीकृत परिपथ क्या होता है? इसके कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
एकीकृत परिपथ: एकीकृत परिपथ वह परिपथ है जिसमें परिपथ के अवयव जैसे प्रतिरोधक, संधारित्र, डायोड एवं ट्रांजिस्टर आदि एक छोटी अड़चालक चिप के स्वतः भाग होते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि एक एकीकृत परिपथ में अनेकों परिपथ अवयंव जैसे प्रतिरोधक, संधारित्र, प्रेरकत्व, डायोड, ट्रांजिस्टर, लॉजिक गेट आदि होते हैं और वे सब आन्तरिक रूप से जुड़े होते हैं तथा ये सब एक बहुत खेटे पैकेज में बन्द होते हैं। एकीकृत परिपथ के विभिन्न अवयव एक छोटी अर्द्धचालक चिप पर उत्पन्न किये जाते हैं और अन्तः सम्बन्धित किये जाते हैं।
एकीकृत परिपथों के लाभ-
प्रश्न 4.
प्रबल धारा (Strong Current) बहने पर अर्द्धचालक नष्ट क्यों हो जाता है?
उत्तर:
जब अर्द्धचालक से प्रबल धारा बहती है तो अर्द्धचालक गर्म हो जाता है और गर्म होने से बड़ी संख्या में धारा वाहक अर्थात आवेश वाहक उत्पन्न होते हैं। परिणाम स्वरूप अर्द्धचालक का पदार्थ चालक की भाँति व्यवहार करना प्रारम्भ कर देता है। इस अवस्था में अर्द्धचालक कम चालकता प्रदान करने का गुण खो देता है अर्थात् अर्द्धचालक नष्ट हो जाता है।
प्रश्न 5.
p - प्रकार एवं n प्रकार के अर्द्धचालकों में किसकी गतिशीलता अधिक होती है? समझाइए।
उत्तर:
p - प्रकार के अर्द्धचालक में बहुसंख्यक आवेश वाहक होल एवं n - प्रकार के अर्द्धचालक में बहुसंख्यक आवेश वाहक इलेक्ट्रॉन होते हैं। चूँकि इलेक्ट्रॉन की गतिशीलता होल की गतिशीलता से अधिक होती है, अतः n प्रकार के अर्द्धचालक की गतिशीलता p - प्रकार के अर्द्धचालक की अपेक्षा अधिक होती है।
प्रश्न 6.
अर्द्धतरंग दिष्टकारी एवं पूर्णतरंग दिष्टकारी में कोई दो अन्तर बताइए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
LED से उत्सर्जित प्रकाश की (i) आवृत्ति (ii) तीव्रता का निर्धारण करने वाले कारक क्या है?
उत्तर:
(i) LED से उत्सर्जित प्रकाश की आवृत्ति LED में प्रयुक्त अर्द्धचालक पदार्थ पर निर्भर करती है, जैसे GaP संधि पर अधिकांश ऊर्जा लाल तथा हरे प्रकार के रूप में उत्सर्जित होती है। GaAsP संधि नीला तथा पीला प्रकाश उत्सर्जित करती है।
(ii) LED से उत्सर्जित प्रकाश की तीव्रता प्रयुक्त अर्द्धचालक के वर्जित ऊर्जा अन्तराल पर निर्भर करती है।
प्रश्न 8.
दो निवेशी संकेतों वाले NAND द्वारा का संकेत चित्र एवं सत्यता सारणी बनाइए।
उत्तर:
संकेत चित्र
सत्यातासारणी
A |
B |
A.B |
Y = \(\overline{A \cdot B}\) |
0 |
0 |
0 |
1 |
0 |
1 |
0 |
1 |
1 |
0 |
0 |
1 |
1 |
1 |
1 |
0 |
प्रश्न 9.
चित्र में निर्गत Y का मान लिखिए।
उत्तर:
A पर निर्गम - 1
B पर निर्गम - 1
∴ Y पर निर्गम - 1
प्रश्न 10.
ताप परिवर्तन का अर्द्धचालक की प्रतिरोधकता पर प्रभाव पड़ता है, समझाइए।
उत्तर:
अर्द्धचालक की प्रतिरोधकता ताप बदलने पर बदल जाती है क्योंकि ताप बदलने पर आवेश वाहकों की सान्द्रता बदल जाती है। ताप TK पर इलेक्ट्रॉनों की संख्या का वह अंश f जो संयोजकता बैण्ड से उठकर चालन बैण्ड में आ जाता है, निम्न सूत्र से मिलता है-
f ∝ e-Eg/2KT
जहाँ Eg वर्जित ऊर्जा अन्तराल है। अतः स्पष्ट है कि T का मान बढ़ने पर f का मान भी बढ़ जाता है अर्थात् अर्द्धचालक की चालकता बढ़ जाती है कि प्रतिरोधकता
अत: चालकता बढ़ने पर प्रतिरोधकता घट जाती है इस प्रकार ताप बढ़ाने पर अर्द्धचालक की प्रतिरोधकता कम हो जाती है।
प्रश्न 11.
C, Si तथा Ge की जालक (Lattice) संरचना समान होती है फिर भी C विधुतरोधी है जबकि Si तथा Ge नैज अर्द्धचालक है?
उत्तर:
C, Si तथा Ge के परमाणुओं में चार बन्धित इलेक्ट्रॉन क्रमश: द्वितीय, तृतीय तथा चतुर्थ कक्षा में होते हैं। अत: इस परमाणुओं में से एक इलेक्ट्रॉन की बाहर निकालने के लिए आवश्यक ऊर्जा सबसे कम Ge के लिए, इससे अधिक Si के लिए और सबसे अधिक C के लिए होगी। इस प्रकार Ge व Si में विद्युत चालक के लिए स्वतंत्र इलेक्ट्रॉनों की संख्या सार्थक होती है जबकि C में नगण्य होती है।
प्रश्न 12.
चित्र में एक लॉजिक गेट का प्रतीक प्रदर्शित है। इस गेट का नाम बताइए तथा इसके लिए एक निवेशी तरंग आकार तथा उसके संगत निर्गत तरंग आकार बनाइए।
उत्तर:
चित्र में दिया गया लॉजिक चित्र NOT गेट प्रदर्शित करता है। इसके लिए निवेशी तरंग आकार एवं संगत निर्गत तरंग आकार नीचे दिखाए गए चित्र में प्रदर्शित है।
दीर्घउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
p - n संधि के निर्माण के समय होने वाली प्रक्रियाओं को समझाइये।
उत्तर:
p - n सन्धि (p - n Junction)
जब p - प्रकार के अर्द्धचालक को n - प्रकार के अर्द्धचालक से इस प्रकार जोड़ा जाता है कि दोनों प्रकार के अर्द्धचालकों के परमाणु सन्धि तल पर एक - दूसरे से पूर्णत: मिल जायें तो इस प्रकार p व n प्रकार के अर्द्धचालकों का सम्पर्क तल p - n सन्धि तल (p - n junction) कहलाता है। जब p - n सन्धि तल बनाया जाता है तो n - प्रकार के अर्द्धचालक से कुछ इलेक्ट्रॉन p - प्रकार के अर्द्धचालक में चले जाते है और p - प्रकार के अर्द्धचालक के कुछ होल n - प्रकार के अर्द्धचालक में चले जाते हैं। जब ये सन्धि को पार करते हैं तो विपरीत आवेश होने के कारण इनमें से कुछ इलेक्ट्रॉन व होल परस्पर संयोग करके एक - दूसरे को अनावेशित कर देते हैं, अत: सन्धि तल के पास दोनों ओर एक ऐसी पतली परत बन जाती है जिसमें स्वतन्त्र धारावाहक अन्य क्षेत्र की अपेक्षा बहुत कम मात्रा में होते हैं, इस परत को अवक्षय - परत (depletion - layer) या अवक्षय - क्षेत्र (depletion - region) कहते हैं। इसकी मोटाई 10-6 m से 10-8 m तक होती है।
जब p - n सन्धि तल बनता है तो n - प्रकार के अर्द्धचालक से कुछ इलेक्ट्रॉन सन्धि को पार करके p - प्रकार के अर्द्धचालक में जाते हैं, अत: सन्धि तल के पास n - प्रकार का अर्द्धचालक धनावेशित एवं p - प्रकार का अर्द्धचालक ऋणावेशित हो जाता है। फलस्वरूप सन्धि तल के दोनों ओर एक क्षीण विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है जिसे विभव - प्राचीर (potential - barrier) या सम्पर्क - विभव (contact - potential) कहते हैं। इसकी माप 0.1 V से 0.5 V तक होती है जो सन्धि के ताप पर निर्भर करती है। सम्पर्क विभव के कारण सन्धि तल पर एक आन्तरिक विद्युत् क्षेत्र Ei स्थापित हो जाता है जिसकी दिशा धनाविष्ट (positive) n - क्षेत्र से ऋणाविष्ट (negative) p - क्षेत्र की ओर होती है। यह विद्युत् क्षेत्र कुछ समय बाद इतना अधिक हो जाता है कि आवेश वाहकों का और आगे विसरण (diffusion) रुक जाता है।
p - n सन्धि का निर्माण: n - प्रकार की Ge या Si पट्टिका की पतली परत पर त्रिसंयोजी (trivalent) अशुद्धि जैसे In के छोटे - छोटे गोले को दबाया जाता है। इस निकाय (configuration) को गर्म किया जाता है ताकि Ge की सतह से In संयोजित हो जाए तथा सम्पर्क पृष्ठ के ठीक नीचे p - प्रकार का Ge उत्पन्न हो जाए। यह p - प्रकार का Ge n - प्रकार की Ge परत के साथ p - n सन्धि (junction) का निर्माण करता है। निकाय के ऊपरी व निचले भागों को हमेशा धात्विक सम्पर्क (metallic contact) में रखते है।
p - n सन्धि तल से धारा का प्रवाह: किसी बाह्य बैटरी की अनुपस्थिति में सन्धि तल से होकर कोई धारा नहीं बहती है। इस दौरान डायोड साम्य में होता है अर्थात् (V = 0)। विभव प्राचीर के कारण आवेशों का विसरण नहीं होता है।
बाह्य बैटरी को सन्धि तल से निम्न दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है-
1. अन - अभिनति या अग्र बायस (Forward Bias): जब p - n सन्धि के p - भाग को बैटरी के धनध्रुव से तथा n - भाग को बैटरी के ऋण - ध्रुव से जोड़ा जाता है, तो इस अभिनति को अग्न अभिनति कहते हैं। इस अभिनति के समय p - भाग के होल बैटरी के धनध्रुव से सन्धि तल की ओर प्रतिकर्षित होते हैं और n - भाग के इलेक्ट्रॉन बैटरी के ऋणधु व से सन्धि तल की ओर प्रतिकर्षित होते हैं। इन प्रतिकर्षण बलों के प्रभाव में दोनों प्रकार के आवेश वाहक (होल एवं इलेक्ट्रॉन) सन्धि तल की ओर गतिशील हो जाते हैं और सन्धि तल को पार करके परस्पर विपरीत क्षेत्रों में प्रवेश कर
जाते हैं। इस प्रकार अग्र अभिनति के समय सन्धि तल सुचालक (good conductor) की भाँति व्यवहार करता है और इससे होकर धारा बहने लगती है। अग्रअभिनति का मान बढ़ाने पर धारा तेजी से बढ़ती है।
2. उत्क्रम - अभिनति (Reverse Bias): जब p - n सन्धि के p - भाग को बैटरी के ऋणध्रुव से एवं n - भाग को बैटरी के धनधुव से जोड़ा जाता
है तो इस अभिनति को उत्क्रमअभिनति कहते हैं। उत्क्रम अभिनति के समय p - भाग के होल बैटरी के ऋणध्रुव की ओर और n - भाग के इलेक्ट्रॉन बैटरी के धनधुव की ओर आकर्षित रहते हैं। सन्धि तल की ओर कोई आवेश वाहक गति नहीं करता है, अतः सन्धि तल कुचालक की भाँति व्यवहार करता है। स्पष्ट है कि बहुसंख्यक आवेश वाहकों (majority charge carriers) के कारण कोई धारा सन्धि तल से होकर नहीं बहती है। अल्पसंख्यक आवेश वाहकों (minority charge carriers) के कारण अत्यन्त क्षीण धारा (weak current) (µA) उत्क्रम धारा के रूप में मिलती है जिसका उत्क्रमअभिनति के साथ परिवर्तन में दिखाया गया है। इस धारा का कारण है कि p व n क्षेत्रों में ऊष्मीय विक्षोभ (thermal agitation) के कारण सह - संयोजक बन्ध (covalent bond) टूटने से इलेक्ट्रॉन व होल अल्पसंख्यक आवेश (minority charge carriers) वाहकों के रूप में विद्यमान रहते हैं और ये ही सन्धि तल को पार करके उत्क्रम धारा को जन्म देते हैं।
उत्क्रम धारा ताप पर बहुत अधिक निर्भर करती है तथा सन्धि का ताप बढ़ने पर बढ़ती है। उत्क्रम - अभिनत सन्धि में, आरोपित वैद्युत क्षेत्र E, आन्तरिक क्षेत्र (internal field) Ei को प्रबलित (strong) करता है, अतः बहुसंख्यक वाहक (majority charge carrier) (p - क्षेत्र में होल तथा n - क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन) सन्धि से दूर हट जाते हैं। इससे अवक्षय परत की चौड़ाई बढ़ जाती है। डायोड के अन अभिनति की तुलना में इस स्थिति में विसरण धारा अत्यधिक कम हो जाती है। उत्क्रम धारा लगाई गई वोल्टता पर अत्यधिक निर्भर नहीं करती। अल्पसंख्यक आवेश वाहकों को संधि के एक फलक से दूसरे फलक तक पहुँचाने के लिए लघु वोल्टता ही पर्याप्त होती है। धारा लगाई गई वोल्टेज के परिणाम द्वारा सीमित नहीं होती परन्तु यह संधि के दोनों फलकों पर अल्पसंख्यक वाहकों की सांद्रता के कारण सीमित होती है। उत्क्रम अभिनति में किसी क्रांतिक उत्क्रम पश्चदिशिक वोल्टता (critical reverse voltage) तक विद्युतधारा साधारणत: वोल्टता पर निर्भर नहीं करती है। इस वोल्टेज को भंजन वोल्टता' (breakdown voltage) कहते हैं। यदि V = Vbreakdown तब डायोड की उत्क्रम धारा में तेजी से परिवर्तन होता है। यदि उत्क्रम धारा को किसी बाहा परिपथ द्वारा अनुमत मान (allowed values) से नीचे सीमित न किया जाए तो p - n संधि नष्ट हो जाती है।
प्रश्न 2.
p - n संधि डायोड का निर्माण किस प्रकार करते हैं? संधि डायोड की उत्क्रम अभिनति की प्राथमिक व्यवस्था का नामांकित परिपथ बनाकर समझाइए। अग्न एवं उत्तम अभिनति में अभिनति वोल्टता एवं धारा के मध्य संबंध दीजिए।
उत्तर:
p - n सन्धि (p - n Junction)
जब p - प्रकार के अर्द्धचालक को n - प्रकार के अर्द्धचालक से इस प्रकार जोड़ा जाता है कि दोनों प्रकार के अर्द्धचालकों के परमाणु सन्धि तल पर एक - दूसरे से पूर्णत: मिल जायें तो इस प्रकार p व n प्रकार के अर्द्धचालकों का सम्पर्क तल p - n सन्धि तल (p - n junction) कहलाता है। जब p - n सन्धि तल बनाया जाता है तो n - प्रकार के अर्द्धचालक से कुछ इलेक्ट्रॉन p - प्रकार के अर्द्धचालक में चले जाते है और p - प्रकार के अर्द्धचालक के कुछ होल n - प्रकार के अर्द्धचालक में चले जाते हैं। जब ये सन्धि को पार करते हैं तो विपरीत आवेश होने के कारण इनमें से कुछ इलेक्ट्रॉन व होल परस्पर संयोग करके एक - दूसरे को अनावेशित कर देते हैं, अत: सन्धि तल के पास दोनों ओर एक ऐसी पतली परत बन जाती है जिसमें स्वतन्त्र धारावाहक अन्य क्षेत्र की अपेक्षा बहुत कम मात्रा में होते हैं, इस परत को अवक्षय - परत (depletion - layer) या अवक्षय - क्षेत्र (depletion - region) कहते हैं। इसकी मोटाई 10-6 m से 10-8 m तक होती है।
जब p - n सन्धि तल बनता है तो n - प्रकार के अर्द्धचालक से कुछ इलेक्ट्रॉन सन्धि को पार करके p - प्रकार के अर्द्धचालक में जाते हैं, अत: सन्धि तल के पास n - प्रकार का अर्द्धचालक धनावेशित एवं p - प्रकार का अर्द्धचालक ऋणावेशित हो जाता है। फलस्वरूप सन्धि तल के दोनों ओर एक क्षीण विभवान्तर उत्पन्न हो जाता है जिसे विभव - प्राचीर (potential - barrier) या सम्पर्क - विभव (contact - potential) कहते हैं। इसकी माप 0.1 V से 0.5 V तक होती है जो सन्धि के ताप पर निर्भर करती है। सम्पर्क विभव के कारण सन्धि तल पर एक आन्तरिक विद्युत् क्षेत्र Ei स्थापित हो जाता है जिसकी दिशा धनाविष्ट (positive) n - क्षेत्र से ऋणाविष्ट (negative) p - क्षेत्र की ओर होती है। यह विद्युत् क्षेत्र कुछ समय बाद इतना अधिक हो जाता है कि आवेश वाहकों का और आगे विसरण (diffusion) रुक जाता है।
p - n सन्धि का निर्माण: n - प्रकार की Ge या Si पट्टिका की पतली परत पर त्रिसंयोजी (trivalent) अशुद्धि जैसे In के छोटे - छोटे गोले को दबाया जाता है। इस निकाय (configuration) को गर्म किया जाता है ताकि Ge की सतह से In संयोजित हो जाए तथा सम्पर्क पृष्ठ के ठीक नीचे p - प्रकार का Ge उत्पन्न हो जाए। यह p - प्रकार का Ge n - प्रकार की Ge परत के साथ p - n सन्धि (junction) का निर्माण करता है। निकाय के ऊपरी व निचले भागों को हमेशा धात्विक सम्पर्क (metallic contact) में रखते है।
p - n सन्धि तल से धारा का प्रवाह: किसी बाह्य बैटरी की अनुपस्थिति में सन्धि तल से होकर कोई धारा नहीं बहती है। इस दौरान डायोड साम्य में होता है अर्थात् (V = 0)। विभव प्राचीर के कारण आवेशों का विसरण नहीं होता है।
बाह्य बैटरी को सन्धि तल से निम्न दो प्रकार से जोड़ा जा सकता है-
1. अन - अभिनति या अग्र बायस (Forward Bias): जब p - n सन्धि के p - भाग को बैटरी के धनध्रुव से तथा n - भाग को बैटरी के ऋण - ध्रुव से जोड़ा जाता है, तो इस अभिनति को अग्न अभिनति कहते हैं। इस अभिनति के समय p - भाग के होल बैटरी के धनध्रुव से सन्धि तल की ओर प्रतिकर्षित होते हैं और n - भाग के इलेक्ट्रॉन बैटरी के ऋणधु व से सन्धि तल की ओर प्रतिकर्षित होते हैं। इन प्रतिकर्षण बलों के प्रभाव में दोनों प्रकार के आवेश वाहक (होल एवं इलेक्ट्रॉन) सन्धि तल की ओर गतिशील हो जाते हैं और सन्धि तल को पार करके परस्पर विपरीत क्षेत्रों में प्रवेश कर
जाते हैं। इस प्रकार अग्र अभिनति के समय सन्धि तल सुचालक (good conductor) की भाँति व्यवहार करता है और इससे होकर धारा बहने लगती है। अग्रअभिनति का मान बढ़ाने पर धारा तेजी से बढ़ती है।
2. उत्क्रम - अभिनति (Reverse Bias): जब p - n सन्धि के p - भाग को बैटरी के ऋणध्रुव से एवं n - भाग को बैटरी के धनधुव से जोड़ा जाता
है तो इस अभिनति को उत्क्रमअभिनति कहते हैं। उत्क्रम अभिनति के समय p - भाग के होल बैटरी के ऋणध्रुव की ओर और n - भाग के इलेक्ट्रॉन बैटरी के धनधुव की ओर आकर्षित रहते हैं। सन्धि तल की ओर कोई आवेश वाहक गति नहीं करता है, अतः सन्धि तल कुचालक की भाँति व्यवहार करता है। स्पष्ट है कि बहुसंख्यक आवेश वाहकों (majority charge carriers) के कारण कोई धारा सन्धि तल से होकर नहीं बहती है। अल्पसंख्यक आवेश वाहकों (minority charge carriers) के कारण अत्यन्त क्षीण धारा (weak current) (µA) उत्क्रम धारा के रूप में मिलती है जिसका उत्क्रमअभिनति के साथ परिवर्तन में दिखाया गया है। इस धारा का कारण है कि p व n क्षेत्रों में ऊष्मीय विक्षोभ (thermal agitation) के कारण सह - संयोजक बन्ध (covalent bond) टूटने से इलेक्ट्रॉन व होल अल्पसंख्यक आवेश (minority charge carriers) वाहकों के रूप में विद्यमान रहते हैं और ये ही सन्धि तल को पार करके उत्क्रम धारा को जन्म देते हैं।
उत्क्रम धारा ताप पर बहुत अधिक निर्भर करती है तथा सन्धि का ताप बढ़ने पर बढ़ती है। उत्क्रम - अभिनत सन्धि में, आरोपित वैद्युत क्षेत्र E, आन्तरिक क्षेत्र (internal field) Ei को प्रबलित (strong) करता है, अतः बहुसंख्यक वाहक (majority charge carrier) (p - क्षेत्र में होल तथा n - क्षेत्र में इलेक्ट्रॉन) सन्धि से दूर हट जाते हैं। इससे अवक्षय परत की चौड़ाई बढ़ जाती है। डायोड के अन अभिनति की तुलना में इस स्थिति में विसरण धारा अत्यधिक कम हो जाती है। उत्क्रम धारा लगाई गई वोल्टता पर अत्यधिक निर्भर नहीं करती। अल्पसंख्यक आवेश वाहकों को संधि के एक फलक से दूसरे फलक तक पहुँचाने के लिए लघु वोल्टता ही पर्याप्त होती है। धारा लगाई गई वोल्टेज के परिणाम द्वारा सीमित नहीं होती परन्तु यह संधि के दोनों फलकों पर अल्पसंख्यक वाहकों की सांद्रता के कारण सीमित होती है। उत्क्रम अभिनति में किसी क्रांतिक उत्क्रम पश्चदिशिक वोल्टता (critical reverse voltage) तक विद्युतधारा साधारणत: वोल्टता पर निर्भर नहीं करती है। इस वोल्टेज को भंजन वोल्टता' (breakdown voltage) कहते हैं। यदि V = Vbreakdown तब डायोड की उत्क्रम धारा में तेजी से परिवर्तन होता है। यदि उत्क्रम धारा को किसी बाहा परिपथ द्वारा अनुमत मान (allowed values) से नीचे सीमित न किया जाए तो p - n संधि नष्ट हो जाती है।
p - n सन्धि डायोड (p - n Junction Diode)
जैसा कि पिछले अनुच्छेद में हम पड़ चुके हैं कि अग्र अभिनति लगाने पर p - n सन्धि तल सुचालक की भाँति और उत्क्रम - अभिनति लगाने पर कुचालक (insulator) की भांति व्यवहार करता है। उत्क्रम
स्पष्ट है कि सन्धि तल एक डायोड वाल्व की तरह व्यवहार करता है अर्थात् सन्धि तल से धारा तभी बहती है जब p - n सन्धि का p सिरा बैटरी के धनध्रुव से और n सिरा बैटरी के ऋणध्रुव से सम्बद्ध होता है, इसकी विपरीत बोल्टता होने पर सन्धि तल से कोई धारा नहीं बहती है। इस प्रकार "p - n सन्धि के रूप में प्राप्त व्यवस्था को अर्द्धचालक डायोड कहते हैं।" व्यवहार में p व n प्रकार के दो अलग - अलग क्रिस्टल न जोड़कर एक ही अर्द्धचालक पट्टी के एक सिरे पर ग्राही (acceptor) प्रकार की और दूसरे सिरे पर दाता (donor) प्रकार की अशुद्धि मिलाकर p - n सन्धि अर्थात् अर्द्धचालक डायोड बनाते हैं। अर्द्धचालक डायोड की वास्तविक रचना व सैद्धान्तिक रचना में प्रदर्शित की गई है।
अर्द्धचालक डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र (Characteristics Curve of Semi - conductor Diode):
जिस प्रकार डायोड वाल्व में प्लेट धारा के परिवर्तनों को व्यक्त करने पर ऐनोड अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त होते हैं उसी प्रकार अग्रिम एवं उत्क्रम अभिनतियों के संगत धारा के परिवर्तन को प्रदर्शित करने वाला वक्र अर्द्धचालक डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र (characteristics curve) कहलाता है। अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त करने के लिए परिपर्थों को चित्र 14.19 (a) व (b) में दिखाया गया है।
अभिलाक्षणिक वक़ का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि-
1. अग्रअभिनति का मान बढ़ाने पर अन धारा का मान बढ़ता है। अग्न अभिनति में आरंभ में धारा उस समय तक बहुत धीरे - धीरे, लगभग नगण्य, बढ़ती है जब तक कि डायोड पर वोल्टता एक निश्चित मान से अधिक न हो जाए। इस अभिलाक्षणिक वोल्टता के बाद डायोड अभिनति वोल्टता में बहुत थोड़ी सी ही वृद्धि करने से डायोड धारा में सार्थक (चरघातांकी) वृद्धि हो जाती है। ये वोल्टता देहली वोल्टता (threshold voltage) या कट - इन वोल्टता (cut - in - voltage) कहलाती है। Ge के लिए ~ 0.2 वोल्ट तथा Si डायोड के लिए ~0.7 वोल्ट है। इसमें धारा मिली ऐम्पियर (mA) की कोटि की होती है। वक्र का यह भाग रैखिक (linear) नहीं है, अत: p - n सन्धि डायोड ओम के नियम का पालन नहीं करता है बल्कि यह चरघातांकी नियम (exponential law) का पालन करता है। स्पष्ट है कि p - n डायोड भी डायोड वाल्व की भाँति अन - ओमीय है।
p - n डायोड के विभवान्तर में परिवर्तन तथा इसके संगत धारा में हुए परिवर्तन के अनुपात को गतिक प्रतिरोध (dynamic resistance) कहते हैं। यदि विभवान्तर में परिवर्तन ∆V तथा इसके संगत धारा में परिवर्तन ∆i हो तो
गतिक प्रतिरोध का मान भिन्न - भिन्न बोल्टताओं पर भिन्न - भिन्न होता है, अत: वक्र के किसी बिन्दु के संगत प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए उस बिन्दु के वक्र पर स्पर्शी (tangent) खींचकर (चित्र 14-20 C में बिन्दु P स्पर्शी के किन्हीं दो बिन्दुओं के सापेक्ष ∆V एवं ∆i के मान ज्ञात करके उक्त सूत्र का प्रयोग करके rd का मान ज्ञात कर लेते हैं।
2. सन्धि डायोड की उत्क्रम अभिनति की दशा में अभिलाक्षणिक वक्र से स्पष्ट है कि उत्क्रम वोल्टेज बढ़ाने पर प्रारम्भ में उत्क्रम धारा लगभग नियत रहती है, परन्तु वोल्टेज बढ़ाते जाने पर एक स्थिति ऐसी आती है कि उत्क्रम धारा अचानक बढ़ जाती है। इस स्थिति को 'ऐवलांशी - भंजन' (Avalanche Breakdown) कहते हैं और वोल्टेज की इस सीमा को जेनर - वोल्टेज (Zener - voltage) या भंजक कोल्टता (breakdown voltage) कहते हैं। यह प्रक्रिया संचयी होती है। इस दशा में सन्धि के निकट सह - संयोजक बन्ध टूट जाते हैं जिससे इलेक्ट्रॉन - होल युग्म (electron hole pairs) अधिक संख्या में मुक्त हो जाते है और उत्क्रम धारा को बढ़ा देते हैं। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सन्धि डायोड अन अभिनत अवस्था में धारा को एक दिशा में प्रवाहित होने के लिए इसके मार्ग में बहुत कम प्रतिरोध तथा उत्क्रम अभिनत अवस्था में धारा को विपरीत दिशा में प्रवाहित होने के लिए इसके मार्ग में बहुत अधिक प्रतिरोध लगाता है, अत: इसका उपयोग डायोड वाल्ब की तरह दिष्टकारी (rectifier) के रूप में किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
p - n संधि डायोड किसे कहते हैं? जेनर डायोड का वोल्टता नियमन (वोल्टता स्थायीकरण) के रूप में परिपथ चित्र बनाइए, इसकी कार्यविधि भी लिखिए।
उत्तर:
जेनर डायोड (Zener Diode) या भंजक डायोड: p - n सन्धि डायोड को उचित रूप (properly) से डोपिंग (अर्द्धचालक में अशुद्धि मिलाना) करके ऐसा डायोड निर्मित किया जाता है जो भंजन वोल्टता क्षेत्र में ही कार्य कर सके, ऐसे डायोड को भंजक डायोड या जेनर डायोड कहते हैं। एक p - n सन्धि डायोड जब उत्क्रम अभिनत अवस्था में हो तो निश्चित मान की वोल्टता पर धारा के मान में एक उच्च मान तक अचानक वृद्धि दर्शायी जाती है, इस विभव को भंजक वोल्टता अथवा जेनर वोल्टता (Zener voltage) कहते हैं। यह उच्च मान की धारा साधारण p - n सन्धि को नष्ट कर सकती है। इस डायोड का नाम वैज्ञानिक के सम्मान में उसी के नाम पर 'जेनर डायोड' (Zener Diode) रखा गया। इसका सांकेतिक निरूपण चित्र 14.23 में दिखाया गया है। जेनर डायोड की परिभाषा अन्ततः इस प्रकार कर सकते हैं, "विशेष रूप से बनाया गया (specially designed) ऐसा सन्धि डायोड, जो उत्तम भंजक वोल्टता क्षेत्र में लगातार बिना नष्ट हुए कार्य कर सके, जेनर डायोड या भंजक डायोड कहलाता है।"
जेनर डायोड बनाना (Construction of Zener Diode): जेनर डायोड इस प्रकार बनाया जाता है कि इसके लिए जेनर वोल्टता का मान काफी कम हो जावे। ऐवलांशी भंजन प्रक्रिया (Avalanche breakdown process) आरोपित विद्युत् क्षेत्र पर निर्भर करती है। अतः सन्धि - परत (junction layer) की मोटाई, जिस पर विद्युत् क्षेत्र लगाया जाता है, बदलकर जेनर डायोड की रचना की जाती है।
जेनर डायोड बनाने के लिए अर्द्धचालक पदार्थ (Ge या Si) में सन्धि के दोनों ओर p व n प्रकार की अशुद्धियों का उच्च घनत्व (high density) मिलाने से अवक्षय परत (depletion layer) की चौड़ाई बहुत कम (<10-6 m) तथा कम वोल्टता (5 V) लगाने पर भी वैद्युत क्षेत्र बहुत अधिक (लगभग 5 x 106 Vm-1) हो जाता है। इस अभिलक्षण के कारण जेनर डायोड की भंजक वोल्टता 6 V से कम हो जाती है। जेनर डायोड की भंजक क्षेत्र में सामान्य क्रिया के लिए इसके श्रेणी क्रम में एक प्रतिरोध R लगाकर धारा को सीमित कर दिया जाता है ताकि उत्पन्न शक्ति जेनर डायोड की सहनशीलता की सीमा को पार न कर सके।
जेनर डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र: जेनर डायोड का परिपथ आरेख साधारण डायोड की भांति ही होता है। जेनर डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र चित्र 14.25 में प्रदर्शित हैं।
1. जब जेनर डायोड को अग्र अभिनत करते हैं तो V - I ग्राफ साधारण डायोड की भाँति ही मिलता है, परन्तु जेनर डायोड को अग्न अभिनति में प्रयोग नहीं करते हैं।
2. जेनर डायोड सदैव उत्क्रम अभिनति (reverse biasing) में प्रयोग में लाया जाता है। उत्क्रम अभिनत करने पर इसमें एक सूक्ष्म उत्क्रम धारा बहती है। यह धारा एक निश्चित वोल्टता तक लगभग नियत रहती है तथा इसके पश्चात् धारा तेजी से बढ़ती है तथा उत्क्रम अभिलक्षण वक्र धारा अक्ष के लगभग समान्तर हो जाता है। यही उत्क्रम वोल्टता, जो धारा अक्ष के समान्तर वक्र के रेखीय भाग के संगत होती है, जेनर वोल्टता कहलाती है।
भंजक वोल्टता पर धारा का तेजी से बढ़ना: उत्क्रम धारा अल्पसंख्यक आवेश वाहकों (minority charge carriers) के कारण बहती है। अल्पसंख्यक इलेक्ट्रॉन p - क्षेत्र से n - क्षेत्र की ओर तथा होल क्षेत्र से p - क्षेत्र की ओर गति करते हैं। जैसे - जैसे उत्क्रम अभिनति (VR) का मान बढ़ता है, सन्धि तल पर विद्युत् क्षेत्र का मान भी बढ़ जाता है और जब इसका मान VZ के बराबर (अर्थात् VR = VZ) हो जाता है तो विद्युत् क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि p - क्षेत्र के परमाणुओं से संयोजी इलेक्ट्रॉन बाहर निकल आते हैं तथा n - क्षेत्र की ओर त्वरित होते हैं। ये इलेक्ट्रॉन ही भंजक विभवान्तर पर प्रेक्षित अधिक धारा के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार उच्च विद्युत् क्षेत्र के कारण उत्सर्जित अल्पसंख्यक इलेक्ट्रॉनों को आन्तरिक क्षेत्र उत्सर्जन (internal field emission) अथवा क्षेत्र उत्सर्जन (field emission) कहते हैं।
जेनर डायोड का वोल्टेज नियन्त्रक के रूप में उपयोग (Use of Zener Diode as a Voltage Regulator): जेनर डायोड के उपयोगों में एक महत्वपूर्ण उपयोग वोल्टेज नियन्त्रण का है। वोल्टेज नियन्त्रक के रूप में जेनर डायोड का उपयोग निम्न गुण के कारण है-"जब जेनर डायोड को भंजक - क्षेत्र (breakdown region) में प्रचालित (operate) कराते हैं तो धारा में अधिक परिवर्तन के लिए भी इसके सिरों पर वोल्टता नियत बनी रहती है।" वोल्टेज नियन्त्रक के रूप में जेनर डायोड का सरल परिपथ चित्र 14.26 में दिखाया गया है। जेनर डायोड को अनियन्त्रित अर्थात् परिवर्तनशील D.C. वोल्टेज(VL) के साथ एक समुचित प्रतिरोध (RS) के द्वारा इस प्रकार जोड़ते है कि यह उत्क्रम अभिनत रहे। प्रतिरोध R का मान प्रयुक्त जेनर डायोड की पॉवर रेटिंग (power rating) एवं जेनर वोल्टता पर निर्भर करता है। नियन्त्रित वोल्टेज (regulated voltage) अर्थात् नियत निर्गत वोल्टेज जेनर डायोड के समान्तर क्रम में जुड़े लोड प्रतिरोध (RL) के सिरों के मध्य मिल जाता है।
प्रश्न 4.
p - n संधि के उत्क्रम अभिनति अभिलाक्षणिक चक्र प्राप्त करने के लिए प्रायोगिक व्यवस्था का परिपथ चित्र बनाइए। उत्क्रम अभिनति में p - n संधि के लिए उत्क्रम भंजन की घटना को निम्नलिखित क्रियाविधियों द्वारा समझाइए।
उत्तर:
प्रश्न 5.
दिष्टकारी किसे कहते हैं? अर्द्धतरंग दिष्टकारी का परिपथ चित्र बनाकर इसकी क्रियाविधि को समझाइये। निवेशी प्रत्यावर्ती तथा निर्गत वोल्टता के तरंग प्रारूप को प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
दिष्टकारी के रूप में अर्द्धचालक डायोड (Semi - conductor Diode as a Reetifier)
प्रत्यावर्ती धारा (alternating current) को दिष्ट धारा (direct current) में बदलने की क्रिया दिष्टकरण (rectification) कहलाती है और इसके लिए प्रयुक्त उपकरण दिष्टकारी (rectifier) कहलाता है। जैसा कि हम पिछले अनुच्छेदों में पढ़ चुके हैं कि अग्र अभिनत अवस्था में p - n सन्धि सुचालक की तरह और उत्क्रम अभिनत अवस्था में कुचालक की तरह व्यवहार करती है। अगं अभिनत अवस्था में अन धारा के मार्ग में p - n सन्धि डायोड बहुत कम प्रतिरोध और उत्क्रम अभिनत अवस्था में उत्क्रम धारा के मार्ग में काफी अधिक प्रतिरोध (लगभग 105 Ω) लगाता है। इसी गुण का लाभ उठाकर p - n सन्धि डायोड का उपयोग दिष्टकारी के रूप में किया जाता है। डायोड वाल्ब की भांति p - n डायोड भी दो प्रकार से दिष्टकारी के रूप में कार्य करता है-
1. अर्द्ध - तरंग दिष्टकारी (Half Wave Rectifier): जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह दिष्टकारी प्रत्यावर्ती वोल्टता की केवल आधी तरंग को ही दिष्ट वोल्टता में बदलता है। आवश्यक परिपथ व्यवस्था में दिखाई गई है। निवेशी एवं निर्गत वोल्टताओं को में दिखाया गया है।
निवेशी वोल्टता के प्रथम अर्द्ध - चक्र (first half cycle) में जब ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक AB का A सिरा धनात्मक विभव पर एवं B सिरा ऋणात्मक विभव पर होता है तो सन्धि डायोड अग्र अभिनत होता है और इससे होकर धारा बहती है जिसकी दिशा लोड प्रतिरोध RL में C से D की ओर होती है। निवेशी वोल्टता के द्वितीय अर्द्ध - चक्र में ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक (secondary) AB के सिरों की बोल्टता बदलती है अर्थात् A सिरा ऋणात्मक विभव पर और B सिरा धनात्मक विभव पर हो जाता है और सन्धि डायोड उत्क्रम अभिनत हो जाता है तथा इससे होकर कोई धारा नहीं बहती है। यही क्रिया प्रत्यावर्ती वोल्टता (निवेशी) (input) के प्रत्येक चक्र में दोहरायी जाती है। इस प्रकार प्रत्यावर्ती अर्थात् निवेशी वोल्टता की केवल आधी तरंग (input) ही दिष्ट वोल्टता में बदलती है।
2. पूर्ण तरंग दिष्टकारी (Full Wave Rectifier): इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह दिष्टकारी प्रत्यावर्ती वोल्टता की पूरी तरंग (fullwave) को दिष्ट बोल्टता में बदलता है। इसमें दो अर्द्ध - चालक डायोड की भाँति प्रयोग में लाये जाते हैं। निवेशी एवं निर्गत वोल्टताओं को में प्रदर्शित किया गया है।
निवेशी वोल्टता के प्रथम अर्द्ध - चक्र (first half cycle) में जब ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक AB का A सिरा धनात्मक विभव पर और B सिरा ऋणात्मक विभव पर होता है तो डायोड D1 अन अभिनत होता है और D2 उत्क्रम अभिनत होता है अत: D1 से होकर धारा बहती है और D2 बन्द रहता है। प्रत्यावर्ती वोल्टता (निवेशी वोल्टता) के द्वितीय अर्द्ध - चक्र (second half cycle) में द्वितीयक AB की ध्रुवता (polarity) बदलती है अर्थात् A सिरा ऋणात्मक विभव पर और B सिरा धनात्मक विभव पर हो जाता है तो डायोड D1 उत्क्रम अभिनत होकर धारा देना बन्द कर देता है और D2 अन अभिनत होकर धारा देने लगता है। यही क्रिया प्रत्येक चक्र में दोहरायी जाती है। धारा चाहे D1 से होकर बहे अथवा D2 से होकर बहे लेकिन लोड प्रतिरोध RL में धारा की दिशा से D की ओर ही रहती है। इस प्रकार प्रत्यावर्ती वोल्टता की पूरी तरंग दिष्ट बोल्टता में बदल जाती है।
प्रश्न 6.
आरेख में पश्चदिशिक बायस में प्रचालन के लिए अभिकल्पित किसी अर्द्धचालक डायोड का V - I अभिलाक्षणिक दर्शाया गया है।
(a) उपयोग किए गए अर्द्धचालक डायोड को पहचानिए।
(b) इस युक्ति द्वारा दिए गए अभिलाक्षणिक को प्राप्त करने के लिए परिपथ आरेख खींचिए।
(c) इस युक्ति के एक उपयोग की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
p - n सन्धि डायोड (p - n Junction Diode)
जैसा कि पिछले अनुच्छेद में हम पड़ चुके हैं कि अग्र अभिनति लगाने पर p - n सन्धि तल सुचालक की भाँति और उत्क्रम - अभिनति लगाने पर कुचालक (insulator) की भांति व्यवहार करता है। उत्क्रम
स्पष्ट है कि सन्धि तल एक डायोड वाल्व की तरह व्यवहार करता है अर्थात् सन्धि तल से धारा तभी बहती है जब p - n सन्धि का p सिरा बैटरी के धनध्रुव से और n सिरा बैटरी के ऋणध्रुव से सम्बद्ध होता है, इसकी विपरीत बोल्टता होने पर सन्धि तल से कोई धारा नहीं बहती है। इस प्रकार "p - n सन्धि के रूप में प्राप्त व्यवस्था को अर्द्धचालक डायोड कहते हैं।" व्यवहार में p व n प्रकार के दो अलग - अलग क्रिस्टल न जोड़कर एक ही अर्द्धचालक पट्टी के एक सिरे पर ग्राही (acceptor) प्रकार की और दूसरे सिरे पर दाता (donor) प्रकार की अशुद्धि मिलाकर p - n सन्धि अर्थात् अर्द्धचालक डायोड बनाते हैं। अर्द्धचालक डायोड की वास्तविक रचना व सैद्धान्तिक रचना में प्रदर्शित की गई है।
अर्द्धचालक डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र (Characteristics Curve of Semi - conductor Diode):
जिस प्रकार डायोड वाल्व में प्लेट धारा के परिवर्तनों को व्यक्त करने पर ऐनोड अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त होते हैं उसी प्रकार अग्रिम एवं उत्क्रम अभिनतियों के संगत धारा के परिवर्तन को प्रदर्शित करने वाला वक्र अर्द्धचालक डायोड का अभिलाक्षणिक वक्र (characteristics curve) कहलाता है। अभिलाक्षणिक वक्र प्राप्त करने के लिए परिपर्थों को चित्र 14.19 (a) व (b) में दिखाया गया है।
अभिलाक्षणिक वक़ का अध्ययन करने से ज्ञात होता है कि-
1. अग्रअभिनति का मान बढ़ाने पर अन धारा का मान बढ़ता है। अग्न अभिनति में आरंभ में धारा उस समय तक बहुत धीरे - धीरे, लगभग नगण्य, बढ़ती है जब तक कि डायोड पर वोल्टता एक निश्चित मान से अधिक न हो जाए। इस अभिलाक्षणिक वोल्टता के बाद डायोड अभिनति वोल्टता में बहुत थोड़ी सी ही वृद्धि करने से डायोड धारा में सार्थक (चरघातांकी) वृद्धि हो जाती है। ये वोल्टता देहली वोल्टता (threshold voltage) या कट - इन वोल्टता (cut - in - voltage) कहलाती है। Ge के लिए ~ 0.2 वोल्ट तथा Si डायोड के लिए ~0.7 वोल्ट है। इसमें धारा मिली ऐम्पियर (mA) की कोटि की होती है। वक्र का यह भाग रैखिक (linear) नहीं है, अत: p - n सन्धि डायोड ओम के नियम का पालन नहीं करता है बल्कि यह चरघातांकी नियम (exponential law) का पालन करता है। स्पष्ट है कि p - n डायोड भी डायोड वाल्व की भाँति अन - ओमीय है।
p - n डायोड के विभवान्तर में परिवर्तन तथा इसके संगत धारा में हुए परिवर्तन के अनुपात को गतिक प्रतिरोध (dynamic resistance) कहते हैं। यदि विभवान्तर में परिवर्तन ∆V तथा इसके संगत धारा में परिवर्तन ∆i हो तो
गतिक प्रतिरोध का मान भिन्न - भिन्न बोल्टताओं पर भिन्न - भिन्न होता है, अत: वक्र के किसी बिन्दु के संगत प्रतिरोध का मान ज्ञात करने के लिए उस बिन्दु के वक्र पर स्पर्शी (tangent) खींचकर (चित्र 14-20 C में बिन्दु P स्पर्शी के किन्हीं दो बिन्दुओं के सापेक्ष ∆V एवं ∆i के मान ज्ञात करके उक्त सूत्र का प्रयोग करके rd का मान ज्ञात कर लेते हैं।
2. सन्धि डायोड की उत्क्रम अभिनति की दशा में अभिलाक्षणिक वक्र से स्पष्ट है कि उत्क्रम वोल्टेज बढ़ाने पर प्रारम्भ में उत्क्रम धारा लगभग नियत रहती है, परन्तु वोल्टेज बढ़ाते जाने पर एक स्थिति ऐसी आती है कि उत्क्रम धारा अचानक बढ़ जाती है। इस स्थिति को 'ऐवलांशी - भंजन' (Avalanche Breakdown) कहते हैं और वोल्टेज की इस सीमा को जेनर - वोल्टेज (Zener - voltage) या भंजक कोल्टता (breakdown voltage) कहते हैं। यह प्रक्रिया संचयी होती है। इस दशा में सन्धि के निकट सह - संयोजक बन्ध टूट जाते हैं जिससे इलेक्ट्रॉन - होल युग्म (electron hole pairs) अधिक संख्या में मुक्त हो जाते है और उत्क्रम धारा को बढ़ा देते हैं। उक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सन्धि डायोड अन अभिनत अवस्था में धारा को एक दिशा में प्रवाहित होने के लिए इसके मार्ग में बहुत कम प्रतिरोध तथा उत्क्रम अभिनत अवस्था में धारा को विपरीत दिशा में प्रवाहित होने के लिए इसके मार्ग में बहुत अधिक प्रतिरोध लगाता है, अत: इसका उपयोग डायोड वाल्ब की तरह दिष्टकारी (rectifier) के रूप में किया जा सकता है।
प्रश्न 7.
(a) किसी जेनर डायोड के V - I अभिलाक्षणिक की सहायता से, परिपथ आरेख खींचकर, इसकी dc वोल्टता नियंत्रक की भांति कार्यविधि की व्याख्या कीजिए।
(b) किसी जेनर डायोड के p- और n - फलकों का अत्यधिक मादन करने का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:
जेनर डायोड (Zener Diode) या भंजक डायोड: p - n सन्धि डायोड को उचित रूप (properly) से डोपिंग (अर्द्धचालक में अशुद्धि मिलाना) करके ऐसा डायोड निर्मित किया जाता है जो भंजन वोल्टता क्षेत्र में ही कार्य कर सके, ऐसे डायोड को भंजक डायोड या जेनर डायोड कहते हैं। एक p - n सन्धि डायोड जब उत्क्रम अभिनत अवस्था में हो तो निश्चित मान की वोल्टता पर धारा के मान में एक उच्च मान तक अचानक वृद्धि दर्शायी जाती है, इस विभव को भंजक वोल्टता अथवा जेनर वोल्टता (Zener voltage) कहते हैं। यह उच्च मान की धारा साधारण p - n सन्धि को नष्ट कर सकती है। इस डायोड का नाम वैज्ञानिक के सम्मान में उसी के नाम पर 'जेनर डायोड' (Zener Diode) रखा गया। इसका सांकेतिक निरूपण चित्र 14.23 में दिखाया गया है। जेनर डायोड की परिभाषा अन्ततः इस प्रकार कर सकते हैं, "विशेष रूप से बनाया गया (specially designed) ऐसा सन्धि डायोड, जो उत्तम भंजक वोल्टता क्षेत्र में लगातार बिना नष्ट हुए कार्य कर सके, जेनर डायोड या भंजक डायोड कहलाता है।"
जेनर डायोड बनाना (Construction of Zener Diode): जेनर डायोड इस प्रकार बनाया जाता है कि इसके लिए जेनर वोल्टता का मान काफी कम हो जावे। ऐवलांशी भंजन प्रक्रिया (Avalanche breakdown process) आरोपित विद्युत् क्षेत्र पर निर्भर करती है। अतः सन्धि - परत (junction layer) की मोटाई, जिस पर विद्युत् क्षेत्र लगाया जाता है, बदलकर जेनर डायोड की रचना की जाती है।
जेनर डायोड बनाने के लिए अर्द्धचालक पदार्थ (Ge या Si) में सन्धि के दोनों ओर p व n प्रकार की अशुद्धियों का उच्च घनत्व (high density) मिलाने से अवक्षय परत (depletion layer) की चौड़ाई बहुत कम (<10-6 m) तथा कम वोल्टता (5 V) लगाने पर भी वैद्युत क्षेत्र बहुत अधिक (लगभग 5 x 106 Vm-1) हो जाता है। इस अभिलक्षण के कारण जेनर डायोड की भंजक वोल्टता 6 V से कम हो जाती है। जेनर डायोड की भंजक क्षेत्र में सामान्य क्रिया के लिए इसके श्रेणी क्रम में एक प्रतिरोध R लगाकर धारा को सीमित कर दिया जाता है ताकि उत्पन्न शक्ति जेनर डायोड की सहनशीलता की सीमा को पार न कर सके।
जेनर डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र: जेनर डायोड का परिपथ आरेख साधारण डायोड की भांति ही होता है। जेनर डायोड के अभिलाक्षणिक वक्र चित्र 14.25 में प्रदर्शित हैं।
(i) जब जेनर डायोड को अग्र अभिनत करते हैं तो V - I ग्राफ साधारण डायोड की भाँति ही मिलता है, परन्तु जेनर डायोड को अग्न अभिनति में प्रयोग नहीं करते हैं।
(ii) जेनर डायोड सदैव उत्क्रम अभिनति (reverse biasing) में प्रयोग में लाया जाता है। उत्क्रम अभिनत करने पर इसमें एक सूक्ष्म उत्क्रम धारा बहती है। यह धारा एक निश्चित वोल्टता तक लगभग नियत रहती है तथा इसके पश्चात् धारा तेजी से बढ़ती है तथा उत्क्रम अभिलक्षण वक्र धारा अक्ष के लगभग समान्तर हो जाता है। यही उत्क्रम वोल्टता, जो धारा अक्ष के समान्तर वक्र के रेखीय भाग के संगत होती है, जेनर वोल्टता कहलाती है।
भंजक वोल्टता पर धारा का तेजी से बढ़ना: उत्क्रम धारा अल्पसंख्यक आवेश वाहकों (minority charge carriers) के कारण बहती है। अल्पसंख्यक इलेक्ट्रॉन p - क्षेत्र से n - क्षेत्र की ओर तथा होल क्षेत्र से p - क्षेत्र की ओर गति करते हैं। जैसे - जैसे उत्क्रम अभिनति (VR) का मान बढ़ता है, सन्धि तल पर विद्युत् क्षेत्र का मान भी बढ़ जाता है और जब इसका मान VZ के बराबर (अर्थात् VR = VZ) हो जाता है तो विद्युत् क्षेत्र इतना प्रबल हो जाता है कि p - क्षेत्र के परमाणुओं से संयोजी इलेक्ट्रॉन बाहर निकल आते हैं तथा n - क्षेत्र की ओर त्वरित होते हैं। ये इलेक्ट्रॉन ही भंजक विभवान्तर पर प्रेक्षित अधिक धारा के लिए उत्तरदायी होते हैं। इस प्रकार उच्च विद्युत् क्षेत्र के कारण उत्सर्जित अल्पसंख्यक इलेक्ट्रॉनों को आन्तरिक क्षेत्र उत्सर्जन (internal field emission) अथवा क्षेत्र उत्सर्जन (field emission) कहते हैं।
जेनर डायोड का वोल्टेज नियन्त्रक के रूप में उपयोग (Use of Zener Diode as a Voltage Regulator): जेनर डायोड के उपयोगों में एक महत्वपूर्ण उपयोग वोल्टेज नियन्त्रण का है। वोल्टेज नियन्त्रक के रूप में जेनर डायोड का उपयोग निम्न गुण के कारण है-"जब जेनर डायोड को भंजक - क्षेत्र (breakdown region) में प्रचालित (operate) कराते हैं तो धारा में अधिक परिवर्तन के लिए भी इसके सिरों पर वोल्टता नियत बनी रहती है।" वोल्टेज नियन्त्रक के रूप में जेनर डायोड का सरल परिपथ चित्र 14.26 में दिखाया गया है। जेनर डायोड को अनियन्त्रित अर्थात् परिवर्तनशील D.C. वोल्टेज(VL) के साथ एक समुचित प्रतिरोध (RS) के द्वारा इस प्रकार जोड़ते है कि यह उत्क्रम अभिनत रहे। प्रतिरोध R का मान प्रयुक्त जेनर डायोड की पॉवर रेटिंग (power rating) एवं जेनर वोल्टता पर निर्भर करता है। नियन्त्रित वोल्टेज (regulated voltage) अर्थात् नियत निर्गत वोल्टेज जेनर डायोड के समान्तर क्रम में जुड़े लोड प्रतिरोध (RL) के सिरों के मध्य मिल जाता है।
प्रश्न 8.
दिष्टकारी से क्या तात्पर्य है? एक पूर्ण तरंग दिष्टकारी का नामांकित चित्र दीजिए एवं इसकी कार्यप्रणाली का वर्णन कीजिए। यह विष्टकारी एक अर्द्धतरंग दिष्टकारी से श्रेष्ठ क्यों होता है?
उत्तर:
दिष्टकारी के रूप में अर्द्धचालक डायोड (Semi - conductor Diode as a Reetifier)
प्रत्यावर्ती धारा (alternating current) को दिष्ट धारा (direct current) में बदलने की क्रिया दिष्टकरण (rectification) कहलाती है और इसके लिए प्रयुक्त उपकरण दिष्टकारी (rectifier) कहलाता है। जैसा कि हम पिछले अनुच्छेदों में पढ़ चुके हैं कि अग्र अभिनत अवस्था में p - n सन्धि सुचालक की तरह और उत्क्रम अभिनत अवस्था में कुचालक की तरह व्यवहार करती है। अगं अभिनत अवस्था में अन धारा के मार्ग में p - n सन्धि डायोड बहुत कम प्रतिरोध और उत्क्रम अभिनत अवस्था में उत्क्रम धारा के मार्ग में काफी अधिक प्रतिरोध (लगभग 105 Ω) लगाता है। इसी गुण का लाभ उठाकर p - n सन्धि डायोड का उपयोग दिष्टकारी के रूप में किया जाता है। डायोड वाल्ब की भांति p - n डायोड भी दो प्रकार से दिष्टकारी के रूप में कार्य करता है-
1. अर्द्ध - तरंग दिष्टकारी (Half Wave Rectifier): जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है, यह दिष्टकारी प्रत्यावर्ती वोल्टता की केवल आधी तरंग को ही दिष्ट वोल्टता में बदलता है। आवश्यक परिपथ व्यवस्था में दिखाई गई है। निवेशी एवं निर्गत वोल्टताओं को में दिखाया गया है।
निवेशी वोल्टता के प्रथम अर्द्ध - चक्र (first half cycle) में जब ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक AB का A सिरा धनात्मक विभव पर एवं B सिरा ऋणात्मक विभव पर होता है तो सन्धि डायोड अग्र अभिनत होता है और इससे होकर धारा बहती है जिसकी दिशा लोड प्रतिरोध RL में C से D की ओर होती है। निवेशी वोल्टता के द्वितीय अर्द्ध - चक्र में ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक (secondary) AB के सिरों की बोल्टता बदलती है अर्थात् A सिरा ऋणात्मक विभव पर और B सिरा धनात्मक विभव पर हो जाता है और सन्धि डायोड उत्क्रम अभिनत हो जाता है तथा इससे होकर कोई धारा नहीं बहती है। यही क्रिया प्रत्यावर्ती वोल्टता (निवेशी) (input) के प्रत्येक चक्र में दोहरायी जाती है। इस प्रकार प्रत्यावर्ती अर्थात् निवेशी वोल्टता की केवल आधी तरंग (input) ही दिष्ट वोल्टता में बदलती है।
2. पूर्ण तरंग दिष्टकारी (Full Wave Rectifier): इसके नाम से ही स्पष्ट है कि यह दिष्टकारी प्रत्यावर्ती वोल्टता की पूरी तरंग (fullwave) को दिष्ट बोल्टता में बदलता है। इसमें दो अर्द्ध - चालक डायोड की भाँति प्रयोग में लाये जाते हैं। निवेशी एवं निर्गत वोल्टताओं को में प्रदर्शित किया गया है।
निवेशी वोल्टता के प्रथम अर्द्ध - चक्र (first half cycle) में जब ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक AB का A सिरा धनात्मक विभव पर और B सिरा ऋणात्मक विभव पर होता है तो डायोड D1 अन अभिनत होता है और D2 उत्क्रम अभिनत होता है अत: D1 से होकर धारा बहती है और D2 बन्द रहता है। प्रत्यावर्ती वोल्टता (निवेशी वोल्टता) के द्वितीय अर्द्ध - चक्र (second half cycle) में द्वितीयक AB की ध्रुवता (polarity) बदलती है अर्थात् A सिरा ऋणात्मक विभव पर और B सिरा धनात्मक विभव पर हो जाता है तो डायोड D1 उत्क्रम अभिनत होकर धारा देना बन्द कर देता है और D2 अन अभिनत होकर धारा देने लगता है। यही क्रिया प्रत्येक चक्र में दोहरायी जाती है। धारा चाहे D1 से होकर बहे अथवा D2 से होकर बहे लेकिन लोड प्रतिरोध RL में धारा की दिशा से D की ओर ही रहती है। इस प्रकार प्रत्यावर्ती वोल्टता की पूरी तरंग दिष्ट बोल्टता में बदल जाती है।
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
P - N संधि की अवक्षय परत की चौड़ाई 1 माइक्रोमीटर एवं विभव रोधिका 0.7 वोल्ट हो तो संधि पर उत्पन्न विद्युत क्षेत्र ज्ञात कीजिए।
हल:
दिया है- अवक्षय परत की मोटाई
d = 1 µm = 10-6 m
रोधिका विभव VB = 0.7 वोल्ट
d = \(\frac{V_B}{E_B}\)
अतः विद्युत क्षेत्र EB = \(\frac{V_B}{d}\)
EB = \(\frac{0.7}{10^{-6}}\)
EB = 7 x 105 वोल्ट/मी.
प्रश्न 2.
एक तार्किक द्वार निवेशी तरंगरूप A और B तथा निर्गत तरंगरूप Y दर्शाए हैं- इसे प्रदर्शित करने वाले तार्किक द्वार का नाम दीजिए, इसकी सत्यता सारणी और तार्किक चिह्न बनाइए।
दिया गया तार्किक द्वार - NAND गेट
प्रतीक चिह्न
सत्यता सारणी
A |
B |
A.B |
\(\overline{A \cdot B}\) |
0 |
0 |
0 |
1 |
0 |
1 |
0 |
1 |
1 |
0 |
0 |
1 |
1 |
1 |
1 |
0 |
प्रश्न 3.
एक p - n संधि डायोड का अग्रदिशिक अभिनति में प्रतिरोध 20 Ω है। यदि अग्रदिशिक अभिनति में 0.025 V का परिवर्तन किया जाये तो डायोड धारा में कितना परिवर्तन होगा?
हल:
दिया है प्रतिरोध R = 20 Ω
अग्रदिशिक अभिनति में परिवर्तन
V = 0.025 V
डायोड धारा I = \(\frac{V}{R}=\frac{0.025}{20}\)
I = 0.00125 Amp.
I = 1.25 mA
प्रश्न 4.
एक पूर्ण तरंग दिष्टकारी में दो डायोड प्रयुक्त होते हैं। प्रत्येक डायोड का आन्तरिक प्रतिरोध 25 Ω पर नियत माना गया है। ट्रांसफॉर्मर की द्वितीयक के मध्य बिन्दु से टेपिंग किये जाने पर प्रत्येक भाग का विभवान्तर 50 V(rms) है और लोड प्रतिरोध 975 Ω है। ज्ञात कीजिए (i) औसत लोडधारा (ii) लोडधारा का वर्ग माध्य मूल मान।
हल:
दिया है:
आंतरिक प्रतिरोध r = 25 Ω
लोड प्रतिरोध R = 957 Ω
विभवान्तर Vrms = 50 वोल्ट
अत: वोल्टता का शिखर मान
V0 = \(\sqrt{2}\) Vrms
= \(\sqrt{2}\) x 50 = 70.7 वोल्ट
∴ अधिकतम लोड धारा I0 = \(\frac{V_0}{R+r}=\frac{70.7}{975+25}\)
= \(\frac{70.7}{10^3}\) = 70.7 x 10-3 Amp
(i) धारा का मध्यमान (Im) = \(\frac{2 I_0}{\pi}\)
= \(\frac{2 \times 70.7 \times 10^{-3}}{22 / 7}\)
= 45 x 10-3 Amp
(ii) धारा का वर्ग माध्य मूल मान
Irms = \(\frac{I_0}{\sqrt{2}}=\frac{70.7 \times 10^{-3}}{\sqrt{2}}\)
= 50 x 10-3 A
प्रश्न 5.
किसी p - n संधि डायोड का अग्र अभिनति की स्थिति में गतिक प्रतिरोध 25 Ω है। अन अभिनति विभव में कितना परिवर्तन किया जाये कि अग्रधारा में 1 मिली एम्पियर का परिवर्तन हो जाये?
हल:
अग्रदिशिक प्रतिरोध
rf = \(\frac{\Delta V_f}{\Delta I_f}\)
∆Vf = rf x ∆If
= 25 x 1 x 10-3
= 25 x 10-3 V
= 25 mV
प्रश्न 6.
चित्र में एक डायोड एक बाह्य प्रतिरोध एवं एक वि. वा. बल स्रोत से जुड़ा हुआ दिखाया गया है। यह मानते हुए कि डायोड में उत्पन्न विभव प्राचीर 0.5 V है, परिपथ में धारा की गणना mA में कीजिए।
हल:
विद्युत वाहक बल (E) = 4.5 वोल्ट
प्रतिरोध (R) = 100 Ω
डायोड के सिरों पर विभव पतन = 0.5 वोल्ट
∴ परिपथ में प्रभावी विभवान्तर (V) = 4.5 - 0.5
= 4.0 वोल्ट
∴ परिपथ में धारा (I) = \(\frac{V}{R}=\frac{4.0}{100}\) = 0.04 Amp
= 40 x 10-3 Amp
= 40 m Amp
प्रतियोनी परीक्षा संबंधी प्रश्न
प्रश्न 1.
दिये गये परिपथ में एक सिलिकॉन डायोड के लिए अमीटर का पाठयांक है-
(A) 11.5 mA
(B) 13.5 mA
(C) 0
(D) 15 mA
उत्तर:
(A) 11.5 mA
प्रश्न 2.
निम्नलिखित तार्किक द्वारों के संयोजन के लिए निवेशी A तथा B के पदों में निर्गत को लिखा जा सकता है-
(A) \(\overline{A \cdot B}+A \cdot B\)
(B) \(\text { A. } \overline{\mathrm{B}}+\overline{\mathrm{A}} \cdot \mathrm{B}\)
(C) \(\overline{\mathrm{A} . \mathrm{B}} \)
(D) \(\overline{A+B}\)
उत्तर:
(D) \(\overline{A+B}\)
प्रश्न 3.
एक p - n संधि डायोड में,गर्म होने के कारण ताप में परिवर्तन से-
(A) p - n संधि का प्रतिरोध अप्रभावित रहता है।
(B) केवल अन प्रतिरोध प्रभावित होता है।
(C) केवल उत्क्रम प्रतिरोध प्रभावित होता है।
(D) p - n संधि के संपूर्ण VI अभिलाक्षणिक को प्रभावित करता है।
उत्तर:
(D) p - n संधि के संपूर्ण VI अभिलाक्षणिक को प्रभावित करता है।
प्रश्न 4.
परिपथ व्यवस्था कौन से तार्किक द्वार को प्रदर्शित करती हैं।
(A) OR
(B) NAND
(C) NOR
(D) AND
उत्तर:
(B) NAND
प्रश्न 5.
एक अर्द्धचालक में प्रयुक्त इलेक्ट्रॉन की गतिशीलता (अपवाह वेग प्रति एकांक विद्युत क्षेत्र) 1.6 एस. आई. यूनिट है। इलेक्ट्रॉन का घनत्व 109/m3 है। (होल सान्दता नगण्य है)। अर्द्धचालक की प्रतिरोधकता है-
(A) 0.4 Ωm
(B) 2 Ωm
(C) 4 Ωm
(D)0.2 Ωm
उत्तर:
(A) 0.4 Ωm
प्रश्न 6.
p - n संधि में अवक्षय क्षेत्र की चौड़ाई में वृद्धि का कारण-
(A) अन एवं उत्क्रम बायस दोनों
(B) अग्र धारा में वृद्धि
(C) केवल अग्न बायस में
(D) केवल उत्क्रम बायस में
उत्तर:
(D) केवल उत्क्रम बायस में
प्रश्न 7.
दर्शाए गए तार्किक द्वार के लिए सत्यता सारणी है-
प्रश्न 8.
किसी दिये गये प्रवर्धक में कोई npn ट्रांजिस्टर उभयनिष्ठ उत्सर्जक विन्यास में संयोजित है। 800 Ω का कोई लोड प्रतिरोध संग्राहक परिपथ में संयोजित है और इसके सिरो पर 0.8 V विभवपात है। यदि धारा प्रवर्धक गुणांक 0.96 है तथा परिपथ का निवेश प्रतिरोध 192 है, तो इस प्रवर्धक की वोल्टता लब्धि तथा शक्ति लब्धि क्रमशः होगी-
(A) 4, 3.84
(B) 3.69, 3.84
(C) 4, 4
(D) 4, 3.69
उत्तर:
(A) 4, 3.84
प्रश्न 9.
वहाँ परिपथ में एक डायोड D का एक बाह्य प्रतिरोध R = 100 Ω तथा 3.5 V (EMF) की बैटरी से जोड़ा गया है। यदि डायोड में दोनों क्षेत्रों की संधि के आर - पार उत्पन्न रोधक विभव 0.5 V है तो परिपथ में धारा होगी-
(A) 40 mA
(B) 20 mA
(C) 35 mA
(D) 30 mA
उत्तर:
(D) 30 mA
प्रश्न 10.
इस प्रकार के अर्द्धचालक के लिए कौन - सा कथन सत्य है?
(A) इलेक्ट्रॉन बहुसंख्यक आवेश वाहक, तथा त्रि - संयोजक परमाणु अपमिश्रक होते हैं।
(B) इलेक्ट्रॉन अल्पांश आवेश वाहक तथा पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक होते हैं।
(C) होल अल्पांश आवेश वाहक तथा पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक होते हैं।
(D) होल बहुसंख्यक आवेश वाहक होते हैं तथा त्रि - संयोजक परमाणु अपमिश्रक होते हैं।
उत्तर:
(C) होल अल्पांश आवेश वाहक तथा पंचसंयोजी परमाणु अपमिश्रक होते हैं।
प्रश्न 11.
किसी उभयनिष्ठ उत्सर्जक (CE) प्रवर्धक की वोल्टता लब्धि 'G' है। प्रयुक्त दांजिस्टर की अन्तराचालकता (Trans - conductance) 0.03 म्हो और धारा लब्धि 25 है। यदि इस दांजिस्टर के स्थान पर एक अन्य दांजिस्टर का उपयोग किया जाए जिसकी अन्तराचालकता 0.02 हो तथा धारा लब्धि 20 हो तो वोल्टता लब्धि होगी-
(A) \(\frac{2}{3}\) G
(B)1.5 G
(C) \(\frac{1}{3}\) G
(D) \(\frac{5}{4}\) G
उत्तर:
(A) \(\frac{2}{3}\) G
प्रश्न 12.
आरेख में दर्शाए गए तर्क गेट (द्वार) का निर्गत (X) होगा-
(A) X = \(\overline{\overline{\mathrm{A}}} \overline{\overline{\mathrm{B}}}\)
(B) X = \(\overline{\text { A.B }} \)
(C) X = A.B
(D) X = \(\overline{\mathrm{A}+\mathrm{B}}\)
उत्तर:
(C) X = A.B