RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य

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RBSE Class 12 Home Science Chapter 3 Notes जनपोषण तथा स्वास्थ्य

→ जन स्वास्थ्य:

  • जन स्वास्थ्य की संकल्पना का अर्थ है—सभी लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करने और बढ़ावा देने के लिए समाज द्वारा किए गए सामूहिक प्रयास।
  • जन स्वास्थ्य पोषण का लक्ष्य अल्पपोषण और अतिपोषण दोनों की रोकथाम करना तथा लोगों के अनुकूलतम पोषण स्तर को बनाए रखना है।

→ महत्त्व:

  • हमारे देश में पोषण संबंधी समस्याओं के आँकड़े खतरे का संकेत देने वाली परिस्थिति को दर्शाते हैं।
  • यदि समय पर इन समस्याओं को नियंत्रित नहीं किया जाता है तो ये केवल शारीरिक वृद्धि पर ही नहीं बल्कि मानसिक और संज्ञानात्मक विकास को भी प्रभावित कर सकती हैं।
  • ये सब मिलकर जीवन की उत्पादकता और गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डालती हैं।
  • भारत में कुपोषण की दोनों तरह की स्थितियाँ हैं
    • अल्प पोषण की और
    • अतिपोषण की। इससे अनेक रोगों में वृद्धि हुई है। इसके अतिरिक्त यहाँ एच.आई.वी./एड्स जैसे नए रोग, क्षयरोग, हेपेटाइटिस, मलेरिया जैसे रोग व्यापक रूप से बढ़ रहे हैं। इन रोगों का प्रभाव कुपोषण से युक्त व्यक्तियों पर अधिक पड़ता है।

→ जन स्वास्थ्य पोषण से आशय:

  • जन स्वास्थ्य पोषण, अध्ययन का वह क्षेत्र है जो अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने से संबंधित है। इस उद्देश्य के लिए यह पोषण संबंधी रोगों/समस्याओं का समाधान करने वाली सरकारी नीतियों और कार्यक्रमों के जरिए लोगों के इन पोषक सम्बन्धी रोगों/समस्याओं का समाधान करता है।
  • यह ज्ञान का एक विशिष्ट भाग है, जो पोषणात्मक, जैविक व्यवहार सम्बन्धी, सामाजिक और प्रबंधन विज्ञानों से | विकसित हुआ है। इसका वर्णन इस प्रकार किया जा सकता है-"समाज के संगठित प्रयासों द्वारा स्वास्थ्य को उन्नत करना और रोगों की रोकथाम करते हुए जीवन-अवधि को दीर्घ बनाने की कला और विज्ञान जन पोषण है।"

RBSE Class 12 Home Science Notes Chapter 3 जनपोषण तथा स्वास्थ्य 

→ पोषण समस्यायें:
किसी भी समाज में पोषण की समस्यायें केवल भोजन से ही संबंधित नहीं होतीं, अपितु विभिन्न स्तरों पर कई प्रकार के परस्पर क्रिया करने वाले/परस्पर सम्बद्ध कारक होते हैं, जिनकी जड़ें गरीबी में निहित
पोषण समस्याओं के कारण-पोषण समस्याओं के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं
(अ) व्यक्तिगत स्तर पर तात्कालिक कारण

  • कुपोषण, अक्षमता और मृत्यु।
  • रोग।

(ब) घरेल/पारिवारिक स्तर पर अन्तर्निहित कारण

  • भोजन की अपर्याप्त उपलब्धता।
  • अपर्याप्त मातृ एवं शिशु देखभाल के तरीके।
  • अपर्याप्त जल/सफाई और स्वच्छता।
  • अपर्याप्त स्वास्थ्य सेवाएँ और स्वास्थ्य सेवाओं तक कम पहुँच।
  • अपर्याप्त और/अथवा उचित जानकारी तथा महिलाओं, वृद्धजनों और बालिकाओं के प्रति भेदभाव।
  • अपर्याप्त शिक्षा।

(स) मूलभूत कारण

  • वास्तविक संसाधनों की मात्रा और गुणवत्ता। :
  • राजनीतिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक और सामाजिक व्यवस्था। इसमें महिलाओं की स्थिति तथा समस्याओं का समाधान करने हेतु कार्यक्रमों के लिए निधि का आवंटन, पर्यावरण निम्नीकरण और जैवविविधता सम्मिलित हैं।
  • संभावित संसाधन–पर्यावरण, प्रौद्योगिकी और लोग।

→ पोषण समस्याओं से संबंधित कारक-आर्थिक कारकों से लेकर कृषि नीति, स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएँ/सेवाएँ, उनकी उपलब्धता और उन तक पहुँच, सरकारी नीतियाँ, राजनीतिक इच्छा शक्ति और सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों तक विस्तारित हैं।

→ भारत में पोषण सम्बन्धी समस्यायें:
भारत में पोषण सम्बन्धी प्रमुख समस्यायें निम्नलिखित हैं

  • प्रोटीन-ऊर्जा कुपोषण
  • सूक्ष्म पोषकों की कमी
    • लौह तत्त्व की कमी से अरक्तता
    • विटामिन A की कमी
    • आयोडीन हीनता विकार 

→ पोषण समस्याओं का सामना करने के लिए कार्य नीतियाँ/हस्तक्षेप:
वर्ष 1993 में भारत सरकार ने राष्ट्रीय पोषण नीति अपनाई जिसे महिला और बाल विकास विभाग ने तैयार किया था।
(1) इसमें प्रत्यक्ष अल्प अवधि हस्तक्षेप शामिल हैं, जैसे
(अ) समेकित बाल विकास सेवाएँ (आई.सी.डी.एस.) 
(ब) आवश्यक खाद्य पदार्थों का पुष्टीकरण (नमक का आयोडीन द्वारा प्रबलीकरण)
(स) महिलाओं के सहयोग से कम कीमत वाले पोषक खाद्य पदार्थों का उत्पादन करना और उन्हें लोकप्रिय बनाना।
(द) संवेदनशील वर्गों (बच्चों, गर्भवती महिलाओं व दुग्धपान कराने वाली महिलाओं) में सूक्ष्मपोषकों की कमी पर नियंत्रण लाना।

(2) अप्रत्यक्ष संस्थागत और ढाँचागत परिवर्तनों द्वारा राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति हेतु अप्रत्यक्ष नीति साधनों में लंबी अवधि की योजनाएँ शामिल हैं, जैसे
(अ) खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करना।
(ब) पोषण तत्त्वों से युक्त पदार्थों की उपलब्धता सुनिश्चित करके आहार पद्धतियों में सुधार लाना।
(स) ग्रामीण और शहरी गरीबों की गरीबी कम करना।

→ अल्प पोषण कम करने के लिए विभिन्न हस्तक्षेप-विभिन्न कार्य नीतियाँ हैं जिनका उपयोग जन पोषक समस्याओं से जूझने के लिए किया जा सकता है। इनका मोटे तौर पर निम्न प्रकार से वर्गीकरण किया जा सकता है
(अ) आहार अथवा भोजन-आधारित कार्यनीतियाँ। 
(ब) पोषण आधारित दृष्टिकोण अथवा औषधीय दृष्टिकोण।

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→ हमारे देश में चल रहे पोषण कार्यक्रमों की सूची.

  • एकीकृत बाल विकास सेवाएँ-यह प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और विकास के लिए एक विस्तारित कार्यक्रम है।
  • पोषणहीनता नियंत्रण कार्यक्रम-इसके अन्तर्गत विटामिन-A की कमी के कारण अंधापन रोकने के लिए राष्ट्रीय निरोधक कार्यक्रम, राष्ट्रीय अरक्तता नियंत्रण कार्यक्रम, राष्ट्रीय आयोडीन हीनता विकार नियंत्रण कार्यक्रम आते हैं।
  • आहार पूरक कार्यक्रम, जैसे—मध्यान्ह भोजन कार्यक्रम।
  • भोजन सुरक्षा कार्यक्रम, जैसे—जन वितरण प्रणाली, अन्त्योदय अन्न योजना, अन्नपूर्णा योजना, कार्य के बदले अनाज राष्ट्रीय कार्यक्रम आदि। 
  • सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम, जैसे-स्वरोजगार और वैतनिक रोजगार योजनाएँ।

→ स्वास्थ्य देखभाल यह सरकार का दायित्व है कि वह नागरिकों को समुचित स्वास्थ्य सेवाएँ उपलब्ध कराए। भारत में स्वास्थ्य सेवाएँ तीन स्तरों--प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक पर की जाती हैं । यथा

→ प्राथमिक स्तर:
यह व्यक्ति, परिवार या समुदाय का स्वास्थ्य पद्धति से प्रथम सम्पर्क का स्तर है। ये सेवाएँ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्रों के नेटवर्क द्वारा उपलब्ध करायी जाती हैं।

→ द्वितीयक स्तर:
द्वितीय स्तर पर अधिक जटिल स्वास्थ्य समस्याओं का निराकरण जिला अस्पतालों और सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों द्वारा किया जाता है।

→ तृतीयक स्तर:
यह उच्चतम स्तर है। यहाँ अधिक जटिल स्वास्थ्य समस्याओं को सुलझाया जाता है। इस स्तर के संस्थान हैं—मेडिकल कॉलेजों के अस्पताल, क्षेत्रीय अस्पताल, विशिष्ट अस्पताल तथा अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान।

→ जन पोषण विशेषज्ञ की भूमिका:
जन पोषण विशेषज्ञ सामुदायिक पोषण विशेषज्ञ भी कहलाते हैं । वे स्वास्थ्य संवर्धन और बीमारी की रोकथाम की सभी कार्यनीतियों में सहभागी बनने के लिए पूर्ण रूप से उपयुक्त होते हैं। इसके प्रमुख क्षेत्रों में पोषण विज्ञान, पूरे जीवन क्रम में स्वास्थ्य और रोग सम्बन्धी पोषण आवश्यकताएँ, पोषण मूल्यांकन, पोषण देखरेख, खाद्य विज्ञान और कला, शैक्षिक पद्धतियाँ, जनसंचार माध्यमों का प्रयोग और कार्यक्रम प्रबंधन शामिल हैं।

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→ एक सामुदायिक पोषण विशेषज्ञ निम्नलिखित क्षेत्रों/परिस्थितियों में कार्य कर सकता है

  • अस्पतालों द्वारा किये जाने वाले विस्तारित कार्यक्रमों में भाग लेने के रूप में।
  • राष्ट्रीय समेकित बाल विकास सेवाओं में भाग लेने के रूप में।
  • सरकारी स्तर पर परामर्शदाताओं अथवा नीति निर्धारण समितियों के रूप में।
  • सरकार के सारे विकासात्मक कार्यक्रमों, स्वयंसेवी संस्थाओं और अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं में कार्य करने के रूप
  • बड़े पैमाने पर पोषाहार कार्यक्रम चलाने वाली संस्थाओं में।
  • विद्यालय स्वास्थ्य परामर्शदाता के रूप में।
  • इसके अतिरिक्त शिक्षण, शोध, उद्यमवृत्ति आदि में भी इनके कार्य के अवसर हैं।
Prasanna
Last Updated on July 15, 2022, 11:20 a.m.
Published July 15, 2022