Rajasthan Board RBSE Class 12 History Important Questions Chapter 11 विद्रोही और राज : 1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान Important Questions and Answers.
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वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
ई. के विद्रोह का प्रारम्भ हुआ?
(अ) दिल्ली
(ब) आगरा
(स) मेरठ
(द) नसीराबाद।
उत्तर:
(स) मेरठ
प्रश्न 2.
857 ई. के विद्रोह का तात्कालिक कारण था
(अ) चर्बी वाले कारतूस
(ब) वेलेजली की सहायक संधि
(स) ईसाई धर्म प्रचारक
(द) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(अ) चर्बी वाले कारतूस
प्रश्न 3.
विद्रोही सैनिकों ने दिल्ली पहुँचकर किसे अपना नेता घोषित किया?
(अ) बहादुरशाह जफ़र को
(ब) रानी लक्ष्मीबाई को
(स) शाहमल को
(द) पौलवी अहमदुल्ला शाह को।
उत्तर:
(अ) बहादुरशाह जफ़र को
प्रश्न 4.
कानपुर में विद्रोहियों का नेतृत्व किसने किया? ।
(अ) नाना साहिब
(ब) तात्या टोपे
(स) रानी लक्ष्मीबाई
(द) वाजिद अली।
उत्तर:
(अ) नाना साहिब
प्रश्न 5.
जमींदार कुँवर सिंह का सम्बन्ध था
(अ) बरेली (उत्तर प्रदेश) से
(ब) अजमेर (राजस्थान) से
(स) आरा (बिहार) से
(द) कलकत्ता (बंगाल) से।
उत्तर:
(स) आरा (बिहार) से
प्रश्न 6.
निम्नलिखित में से किसने उत्तर प्रदेश में बड़ौत परगना के ग्रामीणों को 1857 के विद्रोह में संगठित किया?
(अ) मौलवी अहमदुल्ला शाह
(ब) कुंवर सिंह
(स) शाह मल
(द) हनवंत सिंह
उत्तर:
(स) शाह मल
प्रश्न 7.
एनफील्ड राइफलों का सर्वप्रथम प्रयोग किस गवर्नर जनरल ने प्रारम्भ किया?
(अ) लॉर्ड हार्डिंग
(ब) लॉर्ड वेलेजली.
(स) लॉर्ड डलहौजी
(द) हेनरी हार्डिंग।
उत्तर:
(द) हेनरी हार्डिंग।
प्रश्न 8.
सती प्रथा को गैर कानूनी घोषित करने वाला कानून बना था
(अ) 1828 ई. में.
(ब) 1829 ई. में
(स) 1820 ई. में
(द) 1982 ई. में।
उत्तर:
(ब) 1829 ई. में
प्रश्न 9.
“ये गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।" यह कथन किसका था?
(अ) लॉर्ड डलहौजी का
(ब) लॉर्ड, केनिंग का
(स) लॉर्ड क्लाइव का
(द) लॉर्ड वेलेजली का।
उत्तर:
(अ) लॉर्ड डलहौजी का
प्रश्न 10.
निम्न में से किस अंग्रेज गवर्नर ने सहायक संधि प्रारम्भ की?
(अ) लॉर्ड डलहौजी ने
(ब) लॉर्ड केनिंग ने
(स) लॉर्ड क्लाइव ने
(द) लॉर्ड वेलेजली ने।
उत्तर:
(द) लॉर्ड वेलेजली ने।
प्रश्न 11.
सहायक संधि के निम्नलिखित प्रावधानों में से कौन-सा एक अवध पर 1801 में लागू नहीं था?
(अ) अंग्रेज़ अपने सहयोगी पक्ष की आन्तरिक और बाहरी चुनौतियों से रक्षा के लिए उत्तरदाई होंगे।
(ब) सहयोगी पक्ष के भू-क्षेत्र में ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी तैनात रहेगी।
(स) सहयोगी पक्ष को उस ब्रिटिश सैनिक टुकड़ी के रखरखाव की व्यवस्था करनी होगी।
(द) अंग्रेज़ों की अनुमति के बिना सहयोगी पक्ष किन्हीं अन्य शासकों के साथ संधि कर सकेगा।
उत्तर:
(द) अंग्रेज़ों की अनुमति के बिना सहयोगी पक्ष किन्हीं अन्य शासकों के साथ संधि कर सकेगा।
प्रश्न 12.
निम्नलिखित घटनाओं पर विचार कीजिए-
Iअवध में एकमुश्त लगान बंदोबस्त लागू
II. अवध में सहायक संधि को थोपना
III. आज़मगढ़ घोषणा
IV. सती प्रथा का अंत निम्नलिखित विकल्पों में से सही काल क्रमिक क्रम का चयन कीजिए
(अ) I-II-II-IV
(ब) III-II-I-IV
(स) II-I-III-IV
(द) II-IV-I-III
उत्तर:
(द) II-IV-I-III
प्रश्न 13.
अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाकर कहाँ निष्कासित किया गया था?
(अ) कलकत्ता
(ब) बम्बई
(स) रंगून
(द) जयपुर।
उत्तर:
(अ) कलकत्ता
प्रश्न 14.
रिलीफ ऑफ लखनऊ' चित्र का चित्रकार था
अथवा निम्नलिखित में से किसने 'रिलीफ ऑफ लखनऊ' (लखनऊ की राहत) को चित्रित किया था?
(अ) फेलिस विएतो
(ब) टॉमस जोन्स बार्कर
(स) जोजेफ
(द) पंच।
उत्तर:
(ब) टॉमस जोन्स बार्कर
सुमेलित प्रश्न
प्रश्न 1.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(विद्रोह के नेतृत्वकती) |
( क्षेत्र) |
(1) बेगम हजरत महल |
झाँसी |
(2) बहादुरशाह जफर |
कानपुर |
(3) नाना साहिब |
लखनऊ |
(4) लक्ष्मीबाई |
दिल्ली |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(विद्रोह के नेतृत्वकती) |
(क्षेत्र) |
(1) बेगम हजरत महल |
लखनऊ |
(2) बहादुरशाह जफर |
दिल्ली |
(3) नाना साहिब |
कानपुर |
(4) लक्ष्मीबाई |
झाँसी |
प्रश्न 2.
खण्ड 'क' को खण्ड 'ख' से सुमेलित कीजिए
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(1) आर्थिक कारण |
चर्बी वाले कारतूस |
(2) राजनीतिक कारण |
अंग्रेजों द्वारा भेदभाव की नीति |
(3) सामाजिक कारण |
भारतीय शासकों में असंतोष |
(4) तात्कालिक कारण |
किसान विरोधी भूमि नीति |
उत्तर:
खण्ड 'क' |
खण्ड 'ख' |
(1) आर्थिक कारण |
किसान विरोधी भूमि नीति |
(2) राजनीतिक कारण |
भारतीय शासकों में असंतोष |
(3) सामाजिक कारण |
अंग्रेजों द्वारा भेदभाव की नीति |
(4) तात्कालिक कारण |
चर्बी वाले कारतूस |
अतिलघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
1857 ई. का विद्रोह कब व कहाँ से प्रारम्भ हुआ ?
उत्तर:
1857 ई. का विद्रोह 10 मई, 1857 को मेरठ छावनी से प्रारम्भ हुआ।
प्रश्न 2.
1857 के विद्रोह के समय मुगल बादशाह कौन था ?
उत्तर:
बहादुरशाह ज़फर।
प्रश्न 3.
किस मुगल बादशाह ने 1857 ई. के विद्रोहियों का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया ?
उत्तर:
बहादुरशाह ज़फर ने।
प्रश्न 4.
1857 ई. के विद्रोह में साहूकार व अमीर लोग विद्रोहियों के क्रोध का शिकार क्यों बने ?
उत्तर:
क्योंकि विद्रोही साहूकारों व अमीर लोगों को किसानों का उत्पीड़क व अंग्रेजों का पिठू मानते थे।
प्रश्न 5.
कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर:
नाना साहिब ने।
प्रश्न 6.
झाँसी में 1857 के विद्रोह का नेतृत्व किसने किया ?
उत्तर:
रानी लक्ष्मीबाई ने।
प्रश्न 7.
अवध का नवाब कौन था?
उत्तर:
नवाब वाजिद अली शाह।
प्रश्न 8.
आरा (बिहार) में विद्रोह का नेतृत्वकर्ता कौन था ?
उत्तर:
स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह।
प्रश्न 9.
लखनऊ में ब्रिटिश राज के ढहने की खबर पर लोगों ने किसे अपना नेता घोषित किया ? उत्तर-नवाब वाजिद अली शाह के युवा पुत्र बिरजिस कद्र को।
प्रश्न 10.
सामान्यतः विद्रोह का सन्देश किनके द्वारा फैल रहा था ?
उत्तर:
सामान्यतः विद्रोह का सन्देश आम पुरुषों, महिलाओं एवं धार्मिक लोगों के माध्यम से फैल रहा था।
प्रश्न 11.
सहायक संधि कब व किसके द्वारा तैयार की गई?
उत्तर:
सहायक संधि 1798 ई. में लॉर्ड वेलेजली द्वारा तैयार की गई।
प्रश्न 12.
अवध को ब्रिटिश साम्राज्य में कब व किसने मिलाया ?
उत्तर:
अवध को 1856 ई. में लार्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाया।
प्रश्न 13.
अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से क्यों हटा दिया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को यह कहते हुए गद्दी से हटा दिया कि वे अच्छी तरह शासन नहीं चला
रहे थे।
प्रश्न 14.
अवध के अधिग्रहण के पश्चात् 1856 ई. में कौन-सी ब्रिटिश भू-राजस्व व्यवस्था लागू की गई थी।
उत्तर:
एकमुश्त बंदोबस्त भू-राजस्व व्यवस्था।
प्रश्न 15.
अवध जैसे क्षेत्रों में 1857 के दौरान प्रतिरोध बेहद सफल एवं लम्बा चला? वहाँ लड़ाई का नेतृत्व किनके हाथों में था ?
उत्तर:
ताल्लुकदारों एवं उनके किसानों के हाथों में।
प्रश्न 16.
विद्रोहियों द्वारा स्थापित शासन संरचना का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
युद्ध की जरूरतों को पूरा करना।
प्रश्न 17.
रंग बाग (प्लेजर गार्डन) का निर्माण किसने करवाया ?
उत्तर:
नवाब वाजिद अली शाह ने।
प्रश्न 18.
20वीं शताब्दी के राष्ट्रवादी आन्दोलन को किससे प्रेरणा प्राप्त हुई ?
उत्तर:
1857 ई. के घटनाक्रम से।
प्रश्न 19.
"खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।" यह कविता किसने लिखी ?
उत्तर:
सुभद्रा कुमारी चौहान ने।
प्रश्न 20.
1857 ई. की क्रान्ति एक सैनिक विद्रोह था अथवा स्वतन्त्रता संग्राम? अपने उत्तर की पुष्टि में तर्क दीजिए।
अथवा
1857 ई. की क्रान्ति को 'जन-क्रान्ति' की संज्ञा क्यों दी गई ?
उत्तर:
1857 ई. की क्रान्ति स्पष्ट रूप से एक स्वतन्त्रता संग्राम था क्योंकि इस क्रान्ति में प्रत्येक धर्म, जाति एवं समूह के लोगों ने अंग्रेजी शासन के विरुद्ध लड़ाई लड़ी थी। इस कारण इसे 'जन-क्रांति' की संज्ञा भी दी गई।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA1)
प्रश्न 1.
मेरठ छावनी के विद्रोही सिपाहियों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह को क्या सन्देश पहुँचाया ?
उत्तर:
दिल्ली के लाल किले के फाटक पर पहुँचकर मेरठ छावनी के विद्रोही सैनिकों ने मुगल सम्राट बहादुरशाह को यह सन्देश पहुँचाया कि "हम मेरठ के सभी अंग्रेज पुरुषों को मारकर आए हैं क्योंकि वे हमें गाय और सुअर की चर्बी में लिपटे कारतूसों को दाँतों से खींचने के लिए मजबूर कर रहे थे। इससे हिन्दू और मुसलमानों, दोनों का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। आप हमें अपना आशीर्वाद दें एवं हमारा नेतृत्व करें।"
प्रश्न 2.
1857 ई. के विद्रोह का तात्कालिक कारण क्या था ?
अथवा भारत में 1857 की क्रान्ति का तात्कालिक कारण लिखिए। .
उत्तर:
1857 ई. में मेरठ छावनी में सैनिकों को प्रयोग करने के लिए नए कारतूस दिए गए थे जिन्हें प्रयोग करने से पहले दाँतों से खींचना पड़ता था। अफवाह थी कि इन पर गाय व सूअर की चर्बी लगी हुई है। अपना धर्म भ्रष्ट होने के भय से हिन्दू एवं मुसलमान सैनिकों ने इनका प्रयोग करने से इन्कार कर दिया एवं विद्रोह पर उतारू हो गए।
प्रश्न 3.
1857 के विद्रोह के समय 41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री कहाँ तैनात थी तथा उसने अवध मिलिट्री पुलिस को क्या दलीलें दी ?
उत्तर:
1857 के विद्रोह के समय 41वीं नेटिव इन्फेन्ट्री अवध में तैनात थी। उसने अवध मिलिट्री पुलिस को दलील दी कि उसने अपने समस्त अंग्रेज अधिकारियों को मार दिया है इसलिए अवध मिलिट्री पुलिस कैप्टन हियर्से को मार दे अथवा गिरफ्तार करके उन्हें सौंप दे।
प्रश्न 4.
नाना साहिब कौन थे? 1857 के विद्रोह में इनका योगदान बताइए।
उत्तर:
नाना साहिब पेशवा बाजीराव द्वितीय के उत्तराधिकारी थे जिन्होंने कानपुर में विद्रोही सिपाहियों एवं शहर के लोगों का नेतृत्व किया। 1858 ई. के अन्त में जब विद्रोह असफल हो गया तो वे भागकर नेपाल चले गये जिसे उनके साहस तथा बहादुरी की कहानी का हिस्सा बताया जाता है।
प्रश्न 5.
शाह मल कौन था?
उत्तर:
शाह मल उत्तर प्रदेश में बड़ौत परगना के एक बड़े गाँव का रहने वाला था जिसने चौरासी गाँव के मुखियाओं और काश्तकारों को संगठित कर अंग्रेजों के विरुद्ध व्यापक विद्रोह का नेतृत्व किया। जुलाई 1857 ई. में शाह मल को युद्ध में अंग्रेजों ने मार दिया।
प्रश्न 6.
1857 ई. के विद्रोह से पूर्व कई अफवाहों व भविष्यवाणियों ने भारतीयों में बेचैनी उत्पन्न की। इनमें से किन्हीं दो का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 7.
1857 के विद्रोह के कोई दो सामाजिक कारण बताइए ।
उत्तर:
प्रश्न 8.
लॉर्ड डलहौजी का व्यपगत सिद्धान्त क्या था?
उत्तर:
शासकीय दुर्बलता तथा दत्तकता को अवैध घोषित कर भारतीय रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिलाना ही लॉर्ड डलहौजी का व्यपगत सिद्धान्त था।
प्रश्न 9.
सहायक सन्धि ने अवध के नवाब को किस प्रकार असहाय बना दिया था ?
उत्तर:
सहायक संधि के कारण अवध का नवाब वाजिद अली शाह अपनी सैनिक शक्ति से वंचित हो गया जिसके फलस्वरूप वह अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए दिन-प्रतिदिन अंग्रेजों पर निर्भर होता जा रहा था। नवाब का विद्रोही मुखियाओं एवं ताल्लुकदारों पर भी कोई नियंत्रण न था।
प्रश्न 10.
अंग्रेजों द्वारा अवध के अधिग्रहण का स्थानीय जनता पर क्या प्रभाव पड़ा ?
उत्तर:
अंग्रेजों द्वारा अवध के अधिग्रहण के कारण स्थानीय जनता ब्रिटिश शासन के विरुद्ध हो गई क्योंकि नवाब को हटाने से दरबार और उसकी संस्कृति नष्ट हो गई। संगीतकारों, नर्तकों, कवियों, कारीगरों, बावर्चियों, नौकरों, सरकारी कर्मचारियों एवं अनेक लोगों की रोजी-रोटी समाप्त हो गयी थी।
प्रश्न 11.
अवध का विद्रोह इतना अधिक व्यापक क्यों हो गया था ? कोई दो कारण दीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 12.
1857 ई. के जन-विद्रोह के स्वरूप पर भारतीय सिपाहियों एवं ग्रामीण जगत के बीच के सम्बन्धों का क्या प्रभाव पड़ा?
उत्तर:
1857 ई. के जन-विद्रोह के स्वरूप पर भारतीय सिपाहियों एवं ग्रामीण जगत के बीच के सम्बन्धों का गहरा प्रभाव पड़ा। जब सिपाही अपने अधिकारियों की अवज्ञा करते थे और हथियार उठा लेते थे तो गाँव में उनके रिश्तेदार भी उनके साथ आ जुटते थे। सभी स्थानों पर किसान शहरों में आकर सिपाहियों एवं शहर के आम लोगों के साथ जुड़कर विद्रोह में सम्मिलित हो जाते थे।
प्रश्न 13.
1857 ई. के आन्दोलन में हिन्दू और मुसलमानों के बीच मतभेद पैदा करने के लिए अंग्रेजों ने क्या किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने दिसम्बर 1857 ई. में बरेली में हिन्दुओं को मुसलमानों के खिलाफ भड़काने के लिए पचास हजार रुपये खर्च किए, परन्तु उनकी यह कोशिश असफल रही। .
प्रश्न 14.
1857 ई. के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने क्या कार्यवाही की ?
अथवा
1857 ई. के विद्रोह को कुचलने के लिए अंग्रेजों द्वारा उठाये गए कोई दो कदम बताइए।
उत्तर:
1857 ई. के विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजों ने कई कानून पारित किए। उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया जिसके तहत सेना के अधिकारियों के अतिरिक्त आम जनता को भी विद्रोहियों पर मुकदमा चलाने एवं सजा देने का अधिकार दे दिया गया। कानून और मुकदमों की सामान्य प्रक्रिया बन्द कर दी गयी तथा विद्रोह की एक ही सजा 'सजा-ए-मौत' निर्धारित की गयी।
प्रश्न 15.
1857 ई. के विद्रोह के बारे में ब्रिटिश समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने क्या लिखा?
उत्तर:
ब्रिटिश समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने विद्रोही सैनिकों द्वारा की गई हिंसा को बड़े लोमहर्षक शब्दों में छापा। इन पत्र-पत्रिकाओं ने ब्रिटिश जनता की भावनाओं को भड़काया तथा प्रतिशोध एवं सबक सिखाने की मांगों को बढ़ावा दिया।
प्रश्न 16.
विद्रोहियों में दशहत फैलाने के लिए. अंग्रेजों ने क्या किया ?
उत्तर:
विद्रोहियों में दशहत फैलाने के लिए अंग्रेजों ने विद्रोहियों को निर्मम ढंग से मौत के घाट उतारा, तोप के मुँह से बाँधकर उड़ाया गया एवं सरेआम फाँसी पर लटकाया गया ?
प्रश्न 17.
20वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन ने किससे प्रेरणा ली?
उत्तर:
20वीं शताब्दी में भारतीय राष्ट्रवादी आन्दोलन ने 1857 ई. के घटनाक्रम से प्रेरणा ली। इस विद्रोह के आस-पास राष्ट्रवादी कल्पना का एक विस्तृत दृश्य जगत बुन दिया गया था तथा इसको प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के रूप में याद किया जाता था, जिसमें प्रत्येक वर्ग ने साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध मिल-जुलकर संघर्ष किया था।
लघु उत्तरीय प्रश्न (SA2)
प्रश्न 1.
1857 ई. के विद्रोह का प्रारम्भ किस प्रकार हुआ ?
उत्तर:
10 मई, 1857 को दोपहर बाद मेरठ छावनी में सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह का प्रारम्भ भारतीय सैनिकों की पैदल सेना से हुआ था जो शीघ्र ही घुड़सवार सेना और फिर शहर तक फैल गया। मेरठ शहर और उसके आसपास के गाँवों के लोग सिपाहियों के साथ आ मिले। सिपाहियों ने शस्त्रागार पर कब्जा कर हथियार व गोला-बारूद लूट लिये। इसके पश्चात् उन्होंने अंग्रेजों के बंगलों एवं साजो-सामान को जलाना प्रारम्भ कर दिया। रिकॉर्ड दफ्तर, जेल, अदालत, डाकखाने, सरकारी खजाने जैसी सरकारी इमारतों को लूटकर ध्वस्त कर दिया गया। मेरठ शहर को दिल्ली से जोड़ने वाली टेलीग्राफ लाइन काट दी गयी। अंधेरा होते ही सिपाहियों का एक जत्था घोड़ों पर सवार होकर दिल्ली की ओर चल पड़ा। यह जत्था 11 मई, 1857 को प्रातः दिल्ली के लाल किले के फाटक पर पहुँचा, जहाँ उन्होंने मुगल सम्राट बहादुरशाह को उनका नेतृत्व करने का निवेदन किया गया तथा बादशाह द्वारा विद्रोहियों का नेतृत्व करना स्वीकार कर लिया गया। इस तरह 1857 ई. का विद्रोह मुगल बादशाह बहादुरशाह के नाम से चलाया गया।
प्रश्न 2.
1857 ई. के विद्रोह का विस्तार किस प्रकार हुआ ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
1857 ई. के विद्रोह के विस्तार हेतु सिपाहियों ने किसी न किसी विशेष संकेत के साथ कार्यवाही प्रारम्भ की। कई स्थानों पर सायंकाल तोप का गोला दागा गया तो कहीं बिगुल बजाकर विद्रोह का संकेत दिया गया। सर्वप्रथम विद्रोहियों ने शस्त्रागार पर नियन्त्रण स्थापित किया और सरकारी खजाने को लूटा। तत्पश्चात्. उन्होंने जेल, टेलीग्राफ दफ्तर, रिकॉर्ड रूम, बंगलों एवं सरकारी इमारतों पर हमले किये तथा समस्त रिकॉर्ड जला डाले। अंग्रेजों से सम्बन्धित प्रत्येक व्यक्ति एवं प्रत्येक वस्तु विद्रोहियों के हमले का निशाना बने। देश भर के हिन्दुओं एवं मुसलमानों को एकजुट होकर अंग्रेजों का सफाया करने के लिए हिन्दी, उर्दू व फारसी में अपीलें जारी की गयीं। विद्रोह में आम जनता सम्मिलित होने लगी जिससे हमलों का विस्तार होता गया। लखनऊ, कानपुर एवं बरेली जैसे बड़े-बड़े शहरों में साहूकार व धनिक वर्ग भी विद्रोहियों के क्रोध का शिकार बनने लगा। सभी स्थानों पर शासन की अवहेलना होने लगी। मई-जून 1857 ई. को अंग्रेजों के पास विद्रोहियों की कार्यवाहियों का कोई जवाब नहीं था तथा वे अपने प्राण और घर-बार बचाने में लगे हुए थे। ब्रिटिश अधिकारी ब्रिटिश शासन को ताश के किले की तरह बिखरना बता रहे थे।
प्रश्न 3.
1857 ई. के विद्रोह के सन्देश का प्रचार-प्रसार कैसे हुआ?
उत्तर:
1857 ई. के विद्रोह का प्रचार-प्रसार निम्नलिखित तरीकों से हुआ-
प्रश्न 4.
1857 ई. की क्रान्ति के दौरान राजनीतिक असन्तोष के क्या कारण थे ?
उत्तर:
1857 ई. की क्रान्ति के दौरान राजनीतिक असन्तोष के निम्नलिखित कारण थे
(i) मुगल बादशाह का अपमान–अंग्रेजों के भारत आगमन के पश्चात् मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर था तथा अन्तिम मुगल बादशाह बहादुरशाह का शासन केवल लाल किले तक ही सीमित था। अंग्रेज उन्हें लाल किले से हटाकर अपना कब्जा करना चाहते थे।
(ii) नाना साहिब व रानी लक्ष्मीबाई से अनुचित व्यवहार-लॉर्ड डलहौजी ने दत्तक प्रथा पर रोक लगाकर झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र को शासक मानने से इन्कार कर दिया तथा झाँसी को हड़पने की नीति अपनाई जिससे झाँसी की रानी अंग्रेजों के विरुद्ध हो गयी। नाना साहिब पेशवा बाजीराव द्वितीय के दत्तक पुत्र थे। अंग्रेजों ने उनकी पेंशन बन्द कर दी।
(iii) अवध का अनुचित विलय-लॉर्ड डलहौजी ने अवध के नवाब वाजिद अली शाह पर कुशासन का आरोप लगाकर उन्हें हटा दिया तथा 1856 ई. में अवध का अंग्रेजी राज्य में विलय कर लिया। इस कारण नवाब के उत्तराधिकारियों एवं वहाँ की जनता ने विद्रोह में सक्रिय रूप से भाग लिया।
(iv) डलहौजी की हड़प नीति–डलहौजी ने अपनी साम्राज्यवादी हड़प नीति के तहत अनेक रियासतों को ब्रिटिश साम्राज्य में मिला लिया जिसके फलस्वरूप उन रियासतों के शासक अंग्रेजों के विरुद्ध हो गये।
प्रश्न 5.
शाह मल के बारे में आप क्या जानते हो ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
अथवा
1857 ई. की क्रान्ति में शाह मल के कार्यों का मूल्यांकन कीजिए।
उत्तर:
शाह मल का जन्म उत्तर प्रदेश के बड़ौत परगने के एक बड़े गाँव के रहने वाले जाट परिवार में हुआ था। इनका परिवार चौरासी देस (चौरासी गाँव) में फैला हुआ था। ब्रिटिश सरकार ने इस क्षेत्र में ऊँचा लगान लगा रखा था जिसे बड़ी कठोरता से वसूला जाता था जिसके परिणामस्वरूप किसानों की जमीन बाहरी लोगों (व्यापारी एवं महाजन) के हाथों में जा रही थी। इसी कारण यहाँ के लोग ब्रिटिश शासन से मुक्ति चाहते थे। शाह मल ने चौरासी गाँवों के मुखियाओं एवं किसानों को संगठित किया एवं गाँव-गाँव घूमकर जनता को विद्रोह करने हेतु प्रेरित किया। शाह मल के नेतृत्व में व्यापक विद्रोह हुआ। शाह मल ने एक अंग्रेज अधिकारी के बंगले पर कब्जा करके उसे न्याय भवन की संज्ञा दी तथा वहीं से लोगों के झगड़ों व विवादों का फैसला करने लगा। कुछ समय के लिए तो ऐसा लगा कि उस क्षेत्र में ब्रिटिश शासन समाप्त हो गया है। लोग उसे राजा कहकर पुकारने लगे। जुलाई 1857 ई. को अंग्रेजों के विरुद्ध युद्ध करते हुए शाह मल की मृत्यु हो गयी।
प्रश्न 6.
मौलवी अहमदुल्ला शाह का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर:
मौलवी अहमदुल्ला शाह 1857 ई. के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम में उल्लेखनीय भूमिका निभाने वाले अनेक प्रसिद्ध मौलवियों में से एक थे। उन्होंने हैदराबाद में शिक्षा प्राप्त की एवं कम उम्र में ही इस्लाम के उपदेशक बन गये। 1856 ई. में उन्होंने गाँव-गाँव जाकर अंग्रेजों के विरुद्ध लोगों को विद्रोह के लिए तैयार किया। उनकी प्रसिद्धि इतनी अधिक बढ़ गयी थी कि लोग इन्हें पैगम्बर मानकर इनकी जादुई शक्ति में विश्वास करने लगे। 1856 ई. में वे लखनऊ पहुँचे तो अंग्रेजों ने उन्हें धार्मिक उपदेश देने से रोक दिया तथा 1857 ई. में उन्हें फैजाबाद जेल में बन्द कर दिया गया। जेल से रिहा होने पर उन्हें 22वीं नेटिव इन्फेन्ट्री के विद्रोहियों ने अपना नेता चुन लिया। उन्होंने चिनहट की लड़ाई में हेनरी लॉरेंस की सैनिक टुकड़ी को पराजित किया। मौलवी अहमदुल्ला शाह को उनकी बहादुरी व ताकत के लिए जाना जाता था।
प्रश्न 7.
सहायक सन्धि क्या थी? सहायक सन्धि को इसके प्रमुख बिन्दुओं के साथ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1798 ई. में लॉर्ड वेलेजली द्वारा देशी राज्यों को हड़पने के लिये एक सन्धि का प्रारूप निर्मित किया गया, इसे ही सहायक सन्धि कह जाता है। सहायक सन्धि के प्रमुख बिन्दु निम्नलिखित हैं
प्रश्न 8.
अंग्रेज अवध के अधिग्रहण में किन कारणों से रुचि रखते थे ?
अथवा
अवध अधिग्रहण में ब्रिटिश शासन की रुचि के क्या कारण थे ?
उत्तर:
अवध अधिग्रहण में ब्रिटिश शासन की रुचि के निम्नलिखित कारण थे
अतः उपरोक्त कारणों से अंग्रेजों की अवध के अधिग्रहण में रुचि बढ़ी।
प्रश्न 9.
1856 ई. में अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा क्यों किया? किस बहाने को लेकर उन्होंने कब्जा किया? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1856 ई. में अंग्रेजों ने अवध पर कब्जा इसलिए किया क्योंकि उन्हें लगता था कि वहाँ की जमीन नील तथा कपास की खेती के लिए बहुत अच्छी है और इस क्षेत्र को उत्तरी भारत के एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है। उन्होंने अवध के नवाब वाजिद अली शाह को शासन चलाने में असक्षम होने का तथा जनता में लोकप्रिय हीं होने का आरोप लगाकर गद्दी से हटाकर कलकत्ता निष्कासित कर दिया।
प्रश्न 10.
अवध में ताल्लुकदारों को हटाने के पीछे अंग्रेजों की क्या सोच थी? इस सोच के क्या परिणाम निकले?
अथवा
1857 के विद्रोह में अवध के ताल्लुकदारों की सहभागिता की जाँच कीजिए।
उत्तर:
ब्रिटिश भू-राजस्व अधिकारियों का विचार था कि वे अवध में ताल्लुकदारों को हटाकर जमीन असली मालिकों को सौंप देंगे। इससे किसानों के शोषण में कमी आयेगी एवं राजस्व वसूली में वृद्धि होगी, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं हुआ। भू-राजस्व वसूली में अवश्य वृद्धि हुई, परन्तु किसानों के बोझ में कमी नहीं आयी। अधिकारियों को शीघ्र ही समझ में आने लगा कि अवध के बहुत-से क्षेत्रों में मूल्य निर्धारण बहुत बढ़ा-चढ़ाकर किया गया था। कुछ स्थानों पर तो राजस्व माँग 30 से 70 प्रतिशत तक बढ़ गई थी इसीलिए न तो ताल्लुकदार प्रसन्न थे और न ही काश्तकार। ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने का परिणाम यह हुआ कि सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था भंग हो गयी। निष्ठा एवं संरक्षण के जिन बन्धनों से किसान ताल्लुकदारों के साथ जुड़े हुए थे वे अस्त-व्यस्त हो गये।
प्रश्न 11.
अवध में ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने से सामाजिक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा ? संक्षेप में बताइए।
अथवा
ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने का क्या परिणाम निकला ?
अथवा
ताल्लुकदारों के हटाये जाने से अवध के किसानों की दशा किस प्रकार खराब हो गयी ?
उत्तर:
अवध में ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने से एक सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था भंग हो गयी। निष्ठा और संरक्षण के जिन बन्धनों से किसान और ताल्लुकदार बँधे हुए थे वे अस्त-व्यस्त हो गये। अंग्रेजों से पहले ताल्लुकदार ही जनता का उत्पीड़न करते थे, परन्तु जनता की नजरों में अनेक ताल्लुकदार दयालु होने की छवि भी रखते थे। वे किसानों से तरह-तरह से पैसा वसूलते थे, परन्तु बुरे वक्त में किसानों की सहायता भी करते थे। अब ब्रिटिश राज में किसान मनमानी राजस्व वसूली एवं गैर-लचीली राजस्व व्यवस्था के अन्तर्गत बुरी तरह पिसने लगे थे। अब इस बात की कोई गारंटी नहीं थी कि सरकार कठिन समय में अथवा फसल खराब होने पर राजस्व माँग में कोई कमी करेगी। वसूली को कुछ समय के लिए टाला भी नहीं जाता था। न ही किसानों को इस बात की कोई आशा थी कि तीज-त्यौहारों पर कोई छूट या सहायता मिल पाएगी जो पहले ताल्लुकदारों से प्राप्त हो जाया करती थी। इस प्रकार ताल्लुकदारों की सत्ता छिनने से सामाजिक व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
प्रश्न 12.
1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम से पहले के कुछ वर्षों में भारतीय सिपाहियों एवं अंग्रेज अधिकारियों के आपसी सम्बन्ध किस प्रकार बदल गए?
उत्तर:
1857 ई. के स्वतन्त्रता संग्राम से पहले के कुछ वर्षों में भारतीय सिपाहियों के अपने अंग्रेज अधिकारियों के साथ सम्बन्ध बहुत अधिक बदल चुके थे। 1820 के दशक में सेना के अंग्रेज अधिकारियों द्वारा भारतीय सिपाहियों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्धों पर जोर दिया जाता था। अंग्रेज अधिकारी भारतीय सिपाहियों के साथ मौज-मस्ती में सम्मिलित होते थे, उनके साथ मल्लयुद्ध करते थे, तलवारबाजी करते थे तथा शिकार पर भी जाते थे। कई अंग्रेज अधिकारी हिन्दुस्तानी भी बोलते थे तथा यहाँ के रीति-रिवाजों व संस्कृति से पूर्णतः परिचित थे। उनमें अधिकारी की कड़क व अभिभावक का स्नेह दोनों सम्मिलित थे। 1840 के दशक में स्थिति बदलने लगी। अंग्रेज अधिकारियों में श्रेष्ठता का भाव पैदा होने से वे सिपाहियों को निकृष्ट नस्ल का मानने लगे तथा उनकी भावनाओं की बिल्कुल भी परवाह नहीं करते थे। उनके लिए गाली-गलौज व शारीरिक हिंसा एक सामान्य घटना हो गयी। इस प्रकार भारतीय सिपाहियों व अंग्रेज अधिकारियों के मध्य दूरी बढ़ती गयी। चर्बी वाले कारतूसों की घटना इसका एक अच्छा उदाहरण थी।
प्रश्न 13.
इतिहास लेखन की तरह कला और साहित्य ने भी 1857 ई. की स्मृति को जीवित रखने में योगदान दिया? रानी लक्ष्मीबाई का उदाहरण देते हुए स्पष्ट कीजिए।
अथवा
कला और साहित्य ने 1857 की स्मृति को जीवित रखने में किस प्रकार योगदान दिया ? उल्लेख कीजिए।
अथवा
कला और साहित्य ने रानी लक्ष्मीबाई को 1857 के विद्रोह के नायक के रूप में कैसे पेश किया है? जाँच कीजिए।
अथवा
"कला, साहित्य और चित्रों ने 1857 की स्मृति को जीवित रखने में योगदान दिया है।" कथन को भारतीय राष्ट्रवाद के सन्दर्भ में न्यायसंगत ठहराइए।
उत्तर:
इतिहास लेखन की तरह कला और साहित्य ने भी 1857 की स्मृति को जीवित रखने में योगदान दिया। साहित्य एवं चित्रों में 1857 ई. के विद्रोह के नेताओं को एक ऐसे नायकों के रूप में प्रस्तुत किया जाता था जो देश को युद्ध स्थल की ओर ले जा रहे थे। उन्हें जनता को अत्याचारी साम्राज्यवादी शासन के विरुद्ध उत्तेजित करते हुए चित्रित किया जाता था। एक हाथ में घोड़े की लगाम एवं दूसरे हाथ में तलवार लिए हुए अपनी मातृभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष करने वाली रानी लक्ष्मीबाई की वीरता का गौरव गान करते हुए कविताएँ लिखी गयीं। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई को एक ऐसी मर्दाना व्यक्तित्व के रूप में चित्रित किया जाता था जो दुश्मनों का पीछा करते हुए एवं अंग्रेज सिपाहियों को मौत की नींद सुलाते हुए आगे बढ़ रही थी। देश के विभिन्न हिस्सों में बच्चे सुभद्रा कुमारी चौहान की इन पंक्तियों को पढ़ते हुए बड़े हो रहे थे "खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी।"
लोक छवियों में रानी लक्ष्मीबाई को प्रायः सैनिक वेशभूषा में घोड़े पर सवार एवं एक हाथ में तलवार लिए हुए दर्शाया जाता है जो अन्याय एवं विदेशी शासन के दृढ़ प्रतिरोध का प्रतीक है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
1857 के जन-विद्रोह का आरम्भ किस प्रकार हुआ? इसके विस्तार को भी बतलाइए।
उत्तर:
1857 ई. के जन-विद्रोह का आरम्भ-1857 ई. के जन-विद्रोह का आरम्भ 10 मई, 1857 को दोपहर बाद मेरठ छावनी से हुआ था। यहाँ इस विद्रोह की शुरुआत भारतीय सैनिकों की पैदल सेना ने की तथा शीघ्र ही यह विद्रोह घुड़सवार सेना एवं शहर तक फैल गया। शहर और आस-पास के गांवों के लोग सैनिकों के साथ जुड़ गए। सैनिकों ने हथियार एवं गोला बारूद से भरे हुए शस्त्रागार पर अधिकार कर लिया। इसके पश्चात् विद्रोही सैनिकों ने अंग्रेजों के साजो-सामान व बंगलों को जला दिया। रिकॉर्ड दफ्तर, जेल, अदालत, डाकखाने जैसी सरकारी इमारतों को लूटकर ध्वस्त कर दिया गया। मेरठ शहर को दिल्ली से जोड़ने वाली टेलीग्राफ लाइनें काट दी गयीं, शाम को अंधेरा होते ही भारतीय सैनिकों का एक दल घोड़ों पर सवार होकर दिल्ली की ओर चल पड़ा। विद्रोह का विस्तार-विद्रोही सैनिक 11 मई, 1857 ई. को प्रातः लाल किले के फाटक पर पहुँचे। रमजान का महीना था इसलिए मुगल बादशाह बहादुरशाह नमाज पढ़कर एवं सहरी खाकर उठे ही थे कि उन्हें फाटक पर शोरगुल सुनाई दिया।
बाहर खड़े सैनिकों ने उन्हें बताया कि वे मेरठ के सभी अंग्रेज पुरुषों को मारकर आए हैं क्योंकि वे हमें गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूस दाँतों से खोलने के लिए मजबूर कर रहे थे जिससे हिन्दू और मुसलमान दोनों का धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। तब तक विद्रोही सैनिकों का एक और दल दिल्ली में प्रवेश कर चुका था तथा दिल्ली शहर की आम जनता भी उनके साथ जुड़ने लगी। अनेक अंग्रेज मारे गये। दिल्ली के अमीर लोगों पर भी हमले हुए और लूटपाट हुई। दिल्ली अंग्रेजों के नियन्त्रण से निकल चुकी थी। कुछ सैनिक लाल किले में प्रवेश प्राप्त करने के लिए दरबार के शिष्टाचार का पालन किये बिना ही किले में प्रवेश कर गये। उनकी माँग थी कि बादशाह बहादुरशाह उन्हें अपना आशीर्वाद प्रदान करें ताकि विद्रोह का प्रसार सम्पूर्ण देश में हो सके। विद्रोही सैनिकों से घिरे बहादुरशाह के पास उनकी बात मानने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं था। इस तरह विद्रोह ने एक नेतृत्व प्राप्त कर लिया क्योंकि अब उसे मुगल बादशाह बहादुरशाह के नाम पर चलाया जा सकता था।
12 व 13 मई, 1857 ई. को उत्तर भारत में शान्ति रही परन्तु जैसे ही यह खबर फैली कि दिल्ली पर विद्रोहियों का अधिकार हो चुका है तथा इस विद्रोह को मुगल बादशाह बहादुरशाह ने समर्थन दे दिया है, परिस्थितियों में तेजी से बदलाव आया। गंगा घाटी एवं दिल्ली के पश्चिम की कुछ छावनियों में विद्रोह के स्वर तीव्र होने लगे। विद्रोह में आम जनता के सम्मिलित होने से हमलों में विस्तार आता गया। लखनऊ, कानपुर एवं बरेली जैसे बड़े शहरों में साहूकार एवं धनिक वर्ग के लोगों पर भी विद्रोहियों ने हमले प्रारम्भ कर दिये। किसान इन लोगों को न केवल अपना उत्पीड़क बल्कि अंग्रेजों का पिठू भी मानते थे। अधिकांश स्थानों पर धनिक वर्ग के घर-बार लूटकर ध्वस्त कर दिए गए। इन छिटपुट विद्रोहों ने शीघ्र ही चौतरफा विद्रोह का रूप धारण कर लिया तथा ब्रिटिश शासन की सत्ता की खुलेआम अवहेलना होने लगी। 1857 ई. के विद्रोह का विस्तार अवध (लखनऊ) में भी हुआ, जहाँ विद्रोह का सबसे भयंकर रूप देखने को मिला। अंग्रेजों
विद्रोही और राज (1857 का आंदोलन और उसके व्याख्यान) =3831 ने यहाँ के नवाब वाजिद अली शाह को शासन से हटा दिया था जिससे विद्रोह का नेतृत्व नवाब के युवा पुत्र बिरजिस कद्र ने किया था। कानपुर में विद्रोह का नेतृत्व नाना साहिब ने, झाँसी में रानी लक्ष्मीबाई ने तथा बिहार के आरा में स्थानीय जमींदार कुंवर सिंह ने विद्रोह का नेतृत्व किया। . इस प्रकार 1857 ई. में जन विद्रोह का विस्तार होता चला गया।
प्रश्न 2.
1857 ई. के जन विद्रोह को फैलाने में अफवाहों एवं भविष्यवाणियों की भूमिका का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
अथवा
1857 के शुरू में उत्तर भारत में फैली अफवाहों और भविष्यवाणियों में लोगों ने क्यों विश्वास किया? व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
1857 ई. के जन विद्रोह को फैलाने में अफवाहों एवं भविष्यवाणियों का भी पर्याप्त योगदान रहा है। इन अफवाहों ने आम जनता को विद्रोह करने के लिए प्रेरित किया। प्रमुख उदाहरण निम्नलिखित हैं-
(i) चर्बी वाले कारतूस-मेरठ छावनी से दिल्ली आने वाले विद्रोही सैनिकों ने बहादुरशाह को बताया कि उन्हें एनफील्ड राइफल में चलाने हेतु जो कारतूस दिए गए हैं उनमें गाय व सुअर की चर्बी लगी हुई है। यदि वे इन कारतूसों को मुँह से खोलेंगे तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। ब्रिटिश अधिकारियों ने सैनिकों को बहुत समझाया कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है, परन्तु यह अफवाह उत्तर भारत की छावनियों में जंगल की आग की तरह फैलती चली गयी। इसका आधार क्या था, इसके बारे में यह कहा जाता है कि दमदम स्थित शस्त्रागार में कार्य करने वाले निम्न जाति के खलासी ने जनवरी 1857 ई. में एक ब्राह्मण सैनिक से पानी पिलाने के लिए कहा था। ब्राह्मण सैनिक ने यह कहकर अपने लोटे से पानी पिलाने से इन्कार कर दिया कि उसके छूने से उसका लोटा अपवित्र हो जाएगा। इस पर खलासी ने जवाब दिया कि वैसे भी शीघ्र ही तुम्हारी जाति भ्रष्ट होने वाली है क्योंकि अब तुम्हें गाय और सुअर की चर्बी लगे कारतूसों को अपने मुँह से खोलना पड़ेगा।
इस अफवाह के फैलने पर अंग्रेज अधिकारी अनेक प्रयासों के बावजूद रोक नहीं लगा पाये। इसने भारतीय सैनिकों में क्रोध की लहर उत्पन्न कर दी।
(ii) आटे में हड्डियों का चूरा-1857 ई. की शुरुआत में यह अफवाह जोरों पर थी कि ब्रिटिश सरकार ने हिन्दुओं और मुसलमानों की जाति और धर्म को नष्ट करने के लिए एक भयानक साजिश रची है। यह अफवाह फैलाने वालों का कहना था कि इसी उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए अंग्रेजों ने बाजार में मिलने वाले आटे में गाय और सुअर की हड्डियों का चूरा मिलवा दिया। इसलिए शहरों व छावनियों में सिपाहियों तथा आम लोगों ने आटे को छूने से भी इंकार कर दिया। चारों ओर यह भय सन्देह बना हुआ था कि अंग्रेज भारतीयों को ईसाई बनाना चाहते हैं। ब्रिटिश अफसरों ने लोगों को अपनी बात का यकीन दिलाने का भरसक प्रयास किया, लेकिन असफल रहे। इन्हीं बेचैनियों ने लोगों को अगला कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया।
(iii) ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के समाप्त होने की भविष्यवाणी-किसी बड़ी कार्यवाही के आह्वान को इस भविष्यवाणी से और बल मिला कि प्लासी के युद्ध के सौ साल पूरे होते ही 23 जून, 1857 को अंग्रेजी राज खत्म हो जायेगा। इस भविष्यवाणी से भी विद्रोह को प्रेरणा मिली। ।
(iv) चपातियों का वितरण-उत्तर भारत के विभिन्न भागों से गाँव-गाँव में चपातियाँ बाँटने की खबरें आ रही थीं। बताते हैं कि रात को एक व्यक्ति गाँव के चौकीदार को एक चपाती देता था और उसे पाँच और चपातियाँ बनाकर अगले गाँव में पहुँचाने का निवेदन कर जाता था। चपातियाँ बाँटने का अर्थ और उद्देश्य न तो उस समय स्पष्ट था और न ही आज स्पष्ट है, लेकिन एक बात स्पष्ट रूप से कही जा सकती है कि इसे लोग किसी आने वाली उथल-पुथल का सूचक मान रहे थे।
प्रश्न 3.
1857 ई. में फैली अफवाहों पर लोग क्यों विश्वास कर रहे थे? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
1857 ई. में फैली अफवाहों पर लोग निम्न कारणों से विश्वास कर रहे थे
(i) ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार का सुधारात्मक कार्य-यदि 1857 ई. की अफवाहों को 1820 के दशक से अंग्रेजों द्वारा अपनायी जा रही नीतियों के सन्दर्भ में देखा जाए तो इनका अर्थ आसानी से समझा जा सकता है। उस समय गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंक के नेतृत्व में ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार पश्चिमी शिक्षा, पश्चिमी विचार एवं पश्चिमी संस्थानों के माध्यम से भारतीय समाज में आवश्यक सुधार करने हेतु विशेष प्रकार की नीतियाँ लागू कर रही थी। भारतीय समाज के कुछ वर्गों की सहायता से उन्होंने अंग्रेजी माध्यम के स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय स्थापित किए थे जिनमें पश्चिमी विज्ञान एवं उदार कलाओं के बारे पढ़ाया जाता था।
(ii) सती प्रथा का निषेध-गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंक ने 1829 ई. में सती प्रथा को समाप्त करने के लिए एक कानून का निर्माण किया जिसमें सती प्रथा को अवैध ठहराया गया तथा उसे एक दण्डनीय अपराध घोषित किया गया। इसके अतिरिक्त हिन्दू विधवा विवाह को वैधता प्रदान करने के लिए भी कानून बनाए गए।
(iii) डलहौजी की हड़प नीति-लॉर्ड डलहौजी ने भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन को विस्तार प्रदान करने के लिए शासकीय कमजोरी एवं दत्तकता को अवैध घोषित कर देने के बहाने अवध, झाँसी व सतारा जैसी अनेक रियासतों को अपने नियन्त्रण में ले लिया था। जैसे ही कोई भारतीय रियासत अंग्रेजों के अधिकार में आती, वहाँ पर अंग्रेज अधिकारी अपने ढंग की शासन पद्धति, अपने कानून, भूमि विवाद निपटाने की पद्धति एवं भू-राजस्व वसूली की अपनी व्यवस्था लागू कर देते थे। उत्तर भारत के लोगों पर इन कार्यवाहियों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा। लोगों का मानना था कि वे अब तक जिन वस्तुओं, रीति-रिवाजों एवं परम्पराओं का आदर करते आ रहे थे अथवा जिन्हें वे पवित्र मानते थे उन सबको समाप्त करके एक ऐसी व्यवस्था लागू की जा रही थी जो अत्यधिक दमनकारी थी।
(iv) ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार के अंग्रेज अधिकारियों ने ईसाई धर्म का प्रसार करने हेतु ईसाई धर्म प्रचारकों को प्रोत्साहित किया। भारत के निर्धन वर्ग के लोग ईसाई धर्म को स्वीकार कर रहे थे क्योंकि उन्हें अंग्रेजों द्वारा अनेक सुविधाएँ प्राप्त हो रही थीं। इस प्रकार नवीन सुधारक नीतियों एवं ईसाई धर्म प्रचारकों की गतिविधियों से इस सोच को बल मिल रहा था कि अंग्रेजों द्वारा भारतीयों की सभ्यता व संस्कृति को नष्ट किया जा रहा है, ऐसे अनिश्चित वातावरण में अफवाहें रातों रात फैलने लगती थीं।
प्रश्न 4.
"यह गिलास फल (Cherry) एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।" डलहौजी की इस टिप्पणी को विस्तार से समझाइए।
अथवा
1857 में ब्रिटिश सरकार की अवध पर नियन्त्रण करने की नीतियों की आलोचनात्मक समीक्षा कीजिए।
उत्तर:
अपनी हड़प नीति के लिए कुख्यात लॉर्ड डलहौजी ने 1851 ई. में अवध की रियासत के विषय में कहा था कि "यह गिलास फल एक दिन हमारे ही मुँह में आकर गिरेगा।" 1856 ई. में अर्थात् इस टिप्पणी के पाँच वर्ष बाद अवध पर कुशासन का आरोप लगाकर ब्रिटिश राज्य में मिला लिया गया तथा अवध के नवाब को वहाँ से निर्वासित कर कलकत्ता भेज दिया गया।
रियासतों पर अनैतिक रूप से कब्जे की शुरुआत 1798 ई. में आरम्भ हुई थी, जब निजाम को जबरदस्ती लॉर्ड वेलेजली ने सहायक सन्धि पर हस्ताक्षर करने को विवश कर दिया था।
इसके कुछ समय उपरान्त अर्थात् 1801 ई. में अवध पर सहायक संधि थोप दी गयी थी। इस सहायक सन्धि में शर्त यह थी कि नवाब अपनी सेना समाप्त कर देगा, रियासत में अंग्रेज रेजीडेण्टों की नियुक्ति की जायेगी तथा दरबार में एक ब्रिटिश रेजीडेण्ट रखा जायेगा। इसके अतिरिक्त नवाब ब्रिटिश रेजीडेण्ट की सलाह पर अपने कार्य करेगा। विशेषकर अन्य राज्यों के साथ सम्बन्धों में रेजीडेण्ट की स्वीकृति लेनी अनिवार्य होगी। अपनी सैनिक शक्ति से वंचित हो जाने के उपरान्त नवाब अपनी रियासत में कानून व्यवस्था बनाये रखने के लिये अंग्रेजों पर निर्भर होता जा रहा था।
नवाब का अब विद्रोही मुखियाओं तथा ताल्लुकदारों पर कोई विशेष नियन्त्रण नहीं रहा। धीरे-धीरे अवध पर कब्जा करने में अंग्रेजों की रुचि बढ़ती जा रही थी। उन्हें लगता था कि वहाँ की जमीन नील तथा कपास की कृषि के लिये सर्वोत्तम है तथा इस क्षेत्र को एक बड़े बाजार के रूप में विकसित किया जा सकता है। 1850 के दशक के आरम्भ तक अंग्रेज भारत के अधिकांश भागों पर कब्जा कर चुके थे। मराठा प्रदेश, दोआब, कर्नाटक, पंजाब, सिंध, बंगाल इत्यादि सभी अंग्रेजों के हाथों में आ चुके थे। इस समय मात्र अवध ही एक बड़ा प्रान्त था जहाँ ब्रिटिश शासन स्थापित नहीं हो सका था। अत: अंग्रेजों ने असंगत आरोप.लगाकर अवध को अपने कब्जे में ले लिया।
प्रश्न 5.
1857 ई. के जन विद्रोह को दबाने के लिए ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने क्या कार्यवाही की? विस्तारपूर्वक बताइए।
उत्तर:
जन विद्रोह के दमन हेतु ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी कार्यवाहियाँ-1857 ई. का जन विद्रोह एक बड़ा विद्रोह था जिसको दबाने हेतु अंग्रेजों द्वारा अनेक कार्यवाहियाँ की गयीं जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित थीं-
(1) नये नियम-कानूनों का निर्माण एवं उन्हें लागू करना--मई-जून 1857 ई. में पारित किए गए कानूनों के माध्यम से सम्पूर्ण उत्तर भारत में मार्शल लॉ लागू कर दिया गया। सैन्य अफसरों के अलावा आम अंग्रेजों को भी ऐसे हिन्दुस्तानियों पर मुकदमा
चलाने और उनको दण्डित करने का अधिकार प्रदान कर दिया गया, जिन पर विद्रोह में सम्मिलित होने का सन्देह था, कानून और मुकदमों की सामान्य प्रक्रिया निरस्त कर दी गई तथा यह स्पष्ट कर दिया गया था कि विद्रोह की केवल एक ही सजा हो सकती है वह है सजा-ए-मौत।
(2) दिल्ली पर नियन्त्रण हेतु दोतरफा आक्रमण ब्रिटिश सरकार द्वारा बनाये गये विशेष कानूनों एवं ब्रिटेन से मँगाई गई सैनिक टुकड़ियों से सुसज्जित ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने विद्रोह को दबाने का कार्य शुरू कर दिया। विद्रोहियों की तरह अंग्रेजों ने भी दिल्ली और पंजाब के महत्व को समझा। दिल्ली पर नियन्त्रण की मुहिम सितम्बर माह के आखिर में जाकर सम्पूर्ण हुई। उसका एक कारण था कि पूरे उत्तर भारत के विद्रोही राजधानी को बचाने के लिए दिल्ली में एकत्रित हो गये थे।
(3) गंगा के मैदान में विद्रोह का दमन-गंगा के मैदान में अंग्रेजों की बढ़त का सिलसिला बहुत धीमा था क्योंकि उन्हें प्रत्येक गाँव को जीतना था, आम ग्रामीण जनता एवं आस-पास के लोग उनके खिलाफ थे। जैसे ही अंग्रेजों ने अपनी विरोधी कार्यवाही शुरू की, वैसे ही उन्हें अहसास हो गया कि वे जिनसे जूझ रहे हैं उनके पीछे पर्याप्त जनसमर्थन उपलब्ध है।
उदाहरण के लिए; अवध में फॉरसिथ नाम के एक अंग्रेज अधिकारी का अनुमान था कि कम से कम तीन-चौथाई वयस्क पुरुष आबादी विद्रोह में शामिल थी। इस इलाके को एक लम्बी लड़ाई के बाद मार्च, 1858 ई. में जाकर अंग्रेज अपने नियन्त्रण में पुनः ले पाए।
(4) विद्रोहियों में फूट डालने का प्रयास करना-1857 ई. के जन विद्रोह को दबाने के लिए अंग्रेजी शासन ने अपनी सैनिक ताकत के साथ-साथ फूट डालो और राज करो की नीति का व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया। अंग्रेजों ने उत्तर प्रदेश के भू-स्वामियों एवं किसानों के विरोध की तीव्रता को कम करने के लिए उनकी एकता को तोड़ने के प्रयास भी किए। इसके लिए उन्होंने बड़े-बड़े जमींदारों को यह आश्वासन दिया कि उनकी जागीरें लौटा दी जाएंगी। विद्रोह का रास्ता अपनाने वाले जागीरदारों की जागीरों को जब्त कर लिया गया तथा अंग्रेजों के वफादार जागीरदारों को पुरस्कृत किया गया। अनेक जमींदार या तो अंग्रेजों से लड़ते-लड़ते मारे गये अथवा उन्होंने भागकर नेपाल में शरण ले ली, जहाँ उनकी बीमारी व भूख से मृत्यु हो गयी।
(5) दहशत का प्रदर्शन-आम जनता में दहशत फैलाने के लिए ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने विद्रोहियों को निर्मम ढंग से मौत के घाट उतारा। उन्हें तोपों के मुँह पर बाँधकर उड़ा दिया गया अथवा खुलेआम फाँसी पर लटका दिया गया। दशहत को बढ़ाने के लिए इन सजाओं की तस्वीरों को आम पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से दूर-दूर तक पहुँचाया गया।
मानचित्र सम्बन्धी प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत के रेखा मानचित्र में 1857 के जन विद्रोह के किन्हीं 5 प्रमुख केन्द्रों को दर्शाइए
अथवा
भारत के रेखा मानचित्र में मेरठ, झाँसी लखनऊ व ग्वालियर को दर्शाइए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
भारत के दिए गए राजनीतिक रेखा-मानचित्र पर तीन स्थानों को A, B और C से अंकित किया गया है, जो 1857 के विद्रोह से संबंधित हैं उनको पहचानिए और उनके सही नाम उनके निकट खींची गई रेखाओं पर लिखिए।
उत्तर:
(A) कलकत्ता,
(B) झाँसी तथा
(C) ग्वालियर।
स्रोत पर आधारित प्रश्न
स्रोत-1
असामान्य समय में सामान्य जीवन
विद्रोह के महीनों में शहरों में क्या हुआ? उथल-पुथल के उन दिनों में लोग अपनी जिंदगी कैसे जी रहे थे? सामान्य जीवन किस तरह प्रभावित हुआ? विभिन्न शहरों की रिपोर्टों से पता चलता है कि सामान्य गतिविधियाँ अस्त-व्यस्त हो गईं थीं। दिल्ली उर्दू अखबार, 14 जून 1857 की इन रिपोर्टों को पढ़िए:
यही हालात सब्जियों और साग (पालक) के भी हैं। लोग इस बात पर शिकायत कर रहे हैं कि बाजारों में कद्दू और बैंगन तक नहीं मिलते। आलू और अरबी अगर मिलती भी हैं तो बासी, सड़ी जिसे कुँजड़ों (सब्जी बेचने वाले) ने रोक कर (जमाकर) रखा हुआ था। शहर में स्थित बाग-बगीचों से कुछ माल चंद इलाकों तक पहुँच जाता है लेकिन गरीब और मध्यवर्ग वाले उन्हें देखकर बस होठों पर जीभ फिरा कर रह जाते हैं (क्योंकि वे चीजें खास लोगों के लिए ही हैं)। यहाँ एक और चीज पर भी ध्यान दिया जाना चाहिए जिससे लोगों को बड़ा नुकसान हो रहा है। मामला यह है कि पानी भरने वालों ने पानी भरना बंद कर दिया है। गरीब शुरफा (शरीफ लोग) खुद घड़ों में पानी भरकर लाते हैं और तब जाकर घर में खाना बनता है। हलालख़ोर हरामखोर हो गए हैं। कई दिनों से बहुत सारे मोहल्लों में कोई आमदनी नहीं हुई है और यही हालात बने रहे तो गंदगी, मौत और बीमारियाँ शहर की आबो-हवा ख़राब कर देंगी और शहर महामारी की गिरफ्त में आ जाएगा, यहाँ तक कि आस-पास के इलाके भी उसकी चपेट में आ जाएँगे।
प्रश्न 1.
इन दोनों रिपोर्टों तथा उस दौरान दिल्ली के हालात के बारे में इस अध्याय में दिये विवरणों को पढ़ें। याद रखें कि अखबारों में छपी खबरें अक्सर पत्रकारों के पूर्वाग्रह अथवा सोच से प्रभावित होती हैं। इस आधार पर बताएँ कि दिल्ली उर्दू अखबार लोगों की गतिविधियों को किस नजर से देखता था ?
उत्तर:
दोनों रिपोर्टों के अध्ययन से हमें यह जानकारी मिलती है कि उस समय दिल्ली शहर का सामान्य जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था। लोगों को अपनी दैनिक आवश्यकता की वस्तुएँ भी बड़ी कठिनाई से प्राप्त हो रही थीं। निर्धन एवं मध्यम वर्ग के लोगों के लिए यह समय बहुत ही कष्टपूर्ण था। उन्हें अपनी आवश्यकता की वस्तुएँ भी प्राप्त नहीं हो पा रही थीं क्योंकि उन वस्तुओं को ऊँची कीमत पर धनवान लोग खरीद रहे थे। दिल्ली उर्दू अखबार ने 1857 की रिपोर्ट में दिल्ली की तात्कालिक स्थिति का बिल्कुल सटीक वर्णन किया है जिसमें कहीं भी पत्रकार की पूर्वाग्रहता दिखाई नहीं देती है।
स्रोत-2
सिस्टन और तहसीलदार
विद्रोह और सैनिक अवज्ञा के सन्दर्भ में सीतापुर के देसी ईसाई पुलिस इंस्पेक्टर फ्रांस्वाँ सिस्टन का अनुभव हमें बहुत कुछ बताता है। वह मजिस्ट्रेट के पास शिष्टाचारवश मिलने सहारनपुर गया हुआ था। सिस्टन हिन्दुस्तानी कपड़े पहने था और आलथी-पालथी मारकर बैठा था। इसी बीच बिजनौर का एक मुस्लिम तहसीलदार कमरे में दाखिल हुआ। जब उसे पता चला कि सिस्टन अवध में तैनात है तो उसने पूछा, "क्या खबर है अवध की ? काम कैसा चल रहा है ?" सिस्टन ने कहा, "अगर हमें अवध में काम मिलता है तो जनाब-ए-आली को भी पता चल जाएगा।" इस पर तहसीलदार ने कहा, "भरोसा रखो, इस बार हम कामयाब होंगे। मामला काबिल हाथों में है।" बाद में पता चला कि तहसीलदार बिजनौर के विद्रोहियों का सबसे बड़ा नेता था।
प्रश्न 1.
विद्रोही अपनी योजनाओं को किस तरह एक-दूसरे तक पहुँचाते थे, इस बारे में इस बातचीत से क्या पता चलता है ?
उत्तर:
विद्रोही अपनी योजनाओं को आपसी संवाद द्वारा एक-दूसरे तक पहुँचाते थे। यह हमें सिस्टन एवं तहसीलदार की बातचीत से पता चलता है। -
प्रश्न 2.
तहसीलदार ने सिस्टन को सम्भावित विद्रोही क्यों मान लिया था ?
उत्तर:
सिस्टन भारतीय कपड़े पहने हुए था तथा भारतीयों की तरह पालथी मारकर बैठा हुआ था इसलिए तहसीलदार ने सिस्टन को सम्भावित विद्रोही मान लिया था।
प्रश्न 3.
सहारनपुर में सिस्टन की भेंट किससे ई एवं दोनों के मध्य क्या बातचीत हुई ?
उत्तर:
सहारनपुर में सिस्टन की भेंट बिजनौर के एक मुस्लिम तहसीलदार से हुई। तहसीलदार ने उसके हिन्दुस्तानी पहनावे एवं बैठने के ढंग को देखकर उसे भी क्रान्तिकारी समझा एवं उससे अवध के बारे में बातचीत की। जो निम्न प्रकार है
सिस्टन-"अगर हमें अवध में काम मिलता है तो जनाब-ए-आली को भी पता चल जाएगा।" तहसीलदार "भरोसा रखो, इस बार हम कामयाब होंगे। मामला काबिल हाथों में है।"
स्रोत-3
नवाब साहब जा चुके हैं
एक और गीत में ऐसे शासक की दुद्रशा पर विलाप किया जा रहा है जिसे मजबूरन अपनी मातृभूमि छोड़नी पड़ी :
अभिजात और किसान, सब रो रहे थे।
और सारा आलम रोता-चिल्लाता था।
हाय! जान-ए-आलम देस से विदा लेकर परदेस गये हैं।
प्रश्न 1.
उपरोक्त स्रोत में किसके लिए विलाप किया जा रहा है ?
उत्तर:
उपरोक्त स्रोत में अवध के नवाब वाजिद अली शाह को गद्दी से हटाने पर वहाँ की जनता द्वारा विलाप किया जा रहा है।
प्रश्न 2.
अवध (लखनऊ) के नवाब के लिए जनता द्वारा क्या विलाप किया जा रहा है ?
उत्तर:
लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह के लिए जनता द्वारा विलाप किया जा रहा है कि "हाय! जान-ए-आलम देश से विदा लेकर परदेश चले गए हैं।"
प्रश्न 3.
इस पूरे भाग को पढ़ें और चर्चा करें कि लोग वाजिद अली शाह की विदाई पर इतने दुखी क्यों थे ? ।
उत्तर:
वाजिद अली शाह अवध (लखनऊ) के लोकप्रिय नवाब थे जिनके होने से प्रान्त में शान्ति एवं खुशहाली थी। अनेक कलाकार एवं सैनिक, जो उन पर आश्रित थे, नवाब की विदाई से बेरोजगार हो गये और उन लोगों की रोजी-रोटी चली गयी। इन्हीं कारणों से अवध की जनता उनकी विदाई पर इतनी दुखी थी।
स्रोत-4
ताल्लुकदारों की सोच
ताल्लुकदारों के रवैये को रायबरेली के पास स्थित कालाकंकर के राजा हनवन्त सिंह ने सबसे अच्छी तरह व्यक्त किया था। विद्रोह के दौरान हनवन्त सिंह ने एक अंग्रेज अफसर को पनाह दी और उसे सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया था। उस अफसर से आखिरी मुलाकात में हनवन्त सिंह ने कहा कि साहिब, आपके मुल्क के लोग हमारे देश में आए और उन्होंने हमारे राजाओं को खदेड़ दिया। आप अफसरों को भेज कर जिले-जिले में जागीरों के मालिकाने की जाँच करवाते हैं। एक ही झटके में आपने मेरे पुरखों की जमीन मुझसे छीन ली। मैं चुप रहा। फिर अचानक आपका बुरा वक्त शुरू हो गया। यहाँ के लोग आपके खिलाफ उठ खड़े हुए। तब आप मेरे पास आए, जिसे आपने बर्बाद किया था। मैंने आप की जान बचाई है। लेकिन अब मैं अपने सिपाहियों को लेकर लखनऊ जा रहा हूँ ताकि आपको देश से खदेड़ सकूँ।
प्रश्न 1.
हनवन्त सिंह कौन था ?
उत्तर:
हनवन्त सिंह रायबरेली के समीप स्थित कालाकंकर का राजा था।
प्रश्न 2.
1857 ई. के विद्रोह के दौरान हनवन्त सिंह ने किसको शरण दी ?
उत्तर:
1857 ई. के विद्रोह के दौरान हनवन्त सिंह ने एक अंग्रेज अधिकारी को शरण दी तथा उसे सुरक्षित स्थान तक पहुँचाया।
प्रश्न 3.
राजा हनवन्त सिंह ने अंग्रेज अधिकारी से क्या कहा था?
उत्तर:
राजा हनवन्त सिंह ने अंग्रेज अधिकारी से कहा था कि "आपने हमें बर्बाद कर दिया, लेकिन आप पर संकट आने पर मैंने आपकी जान बचाई है लेकिन अब मैं अपने सिपाहियों को लेकर लखनऊ जा रहा हूँ ताकि आप लोगों को देश से बाहर निकाल सकूँ।"
स्रोत-5
आजमगढ़ घोषणा, 25 अगस्त 1857
विद्रोही क्या चाहते थे, इसके बारे में हमारी जानकारी का यह एक मुख्य स्रोत है:
यह सर्वविदित है कि इस युग में हिंदुस्तान के लोग, हिंदू और मुस्लिम, दोनों ही अधर्मी और षड्यंत्रकारी अंग्रेजों की निरकुंशता व उत्पीड़न से त्रस्त हैं। इसलिए देश के सभी धनवान लोगों को, खासतौर से जिनका मुस्लिम शाही परिवारों से ताल्लुक रहा है, और जिन्हें लोगों का धर्मरक्षक और स्वामी माना जाता है, अपने जीवन और संपत्ति को जनता की कुशलक्षेम के लिए होम कर देना चाहिए अपने धर्म की रक्षा के लिए अरसा पहले अपने घर-बार छोड़ चुके और भारत से अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने के लिए पूरा जोर लगा रहे बहुत सारे हिंदू और मुसलमान मुखिया मेरे पास आए और उन्होंने इस भारतीय धर्म युद्ध में हिस्सा लिया। मुझे पूरी उम्मीद है कि जल्दी ही मुझे पश्चिम से भी मदद मिलेगी।
इसलिए जनता की जानकारी के लिए कई भागों का यह इश्तहार जारी किया जा रहा है। यह सबका दायित्व है कि इसको गौर से पढ़ें और इसका पालन करें। इस साझा उद्देश्य में जो लोग अपना योगदान देना चाहते हैं, लेकिन जिनके पास अपनी सेवाएं देने के साधन नहीं हैं, उन्हें मेरी तरफ से दैनिक भोजन दिया जाएगा और सबको मालूम हो कि हिंदू और मुस्लिम, दोनों तरह के प्राचीन ग्रंथों में, चमत्कार करने वालों के लेखन और भविष्यवक्ताओं में, पंडितों की गणनाओं में सबमें यह सहमति दिखायी देती कि अब भारत में या कहीं भी अंग्रेजों के पैर टिक नहीं पाएंगे। इसलिए यह सबका फ़र्ज है कि वे अंग्रेजों का वर्चस्व बने रहने की सारी उम्मीद छोड़ दें, मेरा साथ दें और साझे हित में काम करते हुए अपने व्यक्तिगत परिश्रम से बादशाही सम्मान के हकदार बनें और अपने-अपने लक्ष्य प्राप्त करें। अन्यथा, अगर यह स्वर्णिम अवसर हमारे हाथ से चला गया तो हमें अपनी इस मूर्खता पर पश्चाताप करना पड़ेगा
भाग-1
जमींदारों के बारे में :
जाहिर है कि जमींदारी बंदोबस्त तय करने में अंग्रेजी सरकार ने बेहिसाब जमा (भूराजस्व) थोप दिया है और कई जमींदारों को बेइज्जत व बरबाद किया है। बकाया लगान की वजह से उनकी जागीरें नीलाम कर दी गई हैं। हद तो ये है कि एक आम रैयत, किसी जनाना नौकर या किसी गुलाम की ओर से दाखिल किए गए मुकदमे पर भी बाइज्जत जमींदारों को अदालत में घसीटा जा रहा है, गिरफ्तार किया जा रहा है, कैदखाने में डाला जा रहा है और बेइज्जत किया जा रहा है। जमींदारियों के बारे में दायर किए गए मुकदमों में भारी खर्चे की स्टाम्प और दीवानी अदालतों के गैर-जरूरी खर्चों का मकसद प्रतिवादियों को दरिद्र करना रहा है। जमींदारों के खजाने को स्कूलों, अस्पतालों, सड़कों आदि के लिए चन्दे के नाम पर हर साल खाली किया जा रहा है। इस तरह की वसूलियों के लिए बादशाही सरकार में कोई जगह नहीं होगी : जमा हलका रहेगा, जमींदारों के हितों की रक्षा की जाएगी और हर जमींदार को अपनी जमींदारी में अपने ढंग से शासन करने का अधिकार होगा
भाग- 2
व्यापारियों के बारें में :
इस अधर्मी और षड्यंत्रकारी ब्रिटिश सरकार ने नील, कपड़े, जहाज व्यवसाय जैसी तमाम बेहतरीन और बहुमूल्य चीजों के व्यापार पर एकाधिकार स्थापित कर लिया है। अब छोटी-मोटी चीजों का व्यापार ही लोगों के लिए रह गया है...। डाक खर्चे, नाका वसूली और स्कूलों के लिए चन्दे के नाम पर व्यापारियों के मुनाफे में से सेंध मारी जा रही है। इन तमाम रियायतों के बावजूद व्यापारियों को दो कौड़ी के आदमी की शिकायत पर गिरफ्तार किया जा सकता है, बेइज्जत किया जा सकता है। जब बादशाही सरकार बनेगी तो इन सारे फ़रेबी तौर-तरीकों को खत्म कर दिया जाएगा और जमीन व पानी, दोनों रास्तों से होने वाला हर चीज का व्यापार भारत के देसी व्यापारियों के लिए खोल दिया जाएगा इसलिए यह हर व्यापारी की जिम्मेदारी है कि वह इस जंग में हिस्सा ले और बादशाही सरकार की हर इनसानी और माली मदद करे
भाग- 3
सरकारी कर्मचारियों के बारे में :
अब यह राज की बात नहीं है कि अंग्रेज सरकार के तहत प्रशासनिक और सैनिक सेवाओं में भर्ती होने वाले भारतीय लोगों को इज्जत नहीं मिलती, उनकी तनख्वाह कम होती है और उनके पास कोई ताकत नहीं होती। दोनों महकमों में प्रतिष्ठा और पैसे वाले सारे पद सिर्फ अंग्रेजों को मिलते हैं। इसलिए ब्रिटिश सेवा में काम करने वाले तमाम भारतीयों को अपने मजहब और हित पर ध्यान देना चाहिए और अंग्रेजों के प्रति अपनी वफ़ादारी छोड़कर बादशाही सरकार का साथ देना चाहिए। उन्हें फिलहाल 200 और 300 रुपये प्रतिमाह की तनख्वाह मिलेगी और भविष्य में ऊँचे ओहदों की उम्मीद रखें
भाग- 4
कारीगरों के बारे में:
इसमें कोई शक नहीं कि इंग्लैंड में बनी चीजों को ला-लाकर यूरोपियों ने हमारे बुनकरों, सूती वस्त्र बनाने वालों, बढ़इयों, लोहारों और मोचियों आदि को बेरोजगार कर दिया है, उनके काम-धंधों पर इस तरह क़ब्जा जमा लिया है कि देसी कारीगरों की हर श्रेणी भिखमंगों की हालत में पहुँच गई है। बादशाही सरकार में देसी कारीगरों को राजाओं और अमीरों की सेवा में तैनात किया जाएगा। इससे निःसंदेह उनकी उन्नति होगी। इसलिए इन करीगरों को अंग्रेजों की सेवा छोड़ देनी चाहिए।
भाग- 5
पंडितों फ़कीरों और अन्य ज्ञानी व्यक्तियों के बारे में :
पंडित और फ़कीर क्रमशः हिंदू और मुस्लिम धर्मों के अभिभावक हैं। यूरोपीय दोनों धर्मों के शत्रु हैं और क्योंकि फिलहाल धर्म के कारण ही अंग्रेजों के खिलाफ एक युद्ध छिड़ा हुआ है इसलिए पंडितों और फ़कीरों का फ़र्ज है कि वे खुद को मेरे सामने पेश करें और इस पवित्र युद्ध में अपना हिस्सा निभाएं।
प्रश्न 3.
इस घोषणा में ब्रिटिश शासन के खिलाफ कौन-से मुद्दे उठाये गये हैं? प्रत्येक तबके के बारे में दिए गए भाग को ध्यान से पढ़िए। घोषणा की भाषा पर ध्यान दीजिए और देखिए कि उसमें किन भावनाओं पर जोर दिया जा रहा है?
उत्तर:
इस घोषणा में अग्रलिखित मुद्दे उठाये गये हैं
सभी घोषणाओं में सभी वर्गों को यह समझाया जा रहा है कि ब्रिटिश शासन में उनका मात्र शोषण हो रहा है तथा उनका यहाँ कोई भविष्य नहीं है। यदि उन्हें अपना मान-सम्मान तथा उज्ज्वल भविष्य चाहिये तो विद्रोहियों का साथ दें तथा बादशाह की ताकत और बढ़ायें।
स्रोत-6
सिपाही क्या सोचते थे
विद्रोही सिपाहियों की एक अर्जी जो बच गई :
एक सदी पहले अंग्रेज हिन्दुस्तान आए और धीरे-धीरे यहाँ फौजी टुकड़ियाँ बनाने लगे। इसके बाद वे हर राज्य के मालिक बन बैठे। हमारे पुरखों ने सदा उनकी सेवा की है और हम भी उनकी नौकरी में आए.। ईश्वर की कृपा सें और हमारी सहायता से अंग्रेजों ने जो चाहा वो इलाका जीत लिया। उनके लिए हमारे जैसे हजारों हिन्दुस्तानी जवानों को अपनी कुर्बानी देनी पड़ी लेकिन न हमने कभी पैर पीछे खींचे और न कोई बहाना बनाया और न ही कभी बगावत के रास्ते पर चले। लेकिन सन् 1857 में अंग्रेजों ने ये हुक्म जारी कर दिया कि अब सिपाहियों को इंग्लैण्ड से नए कारतूस और बन्दूकें दी जाएँगी।
नए कारतूसों में गाय और सुअर की चर्बी मिली हुई है और गेहूँ के आटे में हड्डियों का चूरा मिलाकर खिलाया जा रहा है। ये चीजें पैदल-सेना, घुड़सवारों और गोलअंदाज फौज की हर रेजीमेंट में पहुँचा दी गई हैं उन्होंने ये कारतूस थर्ड लाइट केवेलरी के सवारों (घुड़सवार सैनिक) को दिए और उन्हें दाँतों से खींचने के लिए कहा। सिपाहियों ने इस हुक्म का विरोध किया और कहा कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि अगर उन्होंने ऐसा किया तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा। इस पर अंग्रेज अफसरों ने तीन रेजीमेंटों के जवानों की परेड करवा दी। 1400 अंग्रेज सिपाही, यूरोपीय सैनिकों की दूसरी बटालियनें और घुड़सवार, गोलअंदाज फौज को तैयार कर भारतीय सैनिकों को घेर लिया गया। हर पैदल रेजीमेंट के सामने छरों से भरी छह-छह तोपें तैनात कर दी गईं और 84 नए सिपाहियों को गिरफ्तार करके, बेड़ियाँ डालकर, जेल में बन्द कर दिया गया।
छावनी के सवारों को इसलिए जेल में डाला गया ताकि हम डर कर नए कारतूसों को दाँतों से खींचने लगे। इसी कारण हम और हमारे सारे सहोदर इकट्ठा होकर अपनी आस्था की रक्षा के लिए अंग्रेजों से लड़े। हमें दो साल तक युद्ध जारी रखने पर मजबूर किया गया। धर्म व आस्था के सवाल पर हमारे साथ खड़े राजा और मुखिया अभी भी हमारे साथ हैं और उन्होंने भी सारी मुसीबतें झेली हैं। हम दो साल तक इसलिए लड़े ताकि हमारा अकांयद (आस्था) और मजहब दूषित न हों। अगर एक हिन्दू या मुसलमान का धर्म ही नष्ट हो गया तो दुनिया में बचेगा क्या ?
प्रश्न 1.
इस अर्जी में सैनिक विद्रोह के जो कारण बताए गए हैं उनकी तुलना ताल्लुकदार द्वारा बताए गए कारणों (स्रोत-4) के साथ कीजिए।
उत्तर:
विद्रोही सिपाही एवं ताल्लुकदार द्वारा बताये गये सैनिक विद्रोह के कारणों की तुलना
विद्रोही सिपाही (सोत-6) |
ताल्लुकदार (सोत-4) |
1. भारतीय सिपाहियों के पूर्वजों द्वारा देश में ब्रिटिश शासन की स्थापना में अंग्रेजों की सहायता करना। |
1. ताल्लुकदारों द्वारा अंग्रेजों की रक्षा की गयी। |
2. नए चर्बी लगे कारतूसों के कारण धर्म की रक्षा हेतु युद्ध करना। |
2. ताल्लुकदारों की जमीनें छीन लेने एवं उनकी सेवाओं को भंग करने के कारण उन्होंने अपने अस्तित्व की रक्षा हेतु युद्ध किया। |
3. अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने का प्रयास करना। |
3. ताल्लुकदारों ने अंग्रेजों को देश से बाहर निकालने के प्रयासों में अपना योगदान दिया। |
प्रश्न 2.
अंग्रेजों के नए कारतूसों के प्रयोग के लिए जारी हुक्म का सिपाहियों ने किस तरह विरोध किया?
उत्तर:
अंग्रेजों ने सिपाहियों को गाय व सुअर की चर्बी से बने कारतूस चलाने के लिए दिए, जिन्हें मुँह से काटकर छीलना पड़ता था। अंग्रेजों ने ये कारतूस थर्ड लाइट केवेलरी के सवारों (घुड़सवार सैनिक) को दिए तथा उन्हें दाँतों से खींचने के लिए कहा। सिपाहियों ने इस आदेश का प्रबल विरोध किया तथा कहा कि वे ऐसा कभी नहीं करेंगे क्योंकि यदि उन्होंने ऐसा किया तो उनका धर्म भ्रष्ट हो जाएगा।
प्रश्न 3.
विद्रोही सिपाहियों को अंग्रेजों ने किस तरह आज्ञा मानने के लिए विवश करने का प्रयास किया ?
उत्तर:
जब भारतीय सिपाहियों ने नए कारतूस एवं राइफल का प्रयोग करने से मना कर दिया तो अंग्रेज अधिकारियों ने तीन रेजीमेंटों के जवानों को सजा के रूप में परेड करवा दी। 1400 अंग्रेज सिपाहियों, यूरोपीय सैनिकों की दूसरी बटालियनों एवं घुड़सवार गोलअंदाज फौज को तैयार कर भारतीय सैनिकों को घेर लिया गया। प्रत्येक पैदल रेजीमेंट के समक्ष छरों से भरी छह-छह तोपें तैनात कर दी गईं एवं 84 नए सिपाहियों को गिरफ्तार करके बेड़ियाँ डालकर जेल में बन्द कर दिया गया। छावनी के सवारों को इसलिए जेलों में डाला गया ताकि फौजी डरकर नए कारतूसों को दाँतों से खींचने लग जाएँ।
स्रोत-7
विद्रोही ग्रामीण
ग्रामीण अवध क्षेत्र से रिपोर्ट भेजने वाले एक अफसर ने लिखा-
अवध के लोग उत्तर से जोड़ने वाली संचार लाइन पर जोर बना रहे हैं...। अवध के लोग गाँव वाले हैं । ये गाँव वाले यूरोपियों की पकड़ से बिल्कुल बाहर हैं। पल में बिखर जाते हैं, पल में फिर जुट जाते हैं। शासकीय अधिकारियों का कहना है कि इन गाँव वालों की संख्या बहुत बड़ी है और उनके पास बाकायदा बन्दूकें हैं।
प्रश्न 1.
इस विवरण के अनुसार गाँव वालों से निपटने में अंग्रेजों को किन मुश्किलों का सामना करना पड़ा
अथवा
इन गाँव वालों से व्यवहार करने में अंग्रेजों के सामने आने वाली समस्याओं की परख कीजिए।
उत्तर:
इस विवरण के अनुसार गाँव वालों से निपटने में अंग्रेजों को निम्नलिखित मुश्किलों का सामना करना पड़ा
प्रश्न 2.
अंग्रेजों के प्रति अवध के लोग विरोधी क्यों थे? कारण की परख कीजिए।
उत्तर:
अवध के अधिग्रहण के पश्चात् अंग्रेजों द्वारा ताल्लुकदारों की जमीनें छीन ली गईं, उनकी सेनाएँ भंग कर दी गयीं एवं उनके किले नष्ट कर दिए गए। उनको अनेक तरह से लाचार बना दिया गया जिस कारण ताल्लुकदार ब्रिटिश शासन के विरोधी हो गये।
प्रश्न 3.
अंग्रेजों ने विद्रोहियों का दमन किस प्रकार किया? .
उत्तर:
अंग्रेजों ने विद्रोहियों का दमन करने के लिए कई कानून पारित किए तथा उत्तर भारत में 'मार्शल लॉ' लागू किया। कानून और मुकदमों की सामान्य प्रक्रिया को बन्द कर दिया तथा विद्रोह के लिए एक ही सजा 'सजा-ए-मौत' निर्धारित कर दी। उन्होंने विद्रोही जागीरदारों एवं ताल्लुकदारों की जागीरों को जब्त कर लिया।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण
प्रश्न 1.
लखनऊ में 1857 ई. का विद्रोह किस तिथि को शुरू हुआ
(क) 30 मई, 1857
(ख) 4 जून, 1857
(ग) 15 मई, 1857
(घ) 15 जून, 1857
उत्तर:
(ख) 4 जून, 1857
प्रश्न 2.
निम्न में से कौन 1857 ई. के विद्रोह का एक महत्वपूर्ण केन्द्र नहीं था ?
(क) दिल्ली
(ख) आगरा
(ग) कानपुर
(घ) झाँसी।
उत्तर:
(ख) आगरा
प्रश्न 3.
1857 ई. में लखनऊ विद्रोह का नेतृत्व किसने किया ?
(क) तात्या टोपे
(ख) मौलवी अहमदुल्लाह शाह
(ग) बिरजिस कद्र
(घ) बेगम हजरत महल।
उत्तर:
(घ) बेगम हजरत महल।
प्रश्न 4.
1857 ई. के विद्रोह को निम्नलिखित में से किसने प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम कहा था ?
(क) जवाहरलाल नेहरू
(ख) विनायक दामोदर सावरकर
(ग) अरविन्द घोष
(घ) सुरेन्द्रनाथ बनर्जी।
उत्तर:
(ख) विनायक दामोदर सावरकर
प्रश्न 5.
"यह न तो प्रथम था, न ही राष्ट्रीय और न ही स्वतन्त्रता के लिए युद्ध" 1857 ई. के विद्रोह के सम्बन्ध में उक्त कथन किसका है ?
(क) बी. डी. सावरकर
(ख) एस. एस. सेन
(ग) आर. सी. मजूमदार
(घ) बेंजामिन डिजरैली।
उत्तर:
(ग) आर. सी. मजूमदार
प्रश्न 6.
निम्न में से कौन 1857 ई. के विद्रोह से सम्बन्धित नहीं था ?
(क) अशफाक उल्ला खाँ
(ख) कुँवर सिंह
(ग) मौलवी अहमद उल्ला
(घ) झाँसी की रानी।
उत्तर:
(क) अशफाक उल्ला खाँ
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से किसने बरेली में 1857 ई. के विद्रोह का नेतृत्व किया ?
(क) खान बहादुर खाँ
(ख) मौलवी अहमद उल्ला
(ग) बख्त खाँ
(घ) अजीमउल्लाह खान।
उत्तर:
(क) खान बहादुर खाँ
प्रश्न 8.
भारतीय स्वतन्त्रता संघर्ष, 1857 पुस्तक किसने लिखी थी ?
(क) बी. डी. सावरकर
(ख) आर. सी. मजूमदार
(ग) एस. एन. सेन
(घ) एस. बी. चौधरी।
उत्तर:
(क) बी. डी. सावरकर
प्रश्न 9.
सन् 1857 के विद्रोह के सन्दर्भ में किसने निम्नलिखित विचार व्यक्त किया, "मेरठ का विद्रोह गरमी की आँधी की भाँति अचानक एवं अल्पकालिक था" ?
(क) आर. सी. मजूमदार
(ख) एस. एन. सेन ।
(ग) बी. डी. सावरकर
(घ) एस. बी. चौधरी।
उत्तर:
(ख) एस. एन. सेन ।
प्रश्न 10.
भारत के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम (1857) का करनपुर में नेतृत्व किसने किया था?
(क) तात्या टोपे
(ख) लक्ष्मीबाई
(ग) नाना साहिब
(घ) कुँवर सिंह।
उत्तर:
(ग) नाना साहिब
प्रश्न 11.
सती प्रथा की रोकथाम के लिए, सर्वप्रथम किस वर्ष 'बंगाल सती विनियमन' के तहत इसे प्रतिबन्धित किया गया
(क) 1829 में
(ख) 1830 में
(ग) 1831 में
(घ) 1832 में।
उत्तर:
(क) 1829 में
प्रश्न 12.
मंगल पांडेय कहाँ के विप्लव से जुड़े हैं?
(क) बैरकपुर
(ख) मेरठ
(ग) दिल्ली
(घ) अम्बाला।
उत्तर:
(क) बैरकपुर
प्रश्न 13.
1857 की क्रान्ति सर्वप्रथम कहाँ से प्रारम्भ हुई थी?
(क) लखनऊ
(ख) झाँसी
(ग) मेरठ
(घ). कानपुर।
उत्तर:
(ग) मेरठ
प्रश्न 14.
1857 के संग्राम के निम्नलिखित केन्द्रों में से सबसे पहले अंग्रेजों ने किसे पुनः अधिकृत किया ?
(क) झाँसी
(ख) मेरठ
(ग) दिल्ली
(घ) कानपुर।
उत्तर:
(ग) दिल्ली
प्रश्न 15.
1857 के विद्रोह के समय भारत का गवर्नर जनरल कौन था? (सुपरवाइजर महिला अधिकारिता 2018)
(क) लॉर्ड डलहौजी
(ख) लॉर्ड मिण्टो
(ग) लॉर्ड कैनिंग
(घ) लॉर्ड बैंटिंक।
उत्तर:
(ग) लॉर्ड कैनिंग
प्रश्न 16.
राजाओं के पुत्र न होने की स्थिति में भारतीय राज्यों के अधिग्रहण की ब्रिटिश नीति कहलाती थी
(क) मुनरो सिद्धान्त
(ख) हड़प का सिद्धान्त
(ग) बल का सिद्धान्त
(घ) त्याग का सिद्धान्त।
उत्तर:
(ख) हड़प का सिद्धान्त