These comprehensive RBSE Class 12 Economics Notes Chapter 2 राष्ट्रीय आय का लेखांकन will give a brief overview of all the concepts.
→ समष्टि अर्थशास्त्र की कुछ मूलभूत संकल्पनाएँ-किसी देश की आर्थिक सम्पन्नता अथवा उसका कल्याण केवल संसाधनों की उपलब्धता पर निर्भर नहीं करता है बल्कि यह इस बात पर निर्भर करता है कि उत्पादन के प्रवाह का सृजन करने तथा अन्ततः आय का सृजन करने के लिए उनका प्रयोग किस प्रकार हो रहा है। एक अर्थव्यवस्था में एक उद्यमी द्वारा उत्पादन के अन्य साधनों की सहायता से वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन किया जाता है।
→ अन्तिम वस्तु: वस्तु की ऐसी मद जिसका अन्तिम उपयोग उपभोक्ताओं के द्वारा होता है तथा जिसे पुनः उत्पादन प्रक्रम से गुजरना नहीं पड़ता उसे अन्तिम वस्तु कहते हैं। अन्तिम वस्तुओं को दो भागों में बाँटा जा सकता है-उपभोग वस्तुएँ और पूँजीगत वस्तुएँ। ऐसी वस्तुएँ एवं सेवाएँ जो अन्तिम उपभोक्ता द्वारा उपभोग हेतु क्रय की जाती हैं उपभोक्ता वस्तुएँ कहलाती हैं । वे टिकाऊ वस्तुएँ जिनका उत्पादन के प्रक्रम में उपयोग किया जाता है, पूँजीगत वस्तुएँ कहलाती हैं। इन वस्तुओं को टिकाऊ उपभोक्ता वस्तुएँ भी कहते हैं। सभी अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के समान स्तर के परिमाणात्मक माप हेतु पैमाने के लिए मुद्रा का प्रयोग किया जाता है।
→ मध्यवर्ती वस्तुएँ: मध्यवर्ती वस्तुएँ वे वस्तुएँ होती हैं जिनका उपयोग अन्य उत्पादक आगत सामग्री के रूप में किया जाता है अर्थात् ये अन्य वस्तुओं के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में प्रयोग की जाती हैं।
→ स्टॉक एवं प्रवाह: स्टॉक किसी आर्थिक चर की वह मात्रा है जो समय के किसी निश्चित बिन्दु पर मापी जाती है, जैसे - 31 मार्च को गोदाम में गेहूँ का स्टॉक। प्रवाह को एक समयावधि के लिए परिभाषित किया जाता है अर्थात् प्रवाह उस चर को कहते हैं, जिसका सम्बन्ध समय की एक अवधि से होता है।
→ मूल्यह्रास: पूँजीगत वस्तुओं की नियमित टूट-फूट का समायोजन करने के क्रम में सकल निवेश के मूल्य में किए गए लोप को मूल्यह्रास कहते हैं।
→ निवल निवेश: अर्थव्यवस्था में पूँजीगत वस्तुओं में नए योग का माप निवल निवेश अथवा नई पूँजी रचना के द्वारा होता है जिसे निम्न सूत्र से व्यक्त कर सकते हैं
निवल निवेश = सकल निवेश - मूल्यह्रास
→ आय का वर्तुल प्रभाव और राष्ट्रीय आय गणना की विधि: उत्पादन के चार प्रमुख कारक होते हैं-भूमि, श्रम, पूँजी तथा उद्यमी तथा इन्हें उत्पादन प्रक्रिया से प्रतिफलस्वरूप क्रमशः लगान, मजदूरी, ब्याज एवं लाभ की प्राप्ति होती है। एक अर्थव्यवस्था में चार प्रमुख क्षेत्रक होते हैं-फर्म, सरकार, पारिवारिक क्षेत्रक एवं बाह्य क्षेत्रक। इन चारों क्षेत्रकों में आपस में मुद्रा का अथवा आय का आदान-प्रदान आय का वर्तुल प्रवाह कहलाता है। उदाहरण के लिए यदि अर्थव्यवस्था में दो ही क्षेत्र-फर्म एवं परिवार हैं तो फर्म उत्पादन के लिए पारिवारिक क्षेत्र से कारकों की सेवाएँ लेकर उन्हें पारिश्रमिक का भुगतान करेगी तथा पारिवारिक क्षेत्र उस आय की फर्म को वस्तुओं एवं सेवाओं के उपभोग के बदले में पुनः प्रदान करेगी। यह क्रम चलता रहता है, यह आय का वर्तुल प्रवाह है।
किसी देश में एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग को राष्ट्रीय आय कहा जाता है। राष्ट्रीय आय की गणना की तीन प्रमुख विधियाँ हैं
(1) उत्पाद अथवा मूल्यवर्धित विधि: अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं के मौद्रिक मूल्य के योग द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है। राष्ट्रीय आय मापने के लिए उत्पादन विधि में दो मार्ग अपनाए जाते हैं
पहले मार्ग में फर्म द्वारा उत्पादित वस्तुओं एवं सेवाओं का मौद्रिक मूल्य लिया जाता है, जबकि दूसरे मार्ग में फर्म द्वारा उत्पादन प्रक्रिया में की गई मूल्यवर्धित ली जाती है। मूल्यवर्धित से अभिप्राय उत्पादन की प्रत्येक अवस्था में प्रत्येक उद्यम द्वारा वस्तु के मूल्य में की जाने वाली वृद्धि से है। मूल्यवर्धित दो प्रकार की होती है-सकल मूल्यवर्धित एवं निवल मूल्यवर्धित। सकल मूल्यवर्धित में मूल्यह्रास सम्मिलित होता है जबकि निवल मूल्यवर्धित में मूल्यह्रास शामिल नहीं होता है। संजीव पास बुक्स अर्थशास्त्र में अबिक्रित निर्मित वस्तुओं अथवा अर्द्धनिर्मित वस्तुओं अथवा कच्चे मालों का स्टॉक जो कोई फर्म एक वर्ष से अगले वर्ष तक रखता है उसे माल सूची अथवा रहतिया कहते हैं। यदि वर्ष के आरम्भ में इसका मूल्य कम हो और वर्ष के अन्त में इसका मूल्य उच्च हो तब माल सूची में वृद्धि होती है। यदि माल सूची का मूल्य वर्ष के आरम्भ की तुलना में वर्ष के अन्त में कम हो तो माल सूची में ह्रास होता है।
एक वर्ष के दौरान किसी फर्म की माल सूची में परिवर्तन = वर्ष के दौरान फर्म का उत्पादन - वर्ष के दौरान फर्म की बिक्री होता है।
माल सूची में परिवर्तन नियोजित अथवा अनियोजित हो सकता है।
यदि हम एक वर्ष में अर्थव्यवस्था की सभी फर्मों के सकल मूल्यवर्धित का योग निकालें, तो हमें वर्ष में अर्थव्यवस्था में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के समस्त परिमाण का मूल्य प्राप्त होता है, यह सकल घरेलू उत्पाद कहलाता है। अर्थव्यवस्था में फर्मों के सकल मूल्यवर्धित के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहा जाता है।
अर्थात् GDP = \(\sum_{i=1}^{N}\) GVAi
(2) व्यय विधि: इस विधि में प्रत्येक फर्म द्वारा प्राप्त अन्तिम व्ययों का योग प्राप्त किया जाता है। व्यय विधि में निम्न सूत्र द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना की जा सकती है
GDP = \(\sum_{i=1}^{N}\)RVi = C + I + G + X - M
यहाँ- GDP = सकल घरेलू उत्पाद है।
\(\sum_{i=1}^{N}\)RVi = एक वर्ष में अन्तिम उपयोग, निवेश, सरकारी व्यय तथा निर्यात सम्बन्धी व्ययों का कुल योग है।
C = अन्तिम उपयोग व्यय
I = अन्तिम निवेश व्यय
G = सरकार द्वारा अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं पर किया गया व्यय।
X = निर्यात
M = आयात
(3) आय विधि: इस विधि के अन्तर्गत राष्ट्रीय आय, अर्थव्यवस्था में उत्पादन के साधनों को मिलने वाले प्रतिफलों के योग के बराबर होती है। अर्थव्यवस्था में उत्पादन के चार प्रमुख कारक हैं-श्रम; भूमि, पूँजी व उद्यमी तथा इन्हें प्रतिफल स्वरूप क्रमशः मजदूरी, लगान, ब्याज तथा लाभ की प्राप्ति होती है। इस विधि में निम्न सूत्र द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना की जाती है
GDP = W + P + In + R
यहाँ- GDP = सकल घरेलू उत्पाद
W = मजदूरी
P = लाभ
In = ब्याज
R = लगान है।
→ साधन लागत, आधारित कीमतें तथा बाजार कीमतें: साधन लागत, आधारित कीमतों तथा बाजार कीमतों में विभेद, शुद्ध उत्पादन करों (उत्पादन कर-उत्पादन उपदान) तथा शुद्ध उत्पाद करों (उत्पाद कर-उत्पाद उपदान) में विभेद पर आधारित है। साधन लागत में केवल उत्पादन के साधनों को किया गया भुगतान शामिल होता है तथा इसमें कोई कर शामिल नहीं होता। बाजार कीमतों पर GDP के आकलन के लिए हमें साधन लागत में करों को जोड़ना तथा उपदान को घटना पड़ता है।
→ कुछ समष्टि अर्थशास्त्रीय तादात्म्य: राष्ट्रीय आय सम्बन्धी कुछ महत्त्वपूर्ण अवधारणाएँ निम्न प्रकार हैं
→ सकल घरेलू उत्पाद: किसी घरेलू अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं तथा सेवाओं के मौद्रिक अथवा बाजार मूल्य के योग को सकल घरेलू उत्पाद कहते हैं।
→ सकल राष्ट्रीय उत्पाद: इसे अग्र रूप में परिभाषित किया जा सकता है सकल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल घरेलू उत्पाद + शेष विश्व में नियुक्त उत्पादन के घरेलू कारकों द्वारा अर्जित आय - घरेलू अर्थव्यवस्था में नियोजित शेष विश्व के उत्पादन के कारकों द्वारा अर्जित आय।
→ शुद्ध अथवा निवल राष्ट्रीय उत्पाद: सकल राष्ट्रीय उत्पाद से मूल्यह्रास को घटाकर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद ज्ञात किया जा सकता है अर्थात् निवल राष्ट्रीय उत्पाद = सकल राष्ट्रीय उत्पाद - मूल्यह्रास
→ कारक अथवा साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद अथवा राष्ट्रीय आय: इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
साधन लागत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद = बाजार कीमत पर निवल राष्ट्रीय उत्पाद - अप्रत्यक्ष कर + उपदान (सब्सिडी)
→ शुद्ध घरेलू उत्पाद: सकल घरेलू उत्पाद में से मूल्यह्रास को घटाकर शुद्ध घरेलू उत्पाद ज्ञात किया जा सकता है। साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद-इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है- . साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद = बाजार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद - अप्रत्यक्ष कर + उपदान निजी आय-इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
→ निजी आय = राष्ट्रीय आय + हस्तान्तरण भुगतान + राष्ट्रीय ऋणों पर ब्याज - सरकार को सम्पत्ति एवं उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय - गैर विभागीय उद्यमों की बचत - सामाजिक सुरक्षा अंशदान।
इसके अतिरिक्त निजी आय को निम्न सूत्र द्वारा भी ज्ञात किया जा सकता है
निजी आय = निजी क्षेत्र को उपगत होने वाले घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय + राष्ट्रीय ऋण ब्याज + विदेशों से प्राप्त निवल कारक आय + सरकार से चालू अन्तरण + शेष विश्व से अन्य निवल अन्तरण।
→ वैयक्तिक आय: इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
वैयक्तिक आय = राष्ट्रीय आय - अवितरित लाभ - परिवारों द्वारा की गयी निवल ब्याज अदायगी - निगम कर + सरकार और फर्मों को की गयी अंतरण अदायगी।
→ वैयक्तिक प्रयोज्य आय: इसे निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता हैवैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय - वैयक्तिक कर अदायगी :- वैयक्तिक गैर कर अदायगी।
→ मौद्रिक सकल घरेलू और वास्तविक कर: कीमतों में परिवर्तन होने पर सकल घरेलू उत्पाद में भी परिवर्तन आ जाता है जिससे तुलना करने में कठिनाई आती है। सकल घरेलू उत्पाद की गणना दो प्रकार की कीमतों के आधार पर की जाती है बाजार कीमतों पर गणना तथा स्थिर कीमतों पर गणना। बाजार कीमतों पर घरेलू उत्पाद को मौद्रिक घरेलू उत्पाद कहते हैं तथा स्थिर कीमतों पर घरेलू उत्पाद को वास्तविक घरेलू उत्पाद कहते हैं। मौद्रिक तथा वास्तविक सकल घरेलू उत्पादों का अनुपात कीमत सूचकांक होता है। इसे सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक कहते हैं, इसे अर्थात् GDP deflator को निम्न सूत्र द्वारा ज्ञात किया जा सकता है
सकल घरेलू उत्पाद अवस्फीतिक = \(\frac{\text { GDP }}{\text { gdp }}\)
यहाँ GDP = मौद्रिक सकल घरेलू उत्पाद तथा gdp = वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद है।
अर्थव्यवस्था में कीमतों में परिवर्तन की अन्य विधि उपभोक्ता कीमत सूचकांक (CPI) है। यह वस्तुओं की दी गई टोकरी, जिसका क्रम प्रतिनिधि उपभोक्ता करते हैं, का कीमत सूचकांक है। इसके अतिरिक्त थोक कीमत सूचकांक एवं उत्पादक कीमत सूचकांक भी महत्त्वपूर्ण है।
→ सकल घरेलू उत्पाद और कल्याण: यदि किसी व्यक्ति की आय में वृद्धि होती है तो सामान्यतः उसके कल्याण में भी वृद्धि होती है। सकल घरेलू उत्पाद, कल्याण का सही माप नहीं हो सकता। इसके तीन प्रमुख कारण हैं