RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 10 वित्तीय बाजार

These comprehensive RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 10 वित्तीय बाजार will give a brief overview of all the concepts.

RBSE Class 12 Business Studies Chapter 10 Notes वित्तीय बाजार

→ विषय:
एक व्यवसाय के लिए वित्त की तब आवश्यकता होती है जब एक उद्यमी उसे प्रारम्भ करने का निर्णय लेता है।

→ वित्तीय बाजार की संकल्पना (अवधारणा):
एक व्यवसाय अर्थव्यवस्था का एक हिस्सा होता है, जिसमें दो मुख्य क्षेत्र समाहित होते हैं। प्रथम, घरेलू जो विनिधियों को बचाता है और व्यावसायिक संस्था जो इन निधियों को निवेशित करती है। वित्तीय बाजार इन दोनों के बीच निधियों को संचालित करते हुए बचत करने वालों तथा निवेशक को जोड़ने में मदद करता है।
वित्तीय बाजार वित्तीय परिसम्पत्तियों के विनिमय एवं सृजन के लिए एक बाजार है। यह वहीं अस्तित्व में आता है जहाँ वित्त का लेन-देन होता है। जैसे-अंशों एवं ऋण पत्रों आदि का लेन-देन ।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 10 वित्तीय बाजार

→ वित्तीय बाजार के प्रकार्य:

  • बचतों को गतिशील बनाना तथा उन्हें अधिकाधिक उत्पादक उपयोग में सरणित करना
  • मूल्य खोज को सुसाध्य बनाना
  • वित्तीय परिसम्पत्तियाँ हेतु द्रवता उपलब्ध कराना 
  • लेनदेन की लागत को घटाना।

→ वित्तीय बाजार का वर्गीकरण-

  1. मुद्रा बाजार
  2. पूँजी बाजार
    • प्राथमिक बाजार (इक्विटी तथा ऋण)
    • द्वितीयक बाजार (ऋण तथा इक्विटी)।

मुद्रा बाजार का अर्थ-द्रव्य या मुद्रा बाजार एक छोटी अवधि की विधियों का बाजार है जो ऐसे द्रव्य सम्पत्तियों का निपटान करता है जिनकी परिपक्वता अवधि एक वर्ष तक की होती है। ये परिसम्पत्तियाँ मुद्रा के लिए निकट विकल्प होती हैं।

→ मुद्रा बाजार के तत्त्व/अंग

  • द्रव्य बाजार प्रपत्र (इन्स्ट्रमेंट),
  • वाणिज्यिक पत्र,
  • शीघ्रावधि द्रव्य,
  • बचत प्रमाण-पत्र,
  • वाणिज्यिक बिल।

→ पूँजी बाजार का अर्थ:
पूँजी बाजार वह जगह होती है जहाँ दीर्घकालिक निधियों को सरकारी तथा निगमित उपक्रमों द्वारा संचालित किया जाता है। इसके अन्तर्गत विकास बैंक, वाणिज्यिक बैंक तथा स्कन्ध विनिमय केन्द्र (शेयर बाजार) समाहित होते हैं।

→ पूँजी बाजार एवं मुद्रा बाजार में अन्तर

  • भाग लेने वाले
  • प्रलेख
  • निवेश राशि
  • अवधि
  • तरलता
  • सुरक्षा
  • सम्भावित प्रतिफल। 

→ पूँजी बाजार के प्रकार
(1) प्राथमिक बाजार-यह नई प्रतिभूतियों से निपटता है जो पहली बार निर्गमित अर्थात् जारी की जाती हैं। इस बाजार के निवेशक बैंक, वित्तीय संस्थान, बीमा कम्पनियाँ, म्युचुअल फण्ड आदि होते हैं। अस्थायी पूँजी (फ्लोटेशन) की विधियाँ-प्राथमिक बाजार में अस्थिर पूँजी (फ्लोटेशन) के नये निर्गमन की विधियाँ

  • विवरण पत्रिका के माध्यम से प्रस्ताव
  • विक्रय के लिए प्रस्ताव
  • निजी नियोजन या विनियोग
  • अधिकार निर्गम
  • ई.आई.पी.ओ.ज.।

(2) द्वितीयक बाजार:
ये वे बाजार होते हैं जहाँ विद्यमान प्रतिभूतियों को खरीदा व बेचा जाता है। यह बाजार विद्यमान निवेशकों को विनिवेश तथा नये निवेशकों को प्रवेश करवाने में सहायता प्रदान करता है। स्टॉक एक्सचेंज या शेयर बाजार स्टॉक एक्सचेंज एक ऐसा संस्थान होता है जो विद्यमान प्रतिभूतियों के क्रय एवं विक्रय के लिए एक मंच प्रदान करता है। यह विभिन्न कम्पनियों को वित्त उगाहने, द्रव्यता उपलब्ध कराने तथा निवेशकों के निवेश को संरक्षण प्रदान करता है तथा वैयक्तिक कम्पनियों की ऋण (साख) योग्यता बढ़ाता है। शेयर बाजार (स्टॉक एक्सचेंज) का तात्पर्य-प्रतिभूति संपर्क (नियामक) अधिनियम 1956 के अनुसार शेयर बाजार का तात्पर्य व्यवसाय में प्रतिभूतियों की खरीद-फरोख्त या निपटान हेतु सहायता, नियमन एवं नियंत्रण उद्देश्य के लिए, एक ऐसे वैयक्तिक निकाय का गठन किया जाना है, फिर चाहे वह निगमित (इनकार्पोरेटेड) हो अथवा नहीं।

एक शेयर बाजार के क्रियाकलाप

  • विद्यमान प्रतिभूतियों को द्रवता एवं विनियोग उपलब्ध करवाना
  • प्रतिभूतियों का मूल्यन/भाव निर्धारण करना
  • लेन-देन की सुरक्षा प्रदान करना
  • आर्थिक प्रगति हेतु भागीदारी करना
  • इक्विटी सम्प्रदाय का प्रसार
  • सट्टेबाजी के लिए अवसर उपलब्ध करना।

RBSE Class 12 Business Studies Notes Chapter 10 वित्तीय बाजार

→ व्यापारिक तथा निपटान कार्यविधि:
प्रतिभूतियों के व्यापार का निष्पादन अब स्वमार्गीय स्क्रीन आधारित इलैक्ट्रॉनिक व्यापार तंत्र के माध्यम से होता है। अंशों एवं ऋणपत्रों का समस्त क्रय तथा विक्रय एक कम्प्यूटर टर्मिनल के माध्यम से किया जाता है।  व्यापारिक एवं निपटान प्रक्रिया के चरण-चल निपटान में अंशों की तीव्र गतिशीलता निहितार्थ है, इसलिए इसके प्रभावी कार्यान्वयन हेतु इलैक्ट्रॉनिक निधि अंतरण तथा अंशों के विभौतिकीकरण की आवश्यकता है। यदि कोई निवेशक कोई प्रतिभूति खरीदना अथवा बेचना चाहता है तो उसे एक दलाल अथवा उप-दलाल से एक समझौता (एग्रीमैंट) करना होगा।

→ विभौतिकीकरण तथा निक्षेपागार (डिमैटीरियलाइजेशन तथा डिपोजिटरीज):
यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निवेशक द्वारा भौतिक रूप में रखी गयी प्रतिभूतियां रद्द हो जाती हैं तथा निवेशक को एक इलैक्ट्रॉनिक प्रविष्टि अथवा संख्या दे दी जाती है जिससे वह एक खाते में इलैक्ट्रॉनिक शेष के रूप में प्रतिभूतियाँ रख सकता है।

→ डीमैट प्रणाली की कार्यविधि:
एक खाता खोलने का फार्म, प्रलेखन (डोक्यूमैन्टेशन) (पैन कार्ड का विवरण, फोटो, मुख्तारनामा) पूर्ण कर लेना चाहिए। शेयर बाजार को अंशों की सुपुर्दगी हेतु दलाल अपने डीपी को अनुदेश देता है।

→ निक्षेपागार (डिपोजिटरी):
जिस प्रकार बैंक अपने ग्राहकों के धन को सुरक्षित अभिरक्षा में रखता है, उसी प्रकार एक निक्षेपागार निवेशक की ओर से प्रतिभूतियों को इलैक्ट्रॉनिक रूप में रखता है।

→ भारत का राष्ट्रीय शेयर बाजार (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज ऑफ इण्डिया):
नवीनतम, अति अधुनातन तथा तकनीकों से संचालित यह शेयर बाजार सन् 1992 में निर्गमित किया गया था और इसे अप्रैल, 1993 में शेयर बाजार के रूप में मान्यता दी गई थी। नवम्बर, 1994 से इस बाजार ने इक्विटीज के लिए व्यापार मंच की शुरुआत की तथा जून, 2000 में विभिन्न व्युत्पादित प्रपत्रों के लिए भावी एवं वैकल्पिक सेगमेंट की शुरूआत की। एन.एस.ई. ने राष्ट्रव्यापी पूर्णतः स्वचालित स्क्रीन आधारित व्यापार प्रणाली की स्थापना की।

→ राष्ट्रीय शेयर बाजार (NSE) के उद्देश्य:
सभी प्रकार की प्रतिभूतियों हेतु राष्ट्रव्यापी व्यापार सुविधा स्थापित करना, लघु भुगतान चक्र तथा बुक (पुस्तक) प्रविष्टि निपटान के योग्य बनाना, अन्तर्राष्ट्रीय ऊँचाइयों एवं मानकों को पूरा करना।

→ राष्ट्रीय शेयर बाजार (एन.एस.ई.) के बाजार खण्ड:

  • थोक विक्रय ऋण बाजार खण्ड
  • पूँजी बाजार खण्ड।

→ बी.एस.ई. ( पूर्व में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड):
बी.एस.ई. लि. (पूर्व में बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज लिमिटेड), 1875 में स्थापित हुआ था। यह एशिया का प्रथम स्टॉक एक्सचेंज है। इसे प्रतिभूति संविदा (विनियम) अधिनियम, 1956 के अन्तर्गत स्थायी मान्यता दी गई।

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→ भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI):
सेबी (SEBI) की स्थापना भारत सरकार द्वारा 12 अप्रैल, 1988 को एक अन्तरिक्ष प्रशासनिक निकाय के रूप में की गई थी जो प्रतिभूति बाजार के नियमित एवं स्वस्थ वृद्धि तथा निवेशकों की सुरक्षा को बढ़ावा दे सके। 30 जनवरी, 1992 को सेबी को भारत सरकार द्वारा एक वैधानिक निकाय का दर्जा दिया गया जिसे बाद में संसद के एक अधिनियम के रूप में, भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड, अधिनियम, 1992 में बदला गया।

→ सेबी (SEBI) की स्थापना के कारण:
व्यापार दुराचारों ने निवेशकों के विश्वास को तोड़ डाला और निवेशकों की समस्याओं से निपटने के लिए भारत सरकार ने यह निर्णय लिया कि एक नियंत्रक निकाय स्थापित किया जाना चाहिए जिसे भारतीय प्रतिभूति एवं विनियम बोर्ड के नाम से जाना गया।

→ सेबी की भूमिका एवं उद्देश्य:
सेबी का मूल उद्देश्य एक ऐसे पर्यावरण को पैदा करना है जो प्रतिभूति बाजारों के माध्यम से संसाधनों को नियोजन एवं सक्षम गतिशीलता को सुसाध्य बनाये।

→ सेबी के उद्देश्य:
सेबी के उद्देश्य निवेशकों के हितों को संरक्षित करना तथा उनके विकास को प्रोत्साहित करना तथा प्रतिभूति बाजार को विनियमित करना है।

→ सेबी के कार्य

  • सुरक्षात्मक
  • नियमनकर्ता कार्य
  • विकास पूर्ण कार्य ।

→ सेबी का संगठनात्मक ढाँचा:
सेबी एक वैधानिक निकाय है जिसका क्रियाकलाप का दायरा एवं विस्तार बहुत व्यापक है । सेबी ने मुम्बई मुख्यालय के अलावा अपने क्षेत्रीय कार्यालय कोलकाता, चेन्नई तथा दिल्ली में भी खोले हैं।

Prasanna
Last Updated on June 17, 2022, 11:36 a.m.
Published June 17, 2022