These comprehensive RBSE Class 12 Biology Notes Chapter 5 वंशागति तथा विविधता के सिद्धांत will give a brief overview of all the concepts.
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→ जीव विज्ञान की वह शाखा जिसमें वंशागति के सिद्धान्तों तथा व्यवहार में - उसके प्रयोग का अध्ययन किया जाता है आनुवंशिकी कहलाती है।
→ सन्तति की जनकों से समानता ने हमेशा से जीव विज्ञानियों का ध्यान आकृष्ट ने किया है। मेण्डल इस तरह की घटनाओं का वैज्ञानिक व तर्कसम्मत अध्ययन । करने वाले पहले वैज्ञानिक थे। मटर के पौधों में विपर्यासी लक्षणों की वंशागति का अध्ययन करते हुए उन्होंने वंशागति के नियम प्रतिपादित किये जिन्हें आज मेण्डल के वंशागति के नियमों के नाम से जाना जाता है। मेण्डल ने सुझाया कि लक्षणों को नियन्त्रण करने वाले कारक (जिन्हें बाद में जीन नाम दिया गया) जीव में जोड़ों में उपस्थिति होते हैं, जिन्हें अलील कहा जाता है। प्रयोगों से मेण्डल ने देखा कि संतति में लक्षणों की वंशागति प्रथम संतति पीढ़ी (F1) तथा द्वितीय संतति पीढ़ी (F2) में एक निश्चित तरीके का अनुपालन करती है। कुछ लक्षण दूसरे लक्षणों पर प्रभावी होते हैं। प्रभावी लक्षण तब भी अभिव्यक्त होते हैं जब वह विषम युग्मजी अवस्था में हों। अर्थात F1 संकर हमेशा प्रभावी लक्षण प्रदर्शित करते हैं। यही प्रभाविता का नियम है।
→ अप्रभावी लक्षणों की अभिव्यक्ति केवल समयुग्मजी अवस्था में होती है। विषमयुग्मकी अवस्था में लक्षणों का सम्मिश्रण या ब्लेंडिंग नहीं होता। विषमयुग्म की अवस्था में अभिव्यक्त न हो पाया लक्षण समयुग्मकी अवस्था आ जाने पर पुन: अभिव्यक्त हो जाता है। अतएव युग्मक निर्माण के समय लक्षणों का पृथक्करण (विसंयोजन) हो जाता है, यही मेण्डल का पृथक्करण का नियम है। सभी लक्षण पूर्व प्रभाविता प्रदर्शित नहीं करते। कुछ लक्षण अपूर्ण प्रभाविता तथा कुछ सहप्रभाविता भी दर्शाते हैं। यह मेण्डल के वंशागति से थोड़ी-सी भिन्नता प्रदर्शित करने वाले उदाहरण हैं, दो लक्षणों की वंशागति का एक साथ अध्ययन करने पर मेण्डल ने पाया कि विशेषकों को नियन्त्रित करने वाले कारक एक दूसरे से स्वतन्त्र रूप से पृथक व अपव्यूहित होते हैं। यह मेण्डल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम है।
→ युग्मकों के प्रकार, (आनुवंशिक संगठन). का प्रदर्शन सैद्धान्तिक रूप से एक चौकोर आरेख द्वारा किया जाता है जिसे पनेट वर्ग कहते हैं। किसी जीव का आनुवंशिक संगठन (फेक्टर/अलील के प्रकार) उसका जीनोटाइप तथा उसके बाह्य प्रेक्षणीय लक्षण फीनोटाइप कहलाते हैं। जीनों के क्रोमोसोम पर स्थित होने सम्बन्धी जानकारी प्राप्त होने पर, मेण्डल के कारकों की वंशागति व अर्धसूत्री विभाजन के समय क्रोमोसोम के व्यवहार में समानता प्रदर्शित की जा सकी। इसी के आधार पर वंशागति का क्रोमोसोमीय सिद्धान्त प्रस्तुत किया गया।
→ बाद में यह भी स्पष्ट हुआ कि एक ही क्रोमोसोम पर स्थित जीनों के लिए मेण्डल का स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम लागू नहीं होता। एक ही क्रोमोसोम पर स्थित जीन को सहलग्न जीन कहते हैं। क्रोमोसोम पर दूर-दूर स्थित जीन पुनर्संयोजन के कारण स्वतन्त्र अपव्यूहन प्रदर्शित करती हैं जबकि पास-पास स्थित जीन एक साथ अपव्यूहित होती हैं। इसके आधार पर एक ही क्रोमोसोम पर स्थित जीनों की स्थिति को दर्शाने वाले संलग्नता मानचित्र बनाए गये। लिंग क्रोमोसोम पर स्थित जीन लिंग सहलग्न कहलाती हैं। एकलिंगी जीवों में कुछ क्रोमोसोम नर व मादा दोनों प्रकार के जीवों में समान होते हैं तथा अलिंग सूत्र या ऑटोसोम कहलाते हैं। कुछ क्रोमोसाम दोनों लिंगों में अलग-अलग प्रकार के होते हैं, जिन्हें लिंग क्रोमोसोम कहते हैं। मानव में एक स्त्री में 22 जोड़े ऑटोसोम व एक जोड़ा लिंग क्रोमोसोम (XX) होता है। पुरुषों में 22 जोड़े ऑटोसोम व एक जोड़ा लिंग क्रोमोसोम (XY) पाये जाते हैं। पक्षियों में नर के लिंग क्रोमोसोम ZZ व मादाओं के ZW होते हैं। आनुवंशिक पदार्थ में होने वाला वंशागत बदलाव उत्परिवर्तन कहलाता है।
→ डीएनए अणु के केवल एक क्षारक युग्म का परिवर्तन बिन्दु उत्परिवर्तन के नाम से जाना जाता है। आनुवंशिक विकार, सिकल सैल एनीमिया, हीमोग्लोबिन की बीटा श्रृंखला को कोडित करने वाली जीन में एक क्षारक के परिवर्तन से होता है। आनुवंशिक लक्षणों का किसी वंश की वंशावली तैयार कर अध्ययन किया जा सकता है।
→ कुछ उत्परिवर्तनों में जीव के क्रोमोसोम के पूरे सेट (जीनोम) में परिवर्तन हो जाता है। इन्हें सुगुणिता कहते हैं, जबकि क्रोमोसोम संख्या के छोटे बदलाव असुगुणिता, एन्यूप्लाइडी कहलाते हैं। इनके अध्ययन से आनुवंशिक विकारों के उत्परिवर्तनीय आधार को समझने में मदद । मिली। डाउन सिन्ड्रोम 21वें गुणसूत्र की त्रिसूत्रता से उत्पन्न होता है जिसमें - 21वें क्रोमोसोम की दो की जगह तीन प्रतियाँ पाई जाती हैं। टर्नर सिन्ड्रोम में एक लिंग क्रोमोसोम X अनुपस्थित होने के कारण प्रभावित स्त्रियाँ 44 + XO प्रकार की होती हैं। क्लाइफेल्टर सिन्ड्रोम में एक लिंग क्रोमोसोम अतिरिक्त होता है अर्थात XXY अवस्था। इनको कैरियोटाइप के अध्ययन से आसानी से समझा जा सकता है।
→ Anaphase (पश्चावस्था)-कोशिका विभाजन की मध्यावस्था के बाद की अवस्था जिसमें क्रोमोसोम (अर्धसूत्री विभाजन में) अथवा क्रोमेटिड (सूत्री विभाजन में) विपरीत ध्रुवों की ओर गति करते हैं।
→ Aneuploidy (असुगुणिता)-वह स्थिति जिसमें जीव में कुल गुणसूत्र संख्या से 1 या अधिक गुणसूत्र ज्यादा या कम होते हैं, जैसे 2n + 1 या 2n -1 आदि।
→ Allele (अलील)-एक ही जीन के विभिन्न रूप या प्रति जैसे TT या IA, IB, i (रक्त समूह को नियन्त्रित करने वाली जीन के रूप)
→ Chromosomal Mutation (क्रोमोसोमल उत्परिवर्तन) क्रोमोसोम की संरचना या संख्या में हुए वंशागत परिवर्तन।
→ Codominance (सह प्रभाविता)-वंशागति का वह तरीका जिसमें एक जीन के दोनों अलील अपना-अपना बराबर प्रभाव दिखाते हैं।
→ Deletion (उत्परिवर्तन) जिसमें किसी क्षारक युग्म, जीन अथवा क्रोमोसोम भाग की कमी हो जाती है जैसे क्राई डू चैट सिन्ड्रोम में।
→ Dihybrid Cross (द्विसंकर संकरण)-उन जनकों में संकरण जो दो लक्षणों में असमान हों।
→ Dominant allele (प्रभावी अलील) वह अलील जो विषमयुग्मजी अवस्था में भी अपना पूर्ण प्रभाव प्रदर्शित करता है तथा अप्रभावी अलील के प्रभाव को प्रकट नहीं होने देता।
→ Duplication-क्रोमोसोम की संरचना में ऐसा बदलाव जिसमें इसका कोई भाग उसी क्रोमोसोम में एक से अधिक बार उपस्थित होता है।
→ Frame shift Mutation (फ्रेमशिफ्ट म्यूटेशन)-जीन में कम . से कम एक क्षारक की कमी या अधिकता हो जाना जिससे mRNA का पूरा रीडिंग फ्रेम बदल जाता है।
→ Gene (जीन)-वंशागति की इकाई जो क्रोमोसोम पर अलील के रूप में पाई जाती है।
→ Gene locus (जीन लोकस)–समजात क्रोमोसोम पर किसी जीन का स्थान।
→ Genetic Recombination (आनुवंशिक पुनर्संयोजन)-वह प्रक्रिया जिसमें किसी DNA खण्ड या क्रोमोसोम में नई आनुवंशिक सूचना निवेशित हो जाती है।
→ Genotype (जीनोटाइप)-किसी लक्षण विशेष के लिए जीव की जीन जिन्हें प्रायः प्रतीकों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
→ Heterozygous (विषययुग्मजी)-किसी विशेषक की असमान अलील धारण करने वाला।
→ Homologous Chromosome (समजात क्रोमोसोम)क्रोमोसोम जोड़े के क्रोमोसोम जो दूसरे क्रोमोसोम के समान होते हैं तथा अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रोफेज अवस्था में युग्मन सिनैप्स बनते समय साथ-साथ आ जाते हैं।
→ Homozygous (समयुग्मकी)-किसी लक्षण/विभेदक के दो समान अलील धारण करने वाला।
→ Hybridization (संकरण)—विभिन्न किस्मों/प्रजातियों के बीच का संकरण।
→ Incomplete Dominance (अपूर्ण प्रभाविता)-वंशागति का वह प्रकार जिसमें संतति दोनों जनकों के बीच का फीनोटाइप प्रदर्शित करती है।
→ Independent Assortment (स्वतन्त्र अपव्यूहन) अर्धसूत्री विभाजन के समय असहलग्न (unlinked) जीनों के अलील का एक दूसरे से स्वतन्त्र रूप से पृथक होना जिससे युग्मकों में अलील के सभी संभावित संयोजन होते हैं।
→ Inversion (प्रतिलोमन)-क्रोमोसोम की संरचना में बदलाव जिसमें क्रोमोसोम का एक खण्ड 180° पर घूम जाता है, फलस्वरूप जीनों का क्रम बदल जाने से असामान्यता उत्पन्न हो जाती है।
→ Karyotype (कैरियोटाइप)-आकार, प्रकार के आधार पर माइटोटिक विभाजन की मेटाफेज अवस्था के क्रोमोसोम का व्यवस्थित रूप।
→ Metaphase (मध्यावस्था)-कोशिका विभाजन की अवस्था जिसमें क्रोमोसोम मध्य में मेटाफेज प्लेट पर व्यवस्थित हो जाते हैं।
→ Monohybrid Cross (एक संकर संकरण)-ऐसे जनकों में संकरण जो केवल एक लक्षण में भिन्नता प्रदर्शित करते हैं। एक लक्षण की वंशागति हेतु किए क्रॉस।
→ Monosomy (एकसूत्रता)-सामान्य क्रोमोसोम संख्या से एक
क्रोमोसोम कम होने की स्थिति (2n - 1).
→ Multiple allele (बहुएलील)-वंशागति का वह प्रकार जिसमें किसी एक लक्षण की जीन के 2 से अधिक अलील होते हैं।
→ Nondisjunction (नान डिस्जंक्शन)-समजात क्रोमोसोम की अर्धसूत्री विभाजन के समय पृथक न हो पाने की स्थिति।
→ Phenotype (फीनोटाइप)-किसी जीनोटाइप की प्रेक्षणीय अभिव्यक्ति जैसे आँखों का रंग।
→ Pleiotropy (प्लियोट्रापी)-वंशागति का वह तरीका जिसमें एक जीन जीव एक से अधिक फीनोटाइप को प्रभावित करती है।
→ Punnett square (पनेट वर्ग)-आनुवंशिक प्रयोगों में अपेक्षित परिणाम ज्ञात करने की सरल चित्रीय विधि।
→ Recessive allele (अप्रभावी अलील)—वह अलील जो केवल समयुग्मजी अवस्था में अभिव्यक्त होता है तथा विषम युग्मजी अवस्था में प्रभावी एलील के कारण अभिव्यक्त नहीं हो पाता।
→ Sex Chromosome (लिंग क्रोमोसोम)—वह क्रोमोसोम जो किसी जीव के लिंग का निर्धारण करता है।
→ Test Cross (परीक्षार्थ संकरण)-किसी प्रभावी लक्षण वाले जीव का अप्रभावी लक्षण वाले जीव से क्रॉस जिससे यह पता लगाया जा सके कि प्रभावी जीव समयुग्मजी है या विषमयुग्मजी।
→ Trisomy (त्रिसूत्रता)-किसी द्विगुणित जीव में किसी क्रोमोसोम की तीन प्रतियों का पाया जाना (2n + 1) जैसे डाउन सिन्ड्रोम में।
→ x-linked (x-सहलग्न)-अलील जो X क्रोमोसोम पर स्थित हो तथा लैंगिक लक्षणों के अतिरिक्त अन्य लक्षण को भी प्रभावित करें।