Rajasthan Board RBSE Class 12 Biology Important Questions Chapter 10 मानव कल्याण में सूक्ष्मजीव Important Questions and Answers.
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अति लघुउत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बी०ओ०डी० का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
बायोकैमीकल ऑक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand)
प्रश्न 2.
बैक्टीरिया का नाम लिखिए जो दूध को दही में परिवर्तित कर देते हैं।
उत्तर:
लैक्टोबेसीलस प्रजाति (Lacrobacillus spp)
प्रश्न 3.
किण्वक से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सूक्ष्मजीवों द्वारा पदार्थों के औद्योगिक उत्पादन हेतु जिस पात्र का प्रयोग किया जाता है उसे किण्वक या फर्मेन्टर (Fermentor) कहा जाता है।
प्रश्न 4.
जैव वैज्ञानिक नियंत्रण के तहत कौन-सी कवक का उपयोग पादप रोगों के उपचार में किया जाता है?
उत्तर:
ट्राइकोडर्मा प्रजाति (Trichoderma spp)
प्रश्न 5.
लैक्टिक अम्ल जीवाणु के कोई दो लाभ लिखिए।
उत्तर:
प्रश्न 6.
आनुवंशिक अभियांत्रिकी द्वारा रुपान्तरित जीवाणु उत्पाद का नाम लिखिए जिसका हृदयाघात के अग्रग मायोकार्डियल इन्फार्कशन से गुजरे रोगी की रक्त वाहिकाओं से थक्का हटाने यानि 'थक्का स्फोटन में उपयोग किया जाता है।
अथवा
उस जीवाणु जन्य उत्पाद का नाम बताइये जिसका उपयोग थक्का स्फोटक के रूप में होता है।
उत्तर:
स्ट्रेप्टोकाइनेज (Streptokinase)
प्रश्न 7.
निम्नलिखित में से कौन - सा एक बेकर यीस्ट है जो किण्वन में काम आता है।
सैकेरम बारबेरी, सैकेरोमाइसिस सैरेविसी, सोनालिका
उत्तर:
सैकेरोमाइसिस सैरेविसी (Saccharomyces cerevisae)
प्रश्न 8.
निम्नलिखित में से वह कौन - सा जीवाणु है जो स्वतंत्र जीवी है एवं मिट्टी के भीतर नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करता है।
स्पाइरुलीना, ऐजोस्पाइरिलम, स्ट्रेप्टोकोकस।
उत्तर:
स्पाइरुलिना, एजोस्पाइरिलम ढीले संयोजन बनाता है।
प्रश्न 9.
किसी ऐसे संक्रमणकारी कारक का नाम बताइये जिसमें न तो डी० एन०ए० होता है और न ही.आर० एन०ए०।
उत्तर:
प्रियान (Prion)
प्रश्न 10.
एहीनोवाइरस मनुष्य में किस प्रकार का संक्रमण करते हैं?
उत्तर:
एडीनोवाइरस श्वसन तन्त्र (Respiratory tract) का संक्रमण करते है।
प्रश्न 11.
स्विस पनीर बनाने में किस जीवाणु का प्रयोग होता है?
उत्तर:
प्रोपिओनीबैक्टीरियम शारमैनाई (Propionibacterium sharmanii)
प्रश्न 12.
कौन - सा पनीर एक विशिष्ट कवक की वृद्धि से परिपक्व होता है?
उत्तर:
राक्फोर्ट पनीर (Roquefort cheese)
प्रश्न 13.
बिना आसवन के बनने वाले दो ऐल्कोहॉलिक पेयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
बियर (Beer) तथा वाइन (Wine)
प्रश्न 14.
किण्वित रस के आसवन से तैयार होने वाले दो ऐल्कोहॉलिक पेयों के नाम लिखिए।
उत्तर:
व्हिस्की (Whisky) तथा रम (Rum)
प्रश्न 15.
एंटीबायोटिक पेनिसिलिन की खोज किसने की?
उत्तर:
एलेक्जेण्डर फ्लेमिंग ने।
प्रश्न 16.
पेनिसिलिन किस सूक्ष्मजीव/कवक से प्राप्त होता है?
उत्तर:
पेनिसिलियम नोटेटम (Penicillium notatum) से।
प्रश्न 17.
जीव विज्ञान (कार्यिकी) के क्षेत्र का सन् 1945 का नोबेल पुरस्कार किन वैज्ञानिकों को मिला?
उत्तर:
अलेक्जेण्डर फ्लेमिंग, ई० बी० चेन० व एच० फ्लोरे। (Alexander Flemming, Chain and H. Florey)
प्रश्न 18.
औद्योगिक रूप से सिट्रिक अम्ल बनाने में किस सूक्ष्मजीव का प्रयोग होता है?
उत्तर:
एस्पर्जिलस नाइजर (Aspergillus niger)
प्रश्न 19.
ब्यूटाइरिक अम्ल किस सूक्ष्मजीव की मदद से बनाया जाता है?
उत्तर:
क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटाइलिकम (Clostridium butylicum)
प्रश्न 20.
बाजार में मिलने वाले बोतल बन्द फलों के रस किस प्रकार साफ बनाये जाते हैं।
उत्तर:
एंजाइम पेक्टीनेज व प्रोटिएजेज (Pectinase and proteases) द्वारा।
प्रश्न 21.
धुलाई के कपड़ों से तेल के दाग छुड़ाने के लिए आजकल डिटरजेंट में किस प्रकार के सूक्ष्मजीव उत्पाद का प्रयोग किया जाता है।
उत्तर:
लाइपेज (lipase) एंजाइम का।
प्रश्न 22.
सीवेज अल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों में कमी के लिए इसके उपचार का कौन - सा चरण उत्तरदायी है?
उत्तर:
द्वितीयक उपचार (Secondary treatment), जिसमें जीवाणु, ऑक्सीजन का प्रयोग कर सीवेज जल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थ का अपघटन करते है।
प्रश्न 23.
किसी एक मेथेनोजेन जीवाणु का नाम लिखिए।
उत्तर:
मेथेनोबैक्टीरियम प्रजाति (Methanobacterium spp)
प्रश्न 24.
सीवेज ट्रीटमेंट में अवायवीय आपंक (एनएरोबिक स्लज) में कौन - से जीवाणू पाये जाते है?
उत्तर:
मेथेनोजेन्स (Methanogens)
प्रश्न 25.
लेडीबई क्या है? इसका क्या उपयोग है?
उत्तर:
लेडीवर्ड (Ladybird) एक कौट है जिसको एफिड के नियंत्रण हेतु जैव नियंत्रक के रूप में प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 26.
बैक्यूलोवाइरस के किस वंश (genus) को जैव नियंत्रक के रूप में प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
न्यूक्लियोपॉलीहेड्रोवाइरस (Nucleopolyhedrovirus)।
प्रश्न 27.
IPM का पूरा नाम लिखिए।
उत्तर:
इंटीग्रेटेड पेस्ट मैनेजमेंट (Integrated Pest Management)।
प्रश्न 28.
ऐसी खेती जिसमें रासायनिक उर्वरकों के स्थान पर जैव उर्वरकों व प्राकृतिक खादों का प्रयोग किया जाता है, क्या कहलाती है?
उत्तर:
जैविक खेती (organic farming)
प्रश्न 29.
एक स्वपोषी नाइट्रोजन स्थिरीकरणकर्ता सूक्ष्मजीव का नाम लिखिए।
उत्तर:
एनाबीना (Anabaena)
प्रश्न 30.
माइकोराइजा किस विशिष्ट खनिज का अवशोषण कर पौधे की जड़ों को देती हैं जो पौधा स्वयं अवशोषित नहीं कर पाता।
उत्तर:
फास्फोरस।
प्रश्न 31.
कोलेस्टेरॉल संश्लेषण प्रक्रिया हेतु आवश्यक एंजाइम के प्रतिस्पर्धात्मक रोधन का कार्य करने वाले किसी सूक्ष्मजीव उत्पाद का नाम लिखिए।
उत्तर:
स्टेटिन (Statin)
प्रश्न 32.
फ्लॉक्स क्या होते हैं?
उत्तर:
सीवेज ट्रीटमेंट में द्वितीयक उपचार के समय बने कवक तन्तुओं में उलझे जीवाणुओं के झुंड।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
शूक्ष्म जीवविज्ञान के क्षेत्र में एलेक्जेंडर फ्लेमिंग, अरनेस्ट चेन तथा होवई फ्लौरे के योगदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
एलेकौडर फ्लेमिंग ने 1928 में पेनिसिलीन एंटीबायोटिक (प्रतिजैविक) की खोज की थी। पेनिसिलीन को एक प्रभावशाली प्रतिजैविक के रूप में स्थापित करने का कार्य अरनेस्ट चेन तथा होवर्ड फ्लौरे ने किया था। उक्त तीनों वैज्ञानिकों को 1954 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
प्रश्न 2.
वैसीलस थूरिजिसिस जब एक विशिष्ट कीट के शरीर में प्रविष्ट होता है तो वह कीट मर जाता है, परन्तु यह स्वयं अप्रभावित रहता है। समझाइए कि यह किस प्रकार संभव है?
उत्तर:
वैसीलस यूरिजिऐसिस शूक्ष्म जीवीय जैव नियंत्रण (microbial biocontrol) का एक उत्तम उदाहरण है। जब इस जीवाणु के बीजाणुओं (spores) को पानी में मिलाकर मेद्य फसलों (vulnerable crops) जैसे-फलों के वृक्ष बेसिका आदि पर छिड़का जाता है तब इन्हें कीटों के लार्वा द्वारा खा लिया जाता है। इनसे लार्वा का आहारमाल में विष मुक्त होता है व लार्वा मर जाते हैं। तितली जैसे दिखने वाले कीटों के लार्वाओं को भरने के लिए इसका प्रयोग होता है। इसमें लार्वाओं की मृत्यु हो जाती है लेकिन ये स्वयं अप्रभावित रहते है।
प्रश्न 3.
"वाहितमल के जैविक उपचार में शूक्ष्मजीव एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।" औचित्स सिद्ध कीजिए।
उत्तर:
वाहितमल उपचार में सूक्ष्मजीव (Microbes in Sewage Treatment)
वाहितमल (Sewage): कस्बों, नगरों व शहरों में प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल (waste water) उत्पादित होता है। इसमें जल के साथ - साथ अनेक प्रकार के ठोस भी होते है। इस अपशिष्ट जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मल मूत्र (human excreta) होता है। नगर के इसी व्यर्थ या अपशिष्ट जल को वाहित मल या सीवेज (sewage) कहा जाता है।
सीवेज में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ (organic matter) व सूक्ष्मजीव होते हैं। अनेक रोगजनक सूक्ष्मजीवों (pathogens) का यह स्रोत होता है। प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में बनने वाले इस सीवेज का निस्तारण (disposal) किसी भी विभाग/संगठन के लिए एक चुनौतीभरा कार्य है। इसको प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे नदियों में नहीं डाला जा सकता; क्योंकि यह प्रदूषण का एक बहुत बड़ा स्रोत है। दुर्भाग्यवश, अनियंत्रित और बेतरतीब हुए शहरीकरण के कारण ऐसा भी किया जा रहा है।
सीवेज प्रदूषण के कारण देश की बड़ी - बड़ी व प्रसिद्ध नदियाँ दम तोड़ने के कगार पर है। इस समस्या पर नजर डालने से वाहित मल के उपचार का महत्त्व (significance of the treatment of sewage) अपने आप स्पष्ट हो जाता है। अत: नदियों या अन्य प्राकृतिक स्रोतों में विसर्जन (discharge) से पहले वाहित मल का उपचार वाहितमल ट्रीटमेंट संयंत्र (sewage treatment plant) में किया जाता है ताकि यह प्रदूषण मुक्त हो जाये। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में व्यर्थ जल का उपचार इस जल में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले परपोषी सूक्ष्मजीव (hetero trophic microbes) की मदद से किया जाता है। यह उपचार दो चरणों में पूरा होता है - प्राथमिक उपचार या भौतिक उपचार तथा द्वितीयक उपचार या जैविक उपचार।
प्राथमिक उपचार (Primary Treatment)
प्राथमिक उपचार में मौलिक रूप से छानने (filtration) व अवसादन (Sedimentation) जैसी भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा सीवेज में उपस्थित छोटे व बड़े कणिकीय पदार्थ अलग कर लिए जाते हैं। सीवेज में अनेक प्रकार की घुलित व अघुलित अशुद्धियाँ, कंकड़, पॉलीथिन छोटे - छोटे ढक्कन, धातु के व प्लास्टिक के टुकड़े आदि मिले रहते हैं। इन सबको सीवेज से अलग करने का कार्य कई चरणों में होता है। प्रारम्भ में, सौवेज को क्रमिक रूप से छानकर - इसमें से तैरने वाली अशुद्धियाँ, जैसे- पॉलीथिन, कूड़ा - करकट आदि को हटा दिया जाता है। सीवेज में उपस्थित धूल, रेत - मिट्टी व छोटे - छोटे कंकड़ पत्थर को अलग करने के लिए इसका अवसादन (sedimentation) किया जाता है। अवसादन में, नीचे बैठ गई प्रिट (grit) या ठोस पदार्थ प्राथमिक आपंक या प्राइमरी स्लज कहलाते हैं। सीवेज का ऊपर का द्रव भाग बहि:स्राव या इफ्ल्यु एंट (effluent) बनाता है। इसी बहिःस्राव (effluent) को प्राथमिक नि:सादन टंकी (Settling tank) से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।
द्वितीयक उपचार अथवा जैविक उपचार (Secondary Treatment or Biological Treatment)
प्राथमिक उपचार के बाद द्वितीयक उपचार के लिए बहि:स्राव (effluent) को वायवीय (aerobic) व अवायवीय (anaerobic) तरीकों से उपचारित किया जाता है। इन दोनों प्रकार की क्रियाओं से सीवेज के प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है। पहले चरण में प्राथमिक बहि:स्राव को बड़ी-बड़ी वातन या वागु संचालन, एरेशन टंकियों (aeration tank) में लाया जाता है। इन टंकियों में तेजी से दबाव के साथ वायु पम्प करने तथा बहि:स्राव को यांत्रिक रूप से हिलाने (mechanical agitation) की व्यवस्था होती है। इसका कार्य, जीवाणुओं को अच्छा वायवीय पर्यावरण (aerobic environment) उपलब्ध कराना होता है। इसके कारण लाभकारी वायवीय सूक्ष्मजीवों (aerobic microbes) की वृद्धि ऊर्णक या फ्लॉक्स (flocs) के रूप में होने लगती है।
ऊर्णक या फ्लॉक्स कवक तंतुओं (fungal filaments) के साथ सम्बद्ध जीवाणुओं के समूह हैं, जो एक जाली जैसी (mesh like) रचना बना देते हैं। अर्थात फंगस के तंतुओं में उलझे जीवाणुओं के झुंड से बनी जाली फ्लॉक्स कहलाती है। अपनी वृद्धि के समय यह सूक्ष्मजीव प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित अधिकांश कार्बनिक पदार्थ को अपघटित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रक्रिया से सीवेज शुद्ध होता जाता है। इस प्रक्रिया के कारण बहि:स्राव की जैव रासायनिक आक्सीजन माँग . या बायोकैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD) कम हो जाती है।
बायो कैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा जो एक लिटर जल में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों के आक्सीकरण के लिए आवश्यक होती है BOD कहलाती है। परिभाषा से स्पष्ट है कि अधिक प्रदूषित जल (जिसमें अधिक कार्बनिक पदार्थ हो) की BOD अधिक होगी अर्थात पूरे कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होगी। कम प्रदूषित या अप्रदूषित जल की BOD कम होती है। BOD परीक्षण किसी जल प्रदर्श में सूक्ष्मजीवों द्वारा आक्सीजन के ग्रहण (uptake) की दर का मापन करता है। प्राथमिक बहिःस्राव को तब तक उपचारित किया जाता है जब तक कि उसकी BOD कम नहीं हो जाती।
सीवेज जल की बी ओ डी के पर्याप्त मात्रा में घट जाने के बाद बहिःस्राव को एक अन्य निःसादन या सैटलिंग (Settling) टैंक में भेजा जाता है। इस सैटलिंग टैंक में फ्लॉक्स (कवक जाल - जीवाणु झंड) कुछ भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं या अवसादित हो जाते हैं। इस अवसाद (sediment) को सक्रियत आपंक (activated sludge) कहा जाता है। इसका एक छोटा - सा भाग प्रथम पद वाले एरेशन टैंक (aeration tank) में भेज दिया जाता है जहाँ यह आरम्भक (starter), निवेशद्रव्य या इनोकुलम (inoculum) की भाँति कार्य करता है। इन जीवाणुओं की वृद्धि ही कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए उत्तरदायी होती है। सक्रियत आपंक (activated sludge) का शेष अर्थात मुख्य भाग बड़े - बड़े टैंकों में बलपूर्वक भेज दिया जाता है।
इन टैकों को अवायवीय आपंक पाचक या एनएरोबिक स्लज डाइजैस्टर (anaerobic sludge digester) कहते हैं। यहाँ द्वितीयक उपचार के द्वितीय पद के जीवाणु अर्थात अवायवीय जीवाणुओं (anaerobic bacteria) की भूमिका प्रारम्भ होती है। इस टैंक में आक्सीजन नहीं होती तथा यहाँ के जीवाणु अवायवीय वृद्धि करते हैं। वृद्धि के लिए वह स्लज के पलॉक्स (कवक तंतु - जीवाणु झुंड) का पाचन (digestion) करते हैं। इस पाचन के समय अवायवीय जीवाणु गैसों का एक मिश्रण उत्पादित करते हैं, जिनमें मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं। बायोगैस को ज्वलनशील (inflammable) होने के कारण ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। द्वितीयक उपचार से निकले बहिस्राव को सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे नदियों में छोड़ दिया जाता है। वैकल्पिक रूप से इसका प्रयोग खेतों की सिंचाई (irrigation) में किया जा सकता है। कभी - कभी इस जल को कुछ रसायनों जैसे क्लोरीन से उपचारित किया जाता है ताकि बचे खुचे रोगजनक सूक्ष्मजीव मर जायें। इस भाग को तृतीयक उपचार या रासायनिक उपचार (Tertiary treatment or chemical treatment) कहा जाता है।
इतनी बड़ी पृथ्वी के प्रत्येक नगर, शहर से प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लाखों गैलन व्यर्थ जल/अपशिष्ट जल अर्थात सीवेज के उपचारण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका इनका महत्व स्वत: स्पष्ट कर देती है। यह तकनीक पिछली एक सदी से भी अधिक समय से विश्व के लगभग प्रत्येक भाग में अपनाई जा रही है। आज के दिन तक मनुष्य के द्वारा निर्मित और कोई भी प्रौद्योगिकी सीवेज सूक्ष्मजीवी उपचारण के आगे बौनी रहती है। विश्व की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पन्न सीवेज की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। लेकिन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ रही। बड़े - बड़े शहरों में जहाँ अनेक ऐसे संयंत्र होने चाहिए। वहाँ मात्र एक ऐसा संयंत्र कार्य कर रहा है। अनेक शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगे तो हैं लेकिन वह कार्यशील नहीं हैं। फलस्वरूप सीवेज का पानी बिना उपचार के सीधे ही नदियों में विसर्जित (discharge) कर दिया जाता है। यह अनेक जल जन्य रोग (water borne diseases) जैसे टायफाइड, हैजा, पेचिश, पोलियो आदि का कारण बनता है।
प्रश्न 4.
वैक्यूलोवाइरस की उस जीन का नाम लिखिए जो एक रोगजनक जो इसे अति उत्तम जैव - नियंत्रक बनाते हैं का उल्लेख करते हुए औचित्य सिद्ध कीजिष्ट।
उत्तर:
जैवनियंत्रण कारक के रूप में सूक्ष्मजीव (Microbes as Biocontrol Agents)
पादप रोगों तथा पीड़कों (pests) के नियंत्रण के लिए जैविक विधियों का प्रयोग ही जैव नियंत्रण (bio control) कहलाता है। आज के समय में इन समस्याओं से निजात पाने के लिए रसायनों (Chemicals) का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। यह रसायन हैं कीटनाशी (insecticides) व पीड़कनाशी (pesticides)। इन रसायनों के अविवेकपूर्ण व अंधाधुंध प्रयोग से अनेक दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए हैं-
रासायनिक कीटनाशियों/पीड़कनाशियों के दुष्प्रभाव (Ill effects of chemical Insecticides/Pesticides)
इनके दुष्प्रभावों को देखते हुए जैव नियंत्रण विधियों के अधिकाधिक प्रयोग व जैविक खेती (organic farming) की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। पर्यावरण व स्वयं मनुष्य को होने वाले नुकसान को दृष्टिगत रखते हुए इस पर अधिक बल दिये जाने की आवश्यकता है। जैविक नियंत्रण, रसायनों के प्रयोग के बजाय प्राकृतिक परभक्षण (natural predation) पर निर्भर करता है। जैविक खेती करने वाले कृषक की मान्यता है कि जैव विविधता स्वास्थ्य की पोषक होती है। किसी भी तंत्र में जितनी अधिक विविधता होती है वह उतना ही अधिक वहनीय (sustainable) होता है। जैविक खेती में कृषक इस बात का प्रयास करता है कि पीड़क (pest) माने जाने वाले कीटों का पूर्णत: उन्मूलन (eradication) न हो।
वह संतुलित व नियंत्रणीय स्तर पर बने रहें। जैविक खेती का मत है कि जीव जगत के जटिल ताने बाने (web of life) में 'पीड़क' मान लिए गये कीट का पूर्ण उन्मूलन अकारण ही नहीं अवांछनीय भी होता है, क्योंकि इनकी अनुपस्थिति में इनके लाभकारी परभक्षी (predators) व परजीवियों (parasites), जो अपने पोषण के लिए इन पर निर्भर करते हैं, का अस्तित्व खतरे में हो जाता है। अतः जैव नियंत्रण विधियों के प्रयोग से हमारी रासायनिक पौड़कनाशियों पर निर्भरता बहुत कम हो जाती है। जैविक फार्मिंग पद्धति का एक महत्वपूर्ण भाग खेत में पाये जाने वाले विभिन्न जीवनरूपों (सभी प्रकार के छोटे बड़े जीवधारियों) से परिचित होना व उनके बारे में जानकारी जुटाना है। परभक्षी व पीड़क, उनके जीवन चक्र, आहार ग्रहण विधियाँ तथा उन आवासों (habitats) की जानकारी जिनको वह वरीयता देते है, सभी का ज्ञान इस हेतु आवश्यक होता है। इस सबके अध्ययन से जैव नियंत्रण के उचित उपायों के विकास में मदद मिलती है।
जैवनियंत्रण विधियों के उदाहरण (Examples of Biocontrol methods)
1. हानिकारक कीट पीड़कों (insect pest) या उनके लार्वाओं (larvae) को उनके प्राकृतिक परभक्षी (natural predators) की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, लेडी बर्ड (Ladybird) नामक परभक्षी कीट जिस पर लाल व काले निशान होते हैं का प्रयोग एफिड (aphids) के नियंत्रण में किया जा सकता है। इसी प्रकार ड्रेगन फ्लाई (Dragon flies) का प्रयोग मच्छरों के नियंत्रण में होता है।
2. बेसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis): यह सूक्ष्मजीवीय जैवनियंत्रण (microbial biocontrol) का एक उत्तम उदाहरण है। यह जीवाणु छोटे-छोटे पैकेटों में बाजार में उपलब्ध है। इन पैकेटों में जीवाणु के शुष्क बीजाणु (dried spores) होते हैं जिनको पानी में मिलाकर भेद्य फसलों (vulnerable crops) जैसे फलों के वृक्ष, बेसिका आदि पर छिड़का जाता है। यहाँ यह कीटों के लार्वा द्वारा खा लिए जाते हैं। लार्वा की आहारनाल में विष (toxin) मुक्त होता है व लार्वा मर जाते हैं। तितली जैसे दिखने वाले कीटों के लार्वाओं को मारने में इसका प्रयोग होता है। इससे लार्वाओं की मृत्यु हो जाती है लेकिन अन्य कीट अप्रभावित रहते हैं। आनुवंशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति के कारण वैज्ञानिक बैसीलस थरिनजिएन्सिस विष (प्रोटीन) को कोड करने वाली जीन को पौधों में स्थानान्तरित करने में सफल हो गये है। ऐसे पौधे कीट पौड़क के आक्रमण के लिए प्रतिरोधी (resistant) होते हैं। बीटी कपास (BT Cotton) इसी प्रकार का पौधा है। अन्य अनेक फसल भी इसी सिद्धान्त पर विकसित की गई हैं।
कवक आधारित जैवनियंत्रण (Fungi based Blocontrol)
पादप रोगों के उपचार हेतु विकसित की जा रही जैव नियंत्रण की एक विधि कवक ट्राइकोडमा (Trichoderma) पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा प्रजाति जड़ों के पर्यावरण में पाई जाने वाली एक मुक्तजीवी (free living) फंगस है। यह पादपों के अनेक रोगजनकों (plant pathogens) के लिए प्रभावकारी जैव नियंत्रक है।
बैक्यूलोवाइरस (Baculoviruses)
बैक्यूलोवाइरस, कीटों व अन्य आर्थोपोडों पर आक्रमणकारी रोगजनक होते हैं। जैव नियंत्रण में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश वैक्यूलोवाइरस वंश न्यूक्लिओपॉलीहेड्रोवाइरस (Genus Nucleopolyhedrovirus) के होते हैं। विषाणुओं को जैव नियंत्रण में प्रयोग करने के निम्न लाभ हैं-
जैव नियंत्रण के लाभ (Advantages of Biocontrol)
प्रश्न 5.
जब दूध में समुचित आरंभक/निवेश द्रव्य मिलाया जाता है तो वध में होने वाले परिवर्तनों की व्याख्या कीजिए। बनने वाला अन्तिम उत्पाद मानव स्वास्थ्य के लिए किस प्रकार उपयोगी सिद्ध होता है?
उत्तर:
दही (Curd)
सूक्ष्मजीवी क्रिया का सर्वाधिक सामान्य उदाहरण जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है, दूध से दही का उत्पादन है। दूध में कुछ जीवाणु वृद्धि करते हैं, जिन्हें लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (Lactic Acid Bacteria - LAB) कहा जाता है। इनमें प्रमुख हैं लैक्टोबैसीलस (Lactobacillus)। स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophilus) दूध में पाया जाने वाला एक अन्य जीवाणु है। गुनगुने (leukwarm) दूध में जब निवेश द्रव्य, आरम्भक या इनोक्युलम (starter or inoculum) के रूप में दही की थोड़ी - सी मात्रा डाली जाती है, तब दही में उपस्थित लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया को अपनी वृद्धि के लिए उचित परिस्थितियाँ मिल जाती है। ये हैं - दूध की शर्करा के रूप में पर्याप्त पोषक पदार्थ (nutrient), पानी और उचित ताप (दूध के गुनगुना होने अर्थात 37°C ताप का होने के कारण)। जीवाणु की वृद्धि के समय जीवाणु दूध की शर्करा लैक्टोस (lactose) को लैक्टिक एसिड (lactic acid) में बदल देते हैं। यह अम्ल ही दूध के स्कंदन (coagulation) के लिए उत्तरदायी होता है। इस क्रिया में दुग्ध प्रोटीन कैसीन का आंशिक पाचन (partial digestion) भी हो जाता है। इस क्रिया में 6 - 8 घण्टे लगते हैं। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया दूध को दही में तो परिवर्तित करते ही हैं साथ में यह मनुष्य के लिए निम्न प्रकार से लाभकारी होते हैं-
दही से मक्खन निकाल लेने पर बचे भाग में पानी मिलाने से मठा या छाछ (Butter milk) बनता है। छाछ को भी इसमें उपस्थित अरबों लैक्टिक एसिड जीवाणुओं (LAB), नगण्य वसा, पर्याप्त कैल्शियम व अन्य खनिजों के कारण अत्याधिक पोषक व स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
प्रोबॉयोटिक्स (Probiotics): रोगजनकों से सुरक्षा देने वाले सूक्ष्मजीव व उनके उत्पाद प्रोबॉयोटिक्स कहलाते हैं।
प्रश्न 6.
वाहित मल के द्वितीयक उपचार के दौरान उत्पन्न ऊर्णिक क्या है?
अथवा
किन्हीं ऐसे दो स्थानों के नाम लिखिष्ट जहाँ मेथेनोजेन मिल सकते है।
उत्तर:
ऊर्णक (Flocs) कवक तन्तुओं के साथ सम्बद्ध जीवाणुओं के समूह है। अथवा सीवेज ट्रीटमेण्ट के अवायवीय आपंक (anaerobic sludge) तथा शाकाहारियों के आमाशय के मध्य भाग स्यूमेन (Rumen) में।
प्रश्न 7.
जीवाणुओं के उस वर्ग का नाम लिखिए जो दूध को वही में परिवर्तित कर देते हैं। इस प्रक्रिया के प्रक्रम की व्याख्या कीजिए। इस प्रक्रम के जीवाणुओं की एक अन्य लाभकारी प्रक्रिया लिखिए।
उत्तर:
दही (Curd)
सूक्ष्मजीवी क्रिया का सर्वाधिक सामान्य उदाहरण जिससे प्रत्येक व्यक्ति परिचित है, दूध से दही का उत्पादन है। दूध में कुछ जीवाणु वृद्धि करते हैं, जिन्हें लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (Lactic Acid Bacteria - LAB) कहा जाता है। इनमें प्रमुख हैं लैक्टोबैसीलस (Lactobacillus)। स्ट्रेप्टोकोकस थर्मोफिलस (Streptococcus thermophilus) दूध में पाया जाने वाला एक अन्य जीवाणु है। गुनगुने (leukwarm) दूध में जब निवेश द्रव्य, आरम्भक या इनोक्युलम (starter or inoculum) के रूप में दही की थोड़ी - सी मात्रा डाली जाती है, तब दही में उपस्थित लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया को अपनी वृद्धि के लिए उचित परिस्थितियाँ मिल जाती है। ये हैं - दूध की शर्करा के रूप में पर्याप्त पोषक पदार्थ (nutrient), पानी और उचित ताप (दूध के गुनगुना होने अर्थात 37°C ताप का होने के कारण)। जीवाणु की वृद्धि के समय जीवाणु दूध की शर्करा लैक्टोस (lactose) को लैक्टिक एसिड (lactic acid) में बदल देते हैं। यह अम्ल ही दूध के स्कंदन (coagulation) के लिए उत्तरदायी होता है। इस क्रिया में दुग्ध प्रोटीन कैसीन का आंशिक पाचन (partial digestion) भी हो जाता है। इस क्रिया में 6 - 8 घण्टे लगते हैं। लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया दूध को दही में तो परिवर्तित करते ही हैं साथ में यह मनुष्य के लिए निम्न प्रकार से लाभकारी होते हैं-
दही से मक्खन निकाल लेने पर बचे भाग में पानी मिलाने से मठा या छाछ (Butter milk) बनता है। छाछ को भी इसमें उपस्थित अरबों लैक्टिक एसिड जीवाणुओं (LAB), नगण्य वसा, पर्याप्त कैल्शियम व अन्य खनिजों के कारण अत्याधिक पोषक व स्वास्थ्यवर्धक माना जाता है।
प्रोबॉयोटिक्स (Probiotics): रोगजनकों से सुरक्षा देने वाले सूक्ष्मजीव व उनके उत्पाद प्रोबॉयोटिक्स कहलाते हैं।
प्रश्न 8.
(a) जैविक किसान रोगों एवं पीड़कों के नियंत्रण के लिए रसायनों की अपेक्षा जैव नियंत्रण को वरीयता देते हैं। औचित्य सिद्ध कीजिए।
(b) जैव नियंत्रक के रूप में उपयोग किए जाने वाले जीवाणु, कवक एवं कीट का एक - एक उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
जैवनियंत्रण कारक के रूप में सूक्ष्मजीव (Microbes as Biocontrol Agents)
पादप रोगों तथा पीड़कों (pests) के नियंत्रण के लिए जैविक विधियों का प्रयोग ही जैव नियंत्रण (bio control) कहलाता है। आज के समय में इन समस्याओं से निजात पाने के लिए रसायनों (Chemicals) का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। यह रसायन हैं कीटनाशी (insecticides) व पीड़कनाशी (pesticides)। इन रसायनों के अविवेकपूर्ण व अंधाधुंध प्रयोग से अनेक दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए हैं-
रासायनिक कीटनाशियों/पीड़कनाशियों के दुष्प्रभाव (Ill effects of chemical Insecticides/Pesticides)
इनके दुष्प्रभावों को देखते हुए जैव नियंत्रण विधियों के अधिकाधिक प्रयोग व जैविक खेती (organic farming) की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। पर्यावरण व स्वयं मनुष्य को होने वाले नुकसान को दृष्टिगत रखते हुए इस पर अधिक बल दिये जाने की आवश्यकता है। जैविक नियंत्रण, रसायनों के प्रयोग के बजाय प्राकृतिक परभक्षण (natural predation) पर निर्भर करता है। जैविक खेती करने वाले कृषक की मान्यता है कि जैव विविधता स्वास्थ्य की पोषक होती है। किसी भी तंत्र में जितनी अधिक विविधता होती है वह उतना ही अधिक वहनीय (sustainable) होता है। जैविक खेती में कृषक इस बात का प्रयास करता है कि पीड़क (pest) माने जाने वाले कीटों का पूर्णत: उन्मूलन (eradication) न हो।
वह संतुलित व नियंत्रणीय स्तर पर बने रहें। जैविक खेती का मत है कि जीव जगत के जटिल ताने बाने (web of life) में 'पीड़क' मान लिए गये कीट का पूर्ण उन्मूलन अकारण ही नहीं अवांछनीय भी होता है, क्योंकि इनकी अनुपस्थिति में इनके लाभकारी परभक्षी (predators) व परजीवियों (parasites), जो अपने पोषण के लिए इन पर निर्भर करते हैं, का अस्तित्व खतरे में हो जाता है। अतः जैव नियंत्रण विधियों के प्रयोग से हमारी रासायनिक पौड़कनाशियों पर निर्भरता बहुत कम हो जाती है। जैविक फार्मिंग पद्धति का एक महत्वपूर्ण भाग खेत में पाये जाने वाले विभिन्न जीवनरूपों (सभी प्रकार के छोटे बड़े जीवधारियों) से परिचित होना व उनके बारे में जानकारी जुटाना है। परभक्षी व पीड़क, उनके जीवन चक्र, आहार ग्रहण विधियाँ तथा उन आवासों (habitats) की जानकारी जिनको वह वरीयता देते है, सभी का ज्ञान इस हेतु आवश्यक होता है। इस सबके अध्ययन से जैव नियंत्रण के उचित उपायों के विकास में मदद मिलती है।
जैवनियंत्रण विधियों के उदाहरण (Examples of Biocontrol methods)
1. हानिकारक कीट पीड़कों (insect pest) या उनके लार्वाओं (larvae) को उनके प्राकृतिक परभक्षी (natural predators) की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, लेडी बर्ड (Ladybird) नामक परभक्षी कीट जिस पर लाल व काले निशान होते हैं का प्रयोग एफिड (aphids) के नियंत्रण में किया जा सकता है। इसी प्रकार ड्रेगन फ्लाई (Dragon flies) का प्रयोग मच्छरों के नियंत्रण में होता है।
2. बेसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis): यह सूक्ष्मजीवीय जैवनियंत्रण (microbial biocontrol) का एक उत्तम उदाहरण है। यह जीवाणु छोटे-छोटे पैकेटों में बाजार में उपलब्ध है। इन पैकेटों में जीवाणु के शुष्क बीजाणु (dried spores) होते हैं जिनको पानी में मिलाकर भेद्य फसलों (vulnerable crops) जैसे फलों के वृक्ष, बेसिका आदि पर छिड़का जाता है। यहाँ यह कीटों के लार्वा द्वारा खा लिए जाते हैं। लार्वा की आहारनाल में विष (toxin) मुक्त होता है व लार्वा मर जाते हैं। तितली जैसे दिखने वाले कीटों के लार्वाओं को मारने में इसका प्रयोग होता है। इससे लार्वाओं की मृत्यु हो जाती है लेकिन अन्य कीट अप्रभावित रहते हैं। आनुवंशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति के कारण वैज्ञानिक बैसीलस थरिनजिएन्सिस विष (प्रोटीन) को कोड करने वाली जीन को पौधों में स्थानान्तरित करने में सफल हो गये है। ऐसे पौधे कीट पौड़क के आक्रमण के लिए प्रतिरोधी (resistant) होते हैं। बीटी कपास (BT Cotton) इसी प्रकार का पौधा है। अन्य अनेक फसल भी इसी सिद्धान्त पर विकसित की गई हैं।
कवक आधारित जैवनियंत्रण (Fungi based Blocontrol)
पादप रोगों के उपचार हेतु विकसित की जा रही जैव नियंत्रण की एक विधि कवक ट्राइकोडमा (Trichoderma) पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा प्रजाति जड़ों के पर्यावरण में पाई जाने वाली एक मुक्तजीवी (free living) फंगस है। यह पादपों के अनेक रोगजनकों (plant pathogens) के लिए प्रभावकारी जैव नियंत्रक है।
बैक्यूलोवाइरस (Baculoviruses)
बैक्यूलोवाइरस, कीटों व अन्य आर्थोपोडों पर आक्रमणकारी रोगजनक होते हैं। जैव नियंत्रण में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश वैक्यूलोवाइरस वंश न्यूक्लिओपॉलीहेड्रोवाइरस (Genus Nucleopolyhedrovirus) के होते हैं। विषाणुओं को जैव नियंत्रण में प्रयोग करने के निम्न लाभ हैं-
जैव नियंत्रण के लाभ (Advantages of Biocontrol)
प्रश्न 9.
वाहितमल के द्वितीयक उपचार को जैविक उपचार भी कहते हैं। इस कथन की पुष्टि कीजिष्ट तथा प्रक्रिया की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
वाहितमल उपचार में सूक्ष्मजीव (Microbes in Sewage Treatment)
वाहितमल (Sewage): कस्बों, नगरों व शहरों में प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल (waste water) उत्पादित होता है। इसमें जल के साथ - साथ अनेक प्रकार के ठोस भी होते है। इस अपशिष्ट जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मल मूत्र (human excreta) होता है। नगर के इसी व्यर्थ या अपशिष्ट जल को वाहित मल या सीवेज (sewage) कहा जाता है।
सीवेज में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ (organic matter) व सूक्ष्मजीव होते हैं। अनेक रोगजनक सूक्ष्मजीवों (pathogens) का यह स्रोत होता है। प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में बनने वाले इस सीवेज का निस्तारण (disposal) किसी भी विभाग/संगठन के लिए एक चुनौतीभरा कार्य है। इसको प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे नदियों में नहीं डाला जा सकता; क्योंकि यह प्रदूषण का एक बहुत बड़ा स्रोत है। दुर्भाग्यवश, अनियंत्रित और बेतरतीब हुए शहरीकरण के कारण ऐसा भी किया जा रहा है।
सीवेज प्रदूषण के कारण देश की बड़ी - बड़ी व प्रसिद्ध नदियाँ दम तोड़ने के कगार पर है। इस समस्या पर नजर डालने से वाहित मल के उपचार का महत्त्व (significance of the treatment of sewage) अपने आप स्पष्ट हो जाता है। अत: नदियों या अन्य प्राकृतिक स्रोतों में विसर्जन (discharge) से पहले वाहित मल का उपचार वाहितमल ट्रीटमेंट संयंत्र (sewage treatment plant) में किया जाता है ताकि यह प्रदूषण मुक्त हो जाये। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में व्यर्थ जल का उपचार इस जल में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले परपोषी सूक्ष्मजीव (hetero trophic microbes) की मदद से किया जाता है। यह उपचार दो चरणों में पूरा होता है - प्राथमिक उपचार या भौतिक उपचार तथा द्वितीयक उपचार या जैविक उपचार।
प्राथमिक उपचार (Primary Treatment)
प्राथमिक उपचार में मौलिक रूप से छानने (filtration) व अवसादन (Sedimentation) जैसी भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा सीवेज में उपस्थित छोटे व बड़े कणिकीय पदार्थ अलग कर लिए जाते हैं। सीवेज में अनेक प्रकार की घुलित व अघुलित अशुद्धियाँ, कंकड़, पॉलीथिन छोटे - छोटे ढक्कन, धातु के व प्लास्टिक के टुकड़े आदि मिले रहते हैं। इन सबको सीवेज से अलग करने का कार्य कई चरणों में होता है। प्रारम्भ में, सौवेज को क्रमिक रूप से छानकर - इसमें से तैरने वाली अशुद्धियाँ, जैसे- पॉलीथिन, कूड़ा - करकट आदि को हटा दिया जाता है। सीवेज में उपस्थित धूल, रेत - मिट्टी व छोटे - छोटे कंकड़ पत्थर को अलग करने के लिए इसका अवसादन (sedimentation) किया जाता है। अवसादन में, नीचे बैठ गई प्रिट (grit) या ठोस पदार्थ प्राथमिक आपंक या प्राइमरी स्लज कहलाते हैं। सीवेज का ऊपर का द्रव भाग बहि:स्राव या इफ्ल्यु एंट (effluent) बनाता है। इसी बहिःस्राव (effluent) को प्राथमिक नि:सादन टंकी (Settling tank) से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।
द्वितीयक उपचार अथवा जैविक उपचार (Secondary Treatment or Biological Treatment)
प्राथमिक उपचार के बाद द्वितीयक उपचार के लिए बहि:स्राव (effluent) को वायवीय (aerobic) व अवायवीय (anaerobic) तरीकों से उपचारित किया जाता है। इन दोनों प्रकार की क्रियाओं से सीवेज के प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है। पहले चरण में प्राथमिक बहि:स्राव को बड़ी-बड़ी वातन या वागु संचालन, एरेशन टंकियों (aeration tank) में लाया जाता है। इन टंकियों में तेजी से दबाव के साथ वायु पम्प करने तथा बहि:स्राव को यांत्रिक रूप से हिलाने (mechanical agitation) की व्यवस्था होती है। इसका कार्य, जीवाणुओं को अच्छा वायवीय पर्यावरण (aerobic environment) उपलब्ध कराना होता है। इसके कारण लाभकारी वायवीय सूक्ष्मजीवों (aerobic microbes) की वृद्धि ऊर्णक या फ्लॉक्स (flocs) के रूप में होने लगती है। ऊर्णक या फ्लॉक्स कवक तंतुओं (fungal filaments) के साथ सम्बद्ध जीवाणुओं के समूह हैं, जो एक जाली जैसी (mesh like) रचना बना देते हैं। अर्थात फंगस के तंतुओं में उलझे जीवाणुओं के झुंड से बनी जाली फ्लॉक्स कहलाती है। अपनी वृद्धि के समय यह सूक्ष्मजीव प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित अधिकांश कार्बनिक पदार्थ को अपघटित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रक्रिया से सीवेज शुद्ध होता जाता है। इस प्रक्रिया के कारण बहि:स्राव की जैव रासायनिक आक्सीजन माँग . या बायोकैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD) कम हो जाती है।
बायो कैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा जो एक लिटर जल में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों के आक्सीकरण के लिए आवश्यक होती है BOD कहलाती है। परिभाषा से स्पष्ट है कि अधिक प्रदूषित जल (जिसमें अधिक कार्बनिक पदार्थ हो) की BOD अधिक होगी अर्थात पूरे कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होगी। कम प्रदूषित या अप्रदूषित जल की BOD कम होती है। BOD परीक्षण किसी जल प्रदर्श में सूक्ष्मजीवों द्वारा आक्सीजन के ग्रहण (uptake) की दर का मापन करता है। प्राथमिक बहिःस्राव को तब तक उपचारित किया जाता है जब तक कि उसकी BOD कम नहीं हो जाती।
सीवेज जल की बी ओ डी के पर्याप्त मात्रा में घट जाने के बाद बहिःस्राव को एक अन्य निःसादन या सैटलिंग (Settling) टैंक में भेजा जाता है। इस सैटलिंग टैंक में फ्लॉक्स (कवक जाल - जीवाणु झंड) कुछ भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं या अवसादित हो जाते हैं। इस अवसाद (sediment) को सक्रियत आपंक (activated sludge) कहा जाता है। इसका एक छोटा - सा भाग प्रथम पद वाले एरेशन टैंक (aeration tank) में भेज दिया जाता है जहाँ यह आरम्भक (starter), निवेशद्रव्य या इनोकुलम (inoculum) की भाँति कार्य करता है। इन जीवाणुओं की वृद्धि ही कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए उत्तरदायी होती है। सक्रियत आपंक (activated sludge) का शेष अर्थात मुख्य भाग बड़े - बड़े टैंकों में बलपूर्वक भेज दिया जाता है।
इन टैकों को अवायवीय आपंक पाचक या एनएरोबिक स्लज डाइजैस्टर (anaerobic sludge digester) कहते हैं। यहाँ द्वितीयक उपचार के द्वितीय पद के जीवाणु अर्थात अवायवीय जीवाणुओं (anaerobic bacteria) की भूमिका प्रारम्भ होती है। इस टैंक में आक्सीजन नहीं होती तथा यहाँ के जीवाणु अवायवीय वृद्धि करते हैं। वृद्धि के लिए वह स्लज के पलॉक्स (कवक तंतु - जीवाणु झुंड) का पाचन (digestion) करते हैं। इस पाचन के समय अवायवीय जीवाणु गैसों का एक मिश्रण उत्पादित करते हैं, जिनमें मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं। बायोगैस को ज्वलनशील (inflammable) होने के कारण ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। द्वितीयक उपचार से निकले बहिस्राव को सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे नदियों में छोड़ दिया जाता है। वैकल्पिक रूप से इसका प्रयोग खेतों की सिंचाई (irrigation) में किया जा सकता है। कभी - कभी इस जल को कुछ रसायनों जैसे क्लोरीन से उपचारित किया जाता है ताकि बचे खुचे रोगजनक सूक्ष्मजीव मर जायें। इस भाग को तृतीयक उपचार या रासायनिक उपचार (Tertiary treatment or chemical treatment) कहा जाता है।
इतनी बड़ी पृथ्वी के प्रत्येक नगर, शहर से प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लाखों गैलन व्यर्थ जल/अपशिष्ट जल अर्थात सीवेज के उपचारण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका इनका महत्व स्वत: स्पष्ट कर देती है। यह तकनीक पिछली एक सदी से भी अधिक समय से विश्व के लगभग प्रत्येक भाग में अपनाई जा रही है। आज के दिन तक मनुष्य के द्वारा निर्मित और कोई भी प्रौद्योगिकी सीवेज सूक्ष्मजीवी उपचारण के आगे बौनी रहती है। विश्व की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पन्न सीवेज की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। लेकिन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ रही। बड़े - बड़े शहरों में जहाँ अनेक ऐसे संयंत्र होने चाहिए। वहाँ मात्र एक ऐसा संयंत्र कार्य कर रहा है। अनेक शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगे तो हैं लेकिन वह कार्यशील नहीं हैं। फलस्वरूप सीवेज का पानी बिना उपचार के सीधे ही नदियों में विसर्जित (discharge) कर दिया जाता है। यह अनेक जल जन्य रोग (water borne diseases) जैसे टायफाइड, हैजा, पेचिश, पोलियो आदि का कारण बनता है।
प्रश्न 10.
औद्योगिक उत्पार्यो में शूक्ष्म जीवों की भूमिका किण्वित पेय पदार्थ के संदर्भ में समझाइट।
उत्तर:
किण्वित पेय प्रमुखतः दो प्रकार के होते हैं - आसवित (Distilled) व बिना आसवन वाले (Undistilled)। दोनों ही प्रकार के पेयों के उत्पादन में यीस्ट सैकेरोमाइसिस की कुछ प्रजातियों का प्रयोग किया जाता है। प्रमुख प्रजाति है - सैकेरोमाइसिस सेरेविसी (Saccharomyces cerevisae)।
बीयर व वाइन इस यीस्ट के प्रयोग से बिना आसवन के तैयार होती है। व्हिस्की, रम, बांडी आदि आसवित ऐल्कोहॉलिक पेय हैं। इनका प्रकार इनके निर्माण में प्रयोग किये जा रहे आधारी पदार्थ (Substrate) पर निर्भर करता है। सूक्ष्म जीव शर्करा के अवायवीय श्वसन से इथाइल ऐल्कोहॉल (Ethyl Alcohol) का निर्माण करते हैं।
प्रश्न 11.
लेग्यूमिनस पादप की जड़ों पर स्थित ग्रन्थियों को नष्ट कर दिया जाय तो पावप पर क्या प्रभाव पड़ेगा सकारण समझाइये।
उत्तर:
लेग्युमिनस पादप की जड़ों की प्रन्थियों में सहजीवी जीवाणु राइजोबियम (Symbiotic Bacterium Rhizobium) निवास करते हैं। यह नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया में वायुमण्डल की मुक्त नाइट्रोजन को स्थिर कर पौधे को प्रदान करते हैं। अतः पौधे की नाइट्रोजन की आवश्यकता की पूर्ति होती है। इन ग्रन्थियों के नष्ट होने पर पौधे को नाइट्रोजन अपेक्षित मात्रा में प्राप्त नहीं हो पायेगी जिससे उसकी वृद्धि व विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
प्रश्न 12.
जलाक्रांत खेत में नास्टॉक व एनाबीना जैसे शैवालों की आबादी अधिक हो जाने से खेत किस प्रकार प्रभावित होगा? सकारण समझाइए।
उत्तर:
नास्टॉक (Nostoc) व एनाबीना (Anabaena) नाइट्रोजन स्थिरीकरण करने वाले साएनोबैक्टीरिया है। जल से भरे खेत में इन स्वपोषी सूक्ष्म जीवों की वृद्धि से प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन के लवण उपलब्ध हो जायेंगे। यही नहीं, खेत में इनकी अधिकाधिक वृद्धि से कार्बनिक पदार्थों (organic matter) की मात्रा में भी वृद्धि होगी। अत: खेत अधिक उर्वरक (fertile) हो जायेगा।
प्रश्न 13.
उस वंश का नाम लिखिष्ट जिनके अन्तर्गत बैक्युलोवाइरस आते हैं। एकीकृत पीड़क प्रबन्धन में इनकी भूमिका समझाइए।
अथवा
जैविक नियंत्रक कारक के रूप में बैक्युलोवाइरस की भूमिका बताइष्ट। जैविक खेती में इनका महत्व बताइये।
अथवा
वंश न्यूक्लियोपोलीहेड्रोवाइरस द्वारा किसी पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्र में निभाई जाने वाले भूमिका का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
बैक्युलोवाइरस (Baculoviruses) का वह वंश (Genus) जो जैव नियंत्रकों के रूप में प्रयोग होता है न्यूक्लिओपॉली हेड्रोवाइरस (Nucleopolyhedrovirus) है। यह कीटों व आर्थोपोड्स में रोगकारी (pathogen) होते हैं। समाकलित पौड़क प्रबन्धन (Integrated Pest Management) में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है क्योंकि यह प्रजाति विशिष्ट (species specific) व संकीर्ण प्रभाव वाले (narrow spectrum) होते है। इनका अन्य किसी पौधे स्तनधारी, पक्षी, मछली या अलक्ष्य (nontarget) पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। अतः पारिस्थितिक रूप से संवेदनशीन क्षेत्र हेतु इनका प्रयोग उचित रहता है।
प्रश्न 14.
नीचे दिये गये सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पादित उत्पादों तथा उनके उपयोग लिखिए
(i) स्ट्रेप्टोकोकस
(ii) लैक्टोबेसीलस
(iii) सैकेरोमाइसिस सेरेविसी।
उत्तर:
सूक्ष्मजीव |
उत्पाद |
उपयोग |
1. स्ट्रेप्टोकोकस |
स्ट्रेप्टोकाइनेज |
जैव सक्रिय अणु है जिसका प्रयोग 'क्लॉट बस्टर' के रूप में, रक्तवाहिका में जमे रक्त के थक्के को हटाने में किया जाता है। |
2. लैक्टोजेसीलस |
लैक्टिक अम्ल |
दूध को दही में बदलता है। फ्लेवरिंग एजेन्ट, परिरक्षण में। |
3. सैकेरोमाइसिस सेरेविसी |
इथाइल ऐल्कोहॉल |
किण्वित पेय, जैसे - बीयर, वाइन व ब्रेड बनाने में (बेकर्स यीस्ट)। |
प्रश्न 15.
कुछ अणुओं को जैव सक्रिय अणु क्यों कहा जाता है? ऐसे अणुओं के दो उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
सूक्ष्मजीवों द्वारा उत्पन्न ऐसे अणु जो शरीर की कार्यिकी को प्रभावित करते हैं तथा मानव कल्याण के उद्देश्य से उपयोग किये जाते हैं जैव, सक्रिय अणु कहलाते हैं। उदाहरण- साइक्लोस्पोरिन ए (Cyclosporin A) तथा स्टैटिन (Statin)
प्रश्न 16.
प्राथमिक बहिःस्राव के द्वितीयक उपचार के दौरान बी. ओ. डी. में सार्थक कमी किस प्रकार आ जाती है?
उत्तर:
प्राथमिक बहि:स्राव को द्वितीयक उपचार में वातन या वायु संचारण (aeration) वाले टैंकों में प्रवाहित किया जाता है जिससे उसमें उपस्थित वायवीय जीवाणु कार्बनिक पदार्थों को अपघटित कर देते है। BOD की मात्रा जल में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा पर निर्भर करती है। कार्बनिक पदार्थों के कम होने पर BOD भी कम हो जाती है।
प्रश्न 17.
ताजे दूध में दही की कुछ मात्रा मिलाना दही के निर्माण में किस प्रकार सहायक है? इससे पोषण गुणवत्ता पर क्या प्रभाव पड़ता है?
उत्तर:
गुनगुने दूध में दही का मिलाना आरम्भक या प्रवेश द्रव्य (starter/inoculum) के रूप में कार्य करता है। दही में करोड़ों लैक्टोबेसीलस होते है जो वृद्धि को सही परिस्थितियाँ अर्थात् पोषक पदार्थ व उचित ताप मिलने पर वृद्धि करने लगते है। दूध में जीवाणु शर्करा लैक्टोज पर क्रिया कर इसे लैक्टिक अम्ल में बदल देते हैं। लैक्टिक अम्ल दुग्ध प्रोटीन का स्कंदन (coagulation) कर इसे ठोस रूप या दही के रूप में परिवर्तित कर देता है। यह दुग्ध प्रोटीन का आंशिक पाचन (partial digestion) भी कर देता है जिससे इसकी पोषण गुणवत्ता बढ़ जाती है। साथ ही यह विटामिन B12 का भी संश्लेषण करता है।
प्रश्न 18.
सक्रियकृत आपंक (स्लज) से बायोगैस का किस प्रकार उत्पादन किया जाता है? बायोगैस के घटकों की सूची बनाइए।
उत्तर:
सक्रियकृत आपंक (activated sludge) अवसादित हुए फ्लॉक्स का बना होता है। इसका एक प्रमुख भाग अवायवीय आपंक पाचक (Anaerobic sludge digester) में भेज दिया जाता है। यहाँ अवायवीय जीवाणु जिन्हें मेथेनोजेन (methanogens) कहते हैं फ्लॉक्स के जीवाणुओं व फंजाई को विघटित कर बायोगैस बनाते हैं। इसे पाइप की सहायता से प्राप्त कर ऊर्जा प्राप्ति के लिए प्रयोग किया बायोगैस के घटक है - मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाइऑक्साइड
प्रश्न 19.
स्ट्रेप्टोकोकस, मोनेस्कस और ट्राइकोडर्मा द्वारा उत्पन्न जैव सक्रिय अणुओं और उनके औषधीय महत्व को बताइए।
उत्तर:
सुक्ष्मजीव |
औषधि |
औषधीय महत्व |
स्ट्रेप्टोकोकस प्रजाति |
स्ट्रेप्टोकाइनेज (Streptokinase) |
क्लॉट बस्टर (Clot buster) रक्त वाहिकाओं में जमे रक्त के धक्के हटाता है। |
मोनस्कस परप्यूरियस |
स्टेटिन (Statin) |
रक्त में कोलेस्टेरॉल के स्तर को कम करता है। (कोलेस्टेरॉल संश्लेषण के स्पर्धात्मक संदमन द्वारा) |
ट्राइकोडर्मा पॉलीस्पोरम |
साइक्लोस्पोरिन A (Cyclosporin A) |
अंग प्रत्यारोपण के रोगियों में प्रतिरक्षा निरोधक (Immunosuppressive) के रूप |
प्रश्न 20.
मेथेनोजेन जीवाणु क्या होते हैं? यह बायोगैस उत्पादन में कैसे सहायता करते है?
उत्तर:
मेथेनोजेन: मेथेन उत्पन्न करने वाले जीवाणु मेथेनोजेन कहलाते है। यह अविकल्पी अवायवीय (obligate anaerobic) जीव है जो वायु (ऑक्सीजन) की अनुपस्थिति में वृद्धि करते हैं। मेथेनोबैक्टीरियम (Methanobacterium) एक प्रमुख मेथेनोजेन है। यह आर्किया (Archaea) प्रकार का सूक्ष्मजीव हैं। मेथेनोजेन, पौधों में बहुतायत से पाये जाने वाले पदार्थ सेल्यूलोस (cellulose) का विघटन करते हैं। बायोगैस बनाने में प्रमुखत: गोबर की स्लरी (dung slurry) व कृषि अपशिष्ट का प्रयोग किया जाता है। इनमें सेल्यूलोस प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। मवेशी जैसे शाकाहारी पशुओं के रयुमन में रहने वाले वह जीवाणु गोबर में भी उपस्थित होते हैं। इनकी उपापचयी क्रियाओं में मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाइ ऑक्साइड आदि गैसें बनती हैं जिन्हें बायोगैस कहा जाता है। अर्थात् मेथेन बायोगैस का प्रमुख घटक है जो मेथेनोजेन द्वारा बनता है। बायोगैस संयंत्र में डाइजैस्टर टंकी चूंकि ऊपर से ढकी होती है। अत: इसमें अवायवीय परिस्थितियाँ होती है जो बायोगैस उत्पादन हेतु आवश्यक हैं।
प्रश्न 21.
स्विस पनीर के अन्दर बड़े - बड़े सुराख पैदा करने वाले जीवाणु का नाम लिखिए। इन सुराखों का उत्पन्न होने का क्या कारण है?
उत्तर:
यह सुराख प्रोपियोनिबैक्टीरियम शारमेनाई (Propionibacterium sharmanii) द्वारा होते हैं। इन जीवाणुओं को उपापचयी क्रियाओं में मुक्त CO2 गैस स्विस पनीर में फंसी रह जाती है जो खाली स्थान का
रूप ले लेती है।
प्रश्न 22.
यदि वाहित मल से सूक्ष्म जीवों का निष्कासन कर दिया जाए तो इनके उपचार पर क्या प्रभाव पड़ेगा? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाहित मल के द्वितीयक उपचार में इसमें उपस्थित कार्यनिक पदार्थ का विघटन वायवीय सूक्ष्मजीवों द्वारा ही होता है। अगर वाहित मल से सूक्ष्मजीव निकाल दिये जायगें तो इसकी BOD कम नहीं होगी तथा इसमें कार्बनिक पदार्थ का स्तर भी वही बना रहेगा। इसका अवायवीय अपघटन भी नहीं होगा और न बायोगैस बनेगी।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बायोगैस संयंत्र का नामांकित चित्र बनाइए। बायोगैस प्रयोग के दो लाभ बताइए।
उत्तर:
बॉयोगैस के उत्पादन में सूक्ष्मजीवन (Microbes in Production of Biogas)
बायोगैस, गैसों का एक मिश्रण है जो सूक्ष्मजीवों द्वारा जैवभार (biomass) पर की गई क्रिया से उत्पन्न होता है। मेथेन (Methane) बॉयोगैस का एक प्रमुख घटक है। इसके अतिरिक्त बॉयोगैस में हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन डाइ ऑक्साइड आदि भी उपस्थित होती है। आप पढ़ चुके हैं. कि अपनी वृद्धि व उपापचय के दौरान सूक्ष्मजीव विभिन्न प्रकार के गैसीय उत्पाद उत्पन्न करते हैं। उत्पन्न हुई गैस का प्रकार सूक्ष्मजीव तथा आधारी पदार्थ (substrate) जिस पर सूक्ष्मजीव वृद्धि करता है की प्रकृति व प्रकार पर निर्भर करता है। मेथेनोजेन (Methanogens) बायोगैस के उत्पादन में जीवाणुओं का एक विशिष्ट प्रकार भाग लेता है जिसे मेथेनोजेन कहते है। यह अविकल्पी अवायवीय (obligate, anaerobic) जीवाणु है जो पौधों में बहुतायत से पाये जाने वाले पदार्थ सेल्युलोस (Cellulose) का विघटन (breakdowri) करते है। इस विघटन में कार्बन डाइ ऑक्साइड के साथ - साथ बड़ी मात्रा में मेथेन उत्पन्न होती है। सबसे सामान्य प्रकार का मेथेनोजेन जीवाणु मेथेनोबैक्टीरियम (Methanobacterium) है।
यह जीवाणु सीवेज ट्रीटमेंट के समय अवायवीय आपंक (anaerobic sludge) में सामान्य रूप से पाये जाते हैं। यही जीवाणु अनेक शाकाहारी जीवों जैसे गौवंश के आमाशय के प्रथम भाग रयूमेन (Rumen) में भी पाये जाते हैं। इन जीवाणुओं की मदद से ही शाकाहारी जीव उनके भोजन में बड़ी मात्रा में उपलब्ध सेल्यूलोस का पाचन करते हैं। इसी कारण से इन पशुओं के यूमन में सेल्यूलोस की बड़ी मात्रा पाई जाती है। मनुष्य की आहार नाल में इस प्रकार के सैल्यूलोस के विघटनकर्ता सूक्ष्मजीव या मेथेनोजेन्स नहीं पाये जाते अत: मनुष्य में सेल्यूलोस का पाचन भी नहीं होता। शाकाहारी पशुओं की आहारनाल में बड़ी संख्या में उपस्थित होने के कारण यह जीवाणु उनके मल (excreta), जिसे गोबर (dung) कहते हैं, में भी उपस्थित होते हैं। गोबर में बड़ी मात्रा में बिना पचा सैल्युलोस (cellulose) व अन्य कार्बनिक पदार्थ होते है। अत: सामान्यतः गोबर का बायोगैस बनाने में प्रयोग किया जाता है, इसीलिए इसे गोबर गैस (gobar gas) भी कहा जाता है।
बायोगैस संयंत्र (Biogas Plant)
बायोगैस संयंत्र में 10 - 15 फीट गहरा कंक्रीट (concrete) का बना एक टैंक होता है जिसमें अपशिष्ट (waste material) एकत्र किये जाते हैं। साथ ही इसमें गोबर को पतला करके डाला जाता है। यह पानी मिला गोबर, गोबर की स्लरी (slurry of dung) कहलाता है। टैक को पाचक या डाइजैस्टर (digester) कहते हैं। टैंक में भरी स्लरी के ऊपर एक तैरने वाला (floating) दक्कन रखा जाता है। टैंक में जीवाणुओं की क्रिया से जब गैस बनती है तो ढक्कन ऊपर उठ जाता है। गैस का आयतन कम होने पर यह स्वत: नीचे आ जाता है। इस सयंत्र के बीच में एक निकास (outlet) होता है, जो एक पाइप से जुड़ा रहता है। संयंत्र में बनी बायोगैस इसी निकास व पाइप से होकर बाहर आती है। इसी पाइप की सहायता से इसकी आपूर्ति आस - पास के घरों में की जाती है। प्रयोग की जा चुकी स्लरी को बाहर निकालने के लिए भी एक निकास द्वार (outlet) होता है। इस प्रयोग की जा चुकी स्लरी (used slurry) का प्रयोग उर्वरक (manure) के रूप में किया जाता है। नई स्लरी को टैंक में डालने के लिए एक आवक द्वार (inlet) भी इसमें बना रहता है। गाँवों में गोवर व कृषि अपशिष्ट बहुतायत से उपलब्ध होते हैं। अत: गाँवों में यह काफी सफल हुए हैं।
ऊपर वर्णित बायोगैस संयंत्र तैरने वाले ढक्कन प्रकार के होते हैं। देश में एक और प्रकार के बायोगैस संयंत्र बने है जो स्थिर डोम प्रकार के (fixed dome type) होते हैं। बायोगैस में लगभग 65% मेथेन होती है।
बायोगैस/बायोगैस संयंत्र के लाभ (Advantages of Biogas/Biogas plants)
भारत में बायोगैस उत्पादन प्रौद्योगिकी को विकसित करने में निम्न का प्रमुख योगदान रहा है।
प्रश्न 2.
सीवेज क्या है? प्राथमिक व द्वितीयक उपचार में अन्तर बताइए? सीवेज किस प्रकार हानिकारक होता है?
उत्तर:
वाहितमल उपचार में सूक्ष्मजीव (Microbes in Sewage Treatment)
वाहितमल (Sewage): कस्बों, नगरों व शहरों में प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल (waste water) उत्पादित होता है। इसमें जल के साथ - साथ अनेक प्रकार के ठोस भी होते है। इस अपशिष्ट जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मल मूत्र (human excreta) होता है। नगर के इसी व्यर्थ या अपशिष्ट जल को वाहित मल या सीवेज (sewage) कहा जाता है।
सीवेज में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ (organic matter) व सूक्ष्मजीव होते हैं। अनेक रोगजनक सूक्ष्मजीवों (pathogens) का यह स्रोत होता है। प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में बनने वाले इस सीवेज का निस्तारण (disposal) किसी भी विभाग/संगठन के लिए एक चुनौतीभरा कार्य है। इसको प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे नदियों में नहीं डाला जा सकता; क्योंकि यह प्रदूषण का एक बहुत बड़ा स्रोत है। दुर्भाग्यवश, अनियंत्रित और बेतरतीब हुए शहरीकरण के कारण ऐसा भी किया जा रहा है।
सीवेज प्रदूषण के कारण देश की बड़ी - बड़ी व प्रसिद्ध नदियाँ दम तोड़ने के कगार पर है। इस समस्या पर नजर डालने से वाहित मल के उपचार का महत्त्व (significance of the treatment of sewage) अपने आप स्पष्ट हो जाता है। अत: नदियों या अन्य प्राकृतिक स्रोतों में विसर्जन (discharge) से पहले वाहित मल का उपचार वाहितमल ट्रीटमेंट संयंत्र (sewage treatment plant) में किया जाता है ताकि यह प्रदूषण मुक्त हो जाये। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में व्यर्थ जल का उपचार इस जल में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले परपोषी सूक्ष्मजीव (hetero trophic microbes) की मदद से किया जाता है। यह उपचार दो चरणों में पूरा होता है - प्राथमिक उपचार या भौतिक उपचार तथा द्वितीयक उपचार या जैविक उपचार।
प्राथमिक उपचार (Primary Treatment)
प्राथमिक उपचार में मौलिक रूप से छानने (filtration) व अवसादन (Sedimentation) जैसी भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा सीवेज में उपस्थित छोटे व बड़े कणिकीय पदार्थ अलग कर लिए जाते हैं। सीवेज में अनेक प्रकार की घुलित व अघुलित अशुद्धियाँ, कंकड़, पॉलीथिन छोटे - छोटे ढक्कन, धातु के व प्लास्टिक के टुकड़े आदि मिले रहते हैं। इन सबको सीवेज से अलग करने का कार्य कई चरणों में होता है। प्रारम्भ में, सौवेज को क्रमिक रूप से छानकर - इसमें से तैरने वाली अशुद्धियाँ, जैसे- पॉलीथिन, कूड़ा - करकट आदि को हटा दिया जाता है। सीवेज में उपस्थित धूल, रेत - मिट्टी व छोटे - छोटे कंकड़ पत्थर को अलग करने के लिए इसका अवसादन (sedimentation) किया जाता है। अवसादन में, नीचे बैठ गई प्रिट (grit) या ठोस पदार्थ प्राथमिक आपंक या प्राइमरी स्लज कहलाते हैं। सीवेज का ऊपर का द्रव भाग बहि:स्राव या इफ्ल्यु एंट (effluent) बनाता है। इसी बहिःस्राव (effluent) को प्राथमिक नि:सादन टंकी (Settling tank) से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।
द्वितीयक उपचार अथवा जैविक उपचार (Secondary Treatment or Biological Treatment)
प्राथमिक उपचार के बाद द्वितीयक उपचार के लिए बहि:स्राव (effluent) को वायवीय (aerobic) व अवायवीय (anaerobic) तरीकों से उपचारित किया जाता है। इन दोनों प्रकार की क्रियाओं से सीवेज के प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है। पहले चरण में प्राथमिक बहि:स्राव को बड़ी-बड़ी वातन या वागु संचालन, एरेशन टंकियों (aeration tank) में लाया जाता है। इन टंकियों में तेजी से दबाव के साथ वायु पम्प करने तथा बहि:स्राव को यांत्रिक रूप से हिलाने (mechanical agitation) की व्यवस्था होती है। इसका कार्य, जीवाणुओं को अच्छा वायवीय पर्यावरण (aerobic environment) उपलब्ध कराना होता है।
इसके कारण लाभकारी वायवीय सूक्ष्मजीवों (aerobic microbes) की वृद्धि ऊर्णक या फ्लॉक्स (flocs) के रूप में होने लगती है। ऊर्णक या फ्लॉक्स कवक तंतुओं (fungal filaments) के साथ सम्बद्ध जीवाणुओं के समूह हैं, जो एक जाली जैसी (mesh like) रचना बना देते हैं। अर्थात फंगस के तंतुओं में उलझे जीवाणुओं के झुंड से बनी जाली फ्लॉक्स कहलाती है। अपनी वृद्धि के समय यह सूक्ष्मजीव प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित अधिकांश कार्बनिक पदार्थ को अपघटित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रक्रिया से सीवेज शुद्ध होता जाता है। इस प्रक्रिया के कारण बहि:स्राव की जैव रासायनिक आक्सीजन माँग . या बायोकैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD) कम हो जाती है।
बायो कैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा जो एक लिटर जल में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों के आक्सीकरण के लिए आवश्यक होती है BOD कहलाती है। परिभाषा से स्पष्ट है कि अधिक प्रदूषित जल (जिसमें अधिक कार्बनिक पदार्थ हो) की BOD अधिक होगी अर्थात पूरे कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होगी। कम प्रदूषित या अप्रदूषित जल की BOD कम होती है। BOD परीक्षण किसी जल प्रदर्श में सूक्ष्मजीवों द्वारा आक्सीजन के ग्रहण (uptake) की दर का मापन करता है। प्राथमिक बहिःस्राव को तब तक उपचारित किया जाता है जब तक कि उसकी BOD कम नहीं हो जाती।
सीवेज जल की बी ओ डी के पर्याप्त मात्रा में घट जाने के बाद बहिःस्राव को एक अन्य निःसादन या सैटलिंग (Settling) टैंक में भेजा जाता है। इस सैटलिंग टैंक में फ्लॉक्स (कवक जाल - जीवाणु झंड) कुछ भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं या अवसादित हो जाते हैं। इस अवसाद (sediment) को सक्रियत आपंक (activated sludge) कहा जाता है। इसका एक छोटा - सा भाग प्रथम पद वाले एरेशन टैंक (aeration tank) में भेज दिया जाता है जहाँ यह आरम्भक (starter), निवेशद्रव्य या इनोकुलम (inoculum) की भाँति कार्य करता है। इन जीवाणुओं की वृद्धि ही कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए उत्तरदायी होती है। सक्रियत आपंक (activated sludge) का शेष अर्थात मुख्य भाग बड़े - बड़े टैंकों में बलपूर्वक भेज दिया जाता है।
इन टैकों को अवायवीय आपंक पाचक या एनएरोबिक स्लज डाइजैस्टर (anaerobic sludge digester) कहते हैं। यहाँ द्वितीयक उपचार के द्वितीय पद के जीवाणु अर्थात अवायवीय जीवाणुओं (anaerobic bacteria) की भूमिका प्रारम्भ होती है। इस टैंक में आक्सीजन नहीं होती तथा यहाँ के जीवाणु अवायवीय वृद्धि करते हैं। वृद्धि के लिए वह स्लज के पलॉक्स (कवक तंतु - जीवाणु झुंड) का पाचन (digestion) करते हैं। इस पाचन के समय अवायवीय जीवाणु गैसों का एक मिश्रण उत्पादित करते हैं, जिनमें मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं। बायोगैस को ज्वलनशील (inflammable) होने के कारण ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। द्वितीयक उपचार से निकले बहिस्राव को सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे नदियों में छोड़ दिया जाता है। वैकल्पिक रूप से इसका प्रयोग खेतों की सिंचाई (irrigation) में किया जा सकता है। कभी - कभी इस जल को कुछ रसायनों जैसे क्लोरीन से उपचारित किया जाता है ताकि बचे खुचे रोगजनक सूक्ष्मजीव मर जायें। इस भाग को तृतीयक उपचार या रासायनिक उपचार (Tertiary treatment or chemical treatment) कहा जाता है।
इतनी बड़ी पृथ्वी के प्रत्येक नगर, शहर से प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लाखों गैलन व्यर्थ जल/अपशिष्ट जल अर्थात सीवेज के उपचारण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका इनका महत्व स्वत: स्पष्ट कर देती है। यह तकनीक पिछली एक सदी से भी अधिक समय से विश्व के लगभग प्रत्येक भाग में अपनाई जा रही है। आज के दिन तक मनुष्य के द्वारा निर्मित और कोई भी प्रौद्योगिकी सीवेज सूक्ष्मजीवी उपचारण के आगे बौनी रहती है। विश्व की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पन्न सीवेज की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। लेकिन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ रही। बड़े - बड़े शहरों में जहाँ अनेक ऐसे संयंत्र होने चाहिए। वहाँ मात्र एक ऐसा संयंत्र कार्य कर रहा है। अनेक शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगे तो हैं लेकिन वह कार्यशील नहीं हैं। फलस्वरूप सीवेज का पानी बिना उपचार के सीधे ही नदियों में विसर्जित (discharge) कर दिया जाता है। यह अनेक जल जन्य रोग (water borne diseases) जैसे टायफाइड, हैजा, पेचिश, पोलियो आदि का कारण बनता है।
प्रश्न 3.
किसी प्राकृतिक जल स्रोत में छोड़ने से पहले किये जाने वाले वाहितमल के उपचार का वर्णन कीजिए। यह उपचार आवश्यक क्यों है?
उत्तर:
(A) सीवेज में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ, प्रमुख रूप से मनुष्य का मल मूत्र, व्यर्थ जल, अनेक रोगजनक सूक्ष्मजीव आदि होते हैं। अत: इस अपशिष्ट जल को किसी प्राकृतिक जलाशय में छोड़ने से पहले उपचारित करना आवश्यक होता है।
वाहित मल उपचार (Sewage treatment) में प्रमुखतः दो पद होते है-
(i) प्राथमिक उपचार (Primary Treatment): प्राथमिक उपचार एक भौतिक (Physical) या यांत्रिक प्रक्रिया है जिसके विभिन्न पदों में छानना (Filtration) अवसादन (Sedimentation) जैसी प्रक्रिया शामिल है। इसमें सबसे पहले जल में तैर रही अशुद्धियाँ छानकर अलग कर ली जाती है। छोटे बड़े कंकड़ पत्थर भी इससे अलग हो जाते हैं। अवसादन द्वारा रेत, मिट्टी, कंकड़ पत्थर नीचे बैठ जाते है व जिन्हें अलग कर दिया जाता है। इसे प्राथमिक आपंक (Primary sludge) कहते हैं। ऊपर का द्रव भाग प्राथमिक बहिसाव (Primaryeffluent) कहलाता है।
(ii) द्वितीयक उपचार (Secondary Treatment): प्राथमिक बहि:लाव को वायवीय व अवायवीय जीवाणुओं द्वारा उपचारित किया जाता है। अर्थात् यह एक जैविक (Biological) प्रक्रिया है। पहले चरण में प्राथमिक बहि:स्राव को बड़ी-बड़ी वातन टंकियों (aeration tank) में लाया जाता है। इसमें तेजी से वायु पम्प की जाती है व यांत्रिक रूप से हिलाया (mechanically agitated) जाता है। इससे लाभकारी वायवीय सूक्ष्मजीवों की वृद्धि होती है। यह जीवाणु समूह के रूप में कवक तन्तुओं से जुड़कर फ्लॉक्स बनाते हैं। यह सूक्ष्मजीव बहिःलाव के अधिकांश कार्बनिक पदार्थ को अपपटित कर देते हैं। इससे बहि:स्लाव की बी.ओ.डी. (BiochemicalOxygen Demand) कम हो जाती है।
बी. ओ. डी. के पर्याप्त मात्रा में घट जाने के बाद बहिःस्राव को एक नि:सादन या सैटलिंग टैक में भेजा जाता है। इससे फ्लॉक्स नीचे बैठ जाते है, इस अवसाद को सक्रियत आपक (activated sludge) कहते हैं। इसका थोड़ा - सा भाग वातन टैंक में आरम्भक के रूप में व प्रमुख भाग अवायवीय आपंक पाचक (Anaerobic Sludge Digester) में भेज दिया जाता है जहाँ यह मेथेनोजेन की मदद से बायोगैस बनाता है। द्वितीयक उपचार से निकले बहिःसाव को सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोत जैसे नदियों में डाला जा सकता है। इसको क्लोरीन द्वारा डिसइनफेक्ट भी किया जा सकता है।
(B) यह उपचार आवश्यक है क्योंकि-
प्रश्न 4.
शहरों में जनित व्यर्थ जल (वाहित मल) को प्राकृतिक जल स्रोतों में विसर्जितकरने से पहले किए जाने वाले नियोजक उपचार का वर्णन कीजिए। इस प्रक्रम द्वारा होने वाले एक अन्य लाभ का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वाहितमल उपचार में सूक्ष्मजीव (Microbes in Sewage Treatment)
वाहितमल (Sewage): कस्बों, नगरों व शहरों में प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल (waste water) उत्पादित होता है। इसमें जल के साथ - साथ अनेक प्रकार के ठोस भी होते है। इस अपशिष्ट जल का प्रमुख घटक मनुष्य का मल मूत्र (human excreta) होता है। नगर के इसी व्यर्थ या अपशिष्ट जल को वाहित मल या सीवेज (sewage) कहा जाता है।
सीवेज में बड़ी मात्रा में कार्बनिक पदार्थ (organic matter) व सूक्ष्मजीव होते हैं। अनेक रोगजनक सूक्ष्मजीवों (pathogens) का यह स्रोत होता है। प्रतिदिन बहुत बड़ी मात्रा में बनने वाले इस सीवेज का निस्तारण (disposal) किसी भी विभाग/संगठन के लिए एक चुनौतीभरा कार्य है। इसको प्राकृतिक जल स्रोतों जैसे नदियों में नहीं डाला जा सकता; क्योंकि यह प्रदूषण का एक बहुत बड़ा स्रोत है। दुर्भाग्यवश, अनियंत्रित और बेतरतीब हुए शहरीकरण के कारण ऐसा भी किया जा रहा है।
सीवेज प्रदूषण के कारण देश की बड़ी - बड़ी व प्रसिद्ध नदियाँ दम तोड़ने के कगार पर है। इस समस्या पर नजर डालने से वाहित मल के उपचार का महत्त्व (significance of the treatment of sewage) अपने आप स्पष्ट हो जाता है। अत: नदियों या अन्य प्राकृतिक स्रोतों में विसर्जन (discharge) से पहले वाहित मल का उपचार वाहितमल ट्रीटमेंट संयंत्र (sewage treatment plant) में किया जाता है ताकि यह प्रदूषण मुक्त हो जाये। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में व्यर्थ जल का उपचार इस जल में प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले परपोषी सूक्ष्मजीव (hetero trophic microbes) की मदद से किया जाता है। यह उपचार दो चरणों में पूरा होता है - प्राथमिक उपचार या भौतिक उपचार तथा द्वितीयक उपचार या जैविक उपचार।
प्राथमिक उपचार (Primary Treatment)
प्राथमिक उपचार में मौलिक रूप से छानने (filtration) व अवसादन (Sedimentation) जैसी भौतिक प्रक्रियाओं द्वारा सीवेज में उपस्थित छोटे व बड़े कणिकीय पदार्थ अलग कर लिए जाते हैं। सीवेज में अनेक प्रकार की घुलित व अघुलित अशुद्धियाँ, कंकड़, पॉलीथिन छोटे - छोटे ढक्कन, धातु के व प्लास्टिक के टुकड़े आदि मिले रहते हैं। इन सबको सीवेज से अलग करने का कार्य कई चरणों में होता है। प्रारम्भ में, सौवेज को क्रमिक रूप से छानकर - इसमें से तैरने वाली अशुद्धियाँ, जैसे- पॉलीथिन, कूड़ा - करकट आदि को हटा दिया जाता है। सीवेज में उपस्थित धूल, रेत - मिट्टी व छोटे - छोटे कंकड़ पत्थर को अलग करने के लिए इसका अवसादन (sedimentation) किया जाता है। अवसादन में, नीचे बैठ गई प्रिट (grit) या ठोस पदार्थ प्राथमिक आपंक या प्राइमरी स्लज कहलाते हैं। सीवेज का ऊपर का द्रव भाग बहि:स्राव या इफ्ल्यु एंट (effluent) बनाता है। इसी बहिःस्राव (effluent) को प्राथमिक नि:सादन टंकी (Settling tank) से द्वितीयक उपचार के लिए ले जाया जाता है।
द्वितीयक उपचार अथवा जैविक उपचार (Secondary Treatment or Biological Treatment)
प्राथमिक उपचार के बाद द्वितीयक उपचार के लिए बहि:स्राव (effluent) को वायवीय (aerobic) व अवायवीय (anaerobic) तरीकों से उपचारित किया जाता है। इन दोनों प्रकार की क्रियाओं से सीवेज के प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों की मात्रा धीरे-धीरे कम होने लगती है। पहले चरण में प्राथमिक बहि:स्राव को बड़ी-बड़ी वातन या वागु संचालन, एरेशन टंकियों (aeration tank) में लाया जाता है। इन टंकियों में तेजी से दबाव के साथ वायु पम्प करने तथा बहि:स्राव को यांत्रिक रूप से हिलाने (mechanical agitation) की व्यवस्था होती है। इसका कार्य, जीवाणुओं को अच्छा वायवीय पर्यावरण (aerobic environment) उपलब्ध कराना होता है। इसके कारण लाभकारी वायवीय सूक्ष्मजीवों (aerobic microbes) की वृद्धि ऊर्णक या फ्लॉक्स (flocs) के रूप में होने लगती है। ऊर्णक या फ्लॉक्स कवक तंतुओं (fungal filaments) के साथ सम्बद्ध जीवाणुओं के समूह हैं, जो एक जाली जैसी (mesh like) रचना बना देते हैं। अर्थात फंगस के तंतुओं में उलझे जीवाणुओं के झुंड से बनी जाली फ्लॉक्स कहलाती है। अपनी वृद्धि के समय यह सूक्ष्मजीव प्राथमिक बहि:स्राव में उपस्थित अधिकांश कार्बनिक पदार्थ को अपघटित कर देते हैं। दूसरे शब्दों में, इस प्रक्रिया से सीवेज शुद्ध होता जाता है। इस प्रक्रिया के कारण बहि:स्राव की जैव रासायनिक आक्सीजन माँग . या बायोकैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD) कम हो जाती है।
बायो कैमीकल आक्सीजन डिमांड (Biochemical Oxygen Demand - BOD)
ऑक्सीजन की वह मात्रा जो एक लिटर जल में उपलब्ध कार्बनिक पदार्थों के आक्सीकरण के लिए आवश्यक होती है BOD कहलाती है। परिभाषा से स्पष्ट है कि अधिक प्रदूषित जल (जिसमें अधिक कार्बनिक पदार्थ हो) की BOD अधिक होगी अर्थात पूरे कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होगी। कम प्रदूषित या अप्रदूषित जल की BOD कम होती है। BOD परीक्षण किसी जल प्रदर्श में सूक्ष्मजीवों द्वारा आक्सीजन के ग्रहण (uptake) की दर का मापन करता है। प्राथमिक बहिःस्राव को तब तक उपचारित किया जाता है जब तक कि उसकी BOD कम नहीं हो जाती।
सीवेज जल की बी ओ डी के पर्याप्त मात्रा में घट जाने के बाद बहिःस्राव को एक अन्य निःसादन या सैटलिंग (Settling) टैंक में भेजा जाता है। इस सैटलिंग टैंक में फ्लॉक्स (कवक जाल - जीवाणु झंड) कुछ भारी होने के कारण नीचे बैठ जाते हैं या अवसादित हो जाते हैं। इस अवसाद (sediment) को सक्रियत आपंक (activated sludge) कहा जाता है। इसका एक छोटा - सा भाग प्रथम पद वाले एरेशन टैंक (aeration tank) में भेज दिया जाता है जहाँ यह आरम्भक (starter), निवेशद्रव्य या इनोकुलम (inoculum) की भाँति कार्य करता है। इन जीवाणुओं की वृद्धि ही कार्बनिक पदार्थ के अपघटन के लिए उत्तरदायी होती है। सक्रियत आपंक (activated sludge) का शेष अर्थात मुख्य भाग बड़े - बड़े टैंकों में बलपूर्वक भेज दिया जाता है।
इन टैकों को अवायवीय आपंक पाचक या एनएरोबिक स्लज डाइजैस्टर (anaerobic sludge digester) कहते हैं। यहाँ द्वितीयक उपचार के द्वितीय पद के जीवाणु अर्थात अवायवीय जीवाणुओं (anaerobic bacteria) की भूमिका प्रारम्भ होती है। इस टैंक में आक्सीजन नहीं होती तथा यहाँ के जीवाणु अवायवीय वृद्धि करते हैं। वृद्धि के लिए वह स्लज के पलॉक्स (कवक तंतु - जीवाणु झुंड) का पाचन (digestion) करते हैं। इस पाचन के समय अवायवीय जीवाणु गैसों का एक मिश्रण उत्पादित करते हैं, जिनमें मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड व कार्बन डाइ ऑक्साइड जैसी गैसें होती हैं। बायोगैस को ज्वलनशील (inflammable) होने के कारण ऊर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। द्वितीयक उपचार से निकले बहिस्राव को सामान्यत: जल के प्राकृतिक स्रोतों जैसे नदियों में छोड़ दिया जाता है। वैकल्पिक रूप से इसका प्रयोग खेतों की सिंचाई (irrigation) में किया जा सकता है। कभी - कभी इस जल को कुछ रसायनों जैसे क्लोरीन से उपचारित किया जाता है ताकि बचे खुचे रोगजनक सूक्ष्मजीव मर जायें। इस भाग को तृतीयक उपचार या रासायनिक उपचार (Tertiary treatment or chemical treatment) कहा जाता है।
इतनी बड़ी पृथ्वी के प्रत्येक नगर, शहर से प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले लाखों गैलन व्यर्थ जल/अपशिष्ट जल अर्थात सीवेज के उपचारण में सूक्ष्मजीवों की भूमिका इनका महत्व स्वत: स्पष्ट कर देती है। यह तकनीक पिछली एक सदी से भी अधिक समय से विश्व के लगभग प्रत्येक भाग में अपनाई जा रही है। आज के दिन तक मनुष्य के द्वारा निर्मित और कोई भी प्रौद्योगिकी सीवेज सूक्ष्मजीवी उपचारण के आगे बौनी रहती है। विश्व की तेजी से बढ़ती जनसंख्या के कारण उत्पन्न सीवेज की मात्रा भी लगातार बढ़ रही है। लेकिन सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की संख्या उस अनुपात में नहीं बढ़ रही। बड़े - बड़े शहरों में जहाँ अनेक ऐसे संयंत्र होने चाहिए। वहाँ मात्र एक ऐसा संयंत्र कार्य कर रहा है। अनेक शहरों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगे तो हैं लेकिन वह कार्यशील नहीं हैं। फलस्वरूप सीवेज का पानी बिना उपचार के सीधे ही नदियों में विसर्जित (discharge) कर दिया जाता है। यह अनेक जल जन्य रोग (water borne diseases) जैसे टायफाइड, हैजा, पेचिश, पोलियो आदि का कारण बनता है।
बहुविकल्पीय प्रश्न (प्रतियोगी परीक्षाओं के प्रश्न सहित)
प्रश्न 1.
निम्न में से कौन - सा ऐल्कोहॉल का उत्पादन करता है-
(a) क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटाइलिकम
(b) सैकेरोमाइसिस सेरेविसी
(c) ट्राइकोडर्मा पॉलापोरम
(d) एस्पर्जिलस नाइजर।
उत्तर:
(b) सैकेरोमाइसिस सेरेविसी
प्रश्न 2.
नाइट्रोजन स्थिरीकरण करता है-
(a) नॉस्टाक
(b) एनाबीना
(c) ओसीलेटोरिया
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 3.
माइकोराइजा एक सहजीवी सम्बन्ध है-
(a) कवक व शैवाल का
(b) शैवाल व ब्रायोफाइटा का
(c) कवक का उच्च पौधों की जड़ों का
(d) कवक व जीवाणुओं का।
उत्तर:
(c) कवक का उच्च पौधों की जड़ों का
प्रश्न 4.
जैव नियंत्रण में प्रयोग किये जाने वाले विषाणु हैं-
(a) वैक्युलोवाइरस
(b) एडोनोवाइरस
(c) रेट्रो वाइरस
(d) पेरामिक्सो वाइरसा।
उत्तर:
(a) वैक्युलोवाइरस
प्रश्न 5.
सीवेज में कार्बनिक पदार्थ का सूक्ष्मजीवों द्वारा अपघटन होता है-
(a) प्राथमिक उपचार में
(b) द्वितीयक उपचार में
(c) तृतीयक उपचार में
(d) उपर्युक्त सभी में।
उत्तर:
(b) द्वितीयक उपचार में
प्रश्न 6.
नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणु है-
(a) राइजोबियम
(b) एजोस्पाइरिलम
(c) एजोटोबैक्टर
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी
प्रश्न 7.
अलेक्जेण्डर फ्लेमिंग को नोबेल पुरस्कार मिला
(a) 1928 में
(b) 1929 में
(c) 1945 में
(d) 1941 में।
उत्तर:
(c) 1945 में
प्रश्न 8.
बायोगैस में उपस्थित प्रमुख गैस है-
(a) हाइड्रोजन सल्फाइड
(b) मेथेन
(c) कार्बन डाइ ऑक्साइड
(d) ऑक्सीजन।
उत्तर:
(b) मेथेन
प्रश्न 9.
उपचारित सीवेज की BOD, बिना उपचार किये सीवेज की अपेक्षा-
(a) कम होगी
(b) अधिक होगी
(c) समान होगी
(d) कहा नहीं जा सकता।
उत्तर:
(a) कम होगी
प्रश्न 10.
मेथेनोजेन पाये जाते हैं-
(a) गौवंश के गोबर में
(b) गौवंश के रसुमन में
(c) अवायवीय आपंक में
(d) उपर्युक्त सभी में।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी में।
प्रश्न 11.
साइक्लोस्पोरिन A है एक-
(a) एंटीबायोटिक
(b) प्रोटीन पाचक एंजाइम
(c) प्रत्यारोपित अंग की अस्वीकार्यता को रोकने वाली औषधि
(d) रक्त वाहिकाओं में जमे थक्के को घोलकर घटाने वाली औषधि।
उत्तर:
(c) प्रत्यारोपित अंग की अस्वीकार्यता को रोकने वाली औषधि
प्रश्न 12.
टोडी (Toddy) निर्माण हेतु किसका प्रयोग होता है-
(a) एगैरिकस का
(b) अंगूर का
(c) ताड़ का
(d) माल्टेड धान्य का।
उत्तर:
(c) ताड़ का
प्रश्न 13.
निम्न में से अनासवित (undistilled) पेय है-
(a) वाइन
(b) व्हिस्की
(c) रम
(d) ब्रांडी।
उत्तर:
(a) वाइन
प्रश्न 14.
प्रोटीन से समृद्ध जीव है-
(a) पेनिसिलियम
(b) स्पाइरुलीना
(c) स्पाइरोगाइरा
(d) एजोटोबैक्टर।
उत्तर:
(a) पेनिसिलियम
प्रश्न 15.
मुक्तजीवी नाइट्रोजन स्थिरीकारक जीवाणु है-
(a) राइजोबियम
(b) एजोटोबैक्टर
(c) (a) व (b) दोनों
(d) कोई नहीं।
उत्तर:
(b) एजोटोबैक्टर
प्रश्न 16.
सिट्रिक अम्ल प्राप्त होता है-
(a) सैकेरोमाइसिस सेरेविसी से
(b) स्यूडोमोनास प्रजाति से
(c) एस्पर्जिलस नाइजर से
(d) क्लोस्ट्रीडियम से।
उत्तर:
(c) एस्पर्जिलस नाइजर से
प्रश्न 17.
एंटीबायोटिक्स कार्य करती है-
(a) विषाणुओं के विरुद्ध
(b) प्रियान के विरुद्ध
(c) जीवाणुओं के विरुद्ध
(d) रोगजनकों के विरुद्ध
उत्तर:
(c) जीवाणुओं के विरुद्ध
प्रश्न 18.
रोगकारी जीवाणुओं से रक्षा करता है-
(a) सैकेरोमाइसिस सेरेविसी
(b) लैक्टोबेसीलस
(c) क्लॉस्ट्रीडियम ब्यूटाइलिकम
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(b) लैक्टोबेसीलस
प्रश्न 19.
फलीदार पौधों की जड़ों से सम्बद्ध जीवाणु है-
(a) स्यूडोमोनास
(b) एजोटोबैक्टर
(c) लैक्टोबेसीलस
(d) राइजोबियम।
उत्तर:
(d) राइजोबियम।
प्रश्न 20.
एफिड के जैव नियंत्रण में प्रयोग किया जा सकता है-
(a) ड्रैगन फ्लाई को
(b) लेडी बर्ड को
(c) ट्राइकोडर्मा को
(d) उपर्युक्त सभी को।
उत्तर:
(b) लेडी बर्ड को
प्रश्न 21.
किसका प्रयोग जैव उर्वरक के रूप में होता है-
(a) नॉस्टॉक
(b) फ्यूनेरिया
(c) वालवॉक्स
(d) राइजोपस।
उत्तर:
(a) नॉस्टॉक
प्रश्न 22.
चिकित्सीय महत्व के पदार्थ बनाने वाली कवक है-
(a) पेनिसिलियम नोटेटम
(b) ट्राइकोडर्मा पॉलीस्पोरम
(c) मोनेस्कस परप्यूरियस
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 23.
साएनोबैक्टीरिया किसके खेत के लिए श्रेष्ठ जैव उर्वरक है-
(a) गेहूँ
(b) जौ व गन्ना
(c) चावल
(d) मक्का।
उत्तर:
(c) चावल
प्रश्न 24.
माइकोराइजा बनाने वाली प्रमुख कवक है-
(a) ग्लोमस
(b) पेनिसीलियम
(c) एस्पर्जिलस
(d) ट्राइकोडर्मा।
उत्तर:
(a) ग्लोमस
प्रश्न 25.
वाहितमल के उपचार के दौरान विभिन्न गैसें उत्पन्न होती हैं। जिनमें शामिल हैं-
(a) मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन डाइ ऑक्साइड
(b) मेथेन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन सल्फाइड
(c) हाइड्रोजन सल्फाइड, मेघेन, सल्फर डाइ ऑक्साइड
(d) हाइड्रोजन सल्फाइड, नाइट्रोजन, मेथेन।
उत्तर:
(a) मेथेन, हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन डाइ ऑक्साइड
प्रश्न 26.
निम्न में से कौन जैव नियंत्रक है-
(a) ट्राइकोडर्मा प्रजाति
(b) बैक्युलोवाइरस
(c) लेडी बर्ड
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(d) उपर्युक्त सभी।
प्रश्न 27.
फलों के रस को साफ (clean) बनाने में प्रयुक्त पदार्थ है-
(a) स्ट्रेप्टोकाइनेज
(b) पेक्टिनेज व प्रोटिएज
(c) लाइपेज
(d) उपर्युक्त सभी।
उत्तर:
(b) पेक्टिनेज व प्रोटिएज
प्रश्न 28.
रक्त में लिपिड की मात्रा घटाने को दी गई औषधि का प्रमुख घटक
(a) स्टेटिन
(b) एंटीबायोटिक्स
(c) साइक्लोस्पोरिन
(d) इंटरफेरॉन
उत्तर:
(a) स्टेटिन
प्रश्न 29.
जीवाणु प्रोपिओनीबैक्टीरियम शारमैनाई का प्रयोग किसके उत्पावन में किया जाता है-
(a) वाइन
(b) स्विस पनीर
(c) राक्फोर्ट पनीर
(d) टोडी।
उत्तर:
(b) स्विस पनीर
प्रश्न 30.
किस जीवाणु पर कार्य करते समय फ्लेमिंग को पेंनिसिलिन की खोज का अवसर मिला-
(a) स्ट्रेप्टोकोकस
(b) एश्चीरिचिया कोलाई
(c) स्टेफिलोकोकस
(d) राइजोबियम
उत्तर:
(c) स्टेफिलोकोकस
HOTS : Higher Order Thinking Skill Questions
प्रश्न 1.
किसी जीवाणु संक्रमण के उपचार हेतु अनेक दिनों तक एंटीबायोटिक खाने वाले व्यक्ति का पाचन तन्त्र क्यों गड़बड़ा जाता है?
उत्तर:
एंटीबायोटिक रोगजनक व मित्र सूक्ष्मजीव में भिन्नता नहीं कर सकती। अतः इनका सेवन करने वाले व्यक्ति की आहारनाल में रोगजनक के साथ - साथ अच्छे व स्वास्थ्यकारी सूक्षम जीव भी मर जाते हैं। यह सूक्ष्मजीव व्यक्ति को रोगों से बचाने के साथ - साथ पाचन को भी दुरुस्त रखते हैं। इनके समाप्त होने पर पाचन तन्त्र गड़बड़ा जाता है।
प्रश्न 2.
कभी - कभी डॉक्टर किसी रोगी में संक्रमण का पता लगाने के लिए मुत्र का सम्वर्धन (Urine culture) की सलाह देते हैं। यह मन्त्र डॉक्टर या पैथोलॉजी लैब द्वारा प्रदान की गई डिब्बी में ही देना होता है। इसके लिए घर पर उपलब्य कोई अन्य खाली शीशी नहीं ली जा सकती। कारण बताइए।
उत्तर:
डॉक्टर/पैथोलॉजी लैब इसके लिए बंद व निजीकृत (sterilized) डिब्बी देते हैं ताकि अन्य कोई सामान्य डिब्बी लेने पर उसमें पहले से ही उपलब्ध सूक्ष्मजीव जाँच को प्रभावित न कर दें। कभी - कभी सामान्य डिब्बी में उपस्थित कोई रसायन औषधि मूत्र में उपस्थित सूक्ष्मजीव को समाप्त कर सकती है जिससे शरीर में संक्रमण होने पर भी वह जाँच में नहीं आयेगा। अतः सम्वर्धन हेतु प्रदर्श निजीकृत डिब्बी में ही लिए जाते है।
प्रश्न 3.
छाछ या मठा का प्रतिदिन सेवन स्वास्थ्यवर्धक माना गया है। टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
छाछ में बहुत बड़ी संख्या में लाभकारी जीवाणु जैसे लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया (LAB) पाये जाते हैं जो रोगजनकों से शरीर की रक्षा करते हैं। चूँकि छाछ में अधिक पानी व दही के अन्य सभी गुण पाये जाते हैं। अत: यह स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जाता है। वसा निकल जाने के कारण इसकी पोषक गुणवत्ता और बढ़ जाती है।
प्रश्न 4.
अनासवित ऐल्कोहॉलिक पेय जैसे बीयर व वाहन में ऐल्कोहॉल की मात्रा कम क्यों होती है?
उत्तर:
इस (5 - 15%) से अधिक मात्रा यीस्ट, सैकेरोमाइसिस सेरेविसी, सहन नहीं कर पाती व मरने लगती है। ऐल्कोहॉल की मात्रा आसवन (distillation) से ही बढ़ाई जा सकती है।
प्रश्न 5.
लैंग्यूमिनस फसल लेने के बाद धान्य फसल उगाने पर बिना रासायनिक खाद डाले फसल अच्छी आती है। कारण बताइये।
उत्तर:
लैम्यूमिनस फसलों की जड़ों की प्रन्थियों में सहजीवी जीवाणु राइजोबियम (Rhizobium) पाये जाते हैं जो वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण (Nitrogen fixation) करते है। लैग्यूमिनस पौधा इस नाइट्रोजन से लाभान्वित होता है। फसल कट जाने के बाद इस पौधे की जड़ें खेत में ही रह जाती हैं। इनके अपघटन से मुक्त नाइट्रोजन व राइजोबियम द्वारा बनाई अतिरिक्त नाइट्रोजन भूमि में मुक्त होकर उसकी उर्वरा शक्ति बढ़ा देती है। अतः बाद में उगाई गई धान्य फसल बिना रासायनिक खाद के अच्छी पैदावार देती है।
NCERT EXEMPLAR PROBLEMS
बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लैक्टिक एसिड बैक्टीरिया द्वारा दूध से बही के परिर्वतन में किस विटामिन की मात्रा में वृद्धि होती है-
(a) विटामिन C
(b) विटामिन D
(c) विटामिन B12
(d) विटामिन E
उत्तर:
(c) विटामिन B12
प्रश्न 2.
मेथेनोजेन निम्न में से किसमें नहीं पाये जाते
(a) मवेशियों के रयूमेन
(b) गोबर गैस संयंत्र
(c) पानी से भरे धान के खेत की तली पर
(d) सक्रियत आपंक में।
उत्तर:
(d) सक्रियत आपंक में।
प्रश्न 3.
वाहित मल के प्राथमिक उपचार में जल किससे मुक्त होता है-
(a) घुलित अशुद्धियाँ
(b) स्थिर कण
(c) विषैले पदार्थ
(d) हानिकारण जीवाणु।
उत्तर:
(b) स्थिर कण
प्रश्न 4.
अपशिष्ट जल की बी०ओ०डी० निम्न में से किसकी मात्रा के आकलन से जानी जाती है-
(a) कुल कार्यनिक पदार्थ
(b) जैव अपघटनीय कार्बनिक पदार्थ
(c) ऑक्सीजन की मुक्ति
(d) ऑक्सीजन की खपत।
उत्तर:
(d) ऑक्सीजन की खपत।
प्रश्न 5.
भारत में गौवंश के गोबर से बायोगैस उत्पादन की तकनीक प्रमुखतः किसके प्रयासों से विकसित की गई-
(a) गैस अथॉरिटी ऑफ इण्डिया
(b) तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग
(c) भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान तथा खादी व ग्राम उद्योग आयोग
(d) इंडियन ऑयल कारपोरेशन।
उत्तर:
(c) भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान तथा खादी व ग्राम उद्योग आयोग
प्रश्न 6.
मुक्तजीवी फंगस ट्राईकोडर्मा का प्रयोग किया जा सकता है-
(a) कीटों को मारने में
(b) पादप रोगों के जैव नियंत्रण में
(c) बटर फ्लाई के कैटर पिलर के नियंत्रण में
(d) एंटीबायोटिक्स निर्माण में।
उत्तर:
(b) पादप रोगों के जैव नियंत्रण में
प्रश्न 7.
माइकोराइजा पोषक पौधों की किस में मदद नहीं करता-
(a) इसकी फास्फोरस ग्रहण क्षमता बढ़ाने में
(b) इसकी शुष्कता सहन करने की क्षमता बढ़ाने में
(c) इसकी जड़ों की रोगजनकों के लिए प्रतिरोधकता बढ़ाने में
(d) इसकी कीटों के लिए प्रतिरोधकता बढ़ाने में।
उत्तर:
(d) इसकी कीटों के लिए प्रतिरोधकता बढ़ाने में।
प्रश्न 8.
निम्न में से कौन - सा नाइट्रोजन स्थिरकर्ता जीव नहीं है-
(a) एनाबीना
(b) नोस्टॉक
(c) एजोटोबैक्टर
(d) स्यूडोमोनास।
उत्तर:
(d) स्यूडोमोनास।
प्रश्न 9.
गोबर से गोबर गैस उत्पादन के बाद बचे अपशिष्ट का क्या किया जाता है-
(a) जला दिया जाता है
(b) लैंडफिल में भर दिया जाता है
(c) खाद की तरह प्रयोग होता है
(d) निर्माण सामग्री के रूप में प्रयोग होता है।
उत्तर:
(a) जला दिया जाता है
प्रश्न 10.
मेथेनोजेन क्या नहीं बनाते
(a) ऑक्सीजन
(b) मेथेन
(c) हाइड्रोजन सल्फाइड
(d) कार्बन डाइ ऑक्साइड।
उत्तर:
(c) हाइड्रोजन सल्फाइड
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
स्विस पनीर में बड़े-बड़े छिद्र क्यों होते हैं?
उत्तर:
स्विस चीज (पनौर) बनाने में प्रयुक्त जीवाणु प्रोपिओनोबैक्टीरियम शारमैनाई बड़ी मात्रा में CO2 का उत्पादन करता है जो पनौर में बड़े - बड़े छिद्रों का निर्माण कर देती है।
प्रश्न 2.
स्टेटिन बनाने वाले सूक्ष्मजीव का नाम बताइए। स्टेटिन किस प्रकार रक्त में कोलेस्टेरॉल का स्तर कम करते हैं?
उत्तर:
यीस्ट, मोनेस्कस परप्यूरियस (Monascus purpureus) स्टेटिन बनाती है। स्टेटिन, कोलेस्टेरॉल के संश्लेषण के लिए उत्तरदायी एंजाइम का स्पर्धात्मक संदमन (competitive inhibition) कर देते हैं।
प्रश्न 3.
कुछ प्रकार के ऐल्कोहॉलिक पेयों के निर्माण में आसवन क्यों किया जाता है।
उत्तर:
आसवन (distillation) ऐल्कोहॉल पेयों में ऐल्कोहॉल की मात्रा बड़ा देता है।
प्रश्न 4.
एस्पर्जिलस नाइजर, क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटाइलिकम व लैक्टोबैसीलस का ऐसा प्रमुख गुण लिखिए जिनमें वह समान है।
उत्तर:
तीनों कार्बनिक अम्लों (organic acids) का उत्पादन करते हैं। एस्पर्जिलस नाइजर सिट्रिक अम्ल का, क्लोस्ट्रीडियम ब्यूटाइलिकम ब्यूटाइरिक अम्ल का तथा लैक्टोबैसीलस लैक्टिक अम्ल का उत्पादन करते हैं।
प्रश्न 5.
जैव उर्वरक के रूप में नील हरित शैवाल अधिक लोकप्रिय क्यों नहीं है?
उत्तर:
नील हरित शैवाल (cyanobacteria) अधिक नमी की मांग के कारण केवल धान के खेतों के लिए उपयुक्त है। दूसरे वह बदबूदार (fowl smelling) व विषैले एलाल ब्लूम (algal bloom) बनाते हैं।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सीवेज (वाहित मल) के जैविक उपचार में फ्लॉक्स का क्या महत्व है?
उत्तर:
फ्लॉक्स (Flocs) कवक तन्तुओं में लिपटे वायवीय (aerobic) जीवाणुओं के झुण्ड होते हैं। वातन (aeration) के कारण उत्पन्न हुई 'पर्याप्त ऑक्सीजन की उपस्थिति में यह जीवाणु वाहित मल में उपस्थित कार्बनिक पदार्थों का अपघटन कर देते हैं यही द्वितीयक या जैविक उपचार का सिद्धान्त है। इनको इनोकुलम (inoculum) के रूप में प्रयोग कर यह प्रक्रिया जारी रखी जाती है।
प्रश्न 2.
बायोगैस की रासायनिक प्रकृति क्या है? बायोगैस के उत्पावन करने वाले एक सूक्ष्मजीव का नाम लिखिए।
उत्तर:
बायोगैस अनेक गैसों का मिश्रण होती है जो सूक्ष्मजीवों की उपापयची क्रियाओं में उत्पन्न होती है। इनमें मेधेन प्रमुख है। अन्य गैसें है-हाइड्रोजन सल्फाइड, कार्बन डाइ ऑक्साइड आदि। इन गैसों को उत्पन्न करने वाला सूक्ष्मजीव है - मेथेनोबैक्टीरियम (Methanobacterium)।
प्रश्न 3.
ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक क्या होती हैं। ऐसी एक एंटीबायोटिक का उदाहरण दीजिए।
उत्तर:
ऐसी एंटीबायोटिक जो अनेक प्रकार के रोगजनकों (ग्राम पॉजीटिव व ग्राम निगेटिव जीवाणुओं) को खत्म करने या उनकी वृद्धि को रोकने में सक्षम होती है, ब्रॉड स्पेक्ट्रम (Broad spectrum) एंटीबायोटिक कहलाती है। टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline) व आज के समय की अनेक एंटीबायोटिक जैसे सिप्रोफ्लोक्सेसिन, सिफेक्सिम आदि ब्रॉड स्पेक्ट्रम होती हैं।
प्रश्न 4.
जीवाणुओं के परजीवी विषाणुओं को क्या कहा जाता है? उनका एक स्वच्छ नामांकित चित्र बनाइए।
उत्तर:
जीवाणुभोंजी (Bacteriophage) वह विषाणु होते है जो जीवाणुओं के अन्तः कोशिकीय परजीवी होते हैं।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
बायोगैस संयंत्र का एक आरेखीय चित्र (diagrammatic Sketch) बनाइए तथा इसके विभिन्न भाग जैसे गैस होल्डर, स्लज चैंबर, डाइजैस्टर, स्लरी चैम्बर नामांकित कीजिए।
उत्तर:
प्रश्न 2.
रोगों व पीड़कों के जैविक नियंत्रण का मुख्य विचार क्या है? इसका महत्व क्या है?
उत्तर:
जैवनियंत्रण कारक के रूप में सूक्ष्मजीव (Microbes as Biocontrol Agents)
पादप रोगों तथा पीड़कों (pests) के नियंत्रण के लिए जैविक विधियों का प्रयोग ही जैव नियंत्रण (bio control) कहलाता है। आज के समय में इन समस्याओं से निजात पाने के लिए रसायनों (Chemicals) का अधिकाधिक प्रयोग किया जाता है। यह रसायन हैं कीटनाशी (insecticides) व पीड़कनाशी (pesticides)। इन रसायनों के अविवेकपूर्ण व अंधाधुंध प्रयोग से अनेक दुष्प्रभाव उत्पन्न हुए हैं-
रासायनिक कीटनाशियों/पीड़कनाशियों के दुष्प्रभाव (Ill effects of chemical Insecticides/Pesticides)
इनके दुष्प्रभावों को देखते हुए जैव नियंत्रण विधियों के अधिकाधिक प्रयोग व जैविक खेती (organic farming) की आवश्यकता महसूस की जाती रही है। पर्यावरण व स्वयं मनुष्य को होने वाले नुकसान को दृष्टिगत रखते हुए इस पर अधिक बल दिये जाने की आवश्यकता है। जैविक नियंत्रण, रसायनों के प्रयोग के बजाय प्राकृतिक परभक्षण (natural predation) पर निर्भर करता है। जैविक खेती करने वाले कृषक की मान्यता है कि जैव विविधता स्वास्थ्य की पोषक होती है। किसी भी तंत्र में जितनी अधिक विविधता होती है वह उतना ही अधिक वहनीय (sustainable) होता है। जैविक खेती में कृषक इस बात का प्रयास करता है कि पीड़क (pest) माने जाने वाले कीटों का पूर्णत: उन्मूलन (eradication) न हो।
वह संतुलित व नियंत्रणीय स्तर पर बने रहें। जैविक खेती का मत है कि जीव जगत के जटिल ताने बाने (web of life) में 'पीड़क' मान लिए गये कीट का पूर्ण उन्मूलन अकारण ही नहीं अवांछनीय भी होता है, क्योंकि इनकी अनुपस्थिति में इनके लाभकारी परभक्षी (predators) व परजीवियों (parasites), जो अपने पोषण के लिए इन पर निर्भर करते हैं, का अस्तित्व खतरे में हो जाता है। अतः जैव नियंत्रण विधियों के प्रयोग से हमारी रासायनिक पौड़कनाशियों पर निर्भरता बहुत कम हो जाती है। जैविक फार्मिंग पद्धति का एक महत्वपूर्ण भाग खेत में पाये जाने वाले विभिन्न जीवनरूपों (सभी प्रकार के छोटे बड़े जीवधारियों) से परिचित होना व उनके बारे में जानकारी जुटाना है। परभक्षी व पीड़क, उनके जीवन चक्र, आहार ग्रहण विधियाँ तथा उन आवासों (habitats) की जानकारी जिनको वह वरीयता देते है, सभी का ज्ञान इस हेतु आवश्यक होता है। इस सबके अध्ययन से जैव नियंत्रण के उचित उपायों के विकास में मदद मिलती है।
जैवनियंत्रण विधियों के उदाहरण (Examples of Biocontrol methods)
1. हानिकारक कीट पीड़कों (insect pest) या उनके लार्वाओं (larvae) को उनके प्राकृतिक परभक्षी (natural predators) की मदद से नियंत्रित किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, लेडी बर्ड (Ladybird) नामक परभक्षी कीट जिस पर लाल व काले निशान होते हैं का प्रयोग एफिड (aphids) के नियंत्रण में किया जा सकता है। इसी प्रकार ड्रेगन फ्लाई (Dragon flies) का प्रयोग मच्छरों के नियंत्रण में होता है।
2. बेसीलस थूरिनजिएन्सिस (Bacillus thuringiensis): यह सूक्ष्मजीवीय जैवनियंत्रण (microbial biocontrol) का एक उत्तम उदाहरण है। यह जीवाणु छोटे-छोटे पैकेटों में बाजार में उपलब्ध है। इन पैकेटों में जीवाणु के शुष्क बीजाणु (dried spores) होते हैं जिनको पानी में मिलाकर भेद्य फसलों (vulnerable crops) जैसे फलों के वृक्ष, बेसिका आदि पर छिड़का जाता है। यहाँ यह कीटों के लार्वा द्वारा खा लिए जाते हैं। लार्वा की आहारनाल में विष (toxin) मुक्त होता है व लार्वा मर जाते हैं। तितली जैसे दिखने वाले कीटों के लार्वाओं को मारने में इसका प्रयोग होता है। इससे लार्वाओं की मृत्यु हो जाती है लेकिन अन्य कीट अप्रभावित रहते हैं। आनुवंशिक अभियांत्रिकी के क्षेत्र में हुई उल्लेखनीय प्रगति के कारण वैज्ञानिक बैसीलस थरिनजिएन्सिस विष (प्रोटीन) को कोड करने वाली जीन को पौधों में स्थानान्तरित करने में सफल हो गये है। ऐसे पौधे कीट पौड़क के आक्रमण के लिए प्रतिरोधी (resistant) होते हैं। बीटी कपास (BT Cotton) इसी प्रकार का पौधा है। अन्य अनेक फसल भी इसी सिद्धान्त पर विकसित की गई हैं।
कवक आधारित जैवनियंत्रण (Fungi based Blocontrol)
पादप रोगों के उपचार हेतु विकसित की जा रही जैव नियंत्रण की एक विधि कवक ट्राइकोडमा (Trichoderma) पर आधारित है। ट्राइकोडर्मा प्रजाति जड़ों के पर्यावरण में पाई जाने वाली एक मुक्तजीवी (free living) फंगस है। यह पादपों के अनेक रोगजनकों (plant pathogens) के लिए प्रभावकारी जैव नियंत्रक है।
बैक्यूलोवाइरस (Baculoviruses)
बैक्यूलोवाइरस, कीटों व अन्य आर्थोपोडों पर आक्रमणकारी रोगजनक होते हैं। जैव नियंत्रण में प्रयोग किये जाने वाले अधिकांश वैक्यूलोवाइरस वंश न्यूक्लिओपॉलीहेड्रोवाइरस (Genus Nucleopolyhedrovirus) के होते हैं। विषाणुओं को जैव नियंत्रण में प्रयोग करने के निम्न लाभ हैं-
जैव नियंत्रण के लाभ (Advantages of Biocontrol)
प्रश्न 3.
(A) क्या हो अगर बहुत बड़ी मात्रा में अनुपचारित सीवेज जल किसी नदी में बहाया जाये?
उत्तर:
अनुपचारित (Untreated) सीवेज के नदी में बहाने के निम्नलिखित दुष्परिणाम होते हैं-
(i) आस - पास के क्षेत्रों में, जहाँ यह नदी जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत है जल जनित रोगों (water borne diseases) के मामलों में तीन वृद्धि होगी।
(ii) नदी के प्रदूषित हो जाने कारण इसका BOD बढ़ जायेगा। BOD बढ़ने से इसमें घुलित ऑक्सीजन (dissolved oxygen - DO) को मात्रा कम हो जायेगी जिससे जलीय जीव जैसे मछली मरने लगेंगे।
(iii) पानी के गंदला (turbid) होने के कारण प्रकाश को जल की गहराई में पहुंचने में बाधा आयेगी जिससे प्रदूषण कम होने की दर कम नहीं होगी।
(B) सीवेज ट्रीटमेंट में अवायवीय आपंक का पाचन किस प्रकार से आवश्यक है?
उत्तर:
द्वितीयक उपचार के बाद सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में अवायवीय आपंक (anaerobic sludge) की बड़ी मात्रा उत्पादित होती रहती है। अत: इसे वायवीय कक्ष से नियमित अन्तराल पर निकालना आवश्यक है। मेथेनोजेन द्वारा इसके अवायवीय पाचन से बायोगैस का उत्पादन होता है जिसे अर्जा के स्रोत के रूप में प्रयोग किया जाता है। बायोगैस बनने के बाद बचे अपशिष्ट को खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है।