RBSE Class 11 Sanskrit नाट्यविषयक शब्दावली-परिचयः

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Sanskrit संस्कृतसाहित्यस्य इतिहासः नाट्यविषयक शब्दावली-परिचयः Questions and Answers, Notes Pdf.

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RBSE Class 11 Sanskrit नाट्यविषयक शब्दावली-परिचयः

1. नान्दी 

'नान्दी' नाट्यरचनायाः प्रथमो भागः भवति। अयं पूर्वाङ्गस्य अन्तर्गते आगच्छति । रङ्गस्य (नाटकस्य) विघ्नोपशान्तये नाट्याभिनयस्य पूर्वम् सूत्रधारः नान्दीपाठं करोति। साहित्यदर्पणकारः विश्वनाथः नान्दी लक्षणं कुर्वन् लिखति -

आशीर्वचनसंयुक्ता स्तुतिर्यस्मात्प्रयुज्यते।
देवद्विजनृपादीनां तस्मानादीति संज्ञिता॥ 
मङ्गल्यशङ्खचन्द्राब्जकोककैरवशंसिनी। 
पदैर्युक्ता द्वादशभिरष्टाभिर्वा पदैरुत॥ 
- साहित्य-दर्पण 6/24-25 

संक्षेपेण 'नन्दन्ति देवा अस्याम् यद्वा नन्दयति देवद्विज नृपादीन् इति नान्दी।' 

('नान्दी' नाट्य रचना का प्रथम भाग होता है। यह पूर्वाङ्ग के अन्तर्गत आता है। रंग (नाटक) के विघ्नों की शान्ति के लिए नाटक को मञ्चित करने से पूर्व सूत्रधार नान्दी पाठ करता है। साहित्यदर्पणकार विश्वनाथ ने नान्दी का लक्षण करते हुये लिखा है 

जिससे देवता, ब्राह्मण तथा राजादिकों की आशीर्वचनों से युक्त स्तुति की जाती है, उसे नान्दी कहते हैं। नान्दी मंगल चिह्नों (शंख, चन्द्र, कमल, चक्रवाक और श्वेत कमल को बताने वाली होती है। कहीं यह बारह पदों से और कहीं आठ पदों से युक्त होती है। 

संक्षेप में जिस स्तुति से देवता आदि प्रसन्न होते हैं अथवा जो देवता, ब्राह्मण एवं राजादि को प्रसन्न करती है, उसे 'नान्दी' कहते हैं।) 

RBSE Class 11 Sanskrit नाट्यविषयक शब्दावली-परिचयः

2. नेपथ्यम् 

नेपथ्यम् रङ्गमञ्चस्य पार्वे भवति। नाटकस्य पात्राणि वस्त्राभूषणानि इत्यादीनि तत्र धारयन्ति। रङ्गमञ्चस्य पार्वे यत् कथनं कथ्यते तत् नेपथ्य कथनं भवति। नेपथ्यस्य लक्षणं अजयकोशे इत्थं वर्तते -

"नेपथ्यं स्याजवनिका रङ्गभूमिः प्रसाधनम्।" 

अमरकोशानुसारेण - 

"आकल्पवेषौ नेपथ्यं प्रतिकर्म प्रसाधनम्।" 

"कुशीलवकुटुम्बस्य गृहं नेपथ्यमुच्यते।" 

('नेपथ्य' रङ्गमञ्च के पार्श्व में (बगल में) होता है। नाटक के पात्र वहाँ पर वस्त्राभूषण आदि धारण करते हैं। रङ्गमञ्च के पार्श्व में जो कथन कहा जाता है वह नेपथ्य कथन होता है। नेपथ्य का लक्षण जयकोश में इस प्रकार दिया गया है -

'नेपथ्ये स्याज्जवनिका रङ्गभूमिः प्रसाधनम्।' 
अमरकोश के अनुसार नेपथ्य की परिभाषा इस प्रकार है - 

'आकल्पवेषौ नेपथ्यं प्रतिकर्म प्रसाधनम्।'

'अभिनेतागण जहाँ पर नाटक के उपयुक्त वेशभूषा धारण करते हैं, उसे नेपथ्य कहते हैं।') 

3. प्रस्तावना 

प्रस्तावयति - प्रकृताभिनय विषयं सूचयति या सा प्रस्तावना। प्रस्तावना 'आमुख' अपि कथ्यते। अभिनयस्य प्रारंभ सूचयितुं इयं प्रस्तावना इति कथ्यते। दशरूपके आमुखस्य लक्षणं इत्थं क्रियते - 

"सूत्रधारो नटी ब्रूते मार्षवाथ विदूषकम्। 
स्वकार्य प्रस्तुता क्षेपिचित्रोक्त्या यत्तदामुखम्॥" 

'साहित्यदर्पण' इति ग्रन्थे कविराज विश्वनाथेन लिखितम् -

नटी विदूषको वापि पारिपाश्विक एव वा। 
सूत्रधारेण सहिताः संलापं यत्र कुर्वते॥ 
चित्रैर्वाक्यैः स्वकार्योत्थैः प्रस्तुताक्षेपिभिर्मिथः।
आमुखं तत्तु विज्ञेयं नाम्ना प्रस्तावनाऽपि सा॥
 -सा. दर्पण 6/31-32 

(अभिनय के प्रारंभ होने की सूचना देने से इसे 'प्रस्तावना' कहते हैं। 'प्रस्तावना' को 'आमुख' भी कहते हैं। दशरूपक में आमुख का लक्षण इस प्रकार किया गया है.-"जहाँ सूत्रधार, नटी, भार्ष (पारिपार्श्विक) या विदूषक के साथ इस प्रकार की बात करता है जिससे प्रस्तुत नाटकीय कथा का निर्देश हो जाए, उसे 'आमुख' या प्रस्तावना कहते हैं।" 

'साहित्यदर्पण' ग्रन्थ में कविराज विश्वनाथ ने लिखा है-"नटी, विदूषक या पारिपार्श्विक की सूत्रधार के साथ चित्र-विचित्र वाक्यों द्वारा अपने कार्य (अभिनय) प्रयोजन को बताया जाता है, उसे आमुख या प्रस्तावना कहते हैं।") 

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4. आत्मगतम् 

नाटकादिषु पात्रैः अभिनयसमये यत् कथनं परेषां श्रावयितुं अयोग्यं भवति, तत् कथनं 'स्वगतं' इति कथ्यते । इदं आत्मगतमपि कथ्यते। आत्मगतं इत्थं कथ्यते यत् अन्यानि पात्राणि श्रोतुं समर्थाः न भवन्ति किन्तु सामाजिकाः (दर्शकाः) शृण्वन्ति । साहित्यदर्पणे अस्य परिभाषां एवं वर्तते - 

"अश्राव्यं खलु यद्वस्तु तदिह 'स्वगतं' मतम्।" 

(नाटक आदि में पात्रों द्वारा अभिनय के समय जो बात दूसरों को सुनाने में अयोग्य होती है, उस कथन को 'स्वगत' (मन में) कहते हैं । इसको 'आत्मगत' भी कहा जाता है। ‘आत्मगतम्' इस प्रकार से कहा जाता है कि जिसे दूसरे पात्र न सुन सकें किन्तु सामाजिक (दर्शक) उसे सुन लेते हैं। साहित्य दर्पण में इसकी परिभाषा इस प्रकार है -

'जो बात दूसरों को सुनाने योग्य नहीं होती है, उसे 'स्वगत' कहते हैं।') 

5. प्रकाशम् 

सर्वैः श्रोतव्यम् यत् वाक्यम् भवति तत् प्रकाशमिति कथ्यते। यथा - उक्तं साहित्यदर्पणकारेण -

"सर्व श्राव्यं प्रकाशं स्यात्।" 

-सा. दर्पण 6/138 

(सभी के द्वारा सुनने योग्य जो वाक्य होता है, उसे 'प्रकाशम्' कहते हैं। जैसा - साहित्यदर्पणकार द्वारा कहा गया 
'जो बात सबको सुनाने के लिए कही जाती है, उसे 'प्रकाश' कहते हैं।') 

RBSE Class 11 Sanskrit नाट्यविषयक शब्दावली-परिचयः

6. जनान्तिकम्। 

संवाद कथनस्य मध्ये त्रिपताकाकारस्थ मुद्राभिः परेषाम् पात्राणाम् दृष्टिं वारयित्वा परस्परं पात्राः यत् वार्तालापं कुर्वन्ति, तत् जनान्तिकम् इति उच्यते । यथा - विश्वनाथेन साहित्यदर्पणे उक्तम् -

"त्रिपताकाकरेणान्यानपवार्यान्तरा कथाम्।" 
अन्योन्यामन्त्रणं यत्स्यात् तजनान्ते जनान्तिकम्॥ 
- सा. दर्पण-6/139 

[संवाद कथन के मध्य में त्रिपताकाकार मुद्रा के द्वारा दूसरे पात्रों की दृष्टि बचाकर पात्र परस्पर जिस वार्ता टो करते हैं, उसे 'जनान्तिक' कहा जाता है। जैसा कि विश्वनाथ ने साहित्यदर्पण में कहा है -

"जहाँ अन्य पात्रों की उपस्थिति में भी पात्र परस्पर इस प्रकार मन्त्रणा करें कि उसे दूसरे पात्रों को सुनना अभीष्ट न हो तथा दूसरे पात्रों की ओर त्रिपताका वाले हाथ से संकेत किया जाए कि उसका वारण किया जा रहा है उसे 'जनान्तिक' कहते हैं। (संक्षेप में हाथ की ओट करके दो पात्रों का वार्तालाप करना 'जनान्तिक' है।")] 

7. भरतवाक्यम् 

इदं नाटकस्य अन्ते आशीर्वादात्मकं श्लोकः भवति। भरतस्य अर्थमस्ति नटः अथवा अभिनेता । भरतानां वाक्यम् इति भरतवाक्यम्। यदा नाटकस्य अन्ते अभिनयस्य समाप्तिर्भवति तदा अभिनेतानां प्रतिनिधिरूपे सूत्रधारः इमं श्लोकं वदति। 

संजीव पास बुक्स केषाञ्चित् विदुषां मतानुसारेण 'भरतवाक्यं' इदं नाम नाट्यशास्त्रस्य जन्मदाता नाट्यशास्त्र ग्रन्थस्य रचयिता भरतमुनेः स्मृतौ इदं निर्धारितम् । तदा अस्यार्थः भविता-'भरतमुनिना आदिष्टं आशीर्वादात्मकं वाक्यम्।' 

(यह नाटक के अन्त में आशीर्वादात्मक श्लोक होता है। भरत का अर्थ है 'नट' अथवा अभिनेता। नटों का वाक्य भरत वाक्य। जब नाटक के अन्त में अभिनय की समाप्ति होती है तब अभिनेताओं के प्रतिनिधि के रूप में सूत्रधार इस श्लोक को बोलता है। 

कुछ विद्वानों के मतानुसार 'भरतवाक्य' यह नाम नाट्यशास्त्र के जन्मदाता और नाट्यशास्त्र ग्रन्थ के रचयिता भरत मुनि की स्मृति में रखा गया है तब इसका अर्थ होगा - 'भरत मुनि द्वारा आदिष्ट 'आशीर्वादात्मक वाक्य।') 

RBSE Class 11 Sanskrit नाट्यविषयक शब्दावली-परिचयः

अभ्यासार्थ महत्त्वपूर्ण प्रश्नाः

निर्देशः - अधोलिखितानां परिभाषाणां रिक्तस्थानपूर्तिः समुचितपदैः कुरत - 
(अधोलिखित परिभाषाओं की रिक्तस्थान पूर्ति समुचित पदों से कीजिए-) 
1. आशीर्वचन (i) .............. स्तुतिर्यस्मात् (ii) ........................। देवद्विज (iii) ................ तस्मान्नादीति (iv) ......................। 
2. (i) ..................... स्याज्जवनिका (ii) .................. प्रसाधनम्। 
3. (i) .................. गृहं नेपथ्यम (ii) .................। 
4. नटी (i) .................. वापि पारिपार्श्विक एव (ii) ............... । (iii) ................ सहिताः (iv) ............... यत्र कुर्वते॥ चित्रैर्वाक्यैः (v) ................................. प्रस्तुताक्षेपिभिर्मिथः। (vi) .................. तत्त विज्ञेयं नाम्ना (vii) ................... सा॥ 
5. (i) ....................... खलु यद्वस्तु तदिह (ii) ............ मतम्। 
6. ......................... प्रकाशं स्यात। 
7. (i) .................. करेणान्यानंपवार्यान्तरा (ii) ...............। (iii) ............. यत्स्यात् तजनान्ते (iv) ..............।
8. भरतानां वाक्यमिति ...................। 
उत्तराणि :
1. (i) संयुक्ता 
(ii) प्रयुज्यते 
(iii) नृपादीनां 
(iv) संज्ञिता 

2. (i) नेपथ्यं 
(ii) रङ्गभूमिः 

3. (i) कुशीलवकुटुम्बस्य 
(ii) उच्यते 

4.(i) विदूषको 
(ii) सा 
(iii) सूत्रधारेण 
(iv) संलापं 
(v) स्वकार्योत्थैः 
(vi) आमुखं 
(vii) प्रस्तावनाऽपि 

5. (i) अश्राव्यं 
(ii) स्व गतं 

6. सर्वश्राव्यं 

7. (i) त्रिपताक 
(ii) कथाम् 
(iii) अन्योन्यामन्त्रणं 
(iv) जनान्तिकम् 

8. भरतवाक्यम्। 

Prasanna
Last Updated on Aug. 19, 2022, 10:30 a.m.
Published Aug. 12, 2022