These comprehensive RBSE Class 11 Psychology Notes Chapter 9 अभिप्रेरणा एवं संवेग will give a brief overview of all the concepts.
→ अभिप्रेरणा : किसी विशेष लक्ष्य की ओर निर्दिष्ट सतत् व्यवहार की प्रक्रिया, जो किन्हीं अंतर्नोद शक्तियों का नतीजा होती है, को अभिप्रेरणा कहते हैं।
→ अभिप्रेरणाओं के प्रकार : अभिप्रेरणाएँ दो प्रकार की होती हैं - जैविक तथा मनोसामाजिक।
→ जैविक अभिप्रेरणा में फोकस, अभिप्रेरणा के सहज या जन्मजात, जैविक कारकों; जैसे हार्मोन, तंत्रिका-संचारक, मस्तिष्क संरचना अधश्चेतक, उपवल्कुटीय तंत्र इत्यादि पर केंद्रित होता है। जैविक अभिप्रेरणा के उदाहरण हैं- भूख, प्यास तथा काम (Ser)।
→ मनोसामाजिक अभिप्रेरणा उन अभिप्रेरकों की व्याख्या करती है जो प्रमुखतः व्यक्ति के उसके सामाजिक पर्यावरण के साथ अंतःक्रिया के परिणामस्वरूप विकसित होते हैं। मनोसामाजिक अभिप्रेरकों के उदाहरण, संबंधन की आवश्यकता, उपलब्धि की आवश्यकता, जिज्ञासा एवं अन्वेषण तथा शक्ति की आवश्यकता हैं। मैस्लो ने विभिन्न मानव आवश्यकताओं को आरोही पदानुक्रम में व्यवस्थित किया है, जो मूल शरीरक्रियात्मक आवश्यकताओं से प्रारंभ होकर, फिर सुरक्षा की आवश्यकताएँ, प्रेम तथा आत्मीयता की आवश्यकताएँ, सम्मान की आवश्यकताएँ और अंत में सबसे ऊपर आत्म-सिद्धि की आवश्यकताओं तक विस्तृत हैं।
→ अभिप्रेरणा से संबंधित अन्य संप्रत्यय कुंठा तथा द्वंद्व हैं।
→ संवेग उद्वेलन का एक जटिल स्वरूप है जिसमें शरीरक्रियात्मक सक्रियकरण, अनुभूतियों के प्रति चेतन जागरूकता तथा एक विशिष्ट संज्ञानात्मक लेबल जो इस प्रक्रिया की व्याख्या करते हैं, अंतर्निहित हैं।
→ कुछ संवेग मूल होते हैं; जैसे - हर्ष, क्रोध, दुःख, आश्चर्य, भय आदि। दूसरे संवेगों का अनुभव इन संवेगों के संयोजन के कारण होता है।
→ संवेगों के नियमन में केंद्रीय तथा स्वायत्त तंत्रिका तंत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
→ संवेगों की अभिव्यक्ति तथा व्याख्या में संस्कृति पूरी शक्ति से प्रभाव डालती है।
→ संवेग वाचिक और अवाचिक माध्यमों से अभिव्यक्त होते हैं।
→ शारीरिक तथा मनोवैज्ञानिक कल्याण के लिए संवेंगों का सफल प्रबन्धन महत्त्वपूर्ण है।