These comprehensive RBSE Class 11 Psychology Notes Chapter 5 संवेदी, अवधानिक एवं प्रात्यक्षिक प्रक्रियाएँ will give a brief overview of all the concepts.
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→ हमारे बाह्य एवं आंतरिक जगत का ज्ञान ज्ञानेन्द्रियों की सहायता द्वारा संभव होता है। इनमें से पाँच बाह्य ज्ञानेंद्रियाँ तथा दो आंतरिक ज्ञानेंद्रियाँ होती हैं। ज्ञानेंद्रियाँ विभिन्न उद्दीपकों को प्राप्त करती हैं तथा उन्हें तंत्रिका आवेगों के रूप में मस्तिष्क के विशिष्ट क्षेत्रों को व्याख्या के लिए प्रेषित कर देती हैं।
→ दृष्टि एवं श्रवण दो सर्वाधिक उपयोग में आने वाली संवेदनाएँ हैं। दंड एवं शंकु दृष्टि के ग्राही होते हैं। दंड प्रकाश की निम्न तीव्रता में क्रियाशील होते हैं जबकि शंकु प्रकाश की उच्च तीव्रता में कार्य करते हैं। वे क्रमशः अवर्णक एवं वर्ण दृष्टि के लिए उत्तरदायी होते हैं।
→ प्रकाश अनुकूलन एवं तम-व्यनुकूलन चाक्षुष व्यवस्था के दो महत्त्वपूर्ण गोचर हैं। वर्ण, संतृप्ति तथा धुति रंग की मूल विमाएँ हैं।
→ श्रवण संवेदना के लिए ध्वनि उद्दीपक होती है। तीव्रता, तारत्व तथा स्वर विशेषता ध्वनि की प्रमुख विशेषताएँ हैं। आधार झिल्ली में पाया जाने वाला कोर्ती अंग श्रवण का मुख्य अंग होता है।
→ अवधान वह प्रक्रिया होती है जिसके द्वारा हम एक निश्चित समय में निरर्थक सूचनाओं का निस्पंदन कर कुछ अन्य सूचनाओं का चयन करते हैं। सक्रियता, एकाग्रता तथा खोज अवधान के दो महत्त्वपूर्ण गुण माने गए हैं।
→ चयनात्मक तथा संधृत अवधान, अवधान के दो प्रमुख प्रकार होते हैं। विभक्त अवधान उन अभ्यस्त कृत्यों में स्पष्ट होता है जहाँ सूचनाओं के प्रक्रमण में एक तरह की स्वचालिता आ जाती है।
→ अवधान विस्तृति, जादुई संख्या सात से दो अधिक अथवा कम हो सकती है।
→ प्रत्यक्षण का संबंध ज्ञानेंद्रियों से प्राप्त सूचनाओं के सुविज्ञ रचना एवं व्याख्या की प्रक्रियाओं से होता है। मानव अपनी अभिप्रेरणा, प्रत्याशा, संज्ञानात्मक शैली तथा सांस्कृतिक पृष्ठभूमि के आधार पर अपने संसार का प्रत्यक्षण करते हैं।
→ आकार प्रत्यक्षण का संबंध दृश्य परिरेखा के क्षेत्र से हटकर जो चाक्षुष क्षेत्र होता है, उसी के प्रत्यक्षण से होता है। अति आदिम संगठन आकृति-भूमि पृथक्करण के रूप में घटित होता है।
→ गेस्टाल्ट मनोवैज्ञानिकों ने अनेक सिद्धान्त बताए हैं, जो मानव के प्रात्यक्षिक संगठन को निर्धारित करते हैं।
→ दृष्टिपटल पर वस्तु की प्रक्षेपित प्रतिमा द्विविम होती है। त्रिविम प्रत्यक्षण एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया होती है जो कुछ एकनेत्री एवं द्विनेत्री संकेतों के सही उपयोग पर निर्भर करती है।
→ प्रकाश की किसी भी तीव्रता एवं किसी भी दिशा से किसी वस्तु का प्रत्यक्षण यदि अपरिवर्तनीय हो तो उसे प्रात्यक्षिक स्थैर्य कहते हैं। आकार, आकृति एवं द्युति स्थैर्य इसके उदाहरण हैं।
→ भ्रम यथार्थ प्रत्यक्षण के उदाहरण नहीं हैं। हमारी ज्ञानेंद्रियों द्वारा प्राप्त सूचनाओं की गलत व्याख्या से यह गलत प्रत्यक्षण होता है। कुछ भ्रम सार्वभौम होते हैं जबकि अन्य वैयक्तिक एवं संस्कृति विशिष्ट होते हैं।
→ सामाजिक-सांस्कृतिक कारक हमारे प्रत्यक्षण में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करते हैं। वे लोगों में प्रात्यक्षिक अनुमान की कुछ आदतों एवं उद्दीपकों की प्रमुखता के प्रति विभेदक अंतरंगता उत्पन्न कर कार्य करते हैं।