These comprehensive RBSE Class 11 Psychology Notes Chapter 3 मानव व्यवहार के आधार will give a brief overview of all the concepts.
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→ मानव तंत्रिका तन्त्र में अरबों अंत:संबंधित, अतिविशिष्ट कोशिकाएँ होती हैं, जिन्हें तंत्रिका कोशिकाएँ कहते हैं। तंत्रिका कोशिकाएँ समस्त मानव-व्यवहार को नियंत्रित और समन्वित करती हैं।
→ केंद्रीय तंत्रिका तंत्र में मस्तिष्क एवं मेरुरज्जु होते हैं। केंद्रीय तंत्रिका तंत्र से निकलकर परिधीय तंत्रिका तंत्र की शाखाएँ शरीर के प्रत्येक अंग में जाती हैं। इसके दो भाग हैं : कायिक तंत्रिका तंत्र (कंकालीय पेशियों के नियंत्रण से संबंधित) और स्वायत्त तंत्रिका तंत्र (आंतरिक अंगों के नियंत्रण से सम्बन्धित)। स्वायत्त तंत्र, अनुकंपी और परानुकंपी तंत्र में उपविभाजित है।
→ तंत्रिका कोशिका में पार्श्व तंतु होते हैं जो आवेगों को ग्रहण करते हैं और अक्ष तंतु जो आवेगों को काय-कोशिका से दूसरी अन्य तंत्रिका कोशिकाओं या पेशी ऊतकों तक संचारित करते हैं।
→ प्रत्येक अक्ष तंतु एक खाली स्थान से विभाजित होता है जिसे तंत्रिका कोष संधि कहते हैं। तंत्रिका संचारक नामक रसायन जो अक्ष तंतु सीमांत से निकलता है संदेश को अन्य तंत्रिका कोशिकाओं तक पहुँचाता है।
→ मानव मस्तिष्क के केन्द्रीय क्रोड में पश्च मस्तिष्क (जिसमें मेडुला, सेतु जालाकार रचना तथा अनुमस्तिष्क होते हैं), मध्य मस्तिष्क तथा चेतक और अधश्चेतक होते हैं। केन्द्रीय क्रोड के ऊपर अग्र मस्तिष्क या प्रमस्तिष्कीय गोलार्द्ध होते हैं।
→ उपवल्कुटीय तंत्र ऐसे व्यवहार जैसे लड़ना, भागना इत्यादि को नियमित करता है। इसमें हिप्पोकेम्पस, गलतुंडिका तथा अधश्चेतन होते हैं।
→ अंतःस्रावी तंत्र में ग्रंथियाँ होती हैं। पीयूष ग्रंथि, अवटु ग्रंथि, अधिवृक्क ग्रंथि, अग्नाशय तथा जननग्रंथियाँ। हमारे व्यवहार एवं विकास में इन ग्रंथियों द्वारा प्रवाहित अंतःस्रावों की निर्णायक भूमिका होती है।
→ जैविकीय कारकों के साथ संस्कृति, भी मानव व्यवहारों की एक महत्त्वपूर्ण निर्धारक मानी गई है। इसका सन्दर्भ पर्यावरण के मानव निर्मित भाग से है जिसके दो पक्ष हैं - भौतिक एवं आत्मिक। इसका संदर्भ लोगों के समूह से है जो एक जीवन पद्धति के सहभागी होते हैं जिससे वे अपने व्यवहार का अर्थ व्युत्पन्न करते हैं तथा जिसे अभ्यास का आधार बनाते हैं। ये अर्थ और अभ्यास पीढ़ियों द्वारा संचारित होते हैं।
→ यद्यपि, जैविक कारक हमें सामान्यतः समर्थ बनाते हैं, विशिष्ट कौशलों का विकास और क्षमताएँ सांस्कृतिक कारकों एवं प्रक्रियाओं पर निर्भर होती हैं।
→ संस्कृतिकरण तथा समाजीकरण की प्रक्रियाओं के माध्यम से हम संस्कृति के बारे में सीखते हैं। संस्कृतिकरण का संदर्भ उन समस्त अधिगमों से है जो बिना किसी प्रत्यक्ष और सोद्देश्य शिक्षण के होते हैं।
→ समाजीकरण एक प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति ज्ञान, कौशल और शील गुण अर्जित करते हैं, जो उन्हें समाज एवं समूहों में प्रभावशाली सदस्यों की तरह भाग लेने में सक्षम बनाती है। सबसे महत्वपूर्ण समाजीकरण कारक माता-पिता, विद्यालय, समसमूह, जनसंचार आदि होते हैं। परसंस्कृतिग्रहण का तात्पर्य, सांस्कृतिक एवं मनोवैज्ञानिक परिवर्तनों से है जो दूसरी संस्कृतियों के सम्पर्क में आने के परिणामस्वरूप होते हैं। परसंस्कृतिग्रहण के मार्ग में लोगों द्वारा जो परसंस्कृतिग्राही युक्तियाँ अपनाई जाती हैं, वे हैं - समाकलन, आत्मसात्करण, पृथक्करण तथा सीमांतकरण।