These comprehensive RBSE Class 11 Political Science Notes Chapter 5 विधायिका will give a brief overview of all the concepts.
RBSE Class 11 Political Science Chapter 5 Notes विधायिका
→ परिचय
विधायिका जनता द्वारा निर्वाचित होती है एवं जनता के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करती है।
→ हमें संसद क्यों चाहिए?
- विधायिका कानून बनाने के साथ-साथ सभी लोकतांत्रिक राजनीतिक प्रक्रियाओं का केन्द्र होती है।
- संसद के दोनों सदन बहस, बहिर्गमन, विरोध प्रदर्शन, सर्वसम्मति और सहयोग आदि से जीवंत बने रहते हैं।
- विधायिका जनप्रतिनिधियों का जनता के प्रति उत्तरदायित्व सुनिश्चित करती है। यह वास्तव में प्रतिनिधिक लोकतंत्र का आधार
- भारत में सामान्यतः मन्त्रिमण्डल नीति निर्माण की पहल करता है। लेकिन इसका आशय यह नहीं है कि कार्यपालिका के समक्ष विधायिका महत्वहीन हो गई है। मन्त्रिमण्डल को भी विधायिका में अपना बहुमत सिद्ध करना होता है।
→ संसद में दो सदनों की क्या आवश्यकता है?
- हमारी राष्ट्रीय विधायिका को 'संसद' के नाम से जाना जाता है। इसके दो सदन हैं-राज्यसभा तथा लोकसभा।
- राज्यों की विधायिकाओं को विधानमण्डल कहते हैं। ये एक सदनात्मक या द्वि-सदनात्मक हो सकती हैं।
- वर्तमान में भारत के केवल छः राज्यों-बिहार, कर्नाटक, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश में ही द्विसदनात्मक विधायिका है।
- विविधता से युक्त सभी बड़े देश सामान्यतः द्विसदनात्मक राष्ट्रीय विधायिका चाहते हैं जिससे कि वे अपने समाज के सभी वर्गों एवं देश के सभी क्षेत्रों को उचित प्रतिनिधित्व प्रदान कर सकें।
- विधायिका के दो सदन होने से एक विधेयक या नीति पर दो बार विचार हो जाता है। यदि एक सदन जल्दबाजी में कोई निर्णय ले लेता है तो दूसरे सदन बहस के दौरान उस पर पुनर्विचार संभव हो पाता है।
→ राज्यसभा
- राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है। इसके सदस्यों का चयन अप्रत्यक्ष विधि से होता है। राज्यसभा के सदस्यों का चयन राज्य विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा किया जाता है।
- संविधान की चौथी अनुसूची में राज्यसभा के लिए प्रत्येक राज्य से निर्वाचित होने वाले सदस्यों की संख्या निर्धारित कर दी गई है।
- राज्यसभा के सदस्यों को 6 वर्ष के लिए निर्वाचित किया जाता है।
- राज्यसभा संसद का स्थायी सदन है इसलिए यह कभी भंग नहीं होता है।
- प्रत्येक दो वर्ष पर इसके एक तिहाई सदस्य अपना कार्यकाल पूरा करते हैं और इन एक तिहाई सीटों के लिए चुनाव होते हैं।
- निर्वाचित सदस्यों के अतिरिक्त साहित्य, विज्ञान, कला एवं समाजसेवा के क्षेत्र में विशेष उपलब्धि प्राप्त करने वाले 12 सदस्यों का मनोनयन राष्ट्रपति द्वारा राज्यसभा के लिए किया जाता है।
→ लोकसभा
लोकसभा और राज्यों में विधानसभाओं के सदस्यों का चयन जनता द्वारा प्रत्यक्ष निर्वाचन के माध्यम से किया जाता है।
लोकसभा के 543 निर्वाचन क्षेत्र हैं, इसके सदस्यों का चयन 5 वर्ष के लिए होता है। लेकिन लोकसभा को प्रधानमंत्री की सलाह पर राष्ट्रपति द्वारा 5 वर्ष से पहले भी भंग किया जा सकता है।
→ संसद क्या करती है?
- भारतीय संसद का प्रमुख कार्य देश की जनता के लिए कानूनों का निर्माण करना है।
- कानून बनाने के अतिरिक्त संसद अन्य विभिन्न कार्य; जैसे-विधायी कार्य, कार्यपालिका पर नियंत्रण करना, वित्तीय कार्य, प्रतिनिधित्व प्रदान करना, बहस का मंच उपलब्ध कराना, संवैधानिक कार्य, निर्वाचन सम्बन्धी कार्य और न्यायिक कार्य आदि करती
- संसद द्वारा कानून बनाने के लिए एक निश्चित प्रक्रिया अपनायी जाती है जिसमें किसी विधेयक को कई अवस्थाओं से होकर गुजरना पड़ता है।
- संसद के पास संविधान में संशोधन करने की शक्ति है। प्रत्येक संविधान संशोधन का संसद के दोनों सदनों के द्वारा एक विशेष बहुमत से पारित होना आवश्यक है।
→ राज्यसभा की शवित्तयाँ
- राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है इसलिए उसकी अनुमति के बिना संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून नहीं बना। सकती है।
- राज्यसभा सामान्य विधेयकों पर विचार कर उन्हें पारित करती है और धन विधेयकों में संशोधन प्रस्तावित करती है।
- राज्यसभा, राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव में भागीदारी करती है। उपराष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव केवल राज्यसभा में लाया जा सकता है।
→ लोकसभा की शक्तियाँ
- लोकसभा संघ सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाती है। धन विधेयकों और सामान्य विधेयकों को प्रस्तुत और पारित करती है।
- लोकसभा प्रश्न पूछकर, पूरक प्रश्न पूछकर, प्रस्ताव लाकर और अविश्वास प्रस्ताव के माध्यम से कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है।
- सामान्य और संवैधानिक विधेयकों को पारित करने, राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने, उपराष्ट्रपति को हटाने आदि के सम्बन्ध में लोकसभा और राज्यसभा की शक्तियाँ समान हैं।
→ संसद कानून कैसे बनाती है?
- संसद का प्रमुख कार्य अपनी जनता के लिए कानून बनाना है। कानून बनाने की प्रक्रिया में किसी विधेयक को कई अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है।
- • प्रस्तावित कानून के प्रारूप को विधेयक कहते हैं। ये कई प्रकार के होते हैं; जैसे-सरकारी विधेयक, निजी विधेयक, वित्त (धन) विधेयक, गैर-वित्त विधेयक आदि।
- धन विधेयक केवल लोकसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं। वही उसमें संशोधन कर सकती है तथा अस्वीकृत या स्वीकृत कर सकती है।
- जब विधेयक पर्याप्त विचार-विमर्श तथा बहस के पश्चात् दोनों सदनों द्वारा पारित कर दिया जाता है तथा उस पर राष्ट्रपति द्वारा · हस्ताक्षर कर दिये जाते हैं तो वह कानून बन जाता है।
→ संसद कार्यपालिका को कैसे नियंत्रित करती है?
- जिस दल या गठबन्धन को लोकसभा में बहुमत प्राप्त होता है उसके सदस्यों को मिलाकर ही संसदीय लोकतंत्र में कार्यपालिका बनती है।
- संसद की कार्यवाही को सुचारु ढंग से चलाने के लिए संविधान में प्रावधान किए गए हैं।
- प्रत्येक सदन का अध्यक्ष विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च अधिकारी होता है।
- बहस और चर्चा, कानूनों की स्वीकृति या अस्वीकृति, वित्तीय नियंत्रण तथा अविश्वास प्रस्तावों द्वारा विधायिका (संसद) कार्यपालिका पर नियंत्रण रखती है।
→ संसदीय समितियाँ क्या करती हैं?
- संसदीय समितियाँ कानून निर्माण के साथ-साथ सदन के दैनिक कार्यों में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
- संसदीय समितियों में भी विधेयकों पर पर्याप्त विचार-विमर्श होता है।
- समिति की सिफारिशों को सदन को भेज दिया जाता है। इन समितियों में सभी संसदीय दलों को प्रतिनिधित्व प्राप्त होता है। इसी कारण इन समितियों को 'लघु विधायिका' भी कहते हैं।
- हमारे देश में सन् 1983 से संसद की स्थायी समितियों की प्रणाली विकसित की गई है।
- विभिन्न विभागों से सम्बन्धित संसद की ऐसी बीस समितियाँ हैं।
→ संसद स्वयं को कैसे नियंत्रित करती है?
- संविधान में संसद की कार्यवाही को सुचारु ढंग से चलाने के लिए कई प्रावधान बनाये गए हैं।
- सदन का अध्यक्ष विधायिका की कार्यवाही के मामले में सर्वोच्च होता है।
- दलबदल निरोधक कानून के माध्यम से सदन का अध्यक्ष अपने सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करता है। वह दलबदल से सम्बन्धित विवादों पर अंतिम निर्णय लेता है।
- सन् 1985 में संविधान का 52वाँ संशोधन किया गया, इसे दलबदल निरोधक कानून कहते हैं। इसमें 91वें संविधान संशोधन द्वारा पुनः संशोधित किया गया है।
- • इस कानून ने दल के प्रधान नेता और सदन के अध्यक्षों को विधायिका के सदस्यों के विरुद्ध अतिरिक्त शक्तियाँ प्रदान की हैं।
→ अध्याय में दी गई महत्वपूर्ण तिथियाँ एवं सम्बन्धित घटनाएँ।
वर्ष
|
सम्बन्धित घटनाएँ
|
सन् 1983 ई.
|
भारत में संसद की स्थायी समितियों की प्रणाली विकसित की गई।
|
सन् 1985 ई.
|
52वाँ संविधान संशोधन किया गया इसे 'दलबदल निरोधक कानून' कहते हैं।
|
सन् 2002 ई.
|
11 मार्च को विपक्ष के जबर्दस्त विरोध के कारण केन्द्रीय वित्त मंत्री जसवंत सिंह को खाद के दामों में वृद्धि का प्रस्ताव वापस लेना पड़ा।
|
→ संसद - भारत की राष्ट्रीय विधायिका को संसद कहते हैं।
→ विधान मंडल - राज्यों की विधायिकाओं को विधान मंडल कहते हैं।
→ द्वि-सदनात्मक विधायिका - यदि किसी विधायिका में दो सदन होते हैं तो उसे द्वि-सदनात्मक विधायिका कहते हैं।
→ द हिन्दू - एक राष्ट्रीय समाचार पत्र। यह अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र है।
→ हिन्दुस्तान टाइम्स - यह अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित एक दैनिक राष्ट्रीय समाचार-पत्र है।
→ राज्यसभा - भारत की राष्ट्रीय विधायिका का उच्च सदन जिसके सदस्य अप्रत्यक्ष मतदान द्वारा छः वर्ष के लिए चुने जाते हैं।
→ लोकसभा - भारत की राष्ट्रीय विधायिका का निम्न सदन जिसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष मतदान द्वारा पाँच वर्ष के लिए चुने जाते हैं।
→ विधेयक - प्रस्तावित कानून के प्रारूप को विधेयक कहते हैं।
→ निजी विधेयक - मंत्री के अतिरिक्त कोई अन्य सदस्य विधेयक पेश करे तो ऐसे विधेयक को निजी विधेयक कहते हैं।
→ कानून - जब कोई विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति द्वारा स्वीकृत हो जाता है तो उसे कानून कहते हैं।
→ दल बदल - यदि कोई सदस्य अपने दल के नेतृत्व के आदेश के बावजूद सदन में उपस्थित न हो अथवा दल के निर्देश के विपरीत सदन में मतदान करे अथवा स्वेच्छा से दल की सदस्यता से त्यागपत्र दे दे तो उसे दल-बदल कहते हैं।
→ गणपूर्ति (कोरम) - यह संसद सदस्यों की वह न्यूनतम संख्या है जिनकी उपस्थिति से सदनों (लोकसभा, राज्यसभा) की कार्यवाही को वैधानिकता प्राप्त होती है। यह प्रत्येक सदन में पीठासीन अधिकारी सहित सदन की कुल सदस्य संख्या का 10वाँ भाग होता है।
→ सामान्य विधेयक - संसद में कानून बनाने के प्रस्ताव को सामान्य विधेयक कहते हैं।
→ सरकारी विधेयक - जब कोई विधेयक मंत्रिपरिषद् के किसी सदस्य द्वारा संसद के किसी सदन में रखा जाता है तो उसे सरकारी विधेयक कहते हैं।
→ प्रश्नकाल - संसद में प्रतिदिन किसी भी सदन की कार्यवाही का प्रथम घण्टा (11 से 12 बजे) प्रश्न काल कहलाता है। इस काल में प्रश्नों के माध्यम से राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सभी बातों के सम्बन्ध में सदस्य सरकार से सूचना प्राप्त करते हैं।
→ शून्यकाल - सामान्य तथा प्रश्नकाल के पश्चात लगभग 1 घण्टे का समय शून्यकाल के लिए रखा जाता है। इस समय में विचार के लिए विषय पहले से निर्धारित नहीं होते। इसमें सदस्य किसी भी महत्वपूर्ण मुद्दे को उठा सकते हैं, पर मंत्री इसका उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं हैं।
→ अविश्वास प्रस्ताव - यह प्रस्ताव सरकार के विरूद्ध लोकसभा में विपक्षी दल/दलों द्वारा लाया जाता है। यदि लोकसभा बहुमत में इस प्रस्ताव को पारित कर दे तो सम्पूर्ण मंत्रिपरिषद को त्याग पत्र देना पड़ता है।
→ एन. वी. गाडगिल - प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी, स्वतंत्रता के पश्चात् केन्द्र सरकार में मंत्री रहे, संविधान सभा वाद-विवाद खण्ड-ग्यारह से सम्बन्धित ।