RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
प्राकृतिक अधिकार निम्न में से माना जाता है 
(क) जीवन जीने का अधिकार
(ख) वोट डालने का अधिकार 
(ग) राजनीतिक दल बनाने का अधिकार
(घ) अच्छी नौकरी पाने का अधिकार 
उत्तर:
(क) जीवन जीने का अधिकार

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार  

प्रश्न 2.
हमें वोट डालने का अधिकार प्राप्त है, यह किस प्रकार का अधिकार है
(क) राजनीतिक अधिकार
(ख) आर्थिक अधिकार 
(ग) सांस्कृतिक अधिकार
(घ) प्राकृतिक अधिकार। 
उत्तर:
(क) राजनीतिक अधिकार

प्रश्न 3. 
निम्न में से आर्थिक अधिकार है
(क) वोट डालने का अधिकार
(ख) राजनीतिक दल बनाने का अधिकार 
(ग) आजीविका कमाने का अधिकार
(घ) संस्कृति के प्रचार का अधिकार। 
उत्तर:
(ग) आजीविका कमाने का अधिकार

प्रश्न 4.
मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई है 
(क) 8 दिसम्बर, 1946 ई.
(ख) 10 दिसम्बर, 1948 ई.
(ग) नवम्बर, 1945 ई.
(घ) 4 दिसम्बर, 1947 ई. । 
उत्तर:
(ख) 10 दिसम्बर, 1948 ई.

निम्न में सत्य अथवा असत्य कथन बताइए-
(क) अधिकार ऐसा दावा है जिसका औचित्य सिद्ध होता है।
(ख) शिक्षा का अधिकार एक सार्वभौमिक अधिकार है। 
(ग) व्यक्ति के विकास के लिए अधिकार जरूरी नहीं होते। 
(घ) हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकार शब्द से ज्यादा मानवाधिकार शब्द का प्रयोग हो रहा है। 
उत्तर:
(क) सत्य
(ख) सत्य
(ग) असत्य
(घ) सत्य।

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न (उत्तर सीमा-20 शब्द) 

प्रश्न 1. 
अधिकार क्या हैं ?
उत्तर:
अधिकार से आशय उन सुविधाओं और अवसरों से है, जो मनुष्य के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक हैं और उन्हें समाज में मान्यता प्राप्त है।

प्रश्न 2. 
लोकतांत्रिक देश का सदस्य होने के नाते हम किन अधिकारों की माँग करते हैं ?
उत्तर:
लोकतांत्रिक देश का सदस्य होने के नाते हम वोट देने, राजनीतिक दल बनाने, चुनाव लड़ने आदि अधिकारों की माँग करते हैं।

प्रश्न 3. 
हम राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन के अतिरिक्त और किन क्षेत्रों में अधिकारों की भाषा का प्रयोग करते हैं ?
उत्तर:

हम राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन के साथ-साथ सामाजिक और व्यक्तिगत सम्बन्धों में भी अधिकार की भाषा का प्रयोग करते हैं।

प्रश्न 4.
अधिकार किन बातों का द्योतक होते हैं ?
उत्तर:
अधिकार उन बातों का द्योतक होते हैं, जिन्हें हम और अन्य लोग सम्मान और गरिमा का जीवन यापन करने के लिए महत्वपूर्ण और आवश्यक समझते हैं।

प्रश्न 5. 
ऐसे दो अधिकारों के नाम बताइए जिन्हें विश्वव्यापक माना जाता है। 
उत्तर:

  1. आजीविका का अधिकार व 
  2. अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता का अधिकार । 

प्रश्न 6. 
अधिकारों की दावेदारी के किसी एक आधार का उल्लेख कीजिए। 
उत्तर;
अधिकारों की दावेदारी का एक आधार यह है कि ये हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक होते हैं। 

प्रश्न 7. 
ऐसे किसी एक दावे का नाम बताइए, जिसे अधिकार के रूप में मान्य नहीं किया जा सकता है। 
उत्तर:
'प्रतिबन्धित दवाओं के सेवन' का दावा एक ऐसा दावा है, जिसे अधिकार के रूप में मान्य नहीं किया जा सकता है। 

प्रश्न 8. 
17वीं, 18वीं सदी में अधिकारों को किनके द्वारा प्रदान किया गया माना जाता था ? 
उत्तर:
17वीं, 18वीं सदी में अधिकारों को ईश्वर द्वारा प्रदान किया गया माना जाता था। 

प्रश्न 9.
प्राकृतिक अधिकार क्या हैं? 
उत्तर:
वे अधिकार जो व्यक्ति को ईश्वर या प्रकृति द्वारा जन्म से ही प्रदान किए गए है, प्राकृतिक अधिकार कहलाते है।

प्रश्न 10. 
17वीं, 18वीं सदी में राजनीतिक विचारकों द्वारा मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों के रूप में किन अधिकारों को वर्णित किया गया ?
अथवा 
राजनीतिक सिद्धांतकारों ने मनुष्य के कौन-कौन से प्राकृतिक अधिकार चिन्हित किये हैं? 
उत्तर:

  1. जीवन का अधिकार
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. सम्पत्ति का अधिकार । 

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

प्रश्न 11. 
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का प्रयोग किस उद्देश्य के लिए किया जाता था?
उत्तर:
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धान्त का प्रयोग राज्यों अथवा सरकारों के द्वारा स्वेच्छाचारी शक्तियों के प्रयोग का विरोध करने एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा करने के लिए किया जाता था।

प्रश्न 12. 
हाल के वर्षों में 'प्राकृतिक अधिकार' शब्द के स्थान पर किस शब्द का प्रयोग अधिक किया जा रहा है ? 
उत्तर:
हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकार' शब्द के स्थान पर 'मानवाधिकार' शब्द का प्रयोग अधिक किया जा रहा है। 

प्रश्न 13. 
मानव अधिकारों के पीछे निहित मूल मान्यता क्या है ?
उत्तर:
मानव अधिकारों के पीछे निहित मूल मान्यता यह है कि सभी लोग मनुष्य होने के नाते कुछ समान एवं आवश्यक अधिकारों को पाने के अधिकारी हैं।

प्रश्न 14. 
पूरी दुनिया में आज उत्पीड़न के शिकार मनुष्य किस अवधारणा की पुनः व्याख्या के लिए संघर्ष कर रहे हैं और क्यों?
उत्तर:
पूरी दुनिया में आज उत्पीड़न के शिकार मनुष्य मानवता की अवधारणा की पुनः व्याख्या के लिए संघर्ष कर रहे हैं, ताकि वे स्वयं को इसमें शामिल कर सकें।

प्रश्न 15. 
विभिन्न समाजों में मानवाधिकारों की सूची लगातार क्यों बढ़ती जा रही है ?
उत्तर:
विभिन्न समाजों द्वारा उत्पन्न हो रहे नए-नए खतरों और चुनौतियों के कारण मानवाधिकारों की सूची लगातार बढ़ती जा रही है।

प्रश्न 16. 
इमैनुएल कांट ने अधिकारों की किस प्रकार की धारणा प्रस्तुत की ? 
उत्तर:
इमैनुएल कांट ने अधिकारों की एक 'नैतिक' धारणा प्रस्तुत की। 

प्रश्न 17. 
इमैनुएल कांट ने अधिकारों से सम्बन्धित अपने विचारों का उल्लेख किस आधार पर किया है ? 
उत्तर:
इमैनुएल कांट ने अधिकारों से सम्बन्धित अपने विचारों का उल्लेख 'मानवीय गरिमा' के विचार के आधार पर किया

प्रश्न 18. 
अधिकारों की कानूनी मान्यता को अधिक महत्व क्यों प्रदान किया जा रहा है?
उत्तर:
अधिकारों की कानूनी मान्यता को अधिक महत्व इसलिए दिया जा रहा क्योंकि अधिकारों की सफलता के लिए सरकारों और कानूनों का समर्थन बहुत महत्वपूर्ण होता है।

प्रश्न 19. 
प्रत्येक अधिकार राज्य को क्या दिशा-निर्देश ता है ?
उत्तर:
प्रत्येक अधिकार राज्य को यह दिशा-निर्देश देता है कि राज्य के लिए क्या करने योग्य है और क्या नहीं। 

प्रश्न 20. 
हमारे अधिकार राज्य पर हमारे जीवन में हस्तक्षेप की क्या सीमाएँ लगाते हैं ?
उत्तर:
हमारे अधिकार राज्य पर यह सीमा लगाते हैं कि राज्य की सत्ता हमारे व्यक्तिगत जीवन और स्वतन्त्रता की मर्यादा का उल्लंघन किये बिना कार्य करे।

प्रश्न 21. 
अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ किन अधिकारों की घोषणा से अपनी शुरुआत करती हैं?
उत्तर:
अधिकांश लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक अधिकारों की घोषणा से अपनी शुरूआत करती हैं। 

प्रश्न 22. 
हम राजनीतिक भागीदारी के अपने अधिकार को पूरी तरह से अमल में कब ला सकते हैं?
उत्तर:
हम राजनीतिक भागीदारी के अपने अधिकार को पूरी तरह से तभी अमल में ला सकते हैं जब हमारी भोजन, वस्त्र, आवास, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी जरूरतें पूरी हों।

प्रश्न 23. 
बुनियादी अधिकार के रूप में मान्य अधिकार कौन-कौन से हैं? अथवा चार ऐसे अधिकारों का उल्लेख कीजिए जो बुनियादी अधिकार के रूप में मान्य हैं?
उत्तर:

  1. जीवन का अधिकार
  2. समान व्यवहार का अधिकार
  3. स्वतंत्रता का अधिकार
  4. राजनीतिक भागीदारी का अधिकार।

प्रश्न 24. 
अधिकार हमें किन बातों के लिए बाध्य करते हैं ?
उत्तर:
अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम अपनी निजी जरूरतों और हितों की ही न सोचें, कुछ ऐसी चीजों की भी रक्षा करें, जो हम सब के लिए हितकर हैं।

प्रश्न 25. 
अधिकार के साथ हमें मिलने वाली किसी एक जिम्मेदारी का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अधिकार के साथ हमें मिलने वाली एक प्रमुख जिम्मेदारी यह है कि हम अपने अधिकारों का प्रयोग करते समय अन्य लोगों के अधिकारों का भी सम्मान करें।

प्रश्न 26. 
'नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के बारे में सचेत रहना चाहिए' यह कथन किस बात से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
'नागरिकों को अपने अधिकारों पर लगाए जाने वाले नियंत्रणों के बारे में सचेत रहना चाहिए' यह कथन अधिकारों पर राज्य व समाज के बढ़ते प्रतिबन्धों से सम्बन्धित है।

प्रश्न 27. 
नागरिकों की स्वतन्त्रता में कटौती करते समय हमें अत्यन्त सावधान रहने की जरूरत क्यों है ?
उत्तर:
नागरिकों की स्वतन्त्रता में कटौती करते समय हमें अत्यन्त सावधान रहने की जरूरत है क्योंकि इन प्रतिबन्धों का आसानी से बड़ी मात्रा में दुरुपयोग किया जा सकता है।

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प्रश्न 28. 
सरकारों का निर्माण किनके कल्याण के लिए होता है ?
उत्तर:
सरकारों का निर्माण उस राज्य में रहने वाले लोगों के कल्याण के लिए किया जाता है।

प्रश्न 29.
अधिकार लोकतांत्रिक समाज के विकास में क्या भूमिका निभाते हैं ?
उत्तर:
अधिकार लोकतांत्रिक समाज के विकास में इसकी बुनियाद का निर्माण करने वाले तत्व की भूमिका निभाते हैं। 

प्रश्न 30. 
मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा कब और किस संगठन द्वारा की गई है ?
उत्तर:
मानव अधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा 10 दिसम्बर, 1948 ई. को 'संयुक्त राष्ट्र संघ' नामक अन्तर्राष्ट्रीय संगठन द्वारा की गई।

प्रश्न 31. 
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा क्यों की गई ? \
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा समस्त विश्व में मानवाधिकारों की रक्षा करने एवं इन्हें बढ़ावा देने के उद्देश्य से मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की गई। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA) (उत्तर सीमा 40 शब्द)

प्रश्न 1. 
वर्तमान में लोगों द्वारा की जा रही नये अकारों की मांगों के विषय में संक्षेप में बताएँ।
उत्तर:
वर्तमान में लोकतांत्रिक देशों में लोगों द्वारा निरन्तर नए-नए अधिकारों की माँग की जा रही है। आज आम तौर पर स्वीकृत नागरिक और राजनीतिक अधिकारों के अलावा सूचना का अधिकार, स्वच्छ वायु का अधिकार, स्वच्छ पेयजल का अधिकार, उचित मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार इत्यादि जैसे नए-नए अधिकारों की माँगों को उठाया जा रहा है। ये नए-नए अधिकारों की माँगें बदलती सामाजिक, आर्थिक परिस्थितियों के कारण उठती रहती हैं।

प्रश्न 2. 
अधिकारों का वास्तविक मतलब क्या है ?
उत्तर:
अधिकारों का वास्तविक मतलब उन सुविधाओं और अवसरों से होता है जो व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक होते हैं। और जिन्हें समाज द्वारा मान्यता प्राप्त होती है। दूसरे शब्दों में "अधिकार" वे सुविधाएँ हैं जिनसे हमें किसी कार्य को करने या न करने की शक्ति मिलती है।

प्रश्न 3. 
'अधिकार हमारे सम्मान एवं गरिमामय जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक हैं।' कथन को सौदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर;
अधिकार उन बातों का द्योतक हैं। जिन्हें लोग सम्मान एवं गरिमा का जीवन व्यतीत करने के लिए आवश्यक समझते हैं। उदाहरणार्थ आजीविका का अधिकार सम्मानजनक जीवन जीने के लिए आवश्यक है क्योंकि यह व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता देता है। इसी प्रकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी हमें सृजनात्मक एवं मौलिक होने का अवसर प्रदान करता है चाहे वह नृत्य, संगीत अथवा लेखन या किसी अन्य रचनात्मक क्रियाकलाप के क्षेत्र में हो।

प्रश्न 4. 
स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के अधिकार की क्या उपयोगिताएँ हैं ?
उत्तर:
स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार हमारे लिए इस रूप में उपयोगी है कि यह हमें अपनी रचनात्मक क्षमताओं और अपने मौलिक विचारों को रखने एवं बढ़ाने का मौका देता है। इसी प्रकार यह अधिकार लोकतांत्रिक सरकारों के लिए भी उपयोगी होता है। इस अधिकार द्वारा नागरिकों को अपने विश्वासों और मतों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति के अवसर मिलते हैं। इस प्रकार लोकतांत्रिक सरकार की सार्थकता के लिए यह अधिकार बहुत उपयोगी है। 

प्रश्न 5. 
अधिकारों की दावेदारी के किसी एक आधार को समझाइए।
अथवा "अधिकार हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक हैं।' कथन को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकारों की दावेदारी का एक प्रमुख आधार इनका हमारी बेहतरी के लिए आवश्यक होना है। अधिकार हमें अपनी क्षमताओं और प्रतिभा के विकास में सहयोग प्रदान करते हैं। उदाहरण के लिए- शिक्षा के अधिकार की दावेद्दारी हमें वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण सोच से परिचित कराती है। अतः अधिकारों की दावेदारी के पीछे अनिवार्य रूप में हमारी बेहतरी की आवश्यकताएँ निहित होती है।

प्रश्न 6. 
क्या हमारे स्वास्ध्य के लिए नुकसानदेह क्रियाकलापों को अधिकार माना जा सकता है ? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह क्रियाकलापों को अधिकार नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसे क्रियाकलाप हमें तो व्यक्तिगत नुक्कसान पहूँचाते ही हैं, साथ ही साथ अन्य लोगों के साथ हमारे सम्बन्धों को भी प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए- ' शराब पीना ' जहाँ हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुँचाता है, वहीं यह कार्य परिवारी जनों व अन्य लोगों के साथ हमारे बरताव को भी खराब करता है। इसी प्रकार बीड़ी, सिगरेट पीना भी हमारे साथ-साथ दूसरों को भी नुकसान पहुँचाता है।

प्रश्न 7. 
'मानवाधिकार' क्या हैं ?
उत्तर:
मानवाधिकार का सीधा सा अभिग्राय है- मानव + अधिकार अर्थात् मानव के अधिकार। इस प्रकार मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो कि सभी लोगों को मानव होने के नाते प्राप्त होने ही चाहिए। एक मानव के रूप में हर आदमी विशिष्ट है और उसका समान महत्व है। मानवाधिकार इसी धारणा पर आधारित हैं। अतः एक मानव होने के नाते हमें जो भी आवश्यक स्थितियाँ, वस्तुएँ इत्यादि मिलनी चाहिए उन्हें ही मानवाधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 8. 
हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकारों के स्थान पर मानवाधिकार शब्द का प्रयोग क्यों किया जाने लगा है ?
उत्तर:
हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकार के स्थान पर मानवाधिकार शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है क्योंकि वर्तमान में प्राकृतिक अधिकार का विचार स्वीकार करने योग्य नहीं रह गया है। ऐसा मानना भी मुश्किल होता जा रहा है कि कुछ नियम-आदर्श ऐसे हैं जिन्हें प्रकृति या ईश्वर ने रचा है। अतः वर्तमान में अधिकारों को ऐसी गारंटियों के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है जिन्हें मनुष्य ने एक अच्छा जीवन जीने के लिए स्वयं खोजा या पाया है। इसी कारण वर्तमान में ' मानवाधिकार ' शब्द का प्रयोग होने लगा है।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

प्रश्न 9. 
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता क्या है?
उत्तर:
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग, मानव होने मात्र से कुछ अधिकारों को प्राप्त करने के अधिकारी हैं। एक मानव के रूप में प्रत्येक मनुष्य समान महत्व रखता है, इसलिए सभी को स्वतंत्र रहने और अपने व्यक्तित्व के विकास होतु समान अवसर मिलने चाहिए।

प्रश्न 10. 
समस्त विश्व में मानवाधिकारों की धारणा का इस्तेमाल उत्पीड़ित लोगों द्वारा किन कानूनों को चुनौती देने के लिए किया जा रहा है ?
उत्तर:
समस्त विश्व में मानवाधिकारों की धारणा का इस्तेमाल उत्पीड़ित लोगों द्वारा उन कानूनों के खिलाफ किया जा रहा है जो उन्हें पृथक मानते हैं तथा समान अवसरों व अधिकारों से वंचित करने वाले है। आज पूरी दुनिया में विधिन्न दबे-कुचले दुर्बल वर्गों के लिएँ मानवाधिकारों की धारणा एक प्रकाश पुंज के समान बन गयी है। यह धारणा निरन्तर उन्हें ऐसे सभी कानूनों का विरोध करने के लिए हौसला दे रही है, जो भेदभाव करते हों या अन्यायपूर्ण हों।

प्रश्न 11. 
इमैनुएल कांट ने लोगों के साथ गरिमामय बरताव का क्या अर्थ बताया है ?
उत्तर:
इमैनुएल कांट ने लोगों के साथ गरिमामय बरताच का अर्थ यह बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ नैतिकता से पेश आना। कांट का यह विचार सामाजिक ऊँच-नीच का विरोधी है। कांट का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति के साथ ऐसा बरताव किया जाना चाहिए जिससे उसकी व्यक्तिगत गरिमा को टेस न पहुँचे। इसे ही कांट ने लोगों के साथ 'गरिमामय बरताव' कहा है।

प्रश्न 12. 
पर्यावरण की सुरक्षा का मामला किस प्रकार अधिकारों की रक्षा से सम्बन्धित है ?
उत्तर:
पर्यावरण की सुरक्षा का मामला अधिकारों की रक्षा से गहरे से जुड़ा हुआा है। पयावरण में पेयजल, वायु, उपजाऊ भूमि आदि सभी आते हैं। इन पर केवल हमारा ही हक नहीं है बलिक ये हमारी आने वाली पीढियों के लिए भी जरूरी है। यदि पर्यावरण दूषित्त होता है तो हमारे साथ-साथ आने वाली पीड़ियाँ भी स्वच्छ वायु, जल इत्यादि से खंचित हो जाएँगी। एक मानव होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति का यह हक बनता है कि उसे शुद्ध वायु और जल आदि प्राप्त हों। अतः इस प्रकार पर्यावरण की सुरक्षा का मामला अधिकारों की रक्षा से ही सम्बन्धित है।

प्रश्न 13. 
हमारे दावों को मिलने वाली कानूनी मान्यता का क्या महत्व होता है ?
उत्तर:
हमारे दावों को मिलने वाली कानूनी मान्यता अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। कानूनी मान्यता से निश्चित तौर पर हमारे अधिकारों को समाज में एक खास दर्जा प्राप्त हो जाता है। कानूनी मान्यता के महत्व का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि बहुत से राजनीतिक विचारक अधिकार को ऐसे दावों के रूप में परिभाषित करते हैं, जिन्हें राज्य ने मान्यता प्रदान की हो। इस प्रकार अधिकारों को मिलने वाली कानूनी मान्यता का महत्व स्पष्ट है।

प्रश्न 14. 
राज्य की सत्ता और लोगों के अधिकार में क्या सम्बन्ध है ?
उत्तर:
राज्य की सत्ता और लोगों के अधिकार में घनिष्ठ सम्बन्ध है। एक तरफ राज्य ही नागरिकों को अधिकार प्रदान करने एवं इनकी रक्षा करने वाली सर्वोच्च शक्ति रखता है तो दूसरी ओर ये अधिकार राज्य की असीम शक्ति पर कुछ सीमाएँ भी लगाते हैं। इस प्रकार राज्य की सत्ता का औचित्य लोगों के अधिकारों व हितों की रक्षा करना है। राज्य की सत्ता लोगों के अधिकारों को प्रदान करने वाली भी है और रक्षक भी है।

प्रश्न 15.
'राजनीतिक अधिकार' को उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
लोगों को प्राप्त होने वाले वे अधिकार जिनके द्वारा वे राजनीतिक व्यवस्था (राज्य, सरकार) में सहभागी बनते हैं, राजनीतिक अधिकार कहलाते हैं। उदाहरण के लिए वोट डालने का अधिकार, राजनीतिक दल बनाने का अधिकार इत्यादि राजनीतिक अधिकार हैं। राजनीतिक अधिकार वर्तमान लोकतांत्रिक राज्यों में नागरिकों को अनिवार्य रूप से प्राप्त होने वाले दावे हैं। 

प्रश्न 16. 
अधिकार के साथ जिम्मेदारी भी मिलती है, कैसे ?
अथवा 
'प्रत्येक अधिकार अपने साथ जिम्मेदारी भी लेकर आता है' कथन को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अधिकार और जिम्मेदारी-अधिकार हमारे लिए आवश्यक होते हैं परन्तु प्रत्येक अधिकार अपने साथ जिम्मेदारी भी लेकर आता है। उदाहरण के लिए हमें बोलने की आजादी है, परन्तु इसके साथ हमारी यह जिम्मेदारी भी बन जाती है कि हम ऐसा कुछ न बोलें कि उससे दूसरों की भावनाओं को ठेस पहुँचे। इस प्रकार स्पष्ट है कि अधिकार अपने साथ अनिवार्य रूप से कुछ जिम्मेदारियाँ भी लेकर आते हैं।

प्रश्न 17. 
राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर लोगों के अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना किस सीमा तक उचित है ?
उत्तर:
राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर वर्तमान में सरकारों में नागरिकों के अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाने की होड़ सी लगी है। यह स्थिति नागरिकों के अधिकारों के लिए खतरनाक है। प्रतिबन्ध उस सीमा तक ही लगाए जाने चाहिए जहाँ तक वास्तव में कोई राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला हो। परन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा की आड़ में नागरिकों के अधिकारों का हनन पूर्णतः अनुचित है। अतः लोगों के अधिकारों पर प्रतिबन्ध केवल विशेष परिस्थितियों में ही लगाये जाने चाहिए।

प्रश्न 18. 
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा किस प्रकार महत्वपूर्ण है ?
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा की गई मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा कई प्रकार से महत्वपूर्ण है। इस घोषणा से सम्पूर्ण विश्व में मानवाधिकारों को मान्यता प्राप्त हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ के अधिकांश सदस्य देशों ने इस घोषणा को माना और अपने यहाँ लागू भी किया। इस प्रकार मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा ने मानवाधिकारों को सम्पूर्ण विश्व में स्वीकार्य बनाया। अतः यह अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (SA,) (उत्तर सीमा-100 शब्द)

प्रश्न 1. 
"बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हमें अपनी प्रतिभा के विकास और रुचिपूर्ण कार्य करने की ओर प्रेरित करती है'' कथन की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
हर व्यक्ति की कुछ बुनियादी जरूरतें होती हैं। इन जरूरतों में भोजन, आवास, वस्त्र, शिक्षा, स्वास्थ्य इत्यादि का उल्लेख किया जा सकता है। कोई भी व्यक्ति सही प्रकार से जीवन तभी जी सकता है जब उसकी इन आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही हो। जब व्यक्ति की बुनियादी जरूरतें ही पूरी न हो पा रही हों तो उसका सम्पूर्ण ध्यान और श्रम इन्हें जुटाने में ही लगा रहता है। ऐसे में व्यक्ति न तो अपनी प्रतिभाओं को निखार पाता है और न ही अपनी रुचि के मुताबिक कार्य कर पाता है। उदाहरण के लिए शिक्षा के अधिकार की दावेदारी हमें वैज्ञानिक एवं तर्कपूर्ण सोच से परिचित कराती है। अतः अधिकारों की दावेदारी के पीछे अनिवार्य रूप में हमारी बेहतरी की आवश्यकताएँ निहित होती हैं।

प्रश्न 6. 
क्या हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह क्रियाकलापों को अधिकार माना जा सकता है ? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
नहीं, हमारे स्वास्थ्य के लिए नुकसानदेह क्रियाकलापों को अधिकार नहीं माना जा सकता, क्योंकि ऐसे क्रियाकलाप हमें तो व्यक्तिगत नुकसान पहुँचाते ही हैं, साथ ही साथ अन्य लोगों के साथ हमारे सम्बन्धों को भी प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए–'शराब पीना' जहाँ हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाता है, वहीं यह कार्य परिवारी जनों व अन्य लोगों के साथ हमारे बरताव को भी खराब करता है। इसी प्रकार बीड़ी, सिगरेट पीना भी हमारे साथ-साथ दूसरों को भी नुकसान पहुंचाता है।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 5 अधिकार

प्रश्न 7. 
'मानवाधिकार' क्या हैं ?
उत्तर;
मानवाधिकार का सीधा सा अभिप्राय है- मानव + अधिकार अर्थात् मानव के अधिकार । इस प्रकार मानवाधिकार वे अधिकार हैं जो कि सभी लोगों को मानव होने के नाते प्राप्त होने ही चाहिए। एक मानव के रूप में हर आदमी विशिष्ट है और उसका समान महत्व है। मानवाधिकार इसी धारणा पर आधारित हैं। अतः एक मानव होने के नाते हमें जो भी आवश्यक स्थितियाँ, वस्तुएँ इत्यादि मिलनी चाहिए उन्हें ही मानवाधिकार कहा जाता है।

प्रश्न 8. 
हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकारों के स्थान पर मानवाधिकार शब्द का प्रयोग क्यों किया जाने लगा है ?
उत्तर:
हाल के वर्षों में प्राकृतिक अधिकार के स्थान पर मानवाधिकार शब्द का प्रयोग किया जाने लगा है क्योंकि वर्तमान में प्राकृतिक अधिकार का विचार स्वीकार करने योग्य नहीं रह गया है। ऐसा मानना भी मुश्किल होता जा रहा है कि कुछ नियम-आदर्श ऐसे हैं जिन्हें प्रकृति या ईश्वर ने रचा है। अतः वर्तमान में अधिकारों को ऐसी गारंटियों के रूप में देखने की प्रवृत्ति बढ़ी है जिन्हें मनुष्य ने एक अच्छा जीवन जीने के लिए स्वयं खोजा या पाया है। इसी कारण वर्तमान में 'मानवाधिकार' शब्द का प्रयोग होने लगा

प्रश्न 9. 
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता क्या है?
उत्तर:
मानवाधिकारों की अवधारणा के पीछे मूल मान्यता यह है कि सभी लोग, मानव होने मात्र से कुछ अधिकारों को प्राप्त करने के अधिकारी हैं। एक मानव के रूप में प्रत्येक मनुष्य समान महत्व रखता है, इसलिए सभी को स्वतंत्र रहने और अपने व्यक्तित्व के विकास हेतु समान अवसर मिलने चाहिए।

प्रश्न 10. 
समस्त विश्व में मानवाधिकारों की धारणा का इस्तेमाल उत्पीड़ित लोगों द्वारा किन कानूनों को चुनौती देने के लिए किया जा रहा है ?
उत्तर:
समस्त विश्व में मानवाधिकारों की धारणा का इस्तेमाल उत्पीड़ित लोगों द्वारा उन कानूनों के खिलाफ किया जा रहा है जो उन्हें पृथक मानते हैं तथा समान अवसरों व अधिकारों से वंचित करने वाले हैं। आज पूरी दुनिया में विभिन्न दबे-कुचले दुर्बल वर्गों के लिए मानवाधिकारों की धारणा एक प्रकाश पुंज के समान बन गयी है। यह धारणा निरन्तर उन्हें ऐसे सभी कानूनों का विरोध करने के लिए हौसला दे रही है, जो भेदभाव करते हों या अन्यायपूर्ण हों।

प्रश्न 11. 
इमैनुएल कांट ने लोगों के साथ गरिमामय बरताव का क्या अर्थ बताया है ?
उत्तर:
इमैनुएल कांट ने लोगों के साथ गरिमामय बरताव का अर्थ यह बताया है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ नैतिकता से पेश आना। कांट का यह विचार सामाजिक ऊँच-नीच का विरोधी है। कांट का मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति की अपनी प्रतिष्ठा और सम्मान होता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति के साथ ऐसा बरताव किया जाना चाहिए जिससे उसकी व्यक्तिगत गरिमा को ठेस न पहुँचे। इसे ही कांट ने लोगों के साथ 'गरिमामय बरताव' कहा है।

प्रश्न 12. 
पर्यावरण की सुरक्षा का मामला किस प्रकार अधिकारों की रक्षा से सम्बन्धित है ? ।
उत्तर:
पर्यावरण की सुरक्षा का मामला अधिकारों की रक्षा से गहरे से जुड़ा हुआ है। पर्यावरण में पेयजल, वायु, उपजाऊ भूमि आदि सभी आते हैं। इन पर केवल हमारा ही हक नहीं है बल्कि ये हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए भी जरूरी हैं। यदि पर्यावरण दूषित होता है तो हमारे साथ-साथ आने वाली पीढ़ियाँ भी स्वच्छ वायु, जल इत्यादि से वंचित हो जाएँगी। एक मानव होने के नाते प्रत्येक व्यक्ति का यह हक बनता है कि उसे शुद्ध वायु और जल आदि प्राप्त हों। अतः इस प्रकार पर्यावरण की सुरक्षा का मामला अधिकारों की रक्षा से ही सम्बन्धित है। 

उदाहरण के लिए यदि व्यक्ति को दो दिन खाना न मिले और उसमें गाने का कौशल है तो वह भूखा व्यक्ति अपने कौशल का प्रयोग करने की स्थिति में भी नहीं होगा। अतः प्रत्येक व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के लिए यह आवश्यक है कि सर्वप्रथम उसकी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति की जाए। तत्पश्चात् उसके समक्ष अधिकारों व अवसरों तथा कर्तव्यों की बात की जाए। इस प्रकार निश्चित रूप से यह कहा जा सकता है कि बुनियादी जरूरतों की पूर्ति हमें अपनी प्रतिभा के विकास और रुचिपूर्ण कार्य करने की ओर प्रेरित करती है।

प्रश्न 2. 
शिक्षा पाने के अधिकार को किन कारणों से सार्वभौम अधिकार माना गया है ?
उत्तर:
शिक्षा पाने के अधिकार को सार्वभौम (विश्वव्यापी) अधिकार माने जाने के कारण शिक्षा पाने के अधिकार को विश्वव्यापी अधिकार माना जाने लगा है। इसके निम्नलिखित कारण हैं
(i) शिक्षा से मनुष्य के कौशल व क्षमताओं का विकास होता है-शिक्षा मनुष्य की छिपी क्षमताओं को बाहर निकालने का मौका देती है। शिक्षा के माध्यम से व्यक्ति के विभिन्न कौशलों का भी विकास होता है। उदाहरण के लिए किसी व्यक्ति का कंठ (गला) अच्छा हो और यदि उसे संगीत की शिक्षा प्राप्त हो जाए तो वह अच्छा गायक बन सकता है। इस प्रकार शिक्षा सभी व्यक्तियों के लिए एक जरूरी अधिकार है।

(ii) शिक्षा व्यक्ति को तार्किक सोच देती है-मनुष्य एक विवेकशील प्राणी तो है परन्तु शिक्षा ही वह साधन है जो व्यक्ति को सही मायने में अपने विवेक का प्रयोग करने लायक बनाती है। इस प्रकार शिक्षा व्यक्ति को तार्किक सोचं प्रदान करती है। अतः इस रूप में यह एक अनिवार्य अधिकार है।

(iii) शिक्षा मानव को वास्तविक अर्थों में मानव बनाती है शिक्षा ही व्यक्ति में विभिन्न क्षमताओं और गुणों का विकास करके उसे वास्तविक अर्थों में मानव बनाती है। शिक्षित व्यक्ति समाज में अपने कौशल, विवेक व क्षमताओं का प्रदर्शन कर सरलता से अपना हक प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 3. 
17वीं, 18वीं सदी में प्राकृतिक अधिकारों के रूप में मान्यता प्राप्त प्रमुख अधिकारों का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
17वीं, 18वीं सदी में प्राकृतिक अधिकारों की धारणा का उदय हुआ। इस अवधि में प्रमुख रूप से तीन अधिकारों को प्राकृतिक अधिकारों के रूप में मान्यता दी गई-

  1. जीवन का अधिकार 
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार 
  3. सम्पत्ति का अधिकार। 

इनका वर्णन निम्नलिखित है-
1. जीवन का अधिकार-जीवन के अधिकार का आशय यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को मानव होने के नाते भली प्रकार जीवन जीने का अधिकार प्राप्त है। चूँकि सभी व्यक्तियों को ईश्वर ने उत्पन्न किया है, अतः धरती पर किसी भी व्यक्ति को अपना जीवन जीने से रोका नहीं जा सकता।

2. सम्पत्ति का अधिकार सम्पत्ति का अधिकार भी प्राकृतिक अधिकार माना गया है। विचारकों का मानना था कि मानव धरती पर जन्म लेते ही अन्य लोगों के समान सम्पत्ति प्राप्त करने का अधिकारी है।

3. स्वतन्त्रता का अधिकार-यह भी एक महत्वपूर्ण प्राकृतिक अधिकार माना जाता है। इसके तहत यह माना जाता है कि व्यक्ति स्वतन्त्र ही धरती पर जन्म लेता है। अतः उसकी स्वतन्त्रता ईश्वर द्वारा प्रदत्त है। व्यक्ति की स्वतन्त्रता को प्रतिबन्धित नहीं किया जाना चाहिए।

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प्रश्न 4. 
समाज में जैसे-जैसे विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे नए-नए अधिकारों की माँग सामने आ रही है, क्यों? उचित उदाहरणों की मदद से समझाइए।
उत्तर:
समाज में विकास की प्रक्रिया में दिन प्रतिदिन नए-नए परिवर्तन होते जा रहे हैं। इन परिवर्तनों से जहाँ एक ओर कई लाभ मिले हैं तो वहीं दूसरी ओर इसके कई बुरे प्रभाव भी पड़े। समाज में नए-नए खतरे एवं चुनौतियाँ उत्पन्न हुई हैं। इनसे बचने के लिए ही नए-नए अधिकारों की माँगें भी सामने आती जा रही हैं। उदाहरण के लिए तीव्र औद्योगिक विकास ने पर्यावरण को खतरे में डाल दिया है। अत: आज हमें पर्यावरण सुरक्षा के प्रति बहुत ज्यादा सचेत रहना पड़ रहा है। इस जागरूकता ने स्वच्छ हवा, शुद्ध जल, टिकाऊ विकास जैसे अधिकारों की माँगें पैदा की हैं।

इसी प्रकार युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के दौरान प्रभावित होने वाले लोगों विशेषकर महिलाओं और बच्चों को कई बदलावों को सहन करना पड़ता है। इनके प्रति जागरूकता ने आज आजीविका के अधिकार, बच्चों के अधिकार इत्यादि जैसे अन्य नए अधिकारों की माँगों को जन्म दिया है। ये दावे मानव गरिमा के अतिक्रमण के प्रति नैतिक क्रोध का भाव प्रकट करते हैं। इस प्रकार समाज में जैसे-जैसे विकास होता जा रहा है, वैसे-वैसे नए-नए अधिकारों की माँग सामने आ रही है।

प्रश्न 5. 
इमैनुएल कांट के अधिकार सम्बन्धी विचारों को नैतिक धारणा किन आधारों पर कहा जाता है ?
उत्तर:
इमैनुएल कांट के अधिकार सम्बन्धी विचारों को नैतिक धारणा कहा जाता है क्योंकि
(i) कांट ने अपने अधिकार सम्बन्धी विचारों में यह बताया कि हमें दूसरों के साथ वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जैसा हम अपने लिए दूसरों से उम्मीद करते हैं। इस प्रकार यह बात पूरी तरह से नैतिकता से परिपूर्ण है। एक नैतिक व्यक्ति से ही यह आशा की जा सकती है कि वह इतना नियन्त्रित व्यवहार करे। व्यावहारिकता में हमें ऐसा व्यवहार कम ही देखने को मिलता है।

(ii) दूसरी बात कांट ने यह कही कि हमें यह निश्चित करना चाहिए कि हम दूसरों को अपनी स्वार्थ-पूर्ति का साधन न बनायें। कांट का यह विचार भी नैतिकता पर आधारित है। व्यावहारिकता में हम अपने चारों ओर जो समाज व व्यवहार देखते हैं वह ठीक इसका विपरीत होता है। हर व्यक्ति दूसरे से अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु लगा रहता है। अतः कांट जिस व्यवहार की बात कर रहे हैं वह एक नैतिक व्यक्ति ही कर सकता है। अतः उपर्युक्त दोनों आधारों पर ही कांट की धारणा को नैतिक धारणा माना जाता है। 

प्रश्न 6. 
अधिकारों के संविधान में उल्लेख के क्या औचित्य हैं ? उदाहरण सहित समझाइए।
उत्तर:
अधिकारों के संविधान में उल्लेख के औचित्य संविधान में अधिकारों का उल्लेख किया जाना वर्तमान में अधिकांश लोकतांत्रिक देशों का अनिवार्य लक्षण बन गया है। इसके निम्नलिखित औचित्य बताए जा सकते हैं
(i) संविधान देश में सर्वोच्च कानून के प्रतीक होते हैं संविधान में अधिकारों के उल्लेख का पहला औचित्य यह है कि संविधान किसी भी देश का सबसे ऊँचा व अन्तिम कानून माना जाता है। संविधान में लिखे प्रावधानों को सरकार या न्यायालय भी मानने से इनकार नहीं कर सकते। अतः संविधान में जिन अधिकारों का उल्लेख हो जाता है, उन्हें कानूनी शक्ति प्राप्त हो जाती है। 

(ii) संविधान अधिकारों को बुनियादी महत्व प्रदान करता है संविधान में अधिकारों का उल्लेख उन्हें बुनियादी महत्व प्रदान करता है। संविधान राज्य सरकार व जनता के सम्बन्धों का निर्धारण करते हैं। अतः संविधान में किसी अधिकार का उल्लेख होने पर राज्य सरकार या समाज में से कोई भी उसकी उपेक्षा नहीं कर सकता। उदाहरण-इस सम्बन्ध में हम अपने (भारतीय) संविधान में वर्णित अधिकारों को ले सकते हैं। हमारे संविधान में छुआछूत को मौलिक अधिकारों के तहत प्रतिबंधित किया गया है। इससे देश में सदियों से चली आ रही कुप्रथा पर विराम लगा है।

प्रश्न 7. 
सांस्कृतिक अधिकार क्या होते हैं ? उचित उदाहरणों सहित समझाइये।
उत्तर:
सांस्कृतिक अधिकार–सांस्कृतिक अधिकार को समझने के लिए हमें सबसे पहले संस्कृति का मतलब जानना जरूरी है। संस्कृति किसी भी समाज में प्रचलित रीति-रिवाजों, मूल्यों, मान्यताओं, परम्पराओं इत्यादि के समूह को कहा जाता है। इस प्रकार सांस्कृतिक अधिकार वे अधिकार हुए जो लोगों को अपने रीति-रिवाजों, परम्पराओं, मूल्यों, मान्यताओं इत्यादि को मानने व इनका प्रचार-प्रसार करने की स्वतन्त्रता दिलाते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय संविधान में सभी नागरिकों को शिक्षा व संस्कृति के प्रचार-प्रसार का अधिकार दिया गया है।

इस अधिकार के अन्तर्गत किसी भी वर्ग, समुदाय इत्यादि के लोगों को समान रूप से अपनी शिक्षण संस्थाएँ, समाजसेवी संगठन, संस्कृति की प्रचार सम्बन्धी समितियाँ आदि बनाने की आजादी दी गई है। इस प्रकार वर्तमान में प्रत्येक लोकतांत्रिक देश में सांस्कृतिक अधिकार भी अन्य अधिकारों के समान ही महत्वपूर्ण बन गये हैं। इन अधिकारों के द्वारा देश में सांस्कृतिक विविधता एवं धरोहरों की रक्षा की जा सकती है। सांस्कृतिक अधिकार लोगों के साथ-साथ देश को भी संस्कृति की दृष्टि से मजबूत व प्रभावशाली बनाते हैं।

प्रश्न 8. 
अधिकतर लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक अधिकारों का घोषणापत्र बनाने से ही अपनी शुरूआत क्यों करती हैं ?
उत्तर:
वर्तमान में अधिकतर लोकतांत्रिक व्यवस्थाएँ राजनीतिक अधिकारों का घोषणापत्र बनाने से ही अपनी शुरूआत कर रही हैं। इसके निम्नांकित कारण हैं
(i) नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर देना—लोकतांत्रिक व्यवस्थाएं सर्वप्रथम राजनीतिक अधिकारों की घोषणा करती हैं ताकि वे नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में हिस्सेदार बना सकें। लोकतांत्रिक व्यवस्था को स्थायित्व तभी प्राप्त होगा जब उसमें नागरिकों की सहभागिता हो। इसी कारण नागरिकों को राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी का अवसर देने के लिए राजनीतिक अधिकारों की घोषणा की जाती है।

(ii) राजनीतिक अधिकार नागरिक स्वतन्त्रताओं से जुड़े होते हैं राजनीतिक अधिकारों की सबसे पहले घोषणा का एक कारण यह भी है कि ये अधिकार नागरिक स्वतन्त्रताओं से जुड़े होते हैं। राजनीतिक अधिकार ही लोगों को विभिन्न प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान करते हैं, जैसे-विचार व अभिव्यक्ति, आजीविका इत्यादि की स्वतन्त्रताएँ।

(iii) सरकार को जवाबदेह बनाना-लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार का जवाबदेह होना अति आवश्यक होता है। सरकार को जवाबदेह बनाने में वोट डालने जैसे राजनीतिक अधिकारों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसी कारण लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में राजनीतिक अधिकारों की घोषणा पहले ही कर दी जाती है।

प्रश्न 9. 
अधिकारों के साथ जुड़े हुए कुछ प्रमुख कर्तव्यों का उल्लेख करें। उत्तर-अधिकारों के साथ जुड़े कुछ प्रमुख कर्तव्य—अधिकारों के साथ जुड़े कुछ प्रमुख कर्तव्य निम्नलिखित हैं
(i) दूसरों के अधिकारों का सम्मान अधिकारों का प्रयोग करते समय हमारा कर्तव्य बनता है कि हम दूसरों के अधिकारों का भी पूरा सम्मान करें। हमें अपने अधिकारों के प्रयोग में दूसरों के अधिकारों का हनन नहीं करना चाहिए।

(ii) अधिकारों का समाज व राष्ट्र के हित के अनुकूल प्रयोग—अधिकारों के साथ हमारा यह कर्तव्य भी जुड़ जाता है कि हम अपने प्रत्येक अधिकार का प्रयोग इस प्रकार करें कि उससे समाज या राष्ट्र का हित प्रभावित न होता हो। उदाहरण के लिएहमें स्वतन्त्र रूप से अपने विचार रखने का अधिकार प्राप्त है परन्तु अपने विचार रखने में देश के विभाजन की बात करने लगें तो यह अनुचित होगा और हमारा अधिकार तुरन्त महत्वहीन हो जाएगा।

(iii) अधिकारों की रक्षा के प्रति सचेत रहना—अधिकारों के साथ ही हमारा एक कर्तव्य यह भी बन जाता है कि हम अपने अधिकारों की रक्षा करने के लिए स्वयं सचेत रहें। उदाहरण के लिए हमें शोषण से मुक्ति का अधिकार प्राप्त है, फिर भी हमारा शोषण होता है और हम शांत बैठे रहें तो हम अपने कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे। इससे हमारा अधिकार औचित्यहीन हो जाएगा। 

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (उत्तर सीमा 150 शब्द)

प्रश्न 1. 
अधिकार से आप क्या समझते हैं ? अधिकारों के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अधिकार अधिकार वे स्थितियाँ एवं दावे (माँगें) हैं, जो व्यक्तियों के सर्वांगीण विकास और सुखमय जीवन के लिए आवश्यक होते हैं। अधिकारों को ऐसा दावा भी कहा जा सकता है जिनका औचित्य सिद्ध होता है। अधिकार ही वह दावा होता है जो हमें यह बताता है कि नागरिक, व्यक्ति और मनुष्य होने के नाते हम किन-किन चीजों के हकदार हैं। इस प्रकार अधिकार हमारे वे हक हैं जिन्हें सम्पूर्ण समाज स्वीकार करता है तथा राज्य इनको मान्यता देता है। अधिकारों के प्रमुख प्रकार-अधिकार कई प्रकार के होते हैं, इनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं

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(i) राजनीतिक अधिकार राजनीतिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्ति को राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदार बनाते हैं। राजनीतिक अधिकार ही नागरिकों को नागरिक स्वतंत्रताओं की गारण्टी प्रदान करते हैं। राजनीतिक अधिकारों में वोट डालने, राजनीतिक दल बनाने इत्यादि के अधिकारों का उल्लेख किया जा सकता है।

(ii) सांस्कृतिक अधिकार-सांस्कृतिक अधिकार उन अधिकारों को कहा जाता है जो व्यक्तियों को अपनी भाषा, रहन-सहन, रीति-रिवाजों इत्यादि की रक्षा व प्रचार का अवसर प्रदान करते हैं। इन अधिकारों के द्वारा व्यक्ति का सांस्कृतिक विकास होता है। सांस्कृतिक अधिकारों के उदाहरण हैं-शिक्षा व संस्कृति के प्रचार का अधिकार, अपने इच्छानुसार धर्म अपनाने का अधिकार इत्यादि।

(ii) आर्थिक अधिकार-आर्थिक अधिकार वे अधिकार होते हैं जो व्यक्ति को आर्थिक दृष्टि से विकास का अवसर प्रदान करते हैं। आर्थिक अधिकार व्यक्ति के जीवनयापन के लिए उपयुक्त दशाएँ उपलब्ध कराते हैं। आर्थिक अधिकारों में विशेष रूप से आजीविका, रोजगार, समान कार्य समान वेतन इत्यादि अधिकारों का उल्लेख किया जा सकता है। . 

प्रश्न 2. 
मानवीय गरिमा सम्बन्धी इमैनुएल कांट के विचारों पर विस्तार से प्रकाश डालिए।
उत्तर:
मानवीय गरिमा सम्बन्धी कांट के विचार-मानवीय गरिमा के विषय में इमैनुएल कांट ने व्यापक विचार प्रस्तुत किये हैं। कांट का मानना है कि "हर चीज की या तो कीमत होती है या गरिमा। जिसकी कीमत होती है, उसकी जगह उसके समतुल्य कोई दूसरी चीज भी रखी जा सकती है। इसके विपरीत, जो तमाम कीमतों से ऊपर हो और जिसका कोई समतुल्य न हो, उसकी गरिमा होती है।"इस प्रकार कांट ने यह बताया कि अन्य प्राणियों से अलग हर मनुष्य की एक गरिमा होती है। इसी कारण प्रत्येक व्यक्ति अपने आप में बहुमूल्य है। कांट के लिए यह कोई सामान्य विचार नहीं था। कांट का इस विचार के पीछे गहरा अर्थ था।

उनके लिए इसका मतलब था कि-"प्रत्येक मनुष्य की गरिमा है और मनुष्य होने के नाते उसके साथ इसी के अनुकूल व्यवहार किया जाना चाहिए।" इस प्रकार कांट के मानवीय गरिमा सम्बन्धी विचारों में यह बताने का प्रयास किया गया है कि मनुष्य अशिक्षित हो सकता है, गरीब या शक्तिहीन हो सकता है। वह बेईमान व अनैतिक भी हो सकता है। फिर भी वह एक मनुष्य है और न्यूनतम ही सही, प्रतिष्ठा पाने का हकदार है। कांट के लिए लोगों के साथ गरिमामय व्यवहार करने का अर्थ है उनके साथ नैतिकता से पेश आना। कांट के विचारों ने 18वीं सदी में शीघ्र ही लोकप्रियता प्राप्त कर ली। कांट के मानवीय गरिमा सम्बन्धी विचार उन लोगों के लिए मार्गदर्शक व प्रेरणास्रोत बन गये जो लोग सामाजिक ऊँच-नीच के खिलाफ और मानवाधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे थे। अन्त में हम यह कह सकते हैं कि कांट के मानवीय गरिमा के बारे में विचार व्यक्ति को एक मानव होने के नाते मिलने वाले सम्मान व अधिकारों की वकालत करने वाले महत्वपूर्ण विचार थे।

प्रश्न 3.
अधिकारों द्वारा हम पर डाली जाने वाली जिम्मेदारियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अधिकारों द्वारा हम पर डाली जाने वाली जिम्मेदारियाँ अधिकार राज्य के साथ-साथ हम पर भी कई जिम्मेदारियाँ डालते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख जिम्मेदारियाँ निम्नलिखित हैं
(i) सामाजिक हित में सोचना अधिकार हमें बाध्य करते हैं कि हम अपनी व्यक्तिगत अवश्यकताओं और हितों के बारे में सोचने के साथ-साथ समाज के हित के बारे में भी सोचें। अधिकार हमें यह जिम्मेदारी देते हैं कि हम समाज के लिए उपयोगी चीजों की रक्षा करें। उदाहरण के लिए-ओजोन परत की सुरक्षा करना, जल प्रदूषण कम करना, वृक्ष लगाना इत्यादि कार्य इसी सामाजिक सोच के साथ किये जाने चाहिए।

(ii) अधिकारों को सन्तुलित करना-अधिकारों के साथ जुड़ी एक अन्य जिम्मेदारी है कि हमें अधिकारों को उचित रूप से प्रयोग करना चाहिए। कई बार समाज में हमारे अधिकारों के मनमाने प्रयोग से टकराव की स्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इन स्थितियों से बचने के लिए हमें अधिकारों में सन्तुलन बिठाने की सख्त आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए-अपने घर में कुछ भी करने का हमें अधिकार है परन्तु यदि हम घर में बहुत तेज गाने बजाने लगें तो उससे पड़ौसियों को तकलीफ होगी। अतः यहाँ सन्तुलन बिठाना आवश्यक होता है।

(iii) अन्य लोगों के अधिकारों का सम्मान करना अधिकार हमें यह जिम्मेदारी भी सौंपते हैं कि हम अन्य लोगों के अधिकारों का भी सम्मान करें। उदाहरण के लिए यदि हमें शास्त्रीय संगीत सुनना पसन्द है और हमारे प्रियजनों को पाश्चात्य तो हमें उन्हें भी मनचाहा संगीत सुनने की स्वतन्त्रता देनी होगी। यदि हम दूसरों के अधिकारों का अतिक्रमण करेंगे तो दूसरे भी हमारे अधिकारों का अतिक्रमण कर सकते हैं। अतः अधिकारों के प्रयोग में यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम दूसरों के अधिकारों को भी स्वीकार करें।

प्रश्न 4. 
मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा से क्या अभिप्राय है ? इस घोषणा की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा-10 दिसम्बर, 1948 ई. को संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा में मानवाधिकारों से सम्बन्धित एक व्यापक प्रस्ताव पारित और स्वीकार किया गया। इसे ही 'मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा' के नाम से जाना जाता है। महासभा द्वारा इस घोषणापत्र को सभी सदस्य देशों में प्रचारित करने का आह्वान भी किया गया। मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की विशेषताएँ-मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा मानवाधिकारों से सम्बन्धित एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
(i) व्यापक समर्थन-इस घोषणा की महत्वपूर्ण विशेषता यह है इसे विश्व के अधिकांश देशों द्वारा स्वीकार किया गया है। इस प्रकार इस घोषणा को विश्व स्तर पर व्यापक समर्थन प्राप्त है।

(ii) मानवाधिकारों की व्याख्या विश्वव्यापी घोषणा की यह भी विशेषता है कि इसके द्वारा पहली बार पूरी दुनिया के लिए मानवाधिकारों की स्पष्ट व्याख्या की गई है। इस व्याख्या से अब मानवाधिकारों की पहचान और उनका पालन आसान हो गया है।
(iii) स्त्री-पुरुष समानता पर बल-मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा द्वारा स्त्री-पुरुष समानता पर बल दिया गया है। इस घोषणा पत्र की प्रस्तावना में महिलाओं के पुरुषों के समान अधिकारों को स्वीकार करने के प्रति विश्वास प्रकट किया गया है।

(iv) मानवीय गरिमा की रक्षा-यह घोषणा विश्व स्तर पर सभी मानवों की गरिमा को मान्यता देती है तथा प्रत्येक स्थान पर इसकी रक्षा हेतु मार्गदर्शन एवं प्रेरणा प्रदान करती है।

(v) सदस्य देशों पर मानवाधिकारों की रक्षा का दबाव मानवाधिकारों की विश्वव्यापी घोषणा की एक महत्वपूर्ण विशेषता यह भी है कि इसके चलते संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी सदस्य देशों पर मानवाधिकारों की रक्षा के लिए नैतिक व सामाजिक दबाव बना है। उदाहरण के लिए–चीन जैसे साम्यवादी राष्ट्र में भी अब मानवाधिकारों पर बल दिया जाने लगा है। यह इसी दबाव का परिणाम है। 

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
जिस सिद्धांत ने फ्रांस और अमेरिका की क्रांति को जन्म दिया, वह है
(अ) अधिकारों का वैधानिक सिद्धांत
(ब) अधिकारों का प्राकृतिक सिद्धांत 
(स) समाज कल्याण सिद्धांत
(द) अधिकारों का ऐतिहासिक सिद्धांत । 
उत्तर:
(स) समाज कल्याण सिद्धांत

प्रश्न 2. 
अधिकारों का आदर्शवादी सिद्धांत मनुष्य के
(अ) सामाजिक विकास पर बल देता है
(ब) आर्थिक विकास पर बल देता है 
(स) नागरिक विकास पर बल देता है
(द) नैतिक विकास पर बल देता है। 
उत्तर:
(द) नैतिक विकास पर बल देता है। 

प्रश्न 3. 
प्राकृतिक अधिकारों के सिद्धांत का प्रमुख समर्थक कौन है?
(अ) जॉन लॉक
(ब) जीन जैक्स रूसो 
(स) थॉमस हिल ग्रीन
(द) जॉन स्टुअर्ट मिल। 
उत्तर:
(अ) जॉन लॉक

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प्रश्न 4. 
निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए-
नागरिक अधिकार-
1. नागरिक को उसकी नागरिकता के कारण प्राप्त हैं। 
2. मानवाधिकार के साथ विनिमेय है। 
3. भेदभाव को कम करने के उद्देश्य से हैं। 
4. हमें अपनी भाषा और संस्कृति के अधिकार प्रदान करते हैं। उपरोक्त कथनों में से कौन-से सही हैं? 
(अ) 1,3 और 4 
(ब) 1, 2, 3 और 4 
(स) 2 और 4 
(द) 1 और 3 
उत्तर:
(अ) 1,3 और 4 

प्रश्न 5. 
मानव अधिकारों की धारणा की निम्न में से किस एक परिप्रेक्ष्य में आलोचना की गई है? 
(अ) सार्वभौमवाद
(ब) सांस्कृतिक पहचान 
(स) पंथ निरपेक्षता
(द) व्यक्तिवाद। 
उत्तर:
(ब) सांस्कृतिक पहचान 

Prasanna
Last Updated on Sept. 5, 2022, 5:27 p.m.
Published Sept. 5, 2022