RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

Rajasthan Board RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार Important Questions and Answers. 

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RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. 
वे कौन से अधिकार हैं जिनका हनन होने पर व्यक्ति न्यायपालिका की शरण ले सकता है
(क) औपचारिक अधिकार
(ख) कानूनी अधिकार 
(ग) मौलिक अधिकार
(घ) प्राकृतिक अधिकार। 
उत्तर:
(ग) मौलिक अधिकार

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार  

प्रश्न 2. 
किस मौलिक अधिकार को 44वें संविधान संशोधन द्वारा मौलिक अधिकारों की सूची से हटाया गया
(क) शोषण के खिलाफ अधिकार 
(ख) सम्पत्ति का अधिकार 
(ग) स्वतन्त्रता का अधिकार
(घ) समानता का अधिकार। 
उत्तर:
(ख) सम्पत्ति का अधिकार 

प्रश्न 3. 
अधीनस्थ न्यायालयों को अपने कार्यक्षेत्र से बाहर कार्यवाही करने से रोकने हेतु सर्वोच्च न्यायालय निम्नांकित में से
कौन-सा आदेश देता है ? 
(क) परमादेश
(ख) निषेध आदेश 
(ग) उत्प्रेषण
(घ) अधिकार पृच्छा। 
उत्तर:
(ख) निषेध आदेश 

प्रश्न 4. 
डॉ. भीमराव अम्बेडकर के अनुसार निम्न में से कौन सा मौलिक अधिकार संविधान का हृदय और आत्मा कहलाता
(क) संवैधानिक उपचारों का अधिकार 
(ख) स्वतंत्रता का अधिकार 
(ग) सम्पत्ति का अधिकार
(घ) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(क) संवैधानिक उपचारों का अधिकार 

प्रश्न 5. 
नीति निर्देशक सिद्धान्तों की मुख्य कमी है
(क) कानूनी शक्ति का अभाव 
(ख) निर्देश मात्र 
(ग) आदर्शों का घोषणा पत्र
(घ) व्यवहार में कठिनाई। 
उत्तर:
(क) कानूनी शक्ति का अभाव 

सुमेलन सम्बन्धी प्रश्न 

प्रश्न- निम्न को सुमेलित कीजिए

(क) नीति निर्देशक तत्व

(i) समता का अधिकार

(ख) मौलिक अधिकार

(ii) लोगों का कल्याण, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय

(ग) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

(iii) संविधान का हृदय और आत्मा

(घ) संवैधानिक उपचारों का अधिकार

(iv) मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों का समाधान करना।

उत्तर:

(क) नीति निर्देशक तत्व

(ii) लोगों का कल्याण, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय

(ख) मौलिक अधिकार

(i) समता का अधिकार

(ग) राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग

(iv) मानवाधिकारों के उल्लंघन की शिकायतों का समाधान करना।

(घ) संवैधानिक उपचारों का अधिकार

(iii) संविधान का हृदय और आत्मा


प्रश्न- रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

  1. ................ में ही मोतीलाल नेहरू समिति ने अधिकारों के एक घोषणा पत्र की माँग उठायी थी। 
  2. छुआ-छूत की प्रथा ................ का सबसे भद्दा रूप है। 
  3. स्वतंत्रता के सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में ................. है। 
  4. .............. को मौलिक अधिकारों की सूची से निकाल दिया गया है। 

उत्तर:

  1. 1928, 
  2. असमानता
  3. जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार
  4. सम्पत्ति के अधिकार। प्रश्न- निम्नलिखित में से प्रत्येक वाक्य सही है या गलत, बताइए। 
  5. हमारा संविधान सभी नागरिकों को जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार देता है। 
  6. सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर औचित्यपूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगा सकती है। 
  7. भारत में प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चुनने व उसका पालन करने का अधिकार है। 
  8. संविधान के अनुच्छेद 300 (क) के अन्तर्गत सम्पत्ति के अधिकार को सामान्य कानूनी अधिकार बना दिया गया।

उत्तर:

  1. सही
  2. गलत
  3. सही
  4. सही। 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-20 शब्द)

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 1. 
'बेगार' या बंधुआ मजदूरी' से आप क्या समझते हैं ? 
उत्तर:
सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना या जबरन कार्य लेना, बेगार या बंधुआ मजदूरी कहलाता है। 

प्रश्न 2. 
बेगार प्रथा या बन्धक प्रथा को संविधान के किस अधिकार में दंडनीय अपराध माना गया है ? 
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार में। 

प्रश्न 3.
मचल लालुंग को किस वर्ष जेल से रिहा किया गया ? 
उत्तर:
जुलाई, 2005 में। 

प्रश्न 4. 
मचल लालुंग जेल में कितने वर्ष रहा ? उत्तर-54 वर्ष।

प्रश्न 5.
वन और स्वतंत्रता के अधिकार का क्या अर्थ है?
उत्तर:
जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का अर्थ है कि प्रत्येक नागरिक को अपने मुकदमे की निष्पक्ष और त्वरित सुनवाई का अधिकार है।

प्रश्न 6. 
मचल लालुंग का मामला किस स्थिति का संकेत करता है?
उत्तर:
मचल लालुंग का मामला उस स्थिति का संकेत करता है जब संविधान द्वारा प्रदान किए गए अधिकार व्यवहार में प्राप्त . नहीं होते।

प्रश्न 7. 
अधिकारों का घोषणा पत्र' किसे कहते हैं? 
उत्तर:
संविधान द्वारा नागरिकों को प्रदान किये गये और संरक्षित अधिकारों की सूची को अधिकारों का घोषणा पत्र कहा जाता है।

प्रश्न 8. 
अधिकारों का पोषणा पत्र क्या भूमिका निभाता है?
उत्तर:
अधिकारों का घोषणा पत्र सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध कार्य करने से रोकता है एवं उनका उल्लंघन हो जाने पर उपचार सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 9. 
अधिकारों के पोषणा पत्र की माँग किसने उठायी थी? 
उत्तर:
सन् 1928 में मोतीलाल नेहरू समिति ने अधिकारों के घोषणा पत्र की मांग उठायी थी। 

प्रश्न 10. 
मौलिक अधिकारों से आपका क्या तात्पर्य है? 
उत्तर:
संविधान द्वारा सूचीबद्ध एवं सुरक्षित किये गये अधिकार, मौलिक अधिकार कहलाते हैं।

प्रश्न 11. 
भारतीय संविधान के किस भाग में मौलिक अधिकारों का उल्लेख मिलता है? 
उत्तर:
संविधान के तीसरे भाग में । 

प्रश्न 12. 
उन दो कारणों का उल्लेख कीजिए जिनकी वजह से कुछ अधिकारों को मौलिक कहा जाता है?
उत्तर:

  1. देश के संविधान में इन अधिकारों को सुरक्षित किया गया है। 
  2. कोई सरकार इनमें स्वेच्छा से परिवर्तन नहीं कर सकती।

प्रश्न 13. 
मौलिक अधिकारों में संशोधन किसके द्वारा किया जाता है? 
उत्तर:
मौलिक अधिकारों में संशोधन भारतीय संसद के द्वारा किया जाता है।

प्रश्न 14. 
किन्हीं दो परिस्थितियों का उल्लेख कीजिए जिनमें मौलिक अधिकारों को सीमित किया जा सकता है। 
उत्तर:
युद्ध अथवा विदेशी आक्रमण के समय घोषित राष्ट्रीय संकट के दौरान राष्ट्रपति इन अधिकारों को स्थगित कर सकता है। 

प्रश्न 15. 
मौलिक अधिकारों पर आवश्यक प्रतिबन्ध लगाने का अधिकार किसको है? उत्तर-संसद को।

प्रश्न 16.
मूल अधिकारों को कैसे सुरक्षित किया जाता है ?
उत्तर:
कोई व्यक्ति, निजी संगठन अथवा सरकार के कार्यों से किसी व्यक्ति के मूल अधिकारों का हनन होता है तो वह व्यक्ति उच्च या सर्वोच्च न्यायालय में जाकर अपने अधिकार को प्राप्त कर सकता है।

प्रश्न 17. 
दक्षिण अफ्रीका में अधिकारों का घोषणा पत्र कब लागू हुआ? 
उत्तर:
दिसम्बर, 1996 में दक्षिण अफ्रीका में अधिकारों का घोषणा पत्र लागू हुआ। 

प्रश्न 18. 
भारतीय संविधान कौन-कौन से मौलिक अधिकार प्रदान करता है ?
उत्तर:

  1. समता का अधिकार
  2. स्वतन्त्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरुद्ध अधिकार 
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  5. शिक्षा एवं संस्कृति का अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।

प्रश्न 19. 
लोकतांत्रिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण दो अधिकार कौन से हैं? 
उत्तर:

  1. समता का अधिकार 
  2. स्वतंत्रता का अधिकार।

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प्रश्न 20. 
समता के अधिकार से आप क्या समझते हैं ? 
उत्तर:
प्रत्येक प्रकार की असमानता, भेदभाव का निषेध, प्रत्येक नागरिक को हर प्रकार के अधिकारों में समानता प्राप्त होना।

प्रश्न 21. 
छुआछूत की प्रथा को संविधान के किस अधिकार के द्वारा समाप्त किया गया ? 
उत्तर:
समता के अधिकार द्वारा इस प्रथा को समाप्त किया गया। 

प्रश्न 22. 
संविधान की प्रस्तावना में समानता के बारे में किन दो बातों का उल्लेख मिलता है?
उत्तर:
संविधान की प्रस्तावना में समानता के बारे में निम्न दो बातों का उल्लेख मिलता है- 

  1. प्रतिष्ठा की समानता 
  2. अवसर की समानता।

प्रश्न 23. 
संविधान का कौन-सा अनुच्छेद 'आरक्षण' जैसी नीति को समानता के अधिकार के उल्लघंन के रूप में नहीं देखता?
उत्तर:
संविधान का अनुच्छेद 16 (4)। 

प्रश्न 24. 
स्वतंत्रता का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार कौन-सा है? 
उत्तर:
स्वतंत्रता का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है।

प्रश्न 25. 
जीवन की रक्षा और वहिक स्वतन्त्रता का अधिकार भारतीय संविधान के किस अधिकार के अन्तर्गत आता है? 
उत्तर:
स्वतंत्रता का अधिकार और व्यक्तिगत स्वतन्त्रताएँ।

प्रश्न 26. 
किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। यह अधिकार संविधान के किस अधिकार के अन्तर्गत आता है?
उत्तर:
स्वतन्त्रता का अधिकार।

प्रश्न 27. 
पुलिस के द्वारा बंदी बनाये गये व्यक्ति को निकटतम न्यायाधीश के समक्ष कितनी अवधि के अन्तर्गत पेश करना चाहिए ?
उत्तर:
24 घण्टे। 

प्रश्न 28. 
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार 'जीवन के अधिकार' का क्या अर्थ है?
उत्तर:
सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार व्यक्ति को आश्रय और आजीविका का भी अधिकार हो, क्योंकि इसके बिना कोई व्यक्ति जीवित नहीं रह सकता।

प्रश्न 29. 
निवारक नजरबंदी का क्या अर्थ है ? 
उत्तर:
किसी व्यक्ति को इस आशंका पर गिरफ्तार करना कि वह कोई अपराध करने वाला है, इसे ही निवारक नजरबंदी कहते हैं। 

प्रश्न 30. 
निवारक नजरबंदी की अधिकतम अवधि क्या है ? 
उत्तर:
निवारक नजरबंदी अधिकतम तीन महीने के लिए हो सकती है। 

प्रश्न 31. 
बंधुआ मजदूरी पर रोक भारतीय संविधान के किस अधिकार के अन्तर्गत आती है ? 
उत्तर:
शोषण के विरुद्ध अधिकार।

प्रश्न 32. 
14 वर्ष से कम उम्र के बच्चे को किसी कारखाने, खदान या अन्य किसी खतरनाक कार्य में नियोजित नहीं किया जा सकता, यह किस संवैधानिक अधिकार के अन्तर्गत आता है ?
उत्तर:
"शोषण के विरुद्ध संवैधानिक अधिकार'' में इस प्रकार के बालश्रम को अवैध घोषित किया है। 

प्रश्न 33. 
किस मौलिक अधिकार को लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता है? 
उत्तर:
धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार को। 

प्रश्न 34. 
धर्म, आस्था और प्रार्थना की आजादी किस अधिकार के अन्तर्गत आते हैं ? 
उत्तर:
धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार।

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प्रश्न 35. 
अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार भारतीय संविधान के किस अधिकार के अन्तर्गत आता है ?
उत्तर:
अल्पसंख्यक समूहों के लोगों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार। 

प्रश्न 36. 
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
मौलिक अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायालय में जाने का अधिकार। 

प्रश्न 37. 
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने किस अधिकार को संविधान का हृदयं और आत्मा की संज्ञा दी ? 
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों के अधिकार को। 

प्रश्न 38. 
बंदी प्रत्यक्षीकरण क्या है ?
उत्तर:
बंदी प्रत्यक्षीकरण द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है। गिरफ्तारी का तरीका गैर कानूनी होने पर न्यायालय उस व्यक्ति को रिहा करने का आदेश दे सकता है।

प्रश्न 39.
परमादेश से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
किसी सार्वजनिक अधिकारी द्वारा अपने कानूनी एवं संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं करने से किसी व्यक्ति के मौलिक अधिकारों के प्रभावित होने की दशा में न्यायपालिका द्वारा जारी किया गया आदेश परमादेश कहलाता है।

प्रश्न 40. 
निषेध आदेश किन परिस्थितियों में जारी किया जाता है ?
उत्तर:
जब न्यायालय को लगता है कि निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण कर किसी मुकदमे की सुनवाई करती है तो उच्च अथवा सर्वोच्च न्यायालय उसे ऐसा करने से रोकने हेतु निषेध आदेश जारी करता है।

प्रश्न 41. 
'अधिकार पृच्छा आदेश' क्या है ?
उत्तर:
यदि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो जाये जिस पर उसका कोई कानूनी अधिकार न हो तो न्यायालय अधिकार पृच्छा आदेश' द्वारा उसे उस पद पर कार्य करने से रोक देता है।

प्रश्न 42. 
उत्प्रेषण रिट से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
जब निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है तो न्यायालय उनके समक्ष विचाराधीन मामले को उनसे लेकर उत्प्रेषण आदेश द्वारा ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तांतरित कर देता है।

प्रश्न 43. 
'राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग' का गठन किस वर्ष किया गया ? 
उत्तर:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन वर्ष 1993 में किया गया। 

प्रश्न 44. 
मानवाधिकारों के हनन के विरुद्ध कार्यरत दो संस्थाओं के नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज तथा 
  2. पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स। 

प्रश्न 45. 
नीति निर्देशक तत्वों का क्या उद्देश्य है?
उत्तर:

  1. राज्य के लोगों का कल्याण करके उन्हें सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय प्रदान करना । 
  2. लोगों का जीवन स्तर ऊँचा उठाना।

प्रश्न 46. 
नीति निर्देशक तत्वों को नैतिक घोषणाएँ क्यों कहा जाता है ? 
उत्तर:
क्योंकि राज्य इन्हें लागू करने के लिए संवैधानिक रूप से बाध्य नहीं है। 

प्रश्न 47. 
भारत के संविधान में उल्लेखित किन्हीं दो नीति निर्देशक तत्वों का नाम लिखिए। 
उत्तर:

  1. महिला और पुरुष दोनों को समान कार्य के लिए समान वेतन। 
  2. काम का अधिकार। 

प्रश्न 48. 
भारत में बाल कल्याण से सम्बन्धित कोई एक नीति निर्देशक तत्व बताइए। 
उत्तर:
6 वर्ष से कम आयु के बालकों के लिए प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखरेख और शिक्षा। 

प्रश्न 49. 
किस संविधान संशोधन के द्वारा 1976 में नागरिकों के मौलिक कर्तव्य जोड़े गये? 
उत्तर:
42वाँ संविधान संशोधन द्वारा।

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प्रश्न 50. 
1978 के संविधान संशोधन में किस अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों के अध्याय से निकाल दिया गया था?
उत्तर:
1978 के संविधान संशोधन में सम्पत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकारों के अध्याय से निकाल दिया गया था। 

प्रश्न 51. 
अल्पसंख्यक समूहों के लोगों के कोई दो सांस्कृतिक व शैक्षिक अधिकार लिखिए। 
उत्तर:

  1. अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार।
  2. अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-40 शब्द) (S.A. Type 1)

प्रश्न 1. 
1982 में एशियाई खेलों के समय निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी न देने के मुकदमें में सर्वोच्च न्यायालय ने क्या निर्णय दिया था?
उत्तर:
1982 में एशियाई खेलों के समय निर्माण कार्य में लगे मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी न देने के मुकदमें में सर्वोच्च न्यायालय ने यह निर्णय दिया था कि न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना बेगार या बंधुआ मजदूरी जैसा है और इसमें नागरिकों को दिए गए शोषण के विरूद्ध अधिकार का उल्लंघन होता है। अतः मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी मिलनी चाहिए।

प्रश्न 2. 
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किससे संरक्षित करता है ?
उत्तर:
नागरिकों के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठनों से खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान किए जाने की आवश्यकता होती है। यह आवश्यक है कि सरकार व्यक्ति के अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हो। सरकार के विभिन्न अंग विधायिका, कार्यपालिका, नौकरशाही या न्यायपालिका अपने कार्यों से व्यक्ति के अधिकारों का किसी भी प्रकार हनन न कर सके । इस प्रकार संविधान सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध कार्य करने से रोकता है और उनका उल्लंघन होने पर उपचार सुनिश्चित करता है।

प्रश्न 3. 
संविधान में किन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया और उन्हें क्या संज्ञा दी गयी ?
उत्तर:
सन् 1928 में मोतीलाल नेहरू समिति ने 'अधिकारों के एक घोषणा पत्र' की माँग उठाई थी। स्वतन्त्रता आंदोलन के नेताओं ने जनता के अधिकारों का महत्व समझा और कहा कि अंग्रेज शासकों को जनता के अधिकारों का सम्मान करना चाहिए। स्वतंत्रता के बाद संविधान निर्माण के दौरान संविधान में अधिकारों का समावेश व उन्हें सुरक्षित करने पर सभी की राय एक थी। संविधान में उन अधिकारों को सूचीबद्ध किया गया जिन्हें सुरक्षा देनी थी। इन अधिकारों को मौलिक अधिकारों की संज्ञा दी गयी।

प्रश्न 4. 
'समता के अधिकार' से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
समता का अधिकार' किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त करने का प्रयास करता है। यह सार्वजनिक स्थलों; जैसेदुकान, होटल, मनोरंजन स्थल, कुआं, घाट, पूजा स्थल आदि में समानता के अधिकार पर प्रवेश देता है। धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी आधार पर प्रवेश में कोई भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह उपर्युक्त आधारों पर लोक-सेवाओं में भेदभाव को वर्जित करता है।

प्रश्न 5.
समता का अधिकार' भारत को एक सच्चे लोकतन्त्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है, स्पष्ट करें।
उत्तर:
छुआछूत की प्रथा असमानता का सबसे भद्दा रूप है। 'समता के अधिकार' द्वारा ही इसे समाप्त किया गया। इसी अधिकार के द्वारा यह व्यवस्था की गयी कि केवल उन लोगों को छोड़कर जिन्होंने सेना या शिक्षा के क्षेत्र में गौरवपूर्ण उपलब्धि प्राप्त की है, राज्य किसी भी व्यक्ति को कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा। इस प्रकार समता का अधिकार भारत को एक सच्चे लोकतन्त्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है जिसमें सभी नागरिकों को समान प्रतिष्ठा व गरिमा प्राप्त हो सके।

प्रश्न 6. 
कानून के समक्ष समानता के सिद्धांत को समझाइए।
उत्तर:
कानून के समक्ष समानता (समता) का अर्थ यह है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं और किसी को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। कोई भी व्यक्ति देश के कानून से ऊपर नहीं है। सभी व्यक्ति भले ही उनकी कुछ भी स्थिति हो, साधारण कानून के अधीन हैं और उन पर साधारण न्यायालय में मुकदमा चलाया जा सकता है। कानून छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच तथा छुआछूत आदि के आधार पर किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा।

प्रश्न 7.
संविधान के अनुच्छेद 16 (4) व अनुच्छेद 21 में क्या प्रावधान किये गये हैं ?
उत्तर:
अनुच्छेद 16 (4)-राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में, जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त रूप से नहीं है, नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करने से नहीं रोकेगी। इस प्रकार की व्यवस्था इस अनुच्छेद में की गयी है। अवसर की समानता के अधिकार को पूरा करने के लिए इस प्रकार की व्यवस्था आवश्यक है। इसी प्रकार अनुच्छेद 21 में जीवन और दैहिक स्वतन्त्रता का संरक्षण किया गया है। किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतन्त्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है, अन्य किसी भी प्रकार से नहीं। .

प्रश्न 8. 
स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकारों में कौन-कौन सी व्यक्तिगत स्वतन्त्रताएँ सम्मिलित हैं ?
उत्तर:
भारतीय संविधान में स्वतन्त्रता के अधिकारों की व्याख्या अनुच्छेद 19 से अनुच्छेद 22 तक की गयी है। मौलिक अधिकारों के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार की स्वतन्त्रताएँ प्रदान की गयी हैं

  1. भाषण तथा अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, 
  2. शान्तिपूर्ण बिना अस्त्र-शस्त्र के एकत्रित होने और सभा करने की स्वतन्त्रता, 
  3. संघ या संस्था निर्माण की स्वतन्त्रता, 
  4. भारत के किसी भी भाग में भ्रमण तथा निवास की स्वतन्त्रता, 
  5. व्यवसाय, आजीविका तथा कारोबार की स्वतन्त्रता।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 9. 
स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार पर किन परिस्थितियों में प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं? 
उत्तर:
भारतीय संविधान द्वारा प्रदत्त स्वतन्त्रता के मौलिक अधिकार पर निम्नलिखित परिस्थितियों में प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं

  1. यदि भारतीय सम्प्रभुता हेतु कोई खतरा हो तो स्वतन्त्रता के अधिकार को स्थगित किया जा सकता है। 
  2. अपराधों तथा आतंकवादी प्रवृत्तियों पर रोक लगाने के लिए इन पर उचित प्रतिबन्ध लगाए जा सकते हैं। 
  3. सार्वजनिक रूप से जुड़े मामलों में इन मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है। 

प्रश्न 10. 
भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
प्रत्येक नागरिक को भाषण देने तथा अभिव्यक्ति (विचार प्रकट करने) की स्वतंत्रता प्राप्त है। कोई भी नागरिक बोलकर या लिखकर अपने विचार प्रकट कर सकता है। प्रेस की स्वतंत्रता भाषण देने तथा विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता का एक साधन है परन्तु भाषण देने और विचार अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता असीमित नहीं है। उदाहरण के तौर पर 'भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता' पर कानून-व्यवस्था, शांति और नैतिकता के आधार पर प्रतिबंध लगाये जा सकते हैं। सभा और सम्मेलन करने की स्वतंत्रता का प्रयोग करने पर यह शर्त है कि वह शांतिपूर्ण तथा बिना हथियारों के हो। . सरकार किसी क्षेत्र में पाँच या पाँच से अधिक लोगों की सभा पर प्रतिबंध लगा सकती है।

प्रश्न 11. 
लोकतन्त्र में सबसे महत्वपूर्ण अधिकार क्या हैं ? संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
किसी भी लोकतन्त्र में समता और स्वतन्त्रता सबसे महत्वपूर्ण अधिकार हैं। इनमें से एक के बिना दूसरे की कल्पना नहीं की जा सकती। स्वतन्त्रता का अर्थ है-चिंतन, अभिव्यक्ति और कार्य करने की स्वतन्त्रता। लेकिन स्वतन्त्रता का अर्थ यह नहीं है कि हम जैसा चाहें वैसा करने लगे। स्वतन्त्रता को इस प्रकार परिभाषित किया जाता है कि हम बिना किसी अन्य की स्वन्तत्रता को नुकसान पहुँचाये, बिना कानून व्यवस्था को ठेस पहुँचाये अपनी-अपनी स्वतन्त्रता का आनंद ले सकें।

प्रश्न 12. निवारक नजरबंदी से क्या अभिप्राय है ? बताइए। .
उत्तर:
निवारक नजरबंदी सरकार के हाथ में असामाजिक तत्वों और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों से निपटने का अधिकार है। किसी भी व्यक्ति को तब गिरफ्तार करते हैं, जब उसने अपराध किया हो, पर उसके अपवाद भी हैं। कभी-कभी व्यक्ति को इस आशंका पर भी गिरफ्तार किया जा सकता है कि वह कोई गैर कानूनी कार्य करने वाला है। उसे वर्णित प्रक्रिया का पालन किए बगैर जेल भेजा जा सकता है। इसे ही निवारक नजरबंदी कहते हैं। निवारक नजरबंदी अधिकतम 3 महीने के लिए हो सकती है। सरकार ने प्रायः इस अधिकार का दुरुपयोग ही किया है। कानून में ऐसे कुछ सुरक्षात्मक उपाय किये जाने चाहिए जिससे सामान्य नागरिकों के विरुद्ध इस अधिकार के दुरुपयोग को रोका जा सके।

प्रश्न 13. 
सोमनाथ लाहिड़ी ने संविधान सभा में हुए वाद-विवाद में मौलिक अधिकारों के सम्बन्ध में क्या वक्तव्य दिया ?
उत्तर:
सोमनाथ लाहिड़ी के वक्तव्य की चर्चा संविधान सभा वाद-विवाद खण्ड तीन में पृष्ठ 404 पर की गयी है। सोमनाथ लाहिड़ी ने कहा-"मैं समझता हूँ इनमें से अनेक मौलिक अधिकारों को एक सिपाही के दृष्टिकोण से बनाया गया है। ....आप देखेंगे कि काफी कम अधिकार दिये गये हैं और प्रत्येक अधिकार के बाद एक उपबंध जोड़ा गया है। लगभग प्रत्येक अनुच्छेद में एक उपबंध है जो उन अधिकारों को पूरी तरह वापस ले लेता है। मौलिक अधिकारों की हमारी क्या अवधारणा होनी चाहिए ? हम उस प्रत्येक अधिकार को संविधान में पाना चाहते हैं जो हमारी जनता चाहती है।

प्रश्न 14. 
हमारे संविधान में अभियुक्त के अधिकारों के संबंध में क्या प्रावधान किया गया है ?
उत्तर:
हमारा संविधान इसका भी प्रावधान करता है कि उन लोगों को भी पर्याप्त सुरक्षा मिले जिन पर विभिन्न अपराधों के आरोप हों। न्यायालय के अनुसार किसी अपराध के आरोपी को स्वयं को बचाने का पर्याप्त अवसर मिलना चाहिए। निष्पक्ष सुनवाई हेतु संविधान में अभियुक्त के लिए तीन अधिकारों का प्रावधान किया गया है

  1. किसी भी व्यक्ति को एक अपराध के लिए एक बार से अधिक सजा नहीं मिलेगी। 
  2. कोई भी कानून किसी भी कार्य को पिछली तारीख से अपराध घोषित नहीं कर सकेगा। 
  3. किसी भी व्यक्ति को अपने विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए नहीं कहा जा सकेगा। 

प्रश्न 15. 
शोषण के विरुद्ध अधिकार क्या है ? बताइए।
उत्तर:
वर्तमान समय में हमारे देश में करोड़ों लोग शोषित और वंचित हैं। शोषण के रूप बदल गये हैं परन्तु शोषण अब भी बरकरार है। पुराने समय में ऐसे शोषण को 'बेगार' या 'बंधुआ मजदूरी' कहा जाता था। इसी प्रकार के एक शोषण में लोगों को 'दास' के रूप में खरीदा और बेचा जाता था। संविधान शोषण पर प्रतिबंध लगाता है। पुराने समय में जमीदारों, सूदखोरों और अन्य धनी लोग बंधुआ मजदूरी करवाते थे। अभी भी ईट भट्ठा के काम में लगे लोगों से बंधुआ मजदूरी करवाई जाती है। इसे अपराध घोषित किया गया है और अब यह कानून द्वारा दंडनीय है। परन्तु विभिन्न रूपों में यह शोषण की प्रथा आज भी चल रही है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24 के द्वारा नागरिकों को शोषण के विरुद्ध अधिकार दिए गए हैं।

प्रश्न 16. 
पार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पसंद के धर्म का पालन करने का अधिकार है। इस स्वतंत्रता को लोकतन्त्र का प्रतीक माना जाता है। लेकिन धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार असीमित नहीं है। लोक व्यवस्था, नैतिकता और स्वास्थ्य के आधार पर कुछ सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है। उदाहरण के तौर पर सती प्रथा, एक से अधिक विवाह, मानव बलि जैसी कुप्रथाओं पर प्रतिबंध के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं। ऐसे प्रतिबंधों को धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता। संविधान ने सभी धर्मों को अपने प्रचार की स्वतन्त्रता दी है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में नागरिकों के धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का वर्णन किया गया है।

प्रश्न 17. 
सरकार धार्मिक स्वतंत्रता पर किन-किन आधारों पर प्रतिबंध लगा सकती है ?
उत्तर:
सरकार धार्मिक स्वतंत्रता पर निम्नलिखित आधारों पर प्रतिबंध लगा सकती है-

  • लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के आधार पर सरकार धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है। 
  • कुछ सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है। 

उदाहरण के रूप में सती प्रथा एवं मानव बलि जैसी कुप्रथाओं पर सरकार ने प्रतिबंध के लिए अनेक कदम उठाए हैं। ऐसे प्रतिबंधों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता।

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प्रश्न 18. 
क्या भारत का कोई राजकीय धर्म है ? संक्षेप में बताइए। 
उत्तर:
हमारे देश का कोई राजकीय धर्म नहीं है। भारत अनेक धर्मों को मानने वाले लोगों का देश है। यह आवश्यक है कि सरकार सभी धर्मों के साथ समानता का बर्ताव करे। भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, न्यायाधीश या अन्य किसी सार्वजनिक पद पर कार्य करने वाले व्यक्ति के लिए हमें किसी धर्म विशेष का सदस्य होना आवश्यक नहीं है। समानता के अधिकार के अन्तर्गत नागरिकों को इस बात की गारंटी दी गयी है कि सरकारी नौकरियों में नियुक्ति के लिए धर्म के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।

प्रश्न 19. 
बहुसंख्यकों के उत्तरदायित्व के संबंध में संविधान सभा वाद-विवाद खंड आठ पृष्ठ 322 पर सरदार हुकुम सिंह द्वारा दिये गये वक्तव्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
संविधान सभा वाद-विवाद खण्ड आठ पृष्ठ 322 पर उद्धृत सरदार हुकुमसिंह का वक्तव्य इस प्रकार है"बहुसंख्यकों पर एक गंभीर उत्तरदायित्व है कि वे देखें कि अल्पसंख्यक अपने आपको सुरक्षित महसूस करें। धर्म निरपेक्ष शासन में ही अल्पसंख्यकों की सुरक्षा हो सकती है। बहुसंख्यकों को अपने राष्ट्रीय दृष्टिकोण का दिखावा नहीं करना चाहिए। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की सभी माँगें उसी आशंका पर आधारित हैं, जो अल्पसंख्यकों के मन में अपनी भाषा, लिपि और नौकरियों के अवसरों के संबंध में हैं।"

प्रश्न 20. 
संवैधानिक उपचारों के अधिकार से आप क्या समझते हैं ?
उत्तर:
संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह साधन है जिसके द्वारा मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जा सके और मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होने पर अधिकारों की रक्षा की जा सके। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने इस अधिकार को 'संविधान का हृदय और आत्मा' की संज्ञा दी। इसके अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह अपने मौलिक अधिकारों का हनन होने पर सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार को आदेश या निर्देश दे सकते हैं।

'प्रश्न 21. 
नीति निर्देशक तत्व क्या है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
नीति निर्देशक तत्व एक प्रकार के आदर्श अथवा शिक्षाएँ हैं जो प्रत्येक सरकार के लिए मार्ग-दर्शक का कार्य करती हैं। ये सिद्धान्त देश का प्रशासन चलाने के लिए आधार हैं। इनमें व्यक्ति को कुछ ऐसे अधिकार और शासन के कुछ ऐसे उत्तरदायित्व दिए गए है जिन्हें लागू करना राज्य का कर्तव्य माना गया है। इन सिद्धान्तों को न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किया जाता। ये सिद्धान्त ऐसे आदर्श हैं जिनको हमारे संविधान निर्माताओं ने देश में आर्थिक लोकतंत्र स्थापित करने के लिए संविधान में रखा था।

प्रश्न 22. 
'नीति निर्देशक तत्व वाद योग्य नहीं है।' इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'नीति निर्देशक तत्व वाद योग्य नहीं है।' इस कथन का आशय यह है कि भारतीय संविधान में नीति निर्देशक तत्वों का समावेश तो किया गया है लेकिन उन्हें न्यायालय के माध्यम से लागू करवाने की कोई व्यवस्था नहीं की गई है। यदि सरकार किसी निर्देश को लागू नहीं करती तो हम न्यायालय में जाकर यह माँग नहीं कर सकते कि उसे लागू करने के लिए न्यायालय सरकार को आदेश प्रदान करे।

प्रश्न 23. 
नीति निर्देशक तत्वों की सूची में मुख्य बातें क्या हैं ? बताइए।
उत्तर:
नीति निर्देशक तत्वों की सूची में मुख्य बातें निम्नलिखित हैं-

  1. वे लक्ष्य और उद्धेश्य जो एक समाज के रूप में हमें स्वीकार करने चाहिए। 
  2. वे अधिकार जो नागरिकों को मौलिक अधिकारों के अतिरिक्त मिलने चाहिए। 
  3. वे नीतियाँ जिन्हें सरकार को स्वीकार करना चाहिए।

प्रश्न 24. 
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का क्या महत्व है? । 
उत्तर:
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का महत्व निम्न प्रकार से है

  1. ये सत्तारूढ़ दल के लिए मार्गदर्शक का कार्य करते हैं। 
  2. इन सिद्धांतों द्वारा कल्याणकारी राज्य के आदर्श की घोषणा की गयी है। कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए जिन बातों को अपनाना आवश्यक होता है, वो सब निर्देशक तत्वों में पायी जाती हैं।

प्रश्न 25. 
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की क्या भूमिका रही है ? 
उत्तर;
मौलिक अधिकारों की व्याख्या और सुरक्षा करने में न्यायपालिका की निम्नलिखित भूमिका रही है

  1. न्यायपालिका ने जब-जब उसके समक्ष मूल अधिकारों के अतिक्रमण के वाद नागरिकों के द्वारा दायर किए गए, तब-तब उनकी व्याख्या कर मूल अधिकारों के अतिक्रमण को रोका है।
  2. विधायिका या कार्यपालिका के किसी कार्य अथवा निर्णय से यदि मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है अथवा उन पर अनुचित प्रतिबंध लगाया गया है तो न्यायपालिका ने उस कार्य या प्रतिबंध को अवैध घोषित कर मूल अधिकारों को सुरक्षा प्रदान की है। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-100 शब्द) (S.A. Type 2)

प्रश्न 1. 
1982 के एशियाई खेलों के लिए निर्माण कार्य में ठेकेदारों द्वारा मजदूरों के मौलिक अधिकारों का किस प्रकार उल्लंघन किया गया। इस संबंध में दायर की गयी याचिका के निर्णय में न्यायालय ने सरकार को क्या निर्देश दिए ?
उत्तर:
1982 के एशियाई खेलों से पहले फ्लाईओवरों और स्टेडियम के निर्माण कार्य हेतु ठेकेदारों ने देश के विभिन्न भागों से बड़ी संख्या में गरीब मजदूरों और मिस्त्रियों की भर्ती की, लेकिन उन काम करने की शर्ते खराब थीं। उन्हें सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी से कम मजदूरी दी गयी। समाज वैज्ञानिकों के एक दल ने उनकी स्थितियों का अध्ययन कर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की। उन्होंने कहा कि न्यूनतम मजदूरी से कम मजदूरी देना 'बेगार' या 'बंधुआ मजदूरी' है। यह नागरिकों को प्राप्त शोषण के विरुद्ध मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। न्यायालय ने इस दलील को स्वीकार कर लिया और सरकार को निर्देश दिया कि वह उन हजारों मजदूरों को निर्धारित मजदूरी दिलाए। इस प्रकार नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा की गयी।

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प्रश्न 2.
संविधान नागरिकों के अधिकारों को किससे संरक्षित करता है ? संरक्षित अधिकारों की सूची को क्या कहते हैं ?
उत्तर:
प्रजातन्त्र में यह सुनिश्चित होना चाहिए कि व्यक्तियों को कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हैं। सरकार कौन-कौन से अधिकारों को सदैव मान्यता देगी। अधिकतर लोकतांत्रिक देशों में नागरिकों के अधिकारों को संविधान में सूचीबद्ध कर दिया जाता है। संरक्षित अधिकारों की ऐसी सूची को अधिकारों का घोषणा पत्र कहते हैं। नागरिकों के अधिकारों को किसी अन्य व्यक्ति या निजी संगठन से खतरा हो सकता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति को सरकार द्वारा सुरक्षा प्रदान किए जाने की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त सरकार के विभिन्न अंग, विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका, नौकरशाही अपने कार्यों के संपादन में व्यक्ति के अधिकारों का हनन कर सकते हैं। संरक्षित अधिकारों की सूची (अधिकारों का घोषणा पत्र)सरकार को नागरिकों के अधिकारों के विरुद्ध काम करने से रोकती है और इसका उल्लंघन होने पर उपचार सुनिश्चित करती है।

प्रश्न 3. 
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों के घोषणा पत्र का अभिप्राय स्पष्ट करते हुए बताइए कि इसके द्वारा नागरिकों को कौन-कौन से अधिकार प्रदान किए गए हैं ?
उत्तर:
दक्षिण अफ्रीका के संविधान में अधिकारों का घोषणा-पत्र का अभिप्राय-दक्षिण अफ्रीका में दिसम्बर, 1996 में संविधान लागू किया गया। दक्षिण अफ्रीका में इसे उस समयावधि में निर्मित एवं लागू किया गया जब रंगभेद वाली सरकार के सत्ता से हटने के पश्चात् देश गृहयुद्ध के खतरे से जूझ रहा था। दक्षिण अफ्रीका के संविधान के अनुसार, "उसके अधिकारों का घोषणा-पत्र दक्षिण अफ्रीका में लोकतन्त्र की आधारशिला है।" यह नस्ल, लिंग, गर्भधारण, वैवाहिक स्थिति, जातीय अथवा सामाजिक मूल, रंग, आयु, अपंगता, अन्तरात्मा, आस्था, धर्म, भाषा, संस्कृति तथा जन्म इत्यादि के आधार पर भेदभाव वर्जित करता है। देश का संविधान नागरिकों को सर्वाधिक व्यापक अधिकार प्रदान करता है। दक्षिण अफ्रीका में संवैधानिक अधिकारों को एक विशेष संवैधानिक न्यायालय लागू करता है। दक्षिण अफ्रीका के संविधान में सम्मिलित प्रमुख अधिकार निम्न हैं-

  1. गरिमा का अधिकार
  2. निजता का अधिकार
  3. श्रम सम्बन्धी समुचित व्यवहार का अधिकार
  4. स्वस्थ्य पर्यावरण एवं पर्यावरण संरक्षण का अधिकार
  5. समुचित आवास का अधिकार
  6. स्वास्थ्य सुविधाएँ, भोजन, पानी तथा सामाजिक सुरक्षा का अधिकार
  7. बाल अधिकार
  8. बुनियादी एवं उच्च शिक्षा का अधिकार
  9. सांस्कृतिक, धार्मिक व भाषाई समुदायों का अधिकार और 
  10. सूचना प्राप्त करने का अधिकार। 

प्रश्न 4. 
मौलिक अधिकारों का क्या अर्थ है? भारतीय संविधान कौन-कौन से मौलिक अधिकार प्रदान करता है?
अथवा 
मौलिक अधिकार क्या हैं? भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों का नाम लिखिए।
उत्तर:
जो स्वतंत्रताएँ तथा अधिकार व्यक्ति व व्यक्तित्व का विकास करने के लिए समाज में आवश्यक समझे जाते हों, उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। भारतीय संविधान में मूल रूप से सात प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है परंतु 44वें संविधान संशोधन के बाद वर्तमान में 6 मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं। ये अधिकार हैं- 

  1. समता का अधिकार
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरूद्ध अधिकार
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।

प्रश्न 5. 
मौलिक अधिकारों को संविधान में सम्मिलित करने की क्या आवश्यकता थी? कारण सहित बताइए।
अथवा
मौलिक अधिकारों का उल्लेख भारतीय संविधान क्यों किया गया है?
उत्तर:
संविधान के तीसरे भाग में मौलिक अधिकारों का उल्लेख किया गया है। संविधान सभा ने भारतीय संविधान में निम्नलिखित कारणों से मौलिक अधिकारों को सम्मिलित किया है

  1. मौलिक अधिकारों के संबंध में देश की बहुत पुरानी माँग थी, जो पूरी करनी थी।
  2. संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लेख इसलिए किया गया ताकि सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के मूल अधिकार प्राप्त होने की गारंटी मिल सके।
  3. सामाजिक दोषों जैसे छुआछूत, बेगार तथा स्त्रियों व बच्चों के प्रति अन्याय आदि को समाप्त करने के लिए मौलिक अधिकारों का संविधान में उल्लेख करना आवश्यक था।
  4. मौलिक अधिकारों को संविधान में सम्मिलत करने की आवश्यकता इस कारण से भी थी ताकि अल्पसंख्यकों के अधिकारों व हितों की सुरक्षा की जा सके।

प्रश्न 6. 
मौलिक अधिकार अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
'मौलिक अधिकार' अत्यन्त महत्वपूर्ण अधिकार हैं, इसलिए इन्हें संविधान में सूचीबद्ध किया गया है। इन अधिकारों की रक्षा हेतु विशेष प्रावधान किए गये हैं। यह इतने महत्वपूर्ण अधिकार हैं कि संविधान स्वयं इस प्रकार की व्यवस्था सुनिश्चित करता है कि सरकार भी इनका उल्लंघन न कर सके। मौलिक अधिकारों की गारंटी और सुरक्षा स्वयं संविधान करता है। सामान्य अधिकारों को संसद कानून बनाकर परिवर्तित कर सकती है परन्तु मौलिक अधिकारों में परिवर्तन हेतु संविधान में संशोधन करना पड़ता है। सरकार का कोई अंग मौलिक अधिकारों के विरुद्ध कोई कार्य नहीं कर सकता। विधायिका या कार्यपालिका के किसी भी कार्य से यदि मौलिक अधिकारों का हनन होता है तो न्यायपालिका उसे अवैध घोषित कर सकती है। परन्तु मौलिक अधिकार निरंकुश या असीमित अधिकार नहीं है। सरकार मौलिक अधिकारों के प्रयोग पर 'औचित्यपूर्ण प्रतिबन्ध लगा सकती है।

प्रश्न 7. 
भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकारों की चार विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारतीय संविधान में उल्लेखित मौलिक अधिकारों की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
(1) व्यापक और विस्तृत अधिकार-भारतीय संविधान में लिखित मौलिक अधिकार बड़े विस्तृत तथा व्यापक हैं। इनका वर्णन संविधान के तीसरे भाग में किया गया है । नागरिकों को 6 प्रकार के मौलिक अधिकार दिए गए हैं और प्रत्येक अधिकार की विस्तृत व्याख्या की गई है।

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(2) मौलिक अधिकार न्याय योग्य हैं-यदि किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है तो वह नागरिक न्यायालय की शरण में जा सकता है। इनके पीछे कानूनी शक्ति निहित है।

(3) मौलिक अधिकार समस्त नागरिकों के लिए हैं-संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों की एक विशेषता यह भी है कि ये भारत के सभी नागरिकों को समान रूप से प्राप्त हैं। ये अधिकार सभी को जाति, धर्म, रंग, लिंग आदि के भेदभाव के बिना दिए गए हैं।

(4) मौलिक अधिकार असीमित नहीं हैं-कोई भी अधिकार पूर्ण और असीमित नहीं हो सकता इसलिए भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार भी असीमित नहीं है। संविधान के अन्तर्गत मौलिक अधिकारों पर भी प्रतिबंध लगाए गए हैं।

प्रश्न 8. 
भारत के संविधान में वर्णित समानता के अधिकार का उल्लेख कीजिए।
उत्तर;p
भारत के संविधान में वर्णित समानता का अधिकार-समानता के अधिकार का वर्णन संविधान के अनुच्छेद 14 से 18 तक में किया गया है। अनुच्छेद 14 के अनुसार किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता तथा कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। कानून के सामने सभी बराबर हैं तथा कोई भी व्यक्ति देश के कानून से ऊपर नहीं है। कानून के समान संरक्षण का अभिप्राय यह है कि समान परिस्थितियों में सबके साथ समान व्यवहार किया जाए। अनुच्छेद 15 के अनुसार राज्य किसी नागरिक के विरुद्ध धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।

सभी नागरिकों को सभी सार्वजनिक स्थानों का प्रयोग करने का समान अधिकार है। अनुच्छेद 16 के अनुसार राज्य में सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान किए जाएंगे। सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान तथा इनमें से किसी के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। अनुच्छेद 17 के द्वारा छुआछूत को समाप्त किया गया है। अनुच्छेद 18 के तहत उपाधियों का अंत किया गया और सेना या शिक्षा-सम्बन्धी उपाधियों के अतिरिक्त राज्य कोई और उपाधि प्रदान नहीं करेगा।

प्रश्न 9. 
लोकतन्त्र में स्वतन्त्रता व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए। .
उत्तर:
लोकतन्त्र में स्वतन्त्रता व्यक्ति का सबसे महत्वपूर्ण अधिकार है। लोकतन्त्र में स्वतन्त्रता को इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि व्यक्ति बिना किसी अन्य की स्वतन्त्रता तथा कानून व्यवस्था को ठेस पहुँचाए अपनी स्वतन्त्रता का आनंद ले सके । स्वतन्त्रता के सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता' का अधिकार है। देश के किसी भी नागरिक को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसे जीवन और व्यक्तिगत स्वतन्त्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। किसी भी व्यक्ति को कारण बताए बिना गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। गिरफ्तार किए गये व्यक्ति को वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है। पुलिस के लिए आवश्यक है कि व्यक्ति को 24 घण्टे के अन्दर निकटतम न्यायाधीश के सम्मुख पेश करे। न्यायाधीश निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं। स्वतंत्रता के अधिकार में ही शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार भी सम्मिलित है। 

प्रश्न 10. 
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार-स्वतंत्रता के सबसे महत्वपूर्ण अधिकारों में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है। किसी भी नागरिक को कानून द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन किए बिना उसके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जा सकता। इसका अर्थ यह है कि किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता। गिरफ्तार किए जाने पर उस व्यक्ति को अपने पसंदीदा वकील के माध्यम से अपना बचाव करने का अधिकार है। इसके अलावा, पुलिस के लिए यह आवश्यक है कि वह अभियुक्त को 24 घंटे के अंदर निकटतम न्यायधीश के सामने पेश करे। न्यायाधीश ही इस बात का निर्णय करेगा कि गिरफ्तारी उचित है या नहीं। इस अधिकार द्वारा किसी व्यक्ति के जीवन को मनमाने ढंग से समाप्त करने के विरुद्ध ही गारंटी नहीं मिलती बल्कि इसका दायरा और भी व्यापक है। सर्वोच्च न्यायालय के पिछले अनेक निर्णयों द्वारा इस अधिकार के दायरे में वृद्धि हुई है। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार इसमें शोषण से मुक्त और मानवीय गरिमापूर्ण जीवन जीने का अधिकार अंतर्निहित है।


प्रश्न 11. 
निवारक नजरबंदी क्या है? स्पष्ट कीजिए। क्या सरकार ने इसका दुरूपयोग किया है?
उत्तर:
निवारक नजरबंदी से आशय-सामान्यत: किसी व्यक्ति को तब गिरफ्तार किया जाता है जब उसने अपराध किया हो, लेकिन पर इसके अपवाद भी हैं। कभी-कभी किसी व्यक्ति को इस आशंका पर भी गिरफ्तार किया जा सकता है कि वह कोई गैर-कानूनी कार्य करने वाला है और फिर उसे वर्णित प्रक्रिया का पालन किये बिना ही कुछ समय के लिए जेल भेजा जा सकता है। इसे ही निवारक नजरबंदी कहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि सरकार को लगे कि कोई व्यक्ति देश की कानून-व्यवस्था या शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकता है तो वह उसे गिरफ्तार कर सकती है, लेकिन निवारक नजरबंदी अधिकतम 3 माह के लिए ही हो सकती है।

तीन महीने के पश्चात् ऐसे मामले समीक्षा के लिए एक सलाहकार बोर्ड के समक्ष लाए जाते हैं। प्रत्यक्ष रूप से निवारक नजरबंदी सरकार के हाथ में असामाजिक तत्वों एवं राष्ट्र विरोधी तत्वों से निपटने का एक हथियार है। लेकिन सरकार ने प्राय: इसका दुरुपयोग किया है। अनेक लोग यह मानते हैं कि इस कानून में कुछ ऐसे सुरक्षात्मक उपाय किए जाने चाहिए जिससे सामान्य नागरिकों के विरुद्ध अन्य किसी कारण से इस दुरुपयोग को रोका जा सके। वास्तव में जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकारों तथा निवारक नजरबंदी के प्रावधानों में परस्पर विरोधाभास है।

प्रश्न 12. 
अभियुक्त अथवा आरोपी के अधिकार का क्या आशय है ? इसके लिए भारतीय संविधान में क्या व्यवस्था की गई है?
उत्तर:
भारतीय संविधान इसका प्रावधान करता है कि उन व्यक्तियों को भी पर्याप्त सुरक्षा प्राप्त हो जिन पर विभिन्न प्रकार के अपराधों के आरोप हैं। सामान्यतया जिस पर भी किसी अपराध का आरोप लगता है उसे दोषी मान लिया जाता है, लेकिन जब तक न्यायपालिका किसी व्यक्ति को किसी अपराध का दोषी नहीं ठहराती है तब तक उसे दोषी नहीं माना जा सकता है। यह आवश्यक है कि किसी अपराध के आरोपी को स्वयं अपने आप को बचाने का पर्याप्त अवसर दिया जाना चाहिए। भारतीय न्यायपालिका निष्पक्ष मुकदमे के लिए निम्न तीन संवैधानिक अधिकारों को दृष्टिगत रखती है

  1. किसी भी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए एक से अधिक दण्ड नहीं मिलेगा। 
  2. कोई भी कानून किसी भी कार्य को पिछली तिथि से अपराध घोषित न कर सकेगा।
  3. किसी भी व्यक्ति को स्वयं अपने खिलाफ साक्ष्य देने के लिए नहीं कहा जा सकेगा।

प्रश्न 13. 
धार्मिक स्वतन्त्रता का क्या अर्थ है ? लोकतन्त्र में अपनी इच्छा के अनुसार धर्म पालन करने की स्वतन्त्रता को एक बुनियादी सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया गया है। संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
उत्तर:
हमारे देश के संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार धर्म का पालन करने का अधिकार है। धार्मिक स्वतन्त्रता को लोकतन्त्र का प्रतीक माना जाता है। कोई व्यक्ति किसी भी धर्म को चुन सकता है। सभी व्यक्तियों को अपने धर्म को अबाध रूप से मानने, उसके अनुसार आचरण करने और प्रचार करने का अधिकार है। लेकिन धार्मिक स्वतन्त्रता पर कुछ प्रतिबंध भी हैं। धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार असीमित नहीं है। कुछ सामाजिक बुराइयों; जैसे-सती प्रथा, बहुविवाह, मानव बलि आदि कुप्रथाओं के प्रतिबंध के लिए सरकार ने अनेक कदम उठाए हैं।

ऐसे प्रतिबन्धों को धार्मिक स्वतन्त्रता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता। संविधान ने सभी को अपने धर्म का प्रचार करने की स्वतन्त्रता दी है परन्तु संविधान जबरन धर्म परिवर्तन की आज्ञा नहीं देता। हमारे देश का कोई राजकीय धर्म नहीं है। सरकार धर्म के आधार पर भेदभाव से मुक्त है। राज्य द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थाओं में न तो किसी धर्म का प्रचार किया जा सकता है और न ही उसमें प्रवेश हेतु किसी धर्म को वरीयता दी जा सकती है। इस प्रकार के प्रावधान संविधान में किए गए हैं कि प्रत्येक व्यक्ति की धार्मिक स्वतन्त्रता को बल मिले। इन प्रावधानों में धार्मिक स्वतन्त्रता को बुनियादी सिद्धान्त के रूप में स्वीकार किया गया है।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

प्रश्न 14. 
कई बार धार्मिक स्वतंत्रता राजनीतिक विवाद का विषय बन जाती हैं। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह सत्य है कि कई बार धार्मिक स्वतंत्रता राजनीतिक विवाद का विषय बन जाती है। संविधान ने सभी को अपने धर्म का प्रचार करने की स्वतंत्रता दी है। इसमें लोगों को एक धर्म से दूसरे धर्म में परिवर्तन के लिए मनाने का अधिकार भी शामिल है लेकिन कुछ लोग धर्म परिवर्तन का विरोध करते हैं। उनका मानना है कि धर्मांतरण भय या लालच के आधार पर कराए जाते हैं। संविधान भी जबरन धर्म परिवर्तन की इजाजत नहीं देता है। वह हमें केवल अपने धर्म के बारे में सूचनाएँ प्रसारित करने का अधिकार देता है जिससे हम दूसरों को अपने धर्म की ओर आकर्षित कर सकें।

प्रश्न 15. 
भारतीय समाज की विविधता को दृष्टिगत रखते हुए सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार संविधान में किस प्रकार सुरक्षित किए गए हैं ? बताइए।
उत्तर:
भारतीय समाज एक विविधता पूर्ण समाज है। इस विविधता भरे समाज में कुछ समुदाय छोटे और कुछ बड़े हैं। छोटे समुदायों को अल्पसंख्यक और बड़े समुदायों को बहुसंख्यक के अनुसार वर्गीकृत किया गया है। देश की संस्कृति अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक समुदाय की साझी संस्कृति है, और यही विविधता हमारे समाज की मजबूती का आधार है। अल्पसंख्यकों को अपनी संस्कृति को बनाए रखने का अधिकार भी एक मौलिक अधिकार है। किसी भी समुदाय को केवल धर्म के आधार पर ही नहीं बल्कि भाषा और संस्कृति के आधार पर भी अल्पसंख्यक माना जाता है। अल्पसंख्यक समूहों को अपने शिक्षण संस्थान खोलने का अधिकार है। उन्हें अपनी संस्कृति सुरक्षित और विकसित करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है। शिक्षण संस्थानों को वित्तीय अनुदान देने के मामले में सरकार इस आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती कि उस शिक्षण संस्थान का प्रबंध अल्पसंख्यक समुदाय द्वारा किया जाता है। इस प्रकार समाज की विविधता को दृष्टिगत रखते हुए संविधान में अल्पसंख्यकों के सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार सुरक्षित किए गए हैं।

प्रश्न 16. 
मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए संवैधानिक उपचारों का अधिकार किस प्रकार सहायक है ?
उत्तर:
हमारे देश के संविधान में प्रदत्त मौलिक अधिकारों की सूची देखने में तो बहुत ही आकर्षक है, लेकिन इन अधिकारों को व्यवहार में लाना प्राय: बहुत ही कठिन होता है। बहुधा इनका उल्लंघन ही होता है। संवैधानिक उपचारों का अधिकार वह साधन है जिसके द्वारा मौलिक अधिकारों को व्यवहार में लाया जाता है और उल्लंघन होने पर उनकी रक्षा की जाती है।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने "संवैधानिक उपचारों के अधिकार" को 'संविधान का हृदय और आत्मा' की संज्ञा दी। इसके अन्तर्गत प्रत्येक नागरिक को यह अधिकार प्राप्त है कि वह सीधे उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में अपनी बात रख सकता है। इसके लिए न्यायालय द्वारा कई विशेष प्रकार के आदेश, जैसे-बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, निषेध आदेश, अधिकार पृच्छा, उत्प्रेषण रिट आदि जारी किए जाते हैं।

प्रश्न 17. 
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की कोई चार प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की प्रमुख विशेषताएँ-राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की चार प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं

  1. सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना-नीति-निर्देशक तत्वों में उन नियमों का वर्णन किया गया है। जिनको लागू करके सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना की जा सकती है।
  2. निर्देशक तत्वों का क्षेत्र व्यापक है-राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का क्षेत्र बहुत व्यापक है। इनका सम्बन्ध राष्ट्रीय जीवन के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक तथा प्रशासनिक क्षेत्र से है। ये तत्व अन्तर्राष्ट्रीय शांति व सुरक्षा से भी संबंधित है।
  3. निर्देशक तत्व न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किए जाते-ये तत्व न्याय योग्य नहीं हैं। अनुच्छेद 37 में स्पष्ट किया गया है कि राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को न्यायालय का संरक्षण प्राप्त नहीं है।
  4. किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा पर आधारित नहीं है-राज्य के नीति निर्देशक तत्व किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा से सम्बन्धित नहीं है। इनका सम्बन्ध समाजवादी, गांधीवादी और उदारवादी विचारधारा से है। .

प्रश्न 18. 
नीति-निर्देशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में क्या संबंध है ? संक्षेप में बताइए।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जा सकता है। मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबंध लगाते हैं और नीति-निर्देशक तत्व सरकार को कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं। मौलिक अधिकार विशेष रूप से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, लेकिन नीति-निर्देशक तत्व पूरे समाज के हित की बात करते हैं। कभी-कभी नीति-निर्देशक तत्व नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा सकते हैं। जमींदारी उन्मूलन के कानून का विरोध इसी प्रकार का एक उदाहरण है। इस कानून का विरोध इस आधार पर किया गया कि इससे संपत्ति के मौलिक अधिकार का हनन होता है। सरकार ने इसे लागू करने के लिए यह आधार लिया कि सामाजिक आवश्यकताएँ व्यक्तिगत हित से ऊपर हैं और नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए संविधान का संशोधन किया गया। सरकार की मान्यता थी कि नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। दूसरी ओर न्यायालय की यह मान्यता थी कि मौलिक अधिकार इतने महत्वपूर्ण हैं कि नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए उन्हें प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।

प्रश्न 19. 
मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में कोई चार अंतर लिखिए। 
उत्तर:
मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में अंतर 

मौलिक अधिकार

राज्य के नीति-निर्देशक तत्व

1. मौलिक अधिकारों को न्यायालयों द्वारा लागू करवाया जा सकता है। अर्थात इन्हें कानूनी संरक्षण प्राप्त है।

1. नीति-निर्देशक तत्वों को न्यायालयों द्वारा लागू नहीं करवाया जा सकता। अर्थात् इन्हें कानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है।

2. मौलिक अधिकारों का स्वरूप निषेधात्मक होता है । यह सरकार की शक्तियों पर प्रतिबंध लगाते हैं।

2. नीति-निर्देशक तत्व सकारात्मक हैं। ये सरकार को कुछ निश्चित कार्य करने का आदेश देते हैं।

3. मौलिक अधिकार व्यक्ति से सम्बन्धित है। ये व्यक्ति के विकास में सहायक होते हैं।

3. नीति-निर्देशक तत्व समाज से जुड़े होते है। ये सम्पूर्ण समाज के विकास पर बल देते हैं।

4. मौलिक अधिकार देश में राजनैतिक लोकतंत्र की स्थापना करते हैं।

4. नीति-निर्देश तत्वों का लक्ष्य आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करना होता है।


प्रश्न 20. 
नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। यह भी बताइए कि संविधान में मौलिक कर्तव्यों के समावेश से क्या हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है?
उत्तर:
नागरिकों के मौलिक कर्त्तव्य-सन् 1976 में संविधान में 42वाँ संशोधन किया गया। अन्य प्रावधानों के अतिरिक्त इस संशोधन से संविधान में नागरिकों के मौलिक कर्तव्यों की एक सूची का समावेश किया गया। जिसमें कुल दस कर्त्तव्यों का उल्लेख किया गया। लेकिन इन्हें लागू करने के सम्बन्ध में संविधान मौन है। नागरिक के रूप में हमें अपने संविधान का पालन करना चाहिए, देश की रक्षा करनी चाहिए। सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ाने का प्रयत्न करना चाहिए तथा पायवरण की रक्षा करनी चाहिए। परंतु यह ध्यान देने की बात है कि संविधान मौलिक कर्त्तव्यों के अनुपालन के आधार पर या उनकी शर्त पर हमें मौलिक अधिकार नहीं देता। इस दृष्टि से संविधान में मौलिक कर्तव्यों के समावेश से हमारे मौलिक अधिकारों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा।

RBSE Class 11 Political Science Important Questions Chapter 2 भारतीय संविधान में अधिकार

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर (शब्द सीमा-150 शब्द)

प्रश्न 1. 
भारतीय नागरिकों को प्रदत्त किन अधिकारों को मौलिक अधिकार कहा जाता है? इनके महत्व को भी प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
मौलिक अधिकार उन आधारभूत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण अधिकारों को कहा जाता है जिनके बिना देश के नागरिक अपने जीवन का विकास नहीं कर सकते। जो स्वतंत्रताएँ व अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करने के लिए आवश्यक समझे जाते हैं, उन्हें मौलिक अधिकार कहा जाता है। भारतीय संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 14 से 32 में मूल रूप से सात प्रकार के मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है परन्तु 44वें संशोधन के द्वारा सम्पत्ति के मूल अधिकार को हटाने के पश्चात् 6 मौलिक अधिकार नागरिकों को प्राप्त हैं। ये अधिकार हैं- 

  1. समता का अधिकार 
  2. स्वतंत्रता का अधिकार
  3. शोषण के विरूद्ध अधिकार 
  4. धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार 
  5. सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार 
  6. संवैधानिक उपचारों का अधिकार ।

संविधान में इन अधिकारों की व्याख्या ही नहीं बल्कि इनकी सुरक्षा की भी पर्याप्त व्यवस्था की गई है।
मौलिक अधिकारों का महत्त्व-मौलिक अधिकारों के महत्व का वर्णन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत प्रस्तुत है
(1) मौलिक अधिकार नागरिकों के व्यक्तित्व विकास के लिए आवश्यक परिस्थितियाँ उत्पन्न करते हैं-व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास तभी कर सकता है जब उसे आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त हों। भारतीय संविधान में दिए गए मौलिक अधिकार वे सुविधाएँ प्रदान करते हैं जिनके प्रयोग द्वारा व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास कर सकता है।

(2) मौलिक अधिकार कानून का शासन स्थापित करते हैं-मौलिक अधिकारों का महत्व इसमें है कि ये कानून के शासन की स्थापना करते हैं। सभी व्यक्ति कानून के समक्ष समान है तथा सभी को कानून द्वारा समान संरक्षण प्राप्त है।

(3) मौलिक अधिकार सरकार की निरंकुशता को रोकते हैं-मौलिक अधिकारों का महत्व इसमें भी है कि ये अधिकार सरकार को निरकुश बनने से रोकते हैं। केन्द्रीय सरकार या राज्य सरकारें शासन चलाने के लिए अपनी इच्छानुसार कानून नहीं बना सकती। कोई भी सरकार इन मौलिक अधिकारों के विरूद्ध कानून नहीं बना सकती है।

(4) मौलिक अधिकार सामाजिक समानता स्थापित करते हैं-मौलिक अधिकार सामाजिक समानता स्थापित करते हैं। मौलिक अधिकार सभी नागरिकों को बिना किसी भेदभाव के दिए गए हैं। सरकार धर्म, जाति, भाषा, रंग अथवा लिंग आदि के आधार पर भेदभाव नहीं कर सकती है।

(5) मौलिक अधिकार व्यक्तिगत हितों तथा सामाजिक हितों में उचित सामंजस्य स्थापित करते हैं-मौलिक अधिकारों द्वारा व्यक्तिगत हितों और सामाजिक हितों में सामंजस्य स्थापित करने के लिए काफी सीमा तक सफल प्रयास किया गया है।

(6) मौलिक अधिकार भारतीय लोकतंत्र की आधारशिला हैं-समानता, स्वतंत्रता एवं भ्रातृभाव लोकतंत्र की नींव है। मौलिक अधिकारों द्वारा समानता, स्वतंत्रता तथा भ्रातृभाव की स्थापना की गई है।

(7) मौलिक अधिकार धर्म-निरपेक्ष राज्य की स्थापना करते हैं-अनुच्छेद 25 से 28 तक में नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई हैं तथा ये धार्मिक स्वतंत्रताएँ भारत में धर्म-निरपेक्ष की स्थापना करती हैं। यदि भारत को धर्म-निरपेक्ष राज्य न बनाया जाता तो भारत की एकता खतरे में पड़ जाती।

(8) मौलिक अधिकार अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करते हैं-अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा लिपि एवं संस्कृति को सुरक्षित रखने का अधिकार दिया गया है। अल्पसंख्यक अपनी पसंद की शिक्षा संस्थाओं की स्थापना कर सकते हैं तथा उनका संचालन करने का अधिकार भी उनको प्राप्त हैं। सरकार अल्पसंख्यकों के साथ किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगी।

प्रश्न 2. 
भारत के संविधान में दिये गये मौलिक अधिकारों की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मौलिक अधिकारों का अर्थ-मौलिक अधिकार वे अधिकार हैं जो मानव जीवन हेतु मौलिक तथा अपरिहार्य होने के कारण नागरिकों को प्रदान किए गये हैं। व्यक्ति के इन अधिकारों में राज्य के द्वारा कोई भी हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता।
प्रमुख मौलिक अधिकार इस प्रकार हैं
(1) समता का अधिकार (अनुच्छेद 14 से 18 तक)-भारतीय संविधान में प्रत्येक नागरिक को समता का अधिकार प्रदान किया गया है। इस अधिकार का उद्देश्य सामाजिक समता स्थापित करना है। इस अधिकार के अन्तर्गत संविधान में निम्न प्रावधान हैं

  • कानून के समक्ष समानता,
  • कानून का समान संरक्षण, 
  • धर्म, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध, 
  • रोजगार के अवसरों की समानता, 
  • उपाधियों का अंत, 
  • छुआछूत की समाप्ति।

(2) स्वतन्त्रता का अधिकार, व्यक्तिगत स्वतन्त्रताएँ (अनुच्छेद 19 से 22 तक)-भारत के मूल संविधान में सात प्रकार की स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई थीं लेकिन 44वें संविधान संशोधन द्वारा सम्पत्ति सम्बन्धी स्वतंत्रता के मूल अधिकार को समाप्त कर दिया गया है। वर्तमान में संविधान द्वारा नागरिकों को निम्नलिखित स्वतंत्रताएँ प्रदान की गई हैं-

  1. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता, 
  2. शांतिपूर्ण ढंग से जमा होने और सभा करने की स्वतन्त्रता, 
  3. संगठित होने का अधिकार 
  4. भारत में कहीं भी आने-जाने की स्वतन्त्रता, 
  5. भारत के किसी भी हिस्से में रहने और बसने की स्वतन्त्रता,
  6. कोई भी व्यवसाय चुनने और व्यापार करने का अधिकार, 
  7. जीवन की रक्षा और दैहिक स्वतन्त्रता का अधिकार, 
  8. अपराधों के लिए दोष सिद्धि के सम्बन्ध में संरक्षण, 
  9. अभियुक्त और सजा पाए लोगों का अधिकार, 
  10. शिक्षा का अधिकार।

(3) शोषण के विरुद्ध अधिकार (अनुच्छेद 23 से 24 तक)-इस अधिकार के अन्तर्गत संविधान में निम्न प्रावधान किये गए हैं- 

  • मानव के दुर्व्यापार और बंधुआ मजदूरी पर रोक, 
  • जोखिम वाले कामों में बच्चों से मजदूरी कराने पर रोक।

(4) धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25 से 28 तक)- इस अधिकार के अन्तर्गत संविधान में निम्न प्रावधान किए गए हैं-

  1. आस्था और प्रार्थना की स्वतंत्रता,
  2. धार्मिक मामलों का प्रबंधन, 
  3. किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर अदायगी की स्वतंत्रता, 
  4. कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता।

(5) सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार (अनुच्छेद 29 से 30 तक)-इस अधिकार के अन्तर्गत संविधान में निम्न प्रावधान किए गए हैं-

  1. अल्पसंख्यकों की भाषा और संस्कृति के संरक्षण का अधिकार, 
  2. अल्पसंख्यकों को शैक्षिक संस्थाएँ स्थापित करने का अधिकार।

(6) संवैधानिक उपचारों का अधिकार (अनुच्छेद 32)-अनुच्छेद 32 के अनुसार प्रत्येक नागरिक अपने मौलिक अधिकारों की प्राप्ति और रक्षा के लिए उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय के पास जा सकता है यदि सरकार हमारे किसी मौलिक अधिकार को लागू नहीं करती है अथवा उसके विरूद्ध काम करती है तो उसके विरूद्ध न्यायालय में प्रार्थना पत्र दिया जा सकता है और न्यायालय द्वारा इस अधिकार को लागू करवाया जा सकता है अथवा उस कानून को रद्द कराया जा सकता है। उच्च न्यायालय व सर्वोच्च न्यायालय को इस सम्बन्ध में कई प्रकार के लेख (रिट) जारी करने का अधिकार है। 

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प्रश्न 3. 
भारतीय संविधान में वर्णित समता के अधिकार की व्याख्या कीजिए। अथवा "समानता का अधिकार भारत को एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है जिसमें सभी नागरिकों को समान प्रतिष्ठता और गरिमा प्राप्त हो सके।" उपर्युक्त कथन को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
यह कथन सत्य है कि भारतीय संविधान में वर्णित समता/समानता का अधिकार भारत को एक सच्चे लोकतंत्र के रूप में स्थापित करने का प्रयास करता है जिसमें सभी नागरिकों को समान प्रतिष्ठा और गरिमा प्राप्त हो सके। समानता का अधिकार एक महत्वपूर्ण मौलिक अधिकार है जिसका वर्णन अनुच्छेद 14 से 18 तक किया गया है। भारतीय संविधान में नागरिकों को निम्नलिखित प्रकार की समानता प्रदान की गयी हैं

(1) कानून के समक्ष समानता-संविधान के अनुच्छेद 14 में विधि के समक्ष 'समानता' और 'कानूनों का समान संरक्षण' शब्दों का एक साथ प्रयोग किया गया है एवं संविधान में लिखा है कि भारत के राज्य क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति को कानून के समक्ष समानता और कानून के समान संरक्षण से राज्य द्वारा वंचित नहीं किया जाएगा। . कानून के समक्ष समानता का अर्थ यह है कि कानून के सामने सभी बराबर हैं और किसी को विशेषाधिकार प्राप्त नहीं है। कोई भी व्यक्ति देश के कानून से ऊपर नहीं है। सभी व्यक्ति भले ही उनकी कुछ भी स्थिति हो, साधारण कानून के अधीन हैं और उन पर .साधारण न्यायालय में मुकदमा चलाया जा सकता है। कानून छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब, ऊँच-नीच और छुआछूत आदि किसी प्रकार का भेदभाव नहीं करेगा। - 

(2) भेदभाव का निषेध (अनुच्छेद 15)-अनुच्छेद 15 के अनुसार निम्नलिखित व्यवस्था की गई है
(i) राज्य किसी नागरिक के विरूद्ध, धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान अथवा इनमें से किसी के आधार पर कोई भेदभाव नहीं करेगा।
(ii) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों तथा मनोरंजन के सार्वजनिक स्थानों पर धर्म, लिंग एवं जाति आदि किसी भी आधार पर किसी नागरिक को अयोग्य व प्रतिबंधित नहीं किया जाएगा।

(iii) उन कुओं, तालाबों, नहाने के घाटों, सड़कों एवं पर्यटक स्थलों से जिनकी राज्य की निधि से अंशत: या पूरे तरीके से देखभाल की जाती है तथा जिनको सार्वजनिक प्रयोग के लिए दिया गया हो, किसी नागरिक को जाने की मनाही नहीं होगी अर्थात सार्वजनिक स्थान भी नागरिकों के लिए बिना किसी भेदभाव के खुले हैं। लेकिन स्त्रियों, बच्चों, पिछड़े वर्ग के नागरिकों तथा अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रबन्ध किये जा सकते हैं। इससे अन्य लोगों के समानता के अधिकार का हनन नहीं होगा।

(3) रोजगार में अवसरों की समानता (अनुच्छेद 16)-अनुच्छेद 16 राज्यों में सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में सभी नागरिकों को समान अवसर प्रदान करता है। सरकारी नौकरियों या पदों पर नियुक्ति के सम्बन्ध में धर्म, मूल, वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या निवास इनमें से किसी एक के आधार पर किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जाएगा। लेकिन इसके कुछ अपवाद भी हैं जैसे राज्य के मूल निवासियों के लिए आरक्षण, पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षण आदि।

(4) छुआछूत की समाप्ति (अनुच्छेद 17)-अनुच्छेद 17 द्वारा छुआछूत को समाप्त किया गया। किसी भी व्यक्ति के साथ अछूतों जैसा व्यवहार करना या उसको अछूत समझकर सार्वजनिक स्थानों, होटलों, घाटों, तालाबों, कुओं, सिनेमाघरों, पार्कों तथा मनोरंजन के स्थानों के उपयोग से रोकना कानूनी अपराध है।

(5) उपाधियों की समाप्ति (अनुच्छेद 18)-अनुच्छेद 18 के अनुसार यह व्यवस्था की गई है कि

  • भारत का कोई भी नागरिक किसी विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा। 
  • सेना या शिक्षा सम्बन्धी उपाधि के अतिरिक्त राज्य कोई उपाधि नहीं देगा।
  • कोई भी व्यक्ति जो राज्य के किसी लाभदायक पद पर विराजमान है, राष्ट पति की आज्ञा के बिना कोई भेंट, वेतन तथा किसी प्रकार का पद विदेशी राज्य से प्राप्त नहीं कर सकता।
  • कोई व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है परंतु भारत में किसी लाभदायक पद पर नियुक्त है, राष्ट्रपति की आज्ञा के बिना किसी विदेशी से उपाधि प्राप्त नहीं कर सकता।

प्रश्न 4. 
धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार-भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 से 28 तक में नागरिकों को धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है। ये अधिकार निम्नलिखित हैं

  • आस्था और प्रार्थना की स्वतंत्रता 
  • धार्मिक मामलों का प्रबंधन अधिकार 
  • किसी विशिष्ट धर्म की अभिवृद्धि के लिए कर अदायगी की स्वतंत्रता 
  • कुछ शिक्षा संस्थाओं में धार्मिक शिक्षा या उपासना में उपस्थित होने की स्वतंत्रता।

भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपनी पंसद के धर्म का पालन करने का अधिकार है। इस स्वतंत्रता को लोकतंत्र का प्रतीक माना जाता है। भारत में प्रत्येक व्यक्ति को अपना धर्म चुनने और उसका पालन करने का अधिकार है। धार्मिक स्वतंत्रता में अंत:करण की स्वतंत्रता भी समाहित है। इसका अर्थ है कि कोई व्यक्ति किसी धर्म को चुन सकता है तथा यह निर्णय भी ले सकता है कि वह किसी भी धर्म का पालन नहीं करेगा। धामिक स्वतंत्रता का यह भी अर्थ है सभी व्यक्तियों को अपने धर्म को अबाध रूप से मानने, उसके अनुसार आचरण करने और प्रचार करने का समान हक होगा।

लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता पर कुछ प्रतिबंध भी है। लोक व्यवस्था, नैतिकता एवं स्वास्थ्य के आधार पर सरकार धार्मिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा सकती है। धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार असीमित नहीं है। कुछ सामाजिक बुराइयों को दूर करने के लिए सरकार धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप कर सकती है। उदाहरण के तौर पर सरकार ने सती प्रथा, एक से अधिक विवाह (बहुविवाह प्रथा) एवं मानव बलि जैसी कुप्रथाओं पर प्रतिबंध के लिए अनेक कदम उठाए हैं। ऐसे प्रतिबंधों को धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार में हस्तक्षेप नहीं माना जा सकता। धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार पर नियंत्रण लगाने से विभिन्न धर्म के मनाने वालों और सरकार के बीच अक्सर ही तनावपूर्ण स्थितियाँ पैदा होती हैं। जब भी किसी धार्मिक समुदाय के कुछ क्रियाकलापों पर सरकार नियंत्रण लगाती है। तो उस समुदाय के लोग यह महसूस करते हैं कि वह उनके धर्म में एक हस्तक्षेप है।

प्रश्न 5. 
प्रादेश या रिट क्या है? भारत में न्यायपालिका कौन-कौन सी रिटें जारी करके नागरिकों के मौलिक अधिकारों का संरक्षण करती है?
अथवा
सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए कौन-कौन से आदेश जारी कर सकता है?
उत्तर:
प्रादेश या रिट-सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों को लागू करने के लिए सरकार को आदेश और निर्देश दे सकते हैं। न्यायालय कई प्रकार के विशेष आदेश जारी करते हैं, जिन्हें प्रादेश या रिट कहते हैं।
भारत में न्यायपालिका निम्नलिखित आदेश जारी करके मौलिक अधिकारों का संरक्षण करती है
(1) बंदी प्रत्यक्षीकरण-बंदी प्रत्यक्षीकरण के द्वारा न्यायालय किसी गिरफ्तार व्यक्ति को न्यायालय के सामने प्रस्तुत करने का आदेश देता है। यदि गिरफ्तारी का तरीका या कारण गैर कानूनी या असंतोषजनक हो, तो न्यायालय गिरफ्तार व्यक्ति को छोड़ने का आदेश दे सकता है।

(2) परमादेश-यह आदेश तब जारी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है कि कोई सार्वजनिक पदाधिकारी अपने कानूनी और संवैधानिक दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है तथा इससे किसी व्यक्ति का मौलिक अधिकार प्रभावित हो रहा है।

(3) निषेध आदेश-जब कोई निचली अदालत अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करके किसी मुकदमें की सुनवाई करती है तो ऊपर की अदालतें (उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय) उसे ऐसा करने से रोकने के लिए 'निषेध आदेश' जारी करती हैं।

(4) अधिकार पृच्छा-जब न्यायालय को लगता है कि कोई व्यक्ति ऐसे पद पर नियुक्त हो गया है जिस पर उसका कानूनी हक नहीं है तब न्यायालय ‘अधिकार पृच्छा आदेश' के द्वारा उसे उस पद पर कार्य करने से रोक देता है। 

(5) उत्प्रेषण रिट-जब कोई निचली अदालत या सरकारी अधिकारी बिना अधिकार के कोई कार्य करता है तो न्यायालय उसके समक्ष विचाराधीन मामले को उससे लेकर ऊपर की अदालत या अधिकारी को हस्तांतरित कर देता है तो उसे उत्प्रेषण रिट कहा जाता है।

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प्रश्न 6. 
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन कब किया गया? मानव अधिकारों के संरक्षण में इसकी भूमिका बताइए।
अथवा 
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के प्रमुख कार्य बताइए। अथवा मौलिक अधिकारों की रक्षा में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका बताइए।
उत्तर:
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग का गठन-भारत का राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग एक स्वायत्त विधिक संस्था है। इसकी स्थापना 12 अक्टूबर 1993 को मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के तहत की गई। यह संविधान द्वारा अभिनिश्चित और अन्तर्राष्ट्रीय संधियों से निर्मित व्यक्तिगत अधिकारों का संरक्षक है। मानवाधिकार आयोग की अध्यक्षता सर्वोच्च न्यायालय के सेवानिवृत मुख्य न्यायाधीश द्वारा किए जाने का प्रावधान है। इस समिति के अध्यक्ष तथा सदस्यों का कार्यकाल 3 वर्ष या 70 वर्ष की उम्र, जो भी पहले हो, होता है। राष्ट्रपति द्वारा इन्हें पद से हटाया जा सकता है। इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की मानवाधिकारों के संरक्षण में भूमिका-राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग संविधान द्वारा दिए गए मानवाधिकारों; जैसे- जीवन का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार और समानता का अधिकार आदि की रक्षा करता है तथा उनके प्रहरी के रूप में कार्य करता है। इस आयोग के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं

  • मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बन्धित कोई मामला यदि इस आयोग के संज्ञान में आता है या शिकायत के माध्यम से लाया जाता है तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को उसकी जाँच करने का अधिकार है।
  • इसके पास मानवाधिकारों के उल्लंघन से सम्बन्धित सभी न्यायिक मामलों में हस्तक्षेप करने का अधिकार है।
  • आयोग किसी भी जेल का दौरा कर सकता है और जेल में बंद कैदियों की स्थिति का निरीक्षण एवं उसमें सुधार के लिए सुझाव दे सकता है। .
  • यह आयोग संविधान या किसी अन्य कानून द्वारा मानवाधिकारों को बचाने के लिए प्रदान किए गए सुरक्षा उपायों की समीक्षा कर सकता है और उनमें बदलावों की सिफारिश कर सकता है।
  • यह मानवाधिकार के क्षेत्र में अनुसंधान का कार्य भी करता है। 
  • इसके पास मुआवजे या हर्जाने के भुगतान की सिफारिश करने का भी अधिकार है।
  • यह केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों से मानवाधिकारों के उल्लंघन को रोकने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने की सिफारिश भी कर सकता है।
  • आयोग प्रकाशनों, मीडिया, सेमिनारों और अन्य माध्यमों से समाज के विभिन्न वर्गों के बीच मानवाधिकारों से जुड़ी जानकारी का प्रचार करता है और लोगों को इन अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्राप्त उपायों के प्रति भी जागरूक करता है।
  • आयोग अपनी रिपोर्ट भारत के राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत करता है जिसे संसद के दोनों सदनों में रखा जाता है।

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग को प्रतिवर्ष हजारों शिकायत मिलती हैं। इनमें से अधिकांशतया हिरासत में मृत्यु, हिरासत के दौरान बलात्कार, लोगों के गायब होने, पुलिस की ज्यादतियाँ, कार्यवाही न किये जाने एवं महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार आदि से सम्बन्धित होती मानवाधिकार आयोग का सबसे प्रभावी हस्तक्षेप पंजाब में युवकों के गायब होने एवं गुजरात दंगों के मामले में जाँच के रूप में रहा। इस प्रकार मौलिक अधिकारों की रक्षा में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की भूमिका अत्यन्त ही महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 7. 
नागरिकों को किन मौलिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिये ? अथवा भारतीय संविधान में वर्णित मूल कर्तव्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अधिकार और कर्तव्य का घनिष्ठ सम्बन्ध है। अधिकार और कर्त्तव्य एक-दूसरे के पूरक हैं। एक व्यक्ति के कर्त्तव्य दूसरे के अधिकार बन जाते हैं। अत: कर्त्तव्यों की अनुपस्थिति में अधिकारों की कल्पना करना सम्भव नहीं है। भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का ही उल्लेख था, मूल कर्त्तव्यों का नहीं। बाद में संविधान में मूल कर्त्तव्यों को वर्ष 1976 में 42वें संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया। मूल कर्त्तव्य संविधान के भाग 4 क में अनुच्छेद 51 क के तहत वर्णित हैं। भारतीय संविधान में नागरिकों के 11 मौलिक कर्तव्यों का उल्लेख है जो इस प्रकार हैं भारत के प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह

  1. संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्रगान का आदर करे। 
  2. स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे। 
  3. भारत की प्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे। 
  4. देश की रक्षा करे और आह्वान किए जाने पर राष्ट्र की सेवा करे।
  5. भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे जो धर्म, भाषा और प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव से परे हो, ऐसी प्रथाओं का त्याग करे जो स्त्रियों के सम्मान के विरुद्ध है।
  6. हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझे और उसका परिरक्षण करे।
  7. प्राकृतिक पर्यावरण की, जिसके अंतर्गत वन, झील, नदी और वन्यजीव हैं, रक्षा करे और उसका संवर्धन करे तथा प्राणि मात्र के प्रति दयाभाव रखे।
  8. वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करे। 
  9. सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे और हिंसा से दूर रहे।
  10. व्यक्तिगत और सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की और बढ़ने का सतत प्रयास करे जिससे राष्ट्र निरंतर बढ़ते हुए प्रयत्न और उपलब्धि की नई ऊँचाइयों को छू ले।
  11. यदि माता-पिता या संरक्षक है, छह वर्ष से चौदह वर्ष तक की आयु वाले अपने, यथास्थिति, बालक या प्रतिपाल्य के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करे।

प्रश्न 8. 
नीति निर्देशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में सम्बन्ध स्पष्ट करते हुए बताइए कि क्या कभी-कभी जब सरकार नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने का प्रयास करती है, तो वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा सकते हैं? उदाहरण भी दीजिए।
उत्तर:
नीति-निर्देशक तत्वों और मौलिक अधिकारों में संबंध-मौलिक अधिकारों और नीति-निर्देशक तत्वों को एक-दूसरे के पूरक के रूप में देखा जा सकता है। जहाँ मौलिक अधिकार सरकार के कुछ कार्यों पर प्रतिबंध लगाते हैं वहीं नीति-निर्देशक तत्व उसे कुछ कार्यों को करने की प्रेरणा देते हैं। मौलिक अधिकार विशेष रूप से व्यक्ति के अधिकारों को संरक्षित करते हैं, पर नीति-निर्देशक तत्व सम्पूर्ण हित की बात करते हैं। लेकिन कभी-कभी जब सरकार नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने का प्रयास करती है, तो वे नागरिकों के मौलिक अधिकारों से टकरा सकते हैं।

यह समस्या तब उत्पन्न हुई जब सरकार ने जमींदारी उन्मूलन कानून बनाने का फैसला किया। इसका विरोध इस आधार पर किया गया कि उससे संपत्ति के मौलिक अधिकार का हनन होता है। लेकिन यह सोचकर कि सामाजिक आवश्यकताएँ वैयक्तिक हित से ऊपर हैं, सरकार ने नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए संविधान में संशोधन किया। इससे एक लंबी कानूनी लड़ाई प्रारम्भ हो गयी। कार्यपालिका और न्यायपालिका ने इस पर परस्पर विरोधी दृष्टिकोण अपनाया। सरकार की मान्यता थी कि नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इसके पीछे यह धारणा थी कि लोक कल्याण के मार्ग में अधिकार बाधक हैं।

दूसरी ओर न्यायालय की यह मान्यता थी कि मौलिक अधिकार इतने महत्वपूर्ण और पावन हैं कि नीति-निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए भी उन्हें प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। इसने एक और भी जटिल विवाद को जन्म दिया, वह संविधान के संशोधन से संबंधित था। सरकार का मत था कि संसद संविध पान के किसी भी अंश या प्रावधान में संशोधन कर सकती है। न्यायपालिका का मत था कि संसद कोई ऐसा संशोधन नहीं कर सकती जो मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो। यह विवाद सर्वोच्च न्यायालय द्वारा केशवानन्द भारती मुकदमें में दिए गए एक महत्वपूर्ण निर्णय से समाप्त हुआ। इसमें निर्णय देते हुए न्यायालय ने यह कहा कि संविधान की कुछ मूल-ढाँचागत' विशेषताएँ हैं जिनमें संसद कोई परिवर्तन नहीं कर सकती।

विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे गए इस अध्याय से सम्बन्धित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. 
भारत के संविधान का भाग-III सम्बद्ध है
(अ) राज्य के नीति निर्देशक तत्वों से
(ब) मूल कर्त्तव्यों से 
(स) मूल अधिकारों से
(द) नागरिकता से। 
उत्तर:
(स) मूल अधिकारों से

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प्रश्न 2. 
भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों का वर्णन है
(अ) संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक 
(ब) संविधान के अनुच्छेद 13 से 36 तक 
(स) संविधान के अनुच्छेद 15 से 39 तक
(द) संविधान के अनुच्छेद 16 से 40 तक 
उत्तर:
(अ) संविधान के अनुच्छेद 12 से 35 तक 

प्रश्न 3.
भारत के संविधान में मौलिक अधिकार
(अ) मूल संविधान का हिस्सा था 
(ब) चौथे संशोधन द्वारा जोड़े गए थे 
(स) संसद द्वारा 1952 में जोड़े गए थे 
(द) 42वें संशोधन द्वारा जोड़े गए थे। 
उत्तर:
(अ) मूल संविधान का हिस्सा था 

प्रश्न 4. 
मौलिक अधिकारों का निलम्बन कौन कर सकता है?
(अ) प्रधानमंत्री 
(ब) संसद
(स) राष्ट्रपति
(द) सर्वोच्च न्यायालय 
उत्तर:
(स) राष्ट्रपति

प्रश्न 5. 
मौलिक अधिकारों के बारे में सुनवाई करने का अधिकार निम्न को प्रदान किया जाता है-  
(अ) सर्वोच्च नयायालय 
(ब) उच्च न्यायालय 
(स) प्रधानमंत्री 
(द) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(अ) सर्वोच्च नयायालय 

प्रश्न 6. 
मौलिक अधिकारों की संरक्षक है
(अ) न्यायपालिका 
(ब) कार्यकारिणी 
(स) संसद
(द) इनमें से कोई नहीं। 
उत्तर:
(अ) न्यायपालिका 

प्रश्न 7.
मौलिक अधिकारों का मुख्य उद्देश्य है
(अ) समाज के समाजवादी ढाँचे को बढ़ावा देना। 
(ब) व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना। 
(स) न्यायपालिका की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना। 
(द) उपुर्यक्त सभी को सुनिश्चित करना। 
उत्तर:
(ब) व्यक्तिगत स्वतंत्रता को सुनिश्चित करना। 

प्रश्न 8.
भारतीय संविधान की अस्पृश्यता उन्मूलन से सम्बन्धित अनुच्छेद है- 
(अ) अनुच्छेद 15 
(ब) अनुच्छेद 16 
(स) अनुच्छेद 17 
(द) अनुच्छेद 18 
उत्तर:
(स) अनुच्छेद 17 

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प्रश्न 9. 
समानता का अधिकार भारतीयों के लिए सुनिश्चित करता है
(अ) धार्मिक समानता 
(ब) आर्थिक समानता । 
(स) सामाजिक समानता
(द) उपर्यक्त सभी 
उत्तर:
(ब) आर्थिक समानता । 

प्रश्न 10. 
भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में संवैधानिक उपचारों का अधिकार दिया गया है? 
(अ) अनुच्छेद 30
(ब) अनुच्छेद 31
(स) अनुच्छेद 32
(द) अनुच्छेद 35 
उत्तर:
(स) अनुच्छेद 32

प्रश्न 11. 
कौन व्यक्तिगत स्वतंत्रता से सम्बन्धित है
(अ) बन्दी प्रत्यक्षीकरण 
(ब) उत्प्रेषण 
(स) प्रतिषेध
(द) परमादेश।
उत्तर:
(अ) बन्दी प्रत्यक्षीकरण 

प्रश्न 12. 
कौन मूल अधिकारों के अन्तर्गत नहीं आता है?
(अ) स्वतंत्रता का अधिकार
(ब) समानता का अधिकार 
(स) सम्पत्ति का अधिकार
(द) शोषण के विरूद्ध अधिकार 
उत्तर:
(स) सम्पत्ति का अधिकार

प्रश्न 13. 
सम्पत्ति का अधिकार एक
(अ) मौलिक अधिकार है
(ब) नैसर्गिक अधिकार है 
(स) वैधानिक अधिकार
(द) कानूनी अधिकार है 
उत्तर:
(द) कानूनी अधिकार है 

प्रश्न 14. 
मौलिक अधिकार में कौन सी बात की स्वतंत्रता नहीं है?
(अ) हड़ताल करने की आजादी
(ब) विचार व्यक्त करने की आजादी 
(स) शांतिपूर्वक प्रदर्शन करने की आजादी 
(द) धरना देने की आजादी 
उत्तर:
(अ) हड़ताल करने की आजादी

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प्रश्न 15. 
मौलिक अधिकारों में संशोधन करने में कौन सक्षम है?
(अ) राष्ट्रपति 
(ब) लोकसभा 
(स) सर्वोच्च न्यायालय
(द) संसद 
उत्तर:
(द) संसद 

प्रश्न 16. 
निम्न में से कौन-सा मूल अधिकार भारतीय संविधान में नागरिकों को नहीं दिया गया है? 
(अ) देश के किसी भी भाग में बसने का अधिकार 
(ब) लिंग समानता का अधिकार 
(स) सूचना का अधिकार
(द) शोषण के विरूद्ध अधिकार। 
उत्तर:
(स) सूचना का अधिकार

Prasanna
Last Updated on Sept. 2, 2022, 5:59 p.m.
Published Sept. 2, 2022