These comprehensive RBSE Class 11 Home Science Notes Chapter 5 कपड़े - हमारे आस-पास will give a brief overview of all the concepts.
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→ परिचय-कपड़े हमारे चारों ओर हैं। वे हमारे जीवन का महत्वपूर्ण भाग हैं। कपड़े आराम और ऊष्मा प्रदान करते हैं। इनमें विभिन्न रंग, सजावट शैलियाँ और बुनावट होती हैं। कपड़े, वजन और मोटाई में विभिन्न प्रकार के होते हैं तथा उनके चयन का संबंध उनके उपयोग के अनुसार होता है। रेशे, सूत और कपड़ा इन सभी वस्तुओं को वस्त्र उत्पाद कहा जाता है और कपड़े को संसाधित करने की प्रक्रिया-सफाई, चमकाना, रंग करना आदि को परिष्करण कहा जाता है। आजकल बाजार में कई प्रकार के कपड़े उपलब्ध है।
→ रेशे के गुण-रेशे के गुण कपड़े के गुणों को निर्धारित करते हैं। रेशा सचमुच महत्वपूर्ण और उपयोगी हो, इसके लिए उसे भारी मात्रा में उपलब्ध होना चाहिए और किफायती होना चाहिए। सबसे अनिवार्य गुण है उसका कताई योग्य होना।
→ वस्त्र रेशों का वर्गीकरण-वस्त्र रेशों को उनके उद्भव के आधार पर प्राकृतिक और मानव-निर्मित प्रकारों में, सामान्य रसायन प्रकार के आधार पर, सेलुलोसिक एवं प्रोटीन प्रकारों में जातिगत प्रकार के आधार पर जंतु के रोग एवं जंतु स्राव प्रकारों में और सामान्य ट्रेड नाम के आधार पर पोलीएस्टर एवं टेरीन के प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है। इसे कम लंबाई वाला व अधिक लंबाई वाला की कोटि में भी बाँटा जा सकता है।
→ प्राकृतिक रेशे-प्राकृतिक रेशे वे होते हैं जो रेशों के रूप में प्रकृति में पाए जाते हैं । ये चार प्रकार के होते हैंसेलुलोसिक, प्रोटीन, खनिज रेशे व प्राकृतिक रबड़।
→ विनिर्मित अथवा मानव निर्मित रेशे-सबसे पहले विनिर्मित रेशा 'रेयान' वाणिज्यिक रूप में सन् 1895 में निर्मित किया गया। गैर-तंतुमय सामग्री को तंतुमय प्रकार में बदलकर सबसे पहले विनिर्मित होने वाले रेशों को बनाया गया। दूसरी कोटि के रेशे को पूरी तरह रसायनों के उपयोग से संश्लेषित किया गया।
→ विनिर्मित रेशों के प्रकार
→ सूत:
सूत को वस्त्र रेशे फिलामेंट अथवा ऐसी सामग्री की लंबी-लंबी बटों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो कपड़ा तैयार करने के लिए हर प्रकार के धागों की बुनाई के लिए उपयुक्त हैं।
→ सूत प्रसंस्करण:
प्राकृतिक स्टेपल रेशे से सूत को संसाधित करने को कताई कहते हैं। सूत संसाधित करने के कई चरण हैं। ये हैं
→ कपड़ा उत्पादन:
अधिकांश कपड़े सूत से बने होते हैं। फिर भी, कुछ कपड़े सीधे रेशों से ही बनाए जा सकते हैं। सीधे रेशों से बनाए जाने वाले कपड़े मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं-फेल्ट्स (नमदा) ओर ब्रान्डेड फाइवर (बिना बुने) । अधिकांश कपड़ों के निर्माण में मध्यम सूत चरण आवश्यक होता है। कपड़ा बनाने की विधियाँ बुनाई तथा कुछ हद तक गुँथाई (बेर्डिंग) और गाँठ लगाना (नॉटिंग) है।
→ वस्त्र परिष्करण:
परिष्करण वह विधि है जिससे कपड़े का रूप-रंग, इसकी बुनावट अथवा विशिष्ट उपयोग है। कुछ परिष्करण टिकाऊ होते हैं, जैसे डाई करना और कुछ परिष्करण धोने के बाद हट जाते हैं और उन्हें पुनः लगाना पड़ता है, जैसे-नील चढ़ाना, मांड लगाना।
कार्यों के आधार पर महत्त्वपूर्ण परिष्करण के प्रकार हैं
(क) रंगों से परिष्करण-कपड़ों पर रंग चढ़ाने का कार्य इन स्तरों पर होता है
(ख) छपाई-छपाई रंग करने की सबसे उन्नत विधि है। ब्लॉक, स्टेंसिल अथवा स्क्रीन जैसे हाथ के उपकरणों द्वारा छपाई की जा सकती है और औद्योगिक स्तर पर रोलर छपाई अथवा ऑटोमैटिक स्क्रीन छपाई की जाती है।
→ कुछ महत्वपूर्ण रेशे:
महत्वपूर्ण रेशों के अंतर्गत निम्नलिखित शामिल हैं
→ कपास:
कपास के रेशे कपास के पौधों के बीजफल से प्राप्त होते हैं। प्रत्येक बीज में काफी मात्रा में रुएँ होते हैं। जब बीज पक जाते हैं तो फली फूट जाती है। ओटाई प्रक्रिया द्वारा रेशों से बीज अलग किया जाता है।
→ लिनेन:
लिनेन एक बास्ट रेशा है जो लैक्स के पौधे के तने से प्राप्त होता है। छाल के भीतर का गूदेदार भाग बास्ट कहलाता है। रेशे को प्राप्त करने के लिए तनों को लंबे समय तक पानी में भिगोया जाता है।
→ ऊन:
ऊन भेड़ के बालों से प्राप्त होती है। इसे बकरी, खरगोश, ऊँट जैसे अन्य पशुओं से भी प्राप्त किया जा सकता है। इन रेशों को विशिष्ट बाल के रेशे कहा जाता है। पशु के शरीर से बाल उतारने की प्रक्रिया को कतरना (शीयरिंग) कहते हैं।
→ रेशम:
रेशम एक प्राकृतिक तंतु रेशा है, जो रेशम के कीड़े के स्राव से निर्मित होता है। अच्छी गुणवत्ता वाले रेशम के उत्पादन के लिए रेशम के कीड़े की खेती सावधानीपूर्वक नियंत्रित की जाती है। इसे रेशम कीट पालन कहा जाता
→ रेयान:
यह विनिर्मित सेलुलोसिक रेशा है। सेलुलोसिक इसलिए कि यह लकड़ी की लुगदी से बनता है और विनिर्मित इसलिए कि यह लुगदी रसायनों से संसाधित की जाती है।
→ नायलॉन:
यह पूर्णतः रसायनों से विनिर्मित पहला वास्तविक कृत्रिम रेशा है। इसके बाद में आने वाले अन्य कृत्रिम रेशों के लिए यह प्रेरणास्रोत बना।
→ पोलीएस्टर:
पोलीएस्टर एक अलग किस्म का विनिर्मित कृत्रिम रेशा है। इसे टेरीलीन अथवा टेरीन भी कहा जाता है।
→ एक्रीलिक:
यह भी एक प्रकार का कृत्रिम रेशा ही है। यह ऊन से इतना अधिक मिलता-जुलता है कि कोई विशेषज्ञ भी दोनों में अंतर नहीं बता सकता। इसे सामान्यतया कैशमिलॉन कहा जाता है।
→ इलैस्टोमरी रेशे:
कुछ कम प्रचलित रेशे भी हैं, जिन्हें इलैस्टोमरी रेशों के नाम से जाना जाता है। इनमें इलास्टिक, प्राकृतिक रूप में रबड़ इत्यादि शामिल हैं।