These comprehensive RBSE Class 11 Home Science Notes Chapter 16 वित्तीय प्रबन्धन एवं योजना will give a brief overview of all the concepts.
→ प्रस्तावना
→ पारिवारिक आय- पारिवारिक आय का तात्पर्य सभी प्रकार की आय तथा एक निश्चित अवधि में सभी पारिवारिक सदस्यों की सभी स्रोतों से प्राप्त आय के कुल योग से है । यद्यपि सरकारी उद्देश्य के लिए इसे वित्त वर्ष की वार्षिक आय माना जाता है। आय के स्रोत हैं-मजदूरी, वेतन, कारोबार से लाभ, कमीशन, संपत्तियों से आने वाला किराया, नकद ऋणों | पर ब्याज, लाभांश, पेंशन, उपहार, रॉयल्टी, दान, बोनस, सब्सिडी आदि।
→ पारिवारिक आय के प्रकार-पारिवारिक आय तीन प्रकार की होती है
(1) वास्तविक आय-वास्तविक आय वस्तुओं एवं सेवाओं का प्रवाह है, यह स्थिर नहीं होती तथा ये वस्तुएँ व सेवाएँ धन से उपलब्ध भी हो सकती हैं और नहीं भी।
वास्तविक आय दो प्रकार की होती है
(अ) प्रत्यक्ष आय (मुद्रा व्यय किए बिना प्राप्त वस्तुएँ व सेवाएँ व सुविधाएँ)
(ब) अप्रत्यक्ष आय (मुद्रा व्यय करके या प्रयत्न द्वारा प्राप्त सेवाएँ व सुविधाएँ)
(2) मौद्रिक आय-मौद्रिक आय मुद्रा के रूप में प्राप्त आय है। यह मजदूरी, वेतन, बोनस, कमीशन, किराया, लाभांश, ब्याज, पेंशन, रायल्टी आदि के रूप में प्राप्त होती है।
(3) मानसिक आय-यह वह संतोष है जो सेवाओं तथा माल के स्वामित्व एवं उपयोग के फलस्वरूप प्राप्त होता है।
→ आय प्रबंधन आय प्रबंधन को सभी प्रकार की आय के इस्तेमाल के नियोजन, नियंत्रण तथा मूल्यांकन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है। प्रत्येक परिवार अपने लक्ष्यों, जरूरतों और इच्छाओं को ध्यान में रखकर व्यय की योजना बनाता है। बजट
धन के उपयोग के लिए बजट नियोजन का एक तरीका है। यह भावी व्यय की एक योजना है। यह एक माह या एक वर्ष के लिए परिवार की आय-व्यय का एक ब्यौरा है।
→ बजट निर्माण के चरण
बजट निर्माण के मुख्यतया पाँच चरण हैं
I. आयोजन
→ पारिवारिक बजट की योजना बनाने का लाभ
II. धन प्रबंधन में नियंत्रण
नियोजन के उपरांत धन प्रबंधन में नियंत्रण दूसरा कदम है। वित्त प्रबंधक में नियंत्रण दो प्रकार का होता है
(i) जाँच करना-जाँच दो तरह की हो सकती है
(क) मानसिक एवं यांत्रिकीय जाँच
(ख) अभिलेख एवं खाते।
(ii) समायोजन-योजना को सही दिशा में रखने के लिए योजना का समायोजन करना बहुत महत्वपूर्ण है। परिवार के बाहरी कारकों-आपातकाल, बिना योजना के खरीदारी आदि के कारण यदि मूल योजना खराब हो तो समायोजन की आवश्यकता होती है।
III. मूल्यांकन
धन प्रबंधन में मूल्यांकन अंतिम कदम है। व्ययों से प्राप्त संतुष्टि बजट की सफलता को निर्धारित करने के महत्वपूर्ण साधनों में से एक है। विशिष्ट लक्ष्यों-व्यय किए गए धन का उचित मूल्य प्राप्त करने, देय बिलों को चुकता करने की सामर्थ्य, भविष्य के लिए व्यवस्था, परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार आदि के मद्देनजर मूल्यांकन किया जाता है।
बचत और निवेश-मूल्यांकन के बाद का चरण है-बचत और निवेश के बारे में सीखना ताकि हम भविष्य में उनका बेहतर उपयोग कर सकें । यथा
→ बचत:
बचत का तात्पर्य है-भविष्य में इस्तेमाल अथवा अधिक उत्पादन के लिए अपने धन अथवा अन्य संसाधन के एक भाग को अलग रखना। बचत में पूँजी निर्माण एवं संचयन होता है। यह परिवार की बचत करने की क्षमता तथा बचत करने की इच्छा पर निर्भर करता है। बचत के लिए परिवार के सदस्यों की ओर से अनुशासन, नियोजन, सहयोग तथा परिश्रम की आवश्यकता होती है। परिवार की सुरक्षा एवं खुशी के लिए धन की बचत बहुत जरूरी है।
→ निवेश:
निवेश का तात्पर्य है-अधिक उत्पादन के लिए धन का उपयोग करना। निवेश दो प्रकार की परिसंपत्तियों के रूप में हो सकता है-
(अ) भौतिक परिसंपत्ति तथा
(ब) वित्तीय परिसम्पत्ति।
भौतिक परिसम्पत्तियों में बचत का आशय भूमि, संपत्ति, घर, सोना, घर-गृहस्थी के सामान आदि के क्रय के लिए बचत का इस्तेमाल करना। वित्तीय परिसम्पत्तियों में बचत का आशय बैंक खातों, डाक घरों, वित्तीय साख संस्थाओं, शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा पॉलिसियों में बचत को लगाना।
→ विवेकपूर्ण निवेशों में अन्तर्निहित सिद्धान्त
विवेकपूर्ण निवेश के प्रमुख सिद्धान्त ये हैं
बचत एवं निवेश के अवसर-भारतीय ग्राहक को उपलब्ध बचत एवं निवेश के विकल्प हैं-डाकघर, बैंक, यूनिट ट्रस्ट ऑफ इण्डिया, राष्ट्रीय बचत योजना, राष्ट्रीय बचत पत्र, शेयर एवं ऋण पत्र, बंध पत्र, म्यूचुअल निधि, भविष्य निधि, लोक भविष्य निधि, चिटफंड, जीवन बीमा, पेंशन योजना, स्वर्ण, घर, जमीन आदि।
→ साख (क्रेडिट)-कभी-कभी परिवार को अपनी आवश्यकताओं एवं दायित्वों के निर्वहन के लिए क्रेडिट का प्रयोग करना पड़ता है। क्रेडिट का आशय वर्तमान में धन तथा माल अथवा सोवा प्राप्त करना और भविष्य में उनके लिए भुगतान करना है। इसके लिए हमें कभी-कभी काफी उच्च दर पर भुगतान करना पड़ता है। किसी निश्चित समय पर क्रेडिट का इस्तेमाल क्रय शक्ति में वृद्धि करता है।
→ क्रेडिट की आवश्यकता-यदि क्रय करने के पहले वस्तु की आरंभिक लागत इतनी अधिक हो कि | बचत न की जा सके, तो परिवार वस्तु को तत्काल लेने के लिए रुपये उधार लेते हैं, जैसे जमीन के लिए। उधार लेने का एक अन्य कारण बीमारी या आपात संकट से परिवार को निपटना हो। इसके अतिरिक्त बच्चों के विवाह या धार्मिक रस्मों-रिवाजों का निष्पादन की बाध्यताओं आदि के लिए परिवार ऋण लेता है।
व्यक्तियों तथा परिवारों की क्रेडिट देने का निर्णय 4-C द्वारा नियंत्रित होता है। ये हैं
→ क्रेडिट के मुख्य स्रोत-वाणिज्यिक बैंक, सहकारी बैंक, कृषि बैंक, क्रेडिट संघ आदि क्रेडिट (ऋण) लेने के मुख्य स्रोत होते हैं । इसके अतिरिक्त स्वयं सहायता समूह से भी ऋण लिया जा सकता है।