These comprehensive RBSE Class 11 Home Science Notes Chapter 13 देखभाल तथा शिक्षा will give a brief overview of all the concepts.
→ बाल्यावस्था की अवधि को शैशवावस्था (जन्म से 2 वर्ष), प्रारंभिक बाल्यावस्था (2-6 वर्ष) तथा मध्य बाल्यावस्था (7-11 वर्ष) में विभाजित किया गया है।
(अ) शैशवावस्था तथा प्रारंभिक बाल्यावस्था के वर्ष : देखभाल तथा शिक्षा (जन्म से 6 वर्ष)
(1) प्रथम छः वर्षों का महत्व
शैशवावस्था तथा प्रारंभिक बाल्यावस्था की अवधियाँ कई तरह से किसी भी व्यक्ति के जीवन में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा निर्णायक होती हैं क्योंकि
(i) विकास की सर्वाधिक संवेदनशील व निर्णायक अवधि-सभी क्षेत्रों में विकास की दर इन वर्षों में सर्वाधिक तीव्र होती है। मस्तिष्क सभी क्षेत्रों में विकास को नियंत्रित करता है तथा मस्तिष्क के विकास की दर जीवन के प्रथम दो वर्षों में सर्वाधिक तीव्र होती है। मस्तिष्क के विकास की तीव्र दर के कारण जीवन के प्रथम छः वर्ष विकास के विभिन्न क्षेत्रों के लिए निर्णायक होते हैं क्योंकि इस अवधि में किसी विशिष्ट क्षेत्र में विकास अनुकूल तथा प्रतिकूल अनुभवों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील होता है और ये अनुकूल या प्रतिकूल अनुभव क्रमशः काफी सीमा तक विकास को प्रेरित व संवर्धित या विकास में बाधा डालते हैं।
इस निर्णायक अवधि के दौरान प्रतिकूल अनुभवों का प्रभाव कभी-कभी अपरिवर्तनीय हो जाता है और बच्चे के विकास को हुई क्षति की क्षतिपूर्ति नहीं की जा सकती। इसलिए प्रारंभिक बाल्यावस्था के वर्षों को विकास की निर्णायक अवधियाँ कहा जाता है।
(ii) विशाल लचीलेपन का समय-यद्यपि प्रारंभिक बाल्यावस्था के वर्ष विकास की संवेदनशील अवधियाँ हैं जिनमें हानिकारक अनुभवों का स्थायी प्रभाव पड़ सकता है, तथापि यह अवधि विशाल लचीलेपन की होती है। इन वर्षों में बच्चा स्थिति से सामंजस्य बिठाने की अच्छी योग्यता प्राप्त कर लेता है और प्रारंभिक प्रतिकूल अनुभवों के बाद उसे अनुकूल अनुभव मिलें तो वह थोड़ा बहुत नकारात्मक अनुभवों से उभर सकता है। उदाहरण-बच्चे का भाषायी विकास।
(iii) बाद के व्यवहार को प्रभावित तथा निश्चित रूप प्रदान करना-जीवन के कुछ वर्षों के अनुभव काफी हद तक बाद के व्यवहार को प्रभावित और निश्चित रूप प्रदान करते हैं।
(2) देखभाल तथा शिक्षा का अर्थ
शिक्षा केवल शिक्षण संस्थानों में औपचारिक पढ़ाई करना ही नहीं है बल्कि यह घर में बच्चे के प्रारंभिक वर्षों से ही शुरू हो जाती है और जीवन-पर्यन्त जारी रहती है। जब हम विकास की एक अवस्था से दूसरी अवस्था में पहुँचते हैं, तब उस समय हमारी शिक्षा का प्रकार और स्थान बदल जाता है।
यहाँ बच्चे की निम्नलिखित आधारभूत आवश्यकताओं के संदर्भ में देखभाल और शिक्षा के अर्थ को स्पष्ट किया गया है
(i) शारीरिक देखभाल की आवश्यकता-शिशु तथा पूर्व-विद्यालय छात्र को जीवित रहने के लिए वृद्धि तथा विकास के लिए सुरक्षा, भोजन तथा स्वास्थ्य संबंधी देखभाल की आवश्यकता होती है-विकास के लिए सबसे पहले यह आवश्यक है।
(ii) प्रोत्साहन की आवश्यकता-बच्चे अपने जीवन के आरंभिक दिनों से ही जिज्ञासु होते हैं तथा अपने आस-पास घटित होने वाली घटनाओं का आशय जानने के लिए उनकी उत्कंठा अत्यन्त तीव्र होती है। जब हम शिशु के साथ खेलते हैं, गाते हैं, बातचीत करते हैं तो हम उसे सोचने, तर्क करने तथा आस-पास के संसार को समझने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। इस प्रकार प्रोत्साहन का अर्थ बच्चे को ऐसे विविध अनुभव उपलब्ध कराना है जो उसके लिए सार्थक हैं। इन अनुभवों से बच्चे अपने आस-पास की वस्तुओं व लोगों के बारे में सीखते हैं तथा अनुभवों का अर्थ समझते हैं। इस प्रकार वे आस-पास की घटनाओं में सक्रिय सहभागिता द्वारा विश्व के बारे में खुद की समझ सृजित करते हैं। इसके साथ-साथ, बच्चों के द्वारा अनुभवों को समझ पाने में तथा विकास के वर्तमान स्तर के अनुसार नये तथा चुनौतीपूर्ण अनुभवों से परिचित होने के लिए वयस्क लोगों की सहायता की आवश्यकता पड़ती है।
(iii) पालन-पोषण की आवश्यकता-यदि बच्चे की स्नेह और ममता की आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होती, यदि बच्चा अपने आस-पास के वयस्क व्यक्तियों के साथ विश्वास पूर्ण तथा स्नेहमयी संबंधों का विकास नहीं कर पाता तो वह भावनात्मक रूप से सुरक्षित महसूस नहीं करेगा और ऐसे बच्चे में आत्मविश्वास की तथा आत्मसम्मान की कमी हो सकती है। जिससे सभी क्षेत्रों में उसका विकास बाधित हो सकता है।
(iv) प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल तथा शिक्षा (ई.सी.सी.ई.) के माध्यम से आवश्यकताओं की पूर्तिबच्चे की उक्त सभी आवश्यकताओं की एक साथ पूर्ति किया जाना उसके एक साथ इष्टतम विकास के लिए आवश्यक है। क्योंकि सभी क्षेत्रों में होने वाले विकास परस्पर संबंधित होते हैं।
प्रारंभिक वर्षों में शारीरिक, संज्ञानात्मक, भाषायी तथा सामाजिक-भावनात्मक विकास के अत्यधिक परस्पर संबल स्वरूप के कारण हम देखभाल तथा शिक्षा दोनों को एक साथ मिलाकर "प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल तथा शिक्षा" (एलेमेंट्री चाइल्ड केयर एण्ड एजूकेशन ई.सी.सी.ई.) कहते हैं।
ई.सी.सी.ई. से अभिप्राय बच्चे की शारीरिक देखभाल, प्रोत्साहन तथा पालन-पोषण से है, जो बच्चे को उपलब्ध होना चाहिए।
→ ई.सी.सी.ई. कौन प्रदान करता है?
देश में ई.सी.सी.ई. सरकार, निजी संस्थाओं व गैर-सरकारी संगठनों द्वारा प्रदान की जाती है। ये सेवाएँ शिशुगृहों तथा पूर्व-विद्यालय केन्द्रों द्वारा विभिन्न नामों, जैसे-नर्सरी विद्यालय, किंडर गार्डन, प्ले स्कूल, आँगनबाड़ियाँ तथा बालवाड़ियाँ आदि से प्रदान की जाती हैं। ई.सी.सी.ई. सेवाएँ क्यों प्रदान की जाएँ? ऐसे अनेक कारण हैं जिनकी वजह से बच्चों की संवृद्धि तथा विकास के लिए इन सेवाओं की आवश्यकता होती है। यथा
→ ई.सी.सी.ई. का स्वरूप
ई.सी.सी.ई. योगदानों का अर्थ है-विकासात्मक रूप से उपयुक्त सार्थक अनुभव प्रदान करना जो विभिन्न क्षेत्रोंसंज्ञानात्मक, सामाजिक, भावनात्मक, शारीरिक, विकास आदि में बढ़ावा देते हों। ये अनुभव बच्चे की बाल सुलभ क्रियाकलापों तथा खेल के माध्यम से उपलब्ध कराए जाने चाहिए, न कि औपचारिक शिक्षा के माध्यम से। जैसेबालगीत या कविताएँ गाना, खेल खेलना, कला, लय, शारीरिक चेष्टा और गतिविधि। इनमें बच्चे की सक्रिय सहभागिता होनी चाहिए।
→ मध्य बाल्यावस्था वर्षों के दौरान देखभाल तथा शिक्षा मध्य बाल्यावस्था वह अवधि है जिसमें बच्चा प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करता है। प्राथमिक शिक्षा का लक्ष्य बच्चे में | बुनियादी साक्षरता तथा गणितीय कौशलों का विकास करना है क्योंकि यह माध्यमिक अवस्था की शिक्षा के आधार के रूप में कार्य करते हैं।
हम अभी तक प्राथमिक शिक्षा का सार्वभौमीकरण नहीं कर पाए हैं क्योंकि निम्नलिखित कारणों से बड़ी संख्या में बच्चे विद्यालय में शिक्षा पाने में असमर्थ होते हैं
→ प्राथमिक शिक्षा का स्वरूप